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  • न्याय का दिन—क्या है?
    बाइबल असल में क्या सिखाती है?
    • पानेवाले, दोनों किस्म के लोगों को हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए परमेश्‍वर की आज्ञाओं का पालन करना होगा। उन्हें यहोवा की नयी माँगों को भी पूरा करना होगा जिन्हें वह शायद हज़ार साल के दौरान बताएगा। इसलिए लोग न्याय के इस दिन के दौरान जो-जो करेंगे, उसी के आधार पर उनका न्याय किया जाएगा।

      न्याय के दिन के दौरान, अरबों लोगों को पहली बार परमेश्‍वर की इच्छा के बारे में जानने और उसे पूरा करने का मौका मिलेगा। इसका मतलब है कि लोगों को शिक्षा देने का काम बड़े पैमाने पर किया जाएगा। दरअसल, सारे ‘जगत के रहनेवाले [धार्मिकता] सीखेंगे।’ (यशायाह 26:9) मगर सभी लोग परमेश्‍वर की इच्छा पर चलने को राज़ी नहीं होंगे। यशायाह 26:10 (NHT) कहता है: “दुष्ट पर चाहे दया भी की जाए, वह धार्मिकता नहीं सीखेगा। खराई के देश में भी वह कुटिलता का व्यवहार करेगा, और यहोवा का प्रताप उसे सुझाई न देगा।” ऐसे दुष्ट लोगों को न्याय के दिन के दौरान ही हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।—यशायाह 65:20.

      जो लोग न्याय के दिन के आखिर तक बचे रहेंगे, वे उस दिन के खत्म होते-होते पूरी तरह ‘जी उठेंगे’ यानी सिद्ध बन चुके होंगे। (प्रकाशितवाक्य 20:5) जी हाँ, न्याय के दिन के दौरान इंसानों को उसी सिद्ध हालत में वापस लाया जाएगा, जैसे परमेश्‍वर ने उन्हें शुरू में बनाया था। (1 कुरिन्थियों 15:24-28) इसके बाद एक आखिरी परीक्षा होगी। शैतान को कैद से छोड़ा जाएगा और उसे आखिरी बार इंसानों को गुमराह करने की इजाज़त दी जाएगी। (प्रकाशितवाक्य 20:3, 7-10) जो लोग उसका विरोध करेंगे, उनके मामले में बाइबल का यह वादा हर मायने में पूरा होगा: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन 37:29) जी हाँ, न्याय का दिन वफादार इंसानों के लिए एक आशीष साबित होगा!

  • सन्‌ 1914—बाइबल की भविष्यवाणी का अहम साल
    बाइबल असल में क्या सिखाती है?
    • अतिरिक्‍त लेख

      सन्‌ 1914—बाइबल की भविष्यवाणी का अहम साल

      सन्‌ 1914 से करीब चालीस साल पहले, सच्चे बाइबल विद्यार्थियों ने खुलेआम ऐलान किया था कि सन्‌ 1914 एक अहम साल साबित होगा। इस साल बहुत बड़ी-बड़ी घटनाएँ होंगी। क्या सबूत दिखाते हैं कि सन्‌ 1914 वाकई एक अहम साल था? आइए जाँच करें।

      लूका 21:24 में यीशु ने कहा था: “जब तक अन्य जातियों का समय पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्य जातियों से रौंदा जाएगा।” यरूशलेम नगर यहूदियों के देश की राजधानी था। इसी नगर से इस्राएल के राजा हुकूमत करते थे। ये राजा, दाऊद के वंशज थे। (भजन 48:1, 2) लेकिन ये राजा, दूसरे देशों के राजाओं से बिलकुल अलग थे। वह कैसे? वे “यहोवा के सिंहासन” पर बैठते थे यानी परमेश्‍वर के प्रतिनिधि थे। (1 इतिहास 29:23) इस मायने में यरूशलेम, यहोवा की हुकूमत की निशानी था।

      तो फिर परमेश्‍वर की हुकूमत का “अन्य जातियों से रौंदा” जाना, कब और कैसे शुरू हुआ? यह सा.यु.पू. 607 में शुरू हुआ जब बाबुलियों ने यरूशलेम को जीत लिया था। तब ‘यहोवा का सिंहासन’ खाली हो गया। इस तरह दाऊद के वंश से निकले राजाओं की हुकूमत वहीं खत्म हो गयी। (2 राजा 25:1-26) क्या यह “रौंदा” जाना हमेशा के लिए जारी रहता? नहीं, क्योंकि यहेजकेल की भविष्यवाणी में यरूशलेम के आखिरी राजा, सिदकिय्याह से यह कहा गया था: “पगड़ी उतार, और मुकुट भी उतार दे; . . . जब तक उसका अधिकारी न आए तब तक वह उलटा हुआ रहेगा; तब मैं उसे दे दूंगा।” (यहेजकेल 21:26, 27) दाऊद का मुकुट पहनने का कानूनी “अधिकारी” सिर्फ मसीह यीशु है। (लूका 1:32, 33) इसका मतलब हुकूमत का “रौंदा” जाना तब खत्म होता, जब यीशु राजा बनता।

      यह महान घटना कब घटी? यीशु ने बताया था कि अन्यजातियों की हुकूमत सिर्फ कुछ वक्‍त तक चलेगी। यह वक्‍त कितना लंबा होता, यह हम दानिय्येल के चौथे अध्याय से जान सकते हैं। यह अध्याय बताता है कि बाबुल के राजा, नबूकदनेस्सर ने एक सपना देखा जो दरअसल एक भविष्यवाणी थी। उसने सपने में एक बहुत ही विशाल पेड़ देखा जिसे बाद में काट दिया गया। फिर उसके बचे ठूँठ पर लोहे और पीतल के बंधन बाँध दिए गए जिससे वह बढ़ न सका। इसके बाद, एक स्वर्गदूत ने ऐलान किया: “उस पर सात काल बीतें।”—दानिय्येल 4:10-16.

      बाइबल में कई बार हुकूमतों को पेड़ बताया गया है। (यहेजकेल 17:22-24; 31:2-5) इसलिए नबूकदनेस्सर के सपने में पेड़ का काटा जाना दिखाता है कि परमेश्‍वर की हुकूमत पर कैसे अचानक रोक लगा दी जाएगी, यानी यरूशलेम के राजाओं का राज खत्म कर दिया जाएगा। मगर जैसे सपने में बताया गया था, इस तरह ‘यरूशलेम का रौंदा जाना’ सिर्फ कुछ समय के लिए यानी “सात काल” तक चलता। ये सात काल कितने लंबे थे?

      प्रकाशितवाक्य 12:6,14 की मदद से हम इसका पता लगा सकते हैं। वहाँ लिखा है कि साढ़े तीन काल, “एक हज़ार दो सौ साठ दिन” के बराबर हैं। तो “सात काल” का मतलब है, इसका दुगुना समय यानी 2,520 दिन। मगर यरूशलेम की हार के बस 2,520 दिन बाद अन्यजातियों ने परमेश्‍वर की हुकूमत को ‘रौंदना’ बंद नहीं किया था। इससे साफ है कि भविष्यवाणी में सिर्फ 2,520 दिनों की नहीं बल्कि इससे लंबे अरसे की बात की गयी है। गिनती 14:34 और यहेजकेल 4:6 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) में लिखा है: ‘एक दिन एक वर्ष का होगा।’ इन आयतों के मुताबिक “सात काल” 2,520 साल हुए।

      सामान्य युग पूर्व 607 के अक्टूबर में जब बाबुलियों ने यरूशलेम पर जीत हासिल की और दाऊद के वंश के राजा को राजगद्दी से उतार दिया गया, तब से इन 2,520 सालों की शुरूआत हुई। ये वक्‍त सन्‌ 1914 के अक्टूबर में जाकर खत्म हुआ। उसी साल “अन्य जातियों का समय” पूरा हुआ, और यीशु मसीह को परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य का राजा बनाया गया।a—भजन 2:1-6; दानिय्येल 7:13, 14.

