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  • क्या आप जानते थे?
    प्रहरीदुर्ग—2011 | अप्रैल 15
    • क्या आप जानते थे?

      जब पौलुस ने “जीत के जुलूस” का ज़िक्र किया, तब उसके मन में क्या था?

      ▪ पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर . . . हमेशा हमारे आगे-आगे चलता हुआ हमें जीत के जुलूस में मसीह के संग लिए चलता है और हमारे ज़रिए अपने ज्ञान की सुगंध हर जगह फैलाता है! इसलिए कि परमेश्‍वर के सामने हम, उद्धार की राह पर चलनेवालों और विनाश की राह पर चलनेवालों, दोनों के लिए मसीह के बारे में समाचार की सुगंध हैं, यानी कितनों के लिए मौत की वह गंध जिसका अंजाम मौत होता है और कितनों के लिए जीवन की वह सुगंध जिसका अंजाम ज़िंदगी होता है। और कौन ऐसी सेवा के लिए ज़रूरी योग्यता रखता है?”—2 कुरिं. 2:14-16.

      रोमियों का एक रिवाज़ था कि जब कोई सेनापति देश के दुश्‍मनों पर जीत हासिल करके लौटता तो उसकी खुशी में एक जुलूस निकाला जाता और पौलुस के मन में इसी जुलूस की बात थी। इसमें, युद्ध में हारे हुए कैदियों और लूट के माल का प्रदर्शन किया जाता, बलिदान के लिए बैल ले जाए जाते और जनता ज़ोर-ज़ोर से विजेता सेनापति और उसकी सेना की जयजयकार करती। आखिर में बैलों की बलि चढ़ायी जाती और बहुत-से कैदियों को मौत के घाट उतार दिया जाता।

      किताब द इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया कहती है, “रोमियों के जुलूस में धूप जलाने का रिवाज़ था और शायद इसी से” यह रूपक “मसीह . . . की सुगंध” या “गंध” लिया गया, जो कुछ के लिए तो ज़िंदगी, मगर कुछ के लिए मौत का सूचक था। “वह महक, एक तरफ विजय हासिल करनेवालों की जीत को दर्शाती थी, मगर दूसरी तरफ उन कैदियों को एहसास दिलाती थी कि उनकी मौत सामने खड़ी है।”a (w10-E 08/01)

  • क्या आपको याद है?
    प्रहरीदुर्ग—2011 | अप्रैल 15
    • क्या आपको याद है?

      क्या आपने हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ पढ़ने का आनंद लिया है? देखिए कि क्या आप नीचे दिए सवालों के जवाब दे पाते हैं या नहीं:

      • क्या सच्चे मसीही परमेश्‍वर के नाम को तावीज़ की तरह इस्तेमाल करते हैं?

      कुछ लोग किसी चीज़ या चिन्ह को तावीज़ की तरह इस्तेमाल करते हैं, मानो उसमें रक्षा करने की जादुई शक्‍ति हो मगर परमेश्‍वर के लोग उसके नाम को तावीज़ नहीं समझते। वे यहोवा पर विश्‍वास करते हैं और उसकी मरज़ी पूरी करना चाहते हैं और इस तरह उसके नाम में शरण लेते हैं। (सप. 3:12, 13)—1/15, पेज 5-6.

      • यहोवा ने राजा शाऊल को क्यों ठुकरा दिया?

      राजा शाऊल को परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता का इंतज़ार करना था कि वह आकर बलि चढ़ाए, पर उसने यहोवा की आज्ञा तोड़कर खुद ही बलि चढ़ा दी। बाद में, उसने दुश्‍मनों को खाक में मिला देने की आज्ञा को भी नहीं माना।—2/15, पेज 22-23.

      • हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम दुराचार से नफरत करते हैं?

      हम शराब के गुलाम नहीं बनेंगे, जादू-टोने के कामों से दूर रहेंगे और अनैतिकता के बारे में यीशु की चेतावनी पर ध्यान देंगे। मिसाल के लिए, हम अश्‍लील तसवीरों और उन्हें देखने से उठनेवाली बुरी इच्छाओं से दूर रहेंगे। (मत्ती 5:27, 28) इनके अलावा, हम बहिष्कृत लोगों के साथ संगति भी नहीं करेंगे।—2/15, पेज 29-32.

      • यिर्मयाह किस मायने में एक वृक्ष की तरह था “जो नदी के तीर पर लगा” था और ‘जिसकी जड़ फैली थी’? (यिर्म. 17:7, 8)

      वह हमेशा फलता रहा और उसने कभी खिल्ली उड़ानेवाले लोगों का खुद पर असर नहीं होने दिया। इसके बजाय वह जीवन देनेवाले जल के सोते से जुड़ा रहा और यहोवा की हर बात को दिल में उतारता रहा।—3/15, पेज 14.

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