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सृष्टि या विकासवाद—भाग 1: परमेश्वर पर क्यों विश्वास करें?नौजवानों के सवाल
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नौजवानों के सवाल
सृष्टि या विकासवाद?—भाग 1: परमेश्वर पर क्यों विश्वास करें?
सृष्टि या विकासवाद?
क्या आप मानते हैं कि परमेश्वर ने सबकुछ बनाया है? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं जो ऐसा सोचते हैं। ऐसे बहुत-से जवान (और बड़े लोग) हैं जो आपकी तरह मानते हैं कि सबकुछ परमेश्वर ने बनाया है। लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि जीवन और विश्व अपने आप वजूद में आया है, यानी इन्हें किसी परमेश्वर ने नहीं बनाया।
क्या आप जानते हैं? परमेश्वर को माननेवाले और विकासवाद को माननेवाले, दोनों ही किस्म के लोग बिना हिचकिचाए बताते हैं कि वे क्या मानते हैं मगर वे यह नहीं जानते कि वे ऐसा क्यों मानते हैं।
कुछ लोग जो मानते हैं कि परमेश्वर ने सृष्टि की है, वे बस इसलिए ऐसा मानते हैं क्योंकि उन्हें चर्च में ऐसा सिखाया गया है।
बहुत-से लोग जो मानते हैं कि सबकुछ अपने आप विकसित होकर आ गया, वे बस इसलिए ऐसा मानते हैं क्योंकि उन्हें स्कूल में ऐसा सिखाया गया है।
इस श्रृंखला के लेख इस बात पर आपका विश्वास मज़बूत करेंगे कि परमेश्वर ने ही सबकुछ बनाया है। तब आप यह बात दूसरों को भी अच्छी तरह बता पाएँगे। मगर सबसे पहले आपको खुद से यह सवाल करना है:
मैं परमेश्वर पर क्यों विश्वास करता हूँ?
खुद से यह सवाल पूछना क्यों ज़रूरी है? क्योंकि शास्त्र आपको बढ़ावा देता है कि आप अपने दिमाग का यानी अपनी “सोचने-समझने की शक्ति” का इस्तेमाल करें। (रोमियों 12:1) इसका मतलब यह है कि आपको परमेश्वर पर सिर्फ इसलिए विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि
आप ऐसा महसूस करते हैं (मुझे बस लगता है कि दुनिया को चलानेवाली कोई बड़ी शक्ति ज़रूर है)
आप पर दूसरों का असर हुआ है (मैं ऐसे इलाके में रहता हूँ जहाँ लोग बहुत धार्मिक हैं)
आप पर दूसरों का दबाव है (मेरे मम्मी-पापा ने बचपन से मुझे परमेश्वर पर विश्वास करना सिखाया)
इसके बजाय आपको खुद इस बात का यकीन होना चाहिए कि परमेश्वर है और ऐसा मानने के लिए आपके पास वाजिब कारण भी होने चाहिए।
तो सोचिए कि क्या बात आपको यकीन दिलाती है कि परमेश्वर वजूद में है? अँग्रेज़ी वर्कशीट “मैं परमेश्वर पर क्यों विश्वास करता हूँ?” आपको अपना विश्वास मज़बूत करने में मदद देगा। इसके अलावा, जब आप जानेंगे कि दूसरे जवान क्यों परमेश्वर पर विश्वास करते हैं तो आप बहुत कुछ सीख पाएँगे।
“क्लास में जब टीचर समझाती है कि हमारा शरीर किस तरह काम करता है, तो मेरे मन में शक की कोई गुंजाइश नहीं रहती कि परमेश्वर सचमुच है। शरीर के हर अंग का अपना एक काम होता है और उस काम में भी बहुत-सी बारीकियाँ होती हैं। शरीर के अंग अपना-अपना काम करते जाते हैं और कई बार हमें उनका एहसास तक नहीं होता। वाकई, हमारे शरीर की रचना पर गौर करने से दिमाग चकरा जाता है!—तेरेसा।
