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हमारे साहित्य को किस तरह लिखा और अनुवाद किया जाता है?आज कौन यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं?
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पाठ 23
हमारे साहित्य को किस तरह लिखा और अनुवाद किया जाता है?
लेखन विभाग, अमरीका
दक्षिण कोरिया
आर्मीनिया
बुरूंडी
श्री लंका
हम ‘हर राष्ट्र, गोत्र, भाषा और जाति के लोगों को खुशखबरी’ सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। (प्रकाशितवाक्य 14:6) इसलिए हम 750 से भी ज़्यादा भाषाओं में साहित्य निकालते हैं। हम इस मुश्किल काम को कैसे कर पाते हैं? दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहनेवाले लेखक और कुछ अनुवादक इस काम में हमारी मदद करते हैं। ये सभी लोग यहोवा के साक्षी हैं।
लेख को सबसे पहले अँग्रेज़ी में तैयार किया जाता है। शासी निकाय, लेखन विभाग के काम-काज की निगरानी करता है। यह विभाग हमारे विश्व मुख्यालय में है। यह तय करता है कि किस लेखक को कौन-से विषय पर लिखने के लिए कहा जाना है। कुछ लेखक विश्व मुख्यालय में सेवा करते हैं और कुछ दूसरे शाखा दफ्तरों में। हमारे लेखक अलग-अलग देशों से होते हैं, इसलिए हम ऐसे विषयों पर लिख पाते हैं जो हर संस्कृति, देश और भाषा के लोगों का दिल छू जाए।
लेख अनुवादकों को भेजा जाता है। लेख के तैयार होने के बाद उसे पढ़ा जाता है, फिर उसमें ज़रूरी फेरबदल करके उसे आगे बढ़ाने की मंज़ूरी दी जाती है। इसके बाद, उसे कंप्यूटर के ज़रिए दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद अनुवाद टीमों को भेज दिया जाता है, जो उसे अपनी भाषा में अनुवाद करती हैं। उनकी यही कोशिश रहती है कि वे सही शब्दों का चुनाव करें, ताकि अँग्रेज़ी में कही गयी बात का पूरा-पूरा मतलब अपनी भाषा में दे सकें।—सभोपदेशक 12:10.
कंप्यूटर की मदद से काम में तेज़ी आती है। कंप्यूटर इंसानी लेखकों और अनुवादकों की जगह नहीं ले सकता। लेकिन यह उनका काम आसान ज़रूर बना सकता है, क्योंकि इसमें खोजबीन करने के लिए कई प्रोग्राम और शब्दकोश होते हैं जिनकी मदद से वे अपना काम जल्दी कर पाते हैं। यहोवा के साक्षियों ने मल्टीलैंग्वेज इलेक्ट्रॉनिक पब्लिशिंग सिस्टम (MEPS) नाम का एक कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार किया है। इस प्रोग्राम की मदद से वे लेख को सैकड़ों भाषाओं में टाइप कर पाते हैं, उसे तसवीरों के साथ तरतीब से बिठा पाते हैं और उसे छापने के लिए तैयार कर पाते हैं।
आखिर हम इतनी मेहनत क्यों करते हैं, उन भाषाओं के लिए भी जिन्हें बोलनेवाले सिर्फ कुछ हज़ार लोग ही हैं? क्योंकि यह यहोवा की मरज़ी है कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो और वे सच्चाई का सही ज्ञान पाएँ।”—1 तीमुथियुस 2:3, 4.
हमारे साहित्य को लिखने में क्या शामिल है?
हम क्यों इतनी सारी भाषाओं में अपने साहित्य का अनुवाद करते हैं?
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पूरी दुनिया में होनेवाले हमारे काम का खर्च कैसे चलाया जाता है?आज कौन यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं?
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पाठ 24
पूरी दुनिया में होनेवाले हमारे काम का खर्च कैसे चलाया जाता है?
नेपाल
टोगो
ब्रिटेन
हमारा संगठन हर साल लाखों बाइबलें और दूसरे साहित्य छापता है और लोगों तक पहुँचाता है। इसके लिए उनसे कोई पैसा नहीं लिया जाता। हम राज-घरों और शाखा दफ्तरों का निर्माण करते हैं और उनके रख-रखाव का भी ध्यान रखते हैं। हम बेथेल परिवार के हज़ारों सदस्यों और मिशनरियों का खर्चा उठाते हैं और विपत्ति के समय भाई-बहनों की मदद करते हैं। इसलिए शायद आप सोचें, ‘इन सब के लिए पैसा कहाँ से आता है?’
हम न तो कमाई का दसवाँ हिस्सा माँगते हैं, न ही थैलियाँ घुमाकर चंदा इकट्ठा करते हैं। हालाँकि खुशखबरी फैलाने के काम में काफी खर्चा होता है, लेकिन इसके लिए हम किसी से पैसे नहीं माँगते। आज से करीब 100 साल पहले प्रहरीदुर्ग पत्रिका के दूसरे अंक में बताया गया था, हमारा विश्वास है कि यहोवा परमेश्वर हमारे साथ है और हम ‘इंसानों के आगे कभी हाथ नहीं फैलाएँगे, न ही मदद के लिए उनसे फरियाद करेंगे।’ आज तक हमें ऐसा कभी नहीं करना पड़ा है!—मत्ती 10:8.
