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अंजीर के पेड़ से विश्वास की सीखयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 105
अंजीर के पेड़ से विश्वास की सीख
मत्ती 21:19-27 मरकुस 11:19-33 लूका 20:1-8
अंजीर के पेड़ के सूखने से विश्वास की सीख मिली
यीशु के अधिकार पर सवाल उठाया गया
सोमवार की दोपहर यीशु यरूशलेम से बैतनियाह लौट जाता है। वह शायद लाज़र, मारथा और मरियम के घर पर रात बिताता है।
अगले दिन नीसान 11 की सुबह यीशु और उसके चेले फिर से यरूशलेम के लिए निकल पड़ते हैं। नीसान 11 की खासियत यह है कि आज वह आखिरी बार मंदिर जा रहा है और आखिरी बार वह लोगों को सरेआम सिखानेवाला है। इसके बाद वह फसह मनाएगा और अपने चेलों को दिखाएगा कि उसकी मौत का स्मारक कैसे मनाना चाहिए। फिर उस पर मुकद्दमा चलाया जाएगा और उसे मार डाला जाएगा।
जब यीशु और उसके चेले बैतनियाह से यरूशलेम जा रहे होते हैं, तो रास्ते में पतरस यीशु से कहता है, “गुरु, देख! वह अंजीर का पेड़ जिसे तूने शाप दिया था, सूख गया है।”—मरकुस 11:21.
यीशु बताता है कि उसने पेड़ को क्यों शाप दिया कि वह सूख जाए: “अगर तुममें विश्वास हो और तुम शक न करो, तो तुम न सिर्फ वह करोगे जो मैंने इस अंजीर के पेड़ के साथ किया, बल्कि अगर तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘यहाँ से उखड़कर समुंदर में जा गिर,’ तो ऐसा हो जाएगा। और तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में जो कुछ माँगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा।” (मत्ती 21:21, 22) विश्वास होने से हम पहाड़ को भी हिला सकेंगे। यीशु ने यह बात पहले भी एक बार बतायी थी।—मत्ती 17:20.
यीशु ने जो किया उससे पता चलता है कि परमेश्वर पर विश्वास होना कितना ज़रूरी है। वह कहता है, “जो कुछ तुम प्रार्थना में माँगते हो उसके बारे में विश्वास रखो कि वह तुम्हें ज़रूर मिलेगा और वह तुम्हें मिल जाएगा।” (मरकुस 11:24) कुछ दिनों में प्रेषितों को बहुत-सी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए परमेश्वर पर विश्वास रखना उनके लिए बहुत ज़रूरी है। अंजीर के पेड़ से अब यीशु विश्वास के बारे में एक और सीख देगा।
वह पेड़ ऊपर से जैसा दिख रहा है वैसा नहीं है। इसराएल राष्ट्र को भी ऊपर से देखने से ऐसा लगता है कि वह परमेश्वर का कानून मानता है, क्योंकि परमेश्वर ने उसके साथ करार किया है। लेकिन असलियत यह है कि ज़्यादातर लोगों को परमेश्वर पर विश्वास नहीं है और वे अच्छा फल नहीं पैदा कर रहे हैं। उन्होंने परमेश्वर के बेटे को भी ठुकरा दिया है। यीशु ने अंजीर के पेड़ को शाप देकर दिखाया कि इसराएल राष्ट्र का हाल भी उस सूखे पेड़ की तरह होनेवाला है, क्योंकि उसमें विश्वास नहीं है और वह फल नहीं पैदा कर रहा है।
कुछ ही देर में यीशु और उसके चेले यरूशलेम पहुँच जाते हैं। फिर यीशु मंदिर जाता है और लोगों को सिखाने लगता है। तब प्रधान याजक और लोगों के मुखिया आकर उससे पूछते हैं, “तू ये सब किस अधिकार से करता है? किसने तुझे यह अधिकार दिया है?” (मरकुस 11:28) वे शायद पूछ रहे हैं कि उसने पिछले दिन जो सौदागरों को भगाया था, वह सब करने का अधिकार उसे किसने दिया।
यीशु कहता है, “मैं भी तुमसे एक सवाल पूछता हूँ। तुम उसका जवाब दो, तब मैं तुम्हें बताऊँगा कि मैं ये सब किस अधिकार से करता हूँ। जो बपतिस्मा यूहन्ना ने दिया, वह स्वर्ग की तरफ से था या इंसानों की तरफ से? जवाब दो।” तब याजक और मुखिया आपस में बात करते हैं कि हम इसे क्या जवाब दें: “अगर हम कहें, ‘स्वर्ग की तरफ से,’ तो वह कहेगा, ‘फिर क्यों तुमने उसका यकीन नहीं किया?’ पर हम यह कहने की भी जुर्रत कैसे करें कि इंसानों की तरफ से था?” उन्हें भीड़ का डर है क्योंकि सब लोग मानते हैं कि यूहन्ना एक भविष्यवक्ता था।—मरकुस 11:29-32.
यीशु के विरोधियों के पास कोई जवाब नहीं है, इसलिए वे कहते हैं, “हम नहीं जानते।” यीशु उनसे कहता है, “तो मैं भी तुम्हें नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब करता हूँ।”—मरकुस 11:33.
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अंगूरों के बाग की दो मिसालेंयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 106
अंगूरों के बाग की दो मिसालें
मत्ती 21:28-46 मरकुस 12:1-12 लूका 20:9-19
दो बेटों की मिसाल
बागबानों की मिसाल
मंदिर में अभी-अभी प्रधान याजकों और लोगों के मुखियाओं ने यीशु के अधिकार पर सवाल उठाया था। मगर वे यीशु का जवाब सुनकर चुप रह गए। अब यीशु उन्हें एक ऐसी मिसाल बताता है जिससे उनकी असलियत का पता चलता है।
“एक आदमी के दो बेटे थे। उसने पहले के पास जाकर कहा, ‘बेटा जा, आज अंगूरों के बाग में काम कर।’ तब उस लड़के ने कहा, ‘मैं नहीं जाऊँगा,’ मगर बाद में उसे पछतावा हुआ और वह गया। फिर दूसरे बेटे के पास जाकर पिता ने वही बात कही। बेटे ने पिता से कहा, ‘ठीक है, मैं जाऊँगा।’ मगर वह नहीं गया। इन दोनों में से किसने अपने पिता की मरज़ी पूरी की?” (मत्ती 21:28-31) बेशक पहले बेटे ने।
यीशु विरोधियों से कहता है, “कर-वसूलनेवाले और वेश्याएँ तुमसे पहले परमेश्वर के राज में जा रहे हैं।” कर-वसूलनेवाले और वेश्याएँ पहले परमेश्वर की बात नहीं मानते थे। लेकिन बाद में उन्होंने पहले बेटे की तरह पश्चाताप किया और अब वे अपने पिता की मरज़ी पूरी कर रहे हैं। धर्म गुरु दूसरे बेटे की तरह हैं। वे कहते हैं कि वे परमेश्वर की बात मानते हैं, मगर असल में नहीं मानते। यीशु कहता है, “यूहन्ना [बपतिस्मा देनेवाला] नेकी की राह दिखाता हुआ तुम्हारे पास आया, फिर भी तुमने उस पर यकीन नहीं किया। लेकिन कर-वसूलनेवालों और वेश्याओं ने उस पर यकीन किया। और यह सब देखने के बाद भी तुम्हें पछतावा नहीं हुआ और तुमने उस पर यकीन नहीं किया।”—मत्ती 21:31, 32.
फिर यीशु एक और मिसाल बताता है जिससे पता चलता है कि धर्म गुरु कितने दुष्ट हैं। “किसी आदमी ने अंगूरों का बाग लगाया और उसके चारों तरफ एक बाड़ा बाँधा। उसने अंगूर रौंदने का हौद खोदा और एक मीनार खड़ी की। फिर उसे बागबानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया। कटाई का मौसम आने पर उसने एक दास को बागबानों के पास भेजा ताकि वह अंगूरों की फसल में से उसका हिस्सा ले आए। मगर बागबानों ने उस दास को पकड़ लिया, उसे पीटा और खाली हाथ भेज दिया। फिर बाग के मालिक ने उनके पास एक और दास को भेजा। बागबानों ने उसका सिर फोड़ दिया और उसे बेइज़्ज़त किया। फिर मालिक ने एक और दास को भेजा और उन्होंने उसे मार डाला। मालिक ने और भी बहुतों को भेजा, मगर कुछ को उन्होंने पीटा तो कुछ को मार डाला।”—मरकुस 12:1-5.
यीशु की बातें सुननेवालों को यशायाह के शब्द याद आए होंगे। “मैं सेनाओं का परमेश्वर यहोवा हूँ और इसराएल मेरे अंगूरों का बाग है। यहूदा के आदमी इसकी बेल हैं जिनसे मुझे खास लगाव था। मैंने उनसे न्याय की उम्मीद की थी, मगर चारों तरफ अन्याय का बोलबाला है।” (यशायाह 5:7) यीशु की मिसाल इन्हीं बातों से मिलती-जुलती है। बाग का मालिक यहोवा है और बाग इसराएल राष्ट्र है। उसके चारों तरफ का बाड़ा परमेश्वर का कानून है, क्योंकि इस कानून को मानने की वजह से इसराएली सुरक्षित थे। जैसे बाग के मालिक ने दासों को भेजा था, वैसे ही यहोवा ने भविष्यवक्ताओं को अपने लोगों के पास भेजा था ताकि वे उन्हें अच्छे फल पैदा करना सिखाएँ।
लेकिन बागबानों ने दासों के साथ बहुत बुरा सलूक किया और उन सबको मार डाला। यीशु बताता है, “अब मालिक के पास एक ही रह गया, उसका प्यारा बेटा। उसने आखिर में यह सोचकर उसे बागबानों के पास भेजा, ‘वे मेरे बेटे की ज़रूर इज़्ज़त करेंगे।’ मगर बागबान आपस में कहने लगे, ‘यह तो वारिस है। चलो इसे मार डालें, तब इसकी विरासत हमारी हो जाएगी।’ उन्होंने उसे पकड़ लिया और मार डाला और बाग के बाहर फेंक दिया।”—मरकुस 12:6-8.
यीशु धर्म गुरुओं से पूछता है, “अब बाग का मालिक क्या करेगा?” (मरकुस 12:9) वे कहते हैं, “वह आकर उन बागबानों को मार डालेगा और अंगूरों का बाग दूसरों को ठेके पर दे देगा।”—मत्ती 21:41.
धर्म गुरुओं ने अनजाने में अपने ही मुँह से कह दिया कि उन्हें कैसी सज़ा मिलनेवाली है। वे भी यहोवा के बाग यानी इसराएल राष्ट्र के बागबान हैं और यहोवा उम्मीद करता है कि वे अच्छे फल पैदा करें। एक फल यह है कि वे उसके बेटे यानी मसीह पर विश्वास करें। लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं, इसलिए यीशु उनसे कहता है, “क्या तुमने शास्त्र में यह बात कभी नहीं पढ़ी, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है’? क्या तुमने यह भी नहीं पढ़ा, ‘यह यहोवा की तरफ से हुआ है और हमारी नज़र में लाजवाब है’?” (मरकुस 12:10, 11) इसके बाद यीशु धर्म गुरुओं से मुद्दे की बात कहता है, “परमेश्वर का राज तुमसे ले लिया जाएगा और एक ऐसे राष्ट्र को दे दिया जाएगा, जो राज के योग्य फल पैदा करता है।”—मत्ती 21:43.
शास्त्री और प्रधान याजक समझ जाते हैं कि यीशु ने “यह मिसाल उन्हीं को ध्यान में रखकर दी है।” (लूका 20:19) अब वे ठान लेते हैं कि वे उसकी जान लेकर ही रहेंगे जो कि असली “वारिस” है। लेकिन अभी वे उस पर हाथ नहीं उठाते। उन्हें लोगों का डर है, क्योंकि वे यीशु को भविष्यवक्ता मानते हैं।
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शादी की दावत के लिए राजा का न्यौतायीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 107
शादी की दावत के लिए राजा का न्यौता
शादी की दावत की मिसाल
यीशु धरती पर अब कुछ ही दिन सेवा करेगा। वह शास्त्रियों और फरीसियों की दुष्टता का परदाफाश करने के लिए एक-के-बाद-एक कई मिसालें बताता है। इसलिए वे उसे मार डालना चाहते हैं। (लूका 20:19) मगर यीशु चुप नहीं रहता। वह एक और मिसाल बताता है:
“स्वर्ग का राज एक ऐसे राजा की तरह है, जिसने अपने बेटे की शादी पर दावत रखी। उसने अपने दासों को भेजकर उन लोगों को बुलाया जिन्हें दावत का न्यौता दिया गया था। मगर वे नहीं आना चाहते थे।” (मत्ती 22:2, 3) यीशु ने मिसाल के शुरू में “स्वर्ग का राज” कहा। तो इसका मतलब, वह “राजा” यहोवा परमेश्वर होगा। राजा का बेटा बेशक यीशु मसीह है और दावत में बुलाए गए लोग वे हैं जो उसके साथ स्वर्ग से राज करेंगे।
किन लोगों को सबसे पहले न्यौता दिया गया? जवाब के लिए याद कीजिए कि यीशु और उसके प्रेषित काफी समय से किन लोगों को राज के बारे में प्रचार कर रहे हैं? यहूदियों को। (मत्ती 10:6, 7; 15:24) ईसा पूर्व 1513 में इसराएल राष्ट्र ने वादा किया था कि वह कानून के करार को मानेगा। सबसे पहले यहूदियों को मौका दिया गया कि उनसे याजकों का राज बने। (निर्गमन 19:5-8) और शादी की दावत में आने का न्यौता उन्हें ईसवी सन् 29 से दिया गया, क्योंकि तभी से यीशु ने राज का प्रचार करना शुरू किया।
लेकिन ज़्यादातर इसराएलियों ने न्यौता ठुकरा दिया। ज़्यादातर धर्म गुरुओं और आम लोगों ने नहीं माना कि यीशु ही मसीहा और परमेश्वर का चुना हुआ राजा है।
यीशु बताता है कि यहूदियों को एक और मौका दिया जाएगा: “राजा ने फिर से कुछ दासों को यह कहकर भेजा, ‘जिन्हें न्यौता दिया गया है उनसे जाकर कहो, “देखो! मैं खाना तैयार कर चुका हूँ, मेरे बैल और मोटे-ताज़े जानवर हलाल किए जा चुके हैं और सबकुछ तैयार है। शादी की दावत में आ जाओ।”’ मगर उन्होंने ज़रा भी परवाह नहीं की और अपने-अपने रास्ते चल दिए, कोई अपने खेत की तरफ, तो कोई अपना कारोबार करने। और बाकियों ने उसके दासों को पकड़ लिया, उनके साथ बुरा सलूक किया और उन्हें मार डाला।” (मत्ती 22:4-6) जब मसीही मंडली शुरू हुई, तो उस वक्त तक यहूदियों के पास स्वर्ग के राज में जाने का मौका था। मगर ज़्यादातर ने मौका ठुकरा दिया और राजा के दासों के साथ बुरा व्यवहार किया।—प्रेषितों 4:13-18; 7:54, 58.
यीशु बताता है कि अब इस राष्ट्र का क्या होगा: “तब राजा का गुस्सा भड़क उठा और उसने अपनी सेनाएँ भेजकर उन हत्यारों को मार डाला और उनके शहर को जलाकर राख कर दिया।” (मत्ती 22:7) यीशु ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ। ईसवी सन् 70 में रोमी लोगों ने आकर यहूदियों के शहर यरूशलेम का नाश कर दिया।
क्या इसके बाद और किसी को न्यौता नहीं दिया गया? ऐसी बात नहीं है। यीशु बताता है, “इसके बाद, उसने अपने दासों से कहा, ‘शादी की दावत तो तैयार है, मगर जिन्हें बुलाया गया था वे इसके लायक नहीं थे। इसलिए शहर की बड़ी-बड़ी सड़कों पर जाओ और वहाँ तुम्हें जो भी मिले, उसे शादी की दावत के लिए बुला लाओ।’ तब वे दास सड़कों पर गए और उन्हें जितने भी लोग मिले, चाहे अच्छे या बुरे, वे सबको ले आए। और वह भवन जहाँ शादी की रस्में होनी थीं, दावत में आए लोगों से भर गया।”—मत्ती 22:8-10.
आगे चलकर पतरस ने गैर-यहूदियों को भी प्रचार किया जो जन्म से यहूदी नहीं थे और जिन्होंने यहूदी धर्म नहीं अपनाया था। ईसवी सन् 36 में रोमी सेना-अफसर कुरनेलियुस और उसके परिवार के लोगों ने पवित्र शक्ति पायी। तब उनके लिए स्वर्ग के राज में जाने का रास्ता खुल गया।—प्रेषितों 10:1, 34-48.
यीशु यह भी बताता है कि जो लोग शादी में आते हैं, उनमें से कुछ लोगों से राजा खुश नहीं होगा: “जब राजा मेहमानों का मुआयना करने अंदर आया, तो उसकी नज़र एक ऐसे आदमी पर पड़ी जिसने शादी की पोशाक नहीं पहनी थी। तब उसने उससे कहा, ‘अरे भई, तू शादी की पोशाक पहने बिना यहाँ अंदर कैसे आ गया?’ वह कोई जवाब न दे सका। तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘इसके हाथ-पैर बाँधकर इसे बाहर अँधेरे में फेंक दो, जहाँ यह रोएगा और दाँत पीसेगा।’ इसलिए कि न्यौता तो बहुत लोगों को मिला है, मगर चुने गए थोड़े हैं।”—मत्ती 22:11-14.
धर्म गुरु शायद इस मिसाल की कुछ बातों का मतलब नहीं समझ पाए होंगे। फिर भी उन्हें बहुत गुस्सा आता है और वे ठान लेते हैं कि वे यीशु को मार डालेंगे, क्योंकि वह उन्हें इतना शर्मिंदा कर रहा है।
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यीशु को फँसाने की कोशिश नाकामयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 108
यीशु को फँसाने की कोशिश नाकाम
मत्ती 22:15-40 मरकुस 12:13-34 लूका 20:20-40
सम्राट की चीज़ें सम्राट को दो
क्या मरने के बाद ज़िंदा होनेवाले शादी करेंगे?
सबसे बड़ी आज्ञाएँ
यीशु का विरोध करनेवाले धर्म गुरु बहुत गुस्से में हैं। उसने अभी-अभी कुछ मिसालें बताकर उनकी दुष्टता का परदाफाश किया है। अब फरीसी उसे फँसाने की कोई तरकीब सोच रहे हैं। वे उससे कोई ऐसी बात कहलवाना चाहते हैं कि वे उस पर दोष लगाकर उसे रोमी राज्यपाल के हवाले कर सकें। वे अपने चेलों को कुछ पैसे देते हैं ताकि वे यीशु को फँसा दें।—लूका 6:7.
उनके चेले यीशु से कहते हैं, “गुरु, हम जानते हैं कि तू सही-सही बोलता और सिखाता है और कोई भेदभाव नहीं करता, बल्कि तू सच्चाई के मुताबिक परमेश्वर की राह सिखाता है। हमें बता कि सम्राट को कर देना सही है या नहीं?” (लूका 20:21, 22) यीशु जानता है कि वे उसकी झूठी तारीफ कर रहे हैं और असल में वे उसे फँसाना चाहते हैं। अगर वह कहेगा कि कर नहीं देना चाहिए, तो वे उस पर इलज़ाम लगाएँगे कि वह रोमी सरकार से गद्दारी कर रहा है। लेकिन अगर वह कहेगा कि हाँ, कर देना चाहिए, तो लोग उस पर टूट पड़ेंगे, क्योंकि वे रोमी सरकार की गुलामी करते-करते तंग आ गए हैं। तो वह अब क्या जवाब देता है?
वह उनसे कहता है, “अरे कपटियो, तुम मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? मुझे कर का सिक्का दिखाओ।” वे उसके पास एक दीनार लाते हैं। यीशु उनसे पूछता है, “इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” वे कहते हैं, “सम्राट की।” वह उनसे कहता है, “इसलिए जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को।”—मत्ती 22:18-21.
क्या बात कही यीशु ने! विरोधी दंग रह जाते हैं। उनसे कुछ बोलते नहीं बनता और वे चले जाते हैं। लेकिन अभी दिन खत्म नहीं हुआ है। यीशु के विरोधी उसे फँसाने की फिर से कोशिश करते हैं। जब फरीसी नाकाम हो जाते हैं, तो सदूकी उसके पास आते हैं।
सदूकियों का कहना है कि जिनकी मौत हो गयी है, वे फिर कभी ज़िंदा नहीं होंगे। वे यीशु से कुछ पूछते हैं, “गुरु, मूसा ने कहा था, ‘अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए, तो उसका भाई उसकी पत्नी से शादी करे और अपने मरे हुए भाई के लिए औलाद पैदा करे।’ हमारे यहाँ सात भाई थे। पहले ने शादी की और बेऔलाद मर गया। और अपने भाई के लिए अपनी पत्नी छोड़ गया। ऐसा ही दूसरे और तीसरे के साथ हुआ, यहाँ तक कि सातों के साथ यही हुआ। आखिर में वह औरत भी मर गयी। तो फिर जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे, तब वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि सातों उसे अपनी पत्नी बना चुके थे।”—मत्ती 22:24-28.
यीशु सदूकियों को मूसा की लिखी किताबों से जवाब देता है, क्योंकि वे उन किताबों पर यकीन करते हैं। “तुम बड़ी गलतफहमी में हो, क्योंकि तुम न तो शास्त्र को जानते हो, न ही परमेश्वर की शक्ति को। क्योंकि जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे तो उनमें से न तो कोई आदमी शादी करेगा न कोई औरत, मगर वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे। मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में, क्या तुमने मूसा की किताब में नहीं पढ़ा कि परमेश्वर ने झाड़ी के पास क्या कहा था, ‘मैं अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर हूँ’? वह मरे हुओं का नहीं बल्कि जीवितों का परमेश्वर है। तुम बड़ी गलतफहमी में हो।” (मरकुस 12:24-27; निर्गमन 3:1-6) यीशु का जवाब सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं।
यीशु ने फरीसियों और सदूकियों, दोनों का मुँह बंद कर दिया। इसलिए अब ये दोनों गुट के लोग झुंड बनाकर फिर से यीशु के पास आते हैं। वे किसी तरह उसे फँसाना चाहते हैं। एक शास्त्री उससे पूछता है, “गुरु, कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?”—मत्ती 22:36.
यीशु कहता है, “सबसे पहली यह है: ‘हे इसराएल सुन, हमारा परमेश्वर यहोवा एक ही यहोवा है। और तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपने पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना।’ और दूसरी यह है: ‘तू अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तू खुद से करता है।’ और कोई आज्ञा इनसे बढ़कर नहीं।”—मरकुस 12:29-31.
शास्त्री उससे कहता है, “गुरु, तूने बिलकुल सही कहा। तेरी बात सच्चाई के मुताबिक है, ‘परमेश्वर एक ही है, उसके सिवा और कोई परमेश्वर नहीं।’ और इंसान को अपने पूरे दिल से, पूरी समझ के साथ और पूरी ताकत से उससे प्यार करना चाहिए और अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना चाहिए जैसे वह खुद से करता है। यह सारी होम-बलियों और बलिदानों से कहीं बढ़कर है।” यीशु उससे कहता है, “तू परमेश्वर के राज से ज़्यादा दूर नहीं।”—मरकुस 12:32-34.
तीन दिन (नीसान 9, 10 और 11) से यीशु मंदिर में सिखा रहा है। अभी-अभी जिस शास्त्री ने यीशु से बात की थी, उसके जैसे कई लोगों को यीशु की बातें सुनना अच्छा लगता है। मगर धर्म गुरुओं को बिलकुल अच्छा नहीं लगता। और वे उससे “और सवाल पूछने की हिम्मत नहीं” करते।
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यीशु विरोधियों को धिक्कारता हैयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 109
यीशु विरोधियों को धिक्कारता है
मत्ती 22:41–23:24 मरकुस 12:35-40 लूका 20:41-47
मसीह किसका वंशज है?
यीशु विरोधियों के कपट का परदाफाश करता है
धर्म गुरु यीशु को फँसा नहीं पाए और उसे रोमी लोगों के हवाले नहीं कर पाए। (लूका 20:20) अभी-भी नीसान 11 है और यीशु मंदिर में है। अब वह उन विरोधियों से एक सवाल करता है, “तुम मसीह के बारे में क्या सोचते हो? वह किसका वंशज है?” (मत्ती 22:42) सब जानते हैं कि मसीह दाविद के वंश से आएगा। तो विरोधी भी यही जवाब देते हैं।—मत्ती 9:27; 12:23; यूहन्ना 7:42.
यीशु पूछता है, “तो फिर, क्यों दाविद पवित्र शक्ति से उभारे जाने पर उसे प्रभु पुकारता है और कहता है, ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा, “तू तब तक मेरे दाएँ हाथ बैठ, जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पैरों तले न कर दूँ”’? इसलिए अगर दाविद उसे प्रभु कहकर पुकारता है, तो वह उसका वंशज कैसे हुआ?”—मत्ती 22:43-45.
फरीसी जवाब नहीं दे पाते, क्योंकि वे सोचते हैं कि मसीह दाविद के वंश से आनेवाला एक इंसान होगा और वह उन्हें रोम की गुलामी से छुटकारा दिलाएगा। मगर यीशु दाविद के शब्द दोहराकर साबित करता है कि मसीह धरती पर हुकूमत करनेवाला राजा नहीं होगा। (भजन 110:1, 2) वह तो दाविद का भी प्रभु है। वह कुछ समय तक परमेश्वर की दायीं तरफ बैठेगा और उसके बाद राज करेगा। यीशु का जवाब सुनने के बाद विरोधी कुछ नहीं कह पाते।
चेले और दूसरे कई लोग यीशु की बातें सुन रहे हैं। यीशु उनसे कहता है कि वे शास्त्रियों और फरीसियों से बचकर रहें। वे परमेश्वर का कानून सिखाने के लिए मूसा की गद्दी पर बैठे हुए हैं। यीशु लोगों से कहता है, “शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं। इसलिए वे जो कुछ तुम्हें बताते हैं वह सब करो और मानो, मगर उनके जैसे काम मत करो, क्योंकि जो वे कहते हैं वह खुद नहीं करते।”—मत्ती 23:2, 3.
फिर यीशु बताता है कि फरीसी दिखावा करने के लिए क्या-क्या करते हैं। “वे उन डिब्बियों को और भी चौड़ा बनाते हैं, जिनमें शास्त्र की आयतें लिखी होती हैं।” कुछ यहूदी अपने माथे पर या बाज़ू पर छोटी-छोटी डिब्बियाँ पहनते हैं। उन डिब्बियों पर शास्त्र की कुछ बातें लिखी होती हैं। फरीसी तो और भी चौड़ी डिब्बियाँ पहनते हैं ताकि लोगों को दिखाएँ कि वे कानून को मानने में कितने आगे हैं। इसराएलियों को कानून दिया गया था कि उनके कपड़ों में झालर होने चाहिए। मगर फरीसी अपने कपड़ों में कुछ ज़्यादा ही लंबे झालर लगवाते हैं। (गिनती 15:38-40) ये सब वे “लोगों को दिखाने के लिए करते हैं।”—मत्ती 23:5.
यीशु के चेलों में भी यह इच्छा पैदा हो सकती है कि वे सबमें खास दिखायी दें। इसलिए वह उन्हें सलाह देता है, “तुम गुरु न कहलाना क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है जबकि तुम सब भाई हो। और धरती पर किसी को अपना ‘पिता’ न कहना क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है जो स्वर्ग में है। न ही तुम ‘नेता’ कहलाना क्योंकि तुम्हारा एक ही नेता या अगुवा है, मसीह।” इसके बाद यीशु बताता है कि उसके चेलों को खुद के बारे में कैसा महसूस करना चाहिए और उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए। “तुम्हारे बीच जो सबसे बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने। जो कोई खुद को बड़ा बनाता है, उसे छोटा किया जाएगा और जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।”—मत्ती 23:8-12.
अब यीशु शास्त्रियों और फरीसियों को धिक्कारता है, “अरे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, धिक्कार है तुम पर! क्योंकि तुम लोगों के सामने स्वर्ग के राज का दरवाज़ा बंद कर देते हो। न तो खुद अंदर जाते हो और न ही उन्हें जाने देते हो जो अंदर जाना चाहते हैं।”—मत्ती 23:13.
फरीसी उन बातों को तुच्छ समझते हैं जो यहोवा की नज़र में अहमियत रखती हैं। जैसे, वे कहते हैं, “अगर कोई मंदिर की कसम खाए तो कोई बात नहीं। लेकिन अगर वह मंदिर के सोने की कसम खाए, तो अपनी कसम पूरी करना उसका फर्ज़ है।” वे सच में अंधे हैं। वे मंदिर के सोने को ज़्यादा अहमियत देते हैं, न कि इस बात को कि मंदिर यहोवा की उपासना की जगह है। और वे “कानून की बड़ी-बड़ी बातों को यानी न्याय, दया और वफादारी को कोई अहमियत नहीं देते।”—मत्ती 23:16, 23; लूका 11:42.
यीशु कहता है कि फरीसी ‘अंधे अगुवे’ हैं। “तुम मच्छर को तो छानकर निकाल देते हो, मगर ऊँट को निगल जाते हो!” (मत्ती 23:24) अगर उनकी दाख-मदिरा में मच्छर हो, तो वे उसे छानकर निकाल देते हैं, क्योंकि कानून के मुताबिक मच्छर अशुद्ध है। मगर वे कानून की बड़ी-बड़ी बातों को दरकिनार कर देते हैं। यह ऊँट को निगलने जैसा है जबकि यह भी कानून के मुताबिक एक अशुद्ध जानवर है और मच्छर से कई गुना ज़्यादा बड़ा है।—लैव्यव्यवस्था 11:4, 21-24.
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मंदिर में यीशु का आखिरी दिनयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 110
मंदिर में यीशु का आखिरी दिन
मत्ती 23:25–24:2 मरकुस 12:41–13:2 लूका 21:1-6
यीशु धर्म गुरुओं को फिर से फटकारता है
मंदिर का नाश कर दिया जाएगा
एक गरीब विधवा दो पैसे दान करती है
यीशु आखिरी बार मंदिर आया हुआ है। वह फिर से शास्त्रियों और फरीसियों का परदाफाश करता है कि वे ढोंगी हैं। वह उन्हें मुँह पर ही कपटी कहता है: “तुम उन प्यालों और थालियों की तरह हो जिन्हें सिर्फ बाहर से साफ किया जाता है, मगर अंदर से वे गंदे हैं। तुम्हारे अंदर लालच भरा है और तुम बेकाबू होकर अपनी इच्छाएँ पूरी करते हो। अरे अंधे फरीसी, पहले प्याले और थाली को अंदर से साफ कर, तब वह बाहर से भी साफ हो जाएगा।” (मत्ती 23:25, 26) फरीसी शुद्धता के रस्मों-रिवाज़ों को मानने और साफ-सफाई का ध्यान रखने में सबसे आगे रहते हैं। लेकिन वे अपने मनों को शुद्ध नहीं करते।
उनके कपट का एक सबूत यह है कि वे भविष्यवक्ताओं के लिए कब्रें बनवाते हैं और उन्हें सजाते हैं। यीशु कहता है कि वे “भविष्यवक्ताओं का खून करनेवालों की औलाद” हैं। (मत्ती 23:31) यही वजह है कि वे यीशु को भी मार डालना चाहते हैं।—यूहन्ना 5:18; 7:1, 25.
यीशु बताता है कि अगर इन धर्म गुरुओं ने पश्चाताप नहीं किया, तो उनका क्या होगा: “अरे साँपो और ज़हरीले साँप के सँपोलो, तुम गेहन्ना की सज़ा से बचकर कैसे भाग सकोगे?” (मत्ती 23:33) गेहन्ना का मतलब हिन्नोम की घाटी है जो यरूशलेम के पास थी। वहाँ कचरा जलाया जाता था। शास्त्रियों और फरीसियों को गेहन्ना की सज़ा मिलेगी यानी उनका हमेशा के लिए नाश हो जाएगा।
आगे चलकर यीशु के चेले ‘भविष्यवक्ता और लोगों को सिखानेवाले उपदेशक’ बनेंगे। धर्म गुरु उनके साथ कैसा सलूक करेंगे? यीशु कहता है, ‘उनमें से कुछ को [यानी मेरे कुछ चेलों को] तुम मार डालोगे और काठ पर लटका दोगे और कुछ को अपने सभा-घरों में कोड़े लगाओगे और शहर-शहर जाकर उन्हें सताओगे। जितने नेक जनों का खून धरती पर बहाया गया है यानी नेक हाबिल से लेकर बिरिक्याह के बेटे जकरयाह तक, उन सबका खून तुम्हारे सिर आ पड़े। मैं तुमसे सच कहता हूँ कि ये सारी बातें इस पीढ़ी के सिर आ पड़ेंगी।’ (मत्ती 23:34-36) जैसा यीशु ने कहा था, वैसा ही हुआ। ईसवी सन् 70 में रोम की सेना ने यरूशलेम का नाश कर दिया और हज़ारों यहूदियों को मार डाला।
जब यीशु सोचता है कि आनेवाले दिनों में कितनी भयानक घटनाएँ होंगी, तो उसे बहुत दुख होता है और वह कहता है, “यरूशलेम, यरूशलेम, तू जो भविष्यवक्ताओं का खून करनेवाली नगरी है और जो तेरे पास भेजे जाते हैं उन्हें पत्थरों से मार डालती है—मैंने कितनी बार चाहा कि जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों तले इकट्ठा करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बच्चों को इकट्ठा करूँ! मगर तुम लोगों ने यह नहीं चाहा। देखो! परमेश्वर ने तुम्हारे घर को त्याग दिया है।” (मत्ती 23:37, 38) जो लोग उसकी बात सुन रहे हैं, उन्होंने सोचा होगा, यीशु किस “घर” की बात कर रहा है। कहीं वह यरूशलेम के शानदार मंदिर की बात तो नहीं कर रहा है? परमेश्वर तो मंदिर की रक्षा कर रहा है। उसका क्या हो सकता है?
यीशु कहता है, “अब से तुम मुझे तब तक हरगिज़ न देखोगे जब तक कि यह न कहो, ‘धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है!’” (मत्ती 23:39) यीशु भजन 118:26 में लिखे शब्द दोहरा रहा है जो एक भविष्यवाणी है, “धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है। हम यहोवा के भवन से तुम लोगों को आशीर्वाद देते हैं।” जब इस मंदिर का नाश हो जाएगा, तो इसके बाद वहाँ कोई भी परमेश्वर की उपासना करने नहीं आएगा।
अब यीशु मंदिर में उस जगह जाता है जहाँ दान-पात्र रखे हुए हैं। लोग इन दान-पात्रों में दान डालते हैं। यीशु देखता है कि वहाँ कई अमीर लोग आए हैं और दान-पात्रों में “ढेरों सिक्के” डाल रहे हैं। फिर उसकी नज़र एक गरीब विधवा पर पड़ती है। वह ‘दो पैसे डालती है जिनकी कीमत न के बराबर है।’ (मरकुस 12:41, 42) यीशु जानता है कि उस विधवा के दान से परमेश्वर बहुत खुश होगा।
यीशु चेलों को बुलाकर उनसे कहता है, “यहाँ जितने लोग दान-पात्रों में पैसे डाल रहे हैं, उनमें से इस गरीब विधवा ने सबसे ज़्यादा डाला है।” यीशु ने ऐसा क्यों कहा? वह बताता है, “वे सब अपनी बहुतायत में से डाल रहे हैं, मगर इसने अपनी तंगी में से डाला है, अपने गुज़ारे के लिए जो कुछ उसके पास था उसने सब दे दिया।” (मरकुस 12:43, 44) इस विधवा की सोच धर्म गुरुओं से कितनी अलग है।
यह नीसान 11 का ही दिन है और यीशु मंदिर से चला जाता है। इसके बाद वह फिर कभी मंदिर नहीं आता। जब यीशु और उसके चेले मंदिर से जा रहे होते हैं, तो एक चेला उससे कहता है, “गुरु, देख! ये कितने बढ़िया पत्थर हैं, कितनी शानदार इमारतें हैं!” (मरकुस 13:1) मंदिर की दीवारों के पत्थर सच में देखने लायक हैं। वे बहुत बड़े-बड़े, मज़बूत और टिकाऊ हैं। इनकी वजह से मंदिर बहुत आलीशान दिखता है। मगर यीशु कहता है, “ये जो आलीशान इमारतें तू देख रहा है, इनका एक भी पत्थर दूसरे पत्थर के ऊपर हरगिज़ न बचेगा जो ढाया न जाए।”—मरकुस 13:2.
इसके बाद यीशु और उसके प्रेषित किदरोन घाटी पार करके जैतून पहाड़ चढ़ते हैं। कुछ समय बाद उसके चार प्रेषित उसके साथ उस पहाड़ पर होते हैं: पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना। इस ऊँचाई से वे यरूशलेम का शानदार मंदिर देख सकते हैं।
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प्रेषित निशानी पूछते हैंयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 111
प्रेषित निशानी पूछते हैं
मत्ती 24:3-51 मरकुस 13:3-37 लूका 21:7-38
चार चेले निशानी पूछते हैं
पहली सदी और अंत के समय में भविष्यवाणियाँ पूरी होती हैं
हमें चौकन्ने रहना है
यह मंगलवार की दोपहर है और नीसान 11 अब खत्म होनेवाला है। धरती पर यीशु का प्रचार काम भी खत्म होनेवाला है। बीते कुछ दिन वह काफी व्यस्त रहा। दिन को वह मंदिर में सिखाता था और रात को बैतनियाह जाकर वहाँ ठहरता था। बहुत-से लोग मंदिर में उसकी बातें सुनने जल्दी उसके पास आते थे। (लूका 21:37, 38) अब जैतून पहाड़ पर सिर्फ उसके चार प्रेषित हैं: पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना।
ये चारों यीशु से कुछ पूछने के लिए अलग से उसके पास आए हैं। उनके मन में बहुत-से सवाल हैं। अभी कुछ वक्त पहले यीशु ने कहा था कि मंदिर के एक पत्थर के ऊपर दूसरा पत्थर भी न बचेगा। यीशु ने एक बार उन्हें सलाह दी थी, “तैयार रहो क्योंकि जिस घड़ी तुमने सोचा भी न होगा, उसी घड़ी इंसान का बेटा आ रहा है।” (लूका 12:40) उसने ‘इंसान के बेटे के प्रकट होने के दिन’ के बारे में भी बताया था। (लूका 17:30) तो प्रेषित जानना चाहते हैं कि यीशु ने मंदिर के बारे में जो बताया था वह सब क्या उस वक्त होगा जब इंसान का बेटा प्रकट होगा। वे यीशु से पूछते हैं, “ये सब बातें कब होंगी और तेरी मौजूदगी की और दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त की क्या निशानी होगी?”—मत्ती 24:3.
जब उन्होंने कहा कि ये सब बातें कब होंगी, तो वे शायद मंदिर के नाश के बारे में पूछ रहे थे। और वे यह भी पूछते हैं कि यीशु राजा के नाते कब आएगा, क्योंकि उन्हें याद है कि यीशु ने एक मिसाल में बताया था कि एक शाही खानदान का आदमी राज-अधिकार पाने के लिए दूर देश जाता है। (लूका 19:11, 12) चेले यह भी जानना चाहते हैं कि दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त में क्या होगा।
यीशु उन्हें बताता है कि किन घटनाओं को देखने से पता चलेगा कि यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश होनेवाला है। और इन्हीं घटनाओं की निशानी देखकर बाद की सदियों में मसीही जान पाएँगे कि वे उसकी मौजूदगी के समय में जी रहे हैं और दुनिया की व्यवस्था का अंत करीब है।
कुछ ही साल के अंदर प्रेषितों ने ऐसी बहुत-सी घटनाएँ देखीं जिनके बारे में यीशु ने भविष्यवाणी की थी। जी हाँ, प्रेषितों ने जीते-जी यीशु की बतायी कई बातों को पूरा होते देखा। इसलिए अगले 37 सालों के दौरान जिन मसीहियों ने इन बातों पर ध्यान दिया वे चौकन्ने रहे। जब ईसवी सन् 70 में यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश किया गया, तो वे उससे बचने के लिए तैयार रहे। लेकिन कुछ घटनाएँ ईसवी सन् 70 में या उससे पहले नहीं हुईं। ये तब होतीं जब यीशु राज-अधिकार पाकर मौजूद होता।
यीशु बताता है कि उसकी मौजूदगी के दौरान “युद्धों का शोरगुल और युद्धों की खबरें” सुनायी देंगी। “एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर और एक राज्य दूसरे राज्य पर हमला करेगा।” (मत्ती 24:6, 7) “बड़े-बड़े भूकंप आएँगे और एक-के-बाद-एक कई जगह अकाल पड़ेंगे और महामारियाँ फैलेंगी।” (लूका 21:11) यीशु चेलों को एक बात से सावधान भी करता है। “लोग तुम्हें पकड़वाएँगे, तुम पर ज़ुल्म ढाएँगे।” (लूका 21:12) झूठे भविष्यवक्ता निकल आएँगे और बहुत-से लोगों को गुमराह करेंगे। बुराई बढ़ जाएगी और बहुत-से लोगों का प्यार ठंडा पड़ जाएगा। और ‘राज की खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए और इसके बाद अंत आ जाएगा।’—मत्ती 24:14.
यीशु की भविष्यवाणी यरूशलेम के नाश से पहले और उस नाश के दौरान कुछ हद तक पूरी हुई थी। मगर उसकी भविष्यवाणी सदियों बाद बड़े पैमाने पर पूरी होती। क्या आप देख सकते हैं कि यीशु की भविष्यवाणी आज कैसे सारी दुनिया में पूरी हो रही है?
यीशु ने कहा था कि उसकी मौजूदगी के दौरान “उजाड़नेवाली घिनौनी चीज़” दिखायी देगी। (मत्ती 24:15) ईसवी सन् 66 में यह घिनौनी चीज़ रोम की फौजें थीं। इन फौजों ने अपने झंडे लेकर पूरे यरूशलेम की दीवारों को घेर लिया था और उनके झंडों पर मूर्तिपूजा के निशान लगे थे। (लूका 21:20) ये “घिनौनी चीज़” उस जगह खड़ी थी जहाँ उसे नहीं होना चाहिए था यानी यरूशलेम के पास जिसे यहूदी “पवित्र जगह” मानते थे।
यीशु एक और बात बताता है, “तब ऐसा महा-संकट होगा जैसा दुनिया की शुरूआत से न अब तक हुआ और न फिर कभी होगा।” ईसवी सन् 70 में रोम की सेना ने “पवित्र शहर” यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश कर दिया। उस वक्त हज़ारों यहूदी मारे गए थे। यह यहूदियों के लिए महा-संकट था। (मत्ती 4:5; 24:21) यरूशलेम शहर और यहूदियों के साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। यहूदी रीति-व्यवस्था का अंत हो गया। इसके बाद यहूदी उस मंदिर में उपासना नहीं कर पाए जहाँ वे सदियों से किया करते थे। इन घटनाओं से पता चलता है कि जब यीशु की भविष्यवाणी सारी दुनिया में पूरी होगी, तो और भी दिल-दहलानेवाली घटनाएँ होंगी।
अंत के दिनों में हिम्मत से काम लेना ज़रूरी है
यीशु प्रेषितों को अपनी मौजूदगी और दुनिया के अंत के बारे में और भी कुछ बताता है। वह कहता है कि “झूठे मसीह और झूठे भविष्यवक्ता” आएँगे, मगर वे उनके पीछे न जाएँ। (मत्ती 24:24) झूठे मसीह और भविष्यवक्ता “चुने हुओं को भी गुमराह” करने की कोशिश करेंगे मगर वे गुमराह नहीं होंगे, क्योंकि झूठे मसीही तो दिखायी देंगे, लेकिन जब यीशु राज करना शुरू करेगा, तो वह दिखायी नहीं देगा।
यीशु बताता है कि जब पूरी दुनिया पर महा-संकट आएगा, तो “सूरज अँधियारा हो जाएगा, चाँद अपनी रौशनी नहीं देगा, आकाश से तारे गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियाँ हिलायी जाएँगी।” (मत्ती 24:29) प्रेषित समझ नहीं पाते कि यह सब कैसे होगा। मगर वे इतना ज़रूर समझ जाते हैं कि कुछ तो भयानक होगा।
यह सब देखकर लोगों का क्या हाल होगा? “धरती पर और क्या-क्या होगा, इस चिंता और डर के मारे लोगों के जी में जी न रहेगा, इसलिए कि आकाश की शक्तियाँ हिलायी जाएँगी।” (लूका 21:26) उस वक्त ऐसी खतरनाक घटनाएँ होंगी जैसी दुनिया की शुरूआत से तब तक नहीं हुई होंगी।
जब इंसान का बेटा “शक्ति और बड़ी महिमा” के साथ आएगा, तो सब लोगों का ऐसा बुरा हाल नहीं होगा। (मत 24:30) यीशु ने अभी-अभी बताया था कि परमेश्वर “चुने हुओं” को बचाने के लिए कदम उठाएगा। (मत्ती 24:22) जब परमेश्वर के वफादार लोग उन घटनाओं को देखेंगे, तो उन्हें क्या करना चाहिए? यीशु बताता है, “जब ये बातें होने लगें, तो तुम सिर उठाकर सीधे खड़े हो जाना, क्योंकि तुम्हारे छुटकारे का वक्त पास आ रहा होगा।”—लूका 21:28.
लेकिन अंत के समय में परमेश्वर के लोगों को कैसे पता चलेगा कि अंत बहुत नज़दीक है? यीशु अंजीर के पेड़ से सीखने के लिए कहता है। “जैसे ही उसकी नयी डाली नरम हो जाती है और उस पर पत्तियाँ आने लगती हैं, तुम जान लेते हो कि गरमियों का मौसम पास है। उसी तरह, जब तुम ये सब बातें होती देखो, तो जान लेना कि इंसान का बेटा पास है बल्कि दरवाज़े पर ही है। मैं तुमसे सच कहता हूँ, जब तक ये सारी बातें पूरी न हो जाएँ, तब तक यह पीढ़ी हरगिज़ नहीं मिटेगी।”—मत्ती 24:32-34.
जब परमेश्वर के सेवक देखेंगे कि यीशु ने निशानी के तौर पर जो घटनाएँ बतायी थीं, वे हो रही हैं, तो वे जान जाएँगे कि अंत नज़दीक है। यीशु बताता है कि उस समय परमेश्वर के सेवकों को क्या सलाह माननी चाहिए:
“उस दिन और उस घड़ी के बारे में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, न बेटा बल्कि सिर्फ पिता जानता है। ठीक जैसे नूह के दिन थे, इंसान के बेटे की मौजूदगी भी वैसी ही होगी। इसलिए कि जैसे जलप्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक नूह जहाज़ के अंदर न गया, उस दिन तक लोग खा-पी रहे थे और शादी-ब्याह कर रहे थे और जब तक जलप्रलय आकर उन सबको बहा न ले गया, तब तक उन्होंने कोई ध्यान न दिया। इंसान के बेटे की मौजूदगी भी ऐसी ही होगी।” (मत्ती 24:36-39) जैसे नूह के दिनों में जलप्रलय पूरी दुनिया में आया था, उसी तरह इंसान के बेटे की मौजूदगी का असर भी पूरी दुनिया में दिखायी देगा।
जैतून पहाड़ पर जो प्रेषित यीशु की बातें सुन रहे हैं, उन्हें समझ जाना चाहिए कि उन्हें चौकन्ने रहना है। यीशु कहता है, “खुद पर ध्यान दो कि हद-से-ज़्यादा खाने और पीने से और ज़िंदगी की चिंताओं के भारी बोझ से कहीं तुम्हारे दिल दब न जाएँ और वह दिन तुम पर पलक झपकते ही अचानक फंदे की तरह न आ जाए। इसलिए कि वह दिन धरती पर रहनेवाले सभी लोगों पर आ जाएगा। इसलिए आँखों में नींद न आने दो और हर घड़ी प्रार्थना और मिन्नत करते रहो ताकि जिन बातों का होना तय है, उन सबसे तुम बच सको और इंसान के बेटे के सामने खड़े रह सको।”—लूका 21:34-36.
यीशु एक बार फिर कह रहा है कि उसने जिन घटनाओं की भविष्यवाणी की है, वह सिर्फ आनेवाले 30-40 सालों के बारे में नहीं हैं जो यरूशलेम और यहूदी राष्ट्र के साथ घटेंगीं। ये घटनाएँ “धरती पर रहनेवाले सभी लोगों” के साथ घटेंगीं।
यीशु चेलों को सलाह देता है कि वे चौकन्ने रहें, जागते रहें और तैयार रहें। इस बारे में वह एक मिसाल बताता है, “अगर घर के मालिक को पता होता कि चोर किस पहर आनेवाला है, तो वह जागता रहता और अपने घर में सेंध नहीं लगने देता। इस वजह से तुम भी तैयार रहो क्योंकि जिस घड़ी तुमने सोचा भी न होगा, उस घड़ी इंसान का बेटा आ रहा है।”—मत्ती 24:43, 44.
फिर यीशु बताता है कि परमेश्वर के सेवक क्यों हिम्मत रख सकते हैं। जब उसकी भविष्यवाणी पूरी होगी, तो उस दौरान एक “दास” पूरे जोश से काम कर रहा होगा और चौकन्ना रहेगा। वह कहता है, “तो असल में वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे उसके मालिक ने अपने घर के कर्मचारियों के ऊपर ठहराया है कि उन्हें सही वक्त पर खाना दे? सुखी होगा वह दास अगर उसका मालिक आने पर उसे ऐसा ही करता पाए! मैं तुमसे सच कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर अधिकार देगा।” लेकिन अगर “दास” में गलत रवैया पैदा होगा और वह दूसरों के साथ बुरा सलूक करेगा, तो मालिक उसे “कड़ी-से-कड़ी सज़ा देगा।”—मत्ती 24:45-51. लूका 12:45, 46 से तुलना करें।
यीशु यह नहीं कह रहा है कि उसके कुछ चेले ठीक से काम नहीं करेंगे। वह बस सलाह दे रहा है कि वे चौकन्ने रहें और पूरे जोश से यहोवा का काम करते रहें। और यही बात समझाने के लिए वह एक और मिसाल बताता है।
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दस कुँवारियाँ—जागते रहने का सबकयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 112
दस कुँवारियाँ—जागते रहने का सबक
यीशु दस कुँवारियों की मिसाल बताता है
प्रेषितों ने यीशु से पूछा है कि जब वह राज-अधिकार पाकर मौजूद होगा और दुनिया की व्यवस्था का आखिरी वक्त चल रहा होगा, तो इसकी क्या निशानी होगी। यीशु इस सवाल का जवाब दे रहा है। अंत के दिनों को ध्यान में रखकर वह चेलों को एक और मिसाल बताता है। इस मिसाल से वे जान पाते हैं कि उन्हें कैसे बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए। इस मिसाल के ज़रिए जो घटनाएँ बतायी गयी हैं, उन्हें यीशु की मौजूदगी के दौरान लोग देख पाएँगे।
वह मिसाल बताना शुरू करता है, “स्वर्ग के राज की तुलना उन दस कुँवारियों से की जा सकती है, जो अपना-अपना दीपक लेकर दूल्हे से मिलने निकलीं। उनमें से पाँच मूर्ख थीं और पाँच समझदार।”—मत्ती 25:1, 2.
यीशु यह नहीं कह रहा है कि जिन चेलों को स्वर्ग में राज करने का अधिकार मिलेगा, उनमें से आधे जन मूर्ख होंगे और आधे समझदार। वह बस कह रहा है कि यह हर चेले पर निर्भर करता है कि क्या वह सतर्क रहेगा या अपना ध्यान भटकने देगा। यीशु को यकीन है कि उसका हर चेला आखिर तक वफादार रह सकता है और आशीषें पा सकता है।
दसों कुँवारियाँ दूल्हे का स्वागत करने और शादी के जश्न में शामिल होने निकल पड़ती हैं। वे सब चाहती हैं कि जब दूल्हा अपनी दुल्हन को घर ला रहा होगा, तो वे उसके सम्मान में दीपक जलाकर रास्ते को रौशन करें। मगर असल में होता क्या है?
“मूर्ख कुँवारियों ने अपने साथ दीपक तो लिए मगर तेल नहीं लिया, जबकि समझदार कुँवारियों ने दीपकों के साथ-साथ अपनी कुप्पियों में तेल भी लिया। जब दूल्हा आने में देर कर रहा था, तो सारी कुँवारियाँ ऊँघने लगीं और सो गयीं।” (मत्ती 25:3-5) दूल्हे के आने में देर हो जाती है, इसलिए सारी कुँवारियाँ सो जाती हैं। यह बात सुनकर प्रेषितों को यीशु की एक और मिसाल याद आयी होगी। शाही खानदान का एक आदमी राज-अधिकार पाने के लिए दूर देश जाता है और उसे लौटने में काफी समय लगता है।—लूका 19:11-15.
यीशु बताता है कि जब काफी देर बाद दूल्हा आता है, तो क्या होता है। “ठीक आधी रात को पुकार लगायी गयी, ‘देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे मिलने बाहर चलो।’” (मत्ती 25:6) क्या दसों कुँवारियाँ दूल्हे से मिलने के लिए तैयार हैं?
“तब सारी कुँवारियाँ उठीं और अपना-अपना दीपक तैयार करने लगीं। जो मूर्ख थीं उन्होंने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से थोड़ा हमें दो, क्योंकि हमारे दीपक बुझनेवाले हैं।’ लेकिन समझदार कुँवारियों ने कहा, ‘शायद यह हमारे और तुम्हारे लिए पूरा न पड़े। इसलिए तुम तेल बेचनेवालों के पास जाकर अपने लिए खरीद लाओ।’”—मत्ती 25:7-9.
पाँच मूर्ख कुँवारियाँ तैयार नहीं थीं। उनके दीपकों में तेल कम पड़ गया। आगे क्या हुआ? “जब वे खरीदने जा रही थीं, तो दूल्हा आ गया। जो कुँवारियाँ तैयार थीं वे शादी की दावत के लिए उसके साथ अंदर चली गयीं और दरवाज़ा बंद कर दिया गया। बाद में बाकी कुँवारियाँ भी आयीं और कहने लगीं, ‘साहब, साहब, हमारे लिए दरवाज़ा खोलो!’ मगर दूल्हे ने कहा, ‘मैं सच कहता हूँ, मैं तुम्हें नहीं जानता।’” (मत्ती 25:10-12) जो लोग तैयार नहीं रहते उनका कितना बुरा हाल होता है!
प्रेषित समझ सकते हैं कि दूल्हा खुद यीशु है। पहले भी एक बार उसने अपनी तुलना दूल्हे से की थी। (लूका 5:34, 35) समझदार कुँवारियाँ कौन हैं? जब यीशु ने कहा था कि “छोटे झुंड” को राज करने का अधिकार दिया जाएगा, तो उसने यह भी कहा था, “तुम कमर कसकर तैयार रहो और तुम्हारे दीपक जलते रहें।” (लूका 12:32, 35) तो प्रेषित समझ सकते हैं कि यीशु उनके बारे में और उनके जैसे और चेलों के बारे में बात कर रहा है जो छोटे झुंड का हिस्सा हैं।
यीशु बताता है कि दस कुवाँरियों से क्या सबक मिलता है: “जागते रहो क्योंकि तुम न तो उस दिन को जानते हो, न ही उस घड़ी को।”—मत्ती 25:13.
अंत के दिनों में उसके चेलों को सतर्क रहना होगा। यीशु ज़रूर आएगा और उन्हें पाँच समझदार कुँवारियों की तरह तैयार रहना है। तब उनका ध्यान नहीं भटकेगा और वे इनाम पाएँगे।
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तोड़ों की मिसाल—मेहनत करने की सीखयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 113
तोड़ों की मिसाल—मेहनत करने की सीख
यीशु तोड़ों की मिसाल बताता है
यीशु अभी-भी चार प्रेषितों के साथ जैतून पहाड़ पर है। अब वह उन्हें तोड़ों की मिसाल बताता है। कुछ दिन पहले उसने चाँदी के सिक्कों की मिसाल बताकर समझाया था कि परमेश्वर का राज काफी समय बाद भविष्य में आएगा। तोड़ों की मिसाल चाँदी के सिक्कों की मिसाल से मिलती-जुलती है। चेलों ने उसकी मौजूदगी और दुनिया के अंत के बारे में उससे जो सवाल किया था, उसी के जवाब में वह यह मिसाल बताता है। इस मिसाल से यह सीख मिलती है कि चेलों को अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने में बहुत मेहनत करनी है।
“स्वर्ग का राज उस आदमी जैसा है जिसने परदेस जाने से पहले अपने दासों को बुलाया और उन्हें अपनी दौलत सौंपी।” (मत्ती 25:14) यीशु ने पहले भी एक बार अपनी तुलना एक ऐसे आदमी से की थी जो “राज-अधिकार” पाने के लिए दूर देश जाता है। तो प्रेषित समझ सकते हैं कि इस मिसाल में बताया गया आदमी भी यीशु है।—लूका 19:12.
जैसे वह आदमी परदेस जाने से पहले दासों को अपनी दौलत सौंपता है, उसी तरह यीशु भी जाने से पहले चेलों को कुछ काम सौंपता है। साढ़े तीन साल के दौरान यीशु ने बड़ी लगन से खुशखबरी का प्रचार किया था और चेलों को भी यह काम सिखाया था। अब जाने से पहले यह ज़िम्मेदारी वह चेलों को देता है। उसे उन पर भरोसा है कि वे यह काम अच्छे से करेंगे।—मत्ती 10:7; लूका 10:1, 8, 9. यूहन्ना 4:38; 14:12 से तुलना करें।
यीशु बताता है कि उस आदमी ने अपने दासों में दौलत कैसे बाँटी: “एक को उसने पाँच तोड़े चाँदी के सिक्के दिए, दूसरे को दो तोड़े और तीसरे को एक तोड़ा। हरेक को उसकी काबिलीयत के मुताबिक देकर वह परदेस चला गया।” (मत्ती 25:15) दासों ने उस दौलत के साथ क्या किया? क्या उन्होंने मेहनत करके वह दौलत बढ़ायी?
“जिस दास को पाँच तोड़े चाँदी के सिक्के मिले थे, वह फौरन गया और उसने उन पैसों से कारोबार करके पाँच तोड़े और कमाए। उसी तरह, जिसे दो तोड़े चाँदी के सिक्के मिले थे, उसने दो तोड़े और कमाए। मगर जिसे सिर्फ एक तोड़ा चाँदी के सिक्के मिले थे, उसने मालिक के पैसे ज़मीन में गाड़कर छिपा दिए।”—मत्ती 25:16-18.
“बहुत समय बाद उन दासों का मालिक आया और उसने उनसे हिसाब माँगा।” (मत्ती 25:19) पहले और दूसरे दास ने अपनी काबिलीयत के मुताबिक और भी तोड़े कमाए। इन दोनों ने बहुत मेहनत की, इसलिए वे और भी कमा सके। जिसे पाँच तोड़े दिए गए थे, उसने पाँच और कमाए। जिसे दो दिए गए थे, उसने दो और कमाए। उस ज़माने में एक मज़दूर बीस साल काम करने पर ही एक तोड़ा कमा सकता था। इससे पता चलता है कि दोनों दासों ने कितनी लगन से काम किया। मालिक इनमें से हर दास से कहता है, “शाबाश, अच्छे और विश्वासयोग्य दास! तू थोड़ी चीज़ों में विश्वासयोग्य रहा। मैं तुझे बहुत-सी चीज़ों पर अधिकार दूँगा। अपने मालिक के साथ खुशियाँ मना।”—मत्ती 25:21.
मगर जिस दास को एक तोड़ा सौंपा गया था, वह मालिक से कहता है, “मालिक, मैं जानता था कि तू एक कठोर इंसान है, तू जहाँ नहीं बोता वहाँ भी कटाई करता है और जहाँ अनाज नहीं फटकाता वहाँ से भी बटोरता है। इसलिए मैं डर गया और मैंने जाकर तेरे चाँदी के सिक्के ज़मीन में छिपा दिए। यह ले, जो तेरा है, यह रहा।” (मत्ती 25:24, 25) अगर वह तोड़ा ले जाकर साहूकारों को देता, तो मालिक को कुछ तो मुनाफा होता। मगर उसने ऐसा भी नहीं किया। उसने मालिक का बहुत नुकसान कर दिया।
मालिक कहता है कि यह दास “दुष्ट और आलसी” है। उसे जो तोड़ा दिया गया था वह उससे ले लिया जाता है और उस दास को दे दिया जाता है जो मेहनती है। मालिक कहता है, “जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा और उसके पास बहुत हो जाएगा। मगर जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसके पास है।”—मत्ती 25:26, 29.
इस मिसाल से चेलों को एक सबक मिलता है। यीशु ने उन पर भरोसा करके उन्हें चेले बनाने का काम सौंपा है। यह एक अहम ज़िम्मेदारी है। यीशु उम्मीद करता है कि वे इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए बहुत मेहनत करें। यीशु सबसे बराबर की उम्मीद नहीं करता, पर चाहता है कि जिससे जितना हो सकता है वह उतनी मेहनत करे। अगर एक व्यक्ति आलसी हो जाए और चेला बनाने के काम में मेहनत न करे, तो यीशु उससे बिलकुल खुश नहीं होगा।
यीशु ने प्रेषितों को एक बात का भरोसा दिलाया है, “जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा और उसके पास बहुत हो जाएगा।” यह बात सुनकर वे बहुत खुश हुए होंगे!
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भेड़ों और बकरियों का फैसलायीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 114
भेड़ों और बकरियों का फैसला
यीशु भेड़ों और बकरियों की मिसाल बताता है
प्रेषितों ने यीशु से पूछा था कि उसकी मौजूदगी और दुनिया के अंत की क्या निशानी होगी। यीशु ने जवाब में कई बातें बतायीं। उसने दस कुँवारियों और तोड़ों की मिसाल भी बतायी। अब वह आखिर में भेड़ों और बकरियों की मिसाल बताता है:
“जब इंसान का बेटा पूरी महिमा के साथ आएगा और सब स्वर्गदूत उसके साथ होंगे, तब वह अपनी शानदार राजगद्दी पर बैठेगा।” (मत्ती 25:31) यीशु ही इस मिसाल का खास किरदार है, क्योंकि उसने कई बार खुद को ‘इंसान का बेटा’ कहा था।—मत्ती 8:20; 9:6; 20:18, 28.
इस मिसाल की बातें तब पूरी होंगी जब यीशु ‘बड़ी महिमा के साथ आएगा’ और स्वर्गदूत उसके साथ होंगे। उस वक्त वह “अपनी शानदार राजगद्दी पर बैठेगा।” यीशु ने पहले भी बताया था कि ‘संकट के फौरन बाद इंसान का बेटा पूरी शक्ति और महिमा के साथ बादलों में आएगा और स्वर्गदूत उसके साथ होंगे।’ (मत्ती 24:29-31; मरकुस 13:26, 27; लूका 21:27) इसका मतलब भेड़ों और बकरियों की मिसाल में बतायी गयी बातें भविष्य में पूरी होंगी। तब क्या होगा?
‘सब राष्ट्रों के लोग इंसान के बेटे के सामने इकट्ठे किए जाएँगे। तब वह लोगों को एक-दूसरे से अलग करेगा, ठीक जैसे एक चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है। वह भेड़ों को अपने दायीं तरफ करेगा मगर बकरियों को बायीं तरफ।’—मत्ती 25:31-33.
राजा भेड़ों से कहेगा, “मेरे पिता से आशीष पानेवालो, आओ, उस राज के वारिस बन जाओ जो दुनिया की शुरूआत से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है।” (मत्ती 25:34) राजा क्यों भेड़ों से खुश होगा?
राजा खुद बताता है, “मैं भूखा था और तुमने मुझे खाना दिया। मैं प्यासा था और तुमने मुझे पानी पिलाया। मैं अजनबी था और तुमने मुझे अपने घर ठहराया। मैं नंगा था और तुमने मुझे कपड़े दिए। मैं बीमार पड़ा और तुमने मेरी देखभाल की। मैं जेल में था और तुम मुझसे मिलने आए।” भेड़ें यानी नेक लोग उससे पूछेंगे कि उन्होंने कब ऐसा किया। राजा उनसे कहेगा, “जो कुछ तुमने मेरे इन छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे साथ किया।” (मत्ती 25:35, 36, 40, 46) नेक जनों ने ये भले काम स्वर्ग में नहीं किए, क्योंकि वहाँ कोई बीमार या भूखा नहीं होता। उन्होंने ये काम धरती पर मसीह के भाइयों के लिए किए।
फिर राजा बकरियों से कहेगा, “हे शापित लोगो, मेरे सामने से दूर हो जाओ और हमेशा जलनेवाली उस आग में चले जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गयी है। इसलिए कि मैं भूखा था मगर तुमने मुझे खाने को कुछ नहीं दिया। मैं प्यासा था मगर तुमने मुझे पीने को कुछ नहीं दिया। मैं अजनबी था मगर तुमने मुझे अपने घर नहीं ठहराया। मैं नंगा था मगर तुमने मुझे कपड़े नहीं दिए। मैं बीमार पड़ा और जेल में था मगर तुमने मेरी देखभाल नहीं की।” (मत्ती 25:41-43) बकरी समान लोगों को यह सज़ा मिलनी ही चाहिए, क्योंकि उन्होंने मसीह के भाइयों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जबकि उन्हें करना चाहिए था।
प्रेषित समझ जाते हैं कि जब यीशु न्याय करेगा, तो लोगों को या तो हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी या हमेशा के लिए उनका नाश हो जाएगा। राजा लोगों से कहेगा, ‘जो कुछ तुमने मेरे इन छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ नहीं किया, वह मेरे साथ भी नहीं किया। ये लोग हमेशा के लिए नाश हो जाएँगे, मगर नेक जन हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे।’—मत्ती 25:45, 46.
परमेश्वर के सभी लोगों को भेड़ों और बकरियों की मिसाल से अच्छी सीख मिलती है। उन्हें खुद पर ध्यान देना चाहिए कि क्या उनकी सोच सही है और क्या वे अपना फर्ज़ निभा रहे हैं।
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