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  • ‘प्रभु में आपको जो सेवा सौंपी गयी है, उसका ध्यान रखो’
    प्रहरीदुर्ग—2008 | जनवरी 15
    • जाता, मगर उन्हें दूसरे किस्म की परीक्षाओं और चुनौतियाँ का सामना ज़रूर करना पड़ता है। मिसाल के लिए, बाइबल से तालीम पाया हुआ विवेक आपको ऐसा चालचलन बनाए रखने के लिए उभारे, जो ज़्यादातर लोगों को रास न आए या जिससे आप बाकी लोगों से अलग दिखें। जब आप बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर फैसले लेते हैं, तो आपके साथ काम करनेवाले लोग, स्कूल के दोस्त या फिर आपके पड़ोसी सोच सकते हैं कि आप बड़े अजीब किस्म के इंसान हैं। लेकिन लोगों के इस तरह के व्यवहार से खुद के इरादे को कमज़ोर पड़ने मत दीजिए। यह दुनिया आध्यात्मिक अंधकार में है, मगर हम मसीहियों को “जलते दीपकों” की तरह चमकने की ज़रूरत है। (फिलि. 2:15) और क्या पता, कुछ नेकदिल इंसान शायद आपके भले कामों को देखकर उनकी कदर करें और यहोवा की बड़ाई करें।—मत्ती 5:16 पढ़िए।

      11. (क) कुछ लोग हमारे प्रचार काम की तरफ कैसा रवैया दिखाते हैं? (ख) प्रेरित पौलुस ने किस तरह के विरोध का सामना किया, और ऐसे में उसने कैसा रवैया दिखाया?

      11 हमें राज्य का संदेश सुनाते रहने के लिए हिम्मत की ज़रूरत पड़ती है। कुछ लोग, यहाँ तक कि हमारे नाते-रिश्‍तेदार शायद हमारा मज़ाक उड़ाएँ या किसी और तरीके से हमारा हौसला तोड़ने की कोशिश करें। (मत्ती 10:36) प्रेरित पौलुस को प्रचार करने की वजह से कई बार पीटा गया था। ध्यान दीजिए कि इस तरह सताए जाने पर उसने कैसा रवैया दिखाया। उसने कहा: “दुख उठाने और उपद्रव सहने पर भी हमारे परमेश्‍वर ने हमें ऐसा हियाव दिया, कि हम परमेश्‍वर का सुसमाचार भारी विरोधों के होते हुए भी तुम्हें सुनाएं।” (1 थिस्स. 2:2) बेशक, पकड़े जाने, कपड़े फाड़े जाने, बेतों से पीटे जाने और जेल में डाले जाने के बाद, पौलुस के लिए प्रचार करते रहना आसान नहीं था। फिर भी, वह सुसमाचार सुनाने में लगा रहा। (प्रेरि. 16:19-24) आखिर उसे यह सब करने की हिम्मत कहाँ से मिली? पौलुस में परमेश्‍वर से मिले प्रचार काम की ज़िम्मेदारी को पूरा करने की ज़बरदस्त इच्छा थी और इसी इच्छा ने उसे अपनी सेवा में लगे रहने की हिम्मत दी।—1 कुरि. 9:16.

      12, 13. कुछ लोग किन समस्याओं का सामना करते हैं, और वे इनसे निपटने के लिए क्या कदम उठाते हैं?

      12 इसके अलावा, आजकल लोगों से घर पर मिलना बहुत मुश्‍किल हो गया है। या फिर बहुत ही कम लोग राज्य संदेश में दिलचस्पी दिखाते हैं। ऐसे हालात में जोश के साथ प्रचार करते रहना, हमारे लिए एक चुनौती हो सकता है। मगर इस चुनौती का सामना करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? हमें शायद मौके ढूँढ़कर गवाही देने के लिए और भी ज़्यादा हिम्मत जुटानी पड़े। हमें हफ्ते के दूसरे दिन या किसी और वक्‍त पर लोगों से मिलने की कोशिश भी करनी पड़ सकती है। या फिर हमें शायद प्रचार के लिए ऐसे इलाकों पर ध्यान देना पड़े, जहाँ ज़्यादा लोगों से मुलाकात की जा सकती है।—यूहन्‍ना 4:7-15; प्रेरितों 16:13; 17:17 से तुलना कीजिए।

      13 इसके अलावा, कई मसीहियों को ढलती उम्र और खराब सेहत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस वजह से वे प्रचार काम में उतना नहीं कर पाते, जितना वे करना चाहते हैं। क्या आप भी इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं? अगर हाँ, तो हिम्मत मत हारिए। यहोवा आपकी हदों को बखूबी जानता है और आप उसकी सेवा में जितना कर पाते हैं, वह उसकी बहुत कदर करता है। (2 कुरिन्थियों 8:12 पढ़िए।) आप चाहे विरोध, बेरुखी, खराब सेहत या किसी और तरह की आज़माइश का सामना क्यों न करें, मगर दूसरों को सुसमाचार सुनाने में अपना भरसक करते रहिए।—नीति. 3:27. मरकुस 12:41-44 से तुलना कीजिए।

      ‘अपनी सेवा का ध्यान रख’

      14. प्रेरित पौलुस ने अपने संगी भाई-बहनों के लिए क्या मिसाल रखी, और उसने उन्हें क्या सलाह दी?

