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क्या विरोध ही जवाब है?सजग होइए!—2013 | अक्टूबर
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क्या विरोध ही जवाब है?
यहोवा के साक्षी, जो इस पत्रिका के प्रकाशक हैं, राजनीतिक मामलों में निष्पक्ष रहते हैं। (यूहन्ना 17:16; 18:36) हालाँकि नीचे दिया लेख सामाजिक अशांति और दंगे-फसादों से जुड़ी कुछ खास घटनाओं के बारे में जानकारी देता है, लेकिन यह राजनीतिक मामलों में किसी का पक्ष नहीं लेता और किसी भी देश को दूसरे देश से बड़ा नहीं बताता।
सत्रह दिसंबर, 2010 मोहम्मद बूआज़ीज़ी के बरदाश्त की सीमा खत्म हो चुकी थी। 26 साल का वह जवान ट्यूनीशिया की सड़कों पर फल बेचता था। अच्छी नौकरी न मिलने की वजह से, वह पहले से ही निराश था। वह अच्छी तरह जानता था कि भ्रष्ट अधिकारी रिश्वत की माँग करते हैं। एक सुबह, पुलिस अधिकारियों ने मोहम्मद के पास जितने फल थे, नाशपाती, सेब और केले, सब ज़ब्त कर लिए। जब अधिकारियों ने उसका तराज़ू लिया, तो मोहम्मद ने विरोध जताया। जो लोग वहाँ उस वक्त मौजूद थे, उनमें से कुछ का कहना है कि एक महिला पुलिस अधिकारी ने उसे थप्पड़ भी मारा।
शर्मिंदगी और गुस्से में आकर मोहम्मद पास के सरकारी दफ्तर में अपनी शिकायत दर्ज़ करवाने गया। लेकिन वहाँ किसी ने भी उसकी न सुनी। कहा जाता है कि इमारत के सामने आकर वह ज़ोर से चिल्लाया, “आप ही मुझे बताइए कि मैं अपनी रोज़ी-रोटी कैसे कमाऊँ?” उसने अपने ऊपर पेट्रोल डाला और आग लगा ली। जलने की वजह से तीन हफ्तों के अंदर ही उसकी मौत हो गयी।
मोहम्मद बूआज़ीज़ी ने बेबस होकर जो किया, उसका ट्यूनीशिया के साथ-साथ दूसरे देशों के लोगों पर गहरा असर हुआ। इस घटना को बहुत-से लोगों ने बगावत की चिंगारी समझा जिसकी वजह से सरकार का तख्ता पलट गया। इस तरह अरब के कई देशों में विरोध फैल गया। यूरोपीय संसद ने बूआज़ीज़ी और अन्य चार लोगों को 2011 के सोखरोव पुरस्कार फ्रीडम ऑफ थॉट, से नवाज़ा। साथ ही लंदन के द टाइम्स अखबार ने भी 2011 में उसे परसन ऑफ द इयर का खिताब दिया।
यह उदाहरण दिखाता है कि विरोध में बहुत ताकत हो सकती है। मगर हाल के बढ़ते विरोध के सैलाब की क्या वजह है? और क्या विरोध के अलावा कोई और उपाय है?
क्यों विरोध इतना ज़ोर पकड़ रहा है?
