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    परमेश्‍वर का पैगाम—आपके नाम
    • पौलुस नज़रबंद है और वह बोलकर चिट्ठी लिखवा रहा है

      भाग 24

      पौलुस की लिखी चिट्ठियाँ

      पौलुस की चिट्ठियों से पहली सदी के मसीहियों का विश्‍वास मज़बूत हुआ

      मसीही मंडली, यहोवा के मकसद को पूरा करने में एक अहम भूमिका निभानेवाली थी। मगर मंडली के बनते ही उस पर तरह-तरह के हमले होने लगे। मसीहियों को न सिर्फ दुश्‍मनों के हाथों ज़ुल्म सहने पड़े, बल्कि मंडली के अंदर भी उन्हें ऐसे कई खतरों का सामना करना पड़ा, जो छिपे हुए फंदे की तरह थे। क्या ऐसे में मसीही, परमेश्‍वर के वफादार बने रहते? मसीही यूनानी शास्त्र में ऐसी 21 किताबें हैं, जो दरअसल चिट्ठियाँ थीं। इनमें दी सलाहों और हौसला बढ़ानेवाली बातों से शुरू के मसीहियों को वफादार बने रहने में मदद मिली थी।

      इक्कीस में से 14 चिट्ठियाँ (यानी रोमियों से लेकर इब्रानी तक की किताब) प्रेषित पौलुस ने लिखी। इन चिट्ठियों के नाम उन व्यक्‍तियों या मंडलियों के नाम पर रखे गए, जिन्हें ये चिट्ठियाँ लिखी गयी थीं। आइए पौलुस की लिखी चिट्ठियों के कुछ विषयों पर गौर करें।

      नैतिक मूल्यों और चालचलन पर सलाह। जो लोग व्यभिचार करते हैं, या शादी के बाहर यौन-संबंध रखते हैं या दूसरे घोर पाप करते हैं, “वे परमेश्‍वर के राज के वारिस [नहीं] होंगे।” (गलातियों 5:19-21; 1 कुरिंथियों 6:9-11) परमेश्‍वर के उपासकों में एकता होनी चाहिए, फिर चाहे वे किसी भी राष्ट्र के क्यों न हों। (रोमियों 2:11; इफिसियों 4:1-6) उन्हें ज़रूरतमंद भाई-बहनों की खुशी-खुशी मदद करनी चाहिए। (2 कुरिंथियों 9:7) पौलुस ने कहा: “लगातार प्रार्थना करते रहो।” यही नहीं, परमेश्‍वर के उपासकों को बढ़ावा दिया गया है कि वे दिल खोलकर यहोवा से बात करें। (1 थिस्सलुनीकियों 5:17; 2 थिस्सलुनीकियों 3:1; फिलिप्पियों 4:6, 7) अगर हम चाहते हैं कि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाएँ सुने, तो यह ज़रूरी है कि हम विश्‍वास के साथ प्रार्थना करें।—इब्रानियों 11:6.

      परिवार में सुख कैसे हासिल करें? पतियों को अपनी-अपनी पत्नी से ऐसे प्यार करना चाहिए जैसा वे अपने शरीर से करते हैं। पत्नियों को अपने-अपने पति का गहरा आदर करना चाहिए। बच्चों को अपने माता-पिता का कहा मानना चाहिए, क्योंकि यह परमेश्‍वर की नज़र में सही है। और माता-पिताओं को चाहिए कि वे परमेश्‍वर के सिद्धांतों के मुताबिक अपने बच्चों को प्यार से सिखाएँ और तालीम दें।—इफिसियों 5:22-6:4; कुलुस्सियों 3:18-21.

      पौलुस ने जिन-जिन जगहों से चिट्ठियाँ लिखीं, उनका नक्शा

      परमेश्‍वर के मकसद पर रौशनी डाली गयी। मसीह के आने तक, मूसा के कानून में दी कई बातों को मानने से इसराएलियों की हिफाज़त हुई। उन्हें ज़िंदगी में फैसले लेने में भी मदद मिली। (गलातियों 3:24) मगर जहाँ तक मसीहियों की बात है, उन्हें परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए मूसा का कानून मानने की ज़रूरत नहीं थी। इब्रानियों (यानी यहूदी मसीहियों) को लिखते वक्‍त, पौलुस ने समझाया कि मूसा का कानून क्यों दिया गया था और मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर का मकसद कैसे पूरा होगा। पौलुस ने बताया कि कानून के तहत जो-जो इंतज़ाम थे, उन सबका लाक्षणिक मतलब है। मिसाल के लिए, जानवरों का बलिदान यीशु की कुरबानी को दर्शाता था, जिसकी बिनाह पर इंसानों को पापों की माफी मिलती। (इब्रानियों 10:1-4) यीशु की मौत के ज़रिए परमेश्‍वर ने उस करार को रद्द कर दिया जो उसने पैदाइशी इसराएलियों के साथ किया था। यहोवा ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि इस करार की अब कोई ज़रूरत नहीं थी।—कुलुस्सियों 2:13-17; इब्रानियों 8:13.

      शुरू की एक मसीही मंडली में पौलुस की चिट्ठियाँ पढ़ी जा रही हैं और लोग ध्यान से सुन रहे हैं

      मंडली को सही तरह से संगठित करने की हिदायतें। जो पुरुष मंडली में ज़िम्मेदारी के पद पर सेवा करना चाहते हैं, उन्हें ऊँचे नैतिक आदर्शों पर चलना चाहिए और उनमें बाइबल के मुताबिक योग्यताएँ भी होनी चाहिए। (1 तीमुथियुस 3:1-10, 12, 13; तीतुस 1:5-9) यहोवा के उपासकों को बिना नागा मसीही सभाओं के लिए इकट्ठा होना चाहिए और एक-दूसरे की हिम्मत बँधानी चाहिए। (इब्रानियों 10:24, 25) सभा का कार्यक्रम ऐसा होना चाहिए, जिससे सभी की हौसला-अफज़ाई हो और हाज़िर लोग बहुत कुछ सीख सकें।—1 कुरिंथियों 14:26, 31.

      जब प्रेषित पौलुस दोबारा रोम में आया, तब उसने तीमुथियुस के नाम दूसरी चिट्ठी लिखी। उस दौरान पौलुस कैद में था और अपने मुकदमे के फैसले का इंतज़ार कर रहा था। कुछ ही दिलेर मसीहियों ने उससे जेल में मिलने का खतरा मोल लिया। पौलुस जानता था कि वह सिर्फ चंद दिनों का मेहमान है। उसने कहा: “मैंने अच्छी लड़ाई लड़ी है। मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्‍वास को थामे रखा है।” (2 तीमुथियुस 4:7) शायद यह लिखने के कुछ वक्‍त बाद उसे मार डाला गया। मगर आज भी उसकी लिखी चिट्ठियों से परमेश्‍वर के उपासकों को मार्गदर्शन मिल रहा है।

      —यह भाग रोमियों; 1 कुरिंथियों; 2 कुरिंथियों; गलातियों; इफिसियों; फिलिप्पियों; कुलुस्सियों; 1 थिस्सलुनीकियों; 2 थिस्सलुनीकियों; 1 तीमुथियुस; 2 तीमुथियुस; तीतुस; फिलेमोन और इब्रानियों की किताब पर आधारित है।

      • पौलुस की लिखी चिट्ठियों में ऊँचे नैतिक आदर्शों और चालचलन के बारे में क्या सलाहें दी गयी हैं?

      • मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर का मकसद जिस तरह पूरा होगा, उस पर पौलुस ने कैसे रौशनी डाली?

      • पौलुस ने मंडली को सही तरह से संगठित करने की क्या हिदायतें दीं?

      वादा किया गया वंश कौन है?

      आदम और हव्वा के पाप करने के बाद, परमेश्‍वर ने साँप से कहा: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्‍न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्पत्ति 3:15) बाइबल बताती है कि यह “पुराना साँप” शैतान है। (प्रकाशितवाक्य 12:9) मगर परमेश्‍वर ने जिस वंश का वादा किया, वह कौन है? यह एक राज़ था, जो धीरे-धीरे सदियों के दौरान खुलता गया।

      आदम और हव्वा के पाप करने के करीब 2,000 साल बाद, यहोवा ने ज़ाहिर किया कि वादा किया गया वंश अब्राहम के खानदान से आएगा। (उत्पत्ति 22:17, 18) इसके सदियों बाद, प्रेषित पौलुस ने खुलासा किया कि उस वंश का मुख्य भाग यीशु मसीह है। (गलातियों 3:16) यीशु को जब मौत के घाट उतारा गया, तब उत्पत्ति 3:15 की भविष्यवाणी का वह हिस्सा पूरा हुआ, जिसमें लिखा है कि ‘वंश की एड़ी को डसा जाएगा।’ फिर परमेश्‍वर ने यीशु को दोबारा ज़िंदा किया। “जब [उसे] ज़िंदा किया गया तो उसे आत्मिक शरीर दिया गया।”—1 पतरस 3:18.

      परमेश्‍वर का यह भी मकसद था कि वंश का दूसरा भाग 1,44,000 इंसानों से बने। (गलातियों 3:29; प्रकाशितवाक्य 14:1) उनके मरने पर उन्हें स्वर्ग में आत्मिक शरीर के साथ ज़िंदा किया जाता है, ताकि वे मसीह के साथ राज कर सके।—रोमियों 8:16, 17.

      यीशु शक्‍तिशाली राजा की हैसियत से जल्द ही शैतान के वंश को, यानी बुरे इंसानों और दुष्ट स्वर्गदूतों को खत्म कर देगा। (यूहन्‍ना 8:44; इफिसियों 6:12) यीशु के राज में आज्ञा माननेवाले लोग सच्ची खुशी और शांति का आनंद उठाएँगे। और फिर आखिर में, यीशु शैतान के “सिर” को कुचल देगा, उसे हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर देगा।—इब्रानियों 2:14.

  • समय-रेखा
    परमेश्‍वर का पैगाम—आपके नाम
      1. लगभग ई. 60-61 पौलुस रोम में कैद था और उसने चिट्ठियाँ लिखीं (करीब 1,940 साल पहले)

      2. ई. 62 से पहले यीशु के भाई याकूब ने अपनी चिट्ठी लिखी

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