हमारा काम स्वेच्छा से दिए गए दान से चलाया जाता है। कई लोग इस बात की कदर करते हैं कि हम बाइबल की शिक्षा देने का बढ़िया काम कर रहे हैं और वे अपनी मरज़ी से इस काम के लिए दान देते हैं। यहोवा के साक्षी खुशी-खुशी अपना समय, ताकत, पैसा और साधन परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में लगाते हैं। (1 इतिहास 29:9) राज-घर में और हमारे सम्मेलनों और अधिवेशनों में दान-पेटियाँ होती हैं, जिनमें जो कोई दान देना चाहे दे सकता है। इसके अलावा, हमारी वेबसाइट jw.org के ज़रिए भी दान दिया जा सकता है। आम तौर पर जो लोग दान देते हैं, वे पैसेवाले नहीं होते। ठीक उस गरीब विधवा की तरह जिसने मंदिर के दान-पात्र में दो पैसे डाले थे और जिसकी यीशु ने तारीफ की थी। (लूका 21:1-4) इसलिए कोई भी, फिर चाहे वह गरीब ही क्यों न हो, नियमित तौर पर ‘कुछ अलग रख’ सकता है, ताकि जितना “उसने अपने दिल में ठाना है” उतना दान दे सके।—1 कुरिंथियों 16:2; 2 कुरिंथियों 9:7.
ऐसे कई लोग हैं जो “अपनी अनमोल चीज़ें देकर यहोवा का सम्मान” या आदर करना चाहते हैं। (नीतिवचन 3:9) हमें यकीन है कि यहोवा इन लोगों के दिलों को उभारता रहेगा कि वे राज के काम को सहयोग देने के लिए दान दें, जिससे परमेश्वर की मरज़ी पूरी हो।
हमारा संगठन किस तरह दूसरे धर्मों से अलग है?
स्वेच्छा से दिए गए दान का किस तरह इस्तेमाल किया जाता है?
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राज-घरों का निर्माण क्यों और कैसे किया जाता है?आज कौन यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं?
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पाठ 25
राज-घरों का निर्माण क्यों और कैसे किया जाता है?
बोलीविया
नाईजीरिया, पहले और बाद में
ताहिती
राज-घर, इस नाम से ही पता चलता है कि यहाँ बाइबल से जो शिक्षा दी जाती है उसका मुख्य विषय परमेश्वर का राज है। यही यीशु के प्रचार का मुख्य विषय था।—लूका 8:1.
ये समाज में सच्ची उपासना के केंद्र हैं। इस जगह से यहोवा के साक्षी अपने इलाके में व्यवस्थित ढंग से खुशखबरी के प्रचार का इंतज़ाम करते हैं। (मत्ती 24:14) राज-घर छोटे-बड़े हो सकते हैं और उनके डिज़ाइन भी अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन ये बहुत सादे होते हैं और कई राज-घरों में एक-से-ज़्यादा मंडलियाँ सभाओं के लिए इकट्ठी होती हैं। हाल के सालों में हमने दुनिया-भर में हज़ारों नए राज-घर (हर दिन औसतन पाँच राज-घर) बनाए हैं, ताकि जिस तेज़ी से मंडलियों और प्रचारकों की गिनती बढ़ रही है, उनके इकट्ठा होने के लिए जगह हो सके। आखिर इतने सारे राज-घरों का निर्माण कैसे मुमकिन हो पाया है?—मत्ती 19:26.
इनका निर्माण एक अलग फंड में भेजे गए दान से होता है। यह दान शाखा दफ्तर को भेज दिया जाता है, ताकि जिन मंडलियों को नए राज-घर की ज़रूरत है या जिन्हें अपने राज-घर की मरम्मत करवानी है, उन्हें पैसे दिए जा सकें।
इनका निर्माण अलग-अलग तबके से आए स्वयंसेवक करते हैं, जिन्हें कोई तनख्वाह नहीं दी जाती। कई देशों में राज-घर निर्माण समूह बनाए गए हैं। निर्माण सेवकों का समूह और दूसरे स्वयंसेवक, अपने ही देश में एक मंडली से दूसरी मंडली में जाकर राज-घर बनाने में मदद देते हैं। कभी-कभी तो वे दूर-दराज़ इलाकों में भी जाते हैं। दूसरे कुछ देशों में काबिल साक्षियों को ठहराया जाता है, जिन्हें एक इलाका सौंपा जाता है और वे उस इलाके में राज-घरों के निर्माण और मरम्मत की निगरानी करते हैं। हालाँकि हर निर्माण की जगह पर आस-पास की जगहों से बहुत-से कुशल कारीगर खुशी-खुशी आकर इस काम में हाथ बँटाते हैं, मगर ज़्यादातर मेहनत का काम मंडली के भाई-बहन करते हैं। यहोवा की पवित्र शक्ति और उसके लोगों की जी-जान से की गयी मेहनत से ही यह सब मुमकिन हो रहा है।—भजन 127:1; कुलुस्सियों 3:23.
हमारी उपासना की जगहों को राज-घर क्यों कहा जाता है?
पूरी दुनिया में इतने सारे राज-घरों का निर्माण कैसे मुमकिन हो रहा है?
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