विरोध शुरू होने की कुछ वजह:
सामाजिक व्यवस्था से निराशा। जब लोगों को यकीन होता है कि स्थानीय सरकार और आर्थिक हालात उनकी ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं तब विरोध की गुंजाइश न के बराबर होती है। लोग मौजूदा व्यवस्था में ही अपनी समस्या का हल ढूँढ़ लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ जब लोगों को लगता है कि व्यवस्था भ्रष्ट और अन्यायी है, जो कुछ चुनिंदा लोगों को फायदा पहुँचा रही है तो ऐसे में सामाजिक अशांति और दंगे-फसाद होने की गुंजाइश बढ़ जाती है।
एक चिंगारी। अकसर एक घटना लोगों को कदम उठाने के लिए उकसाती है। उन्हें लगता है कि हालात ऐसे ही छोड़ने के बजाय उन्हें बदलने के लिए कुछ-न-कुछ ज़रूर करना चाहिए। मिसाल के लिए, मोहम्मद बूआज़ीज़ी की मौत के बाद, सारे ट्यूनीशिया में भीड़ ने एक-के-बाद-एक कई विरोध किए। भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे ने भूख-हड़ताल की। इससे उनके समर्थकों ने देश के 450 शहरों और नगरों में मुहिम छेड़ दी।
बाइबल में बहुत पहले बताया गया था कि हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहाँ “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” (सभोपदेशक 8:9) भ्रष्टाचार और अन्याय आज पहले से बहुत ज़्यादा बढ़ गया है। लोग आज पहले से कहीं ज़्यादा जागृत हैं कि कैसे राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था उन्हें निराश करती है। स्मार्टफोन, इंटरनेट और चौबीसों-घंटे चलनेवाले समाचार चैनल के ज़रिए दूर-दराज़ होनेवाली घटनाओं का कई इलाकों में असर नज़र आता है।
विरोध से क्या हासिल हुआ है?
सामाजिक अशांति और दंगे-फसाद करनेवालों के समर्थकों ने दावा किया है कि विरोध से यह हासिल हुआ है:
गरीबों के लिए मदद। सन् 1930 के दशक में जब अमरीका महामंदी के दौर से गुज़र रहा था, उस वक्त इलिनॉय राज्य के शिकागो शहर में मकान मालिकों ने किरायेदारों को बिना नोटिस दिए घर से निकाल दिया था। इस वजह से, उस शहर में कई दंगे हुए। इसके विरोध में शहर के अधिकारियों ने किरायेदारों को घर से निकालने पर रोक लगा दी और कुछ दंगे-फसाद करनेवालों को नौकरी दिलवायी। इसी तरह, न्यू यॉर्क शहर में हुए विरोध की वजह से 77,000 परिवारों को उनके मकान वापस लौटा दिए गए।
अन्याय के खिलाफ कार्यवाही। अमरीका के ऐलाबामा राज्य के मोंटगोमरी शहर की सरकारी बसों में गोरे और काले लोगों के एक-साथ बैठने पर रोक थी। सन् 1955/1956 में इस कानून का विरोध करने के लिए लोगों ने सरकारी बसों में बैठने से इनकार कर दिया। आखिरकार, इस कानून को बदल दिया गया।
निर्माण काम पर रोक। दिसंबर 2011 में हाँग काँग के पास एक इलाके में हज़ारों लोगों ने प्रदूषण की चिंता को लेकर, कोयले के पावर प्लांट के निर्माण काम का विरोध किया। और उसके निर्माण काम को खारिज करवा दिया।
विरोध करनेवाले चाहे अपना लक्ष्य क्यों न हासिल कर लें, परमेश्वर का राज सच्ची आशा देता है
लेकिन एक बात सच है कि विरोध करनेवालों को हमेशा वह नहीं मिलता जो वे चाहते हैं। मिसाल के लिए, नेता कभी-कभी उनकी माँगें पूरी करने के बजाय विरोध करनेवालों को सज़ा देते हैं। हाल ही में, एक मध्य पूर्वी देश के राष्ट्रपति ने वहाँ हो रहे विरोध के बारे में कहा: “ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए।” उस विरोध की वजह से हज़ारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
विरोध करनेवाले चाहे अपना लक्ष्य क्यों न हासिल कर लें, लेकिन इसके बाद होनेवाले अंजाम एक नयी समस्या लाकर खड़ी कर देते हैं। एक व्यक्ति जिसने एक अफ्रीकी देश के शासक को गद्दी से हटाने में मदद की उसने टाइम पत्रिका को नयी हुकूमत के बारे में कहा: “यह शांतिपूर्ण स्थिति थी जो बहुत जल्द कोलाहल में बदल गयी।”
क्या इससे बेहतर तरीका है?
