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परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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अध्याय 50

दिल तक पहुँचने की कोशिश

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

जब आप किसी विषय पर चर्चा करते हैं, तो ध्यान दीजिए कि उस विषय के बारे में लोग कैसा महसूस करते हैं। उनमें ऐसी भावनाएँ और प्रेरणा जगाइए कि वे परमेश्‍वर के करीब आएँ और उसके दोस्त बनें।

इसकी क्या अहमियत है?

यहोवा को खुश करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि परमेश्‍वर का वचन लोगों के दिल में मज़बूती से जड़ पकड़े।

लोगों को साक्षी देने के साथ-साथ, आपको कोशिश करनी चाहिए कि आपकी बात उनके दिल में उतर जाए। बाइबल में अकसर दिल या हृदय को इंसान के बाहरी रंग-रूप से बिलकुल अलग बताया गया है। लाक्षणिक हृदय एक इंसान के अंदरूनी स्वभाव को दर्शाता है—उसकी भावनाएँ क्या हैं, वह क्या-क्या सोचता है और क्यों ऐसा सोचता है और उसके सोच-विचार का उसके व्यवहार पर कैसा असर पड़ता है। इसी लाक्षणिक हृदय में सच्चाई का बीज बोया जाता है। (मत्ती 13:19) और यही हृदय उसे परमेश्‍वर की आज्ञा मानने के लिए उकसाता है।—नीति. 3:1; रोमि. 6:17.

इसलिए, अगर आप इस तरह सिखाना चाहते हैं कि इसका असर लोगों के दिल पर हो, तो सिखाते वक्‍त ये लक्ष्य मन में रखिए: (1) यह समझने की कोशिश कीजिए कि सामनेवाले के दिल में कैसी बातों ने घर कर रखा है। (2) प्यार और परमेश्‍वर के लिए भय जैसे उनके अच्छे गुणों को और भी मज़बूत कीजिए। (3) सुननेवाले को उकसाइए कि वह अपने दिल के इरादों की जाँच करे ताकि वह यहोवा को पूरी तरह खुश कर सके।

समझ से काम लीजिए। जिन लोगों ने अब तक सच्चाई को स्वीकार नहीं किया है, उसकी बहुत-सी वजह हो सकती हैं। हो सकता है, एक बाइबल विद्यार्थी के मन में कुछ गलत धारणाएँ कायम हो चुकी हैं जिनकी वजह से वह सच्चाई में नहीं आ रहा। इसलिए उसके साथ अध्ययन करते वक्‍त आपको उसके मन से ये धारणाएँ निकालनी होंगी और सच्चाई बतानी होगी ताकि वह गलत विचारों को मन से निकाल फेंके, या फिर आपको सिर्फ ऐसे सबूत पेश करने होंगे जिनसे वह सही फैसला कर सके। खुद से पूछिए: ‘क्या यह शख्स जानता है कि एक इंसान होने के नाते, उसकी आध्यात्मिक ज़रूरतें भी हैं? बाइबल की किन बातों पर वह पहले से यकीन करता है? किन बातों पर यकीन नहीं करता? उसने जो राय कायम की है, उसकी वजह क्या है? क्या उसे ऐसी इच्छाओं पर काबू पाने में मदद की ज़रूरत है, जो उसे सच्चाई जानने के बाद आनेवाली ज़िम्मेदारियाँ कबूल करने से रोक सकती हैं?’

लोग जो मानते हैं, उसकी वजह जानना हमेशा आसान नहीं होता। नीतिवचन 20:5 कहता है: “मनुष्य के मन की युक्‍ति अथाह तो है, तौभी समझवाला मनुष्य उसको निकाल लेता है।” समझ ऐसी काबिलीयत है जिससे इंसान उन बातों को भी भाँप लेता है, जो साफ ज़ाहिर नहीं होतीं। इसके लिए पारखी नज़र और दूसरों के लिए मन में प्यार होना चाहिए।

हर बात हमेशा ज़बान से नहीं बोली जाती। हो सकता है, किसी विषय का ज़िक्र आते ही आपके बाइबल विद्यार्थी के चेहरे का भाव या आवाज़ बदल जाए। अगर आप एक माता या पिता हैं, तो बेशक आप जानते हैं कि अगर आपके बच्चे के व्यवहार में कोई बदलाव आता है, तो उसका मतलब यह है कि उस पर कुछ नए दोस्तों या नए चलन का असर हुआ है। ऐसी निशानियों को नज़रअंदाज़ मत कीजिए। ये दरअसल इस बात की झलक हैं कि उसके दिल में क्या है।

