अध्याय 46
जाने-पहचाने हालात से दृष्टांत
बेशक यह बहुत ज़रूरी है कि आप जो भी दृष्टांत बताएँ, वे आपके विषय पर ठीक बैठने चाहिए। मगर उतना ही ज़रूरी यह भी है कि ये दृष्टांत आपके सुननेवालों से ताल्लुक रखते हों, तभी उनका बेहतरीन असर हो पाएगा।
जब आप एक समूह के सामने बात करते हैं, तब उसमें जिस तरह के लोग मौजूद हैं, उससे आप कैसे तय कर सकते हैं कि आपको कौन-सा दृष्टांत इस्तेमाल करना है? यीशु ने किस तरह के दृष्टांत बताए थे? यीशु ने भीड़ से या अपने चेलों से बात करते वक्त, कभी-भी इस्राएल देश के बाहर के देशों के रहन-सहन के बारे में दृष्टांत नहीं बताए। वह इसलिए कि ऐसे उदाहरण, उसके सुननेवालों के पल्ले नहीं पड़ते। मिसाल के लिए, यीशु ने सिखाते वक्त कभी-भी मिस्र के शाही घराने की ज़िंदगी या भारत के धार्मिक रस्मों-रिवाज़ के उदाहरण नहीं दिए। फिर भी, उसने ऐसे कामों के दृष्टांत बताए जो सभी देशों के लोगों के लिए आम हैं। जैसे उसने फटे कपड़ों में पैबंद लगाने, व्यापार करने, कोई अनमोल चीज़ खो देने, और शादी की दावत में जाने के उदाहरण बताए। वह जानता था कि लोग अलग-अलग हालात में कैसे पेश आते हैं और उसने इसी के उदाहरण दिए। (मर. 2:21; लूका 14:7-11; 15:8, 9; 19:15-23) यीशु ने खासकर इस्राएल के लोगों को प्रचार किया था, इसलिए उसने अपने दृष्टांतों में ऐसी चीज़ों के बारे में बताया जो वे हर दिन देखते थे या ऐसे कामों के बारे में बताया जो वे हर दिन करते थे। मसलन, उसने खेती-बाड़ी का ज़िक्र किया, उसने बताया कि भेड़ें कैसे अपने चरवाहे की आवाज़ पहचानती हैं, और कि दाखरस जमा करने के लिए जानवरों की खाल इस्तेमाल की जाती है। (मर. 2:22; 4:2-9; यूह. 10:1-5) उसने इतिहास की कुछ जानी-मानी घटनाओं को भी दृष्टांतों के तौर पर इस्तेमाल किया, जैसे पहले स्त्री-पुरुष की सृष्टि, नूह के दिनों का जलप्रलय, सदोम और अमोरा का नाश, लूत की पत्नी की मौत, वगैरह। (मत्ती 10:15; 19:4-6; 24:37-39; लूका 17:32) क्या आप भी दृष्टांत चुनते वक्त इस बात पर ध्यान देते हैं कि आपके सुननेवालों के लिए कौन-से काम-काज बहुत आम हैं और सुननेवाले किस संस्कृति से हैं?
अगर आप बड़े समूह से नहीं बल्कि किसी एक से या सिर्फ दो-तीन लोगों से बात करते हैं, तब आपको कैसे दृष्टांत बताने चाहिए? उस वक्त एक ऐसा दृष्टांत बताने की कोशिश कीजिए जिससे खासकर उस शख्स या वहाँ मौजूद लोगों को फायदा हो। जब यीशु ने सूखार के पास एक कुएँ पर सामरी स्त्री को गवाही दी, तब उसने ऐसे अलंकार इस्तेमाल किए जैसे “जीवन का जल,” “अनन्तकाल तक पियासा न होगा,” और ‘एक सोता जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।’ ये सारे अलंकार उस काम के बारे में थे जिसके लिए वह स्त्री उस कुएँ पर आयी थी। (यूह. 4:7-15) उसी तरह, जब उसने कुछ मछुवारों से बात की जो अपने-अपने जाल धो रहे थे, तो उसने मछुआई के काम का अलंकार दिया। (लूका 5:2-11) ऊपर बताए दोनों मामलों में, यीशु चाहता तो खेती-बाड़ी का भी दृष्टांत दे सकता था, क्योंकि वहाँ के इलाकों में यह काम बहुत आम था। लेकिन, उन्हीं के काम का दृष्टांत देकर, यीशु ने उनके मन में एक तसवीर खींची जिसका काफी ज़बरदस्त असर हुआ! क्या आप भी ऐसे ही दृष्टांत बताने की कोशिश करते हैं?
