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आखिरी फसह के वक्त नम्रता की सीखयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 116
आखिरी फसह के वक्त नम्रता की सीख
मत्ती 26:20 मरकुस 14:17 लूका 22:14-18 यूहन्ना 13:1-17
यीशु आखिरी फसह प्रेषितों के साथ मनाता है
वह प्रेषितों के पैर धोकर उन्हें नम्रता की सीख देता है
पतरस और यूहन्ना फसह की तैयारियाँ करने यरूशलेम पहुँच चुके हैं। बाद में यीशु और बाकी 10 प्रेषित भी वहाँ के लिए चल पड़ते हैं। जब वे जैतून पहाड़ से नीचे उतर रहे होते हैं, तो सूरज ढलने लगता है। यीशु अपनी मौत से पहले आखिरी बार दिन के वक्त यरूशलेम शहर को देखता है।
कुछ ही देर में यीशु और प्रेषित यरूशलेम पहुँच जाते हैं। वे उस घर में जाते हैं जहाँ वे फसह का खाना खाएँगे। वे सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपरवाले कमरे में जाते हैं और देखते हैं कि वहाँ फसह के लिए सारी तैयारियाँ हो चुकी हैं। यीशु काफी समय से इसका इंतज़ार कर रहा था। वह कहता है, “मेरी बड़ी तमन्ना थी कि मैं दुख झेलने से पहले तुम्हारे साथ फसह का खाना खाऊँ।”—लूका 22:15.
कई साल पहले फसह के त्योहार में एक दस्तूर शुरू हुआ था। इस भोज में दाख-मदिरा के कई प्याले आपस में फिराए जाते हैं। यीशु इन्हीं में से एक प्याला लेता है और प्रार्थना में धन्यवाद करता है। फिर कहता है, “इसे लो और एक-एक करके इसमें से पीओ। इसलिए कि मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं यह दाख-मदिरा तब तक दोबारा नहीं पीऊँगा जब तक परमेश्वर का राज नहीं आता।” (लूका 22:17, 18) इससे पता चलता है कि बहुत जल्द उसकी मौत हो जाएगी।
जब फसह का खाना चल रहा होता है, तो उसी दौरान एक अजीब बात होती है। यीशु उठता है, अपना चोगा उतारकर अलग से रखता है और तौलिया लेता है। वह एक बरतन में पानी भरता है और चेलों के पैर धोने लगता है। जब किसी के घर मेहमान आते हैं, तो वह इस बात का ध्यान रखता है कि मेहमानों के पैर धोए जाएँ। वह ज़्यादातर किसी सेवक से कहता है कि वह ऐसा करे। (लूका 7:44) मगर इस मौके पर कोई मेज़बान नहीं है, इसलिए यीशु सबके पैर धोता है। चाहे तो प्रेषितों में से कोई ऐसा कर सकता था, मगर उनमें से किसी ने नहीं किया। शायद वे अभी-भी खुद को दूसरों से बड़ा समझ रहे हैं। चाहे उन्होंने किसी भी वजह से नहीं धोया हो, मगर जब यीशु उनके पैर धोने लगता है, तो वे सब शर्मिंदा हो जाते हैं।
जब यीशु एक-एक करके सबके पैर धोते हुए पतरस के पास आता है, तो पतरस कहता है, “नहीं, तू मेरे पैर नहीं धोएगा।” यीशु उससे कहता है, “अगर मैं तुझे न धोऊँ, तो मेरे साथ तेरी कोई साझेदारी नहीं।” पतरस कहता है, “तो प्रभु, मेरे पैर ही नहीं, बल्कि मेरे हाथ और मेरा सिर भी धो दे।” यीशु उससे कहता है, “जो नहा चुका है उसे पैर के सिवा और कुछ धोने की ज़रूरत नहीं, वह पूरी तरह शुद्ध है। तुम लोग शुद्ध हो, पर तुममें से सब नहीं।”—यूहन्ना 13:8-10.
यीशु उन बारहों के पैर धोता है। यहूदा इस्करियोती के पैर भी। फिर वह अपना चोगा पहनकर एक बार फिर मेज़ से टेक लगाकर बैठ जाता है और उनसे कहता है, “क्या तुम समझे कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है? तुम मुझे ‘गुरु’ और ‘प्रभु’ बुलाते हो और तुम ठीक कहते हो क्योंकि मैं वही हूँ। इसलिए जब मैंने प्रभु और गुरु होते हुए भी तुम्हारे पैर धोए, तो तुम्हें भी एक-दूसरे के पैर धोने चाहिए। इसलिए कि मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है कि जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया, तुम्हें भी वैसा ही करना चाहिए। मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होता, न ही भेजा हुआ अपने भेजनेवाले से बड़ा होता है। तुमने ये बातें जान ली हैं, लेकिन अगर तुम ऐसा करो तो सुखी होगे।”—यूहन्ना 13:12-17.
कितना बढ़िया सबक था यह! परमेश्वर के सेवकों को कभी नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें नम्रता से दूसरों की सेवा करनी चाहिए और सबमें खास बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि वे दूसरों से बड़े हैं और सबको उनकी सेवा करनी है। इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें दस्तूर के तौर पर दूसरों के पैर धोने हैं बल्कि यीशु की तरह नम्रता से और बिना भेदभाव किए दूसरों की सेवा करनी है।
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प्रभु का संध्या भोजयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 117
प्रभु का संध्या भोज
मत्ती 26:21-29 मरकुस 14:18-25 लूका 22:19-23 यूहन्ना 13:18-30
यीशु बताता है कि यहूदा उसे पकड़वाएगा
यीशु स्मारक के भोज की शुरूआत करता है
अभी कुछ देर पहले यीशु ने सभी प्रेषितों के पैर धोकर उन्हें सिखाया कि उन्हें नम्र होना चाहिए। शायद फसह के खाने के बाद यीशु दाविद की भविष्यवाणी के शब्द कहता है, “मेरा जिगरी दोस्त भी, जिस पर मैं भरोसा करता था, जो मेरी रोटी खाया करता था, मेरे खिलाफ हो गया है।” फिर वह कहता है, “तुममें से एक मेरे साथ विश्वासघात करके मुझे पकड़वा देगा।”—भजन 41:9; यूहन्ना 13:18, 21.
प्रेषित एक-दूसरे को देखते हैं और उनमें से हर कोई यीशु से पूछता है, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूँ न?” यहूदा इस्करियोती भी पूछता है। यूहन्ना यीशु के बिलकुल पास बैठा है, इसलिए पतरस उससे कहता है कि वह यीशु से पूछे कि वह कौन है। यूहन्ना यीशु से पूछता है, “प्रभु, वह कौन है?”—मत्ती 26:22; यूहन्ना 13:25.
यीशु कहता है, “जिसे मैं रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूँगा, वही है।” फिर वह रोटी का टुकड़ा डुबोकर यहूदा को देता है और कहता है, “इंसान का बेटा तो जा ही रहा है, ठीक जैसा उसके बारे में लिखा है, मगर उस आदमी का बहुत बुरा होगा जो इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात करके उसे पकड़वा देगा! उस आदमी के लिए अच्छा तो यह होता कि वह पैदा ही न हुआ होता।” (यूहन्ना 13:26; मत्ती 26:24) फिर शैतान यहूदा में समा जाता है। यहूदा पहले ही भ्रष्ट हो चुका है और अब शैतान जो चाहता है वह करने के लिए तैयार है। इस तरह वह “विनाश का बेटा” बन गया है।—यूहन्ना 6:64, 70; 12:4; 17:12.
यीशु यहूदा से कहता है, “जो तू कर रहा है, उसे फौरन कर।” बाकी प्रेषित सोचते हैं कि यीशु उससे त्योहार के लिए ज़रूरी चीज़ें खरीदने के लिए कह रहा है या गरीबों को कुछ पैसे देने के लिए कह रहा है, क्योंकि पैसों का बक्सा यहूदा के पास होता था। (यूहन्ना 13:27-30) फिर यहूदा चला जाता है।
इसी शाम फसह का खाना होने के बाद यीशु एक नए भोज की शुरूआत करता है। वह एक रोटी लेता है और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद उसे तोड़ता है और प्रेषितों को खाने के लिए देता है। वह कहता है, “यह मेरे शरीर की निशानी है, जो तुम्हारी खातिर दिया जाना है। मेरी याद में ऐसा ही किया करना।” (लूका 22:19) रोटी सभी प्रेषितों के सामने लायी जाती है और वे सब खाते हैं।
फिर यीशु दाख-मदिरा का एक प्याला लेता है और प्रार्थना में धन्यवाद करके चेलों को देता है। वे सब इस प्याले में से पीते हैं। यीशु कहता है, “यह प्याला उस नए करार की निशानी है जिसे मेरे खून से पक्का किया जाएगा, उस खून से जो तुम्हारी खातिर बहाया जाना है।”—लूका 22:20.
इस तरह यीशु ने एक ऐसे भोज की शुरूआत की जो उसकी मौत की याद में मनाया जाएगा। चेले हर साल नीसान 14 को यह भोज मनाएँगे। तब वे याद करेंगे कि यीशु और उसके पिता ने इंसानों को पाप और मौत से छुड़ाने के लिए क्या किया। यह भोज फसह के भोज से भी खास है, क्योंकि यह हमें याद दिलाता है कि यहोवा और यीशु पर विश्वास करनेवालों को हमेशा की आज़ादी मिलेगी।
यीशु कहता है कि उसका खून “बहुतों के पापों की माफी के लिए बहाया जाएगा।” यीशु के बहाए खून की वजह से बहुत-से लोगों को पापों की माफी मिलेगी। जैसे, यीशु के वफादार प्रेषितों और उनके जैसे दूसरे चेलों को। वे यहोवा के राज में यीशु के साथ होंगे।—मत्ती 26:28, 29.
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इस बात पर बहस कि कौन बड़ा हैयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 118
इस बात पर बहस कि कौन बड़ा है
मत्ती 26:31-35 मरकुस 14:27-31 लूका 22:24-38 यूहन्ना 13:31-38
यीशु सलाह देता है कि बड़ा बनने की कोशिश न करें
पतरस यीशु को जानने से इनकार कर देगा
प्यार यीशु के चेलों की पहचान है
यीशु प्रेषितों के साथ आखिरी शाम बिता रहा है। उसने कुछ देर पहले उनके पैर धोकर उन्हें नम्र रहने की सलाह दी थी। यीशु ने बिलकुल सही किया, क्योंकि यह उनकी कमज़ोरी है कि वे खुद को दूसरों से बड़ा समझते हैं। उनके दिल में परमेश्वर के लिए प्यार है, मगर वे अब भी यही सोचते हैं कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। (मरकुस 9:33, 34; 10:35-37) इसी शाम एक बार फिर उनकी यह कमज़ोरी साफ दिखायी देती है।
प्रेषितों के बीच ‘इस बात पर गरमा-गरम बहस छिड़ जाती है कि उनमें सबसे बड़ा किसे समझा जाए।’ (लूका 22:24) यह देखकर यीशु को कितना दुख हुआ होगा कि इतना समझाने के बाद भी वे फिर से उसी बात को लेकर झगड़ रहे हैं। अब वह क्या करता है?
यीशु उन्हें डाँटता नहीं बल्कि प्यार से समझाता है, “दुनिया के राजा लोगों पर हुक्म चलाते हैं और जो अधिकार रखते हैं, वे दानी कहलाते हैं। मगर तुम्हें ऐसा नहीं होना है। . . . इसलिए कि कौन ज़्यादा बड़ा है, जो खाने के लिए मेज़ से टेक लगाए बैठा है या जो सेवा कर रहा है?” फिर वह उनका ध्यान अपनी तरफ खींचता है कि वह दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करता है: “मैं तुम्हारे बीच सेवक जैसा हूँ।”—लूका 22:25-27.
प्रेषितों में भले ही बहुत-सी कमज़ोरियाँ हैं, फिर भी उन्होंने कई मुश्किलें झेलने पर भी यीशु का साथ नहीं छोड़ा। इसलिए वह उनसे कहता है, “ठीक जैसे मेरे पिता ने मेरे साथ एक करार किया है, वैसे ही मैं भी तुम्हारे साथ राज का एक करार करता हूँ।” (लूका 22:29) वह उन्हें भरोसा दिलाता है कि इस करार की वजह से वे उसके साथ स्वर्ग से राज करेंगे।
प्रेषितों को आगे चलकर कितनी बड़ी आशीष मिलनेवाली है! मगर फिलहाल वे मामूली इंसान हैं और उनमें कई कमज़ोरियाँ हैं। इसलिए यीशु उनसे कहता है, “शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने की माँग की है।” (लूका 22:31) वह उनसे एक और बात कहता है, “आज की रात मेरे साथ जो होगा उसकी वजह से तुम सबका विश्वास डगमगा जाएगा क्योंकि लिखा है, ‘मैं चरवाहे को मारूँगा और झुंड की भेड़ें तितर-बितर हो जाएँगी।’”—मत्ती 26:31; जकरयाह 13:7.
मगर यह सुनकर पतरस कहता है, “तेरे साथ जो होगा उसकी वजह से चाहे बाकी सबका विश्वास डगमगा जाए, मगर मेरा विश्वास कभी नहीं डगमगाएगा।” (मत्ती 26:33) तब यीशु कहता है कि उस रात मुर्गे के दो बार बाँग देने से पहले पतरस लोगों से कहेगा कि वह यीशु को जानता तक नहीं। पर साथ में यीशु यह भी कहता है, “मगर मैंने तेरे लिए मिन्नत की है कि तू अपना विश्वास खो न दे। जब तू पश्चाताप करके लौट आए, तो अपने भाइयों को मज़बूत करना।” (लूका 22:32) इसके बाद भी पतरस कहता है, “चाहे मुझे तेरे साथ मरना पड़े, तब भी मैं तुझे जानने से हरगिज़ इनकार नहीं करूँगा।” (मत्ती 26:35) बाकी प्रेषित भी यही कहते हैं।
यीशु चेलों से कहता है, “मैं बस थोड़ी देर और तुम्हारे साथ हूँ। तुम मुझे ढूँढ़ोगे। और जो बात मैंने यहूदियों से कही थी, वह अब तुमसे भी कह रहा हूँ, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।’” फिर वह कहता है, “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो। अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूहन्ना 13:33-35.
पतरस यीशु से पूछता है, “प्रभु, तू कहाँ जा रहा है?” यीशु कहता है, “जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तू अभी मेरे पीछे नहीं आ सकता, मगर बाद में तू आएगा।” पतरस यीशु की बात समझ नहीं पाता, इसलिए वह कहता है, “प्रभु, मैं अभी तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तेरी खातिर अपनी जान भी दे दूँगा।”—यूहन्ना 13:36, 37.
अब यीशु प्रेषितों को याद दिलाता है कि जब उसने उन्हें गलील में प्रचार करने भेजा था, तो उसने कहा था कि वे अपने साथ खाने की पोटली या पैसे की थैली न रखें। (मत्ती 10:5, 9, 10) वह उनसे पूछता है, “क्या तुम्हें किसी चीज़ की कमी हुई थी?” वे कहते हैं, “नहीं!” यीशु बताता है कि अब से उन्हें क्या करना है। “जिसके पास पैसे की थैली हो वह उसे ले ले और खाने की पोटली भी रख ले। जिसके पास कोई तलवार नहीं, वह अपना चोगा बेचकर एक खरीद ले। मैं तुमसे कहता हूँ, यह ज़रूरी है कि यह बात मुझ पर पूरी हो जो मेरे बारे में लिखी गयी थी: ‘वह अपराधियों में गिना गया।’ अब यह बात मुझ पर पूरी हो रही है।”—लूका 22:35-37.
बहुत जल्द यीशु को अपराधियों के बीच काठ पर ठोंक दिया जाएगा। इसके बाद लोग चेलों पर बहुत ज़ुल्म करेंगे। चेलों को लगता है कि वे मुश्किलों का सामना कर लेंगे, इसलिए वे कहते हैं, “प्रभु, देख! यहाँ दो तलवारें हैं।” यीशु कहता है, “ये काफी हैं।” (लूका 22:38) कुछ देर बाद जब एक प्रेषित तलवार चलाता है, तो यीशु उन्हें एक और ज़रूरी बात सिखाता है।
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यीशु—राह, सच्चाई, जीवनयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 119
यीशु—राह, सच्चाई, जीवन
यीशु चेलों को लिए जगह तैयार करने जा रहा है
एक मददगार भेजने का वादा
पिता यीशु से बड़ा है
स्मारक का भोज हो चुका है। यीशु प्रेषितों के साथ अभी-भी ऊपरवाले कमरे में है। वह उनकी हिम्मत बँधाने के लिए कहता है, “तुम्हारे दिल दुख से बेहाल न हों। परमेश्वर पर विश्वास करो और मुझ पर भी विश्वास करो।”—यूहन्ना 13:36; 14:1.
यीशु प्रेषितों को बताता है कि वह जा रहा है, फिर भी उन्हें क्यों दुखी नहीं होना है: “मेरे पिता के घर में रहने की बहुत-सी जगह हैं: . . . जब मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँगा, तो मैं दोबारा आऊँगा और तुम्हें अपने घर ले जाऊँगा ताकि जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम भी रहो।” यीशु दरअसल कह रहा है कि वह स्वर्ग जा रहा है, लेकिन प्रेषित इस बात को समझ नहीं पाते। थोमा पूछता है, “प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जा रहा है। तो फिर हम वहाँ की राह कैसे जानें?”—यूहन्ना 14:2-5.
यीशु जवाब देता है, “मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ।” इसका मतलब यह है कि यीशु पर विश्वास करने, उसकी शिक्षाओं को मानने और उसके जैसी ज़िंदगी जीने से ही एक इंसान उसके पिता के पास स्वर्ग जा सकेगा। यीशु कहता है, “कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।”—यूहन्ना 14:6.
फिलिप्पुस कहता है, “प्रभु, हमें पिता दिखा दे, यही हमारे लिए काफी है।” फिलिप्पुस शायद चाहता है कि उन्हें परमेश्वर का कोई दर्शन दिखाया जाए जैसे मूसा, एलियाह और यशायाह ने देखा था। लेकिन असल में चेलों को किसी दर्शन की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उन्होंने कुछ ऐसा देखा है जो दर्शन से कहीं बेहतर है। यीशु कहता है, “फिलिप्पुस, मैं इतने समय से तुम लोगों के साथ हूँ और फिर भी तू मुझे नहीं जान पाया? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।” यीशु ने बिलकुल वही गुण दर्शाए जो उसके पिता में हैं। प्रेषित अब तक यीशु के साथ रहे हैं और उन्होंने उसे करीब से देखा है। यह पिता को देखने के बराबर है। पर यह भी सच है कि पिता यीशु से बड़ा है। यीशु कहता है, “मैं जो बातें तुमसे कहता हूँ वे अपनी तरफ से नहीं कहता।” (यूहन्ना 14:8-10) उसने जो भी सिखाया है वह उसके पिता का सिखाया हुआ है।
प्रेषितों ने देखा है कि यीशु ने कैसे चमत्कार किए हैं और राज की खुशखबरी लोगों को बतायी है। वह उनसे कहता है, “जो मुझ पर विश्वास करता है, वह भी वे काम करेगा जो मैं करता हूँ बल्कि इनसे भी बड़े-बड़े काम करेगा क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।” (यूहन्ना 14:12) इसका यह मतलब नहीं कि चेले उससे भी बड़े-बड़े चमत्कार करेंगे। मगर वे उससे भी ज़्यादा समय तक और उससे भी बड़े इलाके में प्रचार करेंगे और उससे भी ज़्यादा लोगों को प्रचार करेंगे।
यीशु के जाने के बाद प्रेषित बेसहारा नहीं हो जाएँगे। वह उनसे वादा करता है, “अगर तुम मेरे नाम से कुछ माँगोगे, तो मैं वह करूँगा। मैं पिता से बिनती करूँगा और वह तुम्हें एक और मददगार देगा जो हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा यानी सच्चाई की पवित्र शक्ति।” (यूहन्ना 14:14, 16, 17) चेलों को पवित्र शक्ति मिलेगी और यह उनके लिए मददगार जैसी होगी। यीशु का वादा पिन्तेकुस्त के दिन पूरा हुआ। उस दिन उन्हें पवित्र शक्ति दी गयी।
यीशु कहता है, “थोड़ी देर और है, फिर दुनिया मुझे कभी नहीं देखेगी मगर तुम मुझे देखोगे क्योंकि मैं जीवित हूँ और तुम भी जीओगे।” (यूहन्ना 14:19) यीशु जब अपनी मौत के बाद ज़िंदा होगा, तो वह इंसान का शरीर धारण करके उन्हें दिखायी देगा। और जब प्रेषितों को उनकी मौत के बाद स्वर्ग में ज़िंदा किया जाएगा, तो वे अदृश्य प्राणी बनेंगे और फिर से यीशु को देखेंगे।
फिर यीशु कहता है, “जिसके पास मेरी आज्ञाएँ हैं और जो उन्हें मानता है, वही मुझसे प्यार करता है। जो मुझसे प्यार करता है उससे मेरा पिता प्यार करेगा और मैं भी उससे प्यार करूँगा और अपने आपको उस पर खुलकर ज़ाहिर करूँगा।” तब प्रेषित यहूदा, जिसका एक और नाम तद्दी है, पूछता है, “प्रभु, क्या वजह है कि तू अपने आपको हम पर तो खुलकर ज़ाहिर करना चाहता है मगर दुनिया पर नहीं?” यीशु कहता है, ‘अगर कोई मुझसे प्यार करता है, तो वह मेरे वचन पर चलेगा और मेरा पिता उससे प्यार करेगा। जो मुझसे प्यार नहीं करता वह मेरे वचनों पर नहीं चलता।’ (यूहन्ना 14:21-24) दुनिया के लोग यीशु के चेलों की तरह नहीं हैं। वे नहीं मानते कि यीशु ही राह, सच्चाई और जीवन है।
यीशु के जाने के बाद चेले वे सभी बातें कैसे याद कर पाएँगे जो उसने उन्हें सिखायी हैं? यीशु बताता है, “वह मददगार यानी पवित्र शक्ति जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, तुम्हें सारी बातें सिखाएगा और जितनी बातें मैंने तुम्हें बतायी हैं वे सब तुम्हें याद दिलाएगा।” यह बात सुनकर उन्हें बहुत हिम्मत मिली होगी, क्योंकि उन्होंने खुद देखा था कि पवित्र शक्ति ज़बरदस्त तरीके से काम करती है। यीशु एक और बात कहता है, “जो शांति मैं देता हूँ वह मैं तुम्हारे पास छोड़कर जा रहा हूँ। . . . तुम्हारे दिल दुख से बेहाल न हों, न ही वे डर के मारे कमज़ोर पड़ें।” (यूहन्ना 14:26, 27) यीशु का पिता उन्हें निर्देश देगा कि उन्हें आगे क्या करना है। वह उनकी रक्षा भी करेगा। इसलिए उन्हें डरने की ज़रूरत नहीं है।
चेले बहुत जल्द देखेंगे कि परमेश्वर कैसे अपने लोगों को बचाता है। यीशु कहता है, “इस दुनिया का राजा आ रहा है और मुझ पर उसका कोई ज़ोर नहीं चलता।” (यूहन्ना 14:30) यीशु पर शैतान का कोई ज़ोर नहीं चलेगा जैसा यहूदा इस्करियोती पर चल गया था। यीशु में पाप करने की कमज़ोरी नहीं है, इसलिए शैतान उसका फायदा उठाकर उससे परमेश्वर के खिलाफ काम नहीं करवा सकता। जब यीशु की मौत होगी, तब भी उस पर शैतान का ज़ोर नहीं चलेगा। क्यों? यीशु बताता है, “मैं ठीक वैसा ही करता हूँ जैसा पिता ने मुझे आज्ञा दी है।” उसे पूरा भरोसा है कि जब उसकी मौत होगी, तो उसका पिता उसे ज़िंदा कर देगा।—यूहन्ना 14:31.
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फल पैदा करें, यीशु के दोस्त बने रहेंयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 120
फल पैदा करें, यीशु के दोस्त बने रहें
अंगूर की सच्ची बेल और डालियाँ
यीशु के प्यार के लायक कैसे बने रहें?
यीशु अपने वफादार प्रेषितों की हिम्मत बँधा रहा है। अब तक शायद आधी रात हो चुकी है। अब वह उन्हें एक मिसाल बताता है:
“मैं अंगूर की सच्ची बेल हूँ और मेरा पिता बागबान है।” (यूहन्ना 15:1) सदियों पहले इसराएल राष्ट्र को यहोवा की अंगूरों की बेल कहा गया था। (यिर्मयाह 2:21; होशे 10:1, 2) मगर यीशु जिस बेल की बात कर रहा है वह इसराएल राष्ट्र नहीं है, क्योंकि यहोवा इस राष्ट्र को ठुकराने जा रहा है। (मत्ती 23:37, 38) यह बेल यीशु है। ईसवी सन् 29 में जब पवित्र शक्ति से उसका अभिषेक हुआ, तब से यहोवा इस बेल को मानो सींच रहा है। अब यीशु बताता है कि यह बेल सिर्फ उसे नहीं, कुछ और लोगों को भी दर्शाती है:
“मेरी हर वह डाली जो फल नहीं देती, उसे वह [यानी पिता] काट देता है और ऐसी हर डाली जो फल देती है, उसकी वह छँटाई करता है ताकि उसमें और ज़्यादा फल लगें। . . . एक डाली तब तक फल देती है जब तक वह बेल से जुड़ी रहती है। बेल से अलग होकर डाली अपने आप फल नहीं दे सकती। तुम भी अगर मेरे साथ एकता में न रहो, तो फल नहीं पैदा कर सकते। मैं अंगूर की बेल हूँ और तुम डालियाँ हो।”—यूहन्ना 15:2-5.
यीशु ने वादा किया है कि वह जाने के बाद अपने वफादार चेलों के लिए एक मददगार भेजेगा यानी उन्हें पवित्र शक्ति दी जाएगी। इक्यावन दिन बाद प्रेषितों और कई और चेलों को पवित्र शक्ति मिलती है और तब वे इस बेल की डालियाँ बन जाते हैं। यीशु बताता है कि चेले उसके साथ एकता में रहने से क्या कर पाएँगे:
“जो मेरे साथ एकता में रहता है और जिसके साथ मैं एकता में रहता हूँ, वह बहुत फल पैदा करता है। मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।” बेल की डालियों यानी यीशु के चेलों को बहुत-से फल पैदा करने हैं। उन्हें यीशु के जैसे गुण दर्शाने हैं और दूसरों को परमेश्वर के राज के बारे में बताना है। तब और भी कई लोग यीशु के चेले बनेंगे। अगर एक चेला यीशु के साथ एकता में न रहे और फल पैदा न करे, तो क्या होगा? यीशु बताता है, “अगर कोई मेरे साथ एकता में नहीं रहता, तो उसे फेंक दिया जाता है जैसे एक डाली को फेंक दिया जाता है।” वह यह भी कहता है, “अगर तुम मेरे साथ एकता में रहो और मेरी बातें तुम्हारे दिल में रहें, तो तुम जो चाहो और माँगो, वह तुम्हें दे दिया जाएगा।”—यूहन्ना 15:5-7.
अब यीशु चेलों से कहता है कि वे उसकी आज्ञाएँ मानें। यह बात उसने पहले भी दो बार कही थी। (यूहन्ना 14:15, 21) यीशु उनसे यह भी कहता है, “अगर तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्यार के लायक बने रहोगे, ठीक जैसे मैं पिता की आज्ञाएँ मानता हूँ और उसके प्यार के लायक बना रहता हूँ।” अब यीशु बताता है कि चेलों को उससे और पिता से प्यार करने के अलावा और क्या करना है। “मेरी यह आज्ञा है कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है। क्या कोई इससे बढ़कर प्यार कर सकता है कि वह अपने दोस्तों की खातिर जान दे दे? जो आज्ञा मैं देता हूँ अगर तुम उसे मानो तो तुम मेरे दोस्त हो।”—यूहन्ना 15:10-14.
कुछ ही घंटों में यीशु उन सबके लिए अपनी जान दे देगा जो उस पर विश्वास करते हैं। तब साबित हो जाएगा कि वह उनसे कितना प्यार करता है। उसे देखकर चेलों को सीखना चाहिए कि वे भी एक-दूसरे से इसी तरह प्यार करें। उन्हें एक-दूसरे के लिए त्याग करने चाहिए। इस प्यार से उनकी पहचान होगी, क्योंकि यीशु ने कहा था, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूहन्ना 13:35.
प्रेषितों को याद रखना है कि यीशु ने उन्हें अपने ‘दोस्त’ कहा है। यीशु बताता है कि वह क्यों उन्हें अपने दोस्त मानता है: “मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना है वह सब तुम्हें बता दिया है।” चेलों के लिए यह कितनी खुशी की बात है कि वे यीशु के अच्छे दोस्त हैं और उसने उन्हें वे बातें बतायी हैं जो पिता ने उसे बतायी हैं। मगर हमेशा यीशु के दोस्त बने रहने के लिए उन्हें फल पैदा करते रहना है। यीशु उनसे कहता है कि अगर वे फल पैदा करेंगे, तो वे उसके नाम से पिता से जो कुछ माँगेंगे वह उन्हें दे देगा।—यूहन्ना 15:15, 16.
चेलों के बीच प्यार होगा, तो वे उन मुश्किलों को सह पाएँगे जो बहुत जल्द उन पर आनेवाली हैं। यीशु बताता है कि दुनिया उनसे नफरत करेगी, फिर भी वे क्यों हिम्मत रख सकते हैं: ‘अगर दुनिया तुमसे नफरत करती है, तो याद रखो कि इसने तुमसे पहले मुझसे नफरत की है। अगर तुम दुनिया के होते तो दुनिया तुम्हें पसंद करती क्योंकि तुम उसके अपने होते। मगर तुम दुनिया के नहीं हो, इसलिए दुनिया तुमसे नफरत करती है।’—यूहन्ना 15:18, 19.
यीशु एक और कारण बताता है कि दुनिया उनसे क्यों नफरत करेगी: “वे मेरे नाम की वजह से तुम्हारे खिलाफ यह सब करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते।” यीशु बताता है कि उसने जो चमत्कार किए हैं उनकी वजह से चेलों से नफरत करनेवाले दोषी ठहरेंगे: “मैंने उनके बीच वे काम किए जो किसी और ने नहीं किए थे। अगर मैंने उनके बीच ये काम न किए होते, तो उनमें कोई पाप नहीं होता। लेकिन अब उन्होंने मुझे देखा है और मुझसे और मेरे पिता, दोनों से नफरत की है।” उनकी नफरत की वजह से बाइबल की भविष्यवाणियाँ भी पूरी होती हैं।—यूहन्ना 15:21, 24, 25; भजन 35:19; 69:4.
इसके बाद यीशु एक बार फिर वादा करता है कि उन्हें वह मददगार भेजेगा यानी उन्हें पवित्र शक्ति दी जाएगी। यह ज़बरदस्त शक्ति यीशु के सभी चेलों को मिलती है, इसलिए वे फल पैदा कर पाते हैं। वे ‘उसके बारे में गवाही’ दे पाते हैं।—यूहन्ना 15:27.
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“हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल कर ली है”यीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 121
“हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल कर ली है”
कुछ देर बाद प्रेषित यीशु को नहीं देख पाएँगे
प्रेषितों का दुख खुशी में बदल जाएगा
यीशु और उसके प्रेषित ऊपर के कमरे से निकलनेवाले हैं। यीशु ने उन्हें काफी सलाह दी है। वह उनसे कहता है, “मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कही हैं कि तुम डगमगा न जाओ। लोग तुम्हें सभा-घर से बेदखल कर देंगे। यही नहीं, ऐसा समय आ रहा है जब हर कोई जो तुम्हें मार डालेगा, यह सोचेगा कि उसने परमेश्वर की पवित्र सेवा की है।”—यूहन्ना 16:1, 2.
यह बात सुनकर प्रेषित दुखी हो गए होंगे। उसने पहले भी उनसे कहा था कि दुनिया उनसे नफरत करेगी। लेकिन यह नहीं बताया था कि लोग उन्हें मार डालेंगे। वह कहता है, “मैंने ये बातें तुम्हें पहले नहीं बतायी थीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था।” (यूहन्ना 16:4) अब वह उन्हें छोड़कर जा रहा है, इसलिए उन्हें बता रहा है कि उनके साथ क्या होगा ताकि वे मुश्किलों का सामना कर सकें और ठोकर न खाएँ।
यीशु कहता है, “अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जा रहा हूँ, फिर भी तुममें से कोई मुझसे नहीं पूछ रहा कि तू कहाँ जा रहा है?” इससे पहले शाम को चेलों ने उससे पूछा था कि वह कहाँ जा रहा है। (यूहन्ना 13:36; 14:5; 16:5) मगर अब जब यीशु ने कहा कि उन पर ज़ुल्म किए जाएँगे, तो वे अपने बारे में सोचकर दुखी हो जाते हैं। इसलिए यीशु को जो महिमा मिलनेवाली है और उसकी बदौलत परमेश्वर के लोगों को जो आशीषें मिलेंगी, वे उस बारे में नहीं पूछते। यीशु कहता है, “मैंने जो ये बातें तुमसे कही हैं इसलिए तुम्हारा दिल बहुत दुखी है।”—यूहन्ना 16:6.
फिर यीशु कहता है, “मैं तुम्हारे ही भले के लिए जा रहा हूँ। इसलिए कि अगर मैं नहीं जाऊँगा, तो वह मददगार हरगिज़ तुम्हारे पास नहीं आएगा। लेकिन अगर मैं जाऊँगा, तो मैं उसे तुम्हारे पास भेजूँगा।” (यूहन्ना 16:7) अगर यीशु की मौत होगी और वह स्वर्ग जाएगा, तो ही चेलों को पवित्र शक्ति मिलेगी। पवित्र शक्ति यहोवा के लोगों की मदद कर सकती है फिर चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में रहते हों।
पवित्र शक्ति ‘दुनिया के सामने पाप, नेकी और न्याय के ठोस सबूत पेश करेगी।’ (यूहन्ना 16:8) पवित्र शक्ति दिखा देगी कि दुनिया के लोगों ने पाप किया है, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के बेटे पर विश्वास नहीं किया है। पवित्र शक्ति साबित कर देगी कि यीशु स्वर्ग चला गया है और वह नेक है और इस ‘दुनिया का राजा’ शैतान क्यों सज़ा के लायक है।—यूहन्ना 16:11.
यीशु कहता है, “मुझे तुमसे और भी बहुत-सी बातें कहनी हैं, मगर इस वक्त तुम इन्हें नहीं समझ सकते।” जब यीशु उन पर पवित्र शक्ति उँडेलेगा, तो उन्हें सच्चाई की “पूरी समझ” मिलेगी और वे सच्चाई के मुताबिक जी पाएँगे।—यूहन्ना 16:12, 13.
फिर यीशु कहता है, “अब से थोड़ी देर बाद तुम मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़ी देर बाद तुम मुझे देखोगे।” चेले उलझन में पड़ जाते हैं और एक-दूसरे से पूछते हैं कि यीशु क्या कह रहा है। यीशु समझ जाता है कि चेले इस बात का मतलब पूछना चाहते हैं। वह कहता है, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, तुम रोओगे और मातम मनाओगे मगर दुनिया खुशियाँ मनाएगी। तुम्हें दुख होगा मगर तुम्हारा दुख खुशी में बदल जाएगा।” (यूहन्ना 16:16, 20) कुछ समय बाद जब यीशु को मार डाला जाएगा, तो धर्म-गुरु खुशियाँ मनाएँगे, लेकिन चेले दुखी होंगे। मगर जब यीशु ज़िंदा हो जाएगा, तो उनका दुख खुशी में बदल जाएगा। फिर जब उन्हें पवित्र शक्ति मिलेगी, तो वे तब भी खुश होंगे।
प्रेषितों का दुख कैसे खुशी में बदल जाएगा, यह समझाने के लिए यीशु एक मिसाल बताता है: “एक औरत जब बच्चे को जन्म देनेवाली होती है, तो उसे दर्द होता है क्योंकि उसकी घड़ी आ गयी है। मगर जब वह बच्चे को जन्म दे देती है, तो वह अपना दर्द भूल जाती है और अपने बच्चे को देखकर खुश हो जाती है।” यीशु चेलों का हौसला बढ़ाने के लिए कहता है, “उसी तरह, तुम भी अभी दुख मना रहे हो। मगर जब मैं तुमसे दोबारा मिलूँगा, तब तुम्हारा दिल खुशी से भर जाएगा और कोई भी तुम्हारी खुशी नहीं छीन सकेगा।”—यूहन्ना 16:21, 22.
अब तक प्रेषितों ने कभी यीशु के नाम से यहोवा से बिनती नहीं की है। मगर अब वह उनसे कहता है, “उस दिन तुम मेरे नाम से पिता से प्रार्थना करोगे।” उन्हें यीशु के नाम से क्यों बिनती करनी है? क्या पिता से सीधे प्रार्थना करने से वह नहीं सुन रहा है? ऐसी बात नहीं है। यीशु कहता है, “पिता खुद तुमसे लगाव रखता है क्योंकि तुम मुझसे लगाव रखते हो और तुमने यकीन किया है कि मैं परमेश्वर की तरफ से आया हूँ।”—यूहन्ना 16:26, 27.
यीशु की बातों से प्रेषितों को बहुत हिम्मत मिलती है। वे कहते हैं, “हमें यकीन है कि तू परमेश्वर की तरफ से आया है।” लेकिन कुछ समय बाद जब उन पर मुश्किलें आएँगी, तब भी क्या उनका विश्वास मज़बूत रहेगा? यीशु बताता है कि कुछ ही देर में क्या होनेवाला है: “देखो! वह घड़ी आ रही है, दरअसल आ चुकी है, जब तुम सब तितर-बितर हो जाओगे और अपने-अपने घर चले जाओगे और मुझे अकेला छोड़ दोगे।” फिर वह उनकी हिम्मत बँधाता है: “मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कही हैं ताकि मेरे ज़रिए तुम शांति पा सको। दुनिया में तुम्हें तकलीफें झेलनी पड़ेंगी, मगर हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल कर ली है।” (यूहन्ना 16:30-33) यीशु भले ही उन्हें छोड़कर जा रहा है, लेकिन वह उनकी मदद करता रहेगा। उसे पूरा यकीन है कि वे भी उसकी तरह दुनिया पर जीत हासिल करेंगे। कैसे? शैतान और उसके लोग उन्हें चाहे कितना भी सताएँ, वे यहोवा की मरज़ी पूरी करते रहेंगे।
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ऊपरी कमरे में यीशु की आखिरी प्रार्थनायीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 122
ऊपरी कमरे में यीशु की आखिरी प्रार्थना
परमेश्वर और उसके बेटे को जानने से क्या मिलेगा?
यहोवा, यीशु और चेले एक हैं
यीशु अपने प्रेषितों से बहुत प्यार करता है, इसलिए वह काफी समय से उनकी हिम्मत बँधा रहा है। वह बहुत जल्द उन्हें छोड़कर जानेवाला है और नहीं चाहता कि वे दुखी रहें। अब वह स्वर्ग की तरफ नज़रें उठाकर प्रार्थना करता है, “पिता, वह घड़ी आ गयी है। अपने बेटे की महिमा कर ताकि तेरा बेटा तेरी महिमा करे। तूने उसे सब इंसानों पर अधिकार दिया है ताकि तूने उसे जितने लोग दिए हैं, उन सबको वह हमेशा की ज़िंदगी दे सके।”—यूहन्ना 17:1, 2.
यीशु कह रहा है कि परमेश्वर की महिमा करना सबसे ज़रूरी काम है। वह यह भी बता रहा है कि इंसानों को हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा मिल सकती है। यीशु को “सब इंसानों पर अधिकार” मिला है, इसलिए वह सब इंसानों को उसकी फिरौती से फायदा पाने का मौका दे सकता है। पर यीशु यह भी बताता है कि उसकी फिरौती से आशीषें सिर्फ किन लोगों को मिलेंगी: “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को जिसे तूने भेजा है, जानें।”—यूहन्ना 17:3.
हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी है कि एक इंसान यहोवा और यीशु को अच्छी तरह जाने और उनके साथ एक गहरा रिश्ता कायम करे। उसे हर मामले के बारे में यहोवा और यीशु जैसी सोच रखनी चाहिए। और दूसरों के साथ व्यवहार करते समय यहोवा और उसके बेटे के जैसे गुण दर्शाने की कोशिश करनी चाहिए। और उसे यह बात भी समझनी है कि इंसानों के उद्धार से ज़्यादा ज़रूरी यह है कि परमेश्वर के नाम की महिमा हो। अब यीशु फिर से परमेश्वर की महिमा के बारे में बात करता है:
“जो काम तूने मुझे दिया है उसे पूरा करके मैंने धरती पर तेरी महिमा की है। इसलिए अब हे पिता, मुझे अपने पास वह महिमा दे जो दुनिया की शुरूआत से पहले तेरे पास रहते हुए मुझे मिली थी।” (यूहन्ना 17:4, 5) यीशु पिता से बिनती कर रहा है कि उसकी मौत के बाद वह उसे ज़िंदा करे और स्वर्ग में पहले जैसी महिमा दे।
यीशु यह भी बताता है कि उसने धरती पर कैसी सेवा की है: “मैंने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया है जिन्हें तूने दुनिया में से मुझे दिया है। वे तेरे थे और तूने उन्हें मुझे दिया है और उन्होंने तेरा वचन माना है।” (यूहन्ना 17:6) यीशु ने परमेश्वर का नाम कैसे ज़ाहिर किया? वह प्रचार करते समय यहोवा का नाम ज़बान पर लाता था और उसने यहोवा को अच्छी तरह जानने में प्रेषितों की मदद की। यहोवा में क्या-क्या गुण है और वह लोगों से कितना प्यार करता है और उन पर कैसी कृपा करता है, यह सब जानने में उसने प्रेषितों की मदद की।
प्रेषितों ने यहोवा को जाना है और यह भी समझा है कि यीशु धरती पर क्यों आया और उसने क्या-क्या सिखाया। यीशु नम्रता से कहता है, “जो बातें तूने मुझे बतायी हैं वे मैंने उन तक पहुँचायी हैं। उन्होंने ये बातें स्वीकार की हैं और वे पक्के तौर पर जान गए हैं कि मैं तेरी तरफ से आया हूँ और उन्होंने यकीन किया है कि तूने मुझे भेजा है।”—यूहन्ना 17:8.
इसके बाद यीशु बताता है कि उसके चेलों और दुनिया के लोगों में कितना फर्क है: “मैं दुनिया के लिए बिनती नहीं करता, मगर उनके लिए करता हूँ जिन्हें तूने मुझे दिया है क्योंकि वे तेरे हैं। . . . हे पवित्र पिता, अपने नाम की खातिर जो तूने मुझे दिया है, उनकी देखभाल कर ताकि वे भी एक हों जैसे हम एक हैं। . . . मैंने उनकी हिफाज़त की और उनमें से एक भी नाश नहीं हुआ, सिर्फ विनाश का बेटा नाश हुआ।” यह “विनाश का बेटा” यहूदा इस्करियोती है जो यीशु को पकड़वाने की कोशिश में लगा हुआ है।—यूहन्ना 17:9-12.
फिर यीशु प्रार्थना में कहता है, ‘दुनिया ने उनसे नफरत की है। मैं तुझसे यह बिनती नहीं करता कि तू उन्हें दुनिया से निकाल ले मगर यह कि शैतान की वजह से उनकी देखभाल कर। वे दुनिया के नहीं हैं, ठीक जैसे मैं दुनिया का नहीं हूँ।’ (यूहन्ना 17:14-16) प्रेषित और बाकी चेले दुनिया में रहते हैं यानी इंसानों के समाज में जिस पर शैतान राज करता है। मगर उन्हें दुनिया और उसकी बुराई से दूर रहना है। इसका क्या मतलब है?
उन्हें उन सच्चाइयों के मुताबिक जीना है जो इब्रानी शास्त्र में लिखी हैं और जो यीशु ने सिखायी हैं। तब वे पवित्र बने रहेंगे यानी परमेश्वर की सेवा करने के लिए दुनिया से अलग रहेंगे। यीशु प्रार्थना करता है, “सच्चाई से उन्हें पवित्र कर। तेरा वचन सच्चा है।” (यूहन्ना 17:17) बाद में कुछ प्रेषित परमेश्वर की प्रेरणा से कुछ किताबें लिखेंगे। जो कोई इब्रानी शास्त्र और प्रेषितों की लिखी किताबों के मुताबिक जीएगा वही पवित्र रह सकेगा।
कुछ समय बाद और भी कई लोग सच्चाई को स्वीकार करेंगे। इसलिए यीशु न सिर्फ 11 प्रेषितों के लिए बल्कि उन सबके लिए प्रार्थना करता है जो बाद में प्रेषितों की ‘बातें मानकर यीशु पर विश्वास करेंगे।’ वह प्रार्थना करता है कि “वे सभी एक हो सकें। ठीक जैसे हे पिता, तू मेरे साथ एकता में है और मैं तेरे साथ एकता में हूँ, उसी तरह वे भी हमारे साथ एकता में हों।” (यूहन्ना 17:20, 21) यहोवा और यीशु एक ही शख्स नहीं हैं, बल्कि वे हर बात में एक हैं। यीशु प्रार्थना करता है कि उसके चेलों में भी इसी तरह एकता हो।
कुछ देर पहले यीशु ने पतरस और दूसरे चेलों को बताया था कि वह उनके लिए स्वर्ग में जगह तैयार करने जा रहा है। (यूहन्ना 14:2, 3) अब यीशु प्रार्थना में यही बात कहता है, “हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तूने मुझे दिया है वे भी मेरे साथ वहाँ रहें जहाँ मैं रहूँगा ताकि वे मेरी महिमा देखें जो तूने मुझे दी है, क्योंकि तूने दुनिया की शुरूआत से भी पहले मुझसे प्यार किया।” (यूहन्ना 17:24) यीशु बता रहा है कि बहुत पहले यानी आदम और हव्वा के बच्चे होने से पहले परमेश्वर ने अपने एकलौते बेटे से प्यार किया था और वही यीशु मसीह बनकर धरती पर आया।
प्रार्थना के आखिर में यीशु फिर से पिता के नाम के बारे में बताता है। वह यह भी कहता है कि परमेश्वर प्रेषितों से और उन सबसे कितना प्यार करता है जो “सच्चाई” को स्वीकार करेंगे। वह कहता है, “मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है और आगे भी बताऊँगा ताकि जो प्यार तूने मुझसे किया, वह उनमें भी हो और मैं उनके साथ एकता में रहूँ।”—यूहन्ना 17:26.
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यीशु बहुत दुखी है और प्रार्थना करता हैयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 123
यीशु बहुत दुखी है और प्रार्थना करता है
मत्ती 26:30, 36-46 मरकुस 14:26, 32-42 लूका 22:39-46 यूहन्ना 18:1
यीशु गतसमनी बाग में है
उसका पसीना खून की बूँदें बनकर गिरता है
यीशु प्रेषितों के साथ प्रार्थना कर चुका है। इसके बाद वे ‘परमेश्वर की तारीफ में गीत गाते हैं और जैतून पहाड़ की तरफ निकल पड़ते हैं।’ (मरकुस 14:26) वे गतसमनी बाग की तरफ जाते हैं जहाँ यीशु अकसर जाया करता था।
वहाँ पहुँचने के बाद यीशु आठ चेलों से कहता है, “मैं वहाँ प्रार्थना करने जा रहा हूँ, तुम यहीं बैठे रहना।” फिर वह अपने साथ पतरस, याकूब और यूहन्ना को लेकर बाग के बहुत अंदर तक जाता है। उसका मन बेचैन है और वह दुख से बेहाल है। वह उन तीनों से कहता है, “मेरा मन बहुत दुखी है, यहाँ तक कि मेरी मरने जैसी हालत हो रही है। तुम यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।”—मत्ती 26:36-38.
वह उन तीनों से थोड़ी दूर जाता है और ज़मीन पर गिरकर प्रार्थना करता है, “हे पिता, तेरे लिए सबकुछ मुमकिन है। यह प्याला मेरे सामने से हटा दे। मगर फिर भी जो मैं चाहता हूँ वह नहीं, बल्कि वही हो जो तू चाहता है।” (मरकुस 14:35, 36) यीशु ने ऐसा क्यों कहा? क्या वह इंसानों के लिए फिरौती नहीं देना चाहता? ऐसी बात नहीं है।
जब यीशु स्वर्ग में था, तो उसने देखा कि रोमी लोग अपराधियों को कैसे तड़पा-तड़पाकर मार डालते हैं। अब वह धरती पर एक इंसान है और वह यह सोचकर घबराया हुआ है कि उसे कितना दर्द सहना पड़ेगा। उसे सबसे ज़्यादा इस बात का दुख है कि उस पर परमेश्वर की निंदा करने का इलज़ाम लगाया जाएगा। इससे उसके पिता के नाम की बदनामी होगी! कुछ ही घंटों में उसे काठ पर लटकाकर मार डाला जाएगा मानो वह बहुत बड़ा अपराधी है। यह सब सोचकर वह बहुत दुखी है।
यीशु बहुत देर प्रार्थना करने के बाद उन तीन प्रेषितों के पास आता है और देखता है कि वे सो रहे हैं। यीशु पतरस से कहता है, “क्या तुम लोग मेरे साथ थोड़ी देर के लिए भी नहीं जाग सके? जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” यीशु उनकी हालत समझ सकता है। वे बहुत परेशान हैं और ऊपर से आधी रात हो चुकी है। यीशु उनसे कहता है, “दिल तो बेशक तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।”—मत्ती 26:40, 41.
यीशु फिर से थोड़ी दूर जाकर प्रार्थना करता है। वह परमेश्वर से बिनती करता है कि हो सके तो यह “प्याला” उसके सामने से हटा दे। जब वह तीन प्रेषितों के पास आता है, तो देखता है कि वे तीनों फिर से सो रहे हैं। उन्हें जागते रहना था और प्रार्थना करनी थी कि वे परीक्षा में न पड़ें। जब यीशु उनसे पूछता है कि वे क्यों सो रहे हैं, तो वे जवाब नहीं दे पाते। (मरकुस 14:40) अब यीशु तीसरी बार जाता है और घुटनों के बल गिरकर प्रार्थना करता है।
यीशु सबसे ज़्यादा इस बात से दुखी है कि उसे एक अपराधी की मौत दी जाएगी और इससे उसके पिता की बदनामी होगी। यहोवा अपने बेटे की प्रार्थना सुनता है और एक स्वर्गदूत को उसकी हिम्मत बँधाने भेजता है। इसके बाद भी यीशु अपने पिता से गिड़गिड़ाकर मिन्नतें करता रहता है। यीशु का दुख सच में बरदाश्त से बाहर है, क्योंकि उस पर बहुत भारी ज़िम्मेदारी है। यह उसकी और सभी इंसानों की ज़िंदगी का सवाल है। अगर वह वफादार रहेगा, तो उसे और उस पर विश्वास करनेवाले सब लोगों को हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। उसका मन दुख और चिंता से इतना छलनी हो जाता है कि ‘उसका पसीना खून की बूँदें बनकर ज़मीन पर गिरता है।’—लूका 22:44.
अब यीशु तीसरी बार प्रेषितों के पास आता है और देखता है कि वे सो रहे हैं। वह उनसे कहता है, “तुम ऐसे वक्त में सो रहे हो और आराम कर रहे हो! देखो, वह घड़ी आ गयी है कि इंसान के बेटे के साथ विश्वासघात करके उसे पापियों के हाथ सौंप दिया जाए। उठो, आओ चलें। देखो, मुझसे गद्दारी करनेवाला पास आ गया है।”—मत्ती 26:45, 46.
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मसीह के साथ विश्वासघातयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 124
मसीह के साथ विश्वासघात
मत्ती 26:47-56 मरकुस 14:43-52 लूका 22:47-53 यूहन्ना 18:2-12
यहूदा यीशु के साथ विश्वासघात करता है
पतरस एक आदमी का कान काट देता है
यीशु को गिरफ्तार कर लिया जाता है
रात काफी बीत चुकी है। प्रधान याजकों ने यहूदा से कहा था कि अगर वह यीशु को पकड़वाएगा, तो वे उसे 30 चाँदी के सिक्के देंगे। इसलिए यहूदा प्रधान याजकों और फरीसियों की एक बड़ी भीड़ को लेकर यीशु को ढूँढ़ने निकल पड़ा है। उनके साथ कई रोमी सैनिक और एक सेनापति भी है और वे सब हथियार लिए हुए हैं।
यहूदा को यह भीड़ कहाँ से मिली? जब यीशु ने फसह के खाने के बाद यहूदा को जाने के लिए कहा, तो यहूदा शायद सीधे प्रधान याजकों के पास गया। (यूहन्ना 13:27) फिर प्रधान याजकों ने पहरेदारों और सैनिकों की एक टोली इकट्ठी की। यहूदा इन सबको लेकर पहले उस कमरे में गया होगा जहाँ यीशु और उसके प्रेषितों ने फसह मनाया था। जब यीशु वहाँ नहीं मिला, तो उन्होंने किदरोन घाटी पार की और इस बाग की तरफ चल पड़े। इस भीड़ के पास हथियारों के अलावा दीपक और मशालें भी हैं। उन्होंने ठान लिया है कि वे यीशु को ढूँढ़कर ही रहेंगे।
यहूदा इस पूरी टोली को लेकर जैतून पहाड़ चढ़ता है। उसे पक्का मालूम है कि यीशु कहाँ मिलेगा। पिछले हफ्ते तकरीबन हर दिन यीशु और उसके प्रेषित बैतनियाह से यरूशलेम और यरूशलेम से बैतनियाह जाया करते थे और रास्ते में गतसमनी बाग में थोड़ी देर रुककर आराम करते थे। यहूदा जानता है कि यीशु ज़रूर यहीं होगा। लेकिन सैनिक यीशु को पहचानेंगे कैसे? उन्होंने शायद यीशु को पहले कभी नहीं देखा था। ऊपर से यह रात का वक्त है और यीशु इस बाग में जैतून के पेड़ों के बीच में कहीं होगा। इसलिए यहूदा उन्हें यीशु को पहचानने की एक निशानी बताता है: “जिसे मैं चूमूँगा, वही है। उसे गिरफ्तार कर लेना और सावधानी से ले जाना।”—मरकुस 14:44.
यहूदा टोली को लेकर बाग के अंदर तक जाता है। जब वह यीशु और प्रेषितों को देखता है, तो वह सीधे यीशु के पास जाकर कहता है, “नमस्कार, रब्बी!” फिर वह यीशु को प्यार से चूमता है। यीशु उससे कहता है, “तू यहाँ किस इरादे से आया है?” (मत्ती 26:49, 50) फिर यीशु खुद अपने सवाल का जवाब देता है, “यहूदा, क्या तू इंसान के बेटे को चूमकर उसे पकड़वा रहा है?” (लूका 22:48) यीशु इस धोखेबाज़ से और कुछ नहीं कहता।
फिर यीशु लोगों की भीड़ से कहता है, “तुम किसे ढूँढ़ रहे हो?” वे कहते हैं, “यीशु नासरी को।” यीशु बिना डरे कहता है, “मैं वही हूँ।” (यूहन्ना 18:4, 5) उन्हें समझ में नहीं आता कि क्या हो रहा है। वे पीछे हट जाते हैं और ज़मीन पर गिर पड़ते हैं।
यीशु चाहता तो मौका देखकर भाग सकता था, क्योंकि रात के अँधेरे में कोई उसे पकड़ नहीं पाता। मगर यीशु ऐसा नहीं करता, बल्कि उनसे फिर से पूछता है कि वे किसे ढूँढ़ रहे हैं। वे कहते हैं, “यीशु नासरी को।” तब वह कहता है, “मैं तुमसे कह चुका हूँ कि मैं वही हूँ। अगर तुम मुझे ढूँढ़ रहे हो, तो इन्हें जाने दो।” इस मुश्किल घड़ी में भी यीशु को वह बात याद है जो उसने पहले कही थी कि वह चेलों में से एक को भी नहीं खोना चाहता। (यूहन्ना 6:39; 17:12) यीशु ने वाकई अपने सभी वफादार प्रेषितों की हिफाज़त की है। और उसने उनमें से एक को भी नहीं खोया, सिवाय ‘विनाश के बेटे’ यानी यहूदा के। (यूहन्ना 18:7-9) अब वह भीड़ से भी यही कहता है कि वे चेलों को जाने दें।
अब सैनिक यीशु की तरफ बढ़ते हैं। प्रेषित समझ जाते हैं कि वे उसे पकड़ लेंगे, इसलिए वे उससे पूछते हैं, “प्रभु, क्या हम उन पर तलवार चलाएँ?” (लूका 22:49) यीशु के कुछ बोलने से पहले पतरस मलखुस नाम के आदमी पर तलवार चला देता है जिससे उसका दायाँ कान कट जाता है। यह आदमी महायाजक का एक दास है।
यीशु मलखुस का कान छूकर उसे ठीक कर देता है। फिर वह पतरस को एक ज़रूरी सीख देता है: “अपनी तलवार म्यान में रख ले, इसलिए कि जो तलवार उठाते हैं वे तलवार से ही नाश किए जाएँगे।” यीशु गिरफ्तार होने के लिए तैयार है। वह कहता है कि अगर वह पकड़ा नहीं जाएगा, तो ‘शास्त्र में लिखी बात कैसे पूरी होगी कि यह सब होना ज़रूरी है?’ (मत्ती 26:52, 54) वह कहता है, “पिता ने जो प्याला मुझे दिया है, क्या वह मुझे नहीं पीना चाहिए?” (यूहन्ना 18:11) यीशु परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना चाहता है, फिर चाहे उसे मरना पड़े।
यीशु भीड़ से पूछता है, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे गिरफ्तार करने आए हो, मानो मैं कोई लुटेरा हूँ? मैं हर दिन मंदिर में बैठकर सिखाया करता था, फिर भी तुमने मुझे हिरासत में नहीं लिया। मगर यह सब इसलिए हुआ है ताकि भविष्यवक्ताओं ने जो लिखा है वह पूरा हो।”—मत्ती 26:55, 56.
फिर सैनिकों की टोली और सेनापति और यहूदियों के पहरेदार यीशु को पकड़ लेते हैं और उसे बाँध देते हैं। यह देखकर प्रेषित भाग जाते हैं। मगर “एक नौजवान” भीड़ में ही रह जाता है और यीशु के पीछे-पीछे जाने लगता है। (मरकुस 14:51) यह शायद मरकुस नाम का चेला है। लोग उसे पहचान लेते हैं और उसे पकड़ने की कोशिश करते हैं, मगर वह उनसे बचकर भाग जाता है। तब उसका मलमल का कपड़ा छूट जाता है।
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पहले हन्ना के पास, फिर कैफा के पासयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 125
पहले हन्ना के पास, फिर कैफा के पास
मत्ती 26:57-68 मरकुस 14:53-65 लूका 22:54, 63-65 यूहन्ना 18:13, 14, 19-24
यीशु को हन्ना के पास ले जाया जाता है
महासभा यीशु पर गैर-कानूनी मुकद्दमा चलाती है
यीशु को हन्ना के पास ले जाया जाता है। वह उन दिनों महायाजक रह चुका था जब यीशु ने 12 साल की उम्र में मंदिर में अपने सवालों से शिक्षकों को हैरान कर दिया था। (लूका 2:42, 47) हन्ना के कुछ बेटे बाद में महायाजक बने। फिलहाल उसका दामाद कैफा महायाजक है।
जब तक हन्ना यीशु से सवाल करता है, तब तक कैफा महासभा की अदालत बुला लेता है। यह अदालत 71 लोगों से बनी है। इसमें महायाजक कैफा और वे लोग भी हैं जो पहले महायाजक रह चुके थे।
हन्ना यीशु से “उसके चेलों और उसकी शिक्षाओं के बारे में कुछ सवाल” करता है। तब यीशु उससे कहता है, “मैंने पूरी दुनिया के सामने बात की है। मैं हमेशा सभा-घर और मंदिर में सिखाया करता था, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठा होते हैं और मैंने कुछ भी छिपकर नहीं कहा। तो फिर तू मुझसे क्यों पूछता है? जिन्होंने मेरी बातें सुनी हैं उनसे पूछ कि मैंने उनसे क्या-क्या कहा था। देख! ये जानते हैं कि मैंने क्या बताया था।”—यूहन्ना 18:19-21.
तब वहाँ खड़े पहरेदारों में से एक आदमी यीशु के मुँह पर थप्पड़ मारता है और उसे डाँटता है, “क्या प्रधान याजक को जवाब देने का यह तरीका है?” मगर यीशु जानता है कि उसने कुछ गलत नहीं कहा है। वह कहता है, “अगर मैंने कुछ गलत कहा, तो मुझे बता। लेकिन अगर मैंने सही कहा, तो तूने मुझे क्यों मारा?” (यूहन्ना 18:22, 23) फिर हन्ना यीशु को अपने दामाद कैफा के पास भेज देता है।
अब तक कैफा के घर महासभा के सब लोग जमा हो चुके हैं। महायाजक, लोगों के मुखिया, शास्त्री सब आ गए हैं। ये सब जानते हैं कि फसह की रात मुकद्दमा चलाना कानून के खिलाफ है। फिर भी वे अपना मकसद पूरा करने के लिए ऐसा करते हैं।
यह अदालत न्याय नहीं कर रही है। जब यीशु ने लाज़र को ज़िंदा किया, तो इस महासभा ने फैसला कर लिया था कि यीशु को मार डालना चाहिए। (यूहन्ना 11:47-53) और अभी कुछ दिन पहले धर्म गुरुओं ने मिलकर साज़िश की कि वे यीशु को पकड़कर मार डालेंगे। (मत्ती 26:3, 4) तो हम देख सकते हैं कि यीशु पर मुकद्दमा शुरू होने से पहले ही उसे मानो मौत की सज़ा सुना दी गयी।
प्रधान याजक और महासभा के बाकी सदस्य रात को मुकद्दमा चलाकर एक तो गलती कर रहे हैं और ऊपर से वे यीशु के खिलाफ झूठी गवाही देने के लिए कुछ लोगों को बुलाते हैं। बहुत-से गवाह आते हैं, मगर कोई कुछ कहता है तो कोई कुछ। आखिर में दो लोग आते हैं और कहते हैं, “हमने इसे यह कहते सुना है कि मैं हाथ के बनाए इस मंदिर को ढा दूँगा और तीन दिन के अंदर दूसरा मंदिर खड़ा कर दूँगा जो हाथों से नहीं बना होगा।” (मरकुस 14:58) मगर इनके बयान भी एक-दूसरे से मेल नहीं खाते।
कैफा यीशु से पूछता है, “क्या तू जवाब में कुछ नहीं कहेगा? क्या तू सुन नहीं रहा कि ये तुझ पर क्या-क्या इलज़ाम लगा रहे हैं?” (मरकुस 14:60) सारे गवाह यीशु पर झूठे इलज़ाम लगा रहे हैं और उनकी बातें एक-दूसरे से नहीं मिलतीं, इसलिए यीशु चुप रहता है। तब महायाजक कैफा दूसरी चाल चलता है।
कैफा जानता है कि अगर कोई कहे कि वह परमेश्वर का बेटा है, तो यहूदी उसे बरदाश्त नहीं करेंगे। एक बार जब यीशु ने कहा कि परमेश्वर उसका पिता है, तो यहूदी कहने लगे कि यह “खुद को परमेश्वर के बराबर ठहरा रहा” है। (यूहन्ना 5:17, 18; 10:31-39) तब उन्होंने उसे मार डालने की कोशिश की थी। कैफा जानता है कि यह एक नाज़ुक मामला है, इसलिए वह यीशु से कहता है, “मैं तुझे जीवित परमेश्वर की शपथ दिलाता हूँ, हमें बता, क्या तू परमेश्वर का बेटा मसीह है?” (मत्ती 26:63) यीशु ने पहले भी कहा था कि वह परमेश्वर का बेटा है। (यूहन्ना 3:18; 5:25; 11:4) इसलिए अब वह यह बात कहने से इनकार नहीं करता क्योंकि अगर वह इनकार करेगा, तो इसका यह मतलब होगा कि वह सच में परमेश्वर का बेटा नहीं है और मसीहा भी नहीं है। इसलिए यीशु कहता है, “हाँ मैं हूँ। और तुम लोग इंसान के बेटे को शक्तिशाली परमेश्वर के दाएँ हाथ बैठा और आकाश के बादलों के साथ आता देखोगे।”—मरकुस 14:62.
यह सुनते ही कैफा दिखावा करते हुए अपने कपड़े फाड़ता है और कहता है, “इसने परमेश्वर की निंदा की है! अब हमें और गवाहों की क्या ज़रूरत है? देखो! तुम लोगों ने ये निंदा की बातें सुनी हैं। तुम्हारी क्या राय है?” तब महासभा फैसला सुनाती है, “यह मौत की सज़ा के लायक है।” यह सरासर अन्याय है!—मत्ती 26:65, 66.
फिर वे यीशु की खिल्ली उड़ाते हैं और उसे घूँसे मारते हैं। कुछ लोग उसे थप्पड़ मारते हैं और उस पर थूकते हैं। फिर वे उसका मुँह ढककर थप्पड़ मारते हैं और कहते हैं, “भविष्यवाणी कर! तुझे किसने मारा?” (लूका 22:64) परमेश्वर के बेटे के साथ कितना बुरा सलूक किया जा रहा है!
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पतरस यीशु को जानने से इनकार करता हैयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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अध्याय 126
पतरस यीशु को जानने से इनकार करता है
मत्ती 26:69-75 मरकुस 14:66-72 लूका 22:54-62 यूहन्ना 18:15-18, 25-27
पतरस कहता है कि वह यीशु को नहीं जानता
गतसमनी बाग में जब यीशु को गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो प्रेषित डर जाते हैं और उसे छोड़कर भाग जाते हैं। लेकिन कुछ देर बाद दो चेले वहाँ जाना चाहते हैं जहाँ यीशु को ले जाया जा रहा है। एक चेला तो पतरस है और दूसरा शायद यूहन्ना है। (यूहन्ना 18:15; 19:35; 21:24) यीशु को हन्ना के पास ले जाया जाता है। जब हन्ना यीशु को महायाजक कैफा के घर भेजता है, तो पतरस और यूहन्ना यीशु के पीछे-पीछे जाते हैं। मगर वे थोड़ी दूर रहते हैं। वे शायद डरे हुए हैं कि कहीं दुश्मन उन्हें भी न मार डालें। पर साथ ही उन्हें चिंता हो रही है कि उनके मालिक यीशु के साथ क्या होगा।
महायाजक कैफा से यूहन्ना की जान-पहचान है, इसलिए उसे कैफा के घर के आँगन तक जाने दिया जाता है। लेकिन पतरस बाहर ही रहता है। फिर यूहन्ना वापस आता है और उस लड़की से बात करता है जो दरबान है। तब वह लड़की पतरस को भी अंदर जाने देती है।
रात का वक्त है और बहुत ठंड है। जो लोग आँगन में हैं, वे आग ताप रहे हैं। पतरस उनके साथ बैठ जाता है और वह भी आग तापने लगता है। वह इस इंतज़ार में है कि यीशु के मुकद्दमे का क्या फैसला होगा। (मत्ती 26:58) आग की रौशनी में वह लड़की पतरस को पहचान लेती है जिसने उसे अंदर आने दिया था। वह उससे कहती है, “तू भी इस आदमी का चेला है न?” (यूहन्ना 18:17) बाकी लोग भी पतरस को पहचान लेते हैं और कहते हैं कि वह यीशु के साथ-साथ रहता था।—मत्ती 26:69, 71-73; मरकुस 14:70.
लेकिन पतरस कहता है, “न तो मैं उसे जानता हूँ न मुझे यह समझ आ रहा है कि तू क्या कह रही है।” (मरकुस 14:67, 68) वह बाहर फाटक तक चला जाता है। वह खुद को ‘कोसता है और कसम खाने लगता है।’ इसका मतलब, अगर उसकी बात झूठ निकले, तो उस पर कोई मुसीबत आ जाए।—मत्ती 26:74.
इस दौरान आँगन के ऊपर कैफा के घर में यीशु का मुकद्दमा चल रहा है। नीचे आँगन में शायद पतरस और दूसरे लोग देख रहे हैं कि गवाहों का आना-जाना लगा हुआ है।
पतरस की बोली से पता चलता है कि वह गलील का रहनेवाला है, इसलिए लोग समझ जाते हैं कि वह झूठ बोल रहा है। वहाँ जो लोग हैं, उनमें से एक आदमी मलखुस का रिश्तेदार है जिसका कान पतरस ने काट दिया था। वह पतरस से कहता है, “क्या मैंने तुझे उसके साथ बाग में नहीं देखा था?” पतरस तीसरी बार कहता है कि वह यीशु को नहीं जानता और तभी एक मुर्गा बाँग देता है। यीशु ने जैसा कहा था, वैसा ही हुआ।—यूहन्ना 13:38; 18:26, 27.
तब यीशु मुड़कर सीधे पतरस को देखता है। यीशु शायद आँगन के ऊपर बरामदे में है। जैसे ही यीशु पतरस को देखता है, पतरस को बहुत बुरा लगता है। उसे याद आता है कि कुछ ही घंटों पहले यीशु ने उस ऊपरी कमरे में क्या कहा था जहाँ उन्होंने फसह मनाया था। पतरस को एहसास होता है कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। उससे बरदाश्त नहीं होता और वह फूट-फूटकर रोने लगता है।—लूका 22:61, 62.
पतरस ने तो पूरे यकीन के साथ कहा था कि वह हर हाल में अपने मालिक का साथ निभाएगा, उसे कभी नहीं छोड़ेगा। तो फिर उसने इतनी बड़ी गलती कैसे कर दी? हम पतरस के हालात समझ सकते हैं। वह उलझन में पड़ गया होगा। यीशु की बातों को तोड़-मरोड़कर उसे एक खूँखार अपराधी बताया जा रहा है। लेकिन वह निर्दोष है। पतरस चाहे तो यीशु के पक्ष में खड़ा रह सकता है, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने यीशु को जानने से इनकार कर दिया जिसके पास “हमेशा की ज़िंदगी की बातें” हैं।—यूहन्ना 6:68.
पतरस के साथ जो हुआ उससे हमें एक सबक मिलता है। एक व्यक्ति का विश्वास चाहे कितना ही मज़बूत हो और वह यहोवा से चाहे कितना भी प्यार करता हो, लेकिन अगर वह परीक्षाओं का सामना करने के लिए तैयार न रहे, तो अचानक कोई परीक्षा आने पर वह गिर सकता है। आइए हम सब इस घटना से सबक लें।
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