वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • mwbr18 दिसंबर पेज 1-8
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2018
  • उपशीर्षक
  • 3-9 दिसंबर
  • 10-16 दिसंबर
  • 17-23 दिसंबर
  • 24-30 दिसंबर
  • 31 दिसंबर–6 जनवरी
मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2018
mwbr18 दिसंबर पेज 1-8

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

3-9 दिसंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 9-11

“मसीहियों का कट्टर दुश्‍मन जोशीला साक्षी बना”

गवाही दो पेज 60 पै 1-2

मंडली के लिए “शांति का दौर शुरू” होता है

मुसाफिरों की एक टोली बड़ी तेज़ी से दमिश्‍क शहर की तरफ बढ़ रही है। वहाँ उन्हें अपनी एक बुरी साज़िश को अंजाम देना है। अब वे शहर के बहुत करीब पहुँच गए हैं, कुछ ही देर में वे वहाँ के मसीहियों को घरों से खदेंडेगे, उन्हें बाँधेंगे, ज़लील करेंगे और घसीटकर यरूशलेम की महासभा के सामने लाएँगे, जहाँ उन्हें कड़ी-से-कड़ी सज़ा सुनायी जाएगी।

2 इस टोली के सरदार का नाम है शाऊल, जिसके हाथ पहले ही खून से रंगे हैं। हाल ही में, उसके कट्टरपंथी साथियों ने यीशु के सच्चे चेले स्तिफनुस को पत्थरवाह करके मार डाला था। शाऊल दूर खड़े यह सब देख रहा था और उसने इस कत्ल में पूरा साथ दिया। (प्रेषि. 7:57–8:1) यरूशलेम में यीशु के चेलों पर घोर अत्याचार करने के बाद भी शाऊल का जी नहीं भरा। वह दूर-दूर के इलाकों में भी मसीहियों पर कहर ढाने निकल पड़ा है। उसने ठान लिया है कि वह मसीहियों के इस खतरनाक पंथ का नामो-निशान मिटा देगा जिसे ‘प्रभु का मार्ग’ कहा जाता है।​—प्रेषि. 9:1, 2; पेज 61 पर दिया बक्स देखिए, “शाऊल को दमिश्‍क जाने का अधिकार कैसे मिला?”

प्र16.06 पेज 7 पै 4

यहोवा हमारा कुम्हार है​—क्या आप इसकी कदर करते हैं?

4 यहोवा लोगों को उस तरह से नहीं देखता, जैसे हम देखते हैं। वह दिलों को जाँचता है और देखता है कि हममें से हर एक अंदर से कैसा इंसान है। (1 शमूएल 16:7ख पढ़िए।) यह बात उस वक्‍त साफ ज़ाहिर हुई, जब यहोवा ने मसीही मंडली की शुरूआत की थी। उसने बहुत-से ऐसे लोगों को अपनी तरफ और अपने बेटे की तरफ खींचा, जिन्हें शायद कुछ लोग नाकाबिल समझें। (यूह. 6:44) ऐसा ही एक आदमी था शाऊल, जो एक फरीसी था। वह “परमेश्‍वर की तौहीन करनेवाला और ज़ुल्म ढानेवाला गुस्ताख था।” (1 तीमु. 1:13) लेकिन यहोवा ने शाऊल का दिल जाँचा और उसे ऐसा नहीं लगा कि यह बेकार मिट्टी है। (नीति. 17:3) यहोवा ने देखा कि उसे ढालकर “चुना हुआ पात्र” बनाया जा सकता है, “जो गैर-यहूदियों, साथ ही राजाओं और इसराएलियों” को गवाही देगा। (प्रेषि. 9:15) यहोवा ने और भी लोगों को चुना, जिन्हें ढालकर ऐसे बरतनों की तरह बनाया गया, जो “आदर के काम के लिए” होते हैं। इनमें वे लोग भी थे, जो पहले पियक्कड़, अनैतिक काम करनेवाले और चोर थे। (रोमि. 9:21; 1 कुरिं. 6:9-11) जब उन्होंने शास्त्र का अध्ययन किया, तो यहोवा पर उनका विश्‍वास मज़बूत हुआ और उन्होंने यहोवा के हाथों खुद को ढलने दिया।

गवाही दो पेज 64 पै 15

मंडली के लिए “शांति का दौर शुरू” होता है

15 क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जब शाऊल सभा-घरों में जाकर यीशु के बारे में सिखाने लगता है तो उसे देखनेवाली भीड़ कैसे दंग रह गयी होगी और गुस्से से तमतमा उठी होगी? आयत बताती है कि उसे देखकर लोग कहने लगे: “क्या यह वही आदमी नहीं जो यरूशलेम में यीशु के चेलों को तबाह करता था”? (प्रेषि. 9:21) शाऊल उन्हें समझाता है कि उसने यीशु के बारे में अपना नज़रिया क्यों बदला है और वह ‘तर्कसंगत तरीके से साबित करता’ है कि यीशु ही मसीह है। (प्रेषि. 9:22) लेकिन तर्क करके हर इंसान को कायल नहीं किया जा सकता। तर्क उन सभी लोगों का दिमाग खोल नहीं सकता जो परंपराओं की ज़ंजीरों से जकड़े होते हैं और घमंड से भरे होते हैं। ऐसे लोगों को दलीलें देकर समझाना चिकने घड़े पर पानी डालना है। फिर भी शाऊल हार नहीं मानता, वह लोगों को समझाता रहता है।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

गवाही दो पेज 60-61 पै 5-6

मंडली के लिए “शांति का दौर शुरू” होता है

5 जब यीशु रास्ते में शाऊल को रोकता है तो वह शाऊल से यह नहीं पूछता, “तू क्यों मेरे चेलों पर ज़ुल्म कर रहा है?” इसके बजाय, वह कहता है: “तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है?” (प्रेषि. 9:4) जी हाँ, जब यीशु के चेले तकलीफों से गुज़रते हैं तो खुद यीशु को दर्द महसूस होता है।​—मत्ती 25:34-40, 45.

6 अगर मसीह पर विश्‍वास करने की वजह से आप पर अत्याचार किए जा रहे हैं, तो इस बात का यकीन रखिए कि यहोवा और यीशु दोनों जानते हैं कि आप पर क्या गुज़र रही है। (मत्ती 10:22, 28-31) हो सकता है, यहोवा आपकी आज़माइश को फौरन दूर न करे। याद कीजिए, जब शाऊल स्तिफनुस के कत्ल का साथ दे रहा था और यरूशलेम में वफादार चेलों के घरों में घुसकर उन्हें घसीटकर निकाल रहा था, तब यहोवा ने मसीहियों को इस आज़माइश से गुज़रने दिया। (प्रेषि. 8:3) उसने फौरन उनकी तकलीफें दूर नहीं कीं। मगर वह मसीह के ज़रिए स्तिफनुस और बाकी चेलों को उस मुश्‍किल दौर में वफादार बने रहने के लिए ताकत देता रहा।

अ.बाइ. प्रेष 10:6 अध्ययन नोट

चमड़े का काम करनेवाले शमौन: चमड़े का काम करनेवाला व्यक्‍ति जानवरों की खाल से चमड़े तैयार करता था। वह खाल से रोएँ, गोश्‍त के महीन टुकड़े और चरबी निकालने के लिए चूने का घोल इस्तेमाल करता था। फिर वह खाल पर एक ऐसा द्रव्य लगाता था जो बहुत तेज़ होता था। इस तरह वह चमड़ा तैयार करता था ताकि उससे तरह-तरह की चीज़ें बनायी जा सकें। चमड़ा तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान बहुत बदबू आती थी और बहुत सारा पानी लगता था। शायद इसीलिए शमौन का घर समुंदर के किनारे था। वह शायद याफा के किसी तटवर्ती इलाके में रहता था। मूसा के कानून के मुताबिक जानवरों की लाशें छूनेवाला व्यक्‍ति अशुद्ध हो जाता और उसके लिए उपासना से जुड़े कामों में हिस्सा लेना मना था। (लैव 5:2; 11:39) इसलिए चमड़े का काम करनेवालों को ज़्यादातर यहूदी नीची नज़र से देखते थे और उनके घर ठहरना पसंद नहीं करते थे। तलमूद नाम की किताब में तो यह तक कहा गया कि चमड़े का काम, मल इकट्ठा करने के काम से भी नीचे दर्जे का है। मगर पतरस की सोच ऐसी नहीं थी, इसलिए वह शमौन के घर ठहरा। ज़ाहिर है कि पतरस खुले विचारोंवाला था इसलिए इस घटना के बाद उसे जो काम सौंपा गया, उसे करने के लिए वह राज़ी हो गया। जब उसे एक गैर-यहूदी के घर जाने के लिए कहा गया, तो वह गया। “चमड़े का काम करनेवाले” के लिए यूनानी शब्द बइरसियुस  है। कुछ विद्वान मानते हैं कि शमौन को बइरसियुस  पुकारा जाता था।

10-16 दिसंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 12-14

“बरनबास और पौलुस ने दूर-दूर के इलाकों में चेले बनाए”

गवाही दो पेज 86 पै 4

“आनंद और पवित्र शक्‍ति से भरपूर”

4 पवित्र शक्‍ति इस “काम के लिए” क्यों बरनबास और शाऊल को ही अलग करने की हिदायत देती है? (प्रेषि. 13:2) बाइबल इसकी कोई वजह नहीं बताती। लेकिन हम जानते हैं कि पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में ही इन दोनों आदमियों को चुना जाता है। इस बात का भी कोई सुराग नहीं मिलता कि अंताकिया की मंडली के भविष्यवक्‍ताओं और शिक्षकों ने इस फैसले पर एतराज़ जताया हो। इसके बजाय, वे इस फैसले को कबूल करते हैं और पूरा-पूरा सहयोग देते हैं। ज़रा सोचिए, बरनबास और शाऊल को उस वक्‍त कितनी खुशी हुई होगी जब वहाँ के मसीही भाई बिना किसी जलन-कुढ़न के उन दोनों के लिए ‘उपवास और प्रार्थना करते हैं और उन पर हाथ रखते हैं और उन्हें रवाना करते हैं।’ (प्रेषि. 13:3) आज हमें भी उन भाइयों का पूरा-पूरा साथ देना चाहिए जिन्हें संगठन में ज़िम्मेदारी के पद सौंपे जाते हैं और उन भाइयों का भी जिन्हें मंडली में निगरान ठहराया जाता है। उन भाइयों से जलने के बजाय हमें “उनके काम की वजह से प्यार के साथ उनकी और भी बढ़कर इज़्ज़त” करनी चाहिए।​—1 थिस्स. 5:13.

गवाही दो पेज 95 पै 5

‘यहोवा के दिए अधिकार से वे निडर होकर वचन सुनाते रहे’

5 सबसे पहले पौलुस और बरनबास इकुनियुम में रुकते हैं, जो रोमी प्रांत गलातिया का एक खास शहर है। इकुनियुम में बहुत-से यूनानी लोग रहते हैं। इस शहर में यहूदियों का बड़ा दबदबा है और उनके अलावा बहुत-से गैर-यहूदी भी यहाँ रहते हैं जिन्होंने यहूदी धर्म अपनाया है। इकुनियुम पहुँचने के बाद पौलुस और बरनबास अपने दस्तूर के मुताबिक वहाँ के सभा-घर में जाते हैं और प्रचार करने लगते हैं। (प्रेषि. 13:5, 14) वे ‘इतने बढ़िया ढंग से बात करते हैं कि यहूदियों और यूनानियों में से भारी तादाद में लोग विश्‍वासी बन जाते हैं।’​—प्रेषि. 14:1.

प्र14 9/15 पेज 13 पै 4-5

‘बहुत तकलीफों’ के बावजूद वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा कीजिए

4 दिरबे शहर का दौरा करने के बाद, पौलुस और बरनबास “लुस्त्रा और इकुनियुम और अंताकिया लौट गए। वे चेलों की हिम्मत बँधाते रहे और उन्हें यह कहकर विश्‍वास में बने रहने का बढ़ावा देते रहे: ‘हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना है।’” (प्रेषि. 14:21, 22) यह बात पढ़कर हमें शायद अजीब लगे। आखिर “बहुत तकलीफें” झेलने की बात सुनकर किसकी हिम्मत बँधेगी? तो जब पौलुस और बरनबास ने कहा कि चेलों को बहुत तकलीफें झेलनी पड़ेंगी, तो इससे भला “चेलों की हिम्मत” कैसे ‘बँधी’?

5 हमें इस सवाल का जवाब पौलुस के शब्दों में ही मिलता है। ध्यान दीजिए कि उसने सिर्फ इतना नहीं कहा: “हमें बहुत तकलीफें झेलनी होंगी।” उसने यह भी कहा: “हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्‍वर के राज में दाखिल होना है।” जी हाँ, पौलुस यहाँ उस शानदार इनाम पर ज़ोर दे रहा था, जो परमेश्‍वर के वफादार रहनेवालों को मिलेगा। यह इनाम कोई सपना नहीं है। यीशु ने कहा था: “जो अंत तक धीरज धरेगा, वही उद्धार पाएगा।”​—मत्ती 10:22.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र08 5/15 पेज 32 पै 7

प्रेरितों किताब की झलकियाँ

12:21-23; 14:14-18. हेरोदेस ने बेझिझक वह महिमा कबूल की जिसका हकदार सिर्फ परमेश्‍वर था। मगर पौलुस और बरनबास उससे कितने अलग थे! जब लोगों ने उन्हें देवता मानकर उन्हें पूजने की कोशिश की, तो उन्होंने फौरन और कड़ाई से उन्हें ऐसा करने से मना किया। आज हमें यहोवा की सेवा में जो कामयाबियाँ मिलती हैं, उनके लिए हमें दूसरों से वाह-वाही पाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

अ.बाइ. प्रेष 13:9 अध्ययन नोट

शाऊल ने, जिसका नाम पौलुस भी है: इस घटना के बाद से शाऊल को पौलुस कहा जाने लगा। यह प्रेषित जन्म से एक इब्री था और उसके पास रोम की नागरिकता भी थी। (प्रेष 22:27, 28; फिल 3:5) इसलिए मुमकिन है कि बचपन से वह इब्रानी नाम शाऊल के साथ-साथ रोमी नाम पौलुस से भी जाना जाता था। उस ज़माने में कई यहूदियों के दो-दो नाम होते थे, खासकर उन यहूदियों के जो इसराएल देश के बाहर रहते थे। (प्रेष 12:12; 13:1) पौलुस के कुछ रिश्‍तेदारों के भी इब्रानी नामों के अलावा रोमी या यूनानी नाम थे। (रोम 16:7, 21) पौलुस “गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित” था इसलिए उसे गैर-यहूदियों को खुशखबरी सुनाने का काम सौंपा गया। (रोम 11:13) उसने शायद रोमी नाम ही इस्तेमाल करने का फैसला किया। उसने सोचा होगा कि दूसरे राष्ट्रों के लोग इस नाम को पसंद करेंगे। (प्रेष 9:15; गल 2:7, 8) कुछ लोगों ने कहा है कि उसने सिरगियुस पौलुस के सम्मान में रोमी नाम पौलुस रख लिया। लेकिन यह सही नहीं लगता क्योंकि कुप्रुस द्वीप छोड़ने के बाद भी पौलुस इसी नाम से जाना गया। कुछ और लोगों ने कहा है कि पौलुस अपना इब्रानी नाम शाऊल इसलिए इस्तेमाल नहीं करता था क्योंकि इस नाम का यूनानी उच्चारण एक और यूनानी शब्द से बहुत मिलता-जुलता था जिसका मतलब ऐसा इंसान (या जानवर) है जो अकड़कर चलता है।

पौलुस: यूनानी नाम पाउलोस लातीनी नाम पॉउलूस से निकला है। इसका मतलब है “छोटा।” यह नाम हिंदी नयी दुनिया अनुवाद  के मसीही यूनानी शास्त्र में प्रेषित पौलुस के लिए 235 बार आया है और दो बार कुप्रुस के राज्यपाल सिरगियुस पौलुस के लिए आया है।​—प्रेष 13:7.

17-23 दिसंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 15-16

“परमेश्‍वर के वचन के आधार पर एकमत होकर फैसला”

गवाही दो पेज 102-103 पै 8

‘उनका काफी वाद-विवाद होता है’

8 लूका आगे लिखता है, “मगर जब इस बात पर पौलुस और बरनबास के साथ उनका [यहूदिया के ‘कुछ लोगों’ का] काफी वाद-विवाद और झगड़ा हुआ, तो उन्होंने [प्राचीनों ने] इस झगड़े के सिलसिले में पौलुस और बरनबास को साथ ही अपने बीच से कुछ और भाइयों को, प्रेषितों और बुज़ुर्गों के पास यरूशलेम भेजने का इंतज़ाम किया।” (प्रेषि. 15:2) आयत कहती है कि मसले को लेकर काफी “वाद-विवाद और झगड़ा” होता है। इसका मतलब यह है कि दोनों पक्षों के लोग अपनी बात पर अड़े हुए हैं और दोनों का यही मानना है कि हम जो कह रहे हैं वही सही है। अंताकिया के प्राचीन इस मसले को नहीं सुलझा पाते। इसलिए वे मंडली की शांति और एकता बनाए रखने के लिए फैसला करते हैं कि यह मसला “प्रेषितों और बुज़ुर्गों” के सामने पेश किया जाए, जो पहली सदी के शासी निकाय के सदस्य थे। अंताकिया के उन प्राचीनों से हम क्या सीख सकते हैं?

प्र12 1/15 पेज 5 पै 6-7

सच्चे मसीही परमेश्‍वर के वचन की इज़्ज़त करते हैं

6 आखिर में, आमोस 9:11, 12 की बिनाह पर मसला सुलझाया गया। प्रेषितों 15:16, 17 में उन आयतों का हवाला इस तरह दिया गया है: “इन बातों के बाद मैं वापस आऊँगा और दाविद का गिरा हुआ डेरा फिर से खड़ा करूँगा; और उसके खंडहरों को फिर बनाऊँगा और उसे दोबारा उठाऊँगा, ताकि उसके बचे हुए लोग जी-जान से यहोवा की खोज करें और उनके साथ वे सारे गैर-यहूदी भी, जिनके बारे में यहोवा . . . कहता है, ये मेरे नाम से पुकारे जाते हैं।”

7 लेकिन कोई कह सकता है, ‘मगर उस आयत में यह तो नहीं लिखा कि गैर-यहूदियों के लिए खतना कराना ज़रूरी नहीं है।’ यह सच है, लेकिन यहूदी मसीहियों को बात समझ में आ गयी होगी। क्यों? क्योंकि यहूदी, खतना किए हुए  अन्यजाति के लोगों को “गैर-यहूदी” नहीं बल्कि अपना भाई समझते थे। (निर्ग. 12:48, 49) मिसाल के लिए एस्तेर 8:17 में लिखा है: “उस देश के लोगों में से बहुत लोग यहूदी बन गए।” तो फिर, जब आमोस की किताब में भविष्यवाणी की गयी थी कि इसराएल के बचे हुए लोग (यानी यहूदी और जो खतना कराकर यहूदी बन गए थे) और उनके साथ  “सारे गैर-यहूदी भी” (यानी अन्यजाति के लोग जिनका खतना नहीं हुआ था ) यहोवा के नाम से पुकारे जाएँगे, तो इसका मतलब साफ था। जो गैर-यहूदी मसीही बनना चाहते थे, उनके लिए खतना कराना ज़रूरी नहीं था।

गवाही दो पेज 123 पै 18

‘मंडलियों को मज़बूत किया जाता है’

18 पौलुस और तीमुथियुस ने बरसों-बरस साथ मिलकर काम किया। सफरी निगरानों के नाते उन्होंने शासी निकाय से मिली कई ज़िम्मेदारियाँ निभायीं। बाइबल बताती है, “इसके बाद अपने सफर में वे जिन-जिन शहरों से गुज़रे वहाँ वे उन आदेशों को मानने के बारे में बताते गए जिनका फैसला यरूशलेम में मौजूद प्रेषितों और बुज़ुर्गों ने किया था।” (प्रेषि. 16:4) ज़ाहिर है मंडलियों ने यरूशलेम के प्रेषितों और बुज़ुर्गों की हिदायतें मानी होंगी। इस तरह आज्ञा मानने की वजह से “मंडलियाँ विश्‍वास में लगातार मज़बूत होती रहीं और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती चली गयी।”​—प्रेषि. 16:5.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र12 1/15 पेज 10 पै 8

जागते रहने के बारे में यीशु के प्रेषितों से सीखिए

8 इस ब्यौरे से हम क्या सबक सीख सकते हैं? ध्यान दीजिए कि एशिया ज़िले के लिए निकलने के बाद ही परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति ने पौलुस को रोका। उसी तरह पौलुस और उसके साथियों के बितूनिया के करीब पहुँचने के बाद ही यीशु ने उन्हें वहाँ जाने से रोका। आखिर में जब पौलुस त्रोआस पहुँचा, उसके बाद ही यीशु ने उसे मकिदुनिया जाने के लिए कहा। मंडली का मुखिया होने के नाते यीशु आज हमें भी इसी तरह मार्गदर्शन दे सकता है। (कुलु. 1:18) मसलन, आप शायद पायनियर सेवा करने की सोच रहे हों या ऐसी जगह जाकर बसने के बारे में सोच रहे हों, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। मगर हो सकता है कि किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए कदम उठाने के बाद ही यीशु आपको परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के ज़रिए मार्गदर्शन दे। ज़रा इस उदाहरण के बारे में सोचिए: एक ड्राइवर चाहे तो अपनी कार दाएँ या बाएँ मोड़ सकता है, मगर तभी जब कार चल रही हो। उसी तरह यीशु हमें अपनी सेवा बढ़ाने के बारे में मार्गदर्शन दे सकता है, मगर तभी जब हम आगे बढ़ रहे हों, यानी अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हों।

अ.बाइ. प्रेष 16:37 अध्ययन नोट

हम रोमी नागरिक हैं: पौलुस रोमी नागरिक था और शायद सीलास भी रोमी नागरिक था। रोम के कानून के मुताबिक एक रोमी नागरिक को तब तक सज़ा नहीं दी जा सकती थी जब तक यह साबित न हो कि उसने कोई जुर्म किया है। उसके पास यह माँग करने का हक था कि पहले उस पर कानूनन मुकद्दमा चलाया जाए। एक रोमी नागरिक के पास कुछ ऐसे अधिकार होते थे, जिनका इस्तेमाल वह रोमी साम्राज्य के किसी भी इलाके में कर सकता था। एक रोमी नागरिक पर रोमी कानून लागू होता था, न कि किसी इलाके का प्रांतीय कानून। जब उस पर कोई दोष लगाया जाता और प्रांतीय कानून के मुताबिक उस पर मुकद्दमा चलाने की माँग की जाती, तो वह राज़ी हो सकता था। पर उसके पास यह माँग करने का भी अधिकार था कि उसकी सुनवाई किसी रोमी अदालत में की जाए। अगर उस पर ऐसा दोष लगाया जाता जिसकी सज़ा मौत होती, तो वह रोमी सम्राट से अपील कर सकता था। प्रेषित पौलुस ने पूरे रोमी साम्राज्य में प्रचार किया। बाइबल के मुताबिक पौलुस ने रोमी नागरिक होने के अधिकार का तीन बार इस्तेमाल किया। पहली बार उसने फिलिप्पी में इस अधिकार का इस्तेमाल किया जब उसने वहाँ के नगर-अधिकारियों से शिकायत की कि उन्होंने उसे कोड़े लगवाकर उसके अधिकारों का उल्लंघन किया है।​—बाकी दो वाकयों का ज़िक्र प्रेष 22:25 और 25:11 में किया गया है।

24-30 दिसंबर

पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 17-18

“प्रेषित पौलुस की तरह प्रचार कीजिए और सिखाइए”

अ.बाइ. प्रेष 17:2, 3 अध्ययन नोट

तर्क-वितर्क किया: पौलुस सिर्फ खुशखबरी नहीं सुनाता था, बल्कि पवित्र शास्त्र से यानी ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे गए इब्रानी शास्त्र से हवाले दे-देकर समझाता था और उससे सबूत पेश करता था। वह शास्त्र की बातें सिर्फ पढ़कर नहीं सुनाता था, बल्कि उससे तर्क भी करता था। वह सुननेवालों के हिसाब से तर्क करता था। यहाँ इस्तेमाल की गयी यूनानी क्रिया डायलेगोमाइ की यह परिभाषा दी गयी है: “एक-दूसरे से बातचीत करना, चर्चा करना।” यह यूनानी शब्द प्रेष 17:17; 18:4, 19; 19:8, 9; 20:7, 9 में भी इस्तेमाल हुआ है।

हवाले दे-देकर . . . साबित करता रहा: जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “हवाले दे-देकर . . . साबित करता रहा” किया गया है, उसका शाब्दिक मतलब है “साथ रखना।” इससे ज़ाहिर होता है कि पौलुस मसीहा के बारे में की गयी भविष्यवाणियों की तुलना यीशु के जीवन की घटनाओं से करता था और साबित करता था कि यीशु ने वे भविष्यवाणियाँ पूरी की हैं।

अ.बाइ. प्रेष 17:17 अध्ययन नोट

बाज़ार: एथेन्स का बाज़ार (यूनानी, अगोरा ) एक्रोपोलिस नाम की ऊँची पहाड़ी के उत्तर-पश्‍चिम में था। यह बाज़ार लगभग 12 एकड़ तक फैला हुआ था। यहाँ सिर्फ खरीद-फरोख्त नहीं होता था। यह पूरे शहर का चौक था जहाँ काफी चहल-पहल होती थी और यह कारोबार और लेन-देन का, सरकारी काम-काज का और कला और संस्कृति का केंद्र था। एथेन्स के लोगों को यहाँ आकर ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातों पर चर्चा करने का बड़ा शौक था।

अ.बाइ. प्रेष 17:22, 23 अध्ययन नोट

अनजाने परमेश्‍वर के लिए: एथेन्स में एक वेदी पर ये यूनानी शब्द लिखे हुए थे: ऐग्नो-स्टोई थीयो-आई। इनका मतलब था अनजाने परमेश्‍वर के लिए। एथेन्स के लोग देवताओं का बहुत डर मानते थे, इसलिए उन्होंने कई मंदिर और वेदियाँ बनायी थीं। उन्होंने कई गुणों के नाम पर भी देवताओं की वेदियाँ बनायी थीं। जैसे कीर्ति, मर्यादा, ताकत, कायल करने की क्षमता और दया के देवी-देवताओं के नाम पर। एक वेदी उन्होंने “अनजाने परमेश्‍वर के लिए” भी समर्पित की थी क्योंकि शायद वे डरते थे कि अगर वे गलती से किसी ईश्‍वर को पूजना भूल गए, तो वह उनसे नाराज़ हो जाएगा। यह वेदी बनाकर लोग एक तरह से मान रहे थे कि एक ऐसा परमेश्‍वर भी है जिसके बारे में वे कुछ नहीं जानते। पौलुस ने बड़ी कुशलता से उस वेदी का ज़िक्र करके उन लोगों को सच्चे परमेश्‍वर के बारे में बताया, जिससे वे अनजान थे।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र08 5/15 पेज 32 पै 5