      जैसा यीशु ने बताया था, उसके राजा बनने यानी उसकी “उपस्थिति” (NW) के समय दुनिया में बड़ी हैरतअँगेज़ घटनाएँ घटी हैं, जैसे युद्ध, अकाल, भूकंप और महामारियाँ। (मत्ती 24:3-8; लूका 21:11) ये घटनाएँ इस बात का ज़बरदस्त सबूत देती हैं कि सन्‌ 1914 में परमेश्‍वर का राज्य शुरू हुआ और तभी से इस दुष्ट दुनिया के आखिरी दिन शुरू हो गए।—2 तीमुथियुस 3:1-5.

      चार्ट: सात काल, या फिर अन्य जातियों का समय, यरूशलेम पर जीत हासिल करने से शुरू होकर 2,520 साल के आखिर तक लें तो अक्टूबर 1914 में खत्म होगा

      a अगर हम सा.यु.पू. 607 के अक्टूबर से लेकर सा.यु.पू. 1 के अक्टूबर तक गिनें, तो 606 साल का समय होता है। सामान्य युग पूर्व 1 और सामान्य युग 1 के बीच कोई शून्य साल नहीं है। इसलिए अगर हम सा.यु.पू. 1 के अक्टूबर से सा.यु. 1914 के अक्टूबर तक गिनें, तो हमें 1,914 साल मिलते हैं। अब अगर 606 और 1,914 साल को जोड़ा जाए, तो हमें 2,520 साल मिलते हैं। सामान्य युग पूर्व 607 में यरूशलेम के नाश के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌ में लेख “घटनाक्रम” (“Chronology”) देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

  • प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल कौन है?
    बाइबल असल में क्या सिखाती है?
    • अतिरिक्‍त लेख

      प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल कौन है?

      बाइबल में मीकाएल (या, मीकाईल) नाम के आत्मिक प्राणी का बहुत कम बार ज़िक्र किया गया है। मगर जहाँ पर भी उसका ज़िक्र आता है, उसे कोई ज़बरदस्त काम करते हुए बताया गया है। जैसे दानिय्येल किताब बताती है कि मीकाएल, दुष्ट स्वर्गदूतों से लड़ रहा है; यहूदा की पत्री में वह शैतान के साथ वाद-विवाद कर रहा है; और प्रकाशितवाक्य की किताब में, वह इब्‌लीस और उसकी दुष्टात्माओं के साथ युद्ध लड़ रहा है। मीकाएल नाम का मतलब है: “परमेश्‍वर जैसा कौन है?” और यहोवा की हुकूमत को बुलंद करके और परमेश्‍वर के दुश्‍मनों से लड़कर मीकाएल अपने नाम पर खरा उतरा है। मगर असल में मीकाएल है कौन?

      कई लोगों के एक-से-ज़्यादा नाम होते हैं। जैसे, कुलपिता याकूब, इस्राएल नाम से भी जाना जाता था और प्रेरित पतरस, शमौन भी कहलाता था। (उत्पत्ति 49:1, 2; मत्ती 10:2) उसी तरह, बाइबल ज़ाहिर करती है कि मीकाएल, यीशु मसीह का ही दूसरा नाम है। धरती पर आने से पहले और स्वर्ग वापस जाने के बाद वह इसी नाम से जाना गया है। हम यह कैसे कह सकते हैं? जानने के लिए आइए बाइबल की कुछ आयतें देखें।

      प्रधान स्वर्गदूत। परमेश्‍वर का वचन, मीकाएल को “प्रधान स्वर्गदूत” कहता है।

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