“जब मैं एक गगनचुंबी इमारत, एक बड़ा जहाज़ या एक कार देखता हूँ, तो मैं खुद से पूछता हूँ, ‘इसे किसने बनाया?’ मिसाल के लिए, अगर कार की बात करें तो उसे बनाने के लिए बुद्धिमान लोगों की ज़रूरत होती है क्योंकि कार के न जाने कितने छोटे-छोटे पुरज़े होते हैं और उन सबको सही जगह लगाना होता है ताकि कार चल सके। जैसे कार को कोई-न-कोई बनाता है, उसी तरह इंसानों को भी बनानेवाला कोई ज़रूर है।—रिचर्ड।
“इस विश्व के छोटे-से हिस्से को समझने में ही जब दुनिया के बड़े-बड़े बुद्धिमान लोगों को सैकड़ों साल लगे, तो क्या यह विश्व बिना किसी बुद्धिमान व्यक्ति के अपने आप वजूद में आ गया होगा? ऐसा कहना कितना बेतुका होगा!”—कैरन।
“मैंने जितना ज़्यादा विज्ञान की पढ़ाई की, मुझे उतना ज़्यादा एहसास होने लगा कि विकासवाद के सिद्धांत पर यकीन नहीं किया जा सकता। मिसाल के लिए, मैंने इस बारे में सोचा कि कुदरत की हर चीज़ कितनी सटीक है और इंसान कितना अनोखा है। जैसे, सिर्फ इंसानों में ही यह जानने का एहसास रहता है कि हम कौन हैं, कैसे वजूद में आए और हमारा भविष्य कैसा होगा। विकासवाद का सिद्धांत इन सभी सवालों के जवाब जानवरों के बरताव के आधार पर देने की कोशिश करता है, मगर यह सिद्धांत अब तक इस सवाल का जवाब नहीं दे सका है कि हम इंसान जानवरों से अलग क्यों हैं। मेरे हिसाब से तो एक सृष्टिकर्ता है, यह मानने के लिए इतना विश्वास नहीं चाहिए जितना कि विकासवाद के सिद्धांत को मानने के लिए चाहिए।”—एंथनी।
दूसरों को समझाना कि मैं क्यों ऐसा मानता हूँ
अगर आपके क्लास के बच्चे आपका मज़ाक उड़ाते हैं कि आप एक परमेश्वर पर विश्वास करते हैं जबकि वह दिखायी नहीं देता, तो आप क्या कर सकते हैं? अगर वे कहते हैं कि विज्ञान ने “साबित” कर दिया है कि विकासवाद सही है, तो आप क्या कर सकते हैं?
सबसे पहले तो भरोसा रखिए कि आप जो मानते हैं वह सही है। दूसरे बच्चों से डरिए मत, न ही शर्मिंदा महसूस कीजिए। (रोमियों 1:16) और याद रखिए:
1. आप अकेले नहीं बल्कि बहुत-से लोग आज के ज़माने में भी परमेश्वर पर विश्वास रखते हैं। इनमें कुछ तो बड़े-बड़े मेधावी और जानकार लोग हैं। मिसाल के लिए, कुछ वैज्ञानिक भी मानते हैं कि एक परमेश्वर है।
2. जब लोग कहते हैं कि वे नहीं मानते कि कोई परमेश्वर है तो उनमें से ज़्यादातर लोगों के कहने का मतलब होता है कि वे परमेश्वर जैसे शख्स को समझ नहीं पाते। वे इस बात के कोई सबूत नहीं देते कि परमेश्वर नहीं है। इसके बजाय, वे ऐसे सवाल करते हैं, जैसे “अगर परमेश्वर है तो वह दुख-तकलीफें क्यों आने देता है?” एक तरह से वे सवाल के जवाब में कारण बताने के बजाय अपने जज़्बात ज़ाहिर करते हैं।
3. इंसानों को इस तरह बनाया गया है कि उनमें “परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख” होती है। (मत्ती 5:3) इसका मतलब इंसानों को इस तरह बनाया गया है कि वे परमेश्वर को मानें। इसलिए अगर कोई कहता है कि परमेश्वर नहीं है तो यह समझाना उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह कैसे उस नतीजे पर पहुँचा है। यह आपकी ज़िम्मेदारी नहीं है।—रोमियों 1:18-20.
4. यह मानना हर तरह से सही है कि परमेश्वर है। यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यह बात साबित हो चुकी है कि जीवन अपने आप वजूद में नहीं आ सकता। यह कहने के लिए कोई सबूत नहीं है कि जीवन की शुरूआत अचानक बेजान चीज़ों से हो सकती है।
लेकिन अगर कोई आपसे सवाल करता है कि आप क्यों परमेश्वर को मानते हैं तो आप क्या जवाब दे सकते हैं? जवाब देने के कुछ तरीकों पर गौर कीजिए।
अगर कोई कहता है: “सिर्फ अनपढ़ लोग ही परमेश्वर को मानते हैं।”
आप कह सकते हैं: “क्या आप सचमुच इस सुनी-सुनायी बात पर यकीन करते हैं? मैं यकीन नहीं करता। दरअसल एक सर्वे में 1,600 से ज़्यादा विज्ञान के प्रोफेसरों ने हिस्सा लिया था जो कई नामी विश्व-विद्यालयों से थे। उनमें से एक तिहाई प्रोफेसरों ने कहा कि वे न तो नास्तिक हैं न ही उन्हें परमेश्वर के वजूद पर कोई शक है।a क्या आप कहेंगे कि ये प्रोफेसर अकलमंद नहीं हैं, सिर्फ इसलिए कि वे परमेश्वर को मानते हैं?”
अगर कोई कहता है: “अगर एक परमेश्वर है तो दुनिया में इतनी दुख-तकलीफें क्यों हैं?”
आप कह सकते हैं: “शायद आपके कहने का यह मतलब है कि अगर परमेश्वर है तो वह कुछ करता क्यों नहीं। है ना? [जवाब के लिए रुकिए।] मैंने इस सवाल का जवाब पाया है कि दुनिया में इतनी तकलीफें क्यों हैं। मगर इसका जवाब जानने के लिए हमें बाइबल की कई शिक्षाएँ जाननी होंगी। क्या आप जानना चाहोगे?”
इस श्रृंखला के अगले लेख में समझाया जाएगा कि विकासवाद का सिद्धांत हमारे वजूद से जुड़े सवालों का सही-सही जवाब क्यों नहीं देता।
a जानकारी का स्रोत: सामाजिक विज्ञान खोजबीन परिषद, इलेन हाउवर्ड एकलंड द्वारा “विश्व-विद्यालय के वैज्ञानिकों में धर्म और आध्यात्मिकता,” 5 फरवरी, 2007.
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सृष्टि या विकासवाद—भाग 2: विकासवाद पर सवाल क्यों करें?नौजवानों के सवाल
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नौजवानों के सवाल
सृष्टि या विकासवाद—भाग 2: विकासवाद पर सवाल क्यों करें?
ऐलेक्स बड़ी उलझन में है। वह शुरू से मानता आया है कि एक परमेश्वर है और उसी ने सबकुछ बनाया है। मगर आज उसके बायलॉजी टीचर ने दावे के साथ कहा कि विकासवाद का सिद्धांत बिलकुल सच्चा है और विज्ञान ने खोजबीन करके इसे सच्चा साबित कर दिया है। ऐलेक्स क्लास के सामने बेवकूफ नहीं दिखना चाहता। वह मन में सोचता है, ‘जब वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि विकासवाद का सिद्धांत सच्चा है, तो मैं कौन होता हूँ उन पर सवाल करनेवाला?’
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है? शायद आप बचपन से बाइबल की इस बात को सही मानते आए हों कि “परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” (उत्पत्ति 1:1) मगर हाल ही में लोगों ने आपको यकीन दिलाने की कोशिश की है कि यह एक मनगढ़ंत कहानी है कि परमेश्वर ने दुनिया की सृष्टि की जबकि विकासवाद का सिद्धांत एक सच्चाई है। क्या आपको उनकी बात पर यकीन कर लेना चाहिए? आपको विकासवाद के सिद्धांत पर क्यों सवाल उठाना चाहिए?
