मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
1-7 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 9-10
“यीशु अपनी भेड़ों का खयाल रखता है”
अ.बाइ. तसवीर
भेड़शाला
1 भेड़शाला एक तरह का बाड़ा होता था जिसके अंदर भेड़ों को रखा जाता था ताकि चोरों और जंगली जानवरों से उनकी रक्षा हो। चरवाहे रात को अपनी भेड़ों को भेड़शाला में रखा करते थे ताकि वे सुरक्षित रहें। बाइबल के ज़माने में भेड़शालाएँ अलग-अलग आकार की होती थीं और कुछ बड़ी तो कुछ छोटी होती थीं। ज़्यादातर बाड़े पत्थरों के बने होते थे, उन पर छत नहीं होती थी और एक ही दरवाज़ा होता था। (गि 32:16; 1शम 24:3; सप 2:6) यूहन्ना ने जिस भेड़शाला का ज़िक्र किया, उसमें “दरवाज़े से” जाना होता था और उसकी रखवाली एक “दरबान” करता था। (यूह 10:1, 3) कुछ भेड़शालाओं में कई चरवाहों की भेड़ें रात को रखी जाती थीं और एक दरबान पहरा देता था। सुबह होने पर, दरबान चरवाहों के लिए दरवाज़ा खोलता था। तब हर चरवाहा अपनी भेड़ों को आवाज़ देकर बुलाता और भेड़ें उसकी आवाज़ पहचान लेतीं और उसके पास चली आती थीं। (यूह 10:3-5) यीशु ने भेड़शाला की मिसाल देकर बताया कि वह अपने चेलों की कितनी परवाह करता है।—यूह 10:7-14.
मसीही परिवारो—‘जागते रहो’
5 लाक्षणिक तौर पर चरवाहे और भेड़ों के बीच का रिश्ता ज्ञान और विश्वास पर आधारित है। एक चरवाहा अपनी भेड़ों के बारे में सब कुछ जानता है और भेड़ें भी अपने चरवाहे को अच्छी तरह जानतीं और उस पर भरोसा रखती हैं। वे उसकी आवाज़ पहचानतीं और उसकी बात मानती हैं। यीशु ने कहा: “मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं,” यानी यीशु अपनी मंडलियों के बारे में सिर्फ ऊपरी जानकारी नहीं रखता। यहाँ “जानता” के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल हुआ है, उसका मतलब है, “व्यक्तिगत रूप से, या पूरी-पूरी जानकारी होना।” जी हाँ, हमारा अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों को निजी तौर पर जानता है। वह हरेक की ज़रूरतों, कमज़ोरियों और खूबियों से अच्छी तरह वाकिफ है। हमारे आदर्श यीशु से भेड़ों की कोई भी बात छिप नहीं सकती। उसी तरह भेड़ें भी अपने चरवाहे को बखूबी जानतीं और उसकी अगुवाई पर पूरा भरोसा रखती हैं।
“वह बगैर मिसाल के उनसे बात नहीं करता था”
17 जॉर्ज ए. स्मिथ ने अपनी किताब पवित्र देश का प्राचीन भूगोल (अँग्रेज़ी) में आँखों-देखी एक घटना के बारे में लिखा: “हम कभी-कभी दोपहर के वक्त यहूदिया के किसी कुएँ के पास आराम करते थे। वहाँ तीन-चार चरवाहे अपनी भेड़ों के झुंड को पानी पिलाने लाते थे। सारे झुंड एक-दूसरे से मिल जाते थे और उन्हें देखकर हम सोच में पड़ जाते थे कि चरवाहे अपने-अपने झुंड की भेड़ों को अलग कैसे करेंगे। लेकिन जब भेड़ों का पानी पीना और कूदना-फाँदना खत्म हो जाता, तो चरवाहे एक-एक करके घाटी की अलग-अलग दिशाओं में जाते और हरेक अपने अनोखे तरीके से आवाज़ देता। तब भीड़ में से हर झुंड की भेड़ें निकलकर अपने-अपने चरवाहे के पास चली जाती थीं और सारे झुंड उसी तरतीब से लौट जाते जैसे वे पानी पीने आए थे।” यीशु ने अपनी बात समझाने के लिए क्या ही उम्दा मिसाल दी! वह सिखाना चाहता था कि अगर हम उसकी शिक्षाओं को जानें, उनको मानें और उसकी दिखायी राह पर चलें, तो “बेहतरीन चरवाहा” प्यार से हमारी देखभाल करेगा।
अ.बाइ. यूह 10:16 अध्ययन नोट
लाना: या “अगुवाई करना।” यूनानी पाठ में इस आयत में क्रिया आगो का इस्तेमाल हुआ है। उसका मतलब संदर्भ के मुताबिक किसी आयत में “लाना” तो किसी में “अगुवाई करना” हो सकता है। करीब ईसवी सन् 200 की एक यूनानी हस्तलिपि में इसी से संबंधित एक और यूनानी शब्द (साइनागो) इस्तेमाल हुआ है, जिसका अनुवाद अकसर “इकट्ठा करना” किया जाता है। एक अच्छा चरवाहा होने के नाते, यीशु इस भेड़शाला की भेड़ों को (लूक 12:32 में इन्हें ‘छोटा झुंड’ कहा गया है) और अपनी दूसरी भेड़ों को इकट्ठा करता है, राह दिखाता है, उनकी रक्षा करता है और उन्हें खिलाता-पिलाता है। इन भेड़ों का एक ही झुंड है और उनका चरवाहा भी एक है। भेड़ों और चरवाहे की मिसाल देकर यीशु ने बताया कि उसके चेलों में एकता होगी।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. यूह 9:38 अध्ययन नोट
यीशु को झुककर प्रणाम किया: या “उसके आगे सिजदा किया, उसे दंडवत किया, उसे सम्मान दिया।” जिन आयतों में यूनानी क्रिया प्रोस्किनीयो का मतलब किसी ईश्वर या देवता की उपासना करना है, वहाँ उसका अनुवाद ‘उपासना करना’ किया गया है। (मत 4:10; लूक 4:8) मगर यूह 9:38 के वाकए में, जन्म से अंधे आदमी को जब यीशु ने ठीक किया, तो वह समझ गया कि यीशु परमेश्वर का भेजा हुआ है और इसलिए उसने झुककर यीशु को प्रणाम किया। उसने यीशु को न परमेश्वर ना ही देवता समझा बल्कि उसे ‘इंसान का बेटा’ या परमेश्वर से अधिकार पानेवाला मसीहा समझा जिसके बारे में पहले से भविष्यवाणी की गयी थी। (यूह 9:35) वह शायद यीशु के सामने उसी तरीके से झुका जैसे इब्रानी शास्त्र में बताए लोगों ने दूसरों के सामने झुककर प्रणाम किया था। उन लोगों ने भविष्यवक्ताओं, राजाओं और परमेश्वर के दूसरे प्रतिनिधियों से मिलने पर उन्हें प्रणाम किया था। (1शम 25:23, 24; 2शम 14:4-7; 1रा 1:16; 2रा 4:36, 37) कई बार लोग इसलिए यीशु को झुककर प्रणाम करते थे क्योंकि वे शुक्रगुज़ार थे कि परमेश्वर ने उन पर कोई बात प्रकट की है या यीशु पर परमेश्वर की कृपा है।
अ.बाइ. यूह 10:22 अध्ययन नोट
समर्पण का त्योहार: इस त्योहार का इब्रानी नाम हनूक्का (कनूक्का) है, जिसका मतलब “उद्घाटन” या “समर्पण” है। यह त्योहार आठ दिनों का होता था। यह किसलेव महीने के 25वें दिन शुरू होता था, यानी दिसंबर के आखिर में। (अति. ख15 देखें) ईसा पूर्व 165 में यरूशलेम के मंदिर का जो दोबारा समर्पण हुआ था, उसकी याद में यह त्योहार मनाया जाता था। सीरिया के राजा एन्टियोकस चतुर्थ इपिफनीस ने यहूदियों के परमेश्वर यहोवा की तौहीन करने के लिए उसके मंदिर को दूषित कर दिया था। मिसाल के लिए, जिस बड़ी वेदी पर हर दिन होम-बलि चढ़ायी जाती थी, उसके ऊपर उसने एक वेदी बना दी। ईसा पूर्व 168 के किसलेव 25 को उसने यहोवा का मंदिर पूरी तरह दूषित करने के लिए वेदी पर एक सूअर की बलि चढ़ायी और उसके गोश्त का शोरबा पूरे मंदिर में छितरा दिया। उसने मंदिर के फाटक जलवा दिए, याजकों के खाने उखड़वा दिए और सोने की वेदी, नज़राने की रोटीवाली मेज़ और सोने की दीवट उठा ले गया। फिर उसने वह मंदिर ओलम्पस के झूठे देवता ज़्यूस के नाम समर्पित कर दिया। दो साल बाद यहूदा मक्काबी ने शहर और मंदिर को छुड़ा लिया। फिर मंदिर को शुद्ध किया गया और ईसा पूर्व 165 के किसलेव 25 को उसे दोबारा यहोवा को समर्पित किया गया। एन्टियोकस ने वेदी पर ज़्यूस देवता के लिए जो घिनौना बलिदान चढ़ाया था, उसके ठीक तीन साल बाद यह समर्पण किया गया। इसके बाद हर दिन मंदिर में यहोवा के लिए होम-बलियाँ चढ़ाना शुरू हो गया। शास्त्र में कहीं भी नहीं लिखा है कि यहूदा मक्काबी को यहोवा ने जीत दिलायी थी और उसे मंदिर को शुद्ध करने की आज्ञा दी थी। लेकिन यहोवा ने बीते वक्त में दूसरे राष्ट्रों के आदमियों से ऐसे काम करवाए थे जिससे उसकी उपासना से जुड़ा मकसद पूरा हो। जैसे फारस के राजा कुसरू से। (यश 45:1) इसलिए यह मानना सही होगा कि यहोवा ने इस यहूदी आदमी यहूदा मक्काबी के ज़रिए अपनी मरज़ी पूरी की होगी, जो कि उसके समर्पित लोगों में से था। शास्त्र से हमें पता चलता है कि मंदिर का सलामत रहना और उसमें उपासना होना ज़रूरी था ताकि मसीहा और उसके कामों और बलिदान के बारे में भविष्यवाणियाँ पूरी हो सकें। लेवियों को भी मंदिर में तब तक बलिदान चढ़ाने का काम करना था जब तक कि मसीहा आकर सभी इंसानों के लिए अपनी जान कुरबान नहीं कर देता। (दान 9:27; यूह 2:17; इब्र 9:11-14) मसीह के चेलों को समर्पण का त्योहार मनाने की आज्ञा नहीं दी गयी थी। (कुल 2:16, 17) लेकिन बाइबल में यह भी नहीं लिखा है कि यीशु ने या उसके चेलों ने कभी कहा कि यह त्योहार मनाना गलत है।
8-14 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 11-12
“यीशु की तरह करुणा कीजिए”
अ.बाइ. यूह 11:24, 25 अध्ययन नोट
मैं जानती हूँ . . .वह ज़िंदा हो जाएगा: मारथा ने सोचा कि यीशु यह कह रहा था कि आखिरी दिन यानी भविष्य में मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा। मारथा को मरे हुओं के ज़िंदा होने की शिक्षा पर अटूट विश्वास था। उस ज़माने में सदूकी नाम के कुछ धर्म-गुरु नहीं मानते थे कि मरे हुए ज़िंदा होंगे, इसके बावजूद कि ईश्वर-प्रेरणा से लिखे शास्त्र में साफ बताया गया है कि ऐसा होगा। (दान 12:13; मर 12:18) वहीं फरीसी मानते थे कि आत्मा अमर होती है। मगर मारथा को पता था कि यीशु ने सिखाया कि मरे हुए ज़िंदा होंगे और उसने मरे हुओं को ज़िंदा भी किया था। मगर उसने जिनको ज़िंदा किया था, उन्हें मरे हुए इतना लंबा समय नहीं हुआ था जितना कि लाज़र को हुआ था।
मरे हुओं को ज़िंदा करनेवाला और उन्हें जीवन देनेवाला मैं ही हूँ: जब यीशु की मौत हुई और वह ज़िंदा हुआ, तो मरे हुओं के लिए ज़िंदा होने का रास्ता खुल गया। यीशु के ज़िंदा होने के बाद, यहोवा ने उसे न सिर्फ मरे हुओं को ज़िंदा करने की बल्कि हमेशा की ज़िंदगी देने की शक्ति दी। प्रक 1:18 में यीशु ने खुद के बारे में कहा कि वह “जीवित” है और उसके पास “मौत और कब्र की चाबियाँ” हैं। इसलिए यीशु से ही ज़िंदा लोगों को और मरे हुओं के लिए जीवन की आशा मिलती है। उसने वादा किया है कि वह कब्रों को खोल देगा और मरे हुओं को ज़िंदा करेगा। वह उन्हें या तो स्वर्ग में जीवन देगा ताकि वे उसके साथ राज करें या फिर नयी पृथ्वी पर जीवन देगा ताकि वे उसकी सरकार की प्रजा बनें।—यूह 5:28, 29; 2पत 3:13.
अ.बाइ. यूह 11:33-35 अध्ययन नोट
रोते: जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “रोते” किया गया है, उसका कई बार मतलब होता है, ऐसा रोना, जिसमें रोने की आवाज़ सुनायी देती है। इस क्रिया का इस्तेमाल उस वाकए में भी किया गया है जहाँ लिखा है कि यीशु यरूशलेम के नाश की भविष्यवाणी करते वक्त रोने लगा।—लूक 19:41.
गहरी आह भरी और उसका दिल भर आया: मूल भाषा में जो शब्द इस्तेमाल हुए हैं, उनसे पता चलता है कि इस मौके पर यीशु अंदर से तड़प उठा था। जिस यूनानी क्रिया (एम्ब्रिमाओमाइ) का अनुवाद “गहरी आह भरी” किया गया है, वह गहरी भावनाओं को दर्शाता है। संदर्भ से पता चलता है कि इस मौके पर यीशु ने दिल में ऐसा दर्द महसूस किया कि उसने गहरी आह भरी। जिस यूनानी शब्द (ताराससो) का अनुवाद “उसका दिल भर आया” किया गया है, उसका शाब्दिक मतलब है, परेशान होना। एक विद्वान के मुताबिक, संदर्भ को ध्यान में रखते हुए यूह 11:33 में इस यूनानी शब्द का मतलब है, “मन-ही-मन व्याकुल होना और गहरा दर्द महसूस करना।” यूह 13:21 में भी इसी क्रिया का इस्तेमाल करके बताया गया है कि यीशु को यह सोचकर बहुत दर्द हुआ कि यहूदा उसके साथ विश्वासघात करेगा।
आँसू बहने लगे: लूक 7:38; प्रेष 20:19, 31; इब्र 5:7; प्रक 7:17; 21:4 जैसी आयतों में ‘आँसू’ के लिए जो यूनानी संज्ञा इस्तेमाल हुई है, उसका एक क्रियारूप (डैक्रियो) यूह 11:35 में इस्तेमाल हुआ है। इस क्रिया का मतलब शायद आँसू बहाना है, न कि ऐसा रोना जिसमें आवाज़ सुनायी देती है। मसीही यूनानी शास्त्र में सिर्फ यूह 11:35 में यह यूनानी क्रिया इस्तेमाल हुई है और यह यूह 11:33 में इस्तेमाल हुई क्रिया से अलग है जहाँ मरियम और यहूदियों के रोने की बात की गयी है। यीशु जानता था कि वह लाजर को ज़िंदा करेगा, फिर भी वह यह देखकर बहुत दुखी हुआ कि उसके दोस्त दुख से बेहाल हैं। अपने दोस्तों से गहरा प्यार होने की वजह से और उनकी हालत पर दया आने की वजह से उसके आँसू बहने लगे। इस वाकए से साफ पता चलता है कि आदम से आयी मौत की वजह से जो लोग अपने अज़ीज़ों को खो देते हैं, उनका दर्द यीशु समझता है।
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अ.बाइ. यूह 11:49 अध्ययन नोट
महायाजक: जब इसराएल एक आज़ाद देश था, तब महायाजक सारी ज़िंदगी इस पद पर काम करता था। (गि 35:25) लेकिन इसराएल पर रोमी हुकूमत के दौरान रोमी सरकार के ठहराए शासकों के पास महायाजक को ठहराने और पद से उतारने का अधिकार था। रोमी अधिकारियों के ठहराए महायाजकों में कैफा ऐसा महायाजक था जो बहुत लंबे समय तक इस पद पर रहा। वह बहुत ही चालाक राजनेता था। उससे पहले के कुछ महायाजकों में से कोई भी इतने समय तक इस पद पर नहीं रहा। कैफा को करीब ईसवी सन् 18 में महायाजक बनाया गया था और करीब ईसवी सन् 36 तक वह इस पद पर रहा। यूह 11:49 में कहा गया है कि वह उस साल का यानी ईसवी सन् 33 का महायाजक था। यूहन्ना ने शायद यह बात इसलिए दर्ज़ की क्योंकि वह बताना चाहता था कि जिस साल यीशु को मौत की सज़ा दी गयी थी, उस साल कैफा महायाजक था।—कैफा का घर शायद कहाँ था, जानने के लिए अति. ख12 देखें।
अ.बाइ. यूह 12:42 अध्ययन नोट
धर्म-अधिकारियों: इस आयत में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “धर्म-अधिकारियों” किया गया है, उसका मतलब शायद महासभा यानी यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत के सदस्य हैं। यूह 3:1 में नीकुदेमुस को भी धर्म-अधिकारी कहा गया है, क्योंकि वह उस सभा का एक सदस्य था।
सभा-घर से बेदखल: या “सभा-घर से निकालना या बहिष्कार करना।” यूनानी विशेषण ऐपोसिनागोगोस का इस्तेमाल सिर्फ यूह 9:22, 12:42 और 16:2 में किया गया है। जिस व्यक्ति को सभा-घर से बेदखल कर दिया जाता, उससे लोग कोई नाता नहीं रखते थे और नीची नज़र से देखते थे। ऐसे व्यक्ति को अपना घर चलाने के लिए कई मुश्किलें झेलनी पड़ती थीं। सभा-घरों में खास तौर से शिक्षा देने का काम होता था। इन जगहों का इस्तेमाल निचली अदालतों की तरह भी होता था। इन अदालतों के पास अपराधियों को कोड़े लगाने और सभा-घर से बेदखल करने का अधिकार था।
15-21 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 13-14
“मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है”
अ.बाइ. यूह 13:5 अध्ययन नोट
चेलों के पैर धोने लगा: प्राचीन इसराएल में लोग ज़्यादातर चप्पलें पहनते थे। चप्पलों का तला बस पैरों के तलवे और टखनों पर बँधा होता था, इसलिए जब कोई धूल भरे रास्तों और खेतों से पैदल चलता, तो उसके पैर बहुत गंदे हो जाते थे। लोग घर पहुँचते ही चप्पल निकाल देते थे और एक अच्छा मेज़बान इस बात का ध्यान रखता था कि घर आए मेहमान के पैर धोए जाएँ। इस दस्तूर का बाइबल में कई बार ज़िक्र है। (उत 18:4, 5; 24:32; 1शम 25:41; लूक 7:37, 38, 44) यीशु ने इसी दस्तूर के मुताबिक अपने चेलों के पैर धोए और ऐसा करके उन्हें सिखाया कि उन्हें नम्र होना चाहिए और एक-दूसरे की सेवा करनी चाहिए।
अ.बाइ. यूह 13:12-14 अध्ययन नोट
चाहिए: या “यह तुम्हारा फर्ज़ है।” जिस यूनानी क्रिया का अनुवाद यहाँ “तुम्हारा फर्ज़ है” किया गया है, उसका इस्तेमाल अकसर पैसों के मामले में होता है। इस क्रिया का खास तौर से मतलब है, “किसी का कर्ज़दार होना।” (मत 18:28, 30, 34; लूक 16:5, 7) इस आयत में और दूसरी कुछ आयतों में इसका इस्तेमाल यह बताने के लिए किया गया है कि एक व्यक्ति का क्या फर्ज़ बनता है।—1यूह 3:16; 4:11; 3यूह 8.
सबसे महान इंसान सबसे छोटा काम करता है
चेलों के पैर धोकर यीशु ने नम्रता का एक बहुत ही बढ़िया और ज़बरदस्त सबक सिखाया। वाकई, मसीहियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि वे इतने बड़े हैं कि दूसरों को ही हमेशा उनकी सेवा करनी चाहिए और न ही उन्हें आदर के पद और गौरव पाने की ऊँची आकांक्षा रखनी चाहिए। इसके बजाय उन्हें यीशु द्वारा रखे गए नमूने पर चलना चाहिए। वह “इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल किई जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे: और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” (मत्ती 20:28) जी हाँ, यीशु के चेलों को एकदूसरे के लिए छोटे-से-छोटा काम करने को तैयार रहना चाहिए।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. यूह 14:6 अध्ययन नोट
मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ: यीशु ही वह राह है क्योंकि सिर्फ उसी के ज़रिए प्रार्थना करके हम परमेश्वर के पास जा सकते हैं। वह एक और मायने में “राह” है। उसी के ज़रिए इंसान परमेश्वर से सुलह कर सकते हैं। (यूह 16:23; रोम 5:8) यीशु सच्चाई है क्योंकि उसने सच्चाई के बारे में सिखाया और वह उसके मुताबिक जीया। उसने वह सारी भविष्यवाणियाँ पूरी कीं जिनमें बताया गया था कि परमेश्वर का मकसद पूरा करने में वह एक अहम भूमिका निभाएगा। (यूह 1:14; प्रक 19:10) ये सारी भविष्यवाणियाँ ‘उसी के ज़रिए हाँ’ हुई हैं यानी पूरी हुई हैं। (2कुर 1:20) यीशु जीवन है क्योंकि उसके फिरौती बलिदान की वजह से इंसानों के लिए “असली ज़िंदगी” यानी “हमेशा की ज़िंदगी” पाना मुमकिन हुआ है। (1ती 6:12, 19; इफ 1:7; 1यूह 1:7) वह उन लोगों के लिए भी “जीवन” साबित होगा जिन्हें फिरदौस में ज़िंदा किया जाएगा और हमेशा जीने का मौका दिया जाएगा।—यूह 5:28, 29.
अ.बाइ. यूह 14:12 अध्ययन नोट
इनसे भी बड़े-बड़े काम: यीशु के कहने का यह मतलब नहीं था कि उसके चेले उससे भी बड़े-बड़े चमत्कार करेंगे। इसके बजाय, वह नम्रता से कह रहा था कि उसके चेले उससे भी बड़े पैमाने पर प्रचार करेंगे और लोगों को सिखाएँगे। उसके चेले उससे भी ज़्यादा इलाकों में प्रचार करेंगे, उससे ज़्यादा लोगों को सिखाएँगे और उससे ज़्यादा समय तक यह काम करेंगे। यीशु के शब्दों से साफ पता चलता है कि वह चाहता था कि उसके चेले उसका काम जारी रखें।
22-28 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 15-17
“तुम दुनिया के नहीं हो”
अ.बाइ. यूह 15:19 अध्ययन नोट
दुनिया: इस आयत में यूनानी शब्द कॉसमोस का अनुवाद दुनिया किया गया है। आस-पास की आयतों से पता चलता है कि यहाँ दुनिया का मतलब दुनिया के वे सभी लोग हैं जो परमेश्वर के सेवकों से अलग हैं, यानी बुरे लोगों का समाज जो परमेश्वर से दूर है। खुशखबरी की किताबें लिखनेवालों में से सिर्फ यूहन्ना ने यीशु के ये शब्द दर्ज़ किए कि उसके चेलों को दुनिया के नहीं होना चाहिए या दुनिया से कोई नाता नहीं रखना चाहिए। यीशु ने यही बात अपने वफादार प्रेषितों के साथ आखिरी बार प्रार्थना करते वक्त दो बार कही थी।—यूह 17:14, 16.
अ.बाइ. यूह 15:21 अध्ययन नोट
मेरे नाम की वजह से: बाइबल में “नाम” का मतलब या तो किसी व्यक्ति का नाम है जिससे उसकी पहचान होती है या फिर यह कि लोगों में उसका कैसा नाम है और उसका नाम किन बातों को दर्शाता है। जहाँ तक यीशु की बात है, उसका नाम उसके अधिकार और ओहदे को भी दर्शाता है जो उसके पिता ने उसे दिया है। (मत 28:18; फिल 2:9, 10; इब्र 1:3, 4) इस आयत में यीशु बताता है कि दुनिया के लोग उसके चेलों के खिलाफ कई काम करेंगे क्योंकि वे उसके भेजनेवाले को नहीं जानते। यीशु को भेजनेवाले परमेश्वर को जानने से वे समझ पाएँगे कि यीशु का नाम किस बात को दर्शाता है और वे उस बात को मानेंगे। (प्रेष 4:12) इसमें यह मानना भी शामिल है कि यीशु को परमेश्वर ने राजा ठहराया है, वह राजाओं का राजा है और उसके आगे झुकने से ही ज़िंदगी मिल सकती है।—यूह 17:3; प्रक 19:11-16; कृपया भज 2:7-12 से तुलना करें।
इंसाइट-1 पेज 516
हिम्मत
एक मसीही को हिम्मत से काम लेना होगा, तभी वह इस दुनिया के लोगों की सोच ठुकरा पाएगा और उनके जैसे काम नहीं करेगा, क्योंकि यह दुनिया यहोवा परमेश्वर के खिलाफ काम करती है। हिम्मत होने से एक मसीही दुनिया की नफरत झेलते हुए भी यहोवा का वफादार रह पाएगा। यीशु मसीह ने अपने चेलों से कहा था, “दुनिया में तुम्हें तकलीफें झेलनी पड़ेंगी, मगर हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल कर ली है।” (यूह 16:33) परमेश्वर का बेटा यीशु कभी दुनिया के साँचे में नहीं ढला। वह किसी भी मामले में दुनिया की तरह नहीं बना। इस तरह उसने दुनिया पर जीत हासिल की। दुनिया को जीतने और बेदाग चालचलन बनाए रखने में यीशु मसीह ने एक उम्दा मिसाल कायम की। यीशु के जीवन पर मनन करने से एक मसीही हिम्मत से काम ले पाएगा। वह दुनिया से अलग रह पाएगा और खुद को दूषित नहीं होने देगा।—यूह 17:16.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
अ.बाइ. यूह 17:21-23 अध्ययन नोट
एक: या “एकता में।” यीशु ने अपने सच्चे चेलों के बारे में प्रार्थना की कि वे “एक” हों। इसका मतलब यह है कि वे एकता में रहकर एक ही मकसद पूरा करने के लिए साथ मिलकर काम करें, ठीक जैसे यीशु और उसका पिता “एक” हैं यानी वे साथ मिलकर काम करते हैं और उनकी सोच एक-जैसी है। (यूह 17:22) 1कुर 3:6-9 में पौलुस ने बताया कि मसीही सेवक जब एक-दूसरे के साथ और परमेश्वर के साथ मिलकर काम करते हैं, तो उनमें इसी तरह की एकता होती है।—1कुर 3:8 देखें।
पूरी तरह से एक हों: या “पूरी तरह एकता में हों।” इस आयत में यीशु ने पूरी तरह से एक होने के साथ पिता के प्यार का भी ज़िक्र किया। यह बात कुल 3:14 से मेल खाती है जिसमें लिखा है, ‘प्यार पूरी तरह से एकता में जोड़नेवाला जोड़ है।’ इसका यह मतलब नहीं कि यीशु के सभी चेलों की शख्सियत यानी उनकी काबिलीयतें, आदतें और ज़मीर एक जैसे हो जाते हैं। इसके बजाय, इसका यही मतलब है कि यीशु के चेले एक-जैसा काम करेंगे और एक-जैसी शिक्षाओं को मानेंगे।—रोम 15:5, 6; 1कुर 1:10; इफ 4:3; फिल 1:27.
अ.बाइ. यूह 17:24 अध्ययन नोट
दुनिया की शुरूआत: यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “शुरूआत” किया गया है, उसी शब्द का अनुवाद इब्र 11:11 में ‘गर्भवती होना’ किया गया है और उसी आयत में “बच्चे पैदा” होने की बात की गयी है। यूह 17:24 में “दुनिया की शुरूआत” का शायद मतलब है, वह समय जब आदम और हव्वा के बच्चे हुए थे। यीशु ने “दुनिया की शुरूआत” की बात करते समय हाबिल का ज़िक्र किया क्योंकि शायद वही वह पहला इंसान था जो उद्धार के लायक है और सबसे पहले उसी का नाम “दुनिया की शुरूआत से लिखी जानेवाली जीवन की किताब” में दर्ज़ किया गया है। (लूक 11:50, 51; प्रक 17:8) यीशु की जो प्रार्थना यूह 17:24 में दर्ज़ है, उससे यह भी पता चलता है कि आदम और हव्वा की संतान होने के मुद्दतों पहले से परमेश्वर अपने इकलौते बेटे से प्यार करता आया है।
29 अक्टूबर–4 नवंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यूहन्ना 18-19
“यीशु ने सच्चाई की गवाही दी”
अ.बाइ. यूह 18:37 अध्ययन नोट
गवाही दूँ: मसीही यूनानी शास्त्र में जिस यूनानी शब्द मार्टिरयो का अनुवाद “गवाही देना” और मार्टिरया और मार्टिस का अनुवाद “गवाह” किया गया है, उनके कई मतलब हो सकते हैं। दोनों शब्दों का बुनियादी मतलब है, आँखों देखी बातों का बयान करना या उनकी गवाही देना। लेकिन इन शब्दों का यह भी मतलब हो सकता है: “ऐलान करना, पुख्ता करना और किसी की तारीफ करना।” यीशु को जिन सच्चाइयों का पक्का यकीन था, उनके बारे में उसने गवाही दी और उनका प्रचार किया। साथ ही, उसने ऐसी ज़िंदगी जी जिससे उसके पिता की भविष्यवाणियाँ और वादे सच साबित हुए। (2कुर 1:20) भविष्यवाणियों में साफ बताया गया था कि परमेश्वर ने अपने राज के बारे में और उसके राजा मसीह के बारे में क्या मकसद ठहराया है। यीशु ने धरती पर जिस तरह ज़िंदगी बितायी और आखिर में अपनी जान कुरबान कर दी, उससे वह सारी भविष्यवाणियाँ पूरी हुईं जो उसके बारे में की गयी थीं। कानून के करार में बताए गए इंतज़ाम जिन बातों को दर्शाते हैं, वे भी यीशु पर पूरे हुए। (कुल 2:16, 17; इब्र 10:1) इसलिए कहा जा सकता है कि यीशु ने अपनी बातों और अपने कामों से ‘सच्चाई की गवाही दी।’
सच्चाई: यीशु इस आयत में आम सच्चाई की बात नहीं कर रहा था, बल्कि परमेश्वर के मकसद के बारे में जो सच्चाई है, उसकी बात कर रहा था। परमेश्वर के मकसद में एक अहम बात यह है कि “दाविद के वंश” का यीशु महायाजक और परमेश्वर के राज का राजा है। (मत 1:1) यीशु ने बताया कि इंसान के नाते उसके जन्म लेने, धरती पर जीने और सेवा करने की एक खास वजह यह थी कि उसे परमेश्वर के राज के बारे में लोगों को सच्चाई बतानी थी। जब यीशु यहूदिया के बेतलेहेम में पैदा हुआ, यानी उस शहर में जहाँ दाविद पैदा हुआ था, तो उस मौके पर और उससे पहले भी स्वर्गदूतों ने यीशु के बारे में कुछ ऐसी ही बात बतायी थी।—लूक 1:32, 33; 2:10-14.
अ.बाइ. यूह 18:38क अध्ययन नोट
सच्चाई क्या है?: पीलातुस का सवाल शायद आम सच्चाई के बारे में था, न कि उस “सच्चाई” के बारे में जिसका यीशु ने थोड़ी देर पहले ज़िक्र किया था। (यूह 18:37) अगर पीलातुस ने सही इरादे से सवाल पूछा होता, तो यीशु ने ज़रूर उसे जवाब दिया होता। लेकिन पीलातुस ने शायद जवाब जानने के लिए नहीं बल्कि यूँ ही मज़ाक उड़ाते हुए पूछा। वह एक तरह से कह रहा था, “सच्चाई? वह क्या होती है? सच्चाई कुछ नहीं होती!” पीलातुस सवाल करने के बाद जवाब के लिए रुका भी नहीं, बल्कि यहूदियों के पास बाहर चला गया।
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यीशु ने किस तरह परमेश्वर की नेकी बुलंद की
15 जब यीशु को सूली पर लटकाया गया और वह अपने जीवन की दर्द भरी आखिरी साँस ले रहा था तो उसने कहा: “पूरा हुआ!” (यूह. 19:30) वाकई, अपने बपतिस्मे से लेकर अपनी मौत तक साढ़े तीन साल के दौरान यीशु ने परमेश्वर की मदद से कितने महान काम पूरे किए! जब यीशु की मौत हुई तब भयंकर भूकंप आया और रोमी सेना-अफसर जिसने उसे सूली पर चढ़ाया था उसे कहना पड़ा: “वाकई, यह परमेश्वर का बेटा था।” (मत्ती 27:54) अफसर ने देखा होगा कि परमेश्वर का बेटा कहकर कैसे यीशु की खिल्ली उड़ाई गयी थी। यीशु ने कितना कुछ सहा, मगर अपनी खराई नहीं तोड़ी और शैतान को सबसे बड़ा झूठा साबित किया। जो भी यहोवा की हुकूमत का साथ देता है, शैतान उसके बारे में यह दावा करता है: “प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे” देगा। (अय्यू. 2:4) यहोवा के लिए अपनी वफादारी का सबूत देकर यीशु ने साबित किया कि आदम और हव्वा अपनी आसान-सी परीक्षा में खरे उतर सकते थे। इस सबसे बढ़कर यीशु ने अपनी ज़िंदगी और मौत से यहोवा की नेक हुकूमत की महिमा की और उसे बुलंद किया। (नीतिवचन 27:11 पढ़िए।) यीशु की मौत से क्या और कुछ भी पूरा हुआ है? जी हाँ बिलकुल!
अ.बाइ. यूह 19:31 अध्ययन नोट
यह बड़ा सब्त था: हर साल फसह के बाद का दिन यानी नीसान 15 सब्त का दिन होता था, फिर चाहे वह हफ्ते का कोई भी दिन हो। (लैव 23:5-7) अगर किसी साल यह खास सब्त हर हफ्ते मनाए जानेवाले सब्त के दिन ही पड़ता, जो कि यहूदियों के हफ्ते का सातवाँ दिन होता था, (यह सातवाँ दिन शुक्रवार को सूरज डूबने से लेकर शनिवार को सूरज डूबने तक होता था) तो उसे “बड़ा सब्त” कहा जाता था। यीशु की मौत जिस फसह के दिन हुई थी वह शुक्रवार था, इसलिए उसका अगला दिन बड़ा सब्त था। ईसवी सन् 29 से 35 के बीच के सालों में सिर्फ ईसवी सन् 33 ही वह साल था जब नीसान 14 शुक्रवार को पड़ा था। इससे साबित होता है कि यीशु की मौत ईसवी सन् 33 के नीसान 14 को हुई थी।