बहुत-से जाने-माने लोगों को लगता है कि अत्याचारी व्यवस्थाओं का विरोध करना नैतिक रूप से लाज़िमी है। मिसाल के लिए, वॉक्लाव हावेल जो चेक रिपब्लिक के पूर्व राष्ट्रपति थे जिन्हें मानव अधिकार की लड़ाई लड़ने की वजह से कई साल के लिए जेल में डाला गया। उन्होंने 1985 में लिखा: “[जो हालात से सहमत नहीं है] वह अगर कुछ दे सकता है तो वह है अपनी जान और वह इसलिए देता है क्योंकि उसके पास अपनी बात साबित करने का कोई और रास्ता नहीं होता।”
हावेल के शब्दों की झलक हमें मोहम्मद बूआज़ीज़ी और उसके जैसे दूसरे लोगों की बेबसी में उठाए कदम में दिखायी देती है। हाल ही में एक एशियाई देश के कुछ लोगों ने धार्मिक और राजनीतिक अत्याचार के विरोध में खुद को आग लगा दी। लोगों के उठाए ऐसे कदमों के पीछे छिपी भावनाओं के बारे में, एक व्यक्ति ने न्यूज़वीक पत्रिका में कहा: “न ही हमारे पास बंदूकें हैं और न हम दूसरों को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। आखिर हम और कर भी क्या सकते हैं?”
बाइबल में अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार का हल मिलता है। बाइबल समझाती है कि परमेश्वर ने स्वर्ग में एक सरकार स्थापित की है जो इस बुरी व्यवस्था को हटाकर राज करेगी। नाकाम राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था लोगों को विरोध करने के लिए मजबूर करती है। इस सरकार के शासक के बारे में बाइबल में यह भविष्यवाणी दर्ज़ है: “वह दोहाई देनेवाले दरिद्र का, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा।”—भजन 72:12, 14.
यहोवा के साक्षी यह विश्वास करते हैं कि इंसानों के लिए एक सच्ची आशा है कि सिर्फ परमेश्वर का राज ही दुनिया में शांति का माहौल लाएगा। (मत्ती 6:9, 10) यही वजह है कि यहोवा के साक्षी विरोध में हिस्सा नहीं लेते। लेकिन क्या परमेश्वर की सरकार विरोध और उनकी वजह को जड़ से मिटा देगी, यह विश्वास करना सिर्फ एक सपना है? शायद आपको ऐसा लग सकता है। लेकिन बहुतों ने परमेश्वर की हुकूमत पर भरोसा किया है। क्यों न आप खुद इसे परखकर देखें? ◼ (g13-E 07)
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मैंने चारों तरफ अन्याय देखासजग होइए!—2013 | अक्टूबर
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मैंने चारों तरफ अन्याय देखा
मेरा जन्म 1965 में उत्तरी आयरलैंड के एक गरीब परिवार में हुआ। मेरी परवरिश काउंटी डेर्री के उस दौर में हुई जब कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट समाज के बीच “दंगे-फसाद” चल रहे थे। ये मुसीबतों का दौर तीस साल से भी ज़्यादा समय तक चला। कैथोलिक समाज के छोटे समूह को लगता था कि उनके साथ भेद-भाव किया जा रहा है। वे इलज़ाम लगाते थे कि प्रोटेसटेंट समाज चुनाव में, नीतियाँ बनाने में, नौकरी और घर देने के मामले में हेरा-फेरी कर रहे हैं।
मैंने चारों तरफ अन्याय और पक्षपात देखा। अनगिनत बार मुझे मारा-पीटा गया और कार से बाहर निकालकर मुझ पर बंदूक तानी गयी। पुलिस अफसरों और सैनिकों ने कई बार मुझसे पूछताछ की और मेरी तलाशी ली। मैं कई बार इनका शिकार हुआ। तब मैंने सोचा, ‘या तो मुझे हालात से समझौता कर लेना चाहिए या उनसे लड़ना चाहिए!’