विकासवाद पर सवाल करने के दो कारण
सभी वैज्ञानिक विकासवाद के सिद्धांत पर एकमत नहीं हैं। बरसों की खोजबीन के बाद भी विकासवाद के सिद्धांत पर सभी वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं।
ज़रा सोचिए: वैज्ञानिकों को जानकार लोग माना जाता है, मगर जब वे खुद विकासवाद को लेकर एक-दूसरे से सहमत नहीं हैं तो क्या आप इस सिद्धांत पर सवाल उठाकर कुछ गलत कर रहे होंगे?—भजन 10:4.
यह बात मायने रखती है कि आप क्या मानते हैं। ज़ैकरी नाम का एक लड़का कहता है, “अगर जीवन इत्तफाक से वजूद में आया था तो इसका मतलब हमारी ज़िंदगी और विश्व में पायी जानेवाली सभी चीज़ें बेमतलब की हैं।” यह बात सोचनेलायक है। वाकई, अगर विकासवाद का सिद्धांत सही होता तो ज़िंदगी का कोई मकसद नहीं होता। (1 कुरिंथियों 15:32) लेकिन अगर परमेश्वर ने सबकुछ बनाया है तो हम ज़िंदगी के मकसद और हमारे भविष्य से जुड़े सवालो के जवाब पा सकते हैं।—यिर्मयाह 29:11.
ज़रा सोचिए: क्या विकासवाद का सिद्धांत सही है या क्या परमेश्वर ने सबकुछ बनाया है, इस बारे में सच्चाई जानने से आपकी ज़िंदगी पर क्या फर्क पड़ सकता है?—इब्रानियों 11:1.
कुछ सवाल जिन पर आपको सोचना चाहिए
यह दावा किया जाता है: ‘विश्व की हर चीज़ एक भयानक विस्फोट की वजह से अचानक वजूद में आ गयी।’
वह विस्फोट किसने की थी या किस वजह से हुई थी?
किस बात में तुक है? यह कहने में कि दुनिया की हर चीज़ अपने आप आ गयी? या यह कहने में कि हर चीज़ किसी और चीज़ से निकली है या किसी ने उसे बनाया है?
यह दावा किया जाता है: ‘इंसान जानवरों से विकसित होकर बने हैं।’
अगर इंसान जानवरों से विकसित होकर बने हैं, मान लीजिए बंदरों से बने हैं, तो फिर इंसानों और बंदरों की दिमागी काबिलीयत में इतना बड़ा फर्क क्यों है?a
छोटे से छोटे जीव भी इतने जटिल क्यों हैं?b
यह दावा किया जाता है: ‘विकासवाद का सिद्धांत सच साबित हो चुका है।’
जो ऐसा दावा करता है क्या उसने खुद सबूतों की जाँच की है?
कितने लोग ऐसे हैं जो विकासवाद को सिर्फ इसलिए सच मान लेते हैं क्योंकि उन्हें बताया गया है कि सभी समझदार लोग उस सिद्धांत पर यकीन करते हैं?
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सृष्टि या विकासवाद?—भाग 3: सृष्टि पर यकीन क्यों करें?नौजवानों के सवाल
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नौजवानों के सवाल
सृष्टि या विकासवाद?—भाग 3: सृष्टि पर यकीन क्यों करें?
“अगर आप सृष्टि पर यकीन करते हैं, तो लोग आपको बेवकूफ समझेंगे। वे सोचेंगे कि आपके माँ-बाप ने आपको बचपन में जो कहानियाँ सुनायीं, उन पर आप अब भी यकीन करते हैं या धर्म ने आपको बहका दिया है।”—जैनट।
क्या आप भी जैनट की तरह सोचते हैं? अगर हाँ, तो शायद आपके मन में भी सवाल उठे कि क्या वाकई सब चीज़ों की सृष्टि हुई थी? कोई नहीं चाहता कि लोग उसे बेवकूफ समझें। ऐसे में क्या बात आपकी मदद कर सकती है?