प्रेरितों किताब की झलकियाँ

18:18—पौलुस ने क्या मन्‍नत मानी थी? कुछ विद्वानों का कहना है कि पौलुस ने नाज़ीर होने की मन्‍नत मानी थी। (गिन. 6:1-21) मगर बाइबल यह नहीं बताती कि वह मन्‍नत क्या थी। इसके अलावा, इसमें यह भी नहीं बताया गया है कि पौलुस ने यह मन्‍नत मसीही बनने से पहले मानी थी या बाद में। और ना ही इसमें यह बताया गया है कि जब उसने अपना सिर मुंडाया, तो वह अपनी मन्‍नत माननी शुरू कर रहा था या खत्म। पौलुस ने चाहे जो भी मन्‍नत मानी हो, एक बात तय है कि मन्‍नत माननी गलत नहीं थी।

अ.बाइ. प्रेष 18:21 अध्ययन नोट

अगर यहोवा ने चाहा तो: इन शब्दों से पता चलता है कि कोई काम या योजना बनाते समय परमेश्‍वर की मरज़ी को ध्यान में रखना बेहद ज़रूरी है। प्रेषित पौलुस ने हमेशा इस सिद्धांत को माना। (1कुर 4:19; 16:7; इब्र 6:3) शिष्य याकूब ने भी मसीहियों को यह कहने की सलाह दी, “अगर यहोवा की मरज़ी हो, तो हम कल का दिन देखेंगे और यह काम या वह काम करेंगे।” (याकू 4:15) मगर एक व्यक्‍ति को यह बात सिर्फ नाम के लिए नहीं कहनी चाहिए। जो कहता है, “अगर यहोवा की मरज़ी हो,” उसे यहोवा की मरज़ी के मुताबिक चलने की पूरी कोशिश भी करनी चाहिए। लोग हमेशा मुँह से ये शब्द नहीं कहते, वे कई बार बस दिल में ऐसा कहते हैं।​—प्रेष 21:14 और अति. क5 भी देखें।

31 दिसंबर–6 जनवरी

पाएँ बाइबल का खज़ाना | प्रेषितों 19-20

“अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो”

प्र11 6/15 पेज 20-21 पै 5

“परमेश्‍वर के झुंड की, जो तुम्हारी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करो”

5 प्रेषित पतरस ने लिखा कि प्राचीनों को ‘परमेश्‍वर  के झुंड की, जो उनकी देख-रेख में है, चरवाहों की तरह देखभाल करनी थी।’ उनके लिए यह समझना निहायत ज़रूरी था कि झुंड यहोवा और यीशु मसीह का है। और उन्हें परमेश्‍वर को हिसाब देना होगा कि उन्होंने कैसे उसकी भेड़ों की निगरानी की है। मान लीजिए, आपका कोई जिगरी दोस्त शहर से कहीं बाहर जा रहा है और वह आपसे अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए कहता है। तो क्या आप उसके बच्चों की अच्छी देखभाल नहीं करेंगे और उन्हें वक्‍त पर खाना-पानी नहीं देंगे? अगर कोई बच्चा बीमार हो जाता है, तो क्या आप उसकी दवा-दारू का पूरा-पूरा खयाल नहीं रखेंगे? ठीक उसी तरह, प्राचीन ‘परमेश्‍वर की उस मंडली की चरवाहों की तरह देखभाल करते हैं, जिसे उसने अपने बेटे के लहू से मोल लिया है।’ (प्रेषि. 20:28) वे याद रखते हैं कि हर भेड़ को मसीह यीशु के कीमती लहू से मोल लिया गया है। और अपनी जवाबदारी को समझते हुए, वे भेड़ों की खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करते हैं, उनकी हिफाज़त और देखभाल करते हैं।

प्र13 1/15 पेज 31 पै 15

मसीही प्राचीन​—‘हमारी खुशी के लिए हमारे सहकर्मी’

15 झुंड की रखवाली करने में प्राचीनों को बहुत मेहनत करनी होती है। कई बार उनकी रात आँखों में कटती है क्योंकि वे परमेश्‍वर की भेड़ों की फिक्र करते हैं और देर रात तक जागकर उनके लिए प्रार्थना करते हैं या फिर आध्यात्मिक तौर पर उनकी मदद करते हैं। (2 कुरिं. 11:27, 28) इसके बावजूद, वे खुशी-खुशी अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं, ठीक जैसे पौलुस ने निभायी। उसने कुरिंथियों को लिखा, “मैं तुम्हारी खातिर हँसते-हँसते खर्च करूँगा, यहाँ तक कि खुद भी पूरी तरह खर्च हो जाऊँगा।” (2 कुरिं. 12:15) जी हाँ, पौलुस अपने भाइयों से प्यार करता था इसलिए उसने उनकी हिम्मत बढ़ाने के लिए खुद को पूरी तरह खर्च कर दिया। (2 कुरिंथियों 2:4 पढ़िए; फिलि. 2:17; 1 थिस्स. 2:8) यही वजह है कि भाई-बहन पौलुस से इतना प्यार करते थे!​—प्रेषि. 20:31-38.

गवाही दो पेज 172 पै 20

“मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ”

20 पौलुस बाद की सदियों में आए उन लोगों से बिलकुल अलग था जिन्होंने परमेश्‍वर के झुंड का फायदा उठाया था। पौलुस अपनी रोज़ी-रोटी के लिए खुद मेहनत करता था ताकि मंडली पर कभी बोझ न बने। उसने अपने भाई-बहनों की खातिर सच्चे दिल से मेहनत की, न कि उनसे कुछ पाने के लालच में। पौलुस ने इफिसुस के प्राचीनों को सलाह दी कि वे भी उसकी तरह त्याग की भावना दिखाते हुए भाइयों की सेवा में खुद को लगा दें। उसने उनसे कहा: “मैंने सब बातों में तुम्हें यह कर दिखाया है ताकि तुम भी इसी तरह मेहनत करते हुए उन लोगों की मदद करो जो कमज़ोर हैं, और प्रभु यीशु के ये शब्द हमेशा याद रखो जो उसने खुद कहे थे, ‘लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।’”​—प्रेषि. 20:35.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

गवाही दो पेज 161 पै 11

विरोध के बावजूद “यहोवा का वचन बढ़ता और प्रबल होता गया”

11 पौलुस शायद उस सभा-भवन में रोज़ सुबह करीब 11 बजे से लेकर शाम के करीब 4 बजे तक सिखाता है। (प्रेषि. 19:9) इस दौरान चारों तरफ माहौल शांत होता है और लोग शायद तेज़ गर्मी की वजह से अपना काम-धंधा बंद कर देते और खा-पीकर सुस्ताते हैं। लेकिन पौलुस ऐसी सड़ी गरमी में भी मेहनत करने से पीछे नहीं हटता। वह दो साल तक वहाँ के लोगों को सिखाता है। अगर पौलुस सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक सिखाता रहा तो इसका मतलब है कि उसने उन दो सालों के दौरान 3,000 से ज़्यादा घंटे सेवा में बिताए होंगे, यानी हर महीने करीब 125 घंटे। यहोवा के वचन के बढ़ने और प्रबल होने की एक और वजह यह थी कि पौलुस मेहनती है और लोगों के हालात के मुताबिक खुद को ढालने के लिए तैयार रहता है। वह उस वक्‍त प्रचार करता है जब लोग फुरसत में होते हैं। नतीजा? “एशिया ज़िले में रहनेवाले हर किसी ने, चाहे वह यहूदी हो या यूनानी, प्रभु का वचन” सुना। (प्रेषि. 19:10) खुशखबरी की अच्छी तरह गवाही देने में पौलुस की मिसाल सचमुच काबिले-तारीफ है!

गवाही दो पेज 162-163 पै 15

विरोध के बावजूद “यहोवा का वचन बढ़ता और प्रबल होता गया”

15 स्कीवा के बेटों की शर्मनाक हालत से दूर-दूर तक लोगों में परमेश्‍वर का भय छा जाता है। कई लोग विश्‍वासी बन जाते हैं और भूत-विद्या के सारे काम छोड़ देते हैं। इफिसुस के रीति-रिवाज़ और वहाँ की संस्कृति जादूगरी में पूरी तरह डूबी हुई थी। टोना-टोटका, तावीज़ों का इस्तेमाल और मंत्र जपना बहुत आम था। मंत्रों की किताबें भी हुआ करती थीं। मगर अब बहुत-से लोग अपनी जादूगरी की किताबें लाकर सरेआम जला देते हैं, इसके बावजूद कि वे बहुत कीमती हैं। आज के हिसाब से देखें तो उन किताबों की कीमत लाखों में होगी। लूका बताता है, “इस तरह बड़े शक्‍तिशाली तरीके से यहोवा का वचन बढ़ता और प्रबल होता” है। (प्रेषि. 19:17-20) झूठे धर्म और दुष्ट स्वर्गदूतों पर यहोवा के वचन की सच्चाई की क्या ही बढ़िया जीत होती है! इफिसुस के उन वफादार लोगों ने हमारे लिए एक बेहतरीन मिसाल रखी है। आज हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ इफिसुस की तरह चारों तरफ भूत-विद्या का बोलबाला है। अगर हम पाते हैं कि हमारे पास ऐसी कोई चीज़ है जिसका भूत-विद्या से नाता है, तो हमें फौरन वह चीज़ नष्ट कर देनी चाहिए जैसे इफिसुस के लोगों ने किया था। आइए हम ऐसे घिनौने कामों से खुद को पूरी तरह दूर रखें, फिर चाहे हमें इसके लिए कितना ही नुकसान क्यों न उठाना पड़े।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें