मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
6-12 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 33-34
“यहोवा की बाँहों में महफूज़ रहिए”
इंसाइट-2 पेज 51
यशूरून
यह नाम इसराएल राष्ट्र के सम्मान में उसे दिया गया था। यूनानी सेप्टुआजेंट में “यशूरून” शब्द का अनुवाद “प्यारा” किया गया है। इसका मतलब यह था कि यहोवा इसराएल राष्ट्र से बहुत प्यार करता था। यह नाम इसराएलियों को याद दिलाता था कि यहोवा ने उनके साथ करार किया है। इसलिए उनका फर्ज़ था कि वे सीधे-सच्चे लोग बने रहें यानी अपना चालचलन शुद्ध बनाए रखें।—व्य 33:5, 6; यश 44:2.
अपने पैरों पर उठ खड़े होने के लिए सहारा
यहेजकेल के दिनों से सदियों पहले मूसा ने बताया कि यहोवा के पास न सिर्फ अपने लोगों को बचाने की ताकत है, बल्कि वह ऐसा करना भी चाहता है। मूसा ने लिखा, “परमेश्वर मुद्दतों से तेरी पनाह रहा है, उसकी बाँहें तुझे सदा थामे रहेंगी।” (व्यव. 33:27) दुख की घड़ी में अगर हम अपने परमेश्वर यहोवा को पुकारें, तो वह अपना हाथ बढ़ाकर हमें थाम लेगा, प्यार से हमें उठाएगा और हमें अपने पैरों पर खड़ा करेगा।—यहे. 37:10.
धीरज से दौड़ते रहिए
16 अब्राहम की तरह मूसा ने अपनी ज़िंदगी में परमेश्वर के वादे को पूरा होते हुए नहीं देखा। जब इसराएली वादा किए देश में जाने ही वाले थे तब मूसा को कहा गया: “वह देश जो मैं इस्राएलियों को देता हूं, तू अपने साम्हने देख लेगा, परन्तु वहां जाने न पाएगा।” ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि इससे पहले वह और हारून लोगों के ज़िद्दी रवैये से इस हद तक आपा खो बैठे कि “कादेश के मरीबा नाम सोते पर,” “इस्राएलियों के मध्य में” “दोनों ने [परमेश्वर का] अपराध किया।” (व्यव. 32:51, 52) क्या मूसा वादा किए देश में दाखिल न होने की बात से हद-से-ज़्यादा दुखी हो गया? नहीं। उसने लोगों को आशीष दी और अपनी बात इन शब्दों से खत्म की: “हे इस्राएल, तू क्या ही धन्य है! हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा, तेरे तुल्य कौन है? वह तो तेरी सहायता के लिये ढाल, और तेरे प्रताप के लिये तलवार है।”—व्यव. 33:29.
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इंसाइट-2 पेज 439 पै 3
मूसा
यहोवा ने शायद इसलिए ऐसा किया ताकि लोग मूसा की कब्र को एक पूजा-स्थल बनाकर झूठी उपासना न शुरू कर दें। ऐसा लगता है कि शैतान ने झूठी उपासना करवाने के लिए मूसा की लाश पाने की कोशिश की थी। यह बात हम यहूदा के लिखे इन शब्दों से जान सकते हैं, “जब मूसा की लाश के बारे में प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल की शैतान के साथ बहस हुई, तो उसने शैतान को बुरा-भला कहकर उसे दोषी ठहराने की जुर्रत नहीं की बल्कि यह कहा, ‘यहोवा तुझे डाँटे।’”—यहूदा 9.
13-19 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 1-2
“कामयाब होने के लिए क्या करें?”
हिम्मत से काम लीजिए—यहोवा आपके साथ है!
7 हमें परमेश्वर के वचन का अध्ययन करना होगा और उसे लागू करना होगा तभी हम उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए ज़रूरी हिम्मत पाएँगे। यही सलाह यहोशू को भी दी गयी थी, जब उसे मूसा के बाद इसराएलियों का अगुवा ठहराया गया था। यहोशू को यह बताया गया था, “तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्था मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना . . . व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।” (यहो. 1:7, 8) यहोशू ने यह सलाह मानी और उसके ‘सब काम सफल’ हुए। अगर हम ऐसा करें तो हमें भी परमेश्वर की सेवा करने के लिए और भी हिम्मत मिलेगी और हम कामयाब होंगे।
हिम्मत से काम लीजिए—यहोवा आपके साथ है!
20 मुश्किलों से भरी इस दुष्ट दुनिया में हम पर आए दिन कोई-न-कोई परीक्षा आती है इसलिए परमेश्वर की बतायी राह पर चलना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन इस राह पर चलते रहने के लिए हमारे पास काफी मदद हाज़िर है। हमारा परमेश्वर हमारे साथ है। उसका बेटा यीशु भी हमारी मदद करता है जो मसीही मंडली का मुखिया है। उनके अलावा, दुनिया-भर में रहनेवाले सत्तर लाख से ज़्यादा मसीही भाई-बहन हमारे साथ हैं। आइए हम सब मिलकर अपना विश्वास दिखाते रहें और सन् 2013 का यह सालाना वचन हमेशा मन में रखकर खुशखबरी सुनाने का काम करते रहें, ‘हिम्मत से काम ले और हौसला रख। तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे साथ है।’—यहो. 1:9.
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यहोशू किताब की झलकियाँ
यहोशू 2:4, 5—जासूसों को ढूँढ़ने आए राजा के आदमियों को राहाब ने क्यों गुमराह किया? राहाब ने अपनी जान खतरे में डालकर जासूसों को इसलिए बचाया क्योंकि अब वह यहोवा परमेश्वर पर विश्वास करने लगी थी। इसलिए, उसके लिए यह ज़रूरी नहीं था कि उन जासूसों का अता-पता ऐसे लोगों को दे जो परमेश्वर के सेवकों को नुकसान पहुँचाना चाहते थे। (मत्ती 7:6; 21:23-27; यूहन्ना 7:3-10) राहाब अपने “कर्मों से धार्मिक . . . ठहरी,” जिनमें से एक था, राजा के दूतों को गलत रास्ते से भेज देना।—याकूब 2:24-26.
20-26 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 3-5
“विश्वास से काम करें, यहोवा की आशीष पाएँ”
इंसाइट-2 पेज 105
यरदन
यरदन नदी का जो हिस्सा गलील झील के नीचे की तरफ है वह 3 से 10 फुट गहरा और करीब 90 से 100 फुट चौड़ा होता है। मगर वसंत के मौसम में यरदन के किनारे पानी उमड़ने लगता है और यह नदी और भी गहरी और चौड़ी हो जाती है। (यह 3:15) ऐसे वक्त में यरदन नदी पार करने से इसराएलियों की जान को खतरा हो सकता था। इसराएलियों में बहुत-सी औरतें और बच्चे भी थे, इसलिए नदी पार करना आसान नहीं होता। खासकर यरीहो के पास खतरा और भी ज़्यादा था। वहाँ नदी का पानी आज भी बहुत तेज़ बहता है। आज के ज़माने में जब वहाँ कुछ लोग नहाने गए, तो वे पानी की तेज़ धारा में बहकर मर गए। लेकिन इसराएलियों के ज़माने में यहोवा ने चमत्कार से पानी को बहने से रोक दिया, इसलिए वे उसे पार करके सूखी ज़मीन पर सही-सलामत पहुँच गए।—यह 3:14-17.
यहोवा की चितौनियों को अपने हृदय के हर्ष का कारण बनाइए
17 विश्वास के ये काम यहोवा पर हमारा भरोसा कैसे मज़बूत करते हैं? ज़रा सोचिए कि उस वक्त क्या हुआ था जब इसराएलियों का वादा किए गए देश में कदम रखने का वक्त आया। यहोवा ने वाचा का संदूक उठानेवाले याजकों को निर्देश दिया था कि वे यरदन नदी के बीचों-बीच जाकर खड़े हो जाएँ। लेकिन, जब लोग नदी के पास आए, तो उन्होंने देखा कि सावन की बारिश की वजह से नदी लबालब भरी है और पानी तेज़ी से बह रहा है। अब इसराएली क्या करते? क्या वे नदी किनारे डेरा डालकर हफ्तों इंतज़ार करते, जब तक कि पानी कम नहीं हो जाता? नहीं, इसके बजाय उन्होंने यहोवा पर पूरा भरोसा रखा और उसके निर्देशों को माना। इसका क्या नतीजा हुआ? वाकया बताता है, ‘जब याजकों के पैर तट के जल में पड़े, तब ऐसा हुआ कि जलधारा थम गई।’ इसके बाद, ‘याजक यरदन के बीचोंबीच सूखी भूमि पर स्थिर खड़े रहे और समस्त इस्राएल सूखी भूमि पर से पार हुआ।’ (यहो. 3:12-17, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन ) ज़रा कल्पना कीजिए कि तेज़ी से बहते हुए पानी को थमते देख इसराएलियों में क्या ही खुशी की लहर दौड़ गयी होगी! वाकई, इसराएलियों का परमेश्वर पर भरोसा कितना बढ़ा होगा, क्योंकि उन्होंने उसके निर्देशों को माना।
यहोवा की चितौनियों को अपने हृदय के हर्ष का कारण बनाइए
18 यह सच है कि यहोवा आज अपने लोगों की खातिर ऐसे चमत्कार नहीं करता। लेकिन जब हम यहोवा पर विश्वास दिखाते हैं और उसके निर्देश मानते हैं, तो वह हमें आशीष ज़रूर देता है। परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमें हिम्मत देती है ताकि हम दुनिया-भर में राज के संदेश का प्रचार कर सकें। और यहोवा के खास गवाह, जी उठाए गए यीशु मसीह ने अपने चेलों को यकीन दिलाया कि इस ज़रूरी काम में वह उनका साथ देगा। उसने कहा: “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” उसने यह भी कहा: “मैं दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।” (मत्ती 28:19, 20) बहुत-से साक्षी जो शायद दूसरों से बात करते वक्त शर्माते या घबराते थे, उन्होंने अनुभव किया है कि परमेश्वर की पवित्र शक्ति ने उन्हें इतनी हिम्मत दी है कि वे प्रचार में बिना डरे अजनबियों से बात कर पाते हैं।—भजन 119:46; 2 कुरिंथियों 4:7 पढ़िए।
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यहोशू किताब की झलकियाँ
यहोशू 5:14, 15—“यहोवा की सेना का प्रधान” कौन है? वादा किए गए देश पर हमला शुरू होते वक्त, यहोशू का हौसला बढ़ाने के लिए जो प्रधान आया, वह कोई और नहीं बल्कि “वचन” ही हो सकता है। यह वचन, इंसान के रूप में जन्म लेने से पहले का यीशु मसीह है। (यूहन्ना 1:1; दानिय्येल 10:13) यह जानकर हमें कितनी हिम्मत मिलती है कि आज महिमा से भरपूर यीशु मसीह, परमेश्वर के लोगों की आध्यात्मिक जंग में उनके साथ है!
27 सितंबर–3 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 6-7
“बेकार की चीज़ों से दूर रहिए”
व्यर्थ की चीज़ों से अपनी आँखें हटा दो!
5 इसके सदियों बाद आकान नाम का एक इसराएली अपनी आँखों के धोखे में आ गया। इसलिए उसने यरीहो शहर की कुछ चीज़ें चुरा लीं। परमेश्वर ने इसराएलियों को आज्ञा दी थी कि उस शहर पर हमला करने के बाद वे वहाँ की सारी चीज़ें नाश कर दें और सिर्फ उन चीज़ों को छोड़ दें जो यहोवा के खज़ाने के लिए दी जानी थीं। उन्हें यह चेतावनी दी गयी थी: “तुम अर्पण की हुई वस्तुओं से सावधानी से अपने आप को अलग रखो, ऐसा न हो कि . . . उसी अर्पण की वस्तु में कुछ ले लो।” लेकिन आकान ने यह बात नहीं मानी, इसलिए जब इसराएलियों ने ऐ शहर पर हमला किया तो वे हार गए और बहुत-से इसराएली मारे गए। आकान ने अपना जुर्म तब तक कबूल नहीं किया जब तक कि इसका खुलासा नहीं किया गया। उसने कहा कि वे चीज़ें ‘जब मुझे दिखायी पड़ीं, तब मैं ने उनका लालच करके उन्हें रख लिया।’ अंजाम, उसकी आँखों की चाहत ने उसे और “जो कुछ उसका था” वह सब खाक में मिला दिया। (यहो. 6:18, 19; 7:1-26) आकान ने उन्हीं चीज़ों का लालच किया जिनकी मनाही थी।
जो बुरा है उसकी रिपोर्ट क्यों करें?
पाप की रिपोर्ट करने का एक कारण यह है कि यह कलीसिया की शुद्धता बनाए रखने के लिए कार्य करता है। यहोवा एक शुद्ध परमेश्वर, एक पवित्र परमेश्वर है। उसकी माँग है कि वे सभी जो उसकी उपासना करते हैं, आध्यात्मिक व नैतिक रूप से शुद्ध हों। उसका प्रेरित वचन सलाह देता है: “आज्ञा माननेवाले बच्चों की तरह, अपनी उन इच्छाओं के मुताबिक खुद को ढालना बंद करो जो तुम्हारे अंदर उस वक्त थीं जब तुम परमेश्वर से अनजान थे। मगर उस पवित्र परमेश्वर की तरह, जिसने तुम्हें बुलाया है, तुम भी अपना पूरा चालचलन पवित्र बनाए रखो क्योंकि लिखा है: ‘तुम्हें पवित्र बने रहना है क्योंकि मैं पवित्र हूँ।’” (1 पतरस 1:14-16) ऐसे व्यक्ति जो अशुद्ध काम या पाप करते रहते हैं, वे कलीसिया को दूषित कर देते हैं और पूरी कलीसिया पर यहोवा की नाराज़गी ला सकते हैं यदि इसे सुधारने या हटाने के लिए कार्यवाही नहीं की जाती है।—यहोशू, अध्याय 7 से तुलना कीजिए।
व्यर्थ की चीज़ों से अपनी आँखें हटा दो!
8 सच्चे मसीही भी आँखों और शरीर की ख्वाहिशों के असर से अछूते नहीं हैं। इसलिए परमेश्वर का वचन हमें इस मामले में खुद को अनुशासित करने का बढ़ावा देता है कि हम अपनी आँखों से क्या देखते हैं और कैसी बातों की चाहत रखते हैं। (1 कुरिं. 9:25, 27; 1 यूहन्ना 2:15-17 पढ़िए। ) अय्यूब, जो एक खरा इंसान था, वह अच्छी तरह जानता था कि हमारी आँखों का दिल से गहरा संबंध है, यानी जब कोई चीज़ हमारी आँखों को भा जाती है तो उसे पाने की चाहत दिल में ज़ोर पकड़ने लगती है। इसलिए अय्यूब ने कहा: “मैं ने अपनी आंखों के विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं?” (अय्यू. 31:1) अय्यूब ने किसी स्त्री को गलत इरादे से कभी नहीं छुआ, उसने तो यहाँ तक ठान लिया था कि वह अपने मन में ऐसा खयाल तक पनपने नहीं देगा। यीशु ने ज़ोर देकर बताया कि अपने मन को शुद्ध रखने के लिए ज़रूरी है कि हम अनैतिक विचारों को कोई जगह न दें। उसने कहा: “हर वह आदमी जो किसी स्त्री को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में स्त्री के लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस स्त्री के साथ व्यभिचार कर चुका।”—मत्ती 5:28.
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आपने पूछा
पुराने ज़माने में, शहरों पर जीत हासिल करने के लिए दुश्मन सेनाएँ उनकी शहरपनाह के चारों तरफ डेरा डालती थीं। अगर यह घेराबंदी लंबे समय तक होती थी, तो शहर के लोगों का जमा किया हुआ ज़्यादातर राशन खत्म हो जाता था। और जब सैनिक शहर पर कब्ज़ा कर लेते थे, तब वे उसकी हर चीज़ लूट लेते थे। यहाँ तक कि बचा-खुचा अनाज भी ज़ब्त कर लेते थे। पलिश्त के शहरों पर कुछ इसी तरह हमले हुए थे। इसलिए इन शहरों के खंडहरों में खोजबीन करनेवालों को खाने-पीने की चीज़ें बहुत कम या न के बराबर मिलीं। लेकिन यरीहो के खंडहरों की खोज करने पर बहुत सारा अनाज पाया गया। इस मामले में, बिब्लिकल आर्कियॉलजी रिव्यू नाम की पत्रिका कहती है: ‘तहस-नहस हुई चीज़ों में मिट्टी के बरतन मिले। इसके अलावा सबसे ज़्यादा अनाज पाया गया। पलिश्ती इतिहास की खोज से पता चलता है कि यह बहुत अनोखी बात है। अनाज से भरे एक-दो घड़े तो पाए जा सकते हैं, लेकिन इतनी बड़ी तादाद में अनाज मिलना कोई मामूली बात नहीं है।’
बाइबल बताती है कि इसराएली सेना ने यरीहो का अनाज नहीं लूटा था, क्योंकि यहोवा ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था। (यहो. 6:17, 18) इसराएलियों ने यरीहो पर वसंत के मौसम में हमला किया था। यह मौसम फसल की कटाई के ठीक बाद आता है। इसलिए शहर में बहुत सारा अनाज था। (यहो. 3:15-17; 5:10) यह अनाज घेराबंदी के बाद भी खत्म नहीं हुआ, वहाँ अब भी काफी अनाज था। इससे साफ पता चलता है कि इसराएलियों ने बहुत कम समय के लिए यरीहो की घेराबंदी की थी, जैसे बाइबल बताती है।
4-10 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 8-9
“गिबोनियों की घटना से हम क्या-क्या सीखते हैं?”
इंसाइट-1 पेज 930-931
गिबोन
यहोशू के दिनों में। यहोशू के दिनों में गिबोनी लोग सात कनानी जातियों में से एक थे। यहोवा ने इन सबका नाश करने की आज्ञा दी थी। (व्य 7:1, 2; यह 9:3-7) मगर गिबोनी लोग बाकी कनानी जातियों से अलग थे। वे समझ गए कि वे इसराएलियों को हरा नहीं सकते, क्योंकि यहोवा उनकी तरफ से लड़ रहा था। गिबोनी लोगों के पास बहुत बड़ी सेना थी और उनका शहर भी बहुत बड़ा और मज़बूत था, फिर भी उन्होंने मान लिया कि वे इसराएलियों का मुकाबला नहीं कर सकते। इसलिए ऐ और यरीहो के नाश के बाद उन्होंने अपने कुछ आदमियों को गिलगाल में यहोशू के पास भेजा ताकि वे उससे बिनती करें कि वे गिबोनी जाति का नाश न करें। गिबोनी आदमी फटे-पुराने कपड़े और जूते पहनकर गए और अपने साथ फटी हुई पुरानी मशकें और सूखी भुरभुरी रोटियाँ ले गए ताकि ऐसा लगे कि वे किसी दूर देश से आए हैं। उन्हें देखने पर ऐसा लगा जैसे वे वादा किए गए देश के बाहर से आए हैं और सात कनानी जातियों में से नहीं हैं। उन्होंने यहोशू के सामने माना कि मिस्र और एमोरी राजा सीहोन और ओग के साथ जो भी हुआ, वह यहोवा की वजह से था। मगर उन्होंने यरीहो और ऐ के नाश की बात नहीं की ताकि यहोशू को शक न हो कि अगर वे “दूर देश” से आए हैं, तो उन्हें सीहोन और ओग के बारे में कैसे पता चला क्योंकि यह खबर दूर देश तक पहुँचने में काफी समय लगता।—यह 9:3-15.
“अपनी समझ का सहारा न लेना”
14 असिद्ध होने की वजह से हम सबको, जी हाँ अनुभवी प्राचीनों को भी, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फैसले लेते वक्त मार्गदर्शन के लिए यहोवा की ओर देखें। ध्यान दीजिए कि मूसा के बाद अगुवाई लेनेवाले यहोशू और इसराएल के दूसरे बुज़ुर्गों ने तब क्या किया जब चालाक गिबोनियों ने भेष बदलकर किसी दूर देश से आने का ढोंग किया। यहोशू और उसके साथियों ने यहोवा से पूछे बिना उनके साथ शांति की वाचा बाँधी। हालाँकि बाद में यहोवा ने उनके इस फैसले को कबूल किया और उनका साथ दिया लेकिन उन्होंने फैसला लेने से पहले यहोवा से ना पूछने की जो भूल की थी, उसे भी यहोवा ने शास्त्र में दर्ज़ करवाया।—यहो. 9:3-6, 14, 15.
‘इस देश में चल फिर’
14 उन दूतों ने कहा: “तेरे दास बहुत दूर के देश से तेरे परमेश्वर यहोवा का नाम सुनकर आए हैं।” (तिरछे टाइप हमारे; यहोशू 9:3-9) उनके कपड़ों और उनकी खाने की चीज़ों से वाकई ऐसा लग रहा था कि वे किसी दूर देश से आए हैं। लेकिन असल में गिबोन, गिलगाल के पास ही था, करीब 30 किलोमीटर दूर। यहोशू और उसके प्रधानों ने गिबोनियों की बात पर यकीन कर लिया और उन्होंने गिबोन और उसके पड़ोसी शहरों के साथ दोस्ती की वाचा बाँधी। क्या गिबोनियों ने सिर्फ नाश होने से बचने के लिए यह चाल चली थी? नहीं, बल्कि वे इस्राएल के परमेश्वर का अनुग्रह पाना चाहते थे। यहोवा ने वाकई उन पर अनुग्रह किया, इसलिए वे इस्राएलियों की ‘मण्डली और यहोवा की वेदी के लिये लकड़हारे और पानी भरनेवाले’ बने। (यहोशू 9:11-27) उन्होंने बलिदान की वेदी पर जलाने के लिए लकड़ी जमा करने का काम किया। गिबोनियों ने यहोवा की सेवा में छोटे-छोटे काम भी करने के लिए तैयार रहने की यह भावना हमेशा बनाए रखी। शायद इनमें से कुछ लोग उन नतीनों में से थे, जिन्होंने बाबुल से लौटकर, दोबारा बनाए गए मंदिर में सेवा की। (एज्रा 2:1, 2, 43-54; 8:20) हम भी अगर परमेश्वर के साथ शांति बनाए रखने की कोशिश करें और उसकी सेवा में छोटे-छोटे काम करने को भी तैयार रहें तो हम गिबोनियों की मिसाल पर चल रहे होंगे।
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इंसाइट-1 पेज 1030
काठ पर लटकाया जाता था
इसराएलियों को दिए गए कानून के मुताबिक कुछ अपराधियों को मार डालने के बाद उनकी लाश को काठ पर लटकाया जाता था। माना जाता था कि जिसे काठ पर लटकाया जाता है, वह परमेश्वर से शापित है। लाश को काठ पर लटकाने से बाकी लोगों को भी सबक मिलता कि वे बुरे काम न करें।
बढ़ाएँ प्रचार में हुनर
इंसाइट-1 पेज 520; पेज 525 पै 1
करार
जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “करार” किया गया है, उसका मतलब आपस में किसी बात के लिए राज़ी होना है। जब दो या उससे ज़्यादा लोग आपस में राज़ी होते हैं या समझौता करते हैं कि वे फलाँ काम करेंगे या फलाँ काम नहीं करेंगे, तो उसे करार कहा जाता है।
यहोशू और इसराएल के प्रधानों ने गिबोन शहर के लोगों से एक करार किया। इस करार में उन्होंने गिबोनियों से वादा किया कि वे उनका नाश नहीं करेंगे। गिबोनी लोग भी कनानी थे, इसलिए परमेश्वर ने उन्हें शाप दिया था और इसराएलियों को उनका नाश कर देना चाहिए था। मगर यहोशू और प्रधानों ने उनके साथ करार कर लिया था। जब कोई करार किया जाता, तो उसे किसी भी हाल में रद्द नहीं किया जा सकता था। इसलिए गिबोनियों को ज़िंदा छोड़ दिया गया। मगर वे शापित ही रहे, क्योंकि परमेश्वर ने उन्हें शाप दिया था। उन्हें इसराएलियों के लिए लकड़ी इकट्ठा करने और पानी भरने का काम दिया गया।—यह 9:15, 16, 23-27.
11-17 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 10-11
“यहोवा इसराएलियों की तरफ से लड़ा”
इंसाइट-1 पेज 50
अदोनी-सेदेक
अदोनी-सेदेक उन दिनों यरूशलेम का राजा था जब इसराएलियों ने वादा किए गए देश पर हमला किया। जब गिबोनी लोगों ने यहोशू से मेल-मिलाप कर लिया, तो अदोनी-सेदेक को चिंता होने लगी कि कहीं बाकी राज्य भी इसराएलियों की तरफ न हो जाएँ। इसलिए उसने चार राजाओं के साथ मिलकर गिबोनी लोगों से लड़ाई की।
इंसाइट-1 पेज 1020
ओले
यहोवा ने ओले बरसाए। यहोवा ने कभी-कभी अपने वादे पूरा करने और अपनी महा-शक्ति दिखाने के लिए ओले बरसाए थे। (निर्ग 9:18-26; भज 78:47, 48; 105:32, 33; 148:1, 8; यश 30:30) वादा किए गए देश में जब पाँच एमोरी राजाओं ने गिबोनी लोगों पर हमला किया और इसराएली युद्ध में गिबोनी लोगों की मदद करने गए, तो यहोवा ने एमोरी लोगों पर बड़े-बड़े ओले बरसाए। ओलों की वजह से मरनेवालों की गिनती युद्ध में मारे गए लोगों से ज़्यादा थी।—यह 10:3-7, 11.
यहोशू किताब की झलकियाँ
यहोशू 10:13—यह हैरतअँगेज़ नज़ारा कैसे मुमकिन है? क्या आकाश और पृथ्वी के सिरजनहार “यहोवा के लिये कोई काम कठिन है?” (उत्पत्ति 18:14) वह चाहे तो पृथ्वी की परिक्रमा में इस तरह बदलाव कर सकता है कि इसके रहनेवालों को सूरज और चाँद थमे हुए नज़र आएँ। या फिर वह पृथ्वी और चाँद की परिक्रमा को बिना रोके, सूरज और चाँद से निकलनेवाली किरणों की दिशा यूँ मोड़ सकता है कि उनसे मिलनेवाला प्रकाश पृथ्वी पर हमेशा चमकता रहे। यहोवा ने चाहे जो भी किया हो मगर यह एक सच्चाई है कि इंसान के इतिहास में “न तो उस से पहिले कोई ऐसा दिन हुआ और न उसके बाद।”—यहोशू 10:14.
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पाठकों के प्रश्न
यह सच है कि बाइबल में कुछ पुस्तकों का ज़िक्र और उनमें दी जानकारी का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे पुस्तकें ईश्वर-प्रेरणा से रची गयी थीं। दरअसल जिन-जिन किताबों में “हमारे परमेश्वर का वचन” पाया जाता है, उन सभी किताबों को यहोवा ने सुरक्षित रखा है और ये “सदैव अटल” रहेंगी। (यशा. 40:8) जी हाँ, उसने बाइबल की 66 किताबों में जितनी जानकारी दर्ज़ करवायी है, वह हमारे ‘सिद्ध बनने और हर एक भले काम के लिये तत्पर होने’ के लिए काफी है।—2 तीमु. 3:16, 17.
18-24 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 12-14
“पूरे दिल से यहोवा की बात मानिए”
यहोशू किताब की झलकियाँ
यहोशू 14:10-13. कालेब 85 साल का होते हुए भी गुज़ारिश करता है कि हेब्रोन के इलाके से लोगों को बेदखल करने का मुश्किल काम उसे दिया जाए। इस इलाके में अनाकी जाति के लोग रहते हैं जो डील-डौल में लंबे-चौड़े और ताकतवर हैं। लेकिन यहोवा की मदद से यह अनुभवी योद्धा कामयाबी हासिल करता है, और हेब्रोन एक शरणनगर बन जाता है। (यहोशू 15:13-19; 21:11-13) कालेब का यह उदाहरण हमें उकसाता है कि हमें परमेश्वर की सेवा में मुश्किल ज़िम्मेदारियाँ हाथ में लेने से कभी कतराना नहीं चाहिए।
विश्वास और परमेश्वर के भय के ज़रिए साहसी बनना
11 सच्चा विश्वास बढ़ता जाता है। और ऐसा तब होता है, जब हम सच्चाई को अपनी ज़िंदगी में लागू करते हैं, उसके फायदों को ‘चखते’ (फुटनोट) हैं, और ‘देखते’ हैं कि हमें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब मिला है। साथ ही, दूसरे तरीकों से हम महसूस करते हैं कि यहोवा हमें ज़िंदगी में राह दिखा रहा है। (भजन 34:8; 1 यूहन्ना 5:14, 15) हम इस बात का पूरा यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर की भलाई को चखकर यहोशू और कालेब का विश्वास और भी मज़बूत हुआ होगा। (यहोशू 23:14) गौर कीजिए कि उन्हें क्या-क्या आशीषें मिलीं: परमेश्वर के वादे के मुताबिक, वे दोनों 40 साल तक विराने में भटकने के बाद भी ज़िंदा बचे। (गिनती 14:27-30; 32:11, 12) जब इस्राएल जाति ने कनान देश पर अपना कब्ज़ा करने के लिए छः साल तक लड़ाई की, तो उसमें यहोशू और कालेब ने अहम भूमिका निभायी। आखिरकार, उन दोनों ने लंबी उम्र और अच्छी सेहत का लुत्फ उठाया, यहाँ तक कि उन्हें विरासत में अलग-से ज़मीन भी दी गयी। वाकई, यहोवा अपने वफादार और साहसी सेवकों को क्या ही भरपूर आशीषें देता है!—यहोशू 14:6, 9-14; 19:49, 50; 24:29.
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इंसाइट-1 पेज 902-903
गबाल
यहोवा ने इसराएलियों को बताया कि उन्हें और किन-किन इलाकों पर कब्ज़ा करना है। उनमें से एक इलाका था, “गबाली लोगों का इलाका।” (यह 13:1-5) कुछ लोगों का कहना है कि इस आयत में गलती से “गबाली लोगों का इलाका” लिखा है, क्योंकि गबाल शहर इसराएल देश के काफी उत्तर में था (दान के करीब 100 किलोमीटर उत्तर में)। वे कहते हैं कि इसी वजह से इसराएलियों ने गबाली लोगों के इलाके पर कभी कब्ज़ा नहीं किया था। बाइबल का अध्ययन करनेवाले कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि शुरू में इब्रानी में इस आयत में शायद लिखा था, “लबानोन के पास का इलाका” या “गबाली लोगों के इलाके की सरहद तक।” बाद में ये शब्द मिट गए। लेकिन हमें याद रखना है कि यहोशू 13:2-7 में यहोवा ने इसराएलियों को जो इलाके देने का वादा किया था, वे उन्हें तभी मिलते जब वे उसकी बात मानते। तो शायद यहोवा की आज्ञा तोड़ने की वजह से इसराएलियों को गबाली लोगों का इलाका नहीं मिला।—यह 23:12, 13 से तुलना करें।
25-31 अक्टूबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | यहोशू 15-17
“एक अनमोल विरासत पाने का मौका मत गँवाइए”
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हेब्रोन
इसराएलियों ने यहोशू के निर्देश में हेब्रोन पर कब्ज़ा कर लिया था, मगर ऐसा मालूम पड़ता है कि उन्होंने उस इलाके की रक्षा करने के लिए वहाँ सैनिक तैनात नहीं किए। शायद इसराएली जब दूसरे इलाकों पर कब्ज़ा करने के लिए वहाँ युद्ध कर रहे थे, तो अनाकी लोगों ने फिर से हेब्रोन पर कब्ज़ा कर लिया। शुरू में हेब्रोन शहर कालेब को विरासत में दिया गया था, इसलिए कालेब को (या कालेब के निर्देश में यहूदा के वंशजों को) वह शहर अनाकी लोगों के हाथ से छुड़ाना था।—यह 11:21-23; 14:12-15; 15:13,14; न्या 1:10.
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जबरन मज़दूरी
यहोवा ने इसराएलियों से कहा था कि जब वे वादा किए गए देश में जाएँगे, तो वहाँ से सभी कनानी लोगों को भगा दें और उनका नाश कर दें। मगर इसराएलियों ने यहोवा की बात नहीं मानी। उन्होंने कुछ कनानी लोगों को छोड़ दिया और उन्हें दास बना लिया। इसका अंजाम बहुत बुरा हुआ। कनानी लोगों ने इसराएलियों को झूठे देवताओं की पूजा करने के लिए लुभा लिया।—यह 16:10; न्या 1:28; 2:3, 11, 12.
इंसाइट-1 पेज 402 पै 3
कनान
यह सच है कि जब इसराएलियों ने कनानी जातियों का नाश किया, तो उसके बाद भी बहुत-से कनानी लोग बच गए। फिर भी हम कह सकते हैं कि “यहोवा ने इसराएलियों को वह सारा देश दिया, जिसे देने का वादा उसने उनके पुरखों से किया था।” उसने उन्हें “चारों तरफ से चैन दिया” और “इसराएल के घराने से जितने भी बेहतरीन वादे किए थे वे सब-के-सब पूरे हुए, एक भी वादा बिना पूरा हुए नहीं रहा।” (यह 21:43-45) इसराएल देश के चारों तरफ जितने भी दुश्मन थे, वे इसराएलियों से डरते थे और जब तक इसराएली यहोवा की बात मानते तब तक उन्हें दुश्मनों से कोई खतरा नहीं था। कनानी लोगों के पास युद्ध के बहुत खतरनाक हथियार थे। उनके युद्ध-रथों के पहियों में तलवारें लगी होती थीं। (यह 17:16-18; न्या 4:13) फिर भी यहोवा ने इसराएलियों को भरोसा दिलाया कि जीत उन्हीं की होगी। जब भी इसराएली कनानी लोगों से हारे, तो इसका यह मतलब नहीं था कि यहोवा ने अपना वादा नहीं निभाया। कसूर इसराएलियों का ही था। यहोवा की आज्ञा तोड़ने की वजह से वे हार जाते थे।—गि 14:44, 45; यह 7:1-12.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
क्या आप जानते थे?
क्या प्राचीन इसराएल में इतने घने जंगल होते थे जितने कि बाइबल में बताए गए हैं?
बाइबल बताती है कि वादा किए गए देश के कुछ इलाकों में जंगल थे और वहाँ “बहुतायत” में पेड़ थे। (1 राजा 10:27; यहो. 17:15, 18) लेकिन आज उस देश के ज़्यादातर इलाकों में पेड़ नज़र नहीं आते। इस वजह से कुछ लोग शायद शक करें कि क्या वहाँ वाकई कभी जंगल रहे होंगे।
बाइबल के इसराएल में ज़िंदगी (अँग्रेज़ी) किताब इस बारे में समझाती है कि “आज के मुकाबले पुराने ज़माने के इसराएल में जंगल कहीं ज़्यादा थे।” पहाड़ी इलाके के जंगलों में ज़्यादातर पेड़ एलीपो चीड़ (पाइनस हेलेपैनसिस ), सदाबहार ओक (क्वरकस कैलिप्रिनोस ) और बांज-वृक्ष (पिसटाकिया पैलेसटिना ) के थे। बड़े पहाड़ और भूमध्य सागर के बीच छोटी-छोटी पहाड़ियों के इलाके में गूलर के पेड़ (फिकस साइकोमोरस ) भी बहुतायत में थे। इस इलाके को शिफेला नाम से जाना जाता है।
बाइबल के ज़माने के पेड़-पौधे (अँग्रेज़ी) किताब कहती है कि आज इसराएल देश के कुछ इलाकों में नाम के लिए भी पेड़-पौधे नहीं हैं। यह नौबत कैसे आयी? यही किताब कहती है कि यह सब धीरे-धीरे हुआ। किताब यह भी बताती है, ‘इंसान हमेशा पेड़-पौधों से खिलवाड़ करता आया है। वह अपनी खेती-बाड़ी और चरागाह का इलाका बढ़ाने, साथ ही, मकान बनाने में लकड़ी इस्तेमाल करने और आग जलाने के लिए लगातार पेड़ काटता रहा है।’