      14 प्रेरित पौलुस ने बड़ी लगन से अपनी सेवा पूरी की और उसने अपने संगी भाई-बहनों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया। (प्रेरि. 20:20, 21; 1 कुरि. 11:1) उन मसीहियों में से एक को पौलुस ने खास तौर पर उकसाया था। वह था पहली सदी का मसीही अर्खिप्पुस। कुलुस्से के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस ने कहा: ‘अर्खिप्पुस से कहना कि वह इस बात का ध्यान रखे कि प्रभु में जो सेवा उसे सौंपी गयी है, वह उसे पूरा करे।’ (कुलु. 4:17, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अर्खिप्पुस कौन था या उसके हालात कैसे थे, यह तो हम नहीं जानते। मगर पौलुस की बातों से इतना ज़रूर ज़ाहिर होता है कि उसने प्रचार करने की ज़िम्मेदारी कबूल की थी। उसी तरह, अगर आप एक समर्पित मसीही हैं, तो इसका मतलब है कि आपने भी प्रचार करने की ज़िम्मेदारी कबूल की है। तो क्या आप अपनी सेवा का ध्यान रख रहे हैं, ताकि आप उसे पूरा कर सकें?

      15. मसीही समर्पण का क्या मतलब है, और इस बात को मन में रखते हुए हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

      15 हमने बपतिस्मा लेने से पहले, दिल से यहोवा से प्रार्थना की थी और उसे अपना जीवन समर्पित किया था। इसका मतलब है कि हमने यहोवा की मरज़ी पूरी करने की ठान ली है। इस बात को मन में रखते हुए हमें अब खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करना सचमुच मेरी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी काम है?’ हमारे ऊपर कई ज़िम्मेदारियाँ हो सकती हैं, जिन्हें यहोवा चाहता है कि हम पूरा करें। जैसे, परिवार की ज़रूरतें पूरी करना। (1 तीमु. 5:8) लेकिन इन ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के बाद हमारे पास जो वक्‍त और ताकत बचती है, हम उसका कैसे इस्तेमाल करते हैं? हम अपनी ज़िंदगी में किन बातों को पहली जगह देते हैं?—2 कुरिन्थियों 5:14, 15 पढ़िए।

      16, 17. जवान मसीही या जिनके पास कम ज़िम्मेदारियाँ हैं, वे क्या करने की सोच सकते हैं?

      16 क्या आप एक जवान समर्पित मसीही हैं, जो स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं या पूरी करनेवाले हैं? अगर हाँ, तो शायद फिलहाल आप पर परिवार की भारी ज़िम्मेदारियाँ नहीं हैं। तो फिर, आप अपने जीवन के साथ क्या करने की सोच रहे हैं? भविष्य के बारे में कौन-से फैसले लेना सही होगा, जिससे कि आप यहोवा की मरज़ी पूरी करने के अपने वादे को और भी बेहतर तरीके से निभा सकें? कई जवानों ने पायनियर सेवा करने के लिए अपनी ज़िंदगी में बदलाव किया है। नतीजा, उन्हें बहुत खुशी और संतोष मिला है।—भज. 110:3; सभो. 12:1.

      17 हो सकता है, आप एक ऐसे जवान हैं जो पूरे समय की नौकरी करते हैं और खुद की देखभाल करने के अलावा आपके पास थोड़ी-बहुत ज़िम्मेदारियाँ हैं। और जब भी आपको समय मिलता है, तो बेशक उस वक्‍त कलीसिया के कामों में हिस्सा लेने से आपको बहुत खुशी मिलती होगी। लेकिन क्या आप अपनी खुशी बढ़ा सकते हैं? क्या आपने अपनी सेवा को बढ़ाने के बारे में सोचा है? (भज. 34:8; नीति. 10:22) कुछ इलाकों में अभी-भी लोगों तक सच्चाई का जीवन देनेवाला संदेश पहुँचाने का बहुत काम बाकी है। क्या आप अपने जीवन में कुछ फेरबदल कर सकते हैं, ताकि आप ऐसे इलाकों में जाकर सेवा कर सकें, जहाँ राज्य प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है?—1 तीमुथियुस 6:6-8 पढ़िए।

      18. एक जोड़े ने अपनी ज़िंदगी में क्या फेरबदल किए, और इसका क्या नतीजा निकला?

      18 अमरीका के रहनेवाले, केविन और एलीना की मिसाल लीजिए।a वे जिस इलाके में रहते थे, वहाँ नए शादीशुदा जोड़े के लिए अपना एक घर खरीदना आम बात थी। इसलिए जब केविन और एलीना की नयी-नयी शादी हुई, तो उन्होंने भी अपने लिए एक घर खरीदा। दोनों पूरे समय की नौकरी करते थे और आराम की ज़िंदगी बसर कर रहे थे। लेकिन नौकरी और घर के कामकाज में वे इस कदर उलझे रहते थे कि प्रचार के लिए उनके पास न के बराबर समय बचता था। कुछ वक्‍त बाद, उन्हें एहसास हुआ कि वे करीब-करीब अपना पूरा समय और ताकत ऐशो-आराम की चीज़ों की देखभाल करने में लगा देते हैं। और जब उन्होंने एक खुशहाल पायनियर जोड़े पर गौर किया कि वे कितनी सादगी-भरी ज़िंदगी जी रहे हैं, तो उन्होंने अपनी ज़िंदगी में फेरबदल करने का फैसला किया। उन्होंने यहोवा से बिनती की कि वह उन्हें सही फैसला लेने में मदद दे। इसके बाद, उन्होंने अपना घर बेच दिया और एक फ्लैट में जाकर रहने लगे। एलीना पार्ट-टाइम की नौकरी करने लगी और एक पायनियर बन गयी। उसे प्रचार में जो बढ़िया अनुभव मिलते थे, उनके बारे में वह केविन को बताने लगी। धीरे-धीरे केविन में भी जोश भर आया, उसने पूरे समय की अपनी नौकरी छोड़ दी और वह भी पायनियर सेवा करने लगा। कुछ समय बाद, वे दक्षिण अमरीका के एक देश में जाकर बस गए, जहाँ राज्य प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी। आज, केविन कहता है: “शादी के बाद हम खुश तो थे, मगर जब हम साथ मिलकर अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए मेहनत करने लगे, तो हमारी खुशी दुगुनी हो गयी।”—मत्ती 6:19-22 पढ़िए।

      19, 20. सुसमाचार का प्रचार करना, हमारे समय का सबसे ज़रूरी काम क्यों है?

      19 आज पूरी दुनिया में जो सबसे ज़रूरी काम किया जा रहा है, वह है सुसमाचार का प्रचार। (प्रका. 14:6, 7) इस काम से यहोवा के नाम को पवित्र किया जाता है। (मत्ती 6:9) बाइबल का संदेश हर साल उन हज़ारों लोगों की ज़िंदगी को सँवारता है, जो इसे कबूल करते हैं। यही नहीं, यह उन्हें उद्धार भी दिला सकता है। लेकिन प्रेरित पौलुस ने एक सवाल पूछा था: “प्रचार किए बिना वे कैसे सुनेंगे?” (रोमि. 10:14, 15, आर.ओ.वी.) वाकई, जब तक लोगों को प्रचार नहीं किया जाएगा, तो वे भला बाइबल के संदेश के बारे में कैसे जानेंगे? तो फिर, ठान लीजिए कि आप अपनी सेवा पूरी करने में अपना भरसक करेंगे।

      20 आप लोगों को एक और तरीके से इन कठिन समयों की अहमियत समझने और आज वे जो फैसले लेते हैं, उनके क्या अंजाम होंगे, यह जानने में मदद दे सकते हैं। वह तरीका है, सिखाने की अपनी कला बढ़ाना। यह आप कैसे कर सकते हैं, इस बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।

  • अपने ‘सिखाने की कला’ पर ध्यान दीजिए
    प्रहरीदुर्ग—2008 | जनवरी 15
    • अपने ‘सिखाने की कला’ पर ध्यान दीजिए

      “वचन को प्रचार कर . . . सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा [‘सिखाने की कला,’ NW] के साथ उलाहना दे, और डांट, और समझा।”—2 तीमु. 4:2.

      1. यीशु ने अपने चेलों को क्या आज्ञा दी थी और उसने कौन-सी मिसाल कायम की?

      धरती पर अपनी सेवा के दौरान यीशु ने कई लोगों को हैरतअंगेज़ तरीके से चंगा किया था। फिर भी, उसे चंगाई या चमत्कार करनेवाला नहीं, बल्कि गुरू कहा जाता था। (मर. 12:19; 13:1) जी हाँ, यीशु की ज़िंदगी का सबसे अहम काम था, परमेश्‍वर के राज्य के बारे में सुसमाचार सुनाना। आज उसके चेलों का भी सबसे अहम काम वही है। मसीहियों को चेला बनाने का काम करते रहने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। इसके लिए उन्हें लोगों को वे सारी बातें मानना सिखाना है, जिनकी यीशु ने आज्ञा दी थी।—मत्ती 28:19, 20.

      2. चेला बनाने की ज़िम्मेदारी निभाने के लिए क्या करना ज़रूरी है?

      2 इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए ज़रूरी है कि हम बेहतर शिक्षक बनने की लगातार कोशिश करें। ऐसा करना क्यों ज़रूरी है, इसकी वजह प्रेरित पौलुस ने अपने साथी प्रचारक

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