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बैतनियाह में, शमौन के घर मेंवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०१
बैतनियाह में, शमौन के घर में
यरीहो से निकलकर, यीशु बैतनियाह की ओर जाते हैं। इस यात्रा में लगभग पूरा दिन लग जाता है, क्योंकि यह कठिन भूप्रदेश में से करीब १९ किलोमीटर की चढ़ाई है। यरीहो समुद्र तल से लगभग २५० मीटर नीचे है, और बैतनियाह समुद्र तल से लगभग ७६० मीटर की ऊँचाई पर है। आपको शायद याद होगा, बैतनियाह लाज़र और उसकी बहनों का निवास है। यह छोटा गाँव यरूशलेम से लगभग ३ किलोमीटर दूर है, और जैतून के पहाड़ की पूर्वी ढाल पर स्थित है।
बहुत से लोग पहले ही फसह के पर्व के लिए यरूशलेम पहुँच गए हैं। वह अपने आप को रस्मी रूप से शुद्ध करने के लिए जल्दी आए हुए हैं। शायद उन्होंने किसी मुर्दे को छुआ होगा या ऐसा कुछ किया होगा, जिससे वे अशुद्ध हो गए हैं। इसलिए वे स्वीकार योग्य रूप से फसह मनाने के लिए शुद्धीकरण की प्रक्रिया का पालन करते हैं। जब यह जल्दी आए हुए जन मंदिर में इकट्ठा होते हैं, तो अनेक जन अन्दाज़ लगाते हैं कि क्या यीशु फसह के लिए आएँगे या नहीं।
यरूशलेम यीशु के विषय में वादविवाद का एक केंद्र है। यह मालूमात आम हो गयी है कि धार्मिक नेता उसे पकड़कर मार डालना चाहते हैं। दरअसल, उन्होंने यह हुक़्म दी है कि यदि कोई व्यक्ति उसके पता-ठिकाने के बारे में कुछ जानता हो, तो वह जाकर उन्हें ख़बर दे। हाल ही के कुछ महीनों में तीन बार—मण्डपों के पर्व पर, सर्मपण के पर्व पर, और लाज़र को जिलाने के बाद—यह नेता उसकी हत्या करने की कोशिश कर चुके हैं। इसलिए, लोग सोच रहे हैं, क्या यीशु एक और बार लोगों के सामने आएँगे? वे एक दूसरे से पूछते हैं, “तुम्हारी क्या राय है?”—NW.
इस बीच, यीशु फसह के पर्व के छः दिन पहले बैतनियाह पहुँचते हैं, जो यहूदी कॅलेन्डर के अनुसार निसान १४ पर पड़ता है। शुक्रवार शाम को यीशु बैतनियाह पहुँचते हैं, जो निसान ८ का आरंभ है। वह बैतनियाह की यात्रा शनिवार को नहीं कर सकते थे, क्योंकि सब्त—शुक्रवार सूर्यास्त से लेकर शनिवार सूर्यास्त तक—पर यात्रा करना यहूदी नियम में प्रतिबंधित है। शायद यीशु लाज़र के घर जाते हैं, जहाँ वे पहले भी जा चुके हैं, और शुक्रवार की रात वहीं बिताते हैं।
लेकिन, बैतनियाह का एक और निवासी यीशु और उनके साथियों को शनिवार शाम के भोजन के लिए आमंत्रित करता है। यह आदमी शमौन है, एक भूतपूर्व कोढ़ी, जो शायद पहले यीशु द्वारा चंगा किया गया। अपनी मेहनती चरित्र के कारण, मरथा मेहमानों की सेवा कर रही है। परन्तु, विशिष्ठ रूप से, मरियम यीशु की ओर ध्यान लगाए है, इस बार एक ऐसे ढंग से जो विवाद पैदा करता है।
मरियम एक संगमरमर का पात्र, या छोटी बोतल, खोलती है जिस में लगभग आधा किलोग्राम सुगंधित तेल है, “शुद्ध जटामांसी।” यह बहुत क़ीमती है। वास्तव में, इसका मूल्य एक साल की मज़दूरी के बराबर है! जब मरियम तेल को यीशु के सिर और पाँवों पर डालती है और अपने बालों से उसके पैर पोंछती है, तो सारा घर उस सुगंधित ख़ुशबू से भर जाती है।
शिष्य क्रोधित होकर पूछते हैं: “इस का क्यों सत्यानाश किया गया?” फिर यहूदा इस्करियोती कहता है: “यह इत्र तो तीन सौ दिनार से अधिक मूल्य में बेचकर कंगालों को क्यों न दिया गया?” लेकिन यहूदा वास्तव में गरीबों के लिए चिन्तित नहीं है, क्योंकि वह शिष्यों द्वारा रखी गयी पैसे की पेटी में से पैसे चुराता था।
यीशु मरियम का बचाव करते हैं, “उसे छोड़ दो,” वे आज्ञा देते हैं। “उसे क्यों सताते हो? उसने तो मेरे साथ भलाई की है। कंगाल तुम्हारे साथ सदा रहते हैं और तुम जब चाहो तब उन से भलाई कर सकते हो, पर मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा। जो कुछ वह कर सकी उसने किया; उसने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में पहले से मेरी देह पर इत्र मला है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि सारे जगत में जहाँ कहीं सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, वहाँ उसके इस काम की चर्चा भी उसके स्मरण में की जाएगी।”
यीशु बैतनियाह में अब २४ घंटे से ज़्यादा समय से हैं, और उनकी उपस्थिति का समाचार फैल चुका है। इसलिए, बहुत लोग यीशु को देखने शमौन के घर आते हैं, पर वे वहाँ पर उपस्थित लाज़र को भी देखने आते हैं। इस कारण मुख्य याजक योजना बनाते हैं, कि न केवल यीशु को पर लाज़र को भी मार डाला जाए। यह इसलिए है क्योंकि बहुत से लोग यीशु पर विश्वास करने लगे हैं क्योंकि वे उसे ज़िंदा देखते हैं जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया! सचमुच, ये धार्मिक नेता कितने दुष्ट हैं! यूहन्ना ११:५५-१२:११; मत्ती २६:६-१३; मरकुस १४:३-९; प्रेरितों के काम १:१२.
▪ यरूशलेम के मंदिर में क्या वाद-विवाद हो रहा है, और क्यों?
▪ यीशु बैतनियाह में शनिवार के बजाय शुक्रवार को क्यों आए होंगे?
▪ जब यीशु बैतनियाह आ जाते हैं, वे संभवतः सब्त कहाँ बिताते हैं?
▪ मरियम का कौनसा कार्य विवाद पैदा करता है, और यीशु कैसे उसका बचाव करते हैं?
▪ मुख्य याजकों की घोर दुष्टता किस तरह चित्रित होती है?
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यरूशलेम में यीशु का विजयी प्रवेशवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०२
यरूशलेम में यीशु का विजयी प्रवेश
अगले सबेरे, रविवार, निसान ९, यीशु अपने शिष्यों के साथ बैतनियाह से निकलकर जैतून पहाड़ पर से यरूशलेम की ओर जाते हैं। कुछ समय बाद, वे बैतफगे के निकट पहुँचते हैं जो जैतून के पहाड़ पर स्थित है। यीशु अपने शिष्यों में से दो को आदेश देते हैं:
“अपने सामने के गाँव में जाओ, वहाँ पहुँचते ही एक गधी बन्धी हुई, और उसके साथ बच्चा तुम्हें मिलेगा; उन्हें खोलकर मेरे पास ले आओ। यदि तुम से कोई कुछ कहे, तो कहो, ‘प्रभु को इन का प्रयोजन है।’ तब वह तुरन्त उन्हें भेज देगा।”
यद्यपि शुरुआत में शिष्य इस बात को समझने में चूकते हैं कि यह आदेश बाइबल की भविष्यवाणी की पूर्ति के संबंध में दिए जा रहे हैं, बाद में वे इसे समझते हैं। भविष्यवक्ता जकर्याह ने पूर्व बतलाया था कि परमेश्वर का प्रतिज्ञात राजा यरूशलेम में एक गधे पर, हाँ, “गधे पर वरन गधी के बच्चे पर” चढ़कर आएगा। उसी प्रकार राजा सुलैमान भी अभिषिक्त होने के लिए गधे के बच्चे पर सवार होकर गए थे।
जब शिष्य बैतफगे पहुँचकर गधी के बच्चे और उसकी माँ को खोलकर ले जाने लगते हैं, तो वहाँ खड़े कुछ लोग कहते हैं: “यह क्या करते हो?” परन्तु जब उन से यह कहा गया कि ये जानवर प्रभु के लिए हैं तो उन लोगों ने शिष्यों को उन्हें यीशु के पास ले जाने दिया। शिष्य गधी और उसके बच्चे पर अपने बाहरी वस्त्र डालते हैं, लेकिन यीशु गधी के बच्चे पर सवार हो जाते हैं।
जैसे यीशु यरूशलेम की ओर सवारी करते हैं, वैसे भीड़ बढ़ती जाती है। अधिकतर लोग अपने बाहरी वस्त्र को सड़क पर बिछा देते है, और अन्य लोग पेड़ों की डालियाँ काटकर बिछाते हैं। वे पुकारते हैं, “धन्य है वह जो यहोवा के नाम से राजा होकर आता है! स्वर्ग में शान्ति, और ऊँचे से ऊँचे स्थानों में महिमा हो!”—NW.
भीड़ में से कुछ फरीसी इस घोषणाओं से परेशान हो जाते हैं और यीशु से शिकायत करते हैं: “हे गुरु, अपने चेलों को डाँट।” परन्तु यीशु जवाब देते हैं: “मैं तुम से कहता हूँ, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।”
जैसे-जैसे यीशु यरूशलेम के नज़दीक आते हैं, वे शहर को देखते हैं और उस पर रोकर कहते हैं: “क्या ही भला होता कि तू, हाँ, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आँखों से छिप गयी है।” जैसे यीशु पूर्वसूचित करते हैं, जानबूझकर आज्ञा-भंग के लिए यरूशलेम को क़ीमत चुकाना चाहिए:
“तेरे बैरी [सेनापति तितुस के अधीन रोमी] मोर्चा बांधकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तंग करेंगे, और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में है ज़मीन पर पटकेंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे।” (NW) यीशु द्वारा पूर्वबतलायी गयी यरूशलेम का यह विनाश दरअसल सा.यु. वर्ष ७० में, ३७ साल बाद हुआ।
कुछ ही हफ़्तों पहले, भीड़ में से बहुत से लोगों ने यीशु को लाज़र को पुनरुत्थित करते देखा था। अब यह लोग दूसरों को उस चमत्कार के बारे में बताते रहते हैं। इसलिए जब यीशु यरूशलेम में प्रवेश करते हैं, सारा शहर में खलबली मच जाती है। “यह कौन है?” लोग जानना चाहते हैं। और भीड़ कहती है: “यह गलील के नासरत का भविष्यवक्ता यीशु है!” यह सब कुछ देखकर, फरीसी यह कहते हुए विलाप करते हैं कि उन से कुछ भी नहीं बन पड़ता: “देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।”
यरूशलेम के अपनी यात्राओं में अपनी रिवाज के अनुसार, यीशु मंदिर में सिखाने गए। वहाँ पर अंधे और लंगड़े उनके पास आते हैं, और वह उन्हें चंगा करता है! जब मुख्य याजक और शास्त्री यीशु द्वारा किए जानेवाले अद्भुत कामों को देखते हैं और जब वे मंदिर में लड़कों को यह चिल्लाते हुए सुनते हैं, “हे दाऊद के संतान को होशाना!” वे बहुत क्रोधित हो जाते हैं। “क्या तू सुनता है कि ये क्या कहते हैं?” वे विरोध प्रकट करते हैं।
यीशु जवाब देते हैं, “हाँ, क्या तुम ने यह कभी नहीं पढ़ा, ‘बालकों और दूध पीते बच्चों के मुँह से तू ने स्तुति सिद्ध कराई?’”
यीशु सिखाने का काम जारी रखते हैं, और वह मंदिर में रखी गयी सब वस्तुओं को देखता है। फिर, बहुत देर होने लगती है। इसलिए वह १२ प्रेरितों के साथ निकलता है, और वापस बैतनियाह की ओर लगभग तीन किलोमीटर की यात्रा करता है। वहाँ वह संभवतः अपने मित्र लाज़र के घर, रविवार की रात बिताता है। मत्ती २१:१-११, १४-१७; मरकुस ११:१-११; लूका १९:२९-४४; यूहन्ना १२:१२-१९; जकर्याह ९:९.
▪ कब और किस ढंग से यीशु यरूशलेम में राजा के रूप में प्रवेश करते हैं?
▪ भीड़ का यीशु की स्तुति करना कितना आवश्यक है?
▪ जब यीशु यरूशलेम को देखता है तो उसे कैसा लगता है, और वह कौनसी भविष्यवाणी करता है?
▪ यीशु के मंदिर जाने पर क्या होता है?
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मंदिर में दोबारा जानावह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०३
मंदिर में दोबारा जाना
यरीहो से आने के बाद से यीशु और उनके शिष्यों ने बैतनियाह में अपनी तीसरी रात बितायी है। अब वे सोमवार, निसान १०, के भोर की रोशनी में यरूशलेम जाने वाले सड़क पर दिखायी देते हैं। यीशु भूखा है। इसलिए जब वे एक अंजीर के पेड़ को पत्तों समेत देखते हैं, तो वे पेड़ के पास जाते हैं यह देखने की क्या उस में अंजीर है या नहीं।
उस पेड़ के पत्ते बेमौसमी रूप से जल्दी ही आ गए हैं, क्योंकि अंजीर का मौसम जून महीने से पहले नहीं आते, और अब तो केवल मार्च महीने का आख़री दिन ही है। बहरहाल, यीशु शायद सोच रहे हैं कि चूँकि पत्ते जल्दी निकल आए हैं, अंजीर भी जल्दी निकल आए होंगे। लेकिन वह हताश हो जाता है। पत्तों ने पेड़ को एक भ्रामक रूप दे दिया है। फिर, यीशु उस पेड़ को शाप देते हैं: “अब से कोई तेरा फल कभी न खाए।” यीशु के इस कार्य का नतीजा और उसके महत्त्व के बारे में अगले दिन सबेरे पता चलता है।
यीशु और उनके शिष्य चलते-चलते जल्द ही यरूशलेम पहुँच जाते हैं। वह मंदिर जाता है, जिसका मुआयना उसने पिछले दिन दोपहर को किया था। लेकिन आज, वह वहाँ पर वही कार्यवाही करता है जो तीन साल पहले सा.यु. वर्ष ३० के फसह से पहले उसने किया था। यीशु मंदिर में लेन-देन करनेवालों को बाहर निकालते हैं और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट देते हैं। और वह किसी को मंदिर से होकर बरतन ले आने-जाने भी नहीं देते।
सर्राफों और मंदिर में जानवर बेचनेवालों की निन्दा करते हुए, वह कहता है: “क्या यह नहीं लिखा है, ‘मेरा घर सब जातियों के लिए, प्रार्थना का घर कहलाएगा’? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।” वे लोग डाकू इसलिए हैं क्योंकि वे उन मजबूर लोगों से बेहिसाब पैसा लेते हैं जिन्हें उनके जानवर बलि चढ़ाने के लिए ख़रीदना ही पड़ता है। इसलिए इस प्रकार के व्यापार को यीशु एक प्रकार की ज़बरदस्ती वसूली या चोरी समझते हैं।
जब मुख्य याजक, शास्त्री और प्रमुख व्यक्ति यीशु द्वारा किए गए इन कामों के बारे में सुनते हैं तो वे उन्हें पकड़कर मार डालने के बारे में फिर से योजना बनाते हैं। इस तरह से वे यह साबित करते हैं कि वे सुधर नहीं सकते। फिर भी, वे यह नहीं जानते कि यीशु को कैसे ख़त्म करें, क्योंकि सब लोग उसे सुनने के लिए उसे घेरे रहते हैं।
स्वाभाविक यहूदियों के अलावा अन्य जाति के लोग भी फसह को आए हुए हैं। यह लोग धर्मान्तरित हैं, यानी उन्होंने यहूदी धर्म में परिवर्तन किया है। कई यूनानी, स्पष्टया धर्मान्तरित जन, अब फिलिप्पुस के पास आकर यीशु से मिलने की विनती करते हैं। फिलिप्पुस जाकर अन्द्रियास से मिलता है, शायद यह पूछने कि क्या यह भेंट उचित होगा या नहीं। यीशु अभी भी मंदिर में है, जहाँ यूनानी उन्हें देख सकते हैं।
यीशु जानते हैं कि उनके जीवन के कुछ ही दिन शेष रह गए हैं, इसलिए वे अपनी परिस्थिति को अच्छी तरह से चित्रित करते हैं: “वह समय आ गया है कि मनुष्य के पुत्र की महिमा हो। मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जब तक गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है; परन्तु जब मर जाता है तो बहुत फल लाता है।”
गेहूँ के एक दाने का बहुत कम मूल्य है। परन्तु, तब क्या जब उसे ज़मीन में डाला गया और “मर जाता” है, यानी वह बीज के रूप में अपना जीवन समाप्त कर लेता है? तब वह अंकुरित होता है और कुछ समय में बढ़कर डंठल बन जाता है, जो गेहूँ के बहुत सारे दानों को उत्पन्न करता है। इसी तरह, यीशु सिर्फ़ एक सिद्ध मनुष्य हैं। लेकिन जब वह परमेश्वर को वफादार होकर मर जाता है, वह उन वफादार लोगों को, जिन में वही समान आत्म-त्याग का आत्मा है, अनन्त जीवन प्रदान करने का ज़रिया बन जाता है। इसीलिए यीशु कहते हैं: “जो अपने प्राण को प्रिय जानता हैं, वह उसे खो देता है, और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है, वह अनन्त जीवन के लिए उसकी रक्षा करेगा।”
ज़ाहिर है कि यीशु केवल अपने ही बारे में नहीं सोच रहे हैं, क्योंकि वे आगे समझाते हैं: “यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले, और जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा सेवक भी होगा। यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा।” यीशु का अनुकरण करने और उनकी सेवा करने का क्या ही बढ़िया इनाम! यह इनाम मसीह के राज्य में उनके साथ मेल-जोल रखने का पिता द्वारा प्राप्त सम्मान है।
उनकी प्रतीक्षा कर रही अत्याधिक तकलीफ़ और अपनी तड़पनेवाली मौत के बारे में सोचते हुए, यीशु आगे कहते हैं: “अब मेरा जी व्याकुल हो रहा है, इसलिए अब मैं क्या कहूँ? हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा।” उनके साथ होनेवाले कष्ट को यदि रोका जा सकता! लेकिन, नहीं, जैसे वे कहते हैं: “परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुँचा हूँ।” परमेश्वर के सारे प्रबन्ध से, जिन में उनकी अपनी बलिदानी मृत्यु भी शामिल है, यीशु सहमत हैं। मत्ती २१:१२, १३, १८, १९; मरकुस ११:१२-१८; लूका १९:४५-४८; यूहन्ना १२:२०-२७.
▪ यीशु अंजीर पाने की आशा क्यों रखते हैं, जबकि उनका मौसम यह नहीं है?
▪ यीशु मंदिर में बेचनेवालों को “डाकू” क्यों कहते हैं?
▪ यीशु किस तरह से उस गेहूँ के दाने के समान है जो मर जाता है?
▪ अपनी भावी तकलीफ़ और मृत्यु के बारे में यीशु कैसा महसूस करते हैं?
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परमेश्वर की आवाज़ तीसरी बार सुनी गयीवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०४
परमेश्वर की आवाज़ तीसरी बार सुनी गयी
मंदिर में, यीशु अपनी मृत्यु के बारे में यातना अनुभव कर रहे हैं जिसका उसे बहुत जल्दी सामना करना होगा। उनकी मुख्य फ़िक्र यह है कि अपने पिता की नेकनामी पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, इसलिए वे प्रार्थना करते हैं: “पिता, अपने नाम की महिमा कर।”
उसी समय, स्वर्ग से एक ग़ैर-मामूली आवाज़ यह घोषणा करते हुए आती है: “मैं ने उसकी महिमा की है, और फिर करूँगा।”
आसपास खड़ी भीड़ घबरा जाती है। “कोई स्वर्गदूत उस से बोला,” कुछ लोग ऐसा कहते हैं। अन्य जन यह दावा करते हैं कि बादल गरजा। परन्तु वास्तव में, यह यहोवा परमेश्वर थे जो बोले! बहरहाल यह, यीशु के सम्बन्ध में परमेश्वर की आवाज़ पहली बार नहीं सुनी गयी।
साढ़े तीन साल पहले, जब यीशु का बपतिस्मा हुआ, तब यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने परमेश्वर को यीशु के बारे में यह कहते हुए सुना: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ।” फिर, पिछले फसह के कुछ समय बाद, जब याकूब, यूहन्ना और पतरस के सामने यीशु का रूपान्तरण हुआ, उन्होंने परमेश्वर की घोषणा सुनी: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं प्रसन्न हूँ; इसकी सुनो।” और अब, तीसरी बार, यीशु की मृत्यु के चार दिन पहले, नीसान १० को, परमेश्वर की आवाज़ लोगों को फिर सुनाई दी। लेकिन इस बार यहोवा बोलते हैं ताकि जनसमूह उन्हें सुन सकें!
यीशु व्याख्या करते हैं: “यह वाणी मेरे लिए प्रगट नहीं हुई, परन्तु तुम्हारे लिए हुई है।” यह साबित करता है कि यीशु ही सचमुच परमेश्वर के पुत्र हैं, प्रतिज्ञात मसीहा। “अब इस जगत का न्याय होता है,” यीशु आगे कहते हैं, “अब इस संसार का सरदार निकाल दिया जाएगा।” दरअसल, यीशु का वफादार पार्थिव जीवन प्रमाणित करता है कि शैतान इब्लीस, संसार का शासक, “निकाल देने”, नाश किए जाने के योग्य है।
आनेवाली मृत्यु के परिणामों को संकेत करते हुए, यीशु कहते हैं: “तथापि, मैं पृथ्वी पर से उठा लिया गया, मैं हर तरह के व्यक्तियों को अपनी तरफ खींच लूँगा।” उसकी मृत्यु किसी भी तरह से एक हार नहीं, क्योंकि इसके ज़रिये, वे दूसरों को अपनी तरफ खींच लाएँगे ताकि वे अनन्त जीवन का आनंद उठा सकें।
लेकिन भीड़ विरोध करती है: “हम ने व्यवस्था की यह बात सुनी है कि मसीह सर्वदा रहेगा; फिर तू क्यों कहता है कि मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाया जाना अवश्य है? यह मनुष्य का पुत्र कौन है?”
सब प्रमाणों के बावजूद, जिस में परमेश्वर की अपनी आवाज़ सुनना भी शामिल है, अनेक जन यक़ीन नहीं करते कि यीशु ही सच्चा मनुष्य का पुत्र है, प्रतिज्ञात मसीहा। तथापि, जैसे उसने मण्डपों के पर्व पर छः महीने पहले किया, यीशु फिर से अपने आपको “ज्योति” कहते है, और अपने श्रोताओं को प्रोत्साहित करते हैं: “जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के संतान होओ।” इन बातों को कहने के बाद, यीशु वहाँ से चले जाते हैं और छिप जाते हैं, क्योंकि प्रत्यक्षतः उनकी जान ख़तरे में है।
यहूदियों का यीशु के प्रति विश्वास की कमी यशायाह के कहे शब्दों को पूरा करता है कि ‘लोगों की आँखें अंधी हो जाएगी और उनके हृदय कठोर हो जाएँगे ताकि वे मन फिराकर चंगा न हो जाए।’ यशायाह ने यहोवा की स्वर्गीय अदालत को दर्शन में देखा, जिस में यीशु अपने मानव-पूर्वी महिमा में यहोवा परमेश्वर के साथ हैं। फिर भी, यशायाह की लिखी बातों की पूर्ति में, यहूदी ज़िद के कारण उस प्रमाणों को अस्वीकार करते हैं कि यह प्रतिज्ञात उद्धारक है।
दूसरी ओर, सरदारों में से भी अनेक जन (प्रत्यक्ष रूप से यहूदी उच्च-न्यायालय, महासभा, के सदस्य) दरअसल यीशु पर विश्वास करते हैं। निकुदेमुस और अरिमतीया का युसूफ उन सरदारों में से दो हैं। फ़िलहाल, ये सरदार, अपने विश्वास की घोषणा करने में चुकते हैं, इस डर से कि कहीं उनको महासभा के पदों से निकाल न दिया जाए। ऐसे लोग कितना कुछ खो रहे हैं!
यीशु सूचना देते हैं: “जो मुझ पर विश्वास करता है वह मुझ पर नहीं, बल्कि मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है; और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है। . . . यदि कोई मेरी बातें सुनकर न मानें, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिए नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिए आया हूँ। . . . जो वचन मैं ने कहा है, वही अन्त के दिन में उसे दोषी ठहराएगा।”—NW.
मानवजाति का संसार के प्रति यहोवा परमेश्वर का प्रेम ने उन्हें प्रेरित किया कि वह यीशु को भेजें ताकि जो कोई उन पर विश्वास करें, वह बच जाए। उन बातों का पालन करने से जिसे परमेश्वर ने यीशु को बोलने का आदेश दिया, यह तै किया जाएगा कि यह लोग बचेंगे या नहीं। मसीह के हज़ार वर्ष की हुक़ूमत के दौरान “अन्त के दिन में” (NW) न्याय किया जाएगा।
यीशु यह कहकर समाप्त करते हैं: “मैं ने कुछ भी अपने ओर से नहीं कहा, परन्तु पिता जिसने मुझे भेजा है, उसी ने मुझे आज्ञा दी है कि क्या कहूँ और क्या बोलूँ। और, मैं यह जानता हूँ कि उनकी आज्ञाओं का अर्थ है अनन्त जीवन। इसलिए जो बातें मैं कहता हूँ, जैसे पिता ने मुझ से कहा है, वैसे ही मैं कहता हूँ।” यूहन्ना १२:२८-५०; १९:३८, ३९; मत्ती ३:१७; १७:५; यशायाह ६:१, ८-१०.
▪ कौनसे तीन अवसरों परमेश्वर की आवाज़ यीशु के सम्बन्ध में सुनी गयी?
▪ भविष्यवक्ता यशायाह ने यीशु की महिमा को किस तरह देखी?
▪ वे सरदार कौन हैं जिन्होंने यीशु पर विश्वास किया, लेकिन उन्होंने उसे खुले आम क़बूल क्यों नहीं किया?
▪ “अन्त के दिन” क्या है, और तब लोगों का न्याय किस आधार पर किया जाएगा?
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एक निर्णायक दिन की शुरुआतवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०५
एक निर्णायक दिन की शुरुआत
जब यीशु सोमवार की शाम यरूशलेम से प्रस्थान करते हैं, वे जैतून पहाड़ की पूर्वी ढाल पर स्थित बैतनियाह को लौटते हैं। यरूशलेम में उनकी अंतिम सेवकाई के दो दिन पूरे हो चुके हैं। बेशक, यीशु दोबारा अपने दोस्त लाज़र के साथ रात बिताते हैं। शुक्रवार को यरीहो से आने के बाद, यह चौथी रात थी जो उन्होंने बैतनियाह में बितायी है।
अब, मंगलवार के तड़के, नीसान ११ को, यीशु और उनके शिष्य फिर से सड़क पर हैं। यीशु की सेवकाई का यह एक निर्णायक और अब तक का सबसे व्यस्त दिन प्रमाणित होता है। मंदिर में दिखाई देनेवाला यह उनका आख़री दिन है। और उनकी परीक्षा और मृत्यु से पहले, यह उनकी आम सेवकाई का आख़री दिन है।
जैतून पहाड़ के ऊपर से यीशु और उसके शिष्य उसी सड़क पर आते हैं जो यरूशलेम के तरफ जाती है। बैतनियाह से आनेवाली सड़क पर, पतरस उस पेड़ की तरफ ध्यान देता है जिसे यीशु ने पिछले सबेरे शाप दिया था। “हे रब्बी, देख!” वह चिल्लाता है, “वह अंजीर का पेड़ जिसे तू ने शाप दिया था, सूख गया है।”
लेकिन यीशु ने उस पेड़ को क्यों नष्ट किया? कारण सूचित करते हुए वे आगे कहते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ, अगर तुम विश्वास करो और संदेह न करो, तो केवल ये ही नहीं करोगे जो मैं ने अंजीर के पेड़ के साथ किया, बल्कि अगर तुम इस पहाड़ [जैतून पहाड़ जिस पर वे खड़े हैं] से कहो, ‘उखड़ कर समुद्र में गिर जा,’ तो वह हो जाएगा। और जो तुम विश्वास से प्रार्थना में माँगोगे, तो तुम्हें मिलेगा।”—NW.
इसलिए उस पेड़ को मुरझाने के द्वारा, यीशु अपने शिष्यों को परमेश्वर में विश्वास की ज़रूरत पर एक उद्देश्यपूर्ण सबक़ दे रहे हैं। जैसे उन्होंने कहा: “जिन चीज़ों के लिए तुम प्रार्थना करते हो, तो विश्वास कर लो कि तुम्हें मिल गयी, और वह तुम्हें मिल जाएगी।” (NW) ख़ासकर उन जल्द आनेवाली विस्मयकारी परिक्षाओं को ध्यान में रखते हुए यह उनको सीखने के लिए क्या ही महत्त्वपूर्ण सबक़ है! फिर भी, अंजीर के पेड़ के मुरझाने और विश्वास के दर्जे में एक और सम्बन्ध है।
इस्राएली राष्ट्र को, इसी अंजीर के पेड़ की तरह, एक भ्रामक रूप है। हालाँकि यह राष्ट्र परमेश्वर के साथ एक वाचा के रिश्ते में है और बाहर से यह उनकी नियमों को पालता हुआ दिखायी दे सकता है, वह अच्छे फलों को उत्पन्न करने में बांझ, और बिना विश्वास के साबित हुआ है। विश्वास की कमी के कारण, वह परमेश्वर के अपने बेटे को अस्वीकारने में है। इसलिए, फल न देनेवाले अंजीर के पेड़ को मुरझाने के द्वारा, यीशु स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर रहे हैं कि इस बांझ, अविश्वासी राष्ट्र का अन्तिम नतीजा क्या होगा।
जल्द ही, यीशु और उसके शिष्य यरूशलेम में प्रवेश करते हैं, और जैसा उनका दस्तूर है, वे मंदिर जाते हैं, जहाँ यीशु शिक्षा देने लगते हैं। सर्राफों के ख़िलाफ़ यीशु की पिछले दिन की कार्यवाही को मन में रखते हुए, मुख्य याजक और लोगों के पुरनिए उनकी चुनौती करते हैं: “तू ये काम किस अधिकार से करता है? और तुझे यह अधिकार किस ने दिया है?”
जवाब में यीशु कहते हैं: “मैं भी तुम से एक बात पूछता हूँ। यदि वह मुझे बताओगे, तो मैं भी तुम्हें बताऊँगा कि ये काम किस अधिकार से करता हूँ: यूहन्ना का बपतिस्मा, किस स्रोत से था? स्वर्ग की ओर से या मनुष्यों की ओर से था?”
मुख्य याजक और पुरनिए आपस में परामर्श करने लगते हैं कि क्या जवाब दें। “यदि हम कहें, ‘स्वर्ग की ओर से,’ तो वह कहेगा, ‘फिर, तुम ने क्यों उसका यक़ीन नहीं किया?’ और यदि हम कहें, ‘मनुष्यों की ओर से,’ तो लोगों का डर है, क्योंकि वे सब यूहन्ना को भविष्यवक्ता जानते हैं।”—NW.
अगुओं को समझ में नहीं आ रहा कि क्या जवाब दें। इसलिए वे यीशु को जवाब देते हैं: “हम नहीं जानते।”
यीशु, क्रम से, कहते हैं: “मैं भी तुम्हें नहीं बताता कि में ये काम किस अधिकार से करता हूँ।” मत्ती २१:१९-२७; मरकुस ११:१९-३३; लूका २०:१-८.
▪ मंगलवार, नीसान ११, के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण है?
▪ अंजीर के पेड़ को मुरझाने के द्वारा, यीशु कौनसे सबक़ प्रदान करते हैं?
▪ यीशु उनको किस तरह का जवाब देता है जो उन से यह पूछते हैं कि वह किस अधिकार से यह काम करता है?
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दाख़ की बारी के दृष्टान्तों द्वारा पर्दाफ़ाशवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०६
दाख़ की बारी के दृष्टान्तों द्वारा पर्दाफ़ाश
यीशु मंदिर में है। उसने अभी-अभी धार्मिक अगुओं को उलझन में डाल दिया है जिन्होंने ये जानने की माँग की, कि वह किसके अधिकार से काम कर रहा है। इससे पहले कि वह इस उलझन से निकल पाते, यीशु उन से पूछते हैं: “तुम क्या सोचते हो?” और फिर एक दृष्टान्त के द्वारा, वह दिखाता है कि असल में वे किस तरह के मनुष्य हैं।
“किसी मनुष्य के दो पुत्र थे,” यीशु वर्णन करते हैं। “उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘हे पुत्र, आज दाख़ की बारी में काम कर।’ उसने जवाब दिया, ‘मैं जाता हूँ,’ परन्तु नहीं गया। तब उसने दूसरे के सामने भी यही कहा। जवाब में उसने कहा, ‘मैं नहीं जाऊँगा।’ परन्तु बाद में पछताया और गया। दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की थी?” यीशु पूछते हैं।
“दूसरे ने,” उसके विरोधी जवाब देते हैं।
अतः यीशु समझाते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ कि महसूल लेनेवाले और वेश्याएँ तुम से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर रहें हैं।’ (NW) महसूल लेनेवाले और वेश्याओं ने असल में पहले परमेश्वर की सेवा करने से इनक़ार किया। पर फिर, दूसरे पुत्र की तरह, उन्होंने पश्चात्ताप किया और उनकी सेवा की। दूसरी ओर, धार्मिक अगुओं ने पहले पुत्र की तरह, परमेश्वर की सेवा करने का दावा किया, लेकिन, जैसे यीशु ग़ौर करते हैं: “यूहन्ना [बपतिस्मा देनेवाला] धर्म के मार्ग से तुम्हारे पास आया, और तुमने उसका यक़ीन नहीं किया। पर, महसूल लेनेवाले और वेश्याओं ने उसका यक़ीन किया, और तुम यह देखकर पीछे भी न पछताए कि उसका यक़ीन कर लेते।”—NW.
इसके बाद यीशु दिखाते हैं कि धार्मिक नेता केवल परमेश्वर की सेवा की उपेक्षा करने में ही नहीं चूके। नहीं, परन्तु वे दरअसल बुरे, दुष्ट व्यक्ति हैं। “एक गृहस्थ था,” यीशु वर्णन करते हैं, “जिसने दाख़ की बारी लगाई, और उसके चारों ओर बाड़ा बाँधा, और उस में रस का कुण्ड खोदा, और गुम्मट बनाया, और किसानों को उसका ठेका देकर परदेश चला गया। जब फल का समय निकट आया, तो उसने अपने दासों को उसका फल लेने के लिए किसानों के पास भेजा। पर किसानों ने उसके दासों को पकड़कर, किसी को पीटा, और किसी को मार डाला, और किसी को पत्थरवाह किया। फिर उसने और दासों को भेजा, जो पहलों से अधिक थे, और उन्होंने उन से भी वैसा ही किया।”
“दास” भविष्यवक्ता हैं जिन्हें “गृहस्थ,” यहोवा परमेश्वर, ने अपनी “दाख़ की बारी” के “किसानों” के पास भेजा। ये किसान इस्राएली राष्ट्र के प्रमुख प्रतिनिधि हैं, और परमेश्वर की “दाख की बारी” की पहचान बाइबल इसी राष्ट्र से करती है।
चूँकि “किसान” “दासों” के साथ बुरा व्यवहार करते हैं और उन्हें मार डालते हैं, यीशु व्याख्या करते हैं: “अन्त में उस [दाख़ की बारी के स्वामी] ने अपने पुत्र को उनके पास यह कह कर भेजा, ‘वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे।’ परन्तु “किसानों” ने पुत्र को देखकर आपस में कहा, ‘यह तो वारिस है; आओ, उसे मार डालें और उसकी मीरास ले लें।’ और उन्होंने उसे पकड़ा और दाख़ की बारी से बाहर निकालकर मार डाला।”
अब धार्मिक अगुओं को संबोधित करते हुए, यीशु पूछते हैं: “जब दाख़ की बारी का स्वामी आएगा, वह उन किसानों के साथ क्या करेगा?”
“क्योंकि वह बुरे हैं,” धार्मिक अगुए जवाब देते हैं, “वह उन बुरे लोगों को बुरी रीति से नाश करेगा और दाख़ की बारी का ठेका और किसानों को देगा, जो समय पर उसे फल दिया करेंगे।”
इस प्रकार अज्ञानता से वे अपने ऊपर ही न्यायदण्ड की घोषणा करते हैं, क्योंकि यहोवा का इस्राएल की राष्ट्रीय “दाख़ की बारी” के इस्राएली “किसानों” में वे भी सम्मिलित किए गए हैं। यहोवा उन किसानों से जिस फल का अपेक्षा करते हैं, वह है उसके पुत्र, सच्चे मसीह, पर विश्वास। क्योंकि वे ऐसे फल लाने में विफल हुए, यीशु उन्हें चेतावनी देते हैं: “क्या तुमने कभी पवित्र शास्त्र में [भजन ११८:२२, २३ में] यह नहीं पढ़ा, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने निकम्मा ठहराया था, वही कोने के सिरे का पत्थर हो गया? यह यहोवा की ओर से हुआ, और हमारे देखने में अद्भुत है’? इसलिए मैं तुम से कहता हूँ, कि परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा, और ऐसी राष्ट्र को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा। जो इस पत्थर पर गिरेगा चकनाचूर हो जाएगा। और जिस पर वह गिरेगा, उसे पीस डालेगा।”—NW.
फरीसी और मुख्य याजक अब समझ जाते हैं कि यीशु उनके विषय में बोल रहे हैं, और वे उनको, न्यायपूर्ण “वारिस” को, मार डालना चाहते हैं। एक राष्ट्र के तौर से परमेश्वर के राज्य में शासक होने का ख़ास अनुग्रह उनसे ले लिया जाएगा, और ‘दाख़ की बारी के किसानों’ की एक नई राष्ट्र सृजि जाएगी, जो उचित फल उत्पन्न करेगी।
क्योंकि धार्मिक नेता भीड़ से डरते हैं, जो यीशु को भविष्यवक्ता के रूप में मानती है, वे उन्हें इस मौक़े पर मार डालने की कोशिश नहीं करते। मत्ती २१:२८-४६; मरकुस १२:१-१२; लूका २०:९-१९; यशायाह ५:१-७.
▪ यीशु के पहले दृष्टान्त में दो पुत्र किसे चित्रित करते हैं?
▪ दूसरे दृष्टान्त में, “गृहस्थ,” “दाख़ की बारी,” “किसान,” “दास” और “वारिस” से कौन चित्रित किए गए हैं?
▪ ‘दाख़ की बारी के किसानों’ का क्या होगा, और उनका स्थान कौन लेगा?
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शादी की दावत का दृष्टान्तवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०७
शादी की दावत का दृष्टान्त
दो दृष्टान्तों के ज़रिये, यीशु ने फरीसियों और महायाजकों का पर्दाफ़ाश किया, और वे उसे मार डालना चाहते हैं। पर यीशु द्वारा उनका पर्दाफ़ाश और भी बाकी है। वह उन्हें एक और दृष्टान्त देता है:
“स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने पुत्र की शादी की दावत दिया। और उसने अपने दासों को भेजा, कि नेवताहारियों को शादी की दावत में बुलाए, परन्तु उन्होंने आना न चाहा।”—NW.
यहोवा परमेश्वर वह राजा है जो अपने बेटे, यीशु मसीह, की शादी की दावत की तैयारी करते हैं। अन्त में, १,४४,००० अभिषिक्त अनुयायियों की दुल्हन यीशु मसीह के साथ स्वर्ग में मिल जाएगी। राजा की प्रजा वो इस्राएली लोग हैं, जिन्हें सा.यु.पू. वर्ष १५१३ में नियम की वाचा में लाने पर, “याजकों का राज्य” बनने का सुअवसर मिला। इसलिए, उस अवसर पर, उन्हें शादी की दावत का न्योता आदि में दिया गया।
तथापि, आमंत्रित लोगों को पहला बुलावा सा.यु. वर्ष २९ के पतझड़ से पहले नहीं दिया गया, जब यीशु और उनके शिष्यों ने (राजा के दास) राज्य प्रचार का अपना कार्य आरंभ किया। लेकिन स्वाभाविक इस्राएली जिन्हें यह बुलावा दासों द्वारा सा.यु. वर्ष २९ से सा.यु. वर्ष ३३ तक दिया गया, आने को इच्छुक नहीं थे। इसलिए परमेश्वर ने आमंत्रित जनों का राष्ट्र को एक और मौक़ा दिया, जैसे यीशु आगे कहते हैं:
“फिर उसने और दासों को यह कह कर भेजा, ‘नेवताहारियों से कहो: “देखो, मैं भोज तैयार कर चुका हूँ, मेरे बैल और पाले हुए पशु मारे गए हैं, और सब कुछ तैयार है। ब्याह के भोज में आओ।”’” यह दूसरा और अंतिम बुलावा उन आमंत्रित जनों के लिए सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त से शुरू हुआ, जब पवित्र आत्मा यीशु के शिष्यों पर उँडेला गया। यह बुलावा सा.यु. वर्ष ३६ तक जारी रहा।
तथापि, अधिकांश इस्राएलियों ने इस बुलावे का भी तिरस्कार किया। “परन्तु वे बेपरवाई करके चल दिए,” यीशु कहते हैं, “कोई अपने खेत को, कोई अपने व्यापार को; पर औरों ने, जो बच रहे थे, उसके दासों को पकड़कर उनका अनादर किया और मार डाला।” “लेकिन,” यीशु आगे कहते हैं, “राजा ने क्रोध किया, और अपनी सेना भेजकर उन हत्यारों को नाश किया, और उनके नगर को फूँक दिया।” यह सा.यु. वर्ष ७० में हुआ, जब रोमियों ने यरूशलेम को पूरी तरह से नष्ट कर दिया, और वे हत्यारे भी मारे गए।
इस बीच क्या हुआ उसका वर्णन यीशु करते हैं: “तब [राजा] ने अपने दासों से कहा, ‘शादी की दावत तो तैयार है, परन्तु नेवताहारी योग्य नहीं ठहरे। इसलिए चौराहों में जाओ, और जितने लोग तुम्हें मिले, सब को शादी की दावत में बुला लाओ।’” दासों ने ऐसा ही किया, और “ब्याह का घर मेहमानों से भर गया।”—NW.
मेहमानों को आमंत्रित जनों के शहर से बाहर की सड़कों से इकट्ठा करने का काम सा.यु. वर्ष ३६ में शुरू हुआ। रोमी सेना का अफ़सर कुरनेलियुस और उसका परिवार इकट्ठे किए गए खतनारहित ग़ैर-यहूदियों में से पहले थे। इन ग़ैर-यहूदियों का इकट्ठा किया जाना, जिन में से सब के सब बुलावा को पहले इनक़ार करनेवालों के लिए बदलाव है, बीसवीं शताब्दी तक जारी रहा है।
इस बीसवीं शताब्दी में ही ब्याह का घर भर जाता है। यीशु यह कहते हुए वर्णन करते हैं कि फिर क्या घटित होता है: “जब राजा मेहमानों को देखने भीतर आया, तो उसने वहाँ एक मनुष्य को देखा, जो ब्याह का वस्त्र पहने हुए न था। उसने उससे पूछा, ‘हे मित्र, तू विवाह का वस्त्र पहने बिना यहाँ क्यों आ गया?’ उसका मुँह बन्द हो गया। तब राजा ने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पाँव बाँधकर उसे बाहर अंधियारे में डाल दो, वहाँ उसका रोना और दांतों का पीसना होगा।”—NW.
वह व्यक्ति जो विवाह के वस्त्र के बिना था, ईसाई जगत के नकली मसीहियों को चित्रित करता है। परमेश्वर ने इनकी सही पहचान आत्मिक इस्राएल के रूप में कभी स्वीकार नहीं की। परमेश्वर ने इन्हें राज्य के वारिस के रूप में पवित्र आत्मा से अभिषिक्त नहीं किया। इसलिए उनको बाहर अंधेरे में फेंका गया जहाँ वे विनाश से पीड़ित होंगे।
यीशु अपने दृष्टान्त को यह कहते हुए समाप्त करते हैं: “परन्तु बुलाए हुए तो बहुत हैं, परन्तु चुने हुए थोड़े हैं।” जी हाँ, मसीह की दुल्हन के सदस्य बनने के लिए इस्राएल राष्ट्र में से बहुतों को आमंत्रित किया गया, लेकिन सिर्फ़ थोड़े ही स्वाभाविक इस्राएली चुने गए हैं। १,४४,००० में से अधिकांश मेहमान जिन्हें स्वर्गीय इनाम मिलेगा, ग़ैर-इस्राएली हैं। मत्ती २२:१-१४; निर्गमन १९:१-६; प्रकाशितवाक्य १४:१-३.
▪ शादी की दावत को पहले आमंत्रित किए गए जन कौन हैं, और उन्हें कब यह न्योता दिया गया?
▪ आमंत्रित जनों को पहला बुलावा कब दिया गया, और ये दास कौन हैं जिन्हें बुलावा देने उपयोग किया जाता है?
▪ दूसरा बुलावा कब दिया गया, और बाद में किन्हें निमंत्रण दिया गया?
▪ बिना विवाह का वस्त्र के व्यक्ति किसे चित्रित करता है?
▪ बुलाए गए अनेक जन और चुने हुए थोड़े जन कौन हैं?
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यीशु को फँसाने में वे विफल हुएवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०८
यीशु को फँसाने में वे विफल हुए
क्यों कि यीशु मंदिर में शिक्षा दे रहे हैं और अभी-अभी उन्होंने अपने धार्मिक शत्रुओं को तीन दृष्टान्त बताया जो उनकी दुष्टता का पर्दाफ़ाश करता है, फरीसी क्रोधित हैं और योजना बनाते हैं कि उसे ऐसा कुछ कहने में फँसाए जिससे वे उसे गिरफ़्तार करवा सकते हैं। वे एक षड्यन्त्र रचते हैं और अपने शिष्यों को हेरोदियों के साथ भेजते हैं, ताकि उसकी भूल पकड़ सकें।
ये मनुष्य कहते हैं, “हे गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है, और परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से सिखाता है, और किसी की परवाह नहीं करता, क्योंकि तू मनुष्यों का मुँह देखकर बातें नहीं करता। इसलिए, हमें बता, तू क्या समझता है? कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं?”
उनकी चापलूसी से यीशु धोखा नहीं खाता। वह समझ जाता है कि अगर वह कहें, ‘नहीं, कर देना नियमानुसार सही नहीं है,’ तो वह रोम के ख़िलाफ़ राजद्रोह का दोषी होगा। तथापि, अगर वह कहे, ‘हाँ, तुम्हें कर देना चाहिए,” तो यहूदी, जो रोम का उन पर अधीनता को तुच्छ समझते हैं, उसे नफ़रत करेंगे। इसलिए वह जवाब देता है: “हे कपटियों, मुझे क्यों परखते हो? कर का सिक्का मुझे दिखाओ।”
जब वे उसके पास एक सिक्का ले आते हैं, तो वह पूछता है: “यह मूर्ति और नाम किसका है?”
वे जवाब देते हैं, “कैसर का।”
“जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” खैर, जब ये मनुष्य यीशु का यह प्रभावशाली जवाब सुनते हैं, वे ताज्जुब करते हैं। और उसे छोड़कर चले जाते हैं।
यह देखकर कि फरीसी यीशु के ख़िलाफ़ कुछ करने में विफल हुए हैं, सदूकी, जो यह कहते हैं कि मरे हुओं का पुनरुत्थान नहीं है, उसके पास आकर पूछते हैं: “हे गुरु, मूसा ने कहा था, ‘यदि कोई बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी को ब्याह करके अपने भाई के लिए वंश उत्पन्न करें।’ अब हमारे यहाँ सात भाई थे; पहला ब्याह करके मर गया, और सन्तान न होने के कारण अपनी पत्नी को अपने भाई के लिए छोड़ गया। इसी प्रकार दूसरे और तीसरे ने भी किया, और सातवें तक यही हुआ। सब के बाद वह स्त्री भी मर गयी। सो जी उठने पर, वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि वह सब की पत्नी हो चुकी थी।”
जवाब में यीशु कहते हैं: “क्या तुम इस कारण भूल में नहीं पड़े हो, कि तुम न तो पवित्र शास्त्र को जानते हो, और न ही परमेश्वर की सामर्थ को? क्योंकि जब वे मरे हुओ में से जी उठेंगे, तो उन में ब्याह शादी न होगी, पर स्वर्ग में दूतों की तरह होंगे। पर मरे हुओं के जी उठने के विषय में, क्या तुमने मूसा की पुस्तक में काँटे की झाड़ी की कथा में नही पढ़ा, कि परमेश्वर ने उससे कहा, ‘मैं इब्राहीम का परमेश्वर और इसहाक़ का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर हूँ’? परमेश्वर मरे हुओं का नहीं, बल्कि जीवतों का परमेश्वर है। तुम बड़ी भूल में पड़े हो।”—NW.
यीशु के जवाब से भीड़ फिर से अचंभित है। यहाँ तक कि शास्त्रियों ने भी मंज़ूर किया: “गुरु, तू ने अच्छा कहा।”
जब फरीसी यह देख लेते हैं, कि यीशु ने सूदकियों का मुँह बंद कर दिया है, तो वे एक साथ उसके पास आते हैं। और उन में से एक शास्त्री उसे और ज़्यादा परखने के लिए, पूछता है: “हे गुरु, व्यवस्था में कौनसी आज्ञा बड़ी है?”
यीशु जवाब देते हैं: “सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; ‘हे इस्राएल सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर एक ही यहोवा है। और तू यहोवा अपने परमेश्वर से अपने सारे दिल और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि और अपनी सारी शाक्ति से प्रेम रखना।’ और दूसरी यह है, ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।’ इससे बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।” दरअसल, यीशु आगे कहते हैं: “ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं का आधार है।”—NW.
“हे गुरु, बहुत ठीक! तू ने सच कहा,” वह शास्त्री उन से सहमत है। “‘वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं’; और उससे सारे दिल और सारी बुद्धि और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमों और बलिदानों से बढ़कर है।”—NW.
यह देखकर कि शास्त्री ने समझ से जवाब दिया, यीशु उसे कहते हैं: “तू परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं।”
रविवार, सोमवार और मंगलवार—तीन दिन से यीशु लगातार मंदिर में शिक्षा दे रहे हैं। लोगों ने उसे आनंद से सुना है, फिर भी धार्मिक अगुए उसे मार डालना चाहते हैं, लेकिन अभी तक उनके प्रयत्न विफल कर दिए गए हैं। मत्ती २२:१५-४०; मरकुस १२:१३-३४; लूका २०:२०-४०.
▪ यीशु को फँसाने के लिए फरीसियों ने कौनसा षड्यंत्र रचा, और उसके हाँ या ना जवाब देने से क्या नतीजा होगा?
▪ सदूकियों द्वारा फँसाने की कोशिश को यीशु कैसे विफल करते हैं?
▪ यीशु को परखने के लिए फरीसी और कौनसा प्रयत्न करते हैं, और क्या परिणाम होता है?
▪ यरूशलेम में अपनी अंतिम सेवकाई के दौरान, यीशु कितने दिन मंदिर में शिक्षा देते हैं, और इसका प्रभाव क्या है?
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यीशु अपने विरोधियों का भर्त्सना करते हैंवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १०९
यीशु अपने विरोधियों का भर्त्सना करते हैं
यीशु ने धार्मिक विरोधियों को इतना बख़ूबी से चकरा दिया है कि वे उसे कुछ और पूछने से डरते हैं। इसलिए वह उनकी अज्ञानता का पर्दाफ़ाश करना आरंभ करता है: “मसीह के विषय में तुम क्या समझते हो?” वह पूछता है। “वह किसका सन्तान है?”
“दाऊद का,” फरीसी जवाब देते हैं।
यद्यपि यीशु यह इनक़ार नहीं करते कि दाऊद मसीहा, या ख्रीस्त, का शारीरिक पूर्वज है, वह पूछता है: “तो दाऊद आत्मा में होकर [भजन संहिता ११० में] उसे ‘प्रभु’ क्यों कहता है? ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा: “मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों के नीचे न कर दूँ।”’ भला, जब दाऊद उसे प्रभु कहता है, तो वह उसका पुत्र कैसे हो सकता है?”—NW.
फरीसी ख़ामोश हैं, क्योंकि वे ख्रीस्त, या अभिषिक्त जन, की सच्ची पहचान नहीं जानते। मसीहा दाऊद का मानवी वंश ही नहीं, जैसे फरीसी प्रत्यक्ष रूप से विश्वास करते हैं, परन्तु वह स्वर्ग में अस्तित्व में था और दाऊद का प्रवर, या प्रभु था।
भीड़ और अपने शिष्यों की ओर मुड़कर, यीशु शास्त्रियों और फरीसियों के बारे में चेतावनी देते हैं। चूँकि ये “मूसा की गद्दी पर बैठे हैं,” वे परमेश्वर का नियम पढ़ाते हैं, यीशु उकसाते हैं: “ये तुम से जो कहें वह करना, और मानना।” परन्तु वह आगे कहता है, “उनके काम के अनुसार मत करना, क्योंकि वे कहते तो हैं पर करते नहीं।”—NW.
वे कपटी हैं, और यीशु उनकी भर्त्सना उसी तरह की भाषा में करते हैं जिसे उसने कुछ महीने पहले एक फरीसी के यहाँ भोजन करते समय किया था। “वे अपने सब काम,” वह कहता है, “लोगों को दिखाने के लिए करते हैं।” और वह यह ग़ौर करते हुए उदाहरण प्रदान करता है:
“वे अपने शास्त्रों से समाया हुआ तावीज़ों को चौड़ा करते हैं जिन्हें वे सुरक्षा के तौर पर पहनते हैं।” (NW) ये छोटे तावीज़ में, जो माथे पर या बाँह पर पहने जाते हैं, नियम के चार हिस्से रहते हैं: निर्गमन १३:१-१०, ११-१६; और व्यवस्थाविवरण ६:४-९; ११:१३-२१. लेकिन फरीसी इन तावीज़ों का आकार बढ़ाते हैं, ताकि दूसरों को प्रभावित कर सकें कि वे नियम के प्रति उत्साही हैं।
यीशु आगे कहते हैं कि “वे अपने वस्त्रों की कोरें बढ़ाते हैं।” गिनती १५:३८-४० में इस्राएलियों को अपने वस्त्र पर झब्बा बनाने का आज्ञा दिया गया था, परन्तु फरीसी अपने झब्बों को औरों से ज़्यादा बड़ा बनाते हैं। सब कुछ दिखावे के लिए ही किया जाता है! “वे मुख्य-मुख्य जगहें पसंद करते हैं,” यीशु घोषणा करते हैं।
दुःख की बात ये है कि उसके शिष्य भी इस विशिष्टता की आकांक्षा से प्रभावित हुए हैं। इसलिए वह सलाह देता है: “परन्तु तुम रब्बी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है, और तुम सब भाई हो। और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। और ‘स्वामी’ भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात मसीह।” शिष्यों ने अव्वल होने की आकांक्षा को अपने आप में से दूर करना चाहिए! “जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने,” यीशु निर्देश देते हैं।
उसके बाद वह शास्त्रियों और फरीसियों पर धिक्कार की श्रृंखला का घोषणा करता है, और बार-बार उन्हें कपटी कहता है। वे “मनुष्यों के विरोध में स्वर्ग के राज्य का द्वार बंद करते हैं,” और वह कहता है, “वे विधवाओं के घरों को खा जाते हैं और दिखाने के लिए बड़ी देर तक प्रार्थना करते हैं।”
“हे अंधे अगुवों, तुम पर हाय,” यीशु कहते हैं। वह फरीसियों का आध्यात्मिक मूल्यों की कमी के लिए भर्त्सना करता है, जो उनके द्वारा किए गए निरंकुश भेदों से साबित होता है। उदाहरण के लिए, वे कहते हैं, ‘यदि कोई मंदिर की शपथ खाए तो कुछ नहीं, परन्तु यदि कोई मंदिर के सोने की सौगंध खाए तो उससे बंध जाएगा।’ (NW) उस उपासना का जगह की आध्यात्मिक क़ीमत पर ज़ोर देने के बजाय, वे मंदिर के सोने पर ज़ोर देते हैं, और अपना नैतिक अंधापन भी दिखाते हैं।
फिर, जैसे उन्होंने पहले किया था, यीशु फरीसियों को “व्यवस्था की गम्भीर बातें, अर्थात, न्याय और दया और विश्वास” की उपेक्षा करने के लिए निन्दा करते हैं, जबकि वे तुच्छ जड़ी-बूटियाँ का दसमांश, या दसवाँ अंश, अदा करने में ज़्यादा ध्यान देते हैं।
यीशु फरीसियों को “अंधे अगुवे” कहकर बुलाते हैं, जो “मच्छर को तो छान डालते हैं, परन्तु ऊँट को निगल जाते हैं!” वे अपने दाख़रस से मच्छर को छान डालते हैं, एक कीडा होने के वजह से नहीं लेकिन इसलिए कि वह रैतिक रूप से अशुद्ध है। फिर भी, उनके द्वारा नियम की गम्भीर बातों का अवहेलना ऊँट को निगलने के बराबर है, जो रैतिक रूप से अशुद्ध जानवर है। मत्ती २२:४१-२३:२४; मरकुस १२:३५-४०; लूका २०:४१-४७; लैव्यव्यवस्था ११:४, २१-२४.
▪ फरीसियों को भजन संहिता ११० में दाऊद द्वारा कही बातों के बारे में जब यीशु सवाल करते हैं, तो वे ख़ामोश क्यों रह जाते हैं?
▪ क्यों फरीसी अपने शास्त्र से समाए हुए तावीज़ों को चौड़ा करते और अपने वस्त्र की झब्बों को बढ़ाते हैं?
▪ यीशु अपने शिष्यों को क्या सलाह देते हैं?
▪ फरीसी क्या निरंकुश भेद करते हैं, और किस तरह यीशु उन्हें गम्भीर बातों की उपेक्षा के लिए निन्दा करते हैं?
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मंदिर में सेवकाई पूरी हुईवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११०
मंदिर में सेवकाई पूरी हुई
यीशु आख़री बार मंदिर में दिखाई देते हैं। दरअसल, अपने परीक्षण और मृत्यु दंड की घटनाओं को छोड़, जो भविष्य में तीन दिन बाद है, वे पृथ्वी पर अपनी आम सेवकाई ख़त्म कर रहे हैं। अब वे शास्त्रियों और फरीसियों को फटकारने का अपना काम जारी रखते हैं।
तीन बार वह चिल्लाता है: “हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों, तुम पर हाय!” पहले, वह उन पर धिक्कार का घोषणा करता है क्योंकि वे “कटोरे और थाली को ऊपर-ऊपर से मांजते हैं, परन्तु भीतर अन्धेर और असयंम से भरे हुए हैं।” इसलिए वह डाँटता है: “पहले कटोरे और थाली को भीतर से मांज, कि वह बाहर से भी स्वच्छ हो।”
इसके बाद वह शास्त्रियों और फरीसियों के भीतरी सड़न और दुर्गन्ध के लिए धिक्कारता है जिसे वे बाहरी ईश्वर-भक्ति से छिपाने की कोशिश करते हैं। “तुम चूना फिरी क़ब्रों के समान हो जो ऊपर से तो सुंदर दिखाई देती है, परन्तु भीतर मुर्दों की हड्डियों और सब प्रकार की मलिनता से भरी है।”—NW.
अन्त में, उनका ढोंग भविष्यवक्ताओं के लिए क़ब्र बनाने और सजाने की तत्परता से ज़ाहिर होता है जिससे वे अपनी दानशीलता के कर्मों के प्रति ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। तो भी, जैसे यीशु प्रकट करते हैं, वे “भविष्यवक्ताओं के घातकों की सन्तान” हैं। सचमुच, जो उनकी ढोंग का पर्दाफ़ाश करते हैं वे ख़तरे में है!
आगे, यीशु भर्त्सना के अपने सबसे कड़े शब्दों का उच्चारण करते हैं। “हे साँपों, हे करैतों के बच्चों,” उन्होंने कहा, “तुम गेहन्ना के दण्ड से कैसे बचोगे?” (NW) गेहन्ना वह घाटी है जो यरूशलेम का कूड़ाखाना के जैसे इस्तेमाल किया जाता है। अतः यीशु कह रहे हैं कि शास्त्री और फरीसी अपने दुष्ट चालचलन को जारी रखने के वजह से अनन्त विनाश भुगतेंगे।
जिन्हें यीशु अपने प्रतिनिधी के रूप में भेजते हैं, उनके बारे में वे कहते हैं: “तुम उन में से कितनों को मार डालोगे, और स्तंभ पर चढ़ाओगे, और कितनों को अपनी सभाओं में कोड़े मारोगे और एक नगर से दूसरे नगर में सताते फिरोगे; जिससे धर्मी हाबील से लेकर बिरिक्याह [दूसरे इतिहास में यहोयादा कहा गया] के पुत्र जकर्याह तक, जिसे तुम ने मंदिर और वेदी के बीच में मार डाला था, जितने धर्मियों का लोहू पृथ्वी पर बहाया गया है, वह सब तुम्हारे सिर पर पड़ेगा। मैं तुम से सच कहता हूँ, ये सब बातें इस समय की पीड़ी पर आ पड़ेगी।”—NW.