क्या रुकावटें आती हैं
1. अगर आप सृष्टि पर यकीन करते हैं, तो लोग सोचेंगे कि आप विज्ञान के खिलाफ हैं।
“मेरी टीचर कहती है कि लोग सृष्टि पर इसलिए यकीन करते हैं क्योंकि वे यह समझाने की तकलीफ नहीं उठाना चाहते कि यह पूरी दुनिया कैसे चलती है।”—मारिया।
आपको क्या पता होना चाहिए: जो लोग इस तरह का दावा करते हैं, वे दरअसल हकीकत से अनजान हैं। और हकीकत यह है कि गैलिलियो और आइज़क न्यूटन जैसे मशहूर वैज्ञानिक मानते थे कि एक सृष्टिकर्ता है। इसका यह मतलब नहीं था कि वे विज्ञान के खिलाफ थे। उसी तरह आज कुछ वैज्ञानिक विज्ञान पर विश्वास करने के साथ-साथ सृष्टि पर भी यकीन करते हैं।
इसे आज़माइए: वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी में खोजें कॉलम में जाकर ये शब्द (उद्धरण चिन्हों के साथ) टाइप कीजिए “अपने विश्वास के बारे में बताती है” या “अपने विश्वास के बारे में बताता है।” आपको चिकित्सा और विज्ञान के क्षेत्रों में काम करनेवाले ऐसे लोगों की मिसालें मिलेंगी जो यकीन करते हैं कि सब चीज़ों की सृष्टि हुई है। गौर कीजिए कि किस बात ने उन्हें इस नतीजे पर पहुँचने में मदद दी।
सौ बातों की एक बात: सृष्टि पर यकीन करने का मतलब यह नहीं कि आप विज्ञान के खिलाफ हैं। दरअसल हमारे चारों ओर की चीज़ों के बारे में सीखने से हमें सृष्टि पर यकीन करने के पक्के सबूत मिलेंगे।–रोमियों 1:20.
2. अगर आप बाइबल में बताए सृष्टि के ब्यौरे पर यकीन करते हैं, तो लोग सोचेंगे कि आपका धर्म जो सिखाता है, उसे आप आँख मूँदकर विश्वास कर लेते हैं।
“सृष्टि पर यकीन करना कई लोगों को एक मज़ाक लगता है। उनका मानना है कि उत्पत्ति किताब में सृष्टि का ब्यौरा सिर्फ एक कहानी है।”—जैसमिन।
आपको क्या पता होना चाहिए: बाइबल में दिए सृष्टि के ब्यौरे के बारे में लोगों को अकसर गलतफहमियाँ होती हैं। मिसाल के लिए, सृष्टि के सिद्धांत को माननेवाले कुछ लोगों का दावा है कि धरती को हाल ही में बनाया गया था या सभी जीवों को 24 घंटोंवाले छ: दिनों में बनाया गया था। बाइबल इनमें से किसी भी बात को सच नहीं बताती।
उत्पत्ति 1:1 सीधे-सीधे कहता है, “शुरूआत में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” यह बात विज्ञान से मिले इस सबूत से मेल खाती है कि धरती को अरबों-खरबों साल पहले बनाया गया था।
उत्पत्ति में “दिन” का मतलब 24 घंटे नहीं बल्कि एक लंबा दौर हो सकता है। दरअसल उत्पत्ति 2:4 में सृष्टि के सभी छ: दिनों को “दिन” बताया गया है।
सौ बात की एक बात: बाइबल में दिया सृष्टि का ब्यौरा वैज्ञानिक खोजों से मेल खाता है।
आप जो मानते हैं, उस बारे में सोचिए
सृष्टि पर यकीन करने का मतलब “आँख मूँदकर विश्वास” करना नहीं है। उलटा इसका मतलब है, सबूतों की अच्छी तरह जाँच करना और सोच-समझकर यकीन करना। ज़रा सोचिए:
आपने अब तक जो देखा या अनुभव किया है, उससे आप जानते हैं कि जहाँ कोई रचना या डिज़ाइन होता है वहाँ एक रचनाकार होता है। जब आप एक कैमरा, हवाई-जहाज़ या घर देखते हैं तो आप इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि किसी ने इसे बनाया है। तो क्या आपको इंसान की आँख, आसमान में उड़नेवाली चिड़िया या हमारी धरती के बारे में यही नतीजा नहीं निकालना चाहिए?
ज़रा सोचिए: इंजीनियर कुदरत को गौर से देखते हैं और उसकी नकल उतारकर अपने आविष्कारों को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। वे चाहते हैं कि लोग उनके आविष्कारों के लिए उनका सम्मान करें। हम इंसान और उसकी बनायी चीज़ों को तो सम्मान देते हैं मगर सृष्टिकर्ता के वजूद से इनकार करते हैं और उसकी रचनाओं के बारे में कहते हैं कि ये अपने आप आ गयीं जबकि ये इंसान की रचनाओं से कहीं बेहतर हैं। क्या इस बात में आपको कोई समझदारी नज़र आती है?
क्या यह मानना कोई समझदारी है कि एक हवाई-जहाज़ को बनाया गया था मगर एक चिड़िया अपने आप से आ गयी?
सबूतों की जाँच करने में मदद करनेवाले प्रकाशन
कुदरत में सृष्टि के जो सबूत पाए जाते हैं, उनकी जाँच करने से आप सृष्टि पर अपना यकीन पक्का कर सकते हैं।
इसे आज़माइए: वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी में जाकर ये शब्द टाइप कीजिए (उद्धरण चिन्हों के साथ) “क्या इसे रचा गया था”। सजग होइए! के श्रृंखला लेख “क्या इसे रचा गया था?” में से कुछ शीर्षक चुनिए जो आपको दिलचस्प लगते हैं। हर लेख में देखिए कि कुदरत में पाए जानेवाली चीज़ों की खासियत क्या है। इससे आपको किस तरह यकीन होता है कि एक बनानेवाला है?
और ढूँढ़िए: चीज़ों को रचा गया था, इन सबूतों की गहराई से जाँच करने के लिए इन प्रकाशनों का इस्तेमाल कीजिए।
धरती को बिलकुल सही जगह पर रखा गया है और उसे इस तरह बनाया गया है कि उस पर जीवन मुमकिन हो सके।—प्र07 3/1 पेज 4-7 देखिए।
कुदरत में पायी जानेवाली रचनाओं की मिसालें।—सज00 2/8 पेज 4-9 देखिए।
बाइबल की उत्पत्ति किताब में दिया सृष्टि का ब्यौरा विज्ञान से मेल खाता है।—सज06 10/1 पेज 18-20 देखिए।
जीवन की शुरूआत—पाँच सवाल जवाब जानना ज़रूरी
किसी निर्जीव चीज़ से जीवन की शुरूआत अपने आप से नहीं हो सकती।—पेज 4-7 देखिए।
हर जीवित चीज़ की बनावट इतनी जटिल है कि यह अपने आप वजूद में नहीं आ सकती।—पेज 8-12 देखिए।
डी.एन.ए. में जानकारी जमा करने की इतनी अनोखी काबिलीयत है कि इंसान की नयी-से-नयी टेकनॉलजी भी इसकी बराबरी नहीं कर सकती।—पेज 13-21 देखिए।
सारे प्राणियों का पूर्वज एक नहीं है। फॉसिल (प्राणियों की हड्डियों के अवशेष) की जाँच से पता चलता है कि प्राणी जगत में मुख्य वर्ग के जानवर अचानक उत्पन्न हुए न कि धीरे-धीरे एक किस्म के जानवर से दूसरे किस्म के जानवर में उनका विकास हुआ।—पेज 22-29 देखिए।
“धरती पर रहनेवाले जानवरों से लेकर विश्वमंडल तक और उनमें जो बेहतरीन व्यवस्था पायी जाती है, इन सबसे मेरा यकीन और बढ़ जाता है कि परमेश्वर सचमुच में है।”—थॉमस।
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सृष्टि या विकासवाद?—भाग 4: मैं दूसरों को कैसे समझा सकता हूँ कि मैं सृष्टि पर क्यों विश्वास करता हूँ?नौजवानों के सवाल
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नौजवानों के सवाल
सृष्टि या विकासवाद?—भाग 4: मैं दूसरों को कैसे समझा सकता हूँ कि मैं सृष्टि पर क्यों विश्वास करता हूँ?