सोच-समझकर पूछे गए सवाल, किसी के दिल की बात जानने में आपकी मदद कर सकते हैं। आप पूछ सकते हैं: “ . . . के बारे में आप क्या महसूस करते हैं?” “किस बात ने आपको यकीन दिलाया कि . . . ?” “आप क्या करेंगे अगर . . . ?” मगर ध्यान रहे कि आप सुननेवालों पर सवालों की बौछार न करने लगें। इसके बजाय, व्यवहार-कुशलता दिखाते हुए कुछ इस तरीके से सवालों की शुरूआत कर सकते हैं: “अगर आपको एतराज़ न हो, तो मैं पूछना चाहता हूँ कि . . . ?” दूसरे के दिल में क्या है, यह समझ पाना बहुत मुश्‍किल काम है; इसलिए यह काम जल्दबाज़ी में नहीं किया जा सकता। ज़्यादातर लोगों के मन की भावनाएँ जानने के लिए पहले हमें उनका भरोसा जीतने की ज़रूरत होती है और इसके लिए वक्‍त लगता है। लेकिन भरोसा जीतने के बाद भी हमें सवालों का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर करना चाहिए ताकि उन्हें यह न लगे कि हम उनके निजी मामलों में दखल दे रहे हैं।—1 पत. 4:15.

अपने विद्यार्थी की बात सुनकर आप क्या करते हैं, इसके लिए भी समझ से काम लेना ज़रूरी है। याद रखिए, आपका लक्ष्य लोगों को समझना है ताकि आप यह तय कर सकें कि बाइबल से क्या जानकारी देने पर उनमें कदम उठाने की प्रेरणा जागेगी। अगर आपके विद्यार्थी के कुछ गलत विचार हैं, तो आपका मन कर सकता है कि उसे फौरन सुधारें। लेकिन अपनी इस इच्छा को उसी वक्‍त दबा दीजिए। इसके बजाय, वह जो कहता है, उसके पीछे छिपी भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए। तब आप समझ पाएँगे कि उसे क्या जवाब देना सही होगा। और इसके बदले आपके विद्यार्थी को भी एहसास होगा कि आपने उसकी भावनाओं को समझा है, इसलिए मुमकिन है कि वह आपकी बात पर गंभीरता से सोचे।—नीति. 16:23.

एक बड़े समूह से बात करते वक्‍त भी, आप सुननेवालों में से हरेक का मन उभार सकते हैं। अगर आप सुननेवालों के साथ अच्छी तरह से नज़र मिलाकर बात करेंगे, उनके चेहरे के भावों को पढ़ेंगे और ऐसे सवाल पूछेंगे जो उन्हें सोचने पर मजबूर कर दें, तो आप शायद जान सकेंगे कि आप जो कह रहे हैं, उसके बारे में सुननेवाले कैसा महसूस करते हैं। अगर आप अपने सुननेवालों के बारे में पहले से जानते हैं, तो उनके हालात को ध्यान में रखते हुए बात कीजिए। परमेश्‍वर के वचन से सिखाते वक्‍त, कलीसिया के ज़्यादातर लोगों के नज़रिए को मन में रखकर बोलिए।—गल. 6:18.

अच्छी भावनाएँ जगाना। जब आप कुछ हद तक जान लेते हैं कि एक इंसान क्या विश्‍वास करता है और क्या नहीं और इसकी वजह क्या है, तो इस जानकारी के मुताबिक आप अपनी बात कह सकते हैं। यीशु ने अपने पुनरुत्थान के बाद, चेलों से बात करते वक्‍त हाल में हुई घटनाओं का ज़िक्र करते हुए उन्हें ‘पवित्र शास्त्र का अर्थ समझाया’ और इस तरह उनके दिल तक पहुँचा। (लूका 24:32) उसी तरह, जब आप किसी को गवाही देते हैं, तो आपको यह समझने की पूरी कोशिश करनी चाहिए कि उस इंसान पर जो गुज़री है और वह जिसके लिए तरसता है और परमेश्‍वर के वचन में वह जो पढ़ रहा है, उसके बीच क्या नाता है। परमेश्‍वर का वचन उस विद्यार्थी के दिल पर अच्छा असर करेगा जब उसे इस बात का एहसास होगा कि “यही सच्चाई है!”

विद्यार्थी को सिखाते वक्‍त, जब आप यहोवा की भलाई, उसके प्रेम, उसकी कृपा के बारे में बार-बार बताएँगे और यह समझाएँगे कि उसके मार्ग हमेशा सही होते हैं, तब उसके दिल में यहोवा के लिए प्रेम बढ़ेगा। अगर आप वक्‍त निकालकर उन्हें बताएँगे कि यहोवा उनके कौन-से बढ़िया गुणों को पसंद करता है, तो वे समझ पाएँगे कि परमेश्‍वर के साथ वे एक नज़दीकी रिश्‍ता कायम कर सकते हैं। भजन 139:1-3, लूका 21:1-4 और यूहन्‍ना 6:44 जैसी आयतों पर चर्चा करने और यह समझाने के ज़रिए कि यहोवा अपने वफादार सेवकों से कितना प्यार करता है और उनका एक-दूसरे के साथ कैसा अटूट संबंध है, आप, यहोवा के साथ एक रिश्‍ता कायम करने में अपने विद्यार्थी की मदद कर सकते हैं। (रोमि. 8:38, 39) उसे समझाइए कि यहोवा सिर्फ हमारी गलतियों को नहीं देखता बल्कि यह देखता है कि हमारी पूरी ज़िंदगी कैसी रही है, सच्ची उपासना के लिए हमारे अंदर कितना जोश है और हमें उसका नाम कितना अज़ीज़ है। (2 इति. 19:2, 3; इब्रा. 6:10) वह हममें से एक-एक की हर छोटी-छोटी बात याद रखता है और वह उन लोगों को दोबारा ज़िंदा करने का करिश्‍मा करेगा जो “कब्रों” में हैं। (यूह. 5:28, 29; लूका 12:6, 7) हम इंसान, परमेश्‍वर के स्वरूप में रचे गए और उसकी समानता में बनाए गए हैं, इसलिए जब परमेश्‍वर के गुणों पर चर्चा की जाती है, तब एक इंसान के दिल पर इसका ज़्यादा अच्छा असर पड़ता है।—उत्प. 1:27.

जब आप किसी को यह सिखाएँगे कि वह दूसरों को यहोवा की नज़र से देखे तब भी आप उसके दिल तक पहुँचकर अच्छी भावनाएँ जगा पाएँगे। और यह वाजिब भी है, क्योंकि अगर यहोवा हमारे साथ प्यार और कोमलता से पेश आता है, तो बेशक वह दूसरों के साथ भी वैसे ही पेश आता होगा, फिर चाहे वे किसी भी संस्कृति, देश या जाति के क्यों न हों। (प्रेरि. 10:34, 35) जब एक इंसान ऐसी समझ हासिल कर लेता है, तो वह बाइबल की मज़बूत बुनियाद के आधार पर अपने दिल से नफरत और भेद-भाव की भावनाओं को जड़ से उखाड़ फेंकता है। इसलिए जैसे-जैसे वह यहोवा की मरज़ी के मुताबिक काम करना सीखता है, वह दूसरों के साथ शांति से व्यवहार करता है।

परमेश्‍वर के लिए भय, एक और भावना है जिसे पैदा करने में आपको दूसरों की मदद करनी चाहिए। (भज. 111:10; प्रका. 14:6, 7) परमेश्‍वर के लिए ऐसी गहरी श्रद्धा या भय एक इंसान को ऐसे काम करने के लिए उकसाएगा जो वह अपने बलबूते पर नहीं कर सकता। यहोवा के विस्मयकारी कामों और उसकी अपार प्रेम-कृपा के बारे में समझाकर आप दूसरों को ऐसी अच्छी भावना पैदा करने में मदद दे सकते हैं ताकि वे कुछ ऐसा न करें जिससे यहोवा नाराज़ हो जाए।—भज. 66:5; यिर्म. 32:40.

इस बात का ध्यान रखें कि आपके सुननेवाले यह अच्छी तरह समझते हों कि उनका चालचलन यहोवा के लिए मायने रखता है। उसके दिल में भी भावनाएँ हैं, और अगर हम उसके मार्गदर्शन पर चलेंगे, तो उसका दिल खुश होगा, और अगर न चलें तो उसे दुःख पहुँचेगा। (भज. 78:40-42) इसके अलावा, उन्हें समझाइए कि शैतान ने परमेश्‍वर को जो चुनौती दी है, उसका जवाब देने में हममें से हरेक का चालचलन क्यों मायने रखता है।—नीति. 27:11.

अपने सुननेवालों को यह समझने में मदद दीजिए कि परमेश्‍वर की माँगों को पूरा करने में उन्हीं की भलाई है। (यशा. 48:17) यह समझाने का एक तरीका है, उन्हें यह बताना कि जो परमेश्‍वर की बुद्धिमानी भरी सलाह को कुछ समय के लिए भी ठुकराते हैं, उन्हें कैसे शारीरिक और मानसिक रूप से बुरे अंजाम भुगतने पड़ते हैं। समझाइए कि पाप करने से हम कैसे परमेश्‍वर से दूर हो जाते हैं, दूसरों को सच्चाई सिखाने का मौका हमसे छिन जाता है और हम दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। (1 थिस्स. 4:6, नयी हिन्दी बाइबिल) आपके सुननेवाले, परमेश्‍वर के नियमों को मानने की वजह से जिन आशीषों का आनंद उठा रहे हैं, उनकी कदर करने के लिए उन्हें मदद दीजिए। इस सच्चाई के लिए उनकी कदरदानी बढ़ाइए कि यहोवा के धर्मी मार्गों पर चलने से हम बहुत सारी मुसीबतों से बचते हैं। जब एक इंसान को यह विश्‍वास हो जाएगा कि परमेश्‍वर के मार्गों पर चलने में ही अक्लमंदी है, तो वह ऐसे हर मार्ग से घृणा करेगा जो यहोवा के मार्गों के खिलाफ है। (भज. 119:104) वह समझ पाएगा कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानना कोई बोझ नहीं बल्कि उसके लिए अपनी भक्‍ति दिखाने का एक तरीका है।

जाँच करने में दूसरों की मदद करना। आध्यात्मिक बातों में लगातार तरक्की करने के लिए ज़रूरी है कि लोग हमेशा अपने दिल की जाँच करते रहें और ज़रूरी फेरबदल करें। उन्हें समझाइए कि ऐसी जाँच करने में बाइबल कैसे उनकी मदद कर सकती है।

लोगों को यह समझने में मदद दीजिए कि बाइबल सिर्फ कायदे-कानूनों, सलाह, ऐतिहासिक घटनाओं और भविष्यवाणियों की किताब नहीं है। बाइबल यह भी बताती है कि परमेश्‍वर किस तरह सोचता है। याकूब 1:22-25 में परमेश्‍वर के वचन की तुलना एक आइने से की गयी है। बाइबल जो कहती है उसे पढ़कर और जिस तरीके से यहोवा अपना मकसद पूरा करता है, उसके बारे में जानकर हम क्या करते हैं, उससे हमारा रवैया खुलकर सामने आता है। इस मायने में बाइबल का संदेश यह साफ ज़ाहिर करता है कि हमारे दिल में क्या है। इस तरह बाइबल दिखाती है कि ‘हृदयों को परखनेवाला,’ परमेश्‍वर हमें किस नज़र से देखता है। (नीति. 17:3, NHT) अपने सुननेवालों को यह बात हमेशा याद रखने का बढ़ावा दीजिए। उन्हें इस बारे में गहराई से सोचने के लिए उकसाइए कि परमेश्‍वर ने बाइबल में हमारे लिए क्या दर्ज़ करवाया है, साथ ही यहोवा को और भी खुश करने के लिए उन्हें जीवन में क्या-क्या बदलाव करने होंगे। उन्हें एहसास दिलाइए कि बाइबल पढ़ना, यह जानने का एक तरीका है कि यहोवा हमारे “मन की भावनाओं और विचारों” के बारे में क्या सोचता है। यह जानने के बाद वे अपनी ज़िंदगी में बदलाव करके परमेश्‍वर के साथ-साथ काम कर सकते हैं।—इब्रा. 4:12; रोमि. 15:4.

कुछ बाइबल विद्यार्थियों में सीखी हुई बातों पर अमल करने की इच्छा तो होती है, मगर वे यह सोचकर डरते हैं कि लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे। हो सकता है कि वे शरीर की कुछ अभिलाषाओं पर काबू पाने के लिए संघर्ष कर रहे हों। या फिर वे शायद परमेश्‍वर की सेवा करने के साथ-साथ संसार के कामों में लगे रहने को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हों। इस तरह दो नावों पर पैर रखना, खतरे से खाली नहीं है। (1 राजा 18:21) उन्हें समझाइए कि वे परमेश्‍वर से प्रार्थना करके उनके हृदय को जाँचने और उसे शुद्ध करने की बिनती करें।—भज. 26:2, नयी हिन्दी बाइबिल; 139:23,24.

उन्हें बताइए कि यहोवा उनकी अंदरूनी कशमकश को समझता है और बाइबल में भी इसके बारे में बताया गया है। (रोमि. 7:22, 23) इसके अलावा, असिद्ध मन की भावनाएँ उन पर हावी न हो जाएँ, इस खतरे से दूर रहने के लिए उनकी मदद कीजिए।—नीति. 3:5, 6; 28:26; यिर्म. 17:9, 10.

हरेक को अपने-अपने इरादों की जाँच करने के लिए उकसाइए। उसे खुद से ऐसे सवाल पूछना सिखाइए: ‘मैं यह काम क्यों करना चाहता हूँ? क्या इससे यह ज़ाहिर होगा कि यहोवा ने मेरे लिए जो किया है, उन सबके लिए मैं उसका दिल से शुक्रगुज़ार हूँ?’ उनके इस विश्‍वास को मज़बूत करने में उनकी मदद कीजिए कि यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता ही ज़िंदगी की सबसे बड़ी दौलत है।

अपने सुननेवालों को यह समझाइए कि “सम्पूर्ण हृदय” से यहोवा की सेवा करने के क्या मायने हैं। (लूका 10:27, NHT) सम्पूर्ण हृदय या पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने का मतलब है कि उनकी सारी भावनाएँ, ख्वाहिशें और उनके इरादे, यहोवा के मार्गों के मुताबिक हों। इसलिए उन्हें सिखाइए कि वे न सिर्फ अपने कामों को बल्कि यह भी जाँचें कि वे परमेश्‍वर के नियमों के बारे में कैसा महसूस करते हैं और वे किस इरादे से परमेश्‍वर की सेवा कर रहे हैं। (भज. 37:4) जब आपके विद्यार्थी को यह एहसास होता है कि उसे किन-किन मामलों में सुधार करने की ज़रूरत है, तो उसे यहोवा से यह बिनती करने के लिए उकसाइए: “मेरे हृदय को एकाग्र-चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं।”—भज. 86:11, NHT.

जब एक विद्यार्थी, यहोवा के साथ एक निजी रिश्‍ता कायम करेगा, तो वह न सिर्फ आपके बार-बार कहने पर बल्कि यहोवा पर विश्‍वास होने की वजह से उसकी आज्ञा मानेगा। तब वह खुद-ब-खुद ‘परखता रहेगा कि प्रभु को क्या भाता है?’ (इफि. 5:10; फिलि. 2:12) इस तरह दिल से आज्ञा मानने पर, यहोवा उससे खुश होगा।—नीति. 23:15.

यह बात याद रखें कि यहोवा ही लोगों के दिलों की जाँच करता है और उन्हें अपनी तरफ खींचता है ताकि वे उसके साथ नज़दीकी रिश्‍ता कायम कर सकें। (नीति. 21:2; यूह. 6:44) हम तो सिर्फ इस काम में परमेश्‍वर के सहकर्मी हैं। (1 कुरि. 3:9) यह ऐसा है “मानो परमेश्‍वर हमारे द्वारा विनती कर रहा है।” (तिरछे टाइप हमारे।) (2 कुरि. 5:20, NHT; प्रेरि. 16:14) यहोवा किसी पर भी सच्चाई स्वीकार करने के लिए ज़बरदस्ती नहीं करता, लेकिन जब हम दूसरों को सिखाते वक्‍त बाइबल का इस्तेमाल करते हैं, तो वह उन्हें यह एहसास दिलाता है कि वे जो सुन रहे हैं, वही उनके सवालों का या उनकी प्रार्थनाओं का जवाब है। जब भी आपको दूसरों को सिखाने का मौका मिलता है, तो इस बात को हमेशा ध्यान में रखिए और यहोवा से मार्गदर्शन और मदद के लिए दिल से बिनती कीजिए।—1 इति. 29:18, 19; इफि. 1:16-18.

कैसे सुधार करें

  • सच्चा प्रेम दिखाइए।

  • यह समझने की कोशिश कीजिए कि आपके सुननेवाले के दिल में कैसी बातों ने घर कर रखा है।

  • यहोवा के मनभावने गुणों के बारे में बार-बार बताइए।

  • सुननेवालों को यह समझने में मदद दीजिए कि वे अपने इरादों की कैसे जाँच करें और उन्हें शुद्ध करें।

अभ्यास: (1) मत्ती 6:21 पढ़िए और जाँच कीजिए कि यह आयत आपके जीवन पर कैसे लागू होती है। आयत 19 और 20 भी पढ़िए और देखिए कि आपका हृदय क्या-क्या बदलाव करने के लिए आपको उकसाता है। (2) जाँच कीजिए कि किस बात ने आपको यहोवा की सेवा शुरू करने के लिए उकसाया था। आज कौन-सी बात आपको उकसाती है? यहोवा को खुश करनेवाली कैसी भावनाओं को आप अपने अंदर बढ़ाना और मज़बूत करना चाहेंगे?

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