मैंने सन् 1972 में हुई ब्लडी सनडे मार्च में हिस्सा लिया। यह मोर्चा उन 14 लोगों की याद में था जिनकी अँग्रेज़ी सैनिकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके अलावा, सन् 1981 में जिन रिपब्लिकन कैदियों ने भूखे रहकर अपनी जान दी, उनकी याद में रखी गयी कई भूख-हड़ताल में भी मैंने हिस्सा लिया। जिन झंडों पर रोक लगायी गयी थी उन्हें मैं हर जगह गाड़ता और दीवारों पर अँग्रेज़ों के खिलाफ नारे लिखता फिरता था। ऐसा लग रहा था कि हर दिन कहीं-न-कहीं विरोध करनेवाले कैथोलिक लोगों पर या तो ज़ुल्म ढाया जा रहा है या उनकी हत्या की जा रही है। अकसर विरोध मोर्चे से शुरू होकर दंगें-फसाद का रूप ले लेते थे।
जब मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा था उस वक्त मैंने विद्यार्थियों के साथ पर्यावरण को बचाने के लिए किए गए विरोध में हिस्सा लिया। कुछ समय बाद मैं लंदन चला गया। वहाँ मैंने उन सामाजिक मोर्चों में हिस्सा लिया जो सरकार की नीतियों के विरोध में थे। ये नीतियाँ गरीबों को कोई फायदा न पहुँचाकर अकसर अमीरों को फायदा पहुँचाती थीं। मैंने व्यापार-मंडल की हुई उस हड़ताल में हिस्सा लिया जो पूरी तनख्वाह न मिलने कि वजह से हुई थी। सन् 1990 में दुकानदारों पर लगाए गए कर का विरोध किया गया। क्योंकि इसका असर आम जनता पर भी पड़ रहा था। और मैंने इस विरोध में भी हिस्सा लिया। विरोधियों ने लंदन का ट्रफलगर स्कुएर पूरी तरह तहस-नहस कर दिया।
कुछ समय बाद, मैं पूरी तरह निराश हो गया। मुझे ऐसा लगता था कि विरोध अपना मकसद हासिल कर रहे हैं लेकिन ये विरोध लोगों में नफरत की आग भड़का रहे थे।
इंसानों के इरादे कितने ही नेक क्यों न हों, वे कभी-भी अन्याय और भेद-भाव नहीं मिटा सकते
इस दौरान मेरे दोस्त ने मेरी मुलाकात यहोवा के साक्षियों से करवायी। उन्होंने मुझे बाइबल से सिखाया कि परमेश्वर हम सबकी परवाह करता है और इंसानों की वजह से जो भी बुरा हुआ है उसके अंजामों को मिटाने की ताकत रखता है। (यशायाह 65:17; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) इंसानों के इरादे कितने ही नेक क्यों न हों, वे कभी-भी अन्याय और भेद-भाव नहीं मिटा सकते। हमें न सिर्फ परमेश्वर के मार्गदर्शन की ज़रूरत है बल्कि उसकी ताकत की भी ज़रूरत है। ताकि इस दुनिया की समस्याओं के पीछे, छिपी अदृश्य शक्ति को हरा सकें।—यिर्मयाह 10:23; इफिसियों 6:12.
अब मुझे एहसास हुआ कि अन्याय के खिलाफ मेरा आवाज़ उठाना बेकार है। इन सच्चाइयों के बारे में जानकर क्या ही दिलासा मिलता है कि एक समय ऐसा आएगा जब इस धरती पर हर जगह न्याय होगा और सभी इंसानों के साथ एक-सा व्यवहार किया जाएगा।
बाइबल सिखाती है कि यहोवा परमेश्वर “न्याय से प्रीति रखता” है। (भजन 37:28) इस वजह से हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा धरती पर ज़रूर न्याय लाएगा, ऐसा न्याय जो आज तक कोई-भी इंसानी सरकार लाने में नाकाम रही है। (दानिय्येल 2:44) अगर आप इस बारे में और जानना चाहते हैं तो अपने इलाके के यहोवा के साक्षियों से संपर्क कीजिए या हमारी वेब साइट www.pr418.com देखिए। (g13-E 07)
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