क्योंकि जकर्याह ने इस्राएल के अगुओं को दण्ड फरमाया, “उन्होंने उस से द्रोह की गोष्ठी करके, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्थरवाह किया।” लेकिन, जैसे यीशु पूर्वबतलाते हैं, इस्राएल ऐसे बहाए गए सब धार्मिक लोहू को चूकाएगा। वे ३७ सालों बाद सा.यु. वर्ष ७० में चुकाते हैं, जब रोमी फ़ौज यरूशलेम को नाश करती है और दस लाख से ज़्यादा यहूदी मर जाते हैं।
जैसे यीशु इस भयंकर स्थिती पर विचार करते हैं, वे दुःखी होते हैं। “यरूशलेम, यरूशलेम,” वे एक बार फिर घोषणा करते हैं, “कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठा कर लूँ! परन्तु तुम ने न चाहा। देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिए उजाड़ छोड़ा जाता है।”
फिर यीशु आगे कहते हैं: “तुम मुझे अब से फिर कभी न देखोगे जब तक तुम नहीं कहोगे, ‘धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है!’” (NW) वह दिन मसीह की उपस्थिती पर होगा जब वे अपने स्वर्गीय राज्य में आएँगे और लोग उन्हें विश्वास की आँखों से देखेंगे।
यीशु अब ऐसी जगह पर चले जाते हैं जहाँ से वे मंदिर में रखी कोष पेटी को और भीड़ को उन में पैसे डालते देख सकते हैं। अमीर लोग बहुत सिक्कों को डालते हैं। लेकिन तब एक गरीब विधवा आती है और बहुत कम क़ीमत के दो छोटे सिक्के डालती है।
अपने शिष्यों को बुलाकर, यीशु कहते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मंदिर के भण्डार में डालने वालों में से इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है।” वे ताज्जुब करते हैं कि यह कैसे हो सकता। इसलिए यीशु समझाते हैं: “उन सब ने अपनी बढ़ती में से डाला है, पर इसने अपनी घटी में से जो कुछ उसका था, अर्थात् अपनी सारी जीविका डाल दी है।” इन सब बातों को कहने के बाद, यीशु आख़री बार मंदिर से चले जाते हैं।
मंदिर का आकार और सुन्दरता पर आश्चर्य करते हुए, उसका एक शिष्य चिल्ला उठता है: “हे गुरु, देख! कैसे-कैसे पत्थर और कैसे-कैसे भवन है!” वाक़ई, पत्थर ११ मीटर लम्बे, ५ मीटर से ज़्यादा चौड़े, और ३ मीटर ऊँचे हैं!
“क्या तुम यह बड़े-बड़े भवन देखते हो?” यीशु जवाब देते हैं। “यहाँ पर पत्थर पर पत्थर भी बचा न रहेगा जो ढाया न जाएगा।”
इन सब बातों को कहने के बाद, यीशु और उनके प्रेरित किद्रोन घाटी को पार करते हैं और जैतून पहाड़ पर चढ़ जाते हैं। यहाँ से वे नीचे शानदार मंदिर देख सकते हैं। मत्ती २३:२५-२४:३; मरकुस १२:४१-१३:३; लूका २१:१-६; २ इतिहास २४:२०-२२.
▪ मंदिर की अपनी आख़री भेंट के दौरान यीशु क्या करते हैं?
▪ शास्त्रियों और फरीसियों का ढोंग किस तरह ज़ाहिर होता है?
▪ “गेहन्ना के दण्ड” का अर्थ क्या है?
▪ यीशु क्यों कहते हैं कि विधवा ने अमीरों से ज़्यादा दान दिया?
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आख़री दिनों का चिह्नवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १११
आख़री दिनों का चिह्न
अब मंगलवार की दोपहर हुई है। जैसे यीशु जैतुन के पहाड़ पर बैठकर नीचे मंदिर को देख रहे हैं, पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना अकेले में उनके पास आते हैं। वे मंदिर के बारे में चिंतित हैं, क्योंकि यीशु ने अभी-अभी पूर्वबतलाया कि उस में पत्थर पर पत्थर भी नहीं छोड़ा जाएगा।
लेकिन जैसे वे यीशु के पास आते हैं स्पष्टतया उनके मन में और भी कुछ है। कुछ हफ़्तों पहले, उसने अपनी “उपस्थिति” के बारे में बतलाया, जिसके दौरान “मनुष्य का पुत्र प्रकट होना था।” और इससे भी पहले अवसर पर, उसने उनको “इस रीति-व्यवस्था के अन्त” (NW) के बारे में बताया था। इसलिए प्रेरित काफी जिज्ञासु हैं।
वे कहते हैं, “हम से कह कि ये बातें कब होंगी [जिसका परिणाम यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश है], और तेरी उपस्थिति का, और इस रीति-व्यवस्था के अन्त का क्या चिह्न होगा?” (NW) दरअसल, उनका सवाल का तीन भाग हैं। पहला, वे यरूशलेम और उसके मंदिर के अन्त के बारे में, फिर राज्य सत्ता में यीशु की उपस्थिति के बारे में, और आख़िर में समस्त रीति-व्यवस्था के अन्त के बारे में जानना चाहते हैं।
अपने विस्तृत जवाब में, यीशु सवाल के तीनों हिस्सों को जवाब देते हैं। वे एक चिह्न देते हैं जो यहूदी रीति-व्यवस्था के अन्त की पहचान करता है; लेकिन वे इससे भी ज़्यादा बताते हैं। वे ऐसा एक चिह्न भी देते हैं जो उनके भावी शिष्यों को चौकन्न करेगा ताकि वे जान सकें कि वे उनकी उपस्थिति के दौरान और समस्त रीति-व्यवस्था के अन्त के निकट जी रहे हैं।
जैसे-जैसे साल बीतते जाते हैं, प्रेरित यीशु की भविष्यवाणी की पूर्ति देखते हैं। जी हाँ, जो कुछ उन्होंने पूर्वबतलाया था वे उनके ही दिनों में घटित होने लगते हैं। इस प्रकार, जो मसीही ३७ साल बाद, सा.यु. वर्ष ७० में ज़िन्दा हैं, वे यहूदी रीति-व्यवस्था का मंदिर सहित नाश से अनजान पकड़े नहीं जाते।
बहरहाल, मसीह की उपस्थिति और रीति-व्यवस्था का अन्त सा.यु. वर्ष ७० में नहीं होता है। राज्य सत्ता में उनकी उपस्थिति काफ़ी समय बाद होती है। लेकिन कब? यीशु की भविष्यवाणी पर ग़ौर करने से यह प्रकट होता है।
यीशु पूर्वबतलाते हैं कि “लड़ाई और लड़ाइयों की चर्चा” होगी। वे कहते हैं, “राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा,” और अकाल, भूकम्प और महामरियाँ होंगी। उनके शिष्यों से नफरत की जाएगी और वे मारे जाएँगे। झूठे भविष्यवक्ता उठेंगे और बहुतों को बहकाएँगे। अधर्म बढ़ेगा, और बहुतों का प्रेम ठंडा हो जाएगा। उसी समय पर, परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सब राष्ट्रों को गवाही के जैसे प्रचार किया जाएगा।
हालाँकि सा.यु. वर्ष ७० में यरूशलेम के नाश से पहले यीशु की भविष्यवाणी की सीमित पूर्ति होती है, उसकी मुख्य पूर्ति उनकी उपस्थिति और रीति-व्यवस्था के अन्त के दौरान होती है। १९१४ से जगत की घटनाओं का पूनरीक्षण प्रकट करता है कि उस साल से यीशु की महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणी की मूख्य पूर्ति हो रही है।
यीशु का चिह्न का एक और हिस्सा “उजाड़नेवाली घृणित वस्तु” का प्रकटन है। सा.यु. वर्ष ६६ में यह घृणित वस्तु रोम की ‘डेरा डाली हुई सेना’ के रूप में दिखाई देती है जो यरूशलेम को घेर लेकर मंदिर की दिवार नष्ट करती है। “घृणित वस्तु” वहाँ खड़ी है जहाँ उसे नहीं होना चाहिए।
चिह्न की मुख्य पूर्ति में, घृणित वस्तु राष्ट्र संघ और इसका उत्तराधिकारी, संयुक्त राष्ट्र संघ है। ईसाई जगत विश्व शांति के लिए इस संगठन को परमेश्वर के राज्य का बदलाई मानती है। कितना घृणित! इसलिए, ऐन वक़्त पर, संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ संबंधित राजनीतिक शक्तियाँ ईसाईजगत (प्रतिरूपी यरूशलेम) पर हमला करेंगी और उसे उजाड़ देंगी।
इसलिए यीशु पूर्वबतलाते हैं: “उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरंभ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।” सामान्य युग ७० में यरूशलेम का नाश सचमुच एक बड़ा क्लेश है, जिस में दस लाख से भी अधिक लोग मारे गए। यीशु की भविष्यवाणी के इस हिस्से की मुख्य पूर्ति अत्यधिक बड़ी होगी।
आख़री दिनों के दौरान भरोसा
जैसे-जैसे मंगलवार, नीसान ११, ढल रहा है, यीशु राज्य सत्ता में अपनी उपस्थिति और रीति-व्यवस्था के अन्त के चिह्न के विषय में अपने प्रेरितों के साथ विचार-विमर्श जारी रखते हैं। वे उन्हें झूठे मसीह का पीछा करने के बारे में चेतावनी देते हैं। वे कहते हैं, “यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा देने” की कोशिशें की जाएँगीं। लेकिन, दूरदर्शी ऊकाबों की तरह, यह चुने हुए जन वहाँ इकट्ठे होंगे जहाँ सच्चा आध्यात्मिक भोजन पाया जाता है, अर्थात, सच्चे मसीह के साथ उनकी अदृश्य उपस्थिति में। वे झूठे मसीह के साथ एकत्रित होकर भरमाए नहीं जाएँगे।
झूठे मसीहा सिर्फ़ एक दृश्य प्रकटन कर सकते हैं। इसकी तुलना में, यीशु की उपस्थिति अदृश्य होगी। यीशु कहते हैं कि क्लेश के आरंभ होने के बाद: “सूरज अन्धेरा हो जाएगा, और चाँद अपना प्रकाश नहीं देगा।” (NW) हाँ, यह मानवीय अस्तित्व का सबसे अंधकारमय समय होगा। ऐसा प्रतीत होगा मानो दिन के समय सूरज अँधेरा बन गया है, और मानो रात के समय चाँद अपनी रोशनी नहीं देता है।
“आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी,” यीशु आगे कहते हैं। इस प्रकार वे सूचित करते हैं कि प्राकृतिक स्वर्ग एक शकुनात्मक रूप लेंगे। पिछले मानवीय इतिहास में अनुभव किया हुआ किसी भी डर और हिंसा से यह कहीं ज़्यादा होगा।
परिणामस्वरूप, यीशु कहते हैं, “देश देश के लोगों को संकट होगा, क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएँगे, और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते-देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।” वाक़ई, जैसे-जैसे मानवीय अस्तित्व का यह सबसे अंधकारमय समय अपनी समाप्ति के निकट आता है, “मनुष्य के पुत्र का चिह्न आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे।”
परन्तु जब इस दुष्ट रीति-व्यवस्था को नाश करने ‘मनुष्य का पुत्र बड़ी सामर्थ के साथ आएगा,’ तब हर व्यक्ति विलाप नहीं करते रहेंगे। “चुने हुए,” १,४४,००० जो मसीह के साथ उनके स्वर्गीय राज्य में सहभागी होंगे, विलाप नहीं करेंगे, न ही उनके साथी, जिन्हें यीशु ने कुछ समय पहले “अन्य भेड़ें” पुकारा था। मानवीय इतिहास के सबसे अन्धकारमय समय के दौरान रहते हुए भी, यह लोग यीशु के प्रोत्साहन की ओर प्रतिक्रिया दिखाते हैं: “जब ये बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपने सिर ऊपर उठाना, क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट है।”
ताकि आख़री दिनों के दौरान जीनेवाले उनके शिष्य अन्त की निकटता को पहचान सकें, यीशु यह दृष्टान्त देते हैं: “अंजीर के पेड़ और सब पेड़ों को देखो: ज्योंही उन की कोंपले निकलती है, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो कि गरमी नज़दीक है। इसी रीति से जब तुम ये बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है। मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो ले, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी।”—NW.
इसलिए, जब उनके शिष्य चिह्न के अनेक निराले लक्षणों को पूरा होते देखते हैं, तो उनको यह समझ लेना चाहिए कि रीति-व्यवस्था का अन्त नज़दीक है और परमेश्वर का राज्य जल्द ही सारी दुष्टता को मिटा देगा। दरअसल, अंत यीशु ने पूर्वबतलायी हुई सभी बातों की पूर्ति देखनेवाले लोगों के जीवन-काल में ही घटित होगी! उस महत्त्वपूर्ण आख़री दिनों के दौरान जीवित शिष्यों को चेतावनी देते हुए, यीशु कहते हैं:
“सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन और जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। इसलिए जागते रहो, और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े होने के योग्य बनो।”
समझदार और मूर्ख कुँवारियाँ
यीशु राज्य सत्ता में अपनी उपस्थिति का चिह्न के लिए अपनी प्रेरितों की विनती का जवाब दे रहे हैं। अब वे चिह्न के अतिरिक्त लक्षणों को तीन दृष्टान्त, या उदाहरणों में देते हैं।
उनकी उपस्थिति के दौरान जी रहे लोग हर एक दृष्टान्त की पूर्ति को देख सकेंगे। वे पहले दृष्टांत का परिचय इन शब्दों से करते हैं: “तब स्वर्ग का राज्य उन दस कुँवारियों के समान होगा जो अपनी मशालें लेकर दूल्हे से भेंट करने को निकलीं। उन में पाँच मूर्ख और पाँच समझदार थीं।”
“स्वर्ग का राज्य दस कुँवारियों के समान होगा,” इस अभिव्यक्ति से यीशु का कहने का मतलब यह नहीं कि स्वर्गीय राज्य के उत्तराधिकारी में से आधे मूर्ख और आधे समझदार होंगे! नहीं, बल्कि उनका कहने का मतलब यह है कि स्वर्ग के राज्य के संबंध में, इसके या उसके जैसे विशेषता है, या राज्य से संबंधित मामले अमुक वस्तु के जैसे होंगे।
दस कुँवारियाँ उन सब मसीहियों का प्रतीक हैं जो स्वर्गीय राज्य में जाने की स्थिति में हैं या जाने का दावा कर रहे हैं। सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त में मसीही कलीसिया पुनरुत्थित, महिमान्वित दूल्हा, यीशु मसीह को विवाह में प्रतिज्ञा किया गया। लेकिन विवाह भविष्य में किसी अनिर्दिष्ट समय पर स्वर्ग में होनेवाला था।
इस दृष्टान्त में, दस कुँवारियाँ दूल्हे का स्वागत करने और विवाह के जुलूस में शामिल होने के उद्देश्य से जाती हैं। जब वह पहुँचेगा, वे अपनी मशालों से जुलूस के मार्ग को प्रकाशमान् करेंगी, और इस प्रकार वे दूल्हे का आदर करती हैं जैसे वह अपनी दूल्हन को उस के लिए बनाए घर में लाता है। तथापि, यीशु व्याख्या करते हैं: “मूर्खों ने अपनी मशालें तो लीं, परन्तु अपने साथ तेल नहीं लिया। परन्तु समझदारों ने अपनी मशालों के साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी भर लिया। जब दूल्हे के आने में देर हुई, तो वे सब ऊँघने लगीं, और सो गईं।”
अधिक समय तक दूल्हे की देर सूचित करती है कि शासन करनेवाले राजा के रूप में मसीह की उपस्थिति दूर भविष्य में होगी। आख़िरकार, वर्ष १९१४ में वे अपने सिंहासन पर आते हैं। उससे पहले लम्बी रात के दौरान, सारी कुँवारियाँ सो जाती हैं। लेकिन उन्हें इस के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता है। मूर्ख कुँवारियों की कुप्पियों में तेल न होने के कारण उन्हें दोषी ठहराया जाता है। यीशु व्याख्या करते हैं कि किस तरह दूल्हे के पहुँचने से पहले कुँवारियाँ जाग जाती हैं: “आधी रात को धूम मची, ‘देखो, दूल्हा आ रहा है, उस से भेंट करने के लिए चलो।’ तब वे सब कुँवारियाँ उठकर अपनी मशालें ठीक करने लगीं। मूर्खों ने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से कुछ हमें भी दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझी जाती हैं।’ समझदारों ने उत्तर दिया, ‘कदाचित हमारे और तुम्हारे लिए पूरा न हो। भला तो यह है, कि तुम बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिए मोल ले लो!’”
तेल उस चीज़ का प्रतीक है, जो सच्चे मसीहों को प्रदीपकों के जैसे चमकते रखती है। यह परमेश्वर का उत्प्रेरित वचन है, जिसे सच्चे मसीही कसकर पकड़े रहते हैं, और साथ ही पवित्र आत्मा है, जो इस वचन को समझने में उनकी मदद करती है। शादी की दावत को जानेवाली जुलूस के दौरान दूल्हे के स्वागत में रोशनी फैलाने के लिए यह आध्यात्मिक तेल समझदार कुँवारियाँ को समर्थ करता है। पर मूर्ख कुँवारी वर्ग में, अपनी कुप्पियों में, वह आवश्यक आध्यात्मिक तेल नहीं है। क्या हो रहा है इसका वर्णन यीशु करते हैं:
“जब [मूर्ख कुँवारियाँ तेल] मोल लेने जा रही थीं, तो दूल्हा आ पहुँचा, और जो तैयार थीं, वे उसके साथ ब्याह के घर में चली गईं, और द्वार बन्द किया गया। इसके बाद वे दूसरी कुँवारियाँ भी आकर कहने लगीं, ‘हे स्वामी, हमारे लिए द्वार खोल दे! उसने उत्तर दिया, ‘मैं तुम से सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।”
मसीह अपने स्वर्गीय राज्य में आने के बाद, सच्चे अभिषिक्त मसीहियों का समझदार कुँवारी वर्ग, आए हुए दूल्हे के स्तुति में इस अन्धकारमय जगत में रोशनी फैलाने के अपने ख़ास अनुग्रह के लिए जागते हैं। लेकिन जो मूर्ख कुँवारियों द्वारा चित्रित किए गए, इस अभिनंदनीय स्तुति देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए जब समय आता है, मसीह उनको स्वर्ग में हो रहे शादी की दावत को दरवाज़ा नहीं खोलते। वे इनको जगत की सबसे गहरी रात के अन्धेरे में, सब अधर्म के श्रमिकों के साथ नाश होने के लिए बाहर छोड़ देते हैं। “इसलिए जागते रहो,” यीशु अन्त में कहते हैं, “क्योंकि तुम न उस दिन को जानते हो, न उस घड़ी को।”
तोड़ों का दृष्टान्त
यीशु एक और दृष्टान्त, तीन दृष्टान्तों की श्रृंख्ला में दूसरा, देने के द्वारा जैतून पहाड़ पर अपने प्रेरितों के साथ विचार-विमर्श जारी रखते हैं। कुछ दिनों पहले, जब वे यरीहो में थे, उन्होंने मुहरों का दृष्टान्त दिया यह दिखाने कि राज्य के आने में काफी समय बाकी है। अभी सुनाया जानेवाला दृष्टान्त, जिस में काफी मिलता-जुलता विशेषताएँ हैं, अपनी पूर्ति में राज्य सत्ता में मसीह की उपस्थिती के दौरान गतिविधियों का वर्णन करती है। यह सचित्र करता है कि जब तक उसके शिष्य इस पृथ्वी पर हैं, उनको ‘उसकी सम्पत्ति’ बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए।
यीशु शुरू करते हैं: “क्योंकि यह [अर्थात, राज्य के साथ मिला हुआ हालात] उस मनुष्य की सी दशा है जिस ने परदेश को जाते समय अपने दासों को बुलाकर, अपनी सम्पत्ति उन को सौंप दी।” वह मनुष्य यीशु है जो, स्वर्ग में जाने से पहले, अपने दासों को—स्वर्गीय राज्य में जाने की स्थिति में शिष्यों को—अपनी सम्पत्ति सौंपता है। यह सम्पत्ति भौतिक सम्पत्ति नहीं, पर उस पोषित क्षेत्र को चित्रित करती है जिस में उसने और अधिक शिष्यों को ले आने की संभावना तैयार किया है।
यीशु स्वर्ग जाने से कुछ समय पहले अपनी सम्पत्ति अपने दासों को सौंपते हैं। वे ऐसा कैसे करते हैं? उनको पृथ्वी के छोर तक राज्य संदेश प्रचार करने के द्वारा वे पोषित क्षेत्र में काम करते रहने का आदेश देते हैं। जैसे यीशु कहते हैं: “उसने एक को पाँच तोड़े, दूसरे को दो, तीसरे को एक, हर एक का उसकी सामर्थ के अनुसार दिया, और वह परदेश चला गया।”
इस प्रकार आठ तोड़े—मसीह की सम्पत्ति—दासों की क़ाबिलियत, या आध्यात्मिक सम्भावनाओं के अनुसार बाँटे गए। दासों का अर्थ, शिष्यों के वर्ग हैं। पहली शताब्दी में, वह वर्ग जिसे पाँच तोड़े दिए गए स्पष्टतया प्रेरितों को शामिल करता है। यीशु आगे बताते हैं कि पाँच और दो तोड़े दिए गए दासों ने अपने राज्य के प्रचार और शिष्य बनाने के काम से तोड़ों को दुगना किया। लेकिन, एक तोड़ा दिया गया दास ने उसे ज़मीन में छुपा दिया।
“बहुत दिनों के बाद,” यीशु आगे कहते हैं, “दासों का स्वामी आया और उन से लेखा लेने लगा।” इस २०वीं शताब्दी में, लगभग १,९०० साल बाद, यीशु लेखा लेने वापस आए, सो यह सचमुच, “बहुत दिनों के बाद” था। फिर यीशु व्याख्या करते हैं:
“जिस को पाँच तोड़े मिले थे, उस ने पाँच तोड़े और लाकर कहा, ‘हे स्वामी, तू ने मुझे पाँच तोड़े सौंपे थे; देख, मैं ने पाँच तोड़े और कमाए हैं।’ उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘धन्य हे अच्छा और विश्वासयोग्य दास! तू थोड़े में विश्वासयोग्य रहा, मैं तुझे बहुत वस्तुओं का अधिकारी बनाऊँगा, अपने स्वामी के आनंद मे सम्भागी हो।’” जिस दास ने दो तोड़े पाए उसने भी उसी प्रकार अपने तोड़ों को दुगना किया, और उसने भी वैसा ही सराहना और इनाम पाया।
लेकिन, कैसे ये विश्वासी दास अपने स्वामी के आनंद में शरीक होते हैं? उनके स्वामी, यीशु मसीह, का आनंद राज्य पाने में है जब वे परदेश अपने पिता के पास स्वर्ग में चले गए थे। आधुनिक समयों में, विश्वासयोग्य दास को राज्य की और भी ज़िम्मेदारियाँ सौंपे जाने में बड़ी ख़ुशी है, और जैसे वे अपनी पार्थिव अवधि पूरी करते हैं, उन्हें स्वर्गीय राज्य को पुनरुत्थित होने की पराकाष्ठा तक पहुँचनेवाली ख़ुशी है। पर तीसरे दास के बारे में क्या?
“हे स्वामी, मैं जानता था कि तू कठोर मनुष्य है,” वह दास शिकायत करता है। “सो मैं डर गया और जाकर तेरा तोड़ा मिट्टी में छिपा दिया। देख, जो तेरा है वह यह है।” दास ने जानबूझकर प्रचार करने और शिष्य बनाने के द्वारा पोषित क्षेत्र में काम करने से इनक़ार कर दिया। इसलिए स्वामी उसे “दुष्ट और आलसी दास” पुकारकर उस पर न्याय सुनाते हैं: “वह तोड़ा उससे ले लो . . . और इस निकम्मे दास को बाहर अन्धेरे में फेंक दो, जहाँ उसका रोना और दाँत पीसना होगा।” जो इस दुष्ट दास वर्ग के हैं, बाहर फेंके जाने के कारण, किसी भी आध्यात्मिक आनंद से वंचित कर दिए गए हैं।
यह उन सब के लिए एक गंभीर सबक़ है जो मसीह के अनुयायी होने का दावा करते हैं। अगर वे उनका सराहना और इनाम का आनंद उठाना चाहते हैं, और बाहर के अन्धकार में फेंके जाने और आख़िरी नाश से बचना चाहते हैं, उन्होंने प्रचार कार्य में पूरा हिस्सा लेने से अपने स्वर्गीय स्वामी की सम्पत्ति का बढ़ावे के लिए काम करना चाहिए। क्या आप इस संबंध में अध्यवसायी हैं?
जब मसीह राज्य सत्ता में आते हैं
यीशु अभी भी अपने प्रेरितों के साथ जैतून के पहाड़ पर हैं। उनकी उपस्थिती और रीति-व्यवस्था के अन्त का चिह्न के लिए उनकी विनती के जवाब में, वे अब उन्हें इन तीन दृष्टान्तों की श्रृंखला में आख़री दृष्टान्त बताते हैं। “जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे,” यीशु आरंभ करते हैं, “तब वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा।”
इंसान स्वर्गदूतों को उनकी स्वर्गीय महिमा में नहीं देख सकते। तो स्वर्गदूतों के साथ मनुष्य के पुत्र, यीशु मसीह, का आगमन मानवी आँखों को अदृष्य होगा। आगमन वर्ष १९१४ में होता है। लेकिन किस उद्देश्य के लिए? यीशु समझाते हैं: “सब जातियाँ उसके सामने इकट्ठी की जाएँगीं; और जैसा चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग कर देता है वैसा ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा। और वह भेड़ों को अपनी दहिनी ओर और बकरियों को बाईं ओर खड़ी करेगा।”
कृपापात्र पक्ष के तरफ अलग रखे हुओं का क्या होगा, इसका वर्णन करते हुए यीशु कहते हैं: “तब राजा अपनी दहिनी ओर वालों से कहेगा, ‘हे मेरे पिता के धन्य लोगों, आओ, उस राज्य के अधिकारी हो जाओ, जो जगत के आदि से तुम्हारे लिए तैयार किया हुआ है।’” इस दृष्टान्त की भेड़ें मसीह के साथ स्वर्ग में राज्य नहीं करेंगी, लेकिन वे पार्थिव प्रजा बनने से राज्य के अधिकारी होंगे। “जगत की आदि” तब हुई जब आदम और हव्वा ने पहले बच्चों को उत्पन्न किया, जो मनुष्यजाति की छुड़ौती के परमेश्वरीय प्रबंध से लाभ उठा सकते हैं।
लेकिन क्यों भेड़ों को राजा के कृपापात्र दाहिनी ओर अलग किया गया? “क्योंकि मैं भूखा था,” राजा जवाब देते हैं, “और तुम ने मुझे खाने को दिया; मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी पिलाया। मैं परदेशी था, तुम ने मुझे अपने घर में ठहराया। मैं नंगा था, तुम ने मुझे कपड़े पहनाए। मैं बीमार था, तुम ने मेरी सुधि ली। मैं बन्दीगृह में था, तुम मुझ से मिलने आए।”
चूँकि भेड़ें पृथ्वी पर हैं, वे जानना चाहते हैं कि कैसे उन्होंने स्वर्गीय राजा के लिए ऐसे भले काम किए। “हे प्रभु, हम ने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया,” वे पुछते हैं, “या प्यासा देखा, और पिलाया? हम ने कब तुझे परदेशी देखा और अपने घर में ठहराया या नंगा देखा और कपड़े पहिनाए? हम ने कब तुझे बीमार या बन्दीगृह में देखा और तुझ से मिलने आए?”
“मैं तुझ से सच कहता हूँ,” राजा जवाब देते हैं, “तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।” १,४४,००० में से पृथ्वी पर शेष जन मसीह के भाई हैं जो उनके साथ स्वर्ग में राज्य करेंगे। यीशु कहते हैं कि उन भाइयों को भला करना उनको भला करने के बराबर है।
इसके बाद, राजा बकरियों को संबोधित करते हैं। “हे स्रापित लोगों, मेरे सामने से उस अनन्त आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है। क्योंकि मैं भूखा था, और तुम ने मुझे खाने को नहीं दिया, मैं प्यासा था, और तुम ने मुझे पानी नहीं पिलाया। मैं परदेशी था, और तुम ने मुझे अपने घर में नहीं ठहराया; मैं नंगा था, और तुम ने मुझे कपड़े नहीं पहनाए; बीमार और बन्दीगृह में था, और तुम ने मेरी सुधि न ली।”
लेकिन, बकरियाँ शिकायत करती हैं: “हे प्रभु, हम ने तुझे कब भूखा, या प्यासा, या परदेशी, या नंगा, या बीमार, या बन्दीगृह में देखा, और तेरी सेवा टहल न की?” बकरियों का प्रतिकूल दृष्टि से न्याय उसी आधार पर किया गया जिस तरह भेड़ों को अनुकूल दृष्टि से न्याय किया जाता है। “तुम ने जो [मेरे इन भाइयों से] इन छोटों से छोटों में से किसी एक के साथ नहीं किया,” यीशु जवाब देते हैं, “वह मेरे साथ भी नहीं किया।”
इसलिए मसीह की राज्य सत्ता में उपस्थिति, बड़े क्लेश में इस दुष्ट रीति-व्यवस्था के अन्त से कुछ समय पहले, न्याय का समय होगा। बकरियाँ “अनन्त दण्ड में जाएँगे, परन्तु धर्मी [भेड़ें] अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।” मत्ती २४:२-२५:४६; १३:४०, ४९; मरकुस १३:३-३७; लूका २१:७-३६; १९:४३, ४४; १७:२०-३०; २ तीमुथियुस ३:१-५; यूहन्ना १०:१६; प्रकाशितवाक्य १४:१-३.
▪ क्या प्रेरितों का सवाल को सुझाता है, लेकिन स्पष्टतया उनके मनों में और क्या है?
▪ सा.यु. ७० में यीशु की भविष्यवाणी का कौनसा हिस्सा पूरा होता है, लेकिन तब क्या घटित नहीं होता है?
▪ यीशु की भविष्यवाणी की पहली पूर्ति कब है, और उसकी प्रमुख पूर्ति कब है?
▪ अपनी पहली और आख़री पूर्ति में घृणित वस्तु क्या है?
▪ बड़े क्लेश की आख़री पूर्ति यरूशलेम के नाश के साथ क्यों नहीं है?
▪ जगत की कौनसी हालतें मसीह की उपस्थिति को चिह्नित करती हैं?
▪ कब ‘पृथ्वी के सब कुल के लोग अपनी छाती पीटेंगे,’ लेकिन मसीह के अनुयायी क्या करते होंगे?
▪ अपने भावी शिष्यों को अन्त की निकटता समझने में मदद करने के लिए यीशु क्या दृष्टान्त देते हैं?
▪ अपने उन शिष्यों को जो अन्त के दिनों में जी रहे होंगे यीशु क्या चेतावनी देते हैं?
▪ दस कुँवारियाँ किसकी प्रतीक हैं?
▪ दूल्हे को विवाह में मसीही कलीसिया कब वादा किया गया, लेकिन शादी की दावत में अपनी दुल्हन को ले जाने दूल्हा कब पहुँचता है?
▪ तेल किसे चित्रित करता है, और उसका होना समझदार कुँवारियों को क्या करने के क़ाबिल बनाता है?
▪ शादी की दावत कहाँ होती है?
▪ मूर्ख कुँवारियाँ कौनसे शानदार इनाम को खो देती हैं, और उनकी दशा क्या है?
▪ तोड़ों का दृष्टान्त कौनसा सबक़ देता है?
▪ दास कौन हैं, और वह सम्पत्ति क्या है जिससे वे सौंपे गए हैं?
▪ स्वामी लेखा लेने कब आते हैं, और वह क्या पाता है?
▪ वह आनंद क्या है जिस में विश्वासयोग्य दास प्रवेश करते हैं, और दुष्ट, तीसरा दास, के साथ क्या होता है?
▪ मसीह की उपस्थिति क्यों अदृश्य होना चाहिए, और उस समय वे क्या काम करते हैं?
▪ किस अर्थ में भेड़ें राज्य के वारिस होते हैं?
▪ “जगत की आदि” कब हुई?
▪ लोगों का भेड़ या बकरी होने का न्याय किस आधार पर किया जाता है?
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यीशु की आख़री फसह क़रीब हैवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११२
यीशु की आख़री फसह क़रीब है
जैसे मँगलवार, निसान ११, समाप्त हो रहा है, यीशु जैतून के पहाड़ पर शिष्यों को शिक्षा देना ख़त्म करते हैं। यह कितना व्यस्त, कठिन दिन था! अब, शायद रात के लिए बैतनियाह को लौटते समय, वे अपने प्रेरितों को बताते हैं: “तुम जानते हो, कि दो दिन के बाद फसह का पर्व होगा, और मनुष्य का पुत्र स्तंभ पर चढ़ाए जाने के लिए पकड़वाया जाएगा।”—NW.
यीशु स्पष्टः अगला दिन, बुधवार, निसान १२, अपने प्रेरितों के साथ एकान्त में बिताते हैं। पिछले दिन, उसने धार्मिक अगुओं को सरे आम फटकारा था, और वह समझ जाता है कि वे उसे मार डालने के लिए ढूँढ़ रहे हैं। इसलिए बुधवार को वह खुले आम दिखायी नहीं देता, चूँकि वह अगले संध्या को अपने प्रेरितों के साथ फसह मनाने में किसी चीज़ से बाधा नहीं चाहता है।
इस बीच, महायाजक काइफ़ा के आँगन में प्रजा के पुरनिए और अन्य महायाजक इकट्ठे हो गए हैं। पिछले दिन यीशु के शब्दों के आक्रमण से चिढ़कर, वे धूर्त युक्ति से उसे पकड़ने और मार डालने की योजना बना रहे हैं। फिर भी वे कहते हैं: “पर्व के समय नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोगों के बीच में बलवा मच जाए।” वे लोगों से डरते हैं, जिनका अनुग्रह यीशु भोग रहे हैं।
जब धार्मिक अगुए दुष्टता से यीशु को मार डालने का षड्यंत्र बना रहे हैं, उनके यहाँ एक मेहमान आता है। वे हैरान होते हैं, जब वह यीशु का एक प्रेरित, यहूदा इस्करियोती है, जिस में शैतान ने अपने स्वामी को पकड़वाने का नीच विचार उत्पन्न किया है! वे कितना ख़ुश हैं जब यहूदा पूछता है: “यदि मैं उसे तुम्हारे हाथ पकड़वा दूँ, तो मुझे क्या दोगे?” मूसा के नियम वाचा के मुताबिक वे खुशी से उसे एक दास की कीमत, ३० चाँदी के सिक्के देने के लिए तैयार हो गए। तब से, यहूदा यीशु को पकड़वाने का एक बढ़िया मौक़ा की खोज में है जब उसके आस पास भीड़ न हों।
बुधवार सूर्यास्त के समय, निसान १३ शुरू होता है। यीशु यरीहो से शुक्रवार के दिन आए थे, सो यह बैतनियाह में उनकी छठवी और अन्तिम रात है। अगले दिन, गुरुवार, फसह का पर्व के लिए, जो सूर्यास्त के समय आरंभ होता है, आख़री तैयारियों की ज़रूरत होगी। इसी समय पर फसह के मेम्ने को मार डाला जाना चाहिए, और फिर पूरा मेम्ना भूना जाता है। वे पर्व कहाँ मनाएँगे, और कौन तैयारियाँ करेगा?
यीशु ने यह तफ़सील नहीं दिए हैं, शायद इसलिए कि यहूदा महायाजकों को यह सूचना न दे ताकि वे फसह के पर्व के दौरान उसे गिरफ़्तार न कर सकें। लेकिन अब, संभवतः गुरुवार दोपहर में ही यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहते हुए बैतनियाह से भेजा: “जाओ और हमारे खाने के लिए फसह तैयार करो।”
वे पूछते हैं, “तू कहाँ चाहता है, कि हम तैयार करें?”
यीशु समझाते हैं, “जब तुम नगर में प्रवेश करोगे, एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा। जिस घर में वह जाए, तुम उसके पीछे हो लेना। और उस घर के स्वामी से कहो, ‘गुरु तुझ से कहता है: “वह पाहुनशाला कहाँ है जिस में मैं अपने चेलों के साथ फसह खाऊँ?”’ वह तुम्हें एक सजी सजाई बड़ी अटारी दिखा देगा। वहाँ तैयारी करना।”
इस में संदेह नहीं कि उस घर का स्वामी यीशु का एक शिष्य है जो शायद इस ख़ास मौके के लिए, यीशु का उसके घर का उपयोग करने की विनती का पूर्वानुमान करता है। बहरहाल, जब पतरस और यूहन्ना यूरूशलेम पहुँचते हैं, तो वैसा ही पाते हैं जैसा यीशु ने पूर्वबतलाया था। सो यह दोनों मेम्ने का इंतज़ाम करते हैं और यह देख लेते हैं कि १३ फसह का पर्व मनानेवाले, यीशु और उनके १२ प्रेरित, की ज़रूरतों का ध्यान रखने के लिए अन्य प्रबंध भी पूरे हो गए हैं। मत्ती २६:१-५, १४-१९; मरकुस १४:१, २, १०-१६; लूका २२:१-१३; निर्गमन २१:३२.
▪ यीशु ने बुधवार को प्रत्यक्षतः क्या किया, और क्यों?
▪ महायाजक के घर पर कौनसी सभा होती है, और यहूदा किस मक़सद से धार्मिक अगुओं से भेंट करने जाता है?
▪ यीशु यरूशलेम में गुरुवार को किसे भेजते हैं, और किस उद्देश्य से?
▪ भेजे गए जन क्या पाते हैं जो एक बार फिर यीशु की चमत्कारिक शक्ति दिखाता है?
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आख़री फसह पर दीनतावह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११३
आख़री फसह पर दीनता
यीशु के निर्देशनों के अधीन, पतरस और यूहन्ना फसह के पर्व की तैयारियाँ करने पहले ही यरूशलेम पहुँच चुके हैं। यीशु स्पष्टतः दस अन्य प्रेरितों के साथ देर दोपहर को पहुँचते हैं। जैसे यीशु और उनकी टोली जैतुन पहाड़ पर से उतरती है, सूर्य क्षितिज पर डूब रहा है। अपने पुनरुत्थान से पहले यह यीशु का इस पर्वत से शहर का दिन के दौरान आख़री नज़ारा है।
जल्द ही यीशु और उनकी टोली शहर पहुँचती है और उस घर की ओर जाती है जहाँ उन्हें फसह पर्व मनाना होगा। वे बड़ी अटारी के लिए सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, जहाँ वे फसह का एकान्तिक उत्सव मनाने के लिए सारी तैयारियाँ देखते हैं। यीशु के कहने से पता लगता है कि वे इस मौक़े का इंतज़ार कर रहे थे: “मुझे बड़ी लालसा थी कि दुःख भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊँ।”
रीतिनुसार, फसह में भाग लेनेवाले दाखरस के चार प्याले पीते हैं। तीसरे प्याले को स्वीकारने के बाद, यीशु धन्यवाद करते हैं और कहते हैं: “इस को लो और आपस में बाँट लो; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि जब तक परमेश्वर का राज्य न आए तब तक मैं दाखरस अब से कभी न पीऊँगा।”
भोजन के दौरान, यीशु उठते हैं, अपने बाहरी वस्त्र उतारकर एक अंगोछा लेते हैं, और एक बरतन में पानी भरते हैं। सामान्यतः, मेज़बान मेहमान के पाँव धोने का इंतज़ाम करता है। लेकिन चूँकि इस अवसर पर कोई मेज़बान उपस्थित नहीं है, यीशु इस निजी सेवा को निभाते हैं। प्रेरितों में से कोई भी एक इस अवसर का लाभ उठा सकता था; तो भी, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से उनके बीच में अभी भी प्रतिस्पर्धा चल रही है, कोई ऐसा नहीं करता। अब जबकि यीशु उनके पाँव धोने लगते हैं वे लज्जित हो जाते हैं।
जब यीशु पतरस के पास आते हैं, वह विरोध करता है, “तू मेरे पाँव कभी न धोने पाएगा।”
यीशु कहते हैं, “यदि मैं तुझे न धोऊँ, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं।”
पतरस जवाब देता है, “हे प्रभु, तू मेरे पाँव ही नहीं, बरन हाथ और सिर भी धो दे।”
यीशु जवाब देते हैं, “जो नहा चुका है, उसे पाँव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं, परन्तु वह बिल्कुल शुद्ध है। और तुम शुद्ध हो, परन्तु सब के सब नहीं।” वे इसलिए ऐसा कहते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यहूदा इस्करियोती उसे पकड़वाने का योजना कर रहा है।
जब यीशु सभी १२ प्रेरितों के पाँव धो चुके, जिन में उसे पकड़वानेवाला, यहूदा भी शामिल है, वे अपने बाहरी वस्त्र पहनते हैं और दोबारा मेज़ पर बैठ जाते हैं। फिर वे पूछते हैं: “क्या तुम समझे कि मैं ने तुम्हारे साथ क्या किया? तुम मुझे ‘गुरु,’ और ‘प्रभु,’ कहते हो और भला कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ। यदि मैं ने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पाँव धोए, तो तुम्हें भी एक दूसरे के पाँव धोना चाहिए। क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो। मैं तुम से सच सच कहता हूँ, दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं, और न भेजा हुआ अपने भेजनेवाले से। तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो तो धन्य हो।”
दीन सेवा का कितना ही सुन्दर सबक़! प्रेरितों को प्रथम स्थान खोजना नहीं चाहिए, यह सोचकर कि वे इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि दूसरे हमेशा उनकी सेवा करें। उन्होंने यीशु द्वारा दिए गए नमूने पर चलने की ज़रूरत है। यह कोई रस्मी पाँवों की धुलाई नहीं है। नहीं, लेकिन यह तत्परता का निष्पक्षता से सेवा करने का तरीका है, चाहे वह कार्य कितना ही नीच या अप्रिय क्यों न हो। मत्ती २६:२०, २१; मरकुस १४:१७, १८; लूका २२:१४-१८; ७:४४; यूहन्ना १३:१-१७.
▪ यीशु का यरूशलेम का नज़ारा में क्या अनोखा है जब वे फसह का पर्व मनाने के लिए शहर में प्रवेश करते हैं?
▪ फसह के दौरान, धन्यवाद कहने के बाद प्रत्यक्ष रूप से यीशु ने कौनसा प्याला १२ प्रेरितों को बाँटा था?
▪ जब यीशु पृथ्वी पर थे, तब मेहमानों को रिवाजी तौर से कौनसी निजी सेवा प्रदान की जाती थी, यीशु और उसके प्ररितों द्वारा मनाए गए फसह में यह क्यों नहीं प्रदान की गयी थी?
▪ अपने प्रेरितों के पाँव धोने की नीच सेवा करने में यीशु का मक़सद क्या था?
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स्मारक रात्रि भोजनवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११४
स्मारक रात्रि भोजन
अपने प्रेरितों के पाँव धोने के बाद, यीशु भजन संहिता ४१:९ उद्धृत करते हैं: “जो मेरी रोटी खाता था, उसने मुझ पर लात उठाई है।” तब, आत्मा में व्याकुल होकर, वे व्याख्या करते हैं: “तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”
प्रेरित दुःखी होते हैं और यीशु से एक-एक करके कहते हैं: “क्या वह मैं हूँ?” यहाँ तक कि यहूदा इस्करियोति भी पूछने में शामिल होता है। यूहन्ना, जो मेज़ के पास यीशु के निकट बैठा है, यीशु की छाती पर झुकता है और पूछता है: “प्रभु, वह कौन है?”
“वह बारहों में से एक है, जो मेरे साथ कटोरे में हाथ डालता है,” यीशु जवाब देते हैं। “मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है, परन्तु उस मनुष्य के लिए शोक है जिस के द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है! यदि उस मनुष्य का जन्म न होता, तो उसके लिए भला होता।” उसके बाद, शैतान फिर से यहूदा में समाता है, और उसके दिल में खुली जगह का फ़ायदा लेता है। उस रात को यीशु बाद में यहूदा को उपयुक्त तरह से “विनाश का पुत्र” कहते हैं।
यीशु अब यहूदा से कहते हैं: “जो तू करता है, तुरन्त कर।” कोई भी प्रेरित यीशु के कहने का मतलब नहीं समझ पाए। यहूदा के पास पैसों का डिब्बा था, इसलिए कई प्रेरितों ने कल्पना की कि यीशु उसे कह रहे हैं: “जो कुछ हमें पर्व के लिए चाहिए वह मोल ले,” या जाकर कँगालों को कुछ दे।
यहूदा का जाने के बाद, यीशु अपने वफादार प्रेरितों के साथ एक बिलकुल नया उत्सव, या स्मरणोत्सव पेश करते हैं। वे एक रोटी लेते हैं, और धन्यवाद की प्रार्थना कहते हैं, उसे तोड़ते हैं, और उन्हें यह कहते हुए देते हैं: “लो, खाओ।” वे व्याख्या करते हैं: “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिए दी जाएगी। मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।”
जब सब ने रोटी खा ली, तब यीशु दाखरस का प्याला लेते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से फसह सेवा में उपयोग किया गया चौथा प्याला है। उस पर भी वे धन्यवाद की प्रार्थना करते हैं, उन्हें देते हैं, और यह कहते हुए उन्हें उस में से पीने कहते हैं: “यह कटोरा मेरे उस लोहू में नई वाचा है, जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है।”—NW.
इसलिए दरअसल, यह यीशु की मृत्यु का स्मारक है। जैसे यीशु कहते हैं, मेरे स्मरण के लिए, सो हर साल निसान १४ को यह दोहराया जाना है। यह उत्सव मनानेवालों को याद दिलाएगा कि मनुष्यजाति को मृत्यु की सज़ा से छुटकारा देने के लिए यीशु और उनके स्वर्गीय पिता ने क्या किया है। उन यहूदी के लिए, जो मसीह के अनुयायी बन जाते हैं, यह उत्सव फसह के पर्व का स्थान लेगा।
नई वाचा, जो यीशु के बहाए लोहू के ज़रिये क्रियाकारी किया गया, पुराना नियम की वाचा का स्थान लेती है। यह यीशु मसीह की मध्यस्थता से दो पक्षों के बीच हुई है, एक तरफ, यहोवा परमेश्वर, और दूसरी तरफ, १,४४,००० आत्मा से उत्पन्न मसीही। पापों की क्षमा के अलावा, यह वाचा स्वर्गीय राज्य के राजा-याजकों की रचना की भी अनुमति देती है। मत्ती २६:२१-२९; मरकुस १४:१८-२५; लूका २२:१९-२३; यूहन्ना १३:१८-३०; १७:१२; १ कुरिन्थियों ५:७.
▪ एक साथी के विषय में यीशु कौनसी बाइबल भविष्यवाणी को उद्धृत करते हैं, और वे उसका क्या विनियोग करते हैं?
▪ प्रेरित क्यों बहुत दुःखी हो जाते हैं, और उन में से हरेक क्या पूछते हैं?
▪ यीशु यहूदा को क्या करने को कहते हैं, पर प्रेरित इन आदेशों को किस तरह समझते हैं?
▪ यहूदा का जाने के बाद, यीशु कौनसा उत्सव पेश करते हैं, और उनका उद्देश्य क्या है?
▪ नई वाचा के दो पक्ष कौनसे हैं, और यह वाचा क्या पूरा करती है?
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बहस शुरू होती हैवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११५
बहस शुरू होती है
इसी शाम, यीशु ने अपने प्रेरितों के पाँव धोने के ज़रिये दीन सेवा में एक ख़ूबसूरत सबक़ सिखाया। उसके बाद, उसने अपने आनेवाली मृत्यु का स्मारक को पेश किया। अब, ख़ास तौर से अभी-अभी हुई घटनाओं को देखते हुए, एक आश्चर्यजनक घटना घटित होती है। उनके प्रेरित एक उत्तेजक बहस में शामिल हो जाते हैं कि उन में से कौन सर्वश्रेष्ठ प्रतीत होता है! प्रत्यक्ष रूप से, यह पहले से चल रहे झगड़े का एक हिस्सा है।
याद कीजिए, पहाड़ पर यीशु के रूपांतर के बाद, प्रेरितों ने बहस की थी कि उन में कौन सर्वश्रेष्ठ है। इसके अलावा, याकूब और यूहन्ना ने राज्य में मुख्य पद की विनती की थी, जिसके परिणामस्वरूप प्रेरितों के बीच वाद-विवाद बढ़ गया था। अब, उन्हें उनके साथ अपनी आख़री रात में भी लड़ते देखकर यीशु कितने उदास हुए होंगे! वे क्या करते हैं?
उनके बरताव के लिए उनको डाँटने के बजाय, एक बार फिर यीशु सहनशीलता से उन से तर्क करते हैं: “अन्यजातियों के राजा उन पर प्रभुता करते हैं, और जो उन पर अधिकार रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं। परन्तु तुम ऐसे न होना। . . . क्योंकि बड़ा कौन है, वह जो भोजन पर बैठा है या वह जो सेवा करता है? क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है?” तब उन्हें अपने मिसाल की याद दिलाते हुए, वह कहता है: “पर मैं तुम्हारे बीच में सेवक के नाईं हूँ।”
उनके अपूर्णता के बावजूद, प्रेरित लगातार उनके साथ रहे हैं। इसलिए वह कहता है: “जैसे मेरे पिता ने मेरे साथ राज्य के लिए एक वाचा किया है, मैं भी तुम्हारे साथ वाचा करता है।” (NW) यीशु और उनके वफादार अनुयायियों के बीच यह निजी वाचा, उन्हें उसके शाही प्रभुत्व में जोड़ती है। आख़िरकार सिर्फ़ १,४४,००० की सीमित संख्या राज्य के लिए इस वाचा में ली जाती है।
यद्यपि प्रेरितों को मसीह के साथ राज्य शासन में हिस्सा लेने का यह अद्भुत प्रत्याशा प्रस्तुत की गयी है, वे इस समय आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर हैं। “तुम सब आज ही रात को मेरे विषय में ठोकर खाओगे,” यीशु कहते हैं। तथापि, पतरस को बताते हुए कि उसने उस के लिए प्रार्थना की है, यीशु उकसाते हैं: “जब तू फिरे, तो अपने भाइयों को स्थिर करना।”
“हे बालकों,” यीशु व्याख्या करते हैं, “मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूँ। फिर तुम मुझे ढूँढ़ोगे, और जैसा मैं ने यहूदियों से कहा, ‘मैं जहाँ जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते,’ वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूँ। मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ, कि एक दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”
“प्रभु, तू कहाँ जाता है?” पतरस पूछता है।
“जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तू अब मेरे पीछे आ नहीं सकता,” यीशु जवाब देते हैं, “परन्तु इसके बाद मेरे पीछे आएगा।”
“हे प्रभु, अभी मैं तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता?” पतरस जानना चाहता है। “मैं तो तेरे लिए अपना प्राण दूँगा।”
“क्या तू मेरे लिए अपना प्राण देगा?” यीशु पूछते हैं। “मैं तूझ से सच कहता हूँ, कि आज ही, इसी रात को, मुर्ग दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इनक़ार करेगा।”—NW.
“यदि मुझे तेरे साथ मरना भी हो,” पतरस विरोध करता है, “तौभी मैं तेरा इनक़ार कभी न करूँगा।” (NW) और जब सभी प्रेरित ऐसा ही कहने में मिल जाते हैं, पतरस शेख़ी मारता है: “यदि सब तेरे विषय में ठोकर खाँए तो खाएँ, परन्तु मैं कभी भी ठोकर न खाऊँगा।”
उस समय का ज़िक्र करते हुए, जब उसने प्रेरितों को गलील में बटुआ और झोली के बिना प्रचार कार्य के दौरे के लिए भेजा था, यीशु पूछते हैं: “क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुई?”
“नहीं!” वे जवाब देते हैं।
“परन्तु अब जिसके पास बटुआ हो वह उसे ले, और वैसे ही झोली भी,” वह कहता है, “और जिसके पास तलवार न हो वह अपने कपड़े बेचकर एक मोल ले। क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यह जो लिखा है, ‘वह अपराधियों के साथ गिना गया,’ उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है। क्योंकि मेरे विषय की बातें पूरी होने पर हैं।”
यीशु उस समय की ओर संकेत करते हैं जब उसे कुकर्मी, या अपराधियों के साथ स्तंभ पर चढ़ाया जाएगा। वह यह भी सूचित कर रहा है कि उसके अनुयायियों को भी कड़ा उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा। “हे प्रभु, देख, यहाँ दो तलवारे हैं,” वे कहते हैं।
“ये बहुत हैं,” वह जवाब देता है। जैसा हम आगे देखेंगे, उनके पास तलवार के होने से यीशु को एक और अत्यावश्यक सबक़ सिखाने का मौक़ा मिलता है। मत्ती २६:३१-३५; मरकुस १४:२७-३१; लूका २२:२४-३८; यूहन्ना १३:३१-३८; प्रकाशितवाक्य १४:१-३.
▪ प्रेरितों की बहस क्यों इतनी आश्चर्यजनक है?
▪ यीशु किस तरह इस बहस को निपटाते हैं?
▪ उस वाचा से क्या पूरा होता है जिसे यीशु अपने शिष्यों के साथ करते हैं?
▪ यीशु कौनसी नई आज्ञा देते हैं, और यह कितना महत्त्वपूर्ण है?
▪ पतरस कितना अतिविश्वास दिखाता है, और यीशु क्या कहते हैं?
▪ बटुए और झोली ले जाने के विषय में यीशु के आदेश पहले से क्यों अलग है?
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अपने रवानगी के लिए प्रेरितों को तैयार करनावह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११६
अपने रवानगी के लिए प्रेरितों को तैयार करना
स्मारक भोजन हो चुका है, लेकिन यीशु और उनके प्रेरित अभी भी ऊपरी कमरे में हैं। जबकि यीशु जल्द ही चले जाएँगे, उन्हें अभी भी बहुत कुछ कहना है। वह उन्हें सांत्वना देता है, “तुम्हारा दिल व्याकुल न हो, परमेश्वर पर विश्वास रखो।” पर वह यह भी कहता है: “मुझ पर भी विश्वास रखो।”—NW.
यीशु आगे कहते हैं, “मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं। मैं तुम्हारे लिए जगह तैयार करने जाता हूँ . . . कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो। और जहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।” प्रेरित यह समझ नहीं पाते कि यीशु स्वर्ग जाने की बात कर रहे हैं, इसलिए थोमा पूछता है: “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है? तो मार्ग कैसे जाने?”
यीशु जवाब देते हैं: “मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूँ।” हाँ, केवल उन्हें स्वीकार करने से और उनके जीवन पथ का अनुकरण करने से ही कोई व्यक्ति पिता के स्वर्गीय घर में प्रवेश कर सकता है क्योंकि, जैसे यीशु कहते हैं: “बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।”
फिलिप्पुस विनती करता है: “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिए बहुत है।” प्रत्यक्षतः फिलिप्पुस चाहता है कि यीशु उन्हें परमेश्वर का दृश्य प्रदर्शन दें, जैसे प्राचीन समयों में दर्शनों के द्वारा मूसा, एलिय्याह, और यशायाह को प्राप्त हुआ था। लेकिन, असल में, प्रेरितों के पास कुछ है जो उस प्रकार के दर्शनों से भी बेहतर है, जैसे यीशु ध्यान देते हैं: “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है।”
यीशु अपने पिता के व्यक्तित्व को इतने परिपूर्ण रूप में प्रतिबिंब करते हैं कि उनके साथ रहना और उन्हें ध्यान से देखना, असल में, परमेश्वर को देखने के बराबर है। फिर भी, पिता पुत्र से श्रेष्ठ है, जैसे यीशु मंज़ूर करते हैं: “ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता।” यीशु उचित रूप से अपनी शिक्षाओं का सारा श्रेय, अपने स्वर्गीय पिता को देते हैं।
यीशु को अब यह कहते हुए सुनकर प्रेरितों के लिए कितना प्रोत्साहनदायक होगा: “जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, बरन इन से भी बड़े काम करेगा”! यीशु का कहने का मतलब यह नहीं कि उनके अनुयायी उससे अधिक चमत्कारिक शक्ति का प्रयोग करेंगे। नहीं, लेकिन उनका कहने का मतलब यह है कि वे सेवकाई ज़्यादा लम्बे समय तक, काफी बड़े क्षेत्र में, और बहुत अधिक लोगों को करेंगे।
यीशु अपने प्रस्थान के बाद अपने शिष्यों को त्याग न देंगे। वे प्रतिज्ञा करते हैं: “जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वही मैं करूँगा।” वे आगे कहते हैं: “मैं पिता से बिनती करूँगा, और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे, अर्थात सत्य का आत्मा।” बाद में, अपने स्वर्गारोहण के पश्चात, यीशु अपने शिष्यों पर पवित्र आत्मा उँडेलते हैं, यह दूसरा सहायक।
यीशु का प्रस्थान निकट है, जैसे वे कहते हैं: “थोड़ी देर रह गई है, फिर संसार मुझे न देखेगा।” यीशु एक आत्मिक प्राणी होंगे जिसे कोई मनुष्य नहीं देख सकता। लेकिन फिर से यीशु अपने विश्वासी प्रेरितों से प्रतिज्ञा करते हैं: “तुम मुझे देखोगे, इसलिए कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे।” जी हाँ, यीशु अपने पुनरुत्थान के पश्चात उन्हें न केवल मनुष्य के रूप में दिखेगा, वरन् समय आने पर उन्हें अपने साथ आत्मिक प्राणियों की तरह स्वर्ग में जीने के लिए भी जीवित करेगा।
यीशु अब एक सरल नियम बता देते हैं: “जिस के पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूँगा, और अपने आप को उस पर प्रकट करूँगा।”
इस पर, प्रेरित यहूदा, जो तद्दी भी कहलाता है, बीच में बोलता है: “हे प्रभु, क्या हुआ कि तू अपने आप को हम पर प्रकट किया चाहता है, और संसार पर नहीं?”
यीशु जवाब देते हैं: “यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा . . . जो मुझ से प्रेम नही रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता।” अपने आज्ञाकारी अनुयायियों से भिन्न, संसार मसीह की शिक्षाओं का अवहेलना करता है। इसलिए वह अपने आप को उन्हें प्रकट नहीं करता है।
अपनी पार्थिव सेवकाई के दौरान, यीशु ने अपने प्रेरितों को बहुत कुछ सिखाया है। इन सब बातों को वे कैसे याद कर सकेंगे, चूँकि वे ख़ास तौर से, इस पल तक, इतना कुछ समझ लेने में विफल हैं? यीशु प्रतिज्ञा करते हैं: “सहायक, अर्थात पवित्र आत्मा, जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।”
फिर से उन्हें सांत्वना देते हुए यीशु कहते हैं: “मैं तुम्हें शांति दिए जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ . . . तुम्हारा दिल न घबराए।” यह सच है कि यीशु जा रहे हैं, लेकिन वह समझाता है: “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते, तो इस बात से आनंदित होते कि मैं पिता के पास जाता हूँ, क्योंकि पिता मुझ से बड़ा है।”
उनके साथ यीशु का बाकी समय कम है। वह कहता है, “मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूँगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ में उसका कुछ नहीं।” शैतान इबलीस, जो यहूदा में घुसने और उस पर काबू पाने में सफल था, इस संसार का सरदार है। लेकिन यीशु में पाप के कारण कोई कमज़ोरी नहीं है जिसे उकसाकर शैतान उसे परमेश्वर की सेवा से फेर सकेगा।
एक क़रीबी रिश्ते का आनंद लेना
स्मारक भोजन के पश्चात, यीशु अपने प्रेरितों को एक अनौपचारिक दिली बातचीत से प्रोत्साहित कर रहे हैं। अब शायद आधी रात बीत चुकी है। इसलिए यीशु आग्रह करते हैं: “उठो, यहाँ से चलें।” लेकिन, जाने से पहले, यीशु, उनके प्रति अपने प्रेम से प्रेरित होकर, बातचीत जारी रखते हुए एक प्रेरक दृष्टान्त देते हैं।
वे आरंभ करते हैं: “सच्ची दाख़लता मैं हूँ, और मेरा पिता किसान है।” महान किसान, यहोवा परमेश्वर, ने यह प्रतीकात्मक दाख़लता तब लगाई, जब सा.यु. वर्ष २९ में उन्होंने यीशु को उसके बपतिस्मा के समय पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किया। लेकिन यीशु यह कहते हुए आगे दिखाते हैं कि दाख़लता उनके अलावा और किसी का भी प्रतीक है: “जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छाँटता है ताकि और फले। . . . जैसे डाली यदि दाख़लता में बनी न रहे तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। मैं दाख़लता हूँ, तुम डालियाँ हो।”
५१ दिन बाद, पिन्तेकुस्त पर, जब प्रेरित और अन्य शिष्यों पर पवित्र आत्मा उँडेली जाती है वे दाख़लता की डालियाँ बनते हैं। आख़िरकार, १,४४,००० व्यक्ति उस लाक्षणिक दाख़लता की डालियाँ बनते हैं। दाख़लता का तना, यीशु मसीह, के साथ यह व्यक्ति प्रतीकात्मक दाख़लता बनते हैं जो परमेश्वर के राज्य के फल उत्पन्न करती हैं।
यीशु फल उत्पन्न करने की कुंजी समझाते हैं: “जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।” लेकिन, अगर एक व्यक्ति फल उत्पन्न करने में चूकता है, तो यीशु कहते हैं, “वह डाली की तरह फेंक दिया जाता, और सूख जाता है, और लोग उन्हें जमा करके आग में झोंक देते हैं और वे जल जाती हैं।” (NW) दूसरी ओर, यीशु प्रतिज्ञा करते हैं: “यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहे, तो जो चाहो माँगों और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा।”
आगे, यीशु अपने प्रेरितों से कहते हैं: “मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।” इन डालियों से चाहा हुआ फल जिसे यहोवा चाहते हैं, मसीह जैसे गुणों का प्रदर्शन है, खासकर, प्रेम। इसके अलावा, क्योंकि मसीह परमेश्वर के राज्य का उद्घोषक थे, यह चाहा हुआ फल में उनके शिष्य बनाने का काम भी सम्मिलित है, जैसे यीशु ने किया था।
“मेरे प्रेम में बने रहो,” यीशु अब आग्रह करते हैं। तो भी, उनके प्रेरित यह कैसे कर सकते हैं? वह कहता है: “यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे तो मेरे प्रेम में बने रहोगे।” आगे, यीशु व्याख्या करते हैं: “मेरी आज्ञा यह है कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिए अपना प्राण दे।”
कुछ ही घंटों में, यीशु अपने प्रेरित और दूसरों की ख़ातिर, जो उस में विश्वास रखते हैं, अपनी जान देकर इस सर्वोत्तम प्रेम का प्रदर्शन करेंगे। उनके उदाहरण से उनके अनुयाकियाःयों को एक दूसरे के प्रति ऐसे आत्म-त्यागी प्रेम रहने के लिए प्रेरित होना चाहिए। इसी प्रेम से वे जाने जाएँगे, जैसे यीशु ने पहले कहा था: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।”
अपने दोस्तों का पहचान करते हुए, यीशु कहते हैं: “जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो। अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा, क्योंकि दास नहीं जानता कि उसका स्वामी क्या करता है, परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।”
यीशु के घनिष्ठ दोस्त होने का क्या ही मूल्यवान रिश्ता! लेकिन इस रिश्ते का अनंद उठाते रहने के लिए, उनके अनुयायियों को “फल लाते रहना” है। यदि वे ऐसा करेंगे, यीशु कहते हैं, “तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से माँगो, वह तुम्हें देगा।” यक़ीनन, राज्य के फल उत्पन्न करने के लिए वह एक शानदार इनाम है! ‘आपस में प्रेम रखने,’ प्रेरितों को फिर से उकसाने के बाद, यीशु समझाते हैं कि संसार उन से बैर रखेगा। फिर भी, वह उन्हें सांत्वना देता है: “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो कि उसने तुम से पहले मुझ से भी बैर रखा।” इसके बाद, यीशु यह कहते हुए बताते हैं कि संसार उसके अनुयायियों से क्यों बैर रखता है: “इस कारण कि तुम संसार के नहीं, बरन मैं ने तुम्हें संसार से चुन लिया है, इसी लिए संसार तुम से बैर रखता है।”
संसार के बैर के कारण को और ज़्यादा समझाते हुए, यीशु कहते हैं: “यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले [यहोवा परमेश्वर] को नहीं जानते।” जैसे यीशु ध्यान देते हैं, यीशु के चमत्कारी कार्य, असल में, उससे बैर रखनेवालों को दोषी सिद्ध करती हैं: “यदि मैं उन में वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और पिता दोनों को देखा, और दोनों से बैर किया।” अतः, जैसे यीशु कहते हैं, यह शास्त्रवचन पूरा हुआ: “उन्होंने मुझ से व्यर्थ बैर किया।”
जैसे उसने पहले भी किया, यीशु उन्हें यह प्रतिज्ञा देकर कि वह उन के लिए सहायक भेजेगा, पवित्र आत्मा, जो परमेश्वर की शक्तिशाली सक्रिय शक्ति है, फिर से सांत्वना देता है। “वह मेरी गवाही देगा; और तुम भी गवाह हो।”
रवानगी से पहले कुछ और चेतावनी
यीशु और उनके प्रेरित ऊपरी कमरे से निकलने के लिए तैयार हैं। वह आगे कहता है: “ये बातें मैं ने तुम से इसलिए कहीं कि तुम ठोकर न खाओ।” फिर वह एक गंभीर चेतावनी देता है: “वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे। बरन वह समय आता है कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा वह समझेगा के मैं परमेश्वर की सेवा करता हूँ।”
प्रत्यक्षतः इस चेतावनी से प्रेरित बहुत परेशान हो जाते हैं। जबकि यीशु ने पहले कहा था कि संसार उन से बैर रखेगा, पर उन्होंने इतने स्पष्ट रूप से यह प्रकट नहीं किया था कि वे मार डाले जाएँगे। “मैं ने आरंभ में तुम से यह बातें इसलिए नहीं कही,” यीशु समझाते हैं, “क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था।” फिर भी, यह कितना अच्छा है कि यीशु अपने रवानगी से पहले उनको इस जानकारी के द्वारा पहले से तैयार कर रहे हैं!
यीशु आगे कहते हैं, “अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जाता हूँ, और तुम में से कोई मुझ से नहीं पूछता कि तू कहाँ जाता है?” इसी शाम, उन्होंने पूछा था कि वह कहाँ जा रहा था, लेकिन अब वे उसने कही बातों से इतने कंपित हैं, कि वे उसके बारे में और कुछ नहीं पूछते। जैसा यीशु कहते हैं: “परन्तु मैं ने जो ये बातें तुम से कही है, इसलिए तुम्हारा मन शोक से भर गया।” उन्हें घोर उत्पीड़न झेलना होगा और वे मार डाले जाएँगे, यह जानने के वजह से प्रेरित शोक नहीं मना रहे हैं पर इस कारण के लिए कि उनका स्वामी उन्हें छोड़ रहे हैं।
इसलिए यीशु समझाते हैं: “मेरा जाना तुम्हारे लिए अच्छा है। क्योंकि यदि मैं न जाऊँ, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा; परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा।” एक मनुष्य के जैसे, यीशु किसी समय पर केवल एक जगह पर ही हो सकते हैं, लेकिन जब वे स्वर्ग में हैं, वे सहायक, परमेश्वर की पवित्र आत्मा, को अपने अनुयायियों को भेज सकते हैं चाहे वे पृथ्वी पर कहीं भी क्यों न हो। इसीलिए, यीशु की रवानगी लाभदायक होगा।
यीशु कहते हैं, कि पवित्र आत्मा “संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में क़ायल करेगा।” (NW) संसार का पाप, उसका परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास न रखना, प्रकट किया जाएगा। साथ ही, यीशु की धार्मिकता का क़ायल करनेवाला प्रमाण उनका अपने पिता के पास ऊपर जाने से प्रदर्शित होगा। और शैतान और उसका दुष्ट संसार यीशु की सत्यनिष्ठा तोड़ने में विफलता क़ायल करनेवाला प्रमाण है कि इस संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है।
“मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी है” यीशु आगे कहते हैं, “परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।” इसलिए यीशु प्रतिज्ञा करते हैं कि जब वह पवित्र आत्मा उँडेलेगा, जो परमेश्वर की सक्रिय शक्ति है, वह उन्हें इन बातों को समझने में उनकी समझ क्षमता के अनुसार मार्गदर्शन करेगी।
ख़ासकर, इस बात को समझने में प्रेरित चूकते हैं कि यीशु की मौत होगी और वे फिर अपने पुनरुत्थान के बाद उन्हें दिखाई देंगे। इसलिए वे एक दूसरे से पूछते हैं: “यह क्या है, जो वह हम से कहता है, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे?’ और यह “इसलिए कि में पिता के पास जाता हूँ’?”
यीशु को यह एहसास होता है कि वे उससे कुछ पूछना चाहते हैं, इसलिए वे व्याख्या करते हैं: “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनंद करेगा; तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनंद बन जाएगा।” बाद में, उसी दिन दोपहर को, जब यीशु मार डाले गए, सांसारिक धार्मिक नेता आनंदित होते हैं, लेकिन शिष्य शोक मनाते हैं। लेकिन, उनका शोक आनंद बन जाता है, जब यीशु का पुनरुत्थान होता है! और उनका आनंद बना रहता है, जब पिन्तेकुस्त पर, वह उन पर परमेश्वर की पवित्र आत्मा उँडेलकर, उन्हें अपने गवाह होने के समर्थ करता है!
प्रेरितों की स्थिति की तुलना उस स्त्री से करते हुए जो प्रसव की पीड़ा में है, यीशु कहते हैं: “जब स्त्री जनने लगती है तो उस को शोक होता है, क्योंकि उसकी दुःख की घड़ी आ पहुँची।” लेकिन यीशु ग़ौर करते हैं कि शिशु को जन्म देने के बाद वह उसकी दुःख-तकलीफ़ को फिर याद नहीं करती, और यह कहते हुए वे अपने प्रेरितों को प्रोत्साहित करते हैं: “तुम्हें भी अब तो शोक है; परन्तु मैं तुम्हें फिर देखूँगा [जब मेरा पुनरुत्थान होगा] और तुम्हारे दिल में आनंद होगा; और तुम्हारा आनंद कोई तुम से छीन न लेगा।”—NW.
अब तक, प्रेरितों ने यीशु के नाम में कभी बिनती नहीं की। लेकिन अब वह कहता है: “यदि पिता से कुछ माँगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। . . . क्योंकि पिता तो आप ही तुम से प्रीति रखता है, इसलिए कि तुम ने मुझ से प्रीति रखी है और यक़ीन भी किया है कि मैं पिता की ओर से निकल आया। मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूँ। फिर, मैं जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूँ।”
यीशु के शब्द प्रेरितों को बड़ा प्रोत्साहन है। वे कहते हैं: “इस से हम यक़ीन करते हैं, कि तू परमेश्वर से निकला है।” यीशु पूछते हैं: “क्या तुम अब यक़ीन करते हो? देखो, वह घड़ी आती है बरन आ पहुँची है कि तुम सब तित्तर-बित्तर होकर अपना अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे।” (NW) यह अविश्वसनीय प्रतीत होता है, लेकिन उसी रात की समाप्ति से पहले ऐसा ही घटित हुआ!
“मैं ने ये बातें तुम से इसलिए कही है, कि तुम्हें मुझ में शांति मिले।” यीशु समाप्त करते हैं: “संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।” शैतान और उसके संसार द्वारा यीशु की सत्यनिष्ठा तोड़ने के सब कोशिशों के बावजूद यीशु ने वफादारी से परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने से संसार को जीत लिया।
ऊपरी कमरे में आख़री प्रार्थना
अपने प्रेरितों के प्रति गहरे प्रेम से प्रेरित होकर, यीशु उन्हें अपने अत्यंत समीप रवानगी के लिए तैयार कर रहे हैं। अब, विस्तार से उन्हें चेतावनी और सांत्वना देने के बाद, वह अपनी आँखें आकाश की ओर उठाकर अपने पिता से याचना करता है: “अपने पुत्र की महिमा कर, कि पुत्र भी तेरी महिमा करें। क्योंकि तू ने उस को सब प्राणियों पर अधिकार दिया, कि जिन्हें तू ने उसको दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे।”
यीशु क्या ही उत्तेजक विषय पेश करते हैं—अनन्त जीवन! “सब प्राणियों पर अधिकार” दिए जाने के कारण, यीशु अपने छुड़ौती की बलिदान के फ़ायदे सारी मरती हुई मानवजाति के प्रति दे सकते हैं। फिर भी, वह “अनन्त जीवन” सिर्फ़ उनको ही देते हैं जिन्हें पिता स्वीकार करते हैं। इस अनन्त जीवन का विषय पर बढ़ाते हुए, यीशु आगे प्रार्थना करते हैं:
“अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को जिसे तू ने भेजा है, जानें।” हाँ, उद्धार दोनों परमेश्वर और उसके पुत्र का हमारे ज्ञान लेने पर निर्भर है। लेकिन, दिमाग़ी ज्ञान के अलावा और भी कुछ ज़रूरी है।
एक व्यक्ति ने उनके साथ एक समझदार दोस्ती बढ़ाना और घनिष्ठता से उन्हें जानना चाहिए। एक व्यक्ति ने कई मामलों पर उन्हीं के जैसे महसूस करना चाहिए और सब वस्तुओं को उनके आँखों के ज़रिये देखना चाहिए। और इन सब से बढ़कर, एक व्यक्ति ने दूसरों के साथ व्यवहार करने में उनके बेजोड़ गुणों का अनुकरण करना चाहिए।
यीशु इसके बाद प्रार्थना करते हैं: “जो काम तू ने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैं ने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है।” इस प्रकार, इस क्षण तक अपना नियत कार्य पूरा करने से और अपनी भावी सफलता के बारे में विश्वस्त होकर, वे याचना करते हैं: “हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत के होने से पहले, मेरी तेरे साथ थी।” हाँ, वे अब एक पुनरुत्थान के ज़रिये अपनी उस पिछले स्वर्गीय महिमा लौटाने की माँग करते हैं।
पृथ्वी पर अपने मुख्य काम का सारांश प्रस्तुत करते हुए, यीशु कहते हैं: “मैं ने तेरा नाम उन मनुष्यों पर प्रगट किया जिन्हें तू ने जगत में से मुझे दिया; वे तेरे थे और तू ने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है।” यीशु ने अपनी सेवकाई में, परमेश्वर का नाम, यहोवा, इस्तेमाल किया, और उसका सही उच्चारण बताया, लेकिन अपने प्रेरितों को परमेश्वर के नाम प्रकट करने के अलावा उसने उस से भी कुछ ज़्यादा किया। उसने यहोवा, उनका व्यक्तित्व, और उनके उद्देश्यों के बारे में प्रेरितों का ज्ञान और क़दरदानी भी बढ़ाया।
यहोवा को अपना उच्च अधिकारी होने का श्रेय देते हुए, जिसके अधीन वे सेवा करते हैं, यीशु दीनता से मंज़ूर करते हैं: “जो बातें तू ने मुझे पहुँचा दी, मैं ने उन्हें उनको पहुँचा दिया और उन्होंने उन को ग्रहण किया, और सच सच जान लिया है, कि मैं तेरी ओर से निकला हूँ, और प्रतीति कर ली है कि तू ही ने मुझे भेजा।”
अपने अनुयायी और बाकी मानवजाति में भेद करते हुए, यीशु आगे प्रार्थना करते हैं: “संसार के लिए बिनती नहीं करता हूँ, परन्तु उन्हीं के लिए जिन्हें तू ने मुझे दिया . . . जब मैं उन के साथ था तो मैं ने . . . उन की रक्षा की, मैं ने उन की चौकसी की और विनाश के पुत्र [अर्थात यहूदा इस्करियोति] को छोड़ उन में से कोई नाश न हुआ।” और उसी पल, यहूदा यीशु के साथ विश्वासघात करने के नीच कार्य पर है। इस प्रकार, अनजाने में यहूदा शास्त्रवचन को पूरा कर रहा है।
“संसार ने उन से बैर किया,” यीशु प्रार्थना को जारी रखते हैं, “मैं यह बिनती नहीं करता कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख। जैसे मैं संसार का भाग नहीं, वैसे ही वे भी संसार के भाग नहीं।” (NW) यीशु के अनुयायी इस संसार में हैं, यह संगठित मानवी समाज जो शैतान द्वारा शासित है, लेकिन वे इससे और इसकी दुष्टता से अलग हैं और उन्हें हमेशा ऐसे ही रहना चाहिए।
“सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर,” यीशु आगे कहते हैं, “तेरा वचन सत्य है।” यहाँ यीशु उत्प्रेरित इब्रानी शास्त्रवचन को “सत्य” कहते हैं, जहाँ से उन्होंने लगातार हवाले दिए। लेकिन, जो उसने अपने शिष्यों को सिखाया और बाद में जो उसने प्रेरणा से मसीही युनानी शास्त्र के रूप में लिखा, इसी तरह “सत्य” है। यह सत्य एक व्यक्ति को पवित्र कर सकता है, उसके जीवन को पूरी तरह बदल सकता है, और उसे संसार से एक अलग व्यक्ति बना सकता है।
यीशु अब “इन्हीं के लिए बिनती नहीं करता, परन्तु उन के लिए भी जो वचन के द्वारा [उस] पर विश्वास करेंगे।” इस प्रकार, यीशु उन के लिए प्रार्थना करते हैं जो उनके अभिषिक्त अनुयायी बनेंगे और अन्य भावी शिष्यों के लिए जो “एक झुण्ड” में जमा किए जाएँगे। वे इन सब जनों के लिए क्या बिनती करते हैं?
“वे सब एक हों, जैसा तू, हे पिता, मुझ में है और मैं तुझ में हूँ, . . . कि वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं।” यीशु और उनके पिता शाब्दिक रूप से एक ही व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन हर विषय पर वे एक दूसरे से सहमत हैं। यीशु प्रार्थना करते हैं कि उनके अनुयायी भी ऐसी एकता का आनंद उठाएँ, जिससे कि “जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तू ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही उन से प्रेम रखा।”
उन व्यक्तियों की ख़ातिर जो उनके अभिषिक्त अनुयायी होंगे, यीशु अब अपने स्वर्गीय पिता से बिनती करते हैं। किस लिए? “जहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ हों कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तू ने मुझे दी है, क्योंकि तू ने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझ से प्रेम रखा,” अर्थात, आदम और हव्वा सन्तान उत्पन्न करने से पहले। उससे बहुत पहले, परमेश्वर अपने एकलौते पुत्र से प्रेम रखते थे, जो यीशु मसीह बना।
अपनी प्रार्थना को समाप्त करते हुए यीशु फिर ज़ोर देते हैं: “मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूँगा, ताकि जो प्रेम तुझ को मुझ से था वह उन में रहे और मैं उन में रहूँ।” प्रेरितों के लिए, परमेश्वर के नाम को जानना उसके प्रेम को व्यक्तिगत तौर पर जानना हुआ। यूहन्ना १४:१-१७:२६; १३:२७, ३५, ३६; १०:१६; लूका २२:३, ४; निर्गमन २४:१०; १ राजा १९:९-१३; यशायाह ६:१-५; गलतियों ६:१६; भजन ३५:१९; ६९:४; नीतिवचन ८:२२, ३०.
▪ यीशु कहाँ जा रहे हैं, और वहाँ के मार्ग के विषय में थोमा को क्या जवाब मिलता है?
▪ अपनी बिनती से, प्रत्यक्षतः फिलिप्पुस यीशु से क्या माँग करता है?
▪ ऐसा क्यों है कि जिसने यीशु को देखा है उसने पिता को भी देखा है?
▪ किस प्रकार यीशु के अनुयायी उसे से भी बड़े काम करेंगे?
▪ किस अर्थ में, शैतान का यीशु में कुछ नहीं?
▪ यहोवा ने प्रतिकात्मक दाख़लता कब लगाई, और कब और कैसे दूसरे उस दाख़लता का हिस्सा बनते हैं?
▪ अन्त में, उस प्रतीकात्मक दाख़लता की कितनी डालियाँ होती है?
▪ परमेश्वर उन डालियों से क्या फल चाहते हैं?
▪ हम यीशु के दोस्त कैसे बन सकते हैं?
▪ यीशु के अनुयायियों से संसार क्यों बैर रखता है?
▪ यीशु की कौनसी चेतावनी उसके प्रेरितों को परेशान कर देती है?
▪ वह कहाँ जा रहा है, यह सवाल यीशु से पूछने में प्रेरित क्यों चूकते हैं?
▪ प्रेरित ख़ासकर क्या समझने में असफल होते हैं?
▪ प्रेरितों की स्थिति शोक से आनंद में बदलेगी यह यीशु कैसे चित्रित करते हैं?
▪ प्रेरित जल्द कुछ करेंगे इस पर यीशु क्या कहते हैं?
▪ कैसे यीशु संसार पर जीत पाते हैं?
▪ किस अर्थ में यीशु को “सब प्राणियों पर अधिकार” दिया जाता है?
▪ परमेश्वर और उनके पुत्र का ज्ञान लेने का क्या अर्थ है?
▪ किन तरीक़ों से यीशु परमेश्वर के नाम को प्रकट करते हैं?
▪ “सत्य” क्या है, और वह कैसे एक मसीही को “पवित्र” करता है?
▪ परमेश्वर, उनका पुत्र, और सभी सच्चे उपासक कैसे एक हैं?
▪ “जगत की उत्पत्ति” कब थी?
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बाग़ में व्यथावह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११७
बाग़ में व्यथा
जब यीशु प्रार्थना करना समाप्त करते हैं, वे और उनके ११ वफादार प्रेरित यहोवा को स्तुति के गीत गाते हैं। फिर वे ऊपरी कमरे से उतरकर, रात की ठण्डे अन्धकार में निकलते हैं, और किद्रोन तराई से होकर बैतनियाह के तरफ चल पड़ते हैं। लेकिन रास्ते में, वे एक मन पसन्द जगह, गतसमनी का बाग़, में रुकते हैं। यह जैतून पहाड़ पर या उसके आसपास स्थित है। अक़सर यीशु अपने प्रेरितों के साथ यहाँ जैतून के पेड़ों के बीच मिला करते थे।
आठ प्रेरितों को—शायद बाग़ के प्रवेश द्वार के निकट—छोड़कर वे उन्हें आदेश देते हैं: “यहीं बैठे रहना, जब कि मैं वहाँ जाकर प्रार्थना करूँ।” फिर वह अन्य तीन—पतरस, याकूब और यूहन्ना—को साथ लेकर बाग़ में और आगे जाता है। यीशु उदास और हद से ज़्यादा बेक़रार होते हैं। वे उन्हें कहते हैं, “मेरा जी मौत तक बहुत उदास है, तुम यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।”—NW.
थोड़ा और आगे बढ़कर यीशु मुँह के बल गिर जाते हैं और गम्भीरता से प्रार्थना करने लगते हैं: “हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए। तौभी, जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।” उनके कहने का मतलब क्या है? क्यों वह “मौत तक बहुत उदास है”? क्या वह मरने और छुटकारे का प्रबन्ध प्रदान करने के फ़ैसले से पीछे हट रहा है?
बिलकुल नहीं! यीशु मौत से बचने की विनती नहीं कर रहे हैं। यहाँ तक कि एक बलिदान रूपी मौत को टालने का ख़्याल, जिसका सुझाव पतरस ने एक बार दिया था, उसके लिए घृणित है। इसके बजाय, वह इसलिए व्यथा में है क्योंकि वह डर रहा है कि मरने का तरीका—एक तुच्छ अपराधी के समान—पिता के नाम पर कलंक लाएगा। वह अब यह महसूस कर रहा है कि कुछ ही घंटों में उसे एक बदतरीन क़िस्म का व्यक्ति—परमेश्वर के ख़िलाफ़ एक निन्दक—के जैसे स्तंभ पर चढ़ाया जाएगा! यह बात उसे अत्यधिक व्याकुल कर रही है।
देर तक प्रार्थना करने के बाद, यीशु वापस आकर तीनों प्रेरितों को सोते हुए पाते हैं। पतरस को संबोधित करते हुए, वे कहते हैं: “क्या तुम मेरे साथ एक घड़ी भी न जाग सके? जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” तो भी उनके ऊपर आए तनाव और घड़ी की देरी को मानते हुए, वह कहता है: “आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।”
यीशु फिर दूसरी बार जाकर परमेश्वर से “यह कटोरा,” अर्थात, उसके लिए यहोवा का नियत भाग, या इच्छा, हटाने की विनती करते हैं। जब वह वापस आता है, वह दोबारा तीनों को सोता हुआ पाता है जबकि उन्हें प्रार्थना करनी चाहिए थी कि वे प्रलोभन में न पड़े। जब यीशु उन से बात करते हैं, वे यह नहीं जानते कि क्या जवाब दें।
अन्त में, तीसरी बार, यीशु कुछ दूरी तक जाते हैं और घुटने टेककर ऊँची आवाज़ से और आसुओं के साथ प्रार्थना करते हैं: “हे पिता, यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले।” एक अपराधी के समान मृत्यु से अपने पिता के नाम पर आनेवाली बदनामी के कारण, यीशु तीव्रता से दर्द महसूस कर रहे हैं। अजी, ईश-निन्दक—वह जो परमेश्वर को शाप देता है—होने का इलज़ाम सहा नहीं जाता!
फिर भी, यीशु प्रार्थना जारी रखते हैं: “जो मैं चाहता हूँ, वह नहीं, परन्तु जो तू चाहता है।” यीशु आज्ञाकारिता से अपनी इच्छा परमेश्वर के आधीन करते हैं। इस पर, स्वर्ग से एक दूत दिखायी देता है और उसे प्रोत्साहनदायक शब्दों से सामर्थ देता है। संभवतः, स्वर्गदूत यीशु को बताता है कि पिता की स्वीकृती उस पर है।
तो भी, यीशु के कन्धों पर कितना बोझ! उसका अपना और सम्पूर्ण मानवजाति का अनन्त जीवन तराज़ू पर लटका हुआ है। भावनात्मक तनाव बहुत है। इसलिए यीशु अधिक गंभीरता से प्रार्थना करते हैं, और उनका पसीना रक्त की बूँदों के जैसे ज़मीन पर गिरते हैं। अमेरिकन चिकित्सा-समुदाय का जर्नल (The Journal of the American Medical Association) नामक पत्रिका अवलोकन करती है, “हालाँकि यह एक बहुत ही विरल दृश्यघटना है, रक्त का पसीना . . . अत्यन्त भावनात्मक अवस्था में आ सकते हैं।”
इसके बाद, यीशु तीसरी बार अपने प्रेरितों के पास लौटते हैं, और एक बार फिर उन्हें सोए हुए पाते हैं। वे शोक के वजह से थक गए हैं। वह चिल्ला उठता है, “ऐसे समय पर तुम सो रहे हो और विश्राम करते हो! बहुत हो गया! घड़ी आ पहुँची है! देखो! मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथ पकड़वाया जाता है। उठो, चलें! देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुँचा है।”—NW.
जब वे बोल ही रहे हैं, एक बड़ी भीड़ यहूदा इस्करियोती के साथ मशाल और बत्ती और हथियार लिए आती है। मत्ती २६:३०, ३६-४७; १६:२१-२३; मरकुस १४:२६, ३२-४३; लूका २२:३९-४७; यूहन्ना १८:१-३; इब्रानियों ५:७.
▪ ऊपरी कमरा छोड़ने के बाद, यीशु प्रेरितों को कहाँ ले जाते हैं, और वह वहाँ क्या करता है?
▪ जब यीशु प्रार्थना कर रहे हैं, प्रेरित क्या कर रहे हैं?
▪ यीशु व्यथा में क्यों हैं, और वह परमेश्वर से क्या विनती करता है?
▪ यीशु का पसीना रक्त की बूँद बनने से क्या सूचित होता है?
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विश्वासघात और गिरफ़्तारीवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११८
विश्वासघात और गिरफ़्तारी
जब यहूदा सैनिक, महायाजक, फरीसी और अन्य जनों की बड़ी भीड़ को गतसमनी के बाग़ में ले आता है, तब आधी रात से अधिक वक़्त गुज़र चुका है। यीशु का विश्वासघात करने के लिए याजकों ने यहूदा को ३० चाँदी के सिक्के देने में सहमत हुए हैं।
इससे पहले, जब यहूदा को फसह के भोजन से विदा किया गया था, वह स्पष्टतया सीधे महायाजकों के पास गया था। इन्होंने तुरन्त अपने अफ़सर, और इनके अतिरिक्त सैनिकों का दल को भी इकट्ठा किया। शायद यहूदा उन्हें पहले वहाँ ले गया होगा जहाँ यीशु और उसके प्रेरितों ने फसह मनाया था। यह पता लगाने पर कि वे वहाँ से निकल चुके हैं, हथियार और बत्ती और मशाल लिए हुई बड़ी भीड़ यहूदा का पीछा यरूशलेम से बाहर और किद्रोन तराई के पार करती है।
जैसे यहूदा जुलूस को जैतून के पहाड़ पर ले जाता है, उसे यक़ीन होता है कि उसे यीशु का पता चल गया है। पिछले सप्ताह के दौरान, जैसे यीशु और प्रेरित बैतनियाह और यरूशलेम के दरमियान आगे-पीछे यात्रा करते, वे अक़सर विश्राम और बातचीत करने गतसमनी के बाग़ में रुकते थे। लेकिन, अब, यीशु जैतून के पेड़ों के नीचे अन्धकार में शायद छिपे होने के वजह से, सैनिक उसे कैसे पहचानेंगे? उन्होंने उसे पहले कभी देखा भी नहीं होगा। इसलिए यहूदा यह कहते हुए एक चिह्न देता है: “जिस को मैं चूमूँ, वही है, उसे पकड़कर यतन से ले जाना।”—NW.
यहूदा उस बड़ी भीड़ को बाग़ में ले जाता है, यीशु को अपने प्रेरितों के साथ देखकर सीधे उनके पास जाता है। “हे रब्बी, नमस्कार!” और उसे कोमलता से चूमता है।
यीशु प्रत्युत्तर देते हैं, “हे मित्र, तू किस उद्देश्य से उपस्थित है?” (NW) फिर, अपने ही सवाल का जवाब देते हुए वे कहते हैं: “यहूदा, क्या तू चूमा लेकर मनुष्य के पुत्र को पकड़वाता है?” लेकिन उनके विश्वासघात करनेवाले का बहुत हो चुका! यीशु जलती बत्ती और मशालों की रोशनी में आगे बढ़ते हुए पूछते हैं: “तुम किसे ढूँढ़ते हो?”
जवाब मिलता है, “यीशु नासरी को।”
यीशु साहसीपूर्वक सबके सामने खड़े होकर जवाब देते हैं, “वह मैं हूँ।” उनकी निडरता से अचंभित होकर और यह नहीं जानते हुए कि क्या होगा, वे मनुष्य पीछे हटते हैं और ज़मीन पर गिर पड़ते हैं।
यीशु शान्ति से बात जारी रखते हैं, “मैं तुम्हें बता चुका हूँ कि वह मैं हूँ, यदि मुझे ढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।” कुछ देर पहले ऊपरी कमरे में यीशु ने प्रार्थना में अपने पिता से कहा था कि उसने अपने वफादार प्रेरितों को साथ रखा है और “विनाश के पुत्र को छोड़कर” उन में से एक भी खोया नहीं था। इसलिए, अपने वचनों की पूर्ति के लिए वह पूछता है कि अपने शिष्यों को जाने दे।
जैसे सैनिक अपने आत्मसंयम दोबारा प्राप्त करके, खड़े होकर यीशु को बाँधने लगते हैं, क्या होनेवाला है यह प्रेरित जान लेते हैं। वे पूछते हैं, “हे प्रभु, क्या हम तलवार चलाएँ?” यीशु जवाब देने से पहले, पतरस, प्रेरितों द्वारा लायी गयी दो तलवारों में से एक को निकालकर, महायाजक के एक दास मलखुस पर हमला करता है। पतरस का हमला दास का सिर चूकता है पर उसका दाहिना कान उड़ा देता है।
यीशु दख़ल देते हुए कहते हैं, “अब बस करो।” मलखुस के कान को छुते हुए वे ज़ख़्म को चंगा कर देते हैं। फिर पतरस को हुक़्म देते हुए, वे एक महत्त्वपूर्ण सबक़ सिखाते हैं, “अपनी तलवार काठी में रख ले, क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएँगे। और क्या तू नहीं समझता, कि मैं अपने पिता से बिनती कर सकता हूँ, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा?”
यीशु गिरफ़्तार होने राज़ी हैं, चूँकि वे समझाते हैं: “पवित्र शास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, कैसे पूरी होंगी?” और वे आगे कहते हैं, “जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है, उसे मैं क्यों न पीऊँ?” उनके लिए परमेश्वर की इच्छा से वे पूरी तरह सहमत हैं!
फिर यीशु भीड़ को संबोधित करते हैं। वे पूछते हैं, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे डाकू के समान पकड़ने के लिए निकले हो? मैं हर दिन मंदिर में बैठकर उपदेश दिया करता था, और तुम ने मुझे नहीं पकड़ा। परन्तु यह सब इसलिए हुआ है कि भविष्यवक्ताओं के वचन पूरे हों।”
इस पर सैनिकों का दल और सेनापति और यहूदियों के अफ़सर यीशु को पकड़ते हैं और उन्हें बाँध देते हैं। यह देखकर, प्रेरित यीशु को त्यागकर भाग जाते हैं। बहरहाल, एक युवक—शायद यह शिष्य मरकुस है—भीड़ के साथ रहता है। शायद वह उस घर में था जहाँ यीशु ने फसह मनाया था और बाद में वहाँ से भीड़ के पीछे आया होगा। तथापि, अब, वह पहचान लिया जाता है, और उसे पकड़ने की कोशिश की जाती है। पर वह अपने वस्त्र पीछे छोड़कर भाग जाता है। मत्ती २६:४७-५६; मरकुस १४:४३-५२; लूका २२:४७-५३; यूहन्ना १७:१२; १८:३-१२.
▪ यहूदा को क्यों यक़ीन होता है कि वह यीशु को गतसमनी के बाग़ में पाएगा?
▪ यीशु अपने प्रेरितों के लिए चिन्ता कैसे ज़ाहिर करते हैं?
▪ यीशु के बचाव में पतरस क्या कार्यवाही करता है, लेकिन इसके बारे में यीशु पतरस सें क्या कहते हैं?
▪ यीशु कैसे प्रकट करते हैं कि उनके लिए परमेश्वर की इच्छा से वे पूरी तरह सहमत हैं?
▪ जब प्रेरित यीशु को त्याग देते हैं, कौन रह जाता है, और उसके साथ क्या होता है?
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हन्ना के पास, फिर काइफ़ा के पास ले जाया गयावह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय ११९
हन्ना के पास, फिर काइफ़ा के पास ले जाया गया
यीशु, एक सामान्य अपराधी के जैसे बँधा, प्रभावकारी भूतपूर्व महायाजक हन्ना के पास ले जाया जाता है। हन्ना तब महायाजक था जब १२-वर्षीय बालक के रूप में यीशु ने मंदिर के रब्बी पद के शिक्षकों को चकित किया था। बाद में हन्ना के कई बेटों ने महायाजक का काम सँभाला, और अब उसका दामाद काइफ़ा उस पद पर है।
यहूदी धार्मिक जीवन में हन्ना की लंबी अवधि के लिए ऊँचा स्थान के वजह से यीशु को संभवतः पहले हन्ना के घर ले जाया गया। हन्ना को देखने के लिए ले जाने से महायाजक काइफ़ा को महासभा, ७१-सदस्यों का यहूदी उच्च-न्यायालय, एकत्र करने के अलावा झूठे गवाह इकट्ठा करने का वक़्त भी मिलता है।
मुख्य याजक हन्ना अब यीशु से उनके शिष्य और शिक्षाओं के बारे में सवाल पुछता है। बहरहाल, यीशु जवाब में कहते हैं: “मैं ने जगत से खोलकर बातें की है। मैं ने सभाओं और आराधनालय में जहाँ सब यहूदी इकट्ठे हुआ करते हैं सदा उपदेश किया; और गुप्त में कुछ भी नहीं कहा। तू मुझ से क्यों पूछता है? सुननेवालों से पूछ कि मैं ने उन से क्या कहा? देख, वे जानते हैं, कि मैं ने क्या क्या कहा।”
इस पर, यीशु के समीप खड़ा एक अफ़सर उसे मुँह पर थप्पड़ मारकर कहता है: “क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है?”
“यदि मै ने गलत कहा,” यीशु जवाब देते हैं, “तो यह गलती पर गवाही दे; परन्तु यदि सही कहा, तो मुझे क्यों मारता है?” इस आदान-प्रदान के बाद, हन्ना यीशु को बँधे हुए काइफ़ा के पास भेजता है।
अब तक सभी महायाजक और पुरनिए और शास्त्री, हाँ, पूरी महासभा, एकत्र हो रही है। उनका मिलनस्थान स्पष्टतया काइफ़ा का घर है। फसह की रात ऐसी परीक्षा चलाना यहूदी क़ानून के साफ-साफ़ ख़िलाफ़ है। लेकिन यह धार्मिक अगुओं को उनके दुष्ट उद्देश्य से नहीं रोक पाता।
कई सप्ताह पहले, जब यीशु ने लाज़र का पुनरुत्थान किया था, महासभा ने पहले से आपस में फ़ैसला कर लिया था कि उसने ज़रूर मरना चाहिए। और सिर्फ़ दो दिन पहले, बुधवार के रोज़, धार्मिक अधिकारियों ने यीशु को चालबाज़ युक्ति से पकड़कर मार डालने की योजना बनायी। कल्पना करें, उसे दरअसल अपने परीक्षण से पहले ही अपराधी ठहराया गया!
गवाह ढूँढ़ने की कोशिशें जारी है जिनके झूठी गवाही से यीशु के ख़िलाफ मुक़दमा तैयार हो सके। लेकिन, ऐसा कोई गवाही प्राप्त नहीं होता जो अपनी गवाही से सहमत हैं। आख़िरकार, दो व्यक्ति सामने आकर दावे के साथ कहते हैं: “हम ने इसे यह कहते सुना, ‘मैं इस हाथ के बनाए हुए मंदिर को ढ़ा दूँगा, और तीन दिन में दूसरा बनाऊँगा जो हाथ से न बना हो।’”
“तू कोई उत्तर नहीं देता?” काइफ़ा पुछता है। “ये लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं?” परन्तु यीशु चुप रहते हैं। इस झूठे आरोप में भी, महासभा का अवमान होता है, चूँकि गवाहों की अपनी कहानियाँ बनती नहीं। इसलिए महायाजक एक और चाल चलता है।
काइफ़ा जानता है कि परमेश्वर का पुत्र होने का दावा करनेवाले के बारे में यहूदी कितने तुनक-मिज़ाज हैं। पहले दो मौकों पर, उन्होंने यीशु पर मौत के योग्य ईश्वर-निन्दक का बेहिसाब इलज़ाम लगाया। एक बार तो उन्होंने गलती से यह मान लिया कि वह परमेश्वर के बराबर होने का दावा कर रहा है। काइफ़ा अब चालाकी से माँगता है: “मैं तुझे जीवते परमेश्वर की शपथ देता हूँ, कि यदि तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे।”
यहूदी चाहे कुछ भी सोचते हों, यीशु असल में परमेश्वर का बेटा है। वह मसीह होने से नकारता है यह अर्थ चुप रहने से लगाया जा सकता है। इसलिए यीशु साहसपूर्वक जवाब देते हैं: “मैं हूँ; और तुम लोग मनुष्यों के पुत्र को सर्वशक्तिमान के दहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे।”
इस पर, काइफ़ा, नाटकीय दिखावे में, अपने वस्त्र फाड़ता है और चिल्लाता है: “इस ने परमेश्वर की निन्दा की है! अब हमें गवाही का क्या प्रयोजन? देखो! तुम ने अभी यह निन्दा सुनी है। तुम क्या समझते हो?”
“वह वध होने के योग्य है,” महासभा घोषणा करती है। फिर वे उसका मज़ाक उड़ाने लगते हैं, और वे उसकी निन्दा में बहुत कुछ कहते हैं। वे उसके मुँह पर थप्पड़ मारते हैं और थूकते हैं। दूसरे उसके चेहरे को ढ़ाँककर अपने घूँसों से मारकर व्यंगात्मक रूप से कहते हैं, “हे मसीह, हम से भविष्यवाणी कर, किस ने तुझे मारा?” यह निन्दात्मक, ग़ैर-क़ानूनी बरताव रात के परीक्षण के दौरान घटित होती है। मत्ती २६:५७-६८; २६:३, ४; मरकुस १४:५३-६५; लूका २२:५४, ६३-६५; यूहन्ना १८:१३-२४; ११:४५-५३; १०:३१-३९; यूहन्ना ५:१६-१८.
▪ यीशु को पहले कहाँ ले जाया जाता है, और वहाँ उनके साथ क्या होता है?
▪ इसके बाद यीशु को कहाँ ले जाया जाता है, और किस उद्देश्य के लिए?
▪ यीशु मौत के योग्य है, महासभा द्वारा यह घोषणा करवाने में काइफ़ा किस तरह सफल होता है?
▪ परीक्षण के दौरान किस तरह का निन्दात्मक, ग़ैर-क़ानूनी बरताव घटित होती है?
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आँगन में इनक़ारवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२०
आँगन में इनक़ार
गतसमनी के बाग में यीशु को छोड़ने और डर के वजह से बाकी प्रेरितों के साथ भागने के बाद, पतरस और यूहन्ना अपने पलायन में रुक जाते हैं। शायद वे यीशु के पास आ जाते हैं जब उसे हन्ना के घर ले जाया जाता है। जब हन्ना उसे महायाजक काइफ़ा के पास भेजता है, पतरस और यूहन्ना काफी दूरी पर रहकर पीछा करते हैं, स्पष्टतः वे अपनी जान संकट में पड़ने के डर से और गुरु के साथ क्या होगा इसके प्रति गहरा फ़िक्र के मानसिक संघर्ष में पड़े हुए हैं।
काइफ़ा के विस्तृत मकान पहुँचने पर, यूहन्ना आँगन में प्रवेश करने में समर्थ है क्योंकि महायाजक उसे जानता है। लेकिन, पतरस, दरवाज़े पर खड़ा रह जाता है। परन्तु जल्द ही यूहन्ना वापस आकर द्वारपालिन, एक दासी, से बात करता है, और पतरस को अन्दर जाने की इजाज़त मिलती है।
अब, ठंड पड़ने लगी है, और घर के सेवक और महायाजक के अफ़सरों ने कोयले की आग जला ली है। जबकि पतरस यीशु का परीक्षण का परिणाम का इंतज़ार कर रहा है वह तापने के लिए उनके साथ मिल जाता है। वह द्वारपालिन, जिसने पतरस को अन्दर आने दिया, तेज़ आग की रोशनी में उसे अच्छी तरह देख लेती है। “तू भी, यीशु गलीली के साथ था!” वह चिल्लाती है।
पहचाने जाने पर परेशान होकर, पतरस सब के सामने यीशु को जानने से इनकार करता है। वह कहता है: “मैं तो उसे नहीं जानता और नहीं समझता कि तू क्या कह रही है।”
इस पर, पतरस दरवाज़े के पास चला जाता है। उधर, एक और लड़की उसे पहचानकर पास खड़े जनों से कहती है। “यह तो यीशु नासरी के साथ था।” एक बार फिर पतरस इनकार करते हुए शपथपूर्वक कहता है: “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता!”
पतरस आँगन में रहता है, और जहाँ तक हो सके वह अप्रकट होने की कोशिश करता है। शायद इस समय पर वह भोर के अन्धेरे में मुर्ग की बाँग से चौंक जाता है। इस बीच, यीशु का परीक्षण जारी है, शायद घर के उस भाग में जो आँगन के ऊपर है। बेशक पतरस और नीचे इंतज़ार कर रहे अन्य जन गवाही के लिए लाए अनेक गवाहों को आते-जाते देखते हैं।
तब से क़रीब एक घंटा बीत चुका है जब पतरस को आख़री बार यीशु का साथी करके पहचाना गया। अब आस-पास खड़े हुए अनेक जन उसके पास आकर कहते हैं: “सचमुच तू भी उन में से एक है, क्योंकि तेरी बोली तेरा भेद खोल देती है।” उस दल में मलखुस, जिसका कान पतरस ने काटा था, का रिश्तेदार है। “क्या मैं ने तुझे उसके साथ बाग़ में न देखा था?” वह कहता है।
“मैं उस मनुष्य को नहीं जानता!” पतरस प्रबलता से दावा करता है। दरअसल, इस मामले को धिक्कारने और शपथ खाने से वह उनको क़ायल करने की कोशिश करता है कि वे भूल कर रहे हैं, वस्तुतः, अगर वह सच नहीं बोल रहा तो अपने ऊपर अनिष्ट ला रहा है।
जैसे ही पतरस यह तीसरा इनक़ार करता है, एक मुर्गा बाँग देता है। और उसी क्षण, यीशु, जो प्रत्यक्षतः आँगन के ऊपर छज्जे पर निकल आए हैं, घूमकर उसे देखते हैं। फ़ौरन, पतरस यीशु द्वारा कुछ घंटों पहले ऊपरी कमरे में कहे शब्दों को याद करता है: “मुर्ग के दो बार बाँग देने से पहले, तू तीन बार मेरा इनक़ार करेगा।” (NW) अपने पाप के भार में दब जाने से, पतरस बाहर जाकर फूट-फूट कर रोता है।
यह कैसे हो सकता है? अपनी आध्यात्मिक बल पर इतना निश्चित होने के बावजूद, पतरस कुछ ही समय के अंदर लगातार तीन बार अपने गुरु को कैसे इनकार कर सकता है? बेशक हालात पतरस को अनजाने में पकड़ लेती है। सत्य को एक ग़लत अर्थ दिया जा रहा है, और यीशु को एक नीच मुजरिम के रूप में चित्रित किया जा रहा हैं। जो सही है उसे ग़लत, बेक़सूर को मुल्जिम दिखाया जा रहा है। इसलिए हालात के दबावों के कारण, पतरस संतुलन खो बैठा। एकाएक उसकी वफादारी की सही समझ अस्त-व्यस्त हो जाती है; वह लोगों के डर के कारण अशक्त हो जाता है। ऐसा हमारे साथ कभी न हो! मत्ती २६:५७, ५८, ६९-७५; मरकुस १४:३०, ५३, ५४, ६६-७२; लूका २२:५४-६२; यूहन्ना १८:१५-१८, २५-२७.
▪ पतरस और यूहन्ना महायाजक के आँगन में कैसे प्रवेश प्राप्त करते हैं?
▪ जब पतरस और यूहन्ना आँगन में हैं, घर में क्या चल रहा है?
▪ एक मुर्गा कितनी बार बाँग देता है, और कितनी बार पतरस मसीह को जानने से इनक़ार करता है?
▪ पतरस धिक्कारता है और शपथ खाता है, इसका क्या अर्थ है?
▪ यीशु को जानने से इनक़ार करने में पतरस को क्या प्रेरित करता है?
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महासभा के सामने, फिर पीलातुस के पासवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२१
महासभा के सामने, फिर पीलातुस के पास
रात बीतने वाली है। पतरस यीशु को तीन बार इनक़ार कर चुका है, और महासभा के सदस्यों ने अपना बनावटी परीक्षण कर लिया है और बिखर चुके हैं। तथापि, जैसे ही शुक्रवार का भोर होता है, वे फिर इकट्ठे होते हैं, इस बार अपने महासभा के सभा-भवन में। शायद रात का परीक्षण को क़ानूनियत का रूप देना उनका मक़सद है। जब यीशु को उनके सामने लाया जाता है, वे वैसे ही कहते हैं जैसे उन्होंने रात को कहा था: “अगर तू मसीह है, हमें बता दे।”
“यदि मैं तुम से कहूँ, तो तुम मेरा यक़ीन नहीं करोगे,” यीशु जवाब देते हैं। “और यदि पूछूँ, तो जवाब न दोगे।” (NW) बहरहाल, यीशु साहसपूर्वक यह कहते हुए अपना परिचय देते हैं: “अब से मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दाहिनी ओर बैठा रहेगा।”
“तो, क्या तू परमेश्वर का पुत्र है?” सब जानना चाहते हैं।
“तुम आप ही कहते हो, कि मैं हूँ।” यीशु जवाब देते हैं।
क़त्ल का इरादा करनेवाले आदमियों के लिए यह जवाब काफी है। वे इसे ईश-निन्दा मानते हैं। “अब हमें गवाही का क्या प्रयोजन?” वे पूछते हैं। “क्योंकि हम ने आप ही उसके मुँह से सुन लिया है।” इसलिए वे यीशु को बाँधकर ले जाते हैं और उसे रोमी हाकिम पुन्तियुस पीलातुस को सौंप देते हैं।
यीशु का पकड़वानेवाला, यहूदा, घटनाओं को देख रहा है। जब वह देखता है कि यीशु को दोषी ठहराया गया है, वह पश्चात्ताप महसूस करता है। इसलिए वह ३० चाँदी के सिक्के वापस करने महायाजक और पुरनियों के पास जाकर समझाता है: “मैं ने निर्दोषी को घात के लिए पकड़वाकर पाप किया है।”
“हमें क्या? तू ही जान!” वे निर्दयता से जवाब देते हैं। इसलिए यहूदा चाँदी के सिक्के मंदिर में फेंककर चला जाता है और अपने आपको फाँसी लगाने का प्रयास करता है। लेकिन, जिस टहनी से यहूदा रस्सी बाँधता है वह स्पष्टतया टूट जाती है, और उसका शरीर नीचे चट्टानों पर गिरता है, जहाँ वह फट पड़ता है।
महायाजक निश्चित नहीं है कि चाँदी के सिक्कों से क्या किया जाए। “इन्हें भण्डार में रखना उचित नहीं,” वे निष्कर्ष निकालते हैं “क्योंकि यह लोहू का दाम है।” इसलिए आपस में सम्मति के बाद, वे परदेसियों के गाड़ने के लिए कुम्हार का खेत मोल ले लेते हैं। इस कारण वह खेत “लोहू का खेत” कहलाया।
जब यीशु को हाकिम के महल ले जाया जाता है, अभी तक भोर का समय है। परन्तु उसके साथ आए यहूदी प्रवेश करने से इनकार करते हैं क्योंकि वे विश्वास करते हैं कि अन्य जातियों के साथ ऐसी घनिष्टता उन्हें अपवित्र कर देगी। सो उन्हें लिहाज़ दिखाने, पीलातुस बाहर आ जाता है। “तुम इस मनुष्य पर किस बात की नालिश करते हो?” वह पूछता है।
“अगर वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपते,” वे जवाब देते हैं।
उलझन से बचने की इच्छा करते हुए, पीलातुस जवाब देता है: “तुम ही इसे ले जाकर अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करो।”
अपने ख़ूनी इरादों को ज़ाहिर करते हुए, यहूदी दावा करते हैं: “हमें अधिकार नहीं की किसी का प्राण लें।” वाक़ई, अगर वे फसह के पर्व के दौरान यीशु को मार देते हैं, तो संभवतः इससे लोगों में हंगामा पैदा हो जाएगा, चूँकि बहुत से लोग यीशु का आदर करते हैं। लेकिन अगर वे राजनीतिक इलज़ामों पर रोमीयों के द्वारा उसे मार डाल सकते हैं, तो यह लोगों के सामने उन्हें निरपराध ठहराएगा।
इसलिए यह धार्मिक अगुए अपने पहले की गयी परीक्षण का ज़िक्र न करते हुए, जिसके दौरान उन्होंने यीशु पर ईश-निन्दा का इलज़ाम लगाया था, अब अनेक इलज़ाम गढ़ते हैं। वे तीन-भाग इलज़ाम लगाते हैं: “हम ने इसे [१] लोगों को बहकाते और [२] कैसर को कर देने से मना करते और [३] अपने आप को मसीह राजा कहते हुए सुना है।”
यह इलज़ाम कि यीशु राजा होने का दावा करते हैं पीलातुस को चिन्तित करता है। इसलिए, वह दुबारा महल में आकर यीशु को अपने पास बुलाता है, और पुछता है: “क्या तू यहुदियों का राजा है?” दूसरे शब्दों में, क्या तू ने अपने को कैसर के विरूद्ध में राजा कहकर क़ानून तोड़ा है?
यीशु जानना चाहते हैं कि पीलातुस पहले से उनके बारे में कितना जान चुका है, इसलिए वे पुछते हैं: “क्या तू यह बात अपनी ओर से कहता है या औरों ने मेरे विषय में तुझ से कही?”
पीलातुस उसके बारे में अज्ञान है और तथ्यों को जानने की इच्छा दिखाता है। “क्या में यहूदी हूँ?” वह कहता है। “तेरी ही जाति और महायाजकों ने तुझे मेरे हाथ में सौंपा। तू ने क्या किया है?”
यीशु किसी भी तरह से राजत्व के मसले से बच जाने की कोशिश नहीं करते। बेशक जो जवाब यीशु अब देते हैं वह पीलातुस को आश्चर्यचकित करता है। लूका २२:६६-२३:३; मत्ती २७:१-११; मरकुस १५:१; यूहन्ना १८:२८-३५; प्रेरितों के काम १:१६-२०.
▪ महासभा सुबह दुबारा किस उद्देश्य के लिए मिलती है?
▪ यहूदा किस तरह मरता है, और ३० चाँदी के सिक्कों से क्या किया जाता है?
▪ यीशु को ख़ुद मार डालने के बजाय, यहूदी क्यों चाहते हैं कि उसे रोमी मारे?
▪ यीशु के ख़िलाफ़ यहूदी क्या इलज़ाम लगाते हैं?
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पीलातुस से हेरोदेस के पास और वापसवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२२
पीलातुस से हेरोदेस के पास और वापस
हालाँकि यीशु पीलातुस से यह छिपाने कि कोई कोशिश नहीं करता कि वह राजा है, वह व्याख्या करता है कि उसका राज्य रोम के लिए कोई ख़तरा नहीं है। “मेरा राज्य इस जगत का नहीं,” यीशु जवाब देते हैं, “अगर मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते कि मैं यहुदियों के हाथ सौंपा न जाता। परन्तु, अब मेरा राज्य यहाँ का नहीं।” यीशु तीन बार मान लेते हैं कि उसका एक राज्य है, हालाँकि वह पार्थिव स्रोत से नहीं है।
फिर भी, पीलातुस उसे और ज़्यादा आग्रह करता है: “तो क्या तू राजा है?” यानी, क्या तू राजा है जबकि तेरा राज्य इस जगत का नहीं?
यीशु पीलातुस को जवाब देते हुए यह बताते हैं कि उसने सही निष्कर्ष निकाला है: “तू ख़ुद कहता है कि मैं राजा हूँ। मैं ने इसलिए जन्म लिया और इसलिए जगत में आया कि सत्य पर गवाही दूँ। जो कोई सत्य का पक्ष पर है, वह मेरी आवाज़ सुनता है।”—NW.
जी हाँ, पृथ्वी पर यीशु के अस्तित्व का मक़सद ही “सत्य” की गवाही देना है, ख़ासकर अपने राज्य के विषय में सत्य। यीशु इस सत्य के लिए वफादार बने रहने को तैयार हैं, चाहे इसकी क़ीमत उनकी जान ही क्यों न हो। यद्यपि पीलातुस पूछता है: “सत्य क्या है?” वह अधिक स्पष्टीकरण के लिए नहीं रुकता। न्याय देने के लिए उसने काफी सुन लिया है।
पीलातुस महल के बाहर इंतज़ार कर रही भीड़ के पास लौटता है। स्पष्टतया यीशु उसके बग़ल में है, वह महायाजक और उनके साथ रहे लोगों को कहता है: “मैं इस मनुष्य में कोई दोष नहीं पाता।”
इस फ़ैसले से क्रोधित होकर भीड़ ज़ोर देने लगती है: “यह गलील से लेकर यहाँ तक सारे यहूदिया में उपदेश दे देकर लोगों को उकसाता है।”
यहुदियों का तर्कहीन हठधर्म तो पीलातुस को विस्मित करता है। इसलिए, जब कि महायाजक और पुरनिए चिल्लाना जारी रखते हैं, पीलातुस यीशु की तरफ मुड़कर पूछता है: “क्या तू नहीं सुनता कि ये तेरे विरोध में कितनी गवाहियाँ दे रहे हैं?” तब भी, यीशु जवाब देने का प्रयास नहीं करते। निराधार इलज़ामों के बावजूद उसकी शान्ति पीलातुस को आश्चर्यचकित करती है।
यह जानकर की यीशु गलीली है, पीलातुस को अपनी ज़िम्मेदारी से छुटने का उपाय नज़र आता है। गलील का शासक, हेरोदेस अन्तिपास (हेरोदेस महान का पुत्र) फसह के लिए यरूशलेम आया हुआ है, इसलिए पीलातुस यीशु को उसके पास भेज देता है। इससे पहले, हेरोदेस अन्तिपास ने यूहन्ना बप्तिस्मा देनेवाले का सिर कटवा दिया था, और फिर यीशु द्वारा किए गए चमत्कारिक कर्मों को सुनकर डर गया, चूँकि वह भयभीत था कि यीशु दरअसल यूहन्ना है जिसे मृतों में से जिलाया गया है।
अब, हेरोदोस यीशु को देखने की प्रत्याशा से अतिप्रसन्न है। यह इसलिए नहीं कि वह यीशु की ख़ैरियत के बारे में चिंतित है या यह जानने की कोशिश कर रहा है कि उसके ख़िलाफ इलज़ाम सही है या नहीं। बल्कि, वह केवल जिज्ञासु है और यह आशा करता है कि यीशु कोई चमत्कार दिखाएँगे।
बहरहाल, यीशु हेरोदेस की जिज्ञासा को संतुष्ट करना अस्वीकार करते हैं। दरअसल, हेरोदेस के सवालों को वे एक लफ़्ज़ भी नहीं कहते। निराश होकर, हेरोदेस और उसके पहरेदार सैनिक यीशु का मज़ाक उड़ाने लगते हैं। वे उसे चटकीले वस्त्र पहनाते हैं और उनका मज़ाक उड़ाते हैं। फिर वे उसे पीलातुस के पास भेज देते हैं। परिणामस्वरूप, हेरोदेस और पीलातुस, जो पहले दुश्मन थे, अच्छे दोस्त बन जाते हैं।
जब यीशु वापस आते हैं, तो पीलातुस महायाजक, यहूदी शासक, और लोगों को एकत्र बुलाकर कहता है: “तूम इस मनुष्य को लोगों का बहकानेवाला ठहराकर मेरे पास लाए हो, और, देखो, मैं ने तुम्हारे सामने उसकी जाँच की पर जिन बातों को तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातों के विषय में मैं ने उस में कुछ दोष नहीं पाया है। न हेरोदेस ने, क्योंकि उसने उसे हमारे पास लौटा दिया है, और, देखो, उससे ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए। इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।”
इस प्रकार पीलातुस ने यीशु को दो बार बेक़सूर ठहराया है। वह उसे छोड़ने के लिए आतुर है, क्योंकि वह समझ जाता है कि केवल जलन की वजह से याजकों ने उसे सौंपा है। जैसे पीलातुस यीशु को छुड़ाने की कोशिश कर रहा है, उसे ऐसा करने की और अधिक प्रेरणा मिलती है। जब वह न्याय की गद्दी पर बैठा है, उसकी पत्नी आग्रह करते हुए एक पैग़ाम भेजती है: “तू उस धर्मी के मामले में हाथ न डालना, क्योंकि मैं ने आज स्वप्न में [स्पष्टतया दिव्य उद्गम का] उसके कारण बहुत दुःख उठाया है।”
फिर भी, पिलातुस इस बेक़सूर आदमी को कैसे छुड़ा सकता है, जो वह करना चाहता है? यूहन्ना १८:३६-३८; लूका २३:४-१६; मत्ती २७:१२-१४, १८, १९; १४:१, २; मरकुस १५:२-५.
▪ अपने राजत्व से संबंधित सवाल का यीशु किस तरह जवाब देते हैं?
▪ वह “सत्य” क्या है जिसके बारे में गवाही देते हुए यीशु ने अपनी पार्थिव जीवन बितायी?
▪ पीलातुस का न्याय क्या है, लोग कैसी प्रतिक्रिया दिखाते हैं, और पीलातुस यीशु के साथ क्या करता है?
▪ हेरोदेस अन्तिपास कौन है, क्यों वह यीशु को देखकर अतिप्रसन्न है, और वह उस के साथ क्या करता है?
▪ क्यों पीलातुस यीशु को छोड़ने के लिए आतुर है?
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“देखो! वह मनुष्य!”वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२३
“देखो! वह मनुष्य!”
यीशु के आचरण से प्रभावित होकर और उसकी निर्दोषता को पहचानकर, पीलातुस उनको छुड़ाने का एक और तरीक़ा अपनाता है। “तुम्हारी यह रीति है,” वह भीड़ से कहता है, “कि मैं फसह में तुम्हारे एक व्यक्ति को छोड़ दूँ।”
बरअब्बा, एक बदनाम ख़ूनी, भी कैद में है, इसलिए पीलातुस पूछता है: “तुम किसे चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिए छोड़ दूँ, बरअब्बा या यीशु को, जो मसीह कहलाता है?”
क़ायल किए गए लोग, जिन्हें महायाजकों ने भड़काया है, बरअब्बा को छोड़ देने की माँग करते हैं पर यीशु को मार डाला जाए। हार न मानते हुए, पीलातुस दुबारा पुछता है: “इन दोनों में से किस को चाहते हो कि तुम्हारे लिए छोड़ दूँ?”
वे चिल्लाते हैं, “बरअब्बा।”
“यीशु, जो मसीह कहलाता है, से मैं क्या करूँ?” पीलातुस निराश होकर पूछता है।
एक बहरा कर देनेवाली चिल्लाहट से, वे जवाब देते हैं: “वह स्तंभ पर चढ़ाया जाए!” “उसे स्तंभ पर चढ़ा दे!”—NW.
यह जानते हुए कि वे एक बेक़सूर मनुष्य की मौत की माँग कर रहे हैं, पीलातुस विनती करता है: “क्यों उसने क्या बुराई की है? मैं ने उस में मृत्यु के दण्ड के योग्य कोई बात नहीं पाई; इसलिए मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूँ।”
उसकी कोशिशों के बावजूद, अपनी धार्मिक अगुओं द्वारा उकसायी गयी क्रोधित भीड़ चिल्लाती रहती है: “वह स्तंभ पर चढ़ाया जाए!” याजकों द्वारा उकसायी गयी पागल भीड़ ख़ून चाहती है। और यह सोचने की बात है कि सिर्फ़ पाँच दिन पहले, इन में शायद वे लोग थे जिन्होंने यरूशलेम में यीशु को राजा के तरह स्वागत किया था! इस समय के दौरान, यीशु के शिष्य, यदि वे उपस्थित हैं, शांत और छिपे हुए रहते हैं।
पीलातुस, यह देखकर कि उसके निवेदनों से कुछ भी लाभ नहीं हो रहा, पर, इसके बजाय, हुल्लड़ मच रहा है, पानी लेता है और भीड़ के सामने अपने हाथ धोते हुए कहता है: “मैं इस धर्मी के लोहू से निर्दोष हूँ, तुम ही जानो।” इस पर, लोग जवाब देते हैं: “इस का लोहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो।”
सो, उनकी माँगों के अनुसार—और जो सही है उसे करने के बजाय भीड़ को ज़्यादा संतुष्ट करने की इच्छा रखकर—पीलातुस उन को बरअब्बा छुड़ा देता है। वह यीशु को ले जाकर उसके वस्त्र निकलवाता है और फिर कोड़े लगवाता है। यह कोई सामान्य कोड़ों की मार नहीं। अमेरिकन चिकित्सा-समुदाय का जर्नल (The Journal of the American Medical Association) कोड़े मारने की रोमी प्रथा का वर्णन करती है:
“अकसर उपयोग किया गया उपकरण एक छोटा चाबुक था (कोड़ा या कशा) जिस में कई एक या गोटा लगाया हुआ अलग-अलग लम्बाइयों में चमड़े के पट्टे होते हैं, जिन में छोटी-छोटी लोहे के गोले या भेड़ की हड्डी के नुकीले टुकड़े कुछ अंतर पर बाँधे जाते हैं। . . . जब रोमी सैनिक पूरे ज़ोर से पीठ पर लगातार मारते, तो लोहे के गोलों से गहरे चोट हो जाते थे, और चमड़े के पट्टे और भेड़ की हड्डियों से चमड़ी और अवत्वचीय ऊतक के अन्दर तक कट जाते थे। फिर, जैसे कोड़ों का मार जारी रहता है, चिरी हुई ज़ख़्म निचली कंकालीय माँसपेशियों तक कटती और माँस का स्रावी थरथराते हुए पतला टुकड़े उत्पन्न होते हैं।”
इस दुःखदायी मार के बाद, यीशु को हाकिम के महल में ले जाया जाता है, और सैनिकों का पूरा दल इकट्ठा किया जाता है। वहाँ सैनिक काँटों का मुकुट गूँथकर और इसे उनके सिर पर घुसेड़ने से उनके साथ और ज़्यादा दुर्व्यवहार करते हैं। वे उनके दाहिनी हाथ में सरकण्डा देते हैं, और उसी तरह का बैंगनी रंग का वस्त्र पहनाते हैं जिसे कोई राजा पहनता है। फिर वे उसकी मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं: “हे यहूदियों के राजा, प्रणाम!” इसके अलावा, वे उनके मुँह पर थप्पड़ मारते और थूकते हैं। उनके हाथ से मज़बूत सरकण्डा लेकर, उनके सिर पर मारते हैं, जिससे वे उनके अपमानजनक “मुकुट” के नुकीला काँटो को उनकी सिर की खाल में और अन्दर घुसेड़ते हैं।
इस दुर्व्यवहार के बावजूद यीशु की उल्लेखनीय गरिमा और ताकत से पीलातुस इतना प्रभावित होता है कि वह उन्हें छुड़ाने का एक और प्रयास के लिए प्रेरित होता है। “देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूँ, ताकि तुम जानो कि मैं कुछ भी दोष नहीं पाता,” वह भीड़ को बताता है। शायद वह सोचता है कि यीशु की दुःखदायी हाल देखकर उनके दिल नरम हो जाएँगे। जैसे यीशु उस निर्दय भीड़ के सामने, काँटों का मुकुट और बैंगनी रंग का बाहरी वस्त्र पहने हुए दर्द से भरा और खून से बहता चेहरा लेकर खड़े रहते हैं, पीलातुस घोषणा करता है: “देखो! वह मनुष्य!”—NW.
यद्यपि यह मनुष्य घायल और पीटा मारा गया है, सारे इतिहास का सब से उत्कृष्ट व्यक्ति यहाँ खड़ा है, सचमुच वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा! हाँ, यीशु एक शांत गरिमा और शान्ति दिखाते हैं जो ऐसी महानता सूचित करती है जिसे पीलातुस भी मंज़ूर करता है, चूँकि उसके शब्द स्पष्टतया दोनों आदर और दया का मिश्रण है। यूहन्ना १८:३९-१९:५; मत्ती २७:१५-१५, २०-३०; मरकुस १५:६-१९; लूका २३:१८-२५.
▪ पीलातुस यीशु को छुड़ाने का प्रयास किस तरह करता है?
▪ अपने आप को जिम्मेदारी से मुक्त करने के लिए पीलातुस कैसे प्रयास करता है?
▪ कोड़े मारने में क्या शामिल है?
▪ कोड़े मारे जाने के बाद यीशु का किस तरह ठट्टा उड़ाया जाता है?
▪ यीशु को छुड़ाने के लिए पीलातुस कौनसा अतिरिक्त प्रयास करता है?
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सौंपा जाकर ले जाया गयावह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२४
सौंपा जाकर ले जाया गया
जब पीलातुस, उत्पीड़ित यीशु के शांत गरिमा से प्रभावित होकर, फिर से उसे मुक्त करने की कोशिश करता है, तो महायाजक और भी क्रोधित होते हैं। उन्होंने निर्धारित किया है कि उनके दृष्ट लक्ष्य में कोई भी दख़ल न दें। अतः वे अपने चिल्लाहट को दोबारा शुरू करते हैं: “उसे स्तंभ पर चढ़ा! उसे स्तंभ पर चढ़ा!”—NW.
“तुम ही उसे लेकर स्तंभ पर चढ़ाओ,” पीलातुस जवाब देता है। (अपने पहले किए दावों के प्रतिकूल, यहूदियों को काफी गंभीर धार्मिक अपराधों के लिए अपराधियों को प्राणदण्ड देने का अधिकार हो सकता है।) फिर, कम से कम पाँचवे बार, पीलातुस यह कहकर उसे बेक़सूर ठहराता है, “मैं उस में कोई दोष नहीं पाता।”
यहूदी, यह देखते हुए कि उनके राजनीतिक आरोप परिणाम लाने में असफल हुए हैं, कुछ घंटों पहले महासभा के सम्मुख उपयोग किए गए ईश-निन्दा के आरोप की मदद लेते हैं। “हमारी भी व्यवस्था है,” वे कहते है, “और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है, क्योंकि उसने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र बनाया।”
यह आरोप पीलातुस के लिए नया है, और उसे और भी भयभीत कर देता है। अब तक उसे एहसास हो चुका है कि यीशु कोई आम आदमी नहीं, जैसा कि उसकी पत्नी का ख़्वाब और यीशु के व्यक्तित्व का अनोखा बल सूचित करता है। पर “परमेश्वर का पुत्र”? पीलातुस जानता है कि यीशु गलील से है। फिर भी, यह मुमकिन है कि वह पहले भी ज़िंदा रहा हो? उसे एक बार फिर अपने महल में वापस ले जाकर पीलातुस पूछता है: “तू कहाँ का है?”
यीशु चुप रहते हैं। इससे पहले उसने पीलातुस को बताया था कि वह एक राजा है लेकिन उसका राज्य इस जगत का कोई भाग नहीं है। अब कोई अतिरिक्त स्पष्टीकरण किसी लाभदायक उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकेगा। बहरहाल, जवाब देने के इनकार से पीलातुस का अहंकार को ठेस पहुँचती है, और वह यीशु पर यह कहकर भड़कता है: “मुझ से क्यों नहीं बोलता? क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे स्तंभ पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है?”
यीशु आदरपूर्ण तरह का जवाब देते है: “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता।” वे परमेश्वर द्वारा मानव शासकों को पार्थिव मामलों पर प्रशासन करने का अधिकारदान का ज़िक्र कर रहे हैं। “इसलिए जिसने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है,” यीशु आगे कहते हैं। सचमुच, महायाजक काइफ़ा और उसके सहकर्मी और यहूदा इस्करियोती यीशु का अन्यायपूर्ण व्यवहार के लिए पीलातुस से और भारी ज़िम्मेदारी ढोते हैं।
यीशु से और अधिक प्रभावित होकर और यह डर महसूस करते हुए कि यीशु का दिव्य उद्गम हो सकता है, पीलातुस उसे मुक्त करने के प्रयत्नों को दोबारा शुरू करता है। परन्तु, यहूदी पीलातुस को झिड़कते हैं। वे अपने राजनीतिक आरोप दोहराते हुए चालाकी से धमकी देते है: “यदि तू इस मनुष्य को छोड़ देगा, तू कैसर का मित्र नहीं। जो कोई अपने आप को राजा बनाता है वह कैसर के विरूद्ध बोलता है।”—NW.
इन घोर उलझनों के बावजूद, पीलातुस यीशु को फिर एक बार बाहर लाता है। “देखो! तुम्हारा राजा!” वह फिर से अनुरोध करता है।
“ले जा! ले जा! उसे स्तंभ पर चढ़ा!”
पीलातुस निराशा से पूछता है, “क्या मैं तुम्हारे राजा को स्तंभ पर चढ़ाऊँ?”—NW.
रोमियों की हुकूमत के अधीन यहूदी खिजते आए हैं। वाक़ई, वे रोम के प्रभुत्व को तुच्छ समझते हैं! फिर भी, ढोंगी तरीक़े से, महायाजक कहते हैं: “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।”
अपने राजनीतिक पद और प्रतिष्ठा के लिए डर कर पीलातुस अंत में यहूदियों की कठोर माँगों के सामने झुक जाता है। वह यीशु को सौंप देता है। सैनिक यीशु पर से बैंगनी वस्त्र उतारकर उसे उनके ही बाहरी वस्त्र पहनाते हैं। जैसे यीशु को स्तंभ पर लटकाने ले जाया जाता है, उन पर उनका अपना ही यातना स्तंभ लादा जाता है।
अभी शुक्रवार, निसान १४, की मध्यप्रातः हो चुकी है; शायद दोपहर हो रहा है। यीशु गुरुवार तड़के से जागे हुए हैं, और उन्होंने एक के बाद एक तड़पाने वाले अनुभवों को झेला है। स्वाभाविक है, स्तंभ के वजन के नीचे उनका ताक़त ज़्यादा देर तक क़ायम नहीं रहती। सो, एक राही, अफ्रीका में कुरेनी का निवासी शमौन, को उसके लिए उठाने बेगार में पकड़ा जाता है। जैसे वे आगे बढ़ते हैं, बहुत से लोग, जिन में स्त्रियाँ भी शामिल है, शोक से छाती पीटते हुए और यीशु के लिए विलाप करते हुए, पीछे-पीछे चलते हैं।
उन स्त्रियों की ओर मुड़कर यीशु कहते हैं: “हे यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिए मत रोओ। परन्तु, अपने और अपने बालकों के लिए रोओ; क्योंकि, देखो! वे दिन आते हैं जिन में लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे जो बांझ है, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया।’ . . . क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साथ ऐसा करते हैं, तो सूखे के साथ क्या कुछ न किया जाएगा?”
यीशु यहूदी राष्ट्र को पेड़ का हवाला दे रहे हैं, जिस में यीशु की उपस्थिति और उन में विश्वास रखनेवाले लोगों का एक अवशेष के अस्तित्व के कारण अब जीवन की कुछ नमी बची है। परन्तु जब इनको राष्ट्र से निकाल लिया जाएगा, तो केवल एक आध्यात्मिक रूप से मृत पेड़ ही बचेगा, हाँ, एक कुम्हलायी हुई राष्ट्रीय संगठन। आह, रोने का क्या ही कारण होगा जब रोमी फ़ौज, परमेश्वर के जल्लाद की हैसियत से, यहूदी राष्ट्र का सर्वनाश करेगी! यूहन्ना १९:६-१७; १८:३१; लूका २३:२४-३१; मत्ती २७:३१, ३२; मरकुस १५:२०, २१.
▪ जब उनके राजनीतिक आरोप परिणाम उत्पन्न करने में विफल होते हैं, तो धार्मिक नेता यीशु के ख़िलाफ़ क्या आरोप लगाते हैं?
▪ क्यों पीलातुस और भयभीत हो जाता है?
▪ यीशु के साथ जो होता है उसके लिए कौन ज़्यादा पापी है?
▪ आख़िरकार, यीशु को मार डालने के लिए याजक पीलातुस को किस तरह राज़ी करते हैं?
▪ अपने लिए रोती हुई स्त्रियों को यीशु क्या कहते हैं, और पेड़ का ज़िक्र “हरा” और फिर “सूखा” करने से उनका क्या अर्थ है?
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स्तंभ पर व्यथावह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२५
स्तंभ पर व्यथा
यीशु के साथ-साथ दो डाकुओं को भी मार डालने ले जाया जा रहा है। शहर से थोड़ी दूरी पर, गुलगुता, या खोपड़ी का स्थान, नामक जगह पर जुलूस रुक जाता है।
क़ैदियों के कपड़े उतारे जाते हैं। फिर गंधरस मिलाया हुआ दाखरस का प्रबंध किया जाता है। यह प्रत्यक्षतः यरूशलेम की स्त्रियों द्वारा तैयार किया गया है, और रोमी अफ़सर स्तंभ पर चढ़ाए हुओं को यह दर्द-मंदक दवा देने की इजाज़त देते हैं। तथापि, जब यीशु उसे चखते हैं, तो पीने से इनकार करते हैं। क्यों? स्पष्टतया वे अपने विश्वास की इस उच्चतम परीक्षा के दौरान अपने सभी मनःशाक्तियों पर पूरा अधिकार रखना चाहते हैं।
स्तंभ पर यीशु अब पसारे हुए हैं, और उनके हाथ उनके सर के ऊपर रखे गए हैं। उनके हाथों में और उनके पैरों में सैनिक लंबे कीलों को तड़ातड़ मारते हैं। जैसे कीला माँस और स्नायु को चीरती है वे दर्द के कारण ऐंठते हैं। जब स्तंभ को सीधा खड़ा किया जाता है, तो दर्द बहुत ज़्यादा है, क्योंकि शरीर का वज़न कीलों के घावों को चीरता है। फिर भी, धमकी देने के बजाय, यीशु रोमी सैनिकों के लिए प्रार्थना करते हैं: “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि वे जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।”
पीलातुस ने स्तंभ पर एक चिह्न लगा दी है जिस पर लिखा है: “यीशु नासरी यहूदियों का राजा।” प्रत्यक्षतः, वह ऐसा केवल इसलिए ही नहीं लिखता कि वह यीशु की इज़्ज़त करता है पर इसलिए भी कि वह यहूदी याजकों से यीशु की मृत्यु की सज़ा उससे ऐंठ लेने के वजह से घृणा करता है। ताकि सभी इस चिह्न को पढ़ सकें, पीलातुस उसे तीन भाषाओं में लिखवाता है—इब्रानी में, सरकारी लैटिन में, और सामान्य यूनानी में।
महायाजक, काइफ़ा और हन्ना सहित, निराश हैं। यह स्वीकारात्मक घोषणा उनकी विजय की घड़ी को बिगाड़ देती है। इसलिए वे एतराज़ करते हैं: “‘यहूदियों का राजा’ मत लिख, परन्तु यह कि उसने कहा, ‘मैं यहूदियों का राजा हूँ।’” खिजते हुए कि वह याजकों का कठपुतली बना, पीलातुस दृढ़ अवहेलना के साथ जवाब देता है: “मैं ने जो लिख दिया, वह लिख दिया।”
याजक, एक बड़ी भीड़ के साथ, अब प्राणदंड के स्थान पर एकत्रित होते हैं, और याजक उस चिह्न की घोषणा का खण्डन करते हैं। वे महासभा के परीक्षा में दी झूठी गवाही को दोहराते हैं। इसलिए आश्चर्य की बात नहीं कि राह जाते राही भी अपमानजनक रूप से बात करते हैं, और अपने सर हिलाकर हँसी उडाते हुए कहते हैं: “हे मंदिर को ढानेवाले और तीन दिन में बनानेवाले, अपने आप को तो बचा! यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो स्तंभ पर से उतर आ!”—NW.
“इसने औरों को बचाया; अपने को नहीं बचा सकता!” महायाजक और उनके धार्मिक मित्र सुर में सुर मिलाते हैं। “यह तो इस्त्राएल का राजा है; अब यातना स्तंभ पर से उतर आए, तो हम उस पर विश्वास करें। उसने परमेश्वर पर भरोसा रखा है; यदि वह इसको चाहता है तो अब इसे छुड़ा ले, क्योंकि इसने कहा था, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’”—NW.
इस मनोभाव में फँस जाने से सैनिक भी यीशु का मज़ाक उड़ाते हैं। प्रत्यक्षतः खट्टा दाखरस उसके सूखे होठों की पहुँच से थोड़ा दूर रखते हुए, वे उसका मज़ाक उड़ाते हैं। “यदि तू यहूदियों का राजा है,” वे ताना मारते हैं, “तो अपने आप को बचा।” डाकू भी—जो यीशु के दाहिनी ओर, और दूसरा उनके बाएँ ओर स्तंभ पर लटके हुए हैं—उनका उपहास करते हैं। ज़रा सोचिए! वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा, हाँ, वह जिन्होंने यहोवा परमेश्वर के साथ सभी चीज़ों की सृष्टि में भाग लिया, दृढ़ता से इन सभी अपमानों को सहता है!
सैनिक यीशु का बाहरी वस्त्र लेते हैं और उसे चार हिस्सों में बाँट देते हैं। वे चिट्ठी डालते हैं यह देखने कि ये किसके होंगे। बढ़िया प्रकार का होने के कारण भीतरी वस्त्र सिलाई का जोड़ के बिना है। इसलिए सैनिक आपस में कहते है: “हम इसको न फाडें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि यह किसका होगा।” इस तरह, अनजाने में, वे उस शास्त्रपद की पूर्ति करते हैं जो कहता है: “उन्होंने मेरे बाहरी कपड़े आपस में बाँट लिए, और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली।”—NW.
कुछ समय बाद, एक डाकू क़दर करता है कि यीशु सचमुच एक राजा होंगे। इसलिए, अपने साथी को डाँटते हुए, वह कहता है: “क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है। और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” फिर वह इस याचना से यीशु को संबोधित करता है: “जब तू अपने राज्य में आए, तो मुझे याद करना।”—NW.
“आज मैं तुझसे सच कहता हूँ,” यीशु जवाब देते हैं, “तू मेरे साथ परादीस में होगा।” (NW) यह वादा तब पूरी होगी जब यीशु स्वर्ग में राजा की हैसियत से राज्य करेंगे और इस पश्चात्तापी कुकर्मी को उस परादीस पृथ्वी में पुनरुत्थित करेंगे जिसका परिष्कार करने का ख़ास अनुग्रह आरमगिदोन से बच निकलनेवाले और उनके साथियों को प्राप्त होगा। मत्ती २७:३३-४४; मरकुस १५:२२-३२; लूका २३:२७, ३२-४३; यूहन्ना १९:१७-२४.
▪ यीशु गंधरस मिलाया हुआ दाखरस पीने से इनकार क्यों करते हैं?
▪ प्रत्यक्षतः, यीशु के स्तंभ पर एक चिह्न क्यों लगाया गया है, और इससे पीलातुस और महायाजकों के बीच क्या वार्तालाप प्रवर्तित होती है?
▪ स्तंभ पर यीशु को क्या अपमान प्राप्त होता है, और इसे स्पष्टतया क्या प्रेरित करता है?
▪ यीशु के वस्त्रों के साथ जो कुछ किया गया, उससे भविष्यवाणी कैसे पूरी होती है?
▪ एक डाकू क्या परिवर्तन करता है, और यीशु उसके निवेदन को कैसे पूरा करेंगे?
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“बेशक यह परमेश्वर का पुत्र था”वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२६
“बेशक यह परमेश्वर का पुत्र था”
यीशु स्तंभ पर ज़्यादा देर तक रहा नहीं कि, मध्याह्न को, एक रहस्यपूर्ण तीन-घंटे-लंबा अंधकार छा जाता है। यह कोई सूर्यग्रहण के वजह से नहीं हुआ, चूँकि वह सिर्फ़ अमावास्य के समय होता है और फ़सह के समय पूर्णिमा होती है। इसके अतिरिक्त, सूर्यग्रहण केवल चंद मिनटों तक रहता है। सो यह अंधकार का दिव्य उद्गम है! शायद यह यीशु का उपहास करनेवालों को विराम देता है, यहाँ तक कि उनके तानें भी बंद हो जाते है।
यदि यह भयानक घटना एक कुकर्मी का अपने साथी को डाँटने और यीशु से उसे याद रखने की विनती से पहले होती है, तो यह उसके पश्चात्ताप का एक कारण हो सकता है। शायद इसी अंधकार के दौरान चार स्त्रियाँ, यानी, यीशु की माता और उसकी बहन शलोमी, मरियम मगदलीनी, और छोटे याकूब की माता मरियम, यातना स्तंभ के निकट आती हैं। यीशु का प्रिय प्रेरित, यूहन्ना, उनके साथ है।
यीशु की माता का दिल किस तरह ‘वार पार छिदता’ है जब वह अपने बेटे को जिसे उसने दूध पिलाया और पालन-पोषण किया व्यथा में लटकते हुए देखती है! फिर भी यीशु अपनी पीड़ा की नहीं, परन्तु उसकी ख़ैरियत की सोचते हैं। बहुत चेष्टा के साथ, वे यूहन्ना की ओर सिर हिलाते हैं, और अपनी माता से कहते हैं: “हे नारी, देख! यह तेरा पुत्र है!” फिर, मरियम की ओर सिर हिलाते हुए, यूहन्ना से कहते हैं: “देख! यह तेरी माता है!”
इस प्रकार यीशु अपनी माता, जो प्रत्यक्षतः अब एक विधवा है, की देखरेख अपने अतिप्रिय प्रेरित को सौंप देते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि अभी तक मरियम के अन्य पुत्रों ने उन पर विश्वास व्यक्त नहीं किया है। इस प्रकार अपनी माता की केवल भौतिक आवश्यकताओं का ही नहीं परन्तु आध्यात्मिक आवश्यक्ताओं का भी प्रबंध करने में वे एक उत्तम मिसाल प्रस्तुत करते हैं।
दोपहर के लगभग तीन बजे, यीशु कहते हैं: “मैं प्यासा हूँ।” यीशु महसूस करते हैं कि उनके पिता ने, मानो, उन पर से अपनी सुरक्षा हटा ली है ताकि उनकी सत्यनिष्ठा पूरी हद तक आज़माया जा सके। इसलिए वे एक ऊँचे स्वर में पुकारते हैं: “हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया है?” यह सुनने पर, पास खड़े हुए कुछ लोग चिल्लाते हैं: “वह तो एलिय्याह को पुकारता है।” उन में से एक तुरन्त भागता है और, सिरके में डुबोया गया स्पंज को जूफ़े के एक सरकण्डे पर रखकर, उन्हें पिलाता है। लेकिन अन्य जन कहते हैं: “रह जाओ! देखें, एलिय्याह उसे बचाने आता है कि नहीं।”
जब यीशु सिरका लेता है, तो वह पुकारता है: “पूरा हूआ!” जी हाँ, उन्होंने वह सब काम पूरा किया जिसे करने उसके पिता ने उन्हें पृथ्वी पर भेजा था। अंत में, वह कहता है: “हे पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” इस प्रकार यीशु अपनी जीवन-शक्ति परमेश्वर को इस भरोसे के साथ सौंपते हैं कि परमेश्वर इसे फिर से उन्हें लौटाएँगे। फिर वे अपना सर झुकाते हैं और मर जाते हैं।
जिस पल यीशु अपनी अंतिम साँस लेते हैं, चट्टानों को चीरता हुआ, एक प्रचण्ड भूकंप होता है। यह भूकंप इतना शक्तिशाली है कि यरूशलेम के बाहर स्मारक क़ब्रें खुल जाती हैं और उन में से लाशें बाहर फेंकी जाती है। जो राही लाशों को खुली पड़ी हुई देखते हैं वे शहर में जाकर इसकी सूचना देते हैं।
इसके अतिरिक्त, जिस लमहा यीशु मरते हैं, वह विशाल परदा, जो परमेश्वर के मंदिर में पवित्र को परम पवित्र से अलग करता है, ऊपर से नीचे तक फटकर दो हिस्सों में विभाजित होता है। प्रत्यक्षतः यह सुंदर तरीक़े से अलंकृत परदा लगभग १८ मीटर ऊँचा और बहुत भारी है! यह आश्चर्यजनक चमत्कार अपने पुत्र के क़ातिलों के प्रति परमेश्वर का केवल क्रोध ही ज़ाहिर नहीं करता लेकिन यह भी अर्थ रखता है कि परम पवित्र, स्वंय स्वर्ग, तक का मार्ग यीशु की मृत्यु के द्वारा अब मुमक़िन हुई है।
खैर, जब लोग भूकंप को महसूस करते हैं और घटित हो रही घटनाओं को देखते हैं, वे बहुत भयभीत हो जाते हैं। मृत्युदंड पर कार्यभारी रोमी सूबेदार परमेश्वर की महिमा करता है। “बेशक यह परमेश्वर का पुत्र था,” वह घोषणा करता है। शायद वह उपस्थित था जब पीलातुस के सम्मुख यीशु के परीक्षण के दौरान दैवी पुत्रत्व के दावे पर बहस हो रही थी। और अब वह क़ायल है कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं, जी हाँ, वाक़ई वे सर्वश्रेष्ठ मनुष्य हैं जो कभी जीवित रहा।
अन्य लोग भी इन विस्मयकारी घटनाओं से पीड़ित होते हैं, और वे अपने गहरे शोक और लज्जा को ज़ाहिर करने अपनी छातियाँ पीटकर घर वापस जाते हैं। कुछ दूरी पर इस दृश्य को देखती हुई यीशु की कुछ चेलियाँ हैं जो इन महत्त्वपूर्ण घटनाओं से बहुत प्रभावित हुई हैं। प्रेरित यूहन्ना भी उपस्थित है। मत्ती २७:४५-५६; मरकुस १५:३३-४१, लूका २३:४४-४९; २:३४, ३५; यूहन्ना १९:२५-३०.
▪ क्यों उस तीन घंटे के अंधकार के लिए कोई सूर्यग्रहण ज़िम्मेदार नहीं हो सकता?
▪ अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले, यीशु वृद्ध माता-पिता वालों के लिए क्या अच्छा मिसाल प्रस्तुत करते हैं?
▪ मृत्यु से पहले यीशु के अंतिम चार कथन क्या हैं?
▪ भूकंप क्या पूरा करता है, और मंदिर के परदे का दो हिस्सों में फटने का क्या महत्त्व है?
▪ मृत्युदंड पर कार्यभारी सूबेदार पर चमत्कारों का कैसा असर होता है?
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शुक्रवार को दफ़नाया गया—रविवार को खाली क़ब्रवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२७
शुक्रवार को दफ़नाया गया—रविवार को खाली क़ब्र
अब तक शुक्रवार दोहपर ढल चुकी है, और निसान १५ का सब्त सूर्यास्थ से आरंभ होगा। यीशु का शव स्तंभ पर निर्जीव लटक रहा है, लेकिन उनकी बगल में दोनों डाकू अभी भी ज़िंदा हैं। शुक्रवार दोपहर को तैयारी कहा जाता है क्योंकि इस अवसर पर लोग भोजन तैयार करते हैं और ऐसे अत्यावश्यक कार्य को पूरा करते हैं जो सब्त के बाद तक नहीं रुक सकता।
शीघ्र आरंभ होनेवाला सब्त सिर्फ़ एक नियमित सब्त ही नहीं (सप्ताह का सातवाँ दिन) परन्तु एक दुगुना, या “बड़ा” सब्त भी है। उसे ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि निसान १५, जो सात दिनों का अख़मीरी रोटी के पर्व का पहला दिन है (और हमेशा सब्त होता है, चाहे सप्ताह के किसी भी दिन पर क्यों न आए), नियमित सब्त के दिन पर ही पड़ता है।
परमेश्वर के नियम के मुताबिक, लाशों को रात भर स्तंभ पर लटका हुआ नहीं छोड़ना चाहिए। सो यहूदी पीलातुस से कहते हैं कि दंडित व्यक्तियों की मौत उनकी टाँगे तोड़कर जल्दी लाया जाए। इसलिए लशकरी उन दो डाकुओं की टाँगे तोड़ते हैं। पर चूँकि यीशु मरा लगता है, उनकी टाँगे नहीं तोड़ी जाती। इससे उस शास्त्रपद की पूर्ति होती है: “उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।”
फिर भी, यीशु असल में मरा है या नहीं यह शक दूर करने, एक सैनिक उनके शरीर की भुजा में भाला भोंकता है। भाला उनका हृदय के पास छेदता है, और तुरन्त लहू और पानी निकलता है। प्रेरित यूहन्ना, जो एक चश्मदीद गवाह है, बताते हैं कि यह एक और शास्त्रपद की पूर्ति है: “जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।”
अरिमतिया शहर का यूसुफ, महासभा का एक सम्मानित सदस्य, भी घात के जगह पर उपस्थित है। उसने यीशु के ख़िलाफ़ महासभा के अन्यायपूर्ण कार्यवाही के पक्ष में मत देने से इनकार किया था। दरअसल यूसुफ यीशु का एक शिष्य है, हालाँकि वह अपना पहचान करवाने से डरता था। फिर भी, अब, वह हिम्मत के साथ पीलातुस के पास जाकर यीशु की देह माँगता है। पीलातुस कार्यभारी सूबेदार को बुलाता है, और सूबेदार से यीशु की मृत्यु की पुष्टि करने के पश्चात पीलातुस देह दिला देता है।
दफ़न की तैयारी में यूसुफ देह को लेकर साफ पतली चादर में लपेटता है। महासभा का एक अन्य सदस्य, निकुदेमुस उसकी सहायता करता है। अपना पद खो देने के डर से निकुदेमुस भी यीशु में अपना विश्वास प्रकट करने में विफल रहा। परन्तु अब वह लगभग सौ रोमी पाउण्ड (३३ किलोग्राम) गंधरस और महँगा मुसब्बर लाता है। यहूदियों की लाशों का दफ़न की तैयारी का दस्तूर के अनुसार, यीशु की देह को इन मसालों से भरे पट्टियों में लपेटा जाता है।
फिर देह को पास ही की बाग़ में चट्टान में खोदी गई यूसुफ की नयी स्मारक क़ब्र में रखा जाता है। आख़िरकार, क़ब्र के सामने एक बड़ा पत्थर लुढ़काया जाता है। दफ़न को सब्त से पहले ही पूरा करने के लिए देह की तैयारी हड़बड़ी से किया जाता है। इसलिए, मरियम मगदलीनी और छोटे याकूब की माता मरियम, जो संभवतः तैयारी में मदद कर रही हैं, और अधिक मसाला और सुगंधित तेल तैयार करने जल्दी घर जाती है। सब्त के बाद, वे यीशु की देह को और अधिक समय तक बनाए रखने के लिए उसे और ज़्यादा संसाधित करने की योजना बनाते हैं।
अगले दिन, जो शनिवार है (सब्त का दिन), महायाजक और फरीसी पीलातुस के पास जाकर कहते हैं: “हे महाराज, हमें स्मरण है कि उस भरमानेवाले ने अपने जीते जी कहा था, ‘मैं तीन दिन के बाद जी उठूँगा।’ सो आज्ञा दे कि तीसरे दिन तक क़ब्र की रखवाली की जाए, ऐसा न हो कि उसके चेले आकर उसे चुरा ले जाए और लोगों से कहने लगें, ‘वह मरे हुओं में से जी उठा है!’ तब पिछला धोखा पहले से भी बुरा होगा।”
“तुम्हारे पास पहरुए तो है,” पीलातूस उन से कहता है। “जाओ, अपनी समझ के अनुसार रखवाली करो।” सो वे जाते हैं और क़ब्र को मुहरबन्द करके रोमी सैनिकों को पहरे पर तैनात करते हैं।
रविवार की भोर को मरियम मगदलीनी और याकूब की माता मरियम, शलोमी, योअन्ना, अन्य स्त्रियों के साथ, यीशु की देह को संसाधित करने क़ब्र पर मसाला लाती हैं। मार्ग में वे एक दूसरे से कहती हैं: “हमारे लिए क़ब्र के द्वार पर से पत्थर कौन लुढ़काएगा?” लेकिन वहाँ पहुँचने पर, उन्हें पता चलता है कि एक भूकंप हुआ और यहोवा के स्वर्गदूत ने पत्थर लुढ़का दिया है। पहरेदार चले गए हैं, और क़ब्र खाली पड़ा है! मत्ती २७:५७-२८:२; मरकुस १५:४२-१६:४; लूका २३:५०-२४:३, १०; यूहन्ना १९:१४, यूहन्ना १९:३१–२०:१; यूहन्ना १२:४२; लैव्यव्यवस्था २३:५-७; व्यवस्थाविवरण २१:२२, २३; भजन संहिता ३४:२०; जकर्याह १२:१०.
▪ शुक्रवार को तैयारी क्यों कहा जाता है, और “बड़ा” सब्त क्या है?
▪ यीशु की देह के सम्बन्ध में कौनसे शास्त्रपद पूरे हुए?
▪ यीशु के दफ़न से यूसुफ और निकुदेमुस का क्या सम्बन्ध है, और यीशु के साथ उनका क्या रिश्ता है?
▪ याजक पीलातुस से क्या निवेदन करते हैं, और वह कैसे जवाब देता है?
▪ रविवार की भोर को क्या होता है?
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यीशु ज़िंदा है!वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२८
यीशु ज़िंदा है!
जब स्त्रियों ने यीशु की क़ब्र को खाली पाया, तो मरियम मगदलीनी दौड़कर पतरस और यूहन्ना को बताने गयी। मगर बाकी स्त्रियाँ वहीं क़ब्र पर रहीं। फ़ौरन, एक स्वर्गदूत प्रकट होता है और उन्हें अन्दर बुलाता है।
यहाँ स्त्रियाँ एक और स्वर्गदूत देखती हैं, और उन में से एक स्वर्गदूत उन से कहता है: “तुम मत डरो, मैं जानता हूँ कि तुम यीशु को जो स्तंभ पर चढ़ाया गया था, ढूँढ़ती हो। वह यहाँ नहीं है, परन्तु जैसा उसने कहा था, जी उठा है। आओ, वह स्थान देखो जहाँ वह पड़ा था। और शीघ्र जाकर उसके शिष्यों से कहो कि वह मृतकों में से जी उठा है।” (NW) डर और बड़े हर्ष के साथ ये स्त्रियाँ भाग जाती हैं।
अब तक, मरियम ने पतरस और यूहन्ना को ढ़ूँढ लिया, और वह उन्हें ख़बर देती है: “वे प्रभु को क़ब्र में से निकाल ले गए हैं, और हम नहीं जानतीं कि उसे कहाँ रख दिया है।” यह सुनकर वे फ़ौरन क़ब्र की तरफ भागते हैं। यूहन्ना फुरतीला है—कम उम्र होने के वजह से— और वह क़ब्र पर पहले पहुँचता है। अब तक स्त्रियाँ चली गयी हैं, अतः वहाँ कोई भी नहीं है। नीचे झुकते हुए, यूहन्ना क़ब्र के भीतर देखता हैं और पट्टियों को देख लेता है, पर वह क़ब्र के बाहर ही रहता है।
जब पतरस वहाँ पहुँचता है, वह बिना हिचकिचाहट के सीधे भीतर जाता है। वह वहाँ पड़े पट्टियों को और वह अंगोछा भी देखता है जिसे यीशु का सिर ढकने इस्तेमाल किया गया था। उसे एक जगह में लपेटा गया है। अब यूहन्ना भी क़ब्र के भीतर आता है, और वह मरियम का विवरण का यक़ीन करता है। लेकिन पतरस और यूहन्ना ये समझ नहीं सके कि यीशु जिलाया गया है, हालाँकि उसने बहुत बार उन्हें बताया था कि वह जिलाया जाएगा। उलझन में पड़कर वे घर लौट जाते हैं, लेकिन मरियम, जो अब वापस क़ब्र पर आ गयी है, वहीं रहती है।
इस बीच, वे स्त्रियाँ स्वर्गदूतों की आज्ञा के अनुसार शिष्यों को जल्दी से यह समाचार देने जाती हैं कि यीशु मरे हुओं में से जी उठा है। जब वे जितना जल्द हो सके दौड़ रही हैं, यीशु उन से मिलता है और कहता, “सलाम!” उनके पाँवों पर गिरकर वे उसका दण्डवत करती हैं। तब यीशु उनसे कहते हैं, “मत डरो! मेरे भाइयों से जाकर कहो, कि वे गलील को चले जाएँ; और वे मुझे वहाँ देखेंगे।”—NW.
जब भूकंप हुआ था और स्वर्गदूत प्रगट हुए, तब पहरेदार चकित होकर बेहोश हो गए। जब उन्हें होश आया, उन्होंने तुरन्त शहर जाकर उस घटना के बारे में महायाजकों को बताया। यहूदियों के ‘पुरनियों’ के साथ सलाह-मशविरा करने के बाद, यह फ़ैसला लिया गया कि सैनिकों को घूस देकर इस मामले को शान्त करने की कोशिश किया जाए। उन्हें यह आदेश दिया गया: “यह कहना, ‘रात को जब हम सो रहे थे, तो उसके चेले आकर उसे चुरा ले गए।’”
चूँकि रोमी सैनिकों को अपने कार्यस्थल पर सोने की सज़ा मृत्युदंड हो सकती है, याजक उन से वादा करते हैं: “यदि यह [सूचना कि तुम सो रहे थे] हाकिम के कानों तक पहुँचेंगी, तो हम उसे समझा लेंगे और तुम्हें जोखिम से बचा लेंगे।” क्योंकि घूस की रक़म काफी बड़ी थी, सैनिकों ने आदेशानुसार ही किया। परिणामस्वरूप, यीशु के शव की चोरी की झूठी सूचना यहूदियों के बीच में प्रचलित हो गयी।
मरियम मगदलीनी, जो वहाँ क़ब्र पर रुक गयी थी, बहुत दुःखी है। यीशु कहाँ हो सकता है? क़ब्र के अन्दर देखने के लिए आगे झुकते हुए, वह दो स्वर्गदूतों को श्वेत कपड़ों में देख लेती है, जो फिर से प्रकट हुए हैं! जहाँ यीशु की लोथ पड़ी थी वहाँ एक सिरहाने पर और दूसरा पैताने बैठा है। वे पूछते हैं: “हे नारी, तू क्यों रोती है?”
मरियम जवाब देती है, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गए और मैं नहीं जानती कि उसे कहाँ रखा है।” फिर वह मुड़ी और किसी और को यही सवाल दोहराते हुए देखती है: “हे नारी, तू क्यों रोती है?” और वह यह भी पूछता है: “तू किसको ढूँढती है?”
उसे बाग़ का माली समझकर जहाँ क़ब्र स्थित है, वह उससे कहती है: “हे महाराज, यदि तू ने उसे उठा लिया है, तो मुझ से कह कि उसे कहाँ रखा है, और में उसे ले जाऊँगी।”
वह व्यक्ति कहता है, “मरियम!” और उससे बात करने के परिचित तरीक़े से वह फ़ौरन जान लेती है, कि यह यीशु है। वह चिल्लाती है, “रब्बूनी!” (अर्थात “गुरु!”) और अपार ख़ुशी से, वह उसे झपटकर पकड़ लेती है। मगर यीशु उससे कहते हैं: “मुझे मत पकड़े रह। क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया। परन्तु मेरे भाइयों के पास जाकर उन से कह दे, ‘मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूँ।”—NW.
जहाँ प्रेरित और शिष्य इकट्ठे हुए हैं वहाँ मरियम दौड़े जाती है। वह उनको अपना विवरण देती है कि यीशु जी उठा है जिसे अन्य स्त्रियों ने पहले ही दे दिया है। फिर भी, ये मनुष्य, जिन्होंने उन अन्य स्त्रियों के बातों का यक़ीन नहीं किया, प्रत्यक्षतः मरियम का भी यक़ीन नहीं करते। मत्ती २८:३-१५; मरकुस १६:५-८; लूका २४:४-१२; यूहन्ना २०:२-१८.
▪ क़ब्र को खाली पाकर, मरियम मगदलीनी क्या करती है, और अन्य स्त्रियों को क्या अनुभव हुआ?
▪ क़ब्र को खाली पाकर पतरस और यूहन्ना की प्रतिक्रिया क्या है?
▪ जब स्त्रियाँ शिष्यों को यीशु की पुनरुत्थान की सूचना देने जा रही हैं, वे राह में किसे मिलती हैं?
▪ पहरा देनेवाले सैनिकों को क्या हुआ, और जब याजकों को इसकी सूचना दी गयी तब उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
▪ क्या होता है जब मरियम मगदलीनी क़ब्र पर अकेली है, और स्त्रियों द्वारा दी गयी सूचना के बारे में शिष्यों का प्रतिक्रिया क्या है?
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ज़्यादा प्रकटनवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १२९
ज़्यादा प्रकटन
शिष्य अभी भी उदास हैं। वे खाली क़ब्र के महत्त्व को नहीं समझते, न ही वे औरतों के विवरण पर यक़ीन करते हैं। अतः रविवार के रोज़, क्लियुपास और एक अन्य शिष्य, यरूशलेम से इम्माऊस की ओर निकलते हैं, लगभग ११ किलोमीटर का फासला।
रास्ते में, जब वे दिन की घटनाओं पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, एक अजनबी उन से मिलता है। “यह क्या बातें हैं, जो तुम चलते-चलते आपस में करते हो?”
शिष्य रुक जाते हैं, उनके मुँह लटके हुए हैं और क्लियुपास जवाब देता है: “क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है जो नहीं जानता कि इन दिनों में उस में क्या-क्या हुआ है?” वह पूछता है: “कौन सी बातें?”
“यीशु नासरी के विषय में बातें,” वे जवाब देते हैं। “महायाजकों और हमारे सरदारों ने उसे पकड़वा दिया, कि उस पर मृत्यु की आज्ञा दी जाए और उसे स्तंभ पर चढ़वाया। परन्तु हमें आशा थी, कि यह मनुष्य इस्राएल को छुटकारा देनेवाला है।”—NW.
क्लियुपास और उसका साथी दिन में हुई आश्चर्यजनक घटनाओं का वर्णन करते हैं—स्वर्गदुतों का अलौकिक दर्शन और खाली क़ब्र—लेकिन फिर वे इन सब घटनाओं का मतलब के बारे में अपनी उलझन क़बूल करते हैं। अजनबी उन्हें डाँटता है: “हे निर्बुद्धियों, और भविष्यवक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दमतियों! क्या अवश्य न था, कि मसीह ये दुःख उठाकर अपनी महिमा में प्रवेश करें?” फिर वह पवित्र शास्त्र से मसीह से संबंधित परिच्छेद का अर्थ उन्हें समझाता है।
आख़िरकार वे इम्माऊस के निकट पहुँचते हैं, और वह अजनबी जाने के लिए मुड़ता है। उससे और अधिक जानने के कारण, शिष्य आग्रह करते है: “हमारे साथ रह, क्योंकि संध्या हो चली है।” इसलिए वह वहाँ भोजन के लिए रुक जाता है। जैसे वह प्रार्थना करके रोटी तोड़कर उन्हें देता है, वे पहचान जाते हैं कि यह असल में मूर्त रूप धारण किया हुआ मानवी शरीर में यीशु है। लेकिन फिर वह ग़ायब हो जाता है।
अब वे समझ जाते हैं कि उस अजनबी को इतना कैसे मालूम था! वे पूछते हैं, “जब वह मार्ग में हम से बातें करता था, और पवित्र शास्त्र का अर्थ हमें समझाता था, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पन्न हुई?” बिना देर किए, वे उठते हैं और जल्दी यरूशलेम वापस जाते हैं, जहाँ उन्हें प्रेरित और उनके साथ इकट्ठे हुए जन मिलते हैं। इससे पहले कि क्लियुपास और उसका साथी कुछ कहें, अन्य लोग उत्तेजित होकर कहते हैं: “प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है!” फिर यह दोनों बताते हैं कि कैसे यीशु उन्हें दिखायी दिया। इस तरह से उस दिन चार बार अलग-अलग शिष्यों को वे दिखायी दिए।
अचानक यीशु पाँचवी बार प्रकट होते हैं। यद्यपि दरवाज़ों में ताले लगे हैं क्योंकि प्रेरित यहूदियों से डरते हैं, वे प्रवेश करते हैं, और उनके बीच खड़े होकर कहते हैं: “तुम्हें शान्ति मिले।” वे उसे आत्मा समझकर डर जाते हैं। अतः, यह समझाते हुए कि वह कोई भूत नहीं, यीशु कहते हैं: “क्यों घबराते हो, और तुम्हारे मन में क्यों संदेह उठते हैं? मेरे हाथ और मेर पाँव को देखो, कि मैं वही हूँ; मुझे छूकर देखो, क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।” तो भी, वे यक़ीन करने अनिच्छुक हैं।
उन्हें यह समझने में मदद देने कि वह दरअसल यीशु है, वह पूछता है: “क्या यहाँ तुम्हारे पास कुछ भोजन है?” भुनी मछली का एक टुकड़ा स्वीकार करके खाने के बाद, वे कहते हैं: “ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए [मेरी मृत्यु से पहले] तुम से कही थी, कि अवश्य है कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यवक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी है, सब पूरी हों।”
जो बाइबल अध्ययन के बराबर है, उसे उनके साथ जारी रखते हुए, यीशु सिखाते हैं: “यों लिखा है, कि मसीह दुःख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा, और यरूशलेम से लेकर—सब राष्ट्रों में पश्चात्ताप का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा, तुम सब इन बातों के गवाह हो।”—NW.
किसी कारण वश, इस महत्त्वपूर्ण रविवार की संध्या सभा में, थोमा उपस्थित नहीं है। इसलिए आने वाले दिनों में अन्य शिष्य उसे ख़ुशी से बताते है: “हम ने प्रभु को देखा है।”
थोमा विरोध करता है, “जब तक मैं उस के हाथों में कीलों के छेद न देख लूँ, और किलों के छेदों में अपनी उँगली न डाल दूँ और उसके पंजर में अपना हाथ न डाल लूँ, तब तक मैं यक़ीन नहीं करूँगा।”
खैर, आठ दिन बाद शिष्य फिर से घर के भीतर मिल रहे हैं। इस बार थोमा उनके साथ है। हालाँकि दरवाज़े बन्द हैं, यीशु एक बार फिर उनके बीच खड़े होकर कहते हैं: “तुम्हें शान्ति मिले।” फिर, थोमा की ओर मुड़कर, वे निमंत्रण देते हैं: “अपनी उंगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।”
“हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” थोमा चिल्ला उठता है।
यीशु पूछते हैं, “क्या तू ने मुझे देखकर विश्वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।” लूका २४:११, १३-४८; यूहन्ना २०:१९-२९.
▪ इम्माऊस की ओर जाने वाले मार्ग पर, दो शिष्यों से एक अजनबी क्या पूछ-ताछ करता है?
▪ अजनबी ऐसी क्या बात कहता है, जिससे शिष्यों के मन उत्तेजित हो जाते हैं?
▪ अजनबी कौन है यह शिष्य कैसे समझ जाते हैं?
▪ जब क्लियुपास और उसका साथी यरूशलेम लौटते हैं, वे क्या उत्तेजक ख़बर सुनते हैं?
▪ अपने शिष्यों से यीशु क्या पाँचवा प्रकटन करते हैं, और इस दौरान क्या होता है?
▪ यीशु के पाँचवे प्रकटन के आठ दिन बाद क्या होता है, और थोमा कैसे क़ायल हो जाता है कि यीशु ज़िंदा हैं?
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गलील के सागर के पासवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १३०
गलील के सागर के पास
प्रेरित अब गलील लौटते हैं, जैसा यीशु ने उन्हें पहले करने का आदेश दिया था। लेकिन वहाँ जाकर उन्हें क्या करना होगा, इस बात पर वे अनिश्चित हैं। कुछ देर बाद, पतरस थोमा, नतनएल, याकूब और उसके भाई यूहन्ना, और दो अन्य प्रेरितों से कहता है: “मैं मछली पकड़ने जाता हूँ।”
“हम भी तेरे साथ चलते हैं।” छः जन कहते हैं।
पूरी रात वे कुछ भी नहीं पकड़ पाते। फिर भी, जैसे ही भोर होने लगती है, किनारे पर यीशु आ जाते हैं, परन्तु प्रेरित यह नहीं समझ पाते कि वह यीशु है। वह पुकारता है: “हे बालकों, क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है?”
“नहीं!” वे पानी के उस पार से चिल्लाते हैं।
वह कहता है, “नाव की दाहिनी ओर जाल डालो, तो तुम कुछ पाओगे।” और जब वे ऐसा करते हैं, तो जाल बाहर नहीं खींच पाते क्योंकि वह मछलियों से भर जाता है।
यूहन्ना चिल्लाता है, “यह तो प्रभु है!”
यह सुनने पर, पतरस कमर में अंगरखा कस लेता है, क्योंकि उसने अपने वस्त्र उतारा था, और समुद्र में कूद पड़ता है। फिर वह लगभग ९० मीटर तैरकर किनारे पहुँचता है। अन्य प्रेरित मछलियों से भरा जाल खींचते हुए छोटी नाव में उसके पीछे आते हैं।
जब वे किनारे पर पहुँचते हैं, वहाँ कोयले की आग है, जिस पर मछली रखी हुई है, और रोटी भी है। यीशु कहते हैं, “जो मछलियाँ तुमने अभी पकड़ी है, उन में से कुछ लाओ।” पतरस नाव पर चढ़कर जाल को किनारे पर खींच लाता है। उस में १५३ बड़ी मछलियाँ है!
यीशु निमंत्रण देते हैं, “आओ, अपना नाश्ता करो।”—NW.
उन में से किसी को भी यह पूछने की हिम्मत नहीं, “तू कौन है?” क्योंकि वे सब जानते हैं कि वह यीशु है। पुनरुत्थान के बाद से यह उनका सातवाँ प्रकटन है, और प्रेरितों के साथ समूह में तीसरा। वह अब सब को नाश्ते में थोड़ी मछली और रोटी देता है।
जब वे खा लेते हैं, तो यीशु संभवतः मछलियों के ढ़ेर को देखकर, पतरस से पूछते हैं: “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इन से बढ़कर मुझ से प्रेम रखता है?” बेशक उनके कहना का अर्थ है, जिस काम के लिए मैं ने तूझे तैयार किया, क्या तुम उस काम से ज़्यादा इस मछली व्यापार से लगाव रखते हो?
“तू तो जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ,” पतरस जवाब देता है।
“मेरे मेमनों को चरा।” यीशु जवाब देते हैं।
दुबारा, दूसरी बार, वे पूछते हैं: “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रेम रखता है?”
“हाँ प्रभु, तू जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ,” पतरस गंभीरता से जवाब देता है।
“मेरी भेड़ों की रखवाली कर,” यीशु फिर से आज्ञा देते हैं।
फिर, तीसरी बार, वे पूछते हैं: “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है?”
अब पतरस उदास हो जाता है। वह सोचता होगा कि क्या यीशु मेरी वफादारी पर संदेह कर रहा है। क्योंकि, हाल ही में जब यीशु अपनी जान के लिए परीक्षण पर था, पतरस ने उसे जानने से तीन बार इनकार किया था। इसलिए पतरस कहता है: “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है; तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।”
“मेरी भेड़ों को चरा।” यीशु तीसरी बार आज्ञा देते हैं।
इस तरह से यीशु पतरस को एक ज़रिया के जैसे इस्तेमाल करते हैं दूसरों के मन में वह काम बैठाने, जिसे वे चाहते हैं कि सब करें। बहुत जल्द वे पृथ्वी छोड़ देंगे, और वे चाहते हैं कि प्रेरित उन लोगों की सेवा करने में अगुआई लें, जो परमेश्वर की भेड़शाला में आकर्षित होनेवाले हैं।
जिस तरह यीशु को बाँधकर मार डाला गया, क्योंकि उसने परमेश्वर द्वारा नियुक्त काम किया, उसी तरह से वे प्रकट करते हैं कि पतरस भी एक समान अनुभव भोगेंगे। यीशु उसे बताते हैं, “जब तू जवान था, तो अपनी कमर बाँधकर जहाँ चाहता था, वहाँ फिरता था। परन्तु जब तू बूढ़ा होगा, तो अपने हाथ लम्बे करेगा, और दूसरा तेरी कमर बाँधकार जहाँ तू न चाहेगा वहाँ तुझे ले जाएगा।” पतरस की भावी शहीद की मौत के बावजूद, यीशु उसे उकसाते हैं: “मेरा पीछा करते रह।”—NW.
पीछे मुड़कर, पतरस यूहन्ना का देखता है और पूछता है: “हे प्रभु, इसका क्या हाल होगा?”
यीशु जवाब देते हैं, “यदि मैं चाहूँ कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या? तू मेरा पीछा करते रह।” यीशु के इन शब्दों से अनेक शिष्यों ने यह समझा कि प्रेरित यूहन्ना कभी नहीं मरेगा। लेकिन, जैसे प्रेरित यूहन्ना ने बाद में समझाया, यीशु ने यह नहीं कहा था कि वह नहीं मरेगा, पर यीशु ने सिर्फ़ कहा था: “यदि मैं चाहूँ कि यह मेरे आने तक ठहरा रहे, ता तुझे इस से क्या?”—NW.
बाद में, यूहन्ना ने यह महत्त्वपूर्ण टिप्पणी भी किया: “और भी बहुत से काम है, जो यीशु ने किए, यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समाती।” यूहन्ना २१:१-२५; मत्ती २६:३२; २८:७, १०.
▪ उन्होंने गलील में क्या करना है इस बात पर उनकी अनिश्चिति कैसे प्रकट होती है?
▪ गलील के सागर के पास, प्रेरित यीशु को कैसे पहचानते हैं?
▪ अपने पुनरुत्थान के बाद से यीशु अब कितनी बार प्रकट हो चुके हैं?
▪ यीशु प्रेरितों द्वारा जो कार्य करवाना चाहते हैं, उस पर कैसे ज़ोर देते हैं?
▪ पतरस की मौत के तरीक़े के बारे में यीशु कैसे सूचित करते हैं?
▪ यूहन्ना के विषय में यीशु द्वारा कही गयी कौनसी टिप्पणी अनेक शिष्यों द्वारा ग़लत समझी गयी?
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आख़री प्रकटन, और सा.यु. वर्ष ३३ का पिन्तेकुस्तवह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा
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अध्याय १३१
आख़री प्रकटन, और सा.यु. वर्ष ३३ का पिन्तेकुस्त
एक समय पर यीशु सभी ११ प्रेरितों से गलील के एक पहाड़ पर मिलने का प्रबंध करते हैं। स्पष्टतया अन्य शिष्यों को भी इस सभा के बारे में बताया जाता है, और कुल मिलाकर ५०० से अधिक लोग एकत्रित होते हैं। यह सम्मेलन कितना आनंददायक साबित होता है जब यीशु वहाँ प्रकट होकर उन्हें सिखाते हैं!
अन्य बातों के अलावा, यीशु उस बड़ी भीड़ को यह समझाते हैं कि परमेश्वर ने उन्हें स्वर्ग और पृथ्वी में सारा अधिकार दिया है। वे प्रोत्साहित करते हैं, “इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।”
इसके बारे में सोचिए! आदमी, औरत, और बच्चें, सब को शिष्य बनाने के काम में हिस्सा लेने की नियुक्ति दी गयी है। उनके प्रचार करने और शिक्षा देने के काम को विरोधी रोकना चाहेंगे, लेकिन यीशु उन्हें तसल्ली देते हैं: “देखो, मैं इस रीति-व्यवस्था के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ।” (NW) अपने अनुयायियों को अपनी सेवकाई पूरा करने में मदद देने, यीशु उनके संग अंत तक पवित्र आत्मा के ज़रिये रहेंगे।
सब मिलाकर, अपने पुनरुत्थान के बाद कुल ४० दिन तक यीशु ने अपने आप को अपने शिष्यों के सामने जीवित प्रकट किया। इन प्रकटनों के दौरान वह उन्हें परमेश्वर के राज्य के बारे में निर्देशन देता है, और उसके शिष्य होने के नाते उनकी ज़िम्मेदारियाँ पर भी ज़ोर देता है। एक अवसर पर वह अपने सौतेले भाई याकूब को प्रकट होता है और इस भूतपूर्व अविश्वासी को विश्वास दिलाता है कि वह सचमुच मसीह है।
जब कि प्रेरित गलील में ही हैं, यीशु उन्हें यरूशलेम लौटने का निर्देश देते हैं। वहाँ उन से मिलने पर वह उनको कहता है: “यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता कि उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जोहते रहो, जिस की चर्चा तुम मुझ से सुन चुके हो; क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है, परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्र आत्मा में बपतिस्मा पाओगे।”
बाद में, यीशु फिर से अपने प्रेरितों से मिलकर उन्हें शहर से बाहर बैतनियाह तक ले जाते हैं, जो जैतून के पहाड़ की पूर्वी ढ़लान पर स्थित है। आश्चर्य की बात है कि यीशु द्वारा जल्द ही स्वर्ग जाने के बारे में सब कुछ बता देने पर भी, वे अभी तक विश्वास कर रहे हैं कि उनका राज्य पृथ्वी पर स्थापित होगा। इसलिए वे पूछते हैं: “क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?”
उनकी ग़लत धारणाओं को दुबारा सही करने के बजाय, यीशु सिर्फ़ यह जवाब देते हैं: “उन समयों या कालों को जानना, जिन को पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं।” फिर, उन कामों पर ज़ोर देते हुए, जिन्हें उन्होंने ज़रूर करना है, वे कहते हैं: “परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे, और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे।”
जब वे देख ही रहे हैं, यीशु स्वर्ग की ओर उठने लगते हैं, और फिर एक बादल उन्हें उनके नज़र से छिपा देता है। अपनी शारीरिक देह का मूर्त रूप निकालने के बाद, वे एक आत्मिक व्यक्ति के रूप में स्वर्ग चले जाते हैं। जैसे ११ प्रेरित लगातार आकाश की ओर ताकते हैं, २ श्वेत कपड़े पहने हुए आदमी उनके बग़ल में दिखायी देते हैं। मूर्त रूप धारण किए हुए स्वर्गदूत पूछते हैं: “हे गलीली पुरुषों, तुम क्यों खड़े स्वर्ग की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है, उसी रीति से वह फिर आएगा।
बिना आम धूमधाम के और केवल उनके वफादार अनुयायी अवलोकन करते हुए, यीशु ने इस ढंग से अभी-अभी पृथ्वी छोड़ा। उसी प्रकार वे वापस आएँगे—बिना आम धूमधाम के और केवल उनके वफादार अनुयायी यह पहचानते हुए कि वे वापस आ चुके हैं और राजसत्ता में उनकी उपस्थिति शुरू हो गयी है।
प्रेरित अब जैतून के पहाड़ से नीचे उतरते हैं, किद्रोन घाटी को पार करते हैं, और एक बार फिर यरूशलेम में प्रवेश करते हैं। यीशु की आज्ञानुसार वे वहाँ ही रहते हैं। दस दिन बाद, सा.यु. वर्ष ३३ के पिन्तेकुस्त नामक यहूदी पर्व पर, जब यरूशलेम में एक ऊपरी कमरे में १२० शिष्य इकट्ठे हुए हैं, तो एकाएक पूरे घर में तेज़ आँधी जैसा शोर भर जाता है। आग की सी जीभें दिखायी देने लगती है, और हरेक उपस्थित जन पर एक-एक ठहर जाती है, और सब शिष्य विभिन्न भाषाओं में बोलने लगते हैं। यह यीशु द्वारा प्रतिज्ञात पवित्र आत्मा का उँडेले जाना है! मत्ती २८:१६-२०; लूका २४:४९-५२; १ कुरिन्थियों १५:५-७; प्रेरितों के काम १:३-१५; २:१-४.
▪ गलील के एक पहाड़ पर यीशु किसे विदाई का आदेश देते हैं, और यह आदेश क्या है?
▪ यीशु अपने शिष्यों के ख़ातिर क्या सांत्वना देते हैं, और कैसे वे उनके साथ रहेंगे?
▪ अपने पुनरुत्थान के बाद, यीशु कितने समय तक अपने शिष्यों को दिखाई देते हैं, और वे उन्हें क्या सिखाते हैं?
▪ वह कौन व्यक्ति है जिसे यीशु दिखाई देते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से, यीशु के मरने से पहले शिष्य नहीं था?
▪ यीशु की अपने प्रेरितों के साथ आख़री दो मुलाकतें कौनसी होती है, और इन अवसरों पर क्या होता है?
▪ जिस ढंग से यीशु गए थे उसी तरह वे कैसे वापस आएँगे?
▪ पिन्तेकुस्त सा.यु. वर्ष ३३ के दिन क्या होता है?
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