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  • पापों को स्वीकार करना जो आध्यात्मिक तौर से स्वस्थ करता है
    प्रहरीदुर्ग—2001 | जून 1
    • परमेश्‍वर से माफी और संगी विश्‍वासियों की संगति से प्रोत्साहन पाकर हम आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हो सकते हैं। जी हाँ, मसीह के छुड़ौती बलिदान के आधार पर एक पश्‍चातापी व्यक्‍ति “[परमेश्‍वर] के . . . अनुग्रह के धन” का अनुभव चख सकता है।—इफिसियों 1:7.

      ‘एक शुद्ध मन और नयी आत्मा’

      दाऊद ने अपने पापों को स्वीकार करने के बाद, हीन भावना को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। अपने पापों को स्वीकार करते हुए जो भजन उसने लिखे थे, उनसे ज़ाहिर होता है कि उसे राहत मिली थी और उसने परमेश्‍वर की सेवा वफादारी से करने का पक्का इरादा कर लिया था। उदाहरण के लिए, ज़रा भजन 32 को देखिए। इसकी पहली आयत में हम पढ़ते हैं: “क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढांपा गया हो।” एक व्यक्‍ति के पाप कितने भी गंभीर क्यों ना हो अगर वह सच्चे दिल से पश्‍चाताप करता है तो उसे खुशी मिल सकती है। इसका एक तरीका है कि अपने किए की पूरी ज़िम्मेदारी लेना, जैसा कि दाऊद ने किया था। (2 शमूएल 12:13) उसने न तो यहोवा के आगे सफाई पेश करने की और ना ही अपने पापों के लिए दूसरों को कसूरवार ठहराने की कोशिश की। पाँचवीं आयत कहती है: “जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपने अपराधों को मान लूंगा; तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।” एक व्यक्‍ति जब सच्चे दिल से अपना पाप स्वीकार करता है तो उसे राहत पहुँचती है, और इसके बाद फिर कभी उसका विवेक उसके पिछले गलत कामों के लिए उसे नहीं कोसता।

      यहोवा से माफी की भीख माँगने के बाद, दाऊद ने बिनती की: “हे परमेश्‍वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्‍न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नये सिरे से उत्पन्‍न कर।” (भजन 51:10) एक “शुद्ध मन” और ‘नयी आत्मा’ की बिनती करने से यह ज़ाहिर होता है कि दाऊद अपने अंदर पाप करने के झुकाव को जानता था। और अपने मन को शुद्ध करने और जीवन की नये सिरे से शुरूआत करने के लिए उसे परमेश्‍वर की मदद की सख्त ज़रूरत थी। खुद पर तरस खाने के बजाय, उसने परमेश्‍वर की सेवा करते रहने की ठान ली। उसने प्रार्थना की: “हे प्रभु, मेरा मुंह खोल दे तब मैं तेरा गुणानुवाद कर सकूंगा।”—भजन 51:15.

      दाऊद का सच्चे दिल से पश्‍चाताप करने और परमेश्‍वर की सेवा करने के पक्के इरादे को देखकर यहोवा की प्रतिक्रिया क्या थी? उसने दाऊद को दिलासा देकर कहा: “मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मति दिया करूंगा।” (भजन 32:8) इस वचन में यहोवा हमें आश्‍वासन देता है कि वह खुद एक पश्‍चातापी की भावनाओं और ज़रूरतों पर ध्यान देता है। यहोवा ने दाऊद को और भी समझ देने

  • पाठकों के प्रश्‍न
    प्रहरीदुर्ग—2001 | जून 1
    • पाठकों के प्रश्‍न

      छुड़ौती बलिदान के आधार पर जब यहोवा पापों को माफ करने के लिए तैयार है तो यह क्यों ज़रूरी है कि मसीही, कलीसिया के प्राचीनों के सामने अपना पाप स्वीकार करें?

      दाऊद और बतशेबा के मामले में साफ दिखाई देता है कि दाऊद के घोर पाप करने के बावजूद भी यहोवा ने उसके पाप को माफ कर दिया था। क्योंकि दाऊद ने सच्चे दिल से पश्‍चाताप किया था। जब भविष्यवक्‍ता नातान उसके पास गया तो दाऊद ने खुलकर अपना पाप स्वीकार किया: “मैं ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।”—2 शमूएल 12:13.

      यहोवा ना सिर्फ एक पापी के दिल से किए हुए पश्‍चाताप को स्वीकार करके उसे माफ करता है, बल्कि आध्यात्मिक तौर पर उसे दोबारा स्वस्थ होने में मदद देने के लिए प्यार भरा प्रबंध भी करता है। इसी तरह की मदद दाऊद को भविष्यवक्‍ता नातान के ज़रिए मिली थी। आज मदद के लिए मसीही कलीसियाओं में, आध्यात्मिक तौर से प्रौढ़ प्राचीन मौजूद हैं। शिष्य याकूब ने कहा: “यदि तुम में कोई [आध्यात्मिक तौर से] रोगी हो, तो कलीसिया के प्राचीनों को बुलाए, और वे प्रभु के नाम से उस पर तेल मल कर उसके लिये प्रार्थना करें। और विश्‍वास की प्रार्थना के द्वारा रोगी बच जाएगा और प्रभु उस को उठाकर खड़ा करेगा; और यदि उस ने पाप भी किए हों, तो उन की भी क्षमा हो जाएगी।”—याकूब 5:14, 15.

      अनुभवी प्राचीन, पश्‍चाताप करनेवाले के दुःख को कम करने के लिए काफी हद तक मदद कर सकते हैं। वे उनके साथ व्यवहार करते वक्‍त यहोवा का अनुकरण करने की पूरी कोशिश करते हैं। वे कभी-भी कठोर नहीं होना चाहते, चाहे उस पापी को कड़ा अनुशासन देने की ज़रूरत ही क्यों न पड़े। इसके

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