मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
4-10 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मरकुस 15-16
“यीशु पर भविष्यवाणी पूरी हुई”
अ.बाइ. मर 15:24, 29 अध्ययन नोट
1 ओढ़ने . . . आपस में बाँट लिया: यूह 19:23, 24 में इस घटना की कुछ ऐसी बारीकियाँ बतायी गयी हैं जो मत्ती, मरकुस और लूका की किताब में नहीं पायी जातीं। ये हैं: रोमी सैनिकों ने शायद कुरते और ओढ़ने, दोनों पर चिट्ठियाँ डालीं; उन्होंने ओढ़ने के ‘चार टुकड़े करके आपस में बाँट लिए, हरेक को एक टुकड़ा मिला’; वे कुरते को फाड़कर टुकड़े नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उस पर चिट्ठियाँ डालीं और मसीहा के कपड़ों पर इस तरह चिट्ठियाँ डालकर उन्होंने भज 22:18 की भविष्यवाणी पूरी की। सबूत दिखाते हैं कि यह एक दस्तूर था कि अपराधियों को मारनेवाले सैनिक उनके कपड़े रख लेते थे। अपराधियों को मारने से पहले उनके कपड़े उतारे जाते थे और उनकी चीज़ें ले ली जाती थीं। इस तरह उन्हें और भी ज़्यादा अपमानित किया जाता था।
सिर हिला-हिलाकर: लोग आम तौर पर किसी पर हँसने, उसका मज़ाक उड़ाने या उसे नीचा दिखाने के लिए सिर हिलाते थे और कुछ बोलते भी थे। वहाँ से गुज़रनेवालों ने ऐसा करके अनजाने में भज 22:7 की भविष्यवाणी पूरी की।
अ.बाइ. मर 15:43 अध्ययन नोट
यूसुफ: खुशखबरी की किताबों के चारों लेखकों ने यूसुफ के बारे में अलग-अलग जानकारी दी। इससे पता चलता है कि हर लेखक ने अपने अंदाज़ में किताब लिखी। जैसे, मत्ती कर-वसूलनेवाला था, इसलिए उसने लिखा कि यूसुफ “एक अमीर आदमी” था। मरकुस ने खासकर रोमियों के लिए लिखा था, इसलिए उसने कहा कि वह “धर्म-सभा का एक इज़्ज़तदार सदस्य” था जो परमेश्वर के राज के आने का इंतज़ार कर रहा था। लूका हमदर्द वैद्य था, इसलिए उसने लिखा कि वह “एक अच्छा और नेक इंसान था” और उसने धर्म-सभा के लोगों का साथ नहीं दिया जो यीशु के खिलाफ साज़िश कर रहे थे। सिर्फ यूहन्ना ने यह लिखा कि वह “यीशु का एक चेला था, मगर यहूदियों के डर से यह बात छिपाए रखता था।”—मत 27:57-60; मर 15:43-46; लूक 23:50-53; यूह 19:38-42.
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अ.बाइ. मर 15:25 अध्ययन नोट
तीसरा घंटा: यानी सुबह करीब 9 बजे। कुछ लोगों का कहना है कि यहाँ बताए समय और यूह 19:14-16 में बताए समय में फर्क है। उन आयतों में लिखा है कि ‘दिन के करीब छठे घंटे’ पीलातुस ने यीशु को काठ पर लटकाकर मार डालने के लिए सौंप दिया। हालाँकि यह फर्क समझाने के लिए बाइबल में ज़्यादा जानकारी नहीं मिलती, फिर भी कुछ बातें हैं जिन पर ध्यान दिया जा सकता है: खुशखबरी की किताबों में यीशु की मौत से पहले हुईं घटनाओं के समय के बारे में जो बताया गया है, वह आम तौर पर एक-दूसरे से मेल खाता है। जैसे, चारों किताबें बताती हैं कि याजक और मुखिया सूरज निकलने के बाद मिले और फिर वे यीशु को रोमी राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस के पास ले गए। (मत 27:1, 2; मर 15:1; लूक 22:66–23:1; यूह 18:28) मत्ती, मरकुस और लूका ने बताया कि जब यीशु को काठ पर लटकाया जा चुका था तब “छठे घंटे से . . . नौवें घंटे तक” देश में अंधकार छाया रहा। (मत 27:45, 46; मर 15:33, 34; लूक 23:44) यीशु को सज़ा देने के समय को लेकर जो फर्क है उसकी एक वजह शायद यह है: कुछ लोगों का मानना था कि कोड़े मारना, काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा में ही शामिल है। कई बार सज़ा पानेवाले को कोड़े इतनी बेरहमी से मारे जाते थे कि वह उसी समय दम तोड़ देता था। यीशु को भी इतनी बेदर्दी से कोड़े मारे गए थे कि वह पूरे रास्ते अपना काठ उठाकर नहीं ले जा पाया बल्कि बीच में दूसरे आदमी को उसका काठ उठाना पड़ा। (लूक 23:26; यूह 19:17) अगर यह माना जाए कि काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा कोड़े मारने से शुरू हो जाती थी, तो यीशु को कोड़े लगवाने और काठ पर लटकाकर मार डालने के बीच ज़रूर कुछ वक्त गुज़रा होगा। यह बात मत 27:26 और मर 15:15 से पुख्ता होती है, जहाँ कोड़े लगवाने और काठ पर लटकाकर मार डालने का ज़िक्र साथ-साथ किया गया है। तो फिर लेखकों ने शायद यीशु को मार डालने की सज़ा का अलग-अलग समय इसलिए बताया क्योंकि सज़ा के बारे में उनका नज़रिया अलग था। इन सारी बातों से पता चलता है कि क्यों पीलातुस को यह जानकर ताज्जुब हुआ कि काठ पर लटकाने के बाद इतनी जल्दी यीशु की मौत हो गयी। (मर 15:44) इसके अलावा, उस ज़माने में रात की तरह दिन को भी चार पहरों में बाँटा जाता था और हर पहर तीन घंटे का होता था। बाइबल के लेखक इसी के मुताबिक समय की जानकारी देते थे। इसलिए बाइबल में अकसर तीसरे, छठे और नौवें घंटे का ज़िक्र मिलता है और इन घंटों का हिसाब सूरज निकलने से यानी करीब 6 बजे से लगाया जाता था। (मत 20:1-5; यूह 4:6; प्रेष 2:15; 3:1; 10:3, 9, 30) इतना ही नहीं, उन दिनों घड़ियाँ नहीं होती थीं, इसलिए दिन का कोई समय बताते वक्त अकसर “करीब” शब्द इस्तेमाल होता था, जैसा कि यूह 19:14 में लिखा है। (मत 27:46; लूक 23:44; यूह 4:6; प्रेष 10:3, 9) इन बातों का निचोड़ यह है: मरकुस ने शायद काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा में कोड़े लगवाने की बात भी शामिल की, जबकि यूहन्ना ने सिर्फ काठ पर लटकाकर मार डालने की बात की। दोनों लेखकों ने शायद मोटे तौर पर घंटों का ज़िक्र किया। मरकुस ने दिन के पहले पहर के आखिरी घंटे, यानी तीसरे घंटे का और यूहन्ना ने दूसरे पहर के आखिरी घंटे यानी छठे घंटे का ज़िक्र किया। यूहन्ना ने जब समय के बारे में बताया तो उसने “करीब” शब्द भी लिखा। शायद यही कुछ वजह हैं कि क्यों खुशखबरी की किताबों में अलग-अलग समय का ज़िक्र किया गया है। और-तो-और, यूहन्ना ने जो समय बताया वह मरकुस के बताए समय से अलग है, यह दिखाता है कि जब सालों बाद यूहन्ना ने खुशखबरी की किताब लिखी, तो उसने मरकुस के ब्यौरे की नकल नहीं की।
अ.बाइ. मर 16:8 अध्ययन नोट
क्योंकि वे बहुत डरी हुई थीं: आज मौजूद मरकुस की सबसे प्राचीन हस्तलिपियों के मुताबिक, खुशखबरी की यह किताब आयत 8 में दिए शब्दों से खत्म होती है। कुछ लोगों का दावा है कि किताब की समाप्ति इस तरह अचानक नहीं हो सकती। लेकिन यह दावा सही नहीं लगता क्योंकि मरकुस के लिखने की शैली ऐसी थी कि वह कम शब्दों में बात कहता था। इसके अलावा, चौथी सदी के विद्वान जेरोम और यूसेबियस ने भी बताया कि मरकुस की असली किताब इन्हीं शब्दों से खत्म होती है: “क्योंकि वे बहुत डरी हुई थीं।”
ऐसी कई यूनानी हस्तलिपियाँ और दूसरी भाषाओं के अनुवाद हैं जिनमें आयत 8 के बाद लंबी या छोटी समाप्ति दी गयी है। लंबी समाप्ति (जिसमें 12 और आयतें हैं) पाँचवीं सदी की इन हस्तलिपियों में पायी जाती है: कोडेक्स एलेक्ज़ैंड्रिनस, कोडेक्स एफ्रीमी सीरि रिसक्रिपटस और कोडेक्स बेज़ी कैंटाब्रिजिएनसिस। यह समाप्ति लातीनी वल्गेट, क्युरेटोनियन सीरियाई और सीरियाई पेशीटा में भी पायी जाती है। लेकिन यह समाप्ति दूसरी कुछ हस्तलिपियों में नहीं पायी जाती। जैसे, चौथी सदी की दो यूनानी हस्तलिपियाँ कोडेक्स साइनाइटिकस और कोडेक्स वैटिकनस, चौथी या पाँचवीं सदी की हस्तलिपि कोडेक्स साइनाइटिकस सिरियकस और पाँचवीं सदी की मरकुस की वह हस्तलिपि जो प्राचीन साहिदिक कॉप्टिक भाषा में लिखी गयी थी। उसी तरह, आर्मीनियाई और जॉर्जियाई भाषा में मरकुस की सबसे पुरानी हस्तलिपियाँ भी आयत 8 के शब्दों से खत्म होती हैं।
बाद की कुछ यूनानी हस्तलिपियों और दूसरी भाषाओं के अनुवादों में छोटी समाप्ति (जिसमें सिर्फ एक-दो वाक्य और लिखे हैं) दी गयी है। आठवीं सदी की हस्तलिपि कोडेक्स रीजियस में दोनों समाप्तियाँ दी गयी हैं, पहले छोटी समाप्ति और बाद में बड़ी समाप्ति। हर समाप्ति से पहले एक नोट दिया गया है जिसमें लिखा है कि यह जानकारी 8वीं सदी के कुछ विशेषज्ञों ने स्वीकार की। फिर भी सबूतों से पता चलता है कि कोडेक्स रीजियस में इन दोनों समाप्तियों को प्रमाणित नहीं माना गया है।
छोटी समाप्ति
मर 16:8 के बाद दी गयी छोटी समाप्ति परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे गए शास्त्र का हिस्सा नहीं है। इसमें लिखा है:
मगर जितनी बातों की उन्हें आज्ञा दी गयी थी, वे सब उन्होंने चंद शब्दों में उन्हें बता दीं जो पतरस के आस-पास थे। इसके अलावा, इन सब बातों के बाद, यीशु ने खुद उनके ज़रिए पूरब से पश्चिम तक, हमेशा के उद्धार के पवित्र और अविनाशी संदेश का ऐलान करवाया।
लंबी समाप्ति
मर 16:8 के बाद दी गयी लंबी समाप्ति परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे गए शास्त्र का हिस्सा नहीं है। इसमें लिखा है:
9 हफ्ते के पहले दिन सुबह होते ही, जी उठने के बाद यीशु पहले मरियम मगदलीनी को दिखायी दिया, जिसमें से उसने सात दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला था। 10 वह गयी और जो यीशु के साथ रहा करते थे उन्हें जाकर इसकी खबर दी, क्योंकि वे मातम मना रहे थे और रो रहे थे। 11 मगर जब उन्होंने सुना कि वह जी उठा है और उसे दिखायी दिया है, तो यकीन न किया। 12 इसके अलावा, यह सब होने के बाद जब उनमें से दो देहात की तरफ जा रहे थे, तब यीशु उन्हें दूसरे रूप में दिखायी दिया और उनके साथ-साथ चल रहा था। 13 वे वापस आए और बाकियों को खबर दी। मगर उन्होंने इनका भी यकीन नहीं किया। 14 मगर बाद में जब वे खाने की मेज़ के सामने टेक लगाए थे, तो वह ग्यारहों को दिखायी दिया और उसने उनके विश्वास की कमी और दिलों की कठोरता के लिए उन्हें उलाहना दी। क्योंकि उन्होंने उनका यकीन नहीं किया था जिन्होंने उसे मरे हुओं में से जी उठने के बाद देखा था। 15 और उसने उनसे कहा: “सारी दुनिया में जाओ और सब लोगों को खुशखबरी सुनाओ। 16 जो यकीन करता है और बपतिस्मा लेता है वह उद्धार पाएगा, मगर जो यकीन नहीं करता वह दोषी ठहराया जाएगा। 17 इसके अलावा, यकीन करनेवालों में ये अलग-अलग चमत्कार दिखायी देंगे: वे मेरे नाम से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालेंगे, अलग-अलग भाषाएँ बोलेंगे, 18 और वे अपने हाथों से साँपों को उठा लेंगे और अगर वे कोई ज़हरीली चीज़ पी जाएँ, तौभी वह उन्हें कोई नुकसान न पहुँचाएगी। वे बीमार लोगों पर अपने हाथ रखेंगे और वे चंगे हो जाएँगे।”
19 इस तरह प्रभु यीशु उनसे बातें करने के बाद स्वर्ग में उठा लिया गया और परमेश्वर के दायीं तरफ बैठ गया। 20 इसी के मुताबिक, चेले निकले और उन्होंने हर जगह प्रचार किया। इस दौरान प्रभु ने उनके साथ काम किया और उनके ज़रिए अलग-अलग चमत्कारों से उनके संदेश की गवाही दी।
11-17 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | लूका 1
“मरियम की तरह नम्र बनिए”
विश्वास की मिसाल पेज 149 पै 12
“देख! मैं तो यहोवा की दासी हूँ!”
12 उसने जिब्राईल से कहा, “देख! मैं तो यहोवा की दासी हूँ! तूने जैसा कहा है, वैसा ही मेरे साथ हो।” (लूका 1:38) इससे पता चलता है कि वह कितनी नम्र थी और आज्ञा मानने को तैयार थी। मरियम की यह बात आज तक वफादार लोग जानते हैं। गौर कीजिए कि उसने कहा कि वह यहोवा की दासी है। पुराने ज़माने में सेवकों में सबसे निचले स्तर पर दासी होती थी, जो सारी ज़िंदगी अपने मालिक पर निर्भर रहती थी। मरियम ने अपने मालिक यहोवा के बारे में ऐसा ही महसूस किया। उसे पूरा भरोसा था कि वह उसे सँभालेगा क्योंकि जो यहोवा के वफादार रहते हैं उनके साथ वह वफादारी निभाता है। (भज. 18:25) उसे यह भी यकीन था कि अगर वह जी-जान से इस चुनौती-भरी ज़िम्मेदारी को निभाएगी तो यहोवा उसे ज़रूर आशीष देगा।
विश्वास की मिसाल पेज 151 पै 15-16
“देख! मैं तो यहोवा की दासी हूँ!”
15 इसके बाद मरियम ने जो कहा वह परमेश्वर के वचन में दर्ज़ है। (लूका 1:46-55 पढ़िए।) उसके कहे जितने शब्द बाइबल में दर्ज़ हैं उनमें से सबसे ज़्यादा शब्द इन आयतों में पाए जाते हैं। इससे हम मरियम के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं। वह यहोवा की एहसानमंद थी, इसलिए उसने यहोवा की बड़ाई की कि उसने उसे मसीहा की माँ बनने का सम्मान दिया। इससे यह भी पता चलता है कि मरियम को परमेश्वर पर गहरा विश्वास था क्योंकि उसने कहा कि यहोवा घमंडियों और शक्तिशाली लोगों को नीचा करता है और उन नम्र और दीन लोगों की मदद करता है जो उसकी सेवा करना चाहते हैं। उसकी बातों से अंदाज़ा मिलता है कि उसे शास्त्र का कितना ज्ञान था। अनुमान लगाया गया है कि उसने इन आयतों में इब्रानी शास्त्र से 20 से भी ज़्यादा हवाले दिए!
16 इससे साफ है कि मरियम परमेश्वर के वचन की बातों पर गहराई से सोचती थी। उसने अपने मन के विचार बताने के बजाय नम्रता से शास्त्र में लिखी बातें कहीं। उसके गर्भ में पल रहा बेटा भी उसकी तरह नम्र होता और कहता, “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है।” (यूह. 7:16) हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं परमेश्वर के वचन का इसी तरह आदर करता हूँ? या मैं अपने विचारों को मानना पसंद करता हूँ?’ इस मामले में मरियम का रवैया बिलकुल सही था।
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लूका किताब की झलकियाँ
1:62, 63क—क्या जकरयाह गूँगा होने के साथ-साथ बहरा भी हो गया था? जी नहीं। उसने सिर्फ अपने बोलने की शक्ति खोयी थी, सुनने की नहीं। हालाँकि लोगों ने जकरयाह से “संकेत करके” पूछा कि वह बच्चे का क्या नाम रखना चाहता है, मगर संकेत करने की वजह यह नहीं थी कि वह बहरा था। ऐसा मालूम होता है, जकरयाह ने अपनी पत्नी को कहते सुना था कि बच्चे का क्या नाम रखा जाना चाहिए। और शायद इसलिए लोगों ने संकेत करके उससे पूछा कि क्या वह अपनी पत्नी की बात से सहमत है। एक और बात से पता चलता है कि वह बहरा नहीं हो गया था और वह है कि उसकी सिर्फ बोलने की शक्ति लौटायी गयी थी।—लूका 1:13, 18-20, 60-64.
अ.बाइ. लूक 1:76 अध्ययन नोट
तू यहोवा के आगे-आगे जाकर: यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला इस मायने में ‘यहोवा के आगे-आगे जाता’ कि वह यीशु के लिए रास्ता तैयार करता, जो अपने पिता का प्रतिनिधि होता और उसके नाम से आता।—यूह 5:43; 8:29.
18-24 जून
पाएँ बाइबल का खज़ाना | लूका 2-3
“नौजवानो, क्या आप यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत कर रहे हैं?”
अ.बाइ. लूक 2:41 अध्ययन नोट
उसके माता-पिता अपने दस्तूर के मुताबिक: कानून में यह माँग नहीं की गयी थी कि औरतें भी फसह मनाने के लिए यरूशलेम जाएँ। फिर भी मरियम का दस्तूर था कि वह यूसुफ के साथ हर साल यह त्योहार मनाने यरूशलेम जाती थी। (निर्ग 23:17; 34:23) हालाँकि उनका परिवार बढ़ रहा था, फिर भी वे हर साल यरूशलेम आने-जाने में करीब 300 कि.मी. (190 मील) का सफर तय करते थे।
अ.बाइ. लूक 2:46, 47 अध्ययन नोट
उनसे सवाल कर रहा था: यीशु के सुननेवालों ने जिस तरह का रवैया दिखाया उससे पता चलता है कि उसके सवाल बच्चों जैसे नहीं थे, जो बस कुछ जानने के लिए पूछते हैं। (लूक 2:47) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “सवाल कर रहा था” किया गया है, उसका मतलब कुछ संदर्भों में अदालत में किए जानेवाले सवाल-जवाब भी हो सकता है। (मत 27:11; मर 14:60, 61; 15:2, 4; प्रेष 5:27) इतिहासकार कहते हैं कि आम तौर पर कुछ बड़े-बड़े धर्म गुरु त्योहारों के बाद भी मंदिर में रहते थे और किसी खुले बरामदे में लोगों को सिखाते थे। लोग ऐसे गुरुओं के पैरों के पास बैठकर उनकी सुनते और उनसे सवाल करते थे।
रह-रहकर दंग हो रहे थे: यहाँ “दंग रहने” की यूनानी क्रिया का जो रूप इस्तेमाल हुआ है, उसका मतलब हो सकता है, काफी समय तक दंग रहना या बार-बार दंग होना।
अ.बाइ. लूक 2:51, 52 अध्ययन नोट
लगातार उनके अधीन रहा: या “उनके अधीन बना रहा; उनकी आज्ञा मानता रहा।” यहाँ यूनानी क्रिया का जो रूप इस्तेमाल हुआ है उससे लगातार किए जानेवाले काम का भाव मिलता है। इससे पता चलता है कि हालाँकि मंदिर में शिक्षक यह देखकर दंग रह गए थे कि यीशु को परमेश्वर के वचन का कितना ज्ञान है, फिर भी यीशु नम्र बना रहा और घर लौटने पर अपने माता-पिता के अधीन रहा। दूसरे बच्चों की तुलना में यीशु का अपने माता-पिता की आज्ञा मानना बहुत खास था, क्योंकि ऐसा करके उसने मूसा के कानून की एक-एक बात पूरी की।—निर्ग 20:12; गल 4:4.
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अ.बाइ. लूक 2:14 अध्ययन नोट
और धरती पर उन लोगों को शांति मिले जिनसे परमेश्वर खुश है: कुछ हस्तलिपियों के मुताबिक, इन शब्दों का अनुवाद इस तरह भी किया जा सकता है: “और धरती पर शांति और इंसानों में सद्भावना हो।” ये शब्द बाइबल के कुछ अनुवादों में पाए जाते हैं। मगर नयी दुनिया अनुवाद में जो लिखा है उसका आधार और भी पुरानी और भरोसेमंद हस्तलिपियों में मिलता है। स्वर्गदूत के इस ऐलान का यह मतलब नहीं कि परमेश्वर सभी इंसानों से खुश होता है, फिर चाहे उनका रवैया और काम कैसे भी हों। इसके बजाय, परमेश्वर उन लोगों से खुश होता है जो उस पर सच्चा विश्वास करते हैं और उसके बेटे के चेले बनते हैं।—इसी आयत में जिनसे परमेश्वर खुश है पर अध्ययन नोट देखें।
जिनसे परमेश्वर खुश है: यूनानी शब्द यूडोकाया का अनुवाद “कृपा; प्रसन्नता; मंज़ूरी” भी किया जा सकता है। इससे जुड़ी क्रिया यूडोकीयो मत 3:17; मर 1:11 और लूक 3:22 में इस्तेमाल हुई है जहाँ परमेश्वर ने अपने बेटे के बपतिस्मे के ठीक बाद उससे बात की। इस क्रिया का बुनियादी मतलब है, “मंज़ूर करना; किसी से अति प्रसन्न होना; किसी पर मेहरबान होना; किसी से खुश होना।” क्रिया के इस प्रयोग को ध्यान में रखते हुए, “जिनसे परमेश्वर खुश है” (ऐंथ्रोपॉइस यूडोकायस) शब्दों में उन लोगों की बात की गयी है जिन पर परमेश्वर की मंज़ूरी है। इन शब्दों का अनुवाद इस तरह भी किया जा सकता है: “जिन्हें वह मंज़ूर करता है; जिनसे वह अति प्रसन्न है।” इसलिए स्वर्गदूत के इस ऐलान का यह मतलब नहीं कि परमेश्वर सभी इंसानों से खुश होता है बल्कि वह उन लोगों से खुश होता है, जो उस पर सच्चा विश्वास करते हैं और उसके बेटे के चेले बनते हैं। हालाँकि यूनानी शब्द यूडोकाया का मतलब कुछ संदर्भों में इंसानों में सद्भावना होना हो सकता है (रोम 10:1; फिल 1:15), मगर अकसर यह परमेश्वर के लिए इस्तेमाल हुआ है कि वह किनसे खुश होता है, उसकी मरज़ी क्या है या उसे कौन-सा तरीका मंज़ूर है (मत 11:26; लूक 10:21; इफ 1:5, 9; फिल 2:13; 2थि 1:11)। सेप्टुआजेंट में भज 51:18 [LXX में 50:20] में यही शब्द परमेश्वर की “कृपा” के लिए इस्तेमाल हुआ है।
प्र16 अंक3 पेज 9 पै 1-3, अँग्रेज़ी
क्या आप जानते थे?
यूसुफ का पिता कौन था?
यूसुफ नासरत में बढ़ई का काम करता था और यीशु का दत्तक पिता था। लेकिन यूसुफ किसका बेटा था? मत्ती की किताब में दी यीशु की वंशावली में बताया गया है कि यूसुफ याकूब का बेटा था, जबकि लूका की किताब बताती है कि यूसुफ ‘एली का बेटा’ था। इन दोनों किताबों में फर्क क्यों हैं?—लूका 3:23; मत्ती 1:16.
मत्ती ने लिखा कि “याकूब से यूसुफ पैदा हुआ।” इस आयत में जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल हुआ है, उससे साफ पता चलता है कि याकूब यूसुफ का पिता था। दरअसल मत्ती ने यूसुफ की तरफ से वंशावली दी और दिखाया कि यूसुफ का बेटा होने के नाते यीशु को दाविद की राजगद्दी पर बैठने का कानूनी हक है, क्योंकि यूसुफ दाविद का वंशज था।
दूसरी तरफ लूका ने बताया कि ‘यूसुफ एली का बेटा’ था। यहाँ ‘बेटा’ का मतलब “दामाद” भी हो सकता है। इसे समझने के लिए ज़रा लूका 3:27 पर गौर कीजिए। वहाँ शालतीएल के बारे में बताया गया है कि वह “नेरी का बेटा था,” जबकि असल में वह यकोन्याह का बेटा था। (1 इतिहास 3:17; मत्ती 1:12) ऐसा जान पड़ता है कि शालतीएल ने नेरी की एक बेटी से शादी की थी, जिसका नाम बाइबल में नहीं बताया गया है और इस तरह वह नेरी का दामाद बन गया या यूँ कहें कि नेरी का बेटा बन गया। ठीक उसी तरह यूसुफ एली की बेटी, मरियम से शादी करके उसका “बेटा” बन गया। लूका ने यीशु की माँ, मरियम की तरफ से वंशावली दी और बताया कि यीशु किस तरह “इंसान के रूप में” आया। (रोमियों 1:3) इस तरह बाइबल में यीशु की दो अलग-अलग वंशावलियाँ दी गयी हैं, जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
25 जून–1 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | लूका 4-5
“फुसलाए जाने पर यीशु की तरह डटे रहिए”
सोचिए कि आपको किस तरह का इंसान होना चाहिए
8 शैतान ने यीशु के साथ भी यही पैंतरा अपनाया। जब यीशु विराने में था और 40 दिन और 40 रात से भूखा था, तो शैतान ने खाने की ख्वाहिश का इस्तेमाल करके यीशु को बहकाने की कोशिश की। शैतान ने कहा: “अगर तू सचमुच परमेश्वर का बेटा है, तो इस पत्थर से बोल कि यह रोटी बन जाए।” (लूका 4:1-3) अब यीशु के आगे दो रास्ते थे, या तो वह अपनी भूख मिटाने के लिए चमत्कारिक शक्ति का इस्तेमाल करने से इनकार कर सकता था या ऐसा करने का चुनाव कर सकता था। यीशु जानता था कि उसे अपने मतलब के लिए चमत्कारिक शक्ति का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हालाँकि वह भूखा था, लेकिन यहोवा के साथ अपना रिश्ता बरकरार रखना उसके लिए अपनी भूख मिटाने से कहीं ज़्यादा अहमियत रखता था। यीशु ने जवाब दिया, “यह लिखा है, ‘इंसान सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रह सकता, बल्कि उसे यहोवा के मुँह से निकलनेवाले हर वचन से ज़िंदा रहना है।’”—मत्ती 4:4.
सोचिए कि आपको किस तरह का इंसान होना चाहिए
10 यीशु के मामले में शैतान ने यह पैंतरा कैसे अपनाया? शैतान ने “पल-भर में [यीशु को] दुनिया के तमाम राज्य दिखाए। शैतान ने उससे कहा: ‘मैं इन सबका अधिकार और इनकी जो शानो-शौकत है, तुझे दे दूँगा।’” (लूका 4:5, 6) यीशु ने जो देखा वह असल में दुनिया के तमाम राज्य नहीं, बल्कि उनकी शानो-शौकत का सिर्फ एक दर्शन था। शैतान को लगा होगा कि यीशु यह सब देखकर बहक जाएगा। उसने यीशु से कहा, “अगर तू बस एक बार मेरे सामने मेरी उपासना करे, तो यह सबकुछ तेरा हो जाएगा।” (लूका 4:7) लेकिन यीशु किसी भी हाल में वैसा इंसान नहीं बनना चाहता था, जैसा शैतान उसे बनाना चाहता था। यीशु ने फौरन जवाब दिया, “यह लिखा है, ‘तू सिर्फ अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना और उसी की पवित्र सेवा करना।’”—लूका 4:8.
अ.बाइ. लूक 4:9 वीडियो
मंदिर की छत की मुँडेर
हो सकता है कि शैतान ने सच में यीशु को “मंदिर की छत की मुँडेर [या “सबसे ऊँची जगह”] पर” खड़ा किया हो और वहाँ से नीचे छलाँग लगाने को कहा हो। लेकिन यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यीशु मंदिर की ठीक किस जगह पर खड़ा था। यहाँ “मंदिर” के लिए जो शब्द इस्तेमाल हुआ है उसका मतलब पूरा मंदिर परिसर हो सकता है, इसलिए यीशु शायद मंदिर के दक्षिण-पूर्वी कोने (1) पर खड़ा हुआ हो। या फिर हो सकता है कि वह मंदिर परिसर के किसी भी कोने पर खड़ा हुआ हो। इनमें से किसी भी कोने पर से अगर यीशु गिरता और यहोवा उसे न बचाता तो उसकी मौत हो सकती थी।
सोचिए कि आपको किस तरह का इंसान होना चाहिए
12 हव्वा के बिलकुल उलट, यीशु ने नम्रता की क्या ही बढ़िया मिसाल कायम की! शैतान ने यीशु को एक और तरीके से परीक्षा में डालने की कोशिश की। वह चाहता था कि यीशु कुछ ऐसा कदम उठाए जिससे परमेश्वर की परीक्षा हो और जिसे देखकर लोग दंग रह जाएँ। लेकिन ऐसा करने का खयाल तक यीशु ने अपने मन में नहीं आने दिया, क्योंकि अगर वह ऐसा करता तो वह दिखाता कि उसे खुद पर गुमान है। इसके बजाय, यीशु ने साफ और सीधे शब्दों में जवाब दिया: “यह कहा गया है, ‘तू अपने परमेश्वर यहोवा की परीक्षा न लेना।’”—लूका 4:9-12 पढ़िए।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. लूक 4:17 अध्ययन नोट
भविष्यवक्ता यशायाह का खर्रा: मृत सागर के पास मिला यशायाह का खर्रा चर्मपत्र की 17 पट्टियों को जोड़कर बनाया गया था। इसलिए इस पूरे खर्रे की लंबाई 7.3 मी. (24 फुट) है और इसमें 54 खाने हैं। नासरत के सभा-घर में जिस खर्रे से पढ़ा जाता था वह इतना ही लंबा रहा होगा। इसके अलावा, पहली सदी तक बाइबल की किताबें अध्यायों और आयतों में नहीं बाँटी गयी थीं। इसलिए यीशु जो भाग पढ़ना चाहता था वह उसे ढूँढ़ना पड़ा होगा। आयत कहती है कि उसने वह जगह ढूँढ़कर निकाली जहाँ भविष्यवाणी के वे शब्द लिखे थे जिन्हें वह पढ़ना चाहता था। इससे पता चलता है कि वह परमेश्वर के वचन से अच्छी तरह वाकिफ था।
अ.बाइ. लूक 4:25 अध्ययन नोट
साढ़े तीन साल तक: 1रा 18:1 के मुताबिक, एलियाह ने “तीसरे साल” में सूखा खत्म होने का ऐलान किया। इसलिए कुछ लोगों का दावा है कि यीशु की कही बात, 1 राजा में लिखी बात से अलग है। लेकिन इब्रानी शास्त्र के इस ब्यौरे से यह नहीं पता चलता कि सूखा तीन साल से कम समय तक रहा था। ज़ाहिर है कि शब्द “तीसरे साल” का मतलब है, वह समय जिसकी शुरूआत तब हुई थी जब एलियाह ने अहाब के सामने सूखा पड़ने का ऐलान किया था। (1रा 17:1) मुमकिन है कि एलियाह ने यह ऐलान तब किया जब गरमी का मौसम शुरू हुए काफी समय हो चुका था। आम तौर पर यह मौसम छ: महीने तक रहता था, लेकिन इस बार यह ज़्यादा समय तक रहा होगा। इसके अलावा, जब एलियाह फिर से “तीसरे साल” अहाब के सामने गया और सूखे के अंत का ऐलान किया तो सूखा उसी वक्त खत्म नहीं हुआ। इसके बजाय, पहले करमेल पहाड़ पर आग की परीक्षा हुई और उसके बाद जाकर सूखा खत्म हुआ। (1रा 18:18-45) इसलिए यीशु ने लूक 4:23 में जो कहा, साथ ही उसके भाई ने याकू 5:17 में जो मिलते-जुलते शब्द दर्ज़ किए, वे 1रा 18:1 में लिखी घटना के समय से मेल खाते हैं।