जहाँ यीशु ने खासकर “इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों” को प्रचार किया, वहीं प्रेरित पौलुस को न सिर्फ इस्राएल में बल्कि अन्यजातियों के इलाके में भी प्रचार करने के लिए भेजा गया। (मत्ती 15:24; प्रेरि. 9:15) क्या अन्यजातियों से बात करते वक्त उसने अलग किस्म के दृष्टांत बताए? जी हाँ, कुरिन्थ के मसीहियों को लिखे खत में उसने ऐसी बातों का ज़िक्र किया जिनसे अन्यजातियों से आए ये लोग वाकिफ थे, जैसे एक दौड़, मूरतोंवाले मंदिरों में भोजन करने का रिवाज़, और जीत के जुलूस।—1 कुरि. 8:1-10; 9:24, 25; 2 कुरि. 2:14-16.
क्या आप भी सिखाते वक्त यीशु और पौलुस की तरह सोच-समझकर दृष्टांत और मिसालें चुनते हैं? क्या आप इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे किस संस्कृति से हैं और उनका रोज़ का काम क्या है? माना कि पहली सदी के मुकाबले आज की दुनिया बहुत बदल चुकी है। बहुत-से लोगों को घर बैठे, टी.वी. के ज़रिए दुनिया की पूरी खबर मिल जाती है। इसलिए विदेश में हालात कैसे हैं, यह उन्हें अकसर पता रहता है। अगर आपके इलाके के लोगों को ऐसी बातों की खबर है, तो ऐसी खबरों को दृष्टांत के तौर पर इस्तेमाल करने में बेशक कोई बुराई नहीं है। फिर भी, जो बातें लोगों की निजी ज़िंदगी से ताल्लुक रखती हैं, जैसे उनका घर, परिवार, काम-काज, खान-पान और उनके इलाके का मौसम, ऐसे विषयों पर बात करने से उनके दिल पर गहरा असर होता है।
अगर आपका दृष्टांत ऐसा है जिसे समझाने के लिए आपको बहुत कुछ बोलना पड़ता है, तो इसका मतलब यह है कि आप एक ऐसा दृष्टांत दे रहे हैं जिससे आपके सुननेवाले वाकिफ नहीं हैं। ऐसा दृष्टांत बताने से लोग बस आपके दृष्टांत के बारे में ही सोचते रह जाएँगे और उनका ध्यान आपके मुद्दे से हट जाएगा। नतीजा यह होगा कि दृष्टांत तो शायद उन्हें याद रह जाए, मगर उसके ज़रिए आप बाइबल की जो सच्चाई समझाना चाहते थे, वह उन्हें याद ना रहे।
यीशु ने बड़ी-बड़ी और मुश्किल बातों का दृष्टांत नहीं दिया बल्कि ज़िंदगी की आम और सरल बातों के उदाहरण दिए। उसने बड़े-बड़े मसलों के बारे में समझाने के लिए छोटी-छोटी बातों की मिसाल दी और मुश्किल बातों का मतलब समझाने के लिए आसानी से समझ आनेवाले दृष्टांत बताए। इस तरह यीशु ने रोज़मर्रा की घटनाओं के दृष्टांत देकर, बाइबल की सच्चाइयाँ समझायीं, इसलिए लोग उन सच्चाइयों को आसानी से समझ पाए और याद रख सके। है ना हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल?