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  • अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देना

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पारिवारिक सुख का रहस्य
fy अध्या. 15 पेज 173-182

अध्याय पंद्रह

अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देना

१. हम पर अपने माता-पिता के कौन-से ऋण हैं, और इसलिए उनके प्रति हमारी भावना और व्यवहार कैसा होना चाहिए?

“अपने जन्मानेवाले की सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना,” प्राचीन समय के बुद्धिमान पुरुष ने सलाह दी। (नीतिवचन २३:२२) ‘मैं तो ऐसा कभी नहीं करूँगा!’ आप शायद कहें। अपनी माताओं—या अपने पिताओं—को तुच्छ समझने के बजाय हम में से अधिकांश जन उनके प्रति गहरा प्रेम भाव रखते हैं। हम स्वीकार करते हैं कि हम उनके बहुत ऋणी हैं। सबसे पहले, हमारे माता-पिता ने हमें जीवन दिया। जबकि यहोवा जीवन का सोता है, अपने माता-पिता के बिना हम अस्तित्व में होते ही नहीं। हम अपने माता-पिता को ऐसा कुछ भी नहीं दे सकते जो स्वयं जीवन के जितना अनमोल हो। फिर, उस आत्म-त्याग, गहरी चिन्ता, ख़र्च, और प्रेममय परवाह के बारे में सोचिए जो एक बच्चे को शिशुपन से वयस्कता के मार्ग तक मदद करने में सम्मिलित है। इसलिए, यह कितना तर्कसंगत है कि परमेश्‍वर का वचन सलाह देता है: “अपनी माता और पिता का आदर कर . . . कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे”!—इफिसियों ६:२, ३.

भावात्मक ज़रूरतों को समझना

२. सयाने बच्चे अपने माता-पिता को “उन का हक्क” कैसे दे सकते हैं?

२ प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को लिखा: “[बच्चे या नाती-पोते] पहिले अपने ही घराने के साथ भक्‍ति का बर्ताव करना और अपने माता-पिता आदि को उन का हक्क देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्‍वर को भाता है।” (१ तीमुथियुस ५:४) माता-पिता और दादा-दादी ने सालों तक उन्हें प्रेम दिया, उनके लिए काम किया और उनकी परवाह की, इसके लिए मूल्यांकन दिखाने के द्वारा सयाने बच्चे उन्हें “उन का हक्क” देते हैं। यह समझने के द्वारा कि अन्य सभी की तरह, वृद्धजनों को प्रेम और आश्‍वासन की ज़रूरत होती है—अकसर बहुत ज़्यादा होती है—बच्चे ऐसा कर सकते हैं। हम सभी की तरह, उन्हें यह महसूस करने की ज़रूरत होती है कि उन्हें मूल्यवान समझा जाता है। उन्हें यह महसूस करने की ज़रूरत होती है कि उनका जीवन उपयोगी है।

३. हम माता-पिता और दादा-दादी को सम्मान कैसे दे सकते हैं?

३ सो हम अपने माता-पिता और दादा-दादी को यह बताने के द्वारा उनको सम्मान दे सकते हैं कि हम उनसे प्रेम करते हैं। (१ कुरिन्थियों १६:१४) यदि हमारे माता-पिता हमारे साथ नहीं रहते, तो हमें याद रखना चाहिए कि हमारा समाचार मिलना उनके लिए बहुत महत्त्व रख सकता है। प्रसन्‍न करनेवाली चिट्ठी, फ़ोन, या भेंट उनके आनन्द में बहुत योग दे सकते हैं। जापान में रहनेवाली, मीयो ने ८२ साल की उम्र में लिखा: “मेरी पुत्री [जिसका पति एक सफ़री सेवक है] मुझसे कहती है: ‘माँ, कृपया हमारे साथ “सफ़र” कीजिए।’ वह मुझे हर सप्ताह का अपना नियोजित मार्ग और फ़ोन नम्बर भेजती है। मैं अपना नक़शा खोलकर कह सकती हूँ: ‘हूँ। अब वे यहाँ हैं!’ एक ऐसी बच्ची पाने की आशिष के लिए मैं हमेशा यहोवा का धन्यवाद करती हूँ।”

भौतिक ज़रूरतों में मदद देना

४. यहूदी धार्मिक परंपरा ने वृद्ध माता-पिताओं के प्रति निष्ठुरता को कैसे प्रोत्साहन दिया?

४ क्या अपने माता-पिता को सम्मान देने में उनकी भौतिक ज़रूरतों का ध्यान रखना भी सम्मिलित हो सकता है? जी हाँ। अकसर ऐसा होता है। यीशु के दिनों में यहूदी धार्मिक अगुवों ने इस परंपरा को बढ़ावा दिया कि यदि एक व्यक्‍ति यह घोषित कर दे कि उसका पैसा या सम्पत्ति ‘परमेश्‍वर को चढ़ाई भेंट’ थी, तो वह इसे अपने माता-पिता की सेवा में प्रयोग करने की ज़िम्मेदारी से मुक्‍त था। (मत्ती १५:३-६) कितने निष्ठुर! वास्तव में, वे धार्मिक अगुवे लोगों को प्रोत्साहन दे रहे थे कि अपने माता-पिताओं को सम्मान न दें बल्कि स्वार्थपूर्वक उनकी ज़रूरतें न पूरी करने के द्वारा हीनता से उनके साथ व्यवहार करें। हम कभी-भी वैसा नहीं करना चाहते!—व्यवस्थाविवरण २७:१६.

५. कुछ देशों की सरकारों द्वारा किए गए प्रबन्धों के बावजूद, अपने माता-पिता को सम्मान देने में कभी-कभी आर्थिक सहायता देना क्यों सम्मिलित होता है?

५ आज अनेक देशों में, सरकार द्वारा चलाए गए सामाजिक कार्यक्रम वृद्धजनों की कुछ भौतिक ज़रूरतों को पूरा करते हैं, जैसे रोटी, कपड़ा, और मकान। इसके अलावा, वृद्धजन ख़ुद शायद अपने बुढ़ापे के लिए कुछ साधन जुटाने में समर्थ हुए हों। लेकिन यदि उनके साधन ख़त्म हो जाते हैं या पर्याप्त नहीं होते, तो बच्चे माता-पिता की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपना भरसक करने के द्वारा उनको सम्मान देते हैं। असल में, बूढ़े माता-पिताओं की सेवा करना ईश्‍वरीय भक्‍ति, अर्थात्‌ पारिवारिक प्रबन्ध के आरंभक, यहोवा परमेश्‍वर के प्रति एक व्यक्‍ति की भक्‍ति का प्रमाण है।

प्रेम और आत्म-त्याग

६. अपने माता-पिताओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ लोगों ने कौन-से निवास प्रबन्ध किए हैं?

६ अनेक सयाने बच्चों ने अपने अशक्‍त माता-पिताओं की ज़रूरतों के प्रति प्रेम और आत्म-त्याग के साथ प्रतिक्रिया दिखायी है। कुछ अपने माता-पिताओं को अपने घर ले गए हैं या उनके पास होने के लिए घर बदल लिया है। दूसरे अपने माता-पिता के घर में उनके साथ रहने लगे हैं। प्रायः, ऐसे प्रबन्ध माता-पिता और बच्चों, दोनों के लिए एक आशिष साबित हुए हैं।

७. यह क्यों अच्छा है कि वृद्ध माता-पिताओं के सम्बन्ध में फ़ैसले करने में जल्दबाज़ी न करें?

७ लेकिन, कभी-कभी ऐसे प्रबन्धों का परिणाम अच्छा नहीं निकलता। क्यों? संभवतः इसलिए कि फ़ैसले बहुत जल्दबाज़ी में किए जाते हैं या केवल भावनाओं पर आधारित होते हैं। “चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है,” बाइबल बुद्धिमानी से चिताती है। (नीतिवचन १४:१५) उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आपकी वृद्ध माँ को अकेले रहने में कठिनाई हो रही है और आप सोचते हैं कि आपके साथ आकर रहने में उन्हें लाभ हो सकता है। समझ बूझकर चलने में, आप निम्नलिखित बातों पर विचार कर सकते हैं: उनकी असली ज़रूरतें क्या हैं? क्या निजी या सरकार द्वारा प्रायोजित सहायता सेवाएँ हैं जो एक स्वीकार्य वैकल्पिक समाधान पेश करती हैं? क्या वह आपके पास आकर रहना चाहती हैं? यदि चाहती हैं, तो उनका जीवन किन तरीक़ों से प्रभावित होगा? क्या उन्हें मित्र पीछे छोड़ने पड़ेंगे? इसका भावात्मक रूप से उन पर कैसा प्रभाव पड़ सकता है? क्या आपने इन चीज़ों के बारे में उनके साथ बात की है? उनका आपके साथ रहना आपको, आपके साथी को, और स्वयं आपके बच्चों को कैसे प्रभावित कर सकता है? यदि आपकी माँ को देखरेख की ज़रूरत है, तो वह कौन करेगा? क्या ज़िम्मेदारी को बाँटा जा सकता है? क्या आपने इस विषय पर उन सभी के साथ चर्चा की है जो प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित हैं?

८. यह फ़ैसला करते समय कि अपने वृद्ध माता-पिता की मदद कैसे करें आप किससे सलाह ले सकते हैं?

८ चूँकि देखरेख की ज़िम्मेदारी परिवार के सभी बच्चों पर है, तो एक पारिवारिक बैठक बुलाना बुद्धिमानी की बात हो सकती है ताकि फ़ैसले करने में सभी भाग ले सकें। मसीही कलीसिया में प्राचीनों से या उन मित्रों से बात करना भी सहायक हो सकता है जिन्होंने मिलती-जुलती स्थिति का सामना किया है। “बिना सम्मति की कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं,” बाइबल चेतावनी देती है, “परन्तु बहुत से मंत्रियों की सम्मति से बात ठहरती है।”—नीतिवचन १५:२२.

समानुभूति और समझदारी दिखाइए

Picture on page 179

अपने जनक से पहले बात किए बिना उसके लिए फ़ैसले करना बुद्धिमानी की बात नहीं है

९, १०. (क) उनकी ढलती उम्र के बावजूद, वृद्धजनों के प्रति कैसी विचारशीलता दिखायी जानी चाहिए? (ख) एक सयाना बच्चा अपने माता-पिता के हित में चाहे जो भी क़दम उठाए, उसे हमेशा उनको क्या देना चाहिए?

९ अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देना समानुभूति और समझदारी की माँग करता है। जैसे-जैसे उम्र अपना क़हर ढाती है, वृद्धजनों के लिए चलना, खाना, और याद रखना अधिकाधिक कठिन हो सकता है। उन्हें मदद की ज़रूरत हो सकती है। अकसर बच्चे ज़्यादा ही ध्यान देने लगते हैं और मार्गदर्शन देने की कोशिश करते हैं। लेकिन वृद्धजन वयस्क हैं जिनके पास जीवन-भर की बटोरी हुई बुद्धि और अनुभव है, जीवन-भर उन्होंने अपनी देखरेख की है और अपने फ़ैसले ख़ुद किए हैं। उनकी पहचान और आत्म-सम्मान शायद माता-पिताओं और वयस्कों के रूप में उनकी भूमिका पर केंद्रित हो। जो माता-पिता ऐसा महसूस करते हैं कि उन्हें अपने जीवन की बागडोर अपने बच्चों के हाथ करनी है, वे हताश या क्रुद्ध हो सकते हैं। कुछ लोग ऐसी बातों से चिढ़ते और उनका विरोध करते हैं जो उन्हें उनसे उनका स्वतंत्र जीवन छीनने के प्रयास दिखती हैं।

१० ऐसी समस्याओं के कोई सरल समाधान नहीं हैं, लेकिन वृद्ध माता-पिताओं को जहाँ तक हो सके अपनी देखरेख ख़ुद करने देना और ख़ुद अपने फ़ैसले करने देना कृपालुता है। पहले अपने माता-पिता से बात किए बिना ये फ़ैसले करना कि उनके लिए सर्वोत्तम क्या है बुद्धिमानी की बात नहीं है। वे शायद काफ़ी कुछ खो चुके हों। जो उनके पास बचा है वह उन्हें रखने दीजिए। आप शायद पाएँ कि जितना कम आप अपने माता-पिता के जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, आपका उनके साथ उतना ही बेहतर सम्बन्ध होगा। वे ज़्यादा ख़ुश होंगे, और आप भी। यदि उनके भले के लिए कुछ बातों पर हठ करने की ज़रूरत है, तो भी अपने माता-पिता को सम्मान देना माँग करता है कि आप उन्हें वह गरिमा और आदर दें जिसके वे योग्य हैं। परमेश्‍वर का वचन सलाह देता है: “पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े का आदरमान करना।”—लैव्यव्यवस्था १९:३२.

सही मनोवृत्ति बनाए रखना

११-१३. यदि एक सयाने बच्चे का अतीत में अपने माता-पिता के साथ सम्बन्ध अच्छा नहीं रहा है, तो भी वह उनके बुढ़ापे में उनकी सेवा करने की चुनौती का सामना कैसे कर सकता है?

११ अपने बूढ़े माता-पिताओं को सम्मान देने में सयाने बच्चों के सामने कभी-कभी जो समस्या आती है वह उस सम्बन्ध से जुड़ी होती है जो उनका अपने माता-पिताओं के साथ छुटपन में था। शायद आपके पिता भावशून्य और प्रेमरहित थे, आपकी माँ रोबीली और कठोर थीं। आप शायद अब भी निराश, क्रुद्ध, या चोट खाया हुआ महसूस करते हैं क्योंकि वे ऐसे माता-पिता नहीं थे जैसे आप चाहते थे कि वे हों। क्या आप ऐसी भावनाओं पर जीत पा सकते हैं?a

१२ बॉसॆ, जो फिनलैंड में बड़ा हुआ, बताता है: “मेरे सौतेले-पिता नात्ज़ी जर्मनी में एक SS अफ़सर थे। उन्हें बड़ी जल्दी गुस्सा आ जाता था, और फिर वह ख़तरनाक हो जाते थे। उन्होंने मेरी आँखों के सामने कई बार मेरी माँ को पीटा। एक बार जब वह मुझसे गुस्सा थे, तो उन्होंने अपना बॆल्ट खींचकर मुझे मारा और उसका बकसुआ मेरे मुँह पर लगा। वह मुझे इतनी ज़ोर से लगा कि मैं पलंग पर लुढ़क गया।”

१३ फिर भी, तस्वीर का एक और पहलू था। बॉसॆ आगे कहता है: “दूसरी ओर, वह बड़ी मेहनत करते थे और भौतिक रूप से परिवार की देखरेख करने से पीछे नहीं हटते थे। उन्होंने कभी मुझे पिता का स्नेह नहीं दिया, लेकिन मैं जानता था कि वह भावात्मक रूप से ज़ख़्मी थे। उनकी माँ ने बचपन में ही उन्हें घर से निकाल दिया था। वह लड़ते हुए बड़े हुए और जवानी में युद्ध में प्रवेश किया। मैं कुछ हद तक समझ सकता था और उनको दोषी नहीं ठहराता था। जब मैं बड़ा हो गया, तब मैं उनकी मृत्यु तक अपने भरसक उनकी मदद करना चाहता था। यह आसान नहीं था, लेकिन मैं जो कर सका मैं ने किया। मैं ने अन्त तक एक अच्छा पुत्र होने की कोशिश की, और मैं सोचता हूँ कि उन्होंने मुझे ऐसा ही माना।”

१४. कौन-सा शास्त्रवचन हर स्थिति में लागू होता है, उन में भी जो वृद्ध माता-पिता की सेवा करते समय उठती हैं?

१४ दूसरे मामलों की तरह, पारिवारिक स्थितियों में भी बाइबल की सलाह लागू होती है: “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।”—कुलुस्सियों ३:१२, १३.

परिचारकों को भी परिचर्या की ज़रूरत है

१५. माता-पिता की सेवा करना कभी-कभी दुःखदायी क्यों होता है?

१५ एक अशक्‍त जनक की सेवा करना मेहनत का काम है, जिसमें अनेक काम और काफ़ी ज़िम्मेदारी होती है, और बहुत समय लगता है। लेकिन सबसे कठिन काम अकसर भावात्मक होता है। अपने माता-पिता को स्वास्थ्य, याददाश्‍त, और स्वतंत्र जीवन खोते देखना दुःखदायी होता है। पोर्ट रीको की रहनेवाली, सैन्डी बताती है: “मेरी माँ हमारे परिवार का केंद्र थीं। उनकी सेवा करना बहुत पीड़ादायी था। पहले वह लँगड़ाने लगीं; फिर उन्हें एक छड़ी की ज़रूरत पड़ी, फिर एक वॉकर की, और फिर एक पहिया-कुर्सी की। उसके बाद उनकी हालत बिगड़ती चली गयी जब तक कि वह गुज़र नहीं गयीं। उन्हें हड्डियों का कैंसर हो गया और रात-दिन—निरन्तर देखरेख की ज़रूरत पड़ी। हम उन्हें नहलाते, खिलाते और उनके लिए पढ़ते थे। यह बहुत कठिन था—ख़ासकर भावात्मक रूप से। जब मुझे एहसास हो गया कि मेरी माँ मर रही थीं, तो मैं रोयी क्योंकि मैं उनसे बहुत प्रेम करती थी।”

१६, १७. कौन-सी सलाह एक परिचारक को संतुलित दृष्टिकोण रखने में मदद दे सकती है?

१६ यदि आप स्वयं को एक मिलती-जुलती स्थिति में पाते हैं, तो सामना करने के लिए आप क्या कर सकते हैं? बाइबल पठन के द्वारा यहोवा की सुनना और प्रार्थना के द्वारा उससे बात करना आपकी बहुत मदद करेगा। (फिलिप्पियों ४:६, ७) एक व्यावहारिक रीति से, निश्‍चित कीजिए कि आप पौष्टिक भोजन खाते हैं और पर्याप्त नींद पाने की कोशिश कीजिए। ऐसा करने से, आप अपने प्रियजन की सेवा करने के लिए दोनों, भावात्मक और शारीरिक रूप से बेहतर अवस्था में होंगे। संभवतः आप प्रबन्ध कर सकते हैं कि कभी-कभी आपको दैनिक नित्यक्रम से छुट्टी मिल सके। यदि एक छुट्टी संभव नहीं है, तो भी विश्राम के लिए कुछ समय अलग रखना बुद्धिमानी की बात है। आप शायद यह प्रबन्ध कर पाएँ कि कोई और आपके बीमार जनक के साथ रहे, ताकि आपको कुछ समय मिल सके।

१७ यह सामान्य बात है कि वयस्क परिचारक अपने आपसे ज़रूरत से ज़्यादा अपेक्षाएँ करते हैं। लेकिन जो आप नहीं कर सकते उसके लिए अपने को दोषी मत मानिए। कुछ परिस्थितियों में आपको अपने प्रियजन को एक नर्सिंग होम की देखरेख में सौंपने की ज़रूरत पड़ सकती है। यदि आप एक परिचारक हैं, तो आपको अपने आपसे उतना ही करने की अपेक्षा करनी चाहिए जितना की व्यावहारिक है। आपको न सिर्फ़ अपने माता-पिता की बल्कि अपने बच्चों की, अपने विवाह-साथी की, और अपनी ज़रूरतों के बीच भी संतुलन बनाना है।

असीम सामर्थ

१८, १९. यहोवा ने सहारा देने की कौन-सी प्रतिज्ञा की है, और कौन-सा अनुभव दिखाता है कि वह इस प्रतिज्ञा को पूरा करता है?

१८ अपने वचन, बाइबल के द्वारा यहोवा प्रेमपूर्वक मार्गदर्शन प्रदान करता है जो बूढ़े होते माता-पिता की सेवा करने में एक व्यक्‍ति को बहुत मदद दे सकता है, लेकिन वह यही एकमात्र मदद नहीं प्रदान करता है। “जितने यहोवा को पुकारते हैं . . . उन सभों के वह निकट रहता है,” भजनहार ने उत्प्रेरणा के अधीन लिखा। “वह . . . उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है।” अति कठिन स्थितियों में भी यहोवा अपने वफ़ादार जनों का उद्धार करेगा, या उन्हें बचाएगा।—भजन १४५:१८, १९.

१९ फिलिपींस में मर्ना ने अपनी माँ की सेवा करते समय यह जाना, जो एक दौरे के कारण असहाय हो गयी थी। “अपने प्रियजन को पीड़ित देखने से ज़्यादा हताश करनेवाली और कोई बात नहीं हो सकती, जो आपको बता भी नहीं पाता कि दर्द कहाँ है,” मर्ना लिखती है। “यह उन्हें तिल तिल करके डूबते हुए देखने के जैसा था, और मैं कुछ भी नहीं कर सकती थी। कई बार मैं अपने घुटने टेककर यहोवा से बात करती कि मैं कितनी थक गयी थी। मैं दाऊद की तरह रोयी, जिसने यहोवा से निवेदन किया कि उसके आँसुओं को एक कुप्पी में रख ले और उसे याद रखे। [भजन ५६:८] और जैसे यहोवा ने प्रतिज्ञा की है, उसने मुझे आवश्‍यक शक्‍ति दी। ‘यहोवा मेरा आश्रय बना।’”—भजन १८:१८.

२०. कौन-सी बाइबल प्रतिज्ञाएँ परिचारकों को आशावादी रहने में मदद देती हैं, चाहे वह व्यक्‍ति मर भी जाए जिसकी देखरेख वे कर रहे हैं?

२० यह कहा गया है कि बूढ़े होते माता-पिता की सेवा करने की “कहानी का अन्त सुखद नहीं है।” भरसक कोशिश के साथ सेवा करने के बावजूद, वृद्धजन शायद मर जाएँ, जैसे मर्ना की माँ। लेकिन जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं वे जानते हैं कि मृत्यु कहानी का अन्त नहीं है। प्रेरित पौलुस ने कहा: “[मैं] परमेश्‍वर से आशा रखता हूं . . . कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों २४:१५) जिनके वृद्ध माता-पिता मर गए हैं वे पुनरुत्थान की आशा, साथ ही परमेश्‍वर के बनाए हुए एक आनन्दपूर्ण नए संसार की प्रतिज्ञा से सांत्वना प्राप्त करते हैं जिसमें “मृत्यु न रहेगी।”—प्रकाशितवाक्य २१:४.

२१. वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देने से कौन-से अच्छे परिणाम मिलते हैं?

२१ परमेश्‍वर के सेवक अपने माता-पिताओं का गहरा आदर करते हैं, चाहे वे बूढ़े ही क्यों न हो गए हों। (नीतिवचन २३:२२-२४) वे उनको सम्मान देते हैं। ऐसा करने में, वे उत्प्रेरित नीतिवचन की सत्यता का अनुभव करते हैं: “तेरे कारण माता-पिता आनन्दित, और तेरी जननी मगन होए।” (नीतिवचन २३:२५) और सबसे बढ़कर, जो अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देते हैं वे यहोवा परमेश्‍वर को भी प्रसन्‍न करते और सम्मान देते हैं।

a यहाँ हम उन स्थितियों की चर्चा नहीं कर रहे हैं जिनमें माता-पिता अपनी शक्‍ति और धरोहर के अत्यधिक दुष्प्रयोग के दोषी थे, जिससे कि उन्हें अपराध का दोषी समझा जा सकता है।

ये बाइबल सिद्धान्त . . . अपने वृद्ध माता-पिताओं को सम्मान देने में हमारी मदद कैसे कर सकते हैं?

हमें माता-पिता और दादा-दादी को उनका हक्क देना चाहिए।—१ तीमुथियुस ५:४.

हमारे सभी काम प्रेम के साथ होने चाहिए।—१ कुरिन्थियों १६:१४.

महत्त्वपूर्ण फ़ैसले कभी-भी जल्दबाज़ी में नहीं किए जाने चाहिए।—नीतिवचन १४:१५.

वृद्ध माता-पिताओं का आदर किया जाना चाहिए, चाहे वे बीमार और कमज़ोर ही क्यों न पड़ गए हों।—लैव्यव्यवस्था १९:३२.

हमें बूढ़े होने और मरने की संभावना का सामना हमेशा नहीं करना पड़ेगा।—प्रकाशितवाक्य २१:४.

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