आप मानते हैं कि सब चीज़ों की सृष्टि की गयी है, मगर आप स्कूल में यह बात खुलकर बताने से हिचकिचाते हैं। हो सकता है आपकी स्कूल की किताबों में विकासवाद के सिद्धांत को बढ़ावा दिया जाता है, इसलिए आपको डर है कि आपके टीचर और क्लास के बच्चे आपका मज़ाक उड़ाएँगे। आप पूरे यकीन के साथ कैसे उन्हें समझा सकते हैं कि आप सृष्टि पर विश्वास करते हैं?
आप ज़रूर समझा सकते हैं!
आप शायद सोचें, ‘मैं इतना होशियार नहीं हूँ कि विज्ञान के बारे में बात करूँ और विकासवाद पर बहस करूँ।’ एक वक्त पर डैनयल भी ऐसा ही सोचती थी। वह कहती है, “मुझे यह सोचकर ही बुरा लगता था कि मुझे अपने टीचर और क्लास के बच्चों की बात गलत साबित करनी है।” डायना का भी कुछ यही कहना है, “जब वे विज्ञान के बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल करके बहस करते थे तो मैं उलझन में पड़ जाती थी।”
मगर आपका मकसद बहस जीतना नहीं है। और अच्छी बात यह है कि आपको विज्ञान का बहुत बड़ा जानकार होने की ज़रूरत नहीं है। विज्ञान में बहुत होशियार न होने पर भी आप दूसरों को बता सकते हैं कि आपको क्यों इस बात पर यकीन करना सही लगता है कि सब चीज़ों की सृष्टि की गयी है।
इसे आज़माइए: बाइबल में इब्रानियों 3:4 में बतायी यह मामूली-सी बात कहकर आप तर्क कर सकते हैं, “हर घर का कोई-न-कोई बनानेवाला होता है मगर जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्वर है।”
कैरल नाम की एक लड़की इब्रानियों 3:4 में बताए सिद्धांत के मुताबिक दूसरों से इस तरह तर्क करती है: “मान लीजिए आप एक घने जंगल में चल रहे हैं। वहाँ इंसानों के होने की गुंजाइश दूर-दूर तक नज़र नहीं आती। फिर तभी आपकी नज़र ज़मीन पर पड़ती है और आपको एक टूथपिक दिखायी पड़ता है। तब आप क्या कहेंगे? ज़्यादातर लोग यही कहेंगे, ‘यहाँ कोई और भी आया है।’ अगर टूथपिक जैसी छोटी-सी चीज़ किसी समझदार प्राणी के होने का सबूत देती है तो सोचिए यह पूरा विश्व और इसमें पायी जानेवाली सारी चीज़ों से और कितना बड़ा सबूत मिलता है!”
अगर कोई कहे, “अगर यह सच है कि सब चीज़ों की सृष्टि की गयी है, तो फिर सृष्टिकर्ता को किसने बनाया?”
आप कह सकते हैं, “माना कि हम सृष्टिकर्ता के बारे में सारी बातें नहीं समझ सकते। मगर इसका यह मतलब नहीं कि कोई सृष्टिकर्ता नहीं है। मिसाल के लिए, आपके मोबाइल फोन को जिसने बनाया उसके बारे में आप सारी बातें नहीं जानते होंगे। फिर भी आप मानते हैं कि उसे ज़रूर किसी ने बनाया है, है कि नहीं? [जवाब के लिए रुकिए।] मगर सृष्टिकर्ता के बारे में ऐसी कई बातें हैं जो हम जान सकते हैं। अगर आप जानना चाहेंगे तो मुझे आपको बताने में खुशी होगी कि मैंने सृष्टिकर्ता के बारे में क्या सीखा है।”
तैयार रहिए
बाइबल बताती है कि “जो कोई तुम्हारी आशा की वजह जानने की माँग करता है, उसके सामने अपनी आशा की पैरवी करने के लिए हमेशा तैयार रहो, मगर ऐसा कोमल स्वभाव और गहरे आदर के साथ करो।” (1 पतरस 3:15) इसलिए अब इन दो बातों पर ध्यान दीजिए। आप क्या कहेंगे और किस तरह कहेंगे।
आप क्या कहेंगे। यह बात बहुत मायने रखती है कि आप परमेश्वर से कितना प्यार करते हैं क्योंकि यही प्यार आपको उसके पक्ष में बात करने के लिए उभार सकता है। लेकिन दूसरों को सिर्फ यह बताना कि आप परमेश्वर से बहुत प्यार करते हैं, उन्हें यकीन नहीं दिला सकता कि परमेश्वर ने ही सबकुछ बनाया है। अगर आप सृष्टि में पायी जानेवाली कुछ चीज़ों की मिसालें देंगे तो आप उन्हें अच्छी तरह समझा सकते हैं कि इस बात पर क्यों यकीन किया जा सकता है कि परमेश्वर ने ही सबकुछ बनाया है।
आप किस तरह कहेंगे। पूरे यकीन के साथ बोलिए, मगर न तो रुखाई से और न ही ऐसे बात कीजिए मानो आप सामनेवाले को नीचा दिखा रहे हों। अगर आप लोगों की धारणाओं के बारे में आदर से बात करेंगे और इस बात को मानेंगे कि उन्हें जो चाहे मानने का अधिकार है, तो लोग आपकी बात पर गौर करना चाहेंगे।
“मेरे खयाल से यह ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है कि हम जिससे बात करते हैं उसकी कभी बेइज़्ज़ती न करें, न ही ऐसे बात करें मानो हमें सबकुछ पता है। सामनेवाले को नीचा दिखाने से उस पर उलटा असर पड़ सकता है।”—ईलेन।
अपने विश्वास के बारे में समझानेवाले प्रकाशन
अपने विश्वास की पैरवी करने के लिए तैयार रहना, मौसम में होनेवाले बदलाव के लिए तैयार रहने जैसा है
अलीशिया नाम की एक लड़की कहती है, “अगर हम तैयारी न करें तो हमें लग सकता है कि चुप रहना ही बेहतर है वरना मुझे शर्मिंदा होना पड़ेगा।” जैसे अलीशिया ने कहा, तैयारी करना कामयाब होने के लिए ज़रूरी है। जेना कहती है, “मैं सृष्टि पर क्यों विश्वास करती हूँ, इसे साबित करने के लिए जब मैं पहले से कोई मिसाल सोचकर रखती हूँ जो समझने में आसान हो, तो मुझे बात करने में इतनी झिझक नहीं महसूस होती।”
आपको ऐसी मिसालें कहाँ मिल सकती हैं? कई जवानों को इन प्रकाशनों से बहुत मदद मिली है:
वॉज़ लाइफ क्रिएटेड?
जीवन की शुरूआत पाँच सवाल—जवाब पाना ज़रूरी
सृष्टि के अजूबे परमेश्वर की महिमा करते हैं (अँग्रेज़ी वीडियो)
सजग होइए! पत्रिका में श्रृंखला लेख, “क्या इसे रचा गया था?” (वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी के खोजें बक्स में [उद्धरण चिन्हों के साथ] “क्या इसे रचा गया था” टाइप कीजिए।)
ज़्यादा खोजबीन के लिए वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी इस्तेमाल कीजिए।
इसके अलावा, आपको “सृष्टि या विकासवाद?” श्रृंखला के पिछले लेखों को पढ़ने से भी काफी मदद मिल सकती है।
इसे आज़माइए: ऐसी मिसालें चुनिए जो आपको यकीन दिलाती हैं कि परमेश्वर ने सबकुछ बनाया है। उन्हें याद रखना आपके लिए आसान होगा और आप पूरे यकीन के साथ उनके बारे में बात कर पाएँगे। प्रैक्टिस करके देखिए कि आप अपने विश्वास के बारे में दूसरों को कैसे बताएँगे।
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