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  • “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (1 थिस्सलुनीकियों-प्रकाशितवाक्य)
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“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (1 थिस्सलुनीकियों-प्रकाशितवाक्य)
bsi08-2 पेज 12-13

बाइबल की किताब नंबर 57—फिलेमोन

लेखक: पौलुस

लिखने की जगह: रोम

लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 60-61

“अन्यजातियों के लिए प्रेरित” की यह प्यार-भरी पत्री बड़े ही व्यवहार-कुशलता से लिखी गयी है। और यह आज के मसीहियों के लिए बहुत ही दिलचस्प है। यह पत्री न सिर्फ पौलुस की पत्रियों में से सबसे छोटी है, बल्कि पूरी बाइबल में यह दूसरे और तीसरे यूहन्‍ना के बाद, सबसे छोटी किताब है। इसकी एक और खासियत है कि यह पौलुस का “व्यक्‍तिगत” पत्र था। इसे किसी कलीसिया या ज़िम्मेदार अध्यक्ष को नहीं, बल्कि एक मसीही को लिखा गया था। उसका नाम फिलेमोन था और वह पौलुस का दोस्त था। इस पत्री में पौलुस ने एक ज़रूरी मसले पर उससे बात की। ऐसा मालूम होता है कि फिलेमोन एक रईस मसीही था और एशिया माइनर के बीचों-बीच बसे फ्रूगिया प्रांत के कुलुस्से शहर में रहता था।—रोमि. 11:13.

2 यह साफ ज़ाहिर है कि इस पत्री को किस मकसद से लिखा गया था। रोम में अपनी पहली कैद के दौरान (सा.यु. 59-61) पौलुस को परमेश्‍वर के राज्य के बारे में प्रचार करने की खुली छूट थी। इस वजह से उसने कई लोगों को सुसमाचार सुनाया, जिनमें से एक उनेसिमुस था। वह फिलेमोन का गुलाम था और उसके घर से फरार हो गया था। लेकिन सुसमाचार सुनने के बाद उनेसिमुस मसीही बना और उसकी रज़ामंदी से पौलुस ने उसे उसके मालिक के पास वापस भेजने का फैसला किया। इसी दरमियान पौलुस ने इफिसुस और कुलुस्से की कलीसियाओं को भी पत्रियाँ लिखीं। इनमें उसने मसीही दासों और उनके मालिकों को बढ़िया नसीहत दी कि उन्हें एक-दूसरे के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए। (इफि. 6:5-9; कुलु. 3:22-4:1) लेकिन फिर भी पौलुस ने फिलेमोन को एक निजी खत लिखना ज़रूरी समझा, ताकि वह उनेसिमुस की खातिर फिलेमोन से गुज़ारिश कर सके। आम तौर पर पौलुस अपनी पत्रियाँ खुद नहीं लिखता था, मगर यह पत्री उसने खुद अपने हाथ से लिखी थी। (फिले. 19) इस वजह से उसकी गुज़ारिश और भी दमदार साबित हुई।

3 यह पत्री शायद सा.यु. 60-61 में लिखी गयी थी। ऐसा क्यों कहा जा सकता है? क्योंकि पौलुस को रोम में रहते वक्‍त लोगों को मसीही बनाने में थोड़ा-बहुत समय तो लगा ही होगा। इसके अलावा, आयत 22 से पता चलता है कि वह अपनी रिहाई की उम्मीद कर रहा था। इससे हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि जब पौलुस ने यह पत्री लिखी, तब उसे कैद में रहे काफी समय हो गया था। ऐसा मालूम होता है कि फिलेमोन को, साथ ही इफिसुस और कुलुस्से की कलीसियाओं को लिखी पत्रियाँ, तखिकुस और उनेसिमुस के हाथ भिजवायी गयी थीं।—इफि. 6:21, 22; कुलु. 4:7-9.

4 फिलेमोन की पहली आयत से साफ ज़ाहिर है कि पौलुस ही इसका लेखक है, क्योंकि इसमें उसके नाम का ज़िक्र आता है। ऑरिजन और टर्टलियन भी पौलुस को इसका लेखक मानते थे।a पत्री की सच्चाई इस बात से भी पुख्ता होती है कि सा.यु. दूसरी सदी के मूराटोरी खंड में यह पौलुस की बाकी पत्रियों में शुमार है।

क्यों फायदेमंद है

7 यह पत्री दिखाती है कि पौलुस इस बारे में प्रचार नहीं कर रहा था कि “सामाजिक समस्याओं का हल” कैसे किया जा सकता है। और ना ही वह उस ज़माने की व्यवस्था को बदलने और गुलामी जैसी प्रथाओं को मिटाने की कोशिश कर रहा था। उसने तो मसीही गुलामों को भी आज़ादी दिलाने में अपनी मन-मरज़ी नहीं की। इसके बजाय उसने उनेसिमुस को वापस अपने मालिक फिलेमोन के पास भेजा। इसके लिए उनेसिमुस को रोम से कुलुस्से तक का लंबा सफर यानी 1,400 किलोमीटर की दूरी तय करनी थी। इस तरह पौलुस ने दिखाया कि उसकी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी काम क्या था। वह था, एक प्रेरित के नाते ‘परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करना और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाते रहना।’—प्रेरि. 28:31; फिले. 8, 9.

8 फिलेमोन को लिखी पत्री से पता चलता है कि पहली सदी के मसीही, प्यार और एकता की मज़बूत डोरी से बँधे हुए थे। वे एक-दूसरे को “भाई” और “बहन” कहकर बुलाते थे। (फिले. 2, 20) इस पत्री से हम यह भी सीखते हैं कि अपने भाइयों के साथ पेश आते वक्‍त, हम मसीही उसूलों को किन तरीकों से लागू कर सकते हैं। पौलुस की पत्री से हमें उसके बारे में भी कई बातें पता चलती हैं। जैसे, वह भाइयों से प्यार करता था, नागरिकों के अधिकार और दूसरों की संपत्ति का आदर करता था। साथ ही, वह बड़ा व्यवहार-कुशल था और उसकी नम्रता वाकई काबिले-तारीफ थी। पौलुस चाहता तो एक प्रेरित होने के नाते फिलेमोन पर अपना अधिकार जता सकता था और उसे उनेसिमुस को माफ करने का हुक्म दे सकता था। लेकिन पौलुस ने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, उसने नम्रता से अपनी दोस्ती और मसीही प्यार का वास्ता देकर फिलेमोन से गुज़ारिश की कि वह उनेसिमुस को वापस कबूल कर ले। पौलुस जिस व्यवहार-कुशलता के साथ फिलेमोन से पेश आया, उससे आज मसीही अध्यक्षों को अच्छी सीख मिलती है।

9 पौलुस को फिलेमोन से उम्मीद थी कि वह उसकी गुज़ारिश मानेगा। अगर फिलेमोन उसकी बात मानता, तो वह मत्ती 6:14 में कही यीशु की और इफिसियों 4:32 में कही पौलुस की सलाह पर चल रहा होता। आज हम मसीहियों से भी उम्मीद की जाती है कि हम उन भाइयों के साथ प्यार से पेश आएँ और उन्हें माफ करें, जिन्होंने हमारा दिल दुखाया है। क्या यह कोई मुश्‍किल काम है? ज़रा फिलेमोन के बारे में सोचिए। उसे अपने गुलाम पर पूरा अधिकार था और उसे कड़ी सज़ा देने की कानूनी छूट थी। ऐसे में भी, अगर फिलेमोन अपने गुलाम को माफ कर सकता था, तो क्या हम अपने भाइयों को माफ नहीं कर सकते?

10 इस पत्री से साफ ज़ाहिर होता है कि यहोवा की पवित्र शक्‍ति ज़बरदस्त तरीके से काम करती है। वह कैसे? इसकी बदौलत ही पौलुस एक नाज़ुक मसले को लाजवाब तरीके से सुलझा पाया। उसने अपने साथी मसीहियों को जो हमदर्दी और कोमल स्नेह दिखाया और उन पर जो भरोसा रखा, उससे भी पवित्र शक्‍ति के काम करने का सबूत मिला। पवित्र शक्‍ति के काम करने का सबूत हम इस बात से भी देख सकते हैं कि बाइबल की दूसरी किताबों की तरह फिलेमोन को लिखी पत्री भी मसीही सिद्धांत सिखाती है और मसीही एकता का बढ़ावा देती है। साथ ही, यह “पवित्र लोगों” के बीच पाए जानेवाले प्यार और विश्‍वास का गुणगान करती है। ये वे लोग हैं, जो परमेश्‍वर के राज्य की आस लगाए हुए हैं और अपने चालचलन में यहोवा की कृपा ज़ाहिर करते हैं।—आयत 4.

[फुटनोट]

a दी इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया, भाग 3, सन्‌ 1986, जी. डब्ल्यू ब्रामिली द्वारा संपादित, पेज 831.

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