स्कूल ओवरसियरों के लिए हिदायतें
हर कलीसिया में एक प्राचीन को, परमेश्वर की सेवा स्कूल का ओवरसियर नियुक्त किया गया है। क्या यह ज़िम्मेदारी आपको सौंपी गयी है? अगर हाँ, तो स्कूल के लिए आपका जोश और हर विद्यार्थी में आपकी दिलचस्पी, आपकी कलीसिया को स्कूल से फायदा पहुँचाने में काफी मददगार साबित हो सकती है।
आपकी ज़िम्मेदारी का एक अहम हिस्सा है, हर हफ्ते कलीसिया में होनेवाले परमेश्वर की सेवा स्कूल को चलाना। याद रखें कि स्कूल में, भाग लेनेवाले विद्यार्थियों के अलावा, दूसरे भी हाज़िर रहते हैं। इसलिए स्कूल को इस तरह चलाइए कि पूरी कलीसिया का जोश बढ़े और उन्हें कई कारगर बातें याद दिलायी जाएँ। इस तरह, इस किताब के पेज 5 से 8 पर बताए स्कूल के लक्ष्यों में से एक लक्ष्य तो ज़रूर पूरा होगा।
सभी विद्यार्थियों में दिलचस्पी लीजिए, फिर चाहे उन्हें पढ़ने का भाग मिला हो, प्रदर्शन के रूप में अपना भाग पेश करना हो या फिर भाषण देना हो। उन्हें यह समझने में मदद दीजिए कि स्कूल में अपना भाग पेश करना सिर्फ एक काम नहीं बल्कि यहोवा की सेवा में तरक्की करने का सुअवसर है। बेशक, उनकी तरक्की के लिए ज़रूरी है कि वे खुद मेहनत करें। लेकिन यह भी ज़रूरी है कि आप उनकी भलाई चाहते हुए उनमें दिलचस्पी दिखाएँ और यह समझने में उनकी मदद करें कि सलाह के मुद्दों की अहमियत क्या है और उन पर कैसे अमल करना है। अपनी यह ज़िम्मेदारी निभाने के लिए, हर भाषण को ध्यान से सुनिए ताकि आप उन्हें बता सकें कि कहाँ पर उन्होंने अच्छा किया है, और कहाँ पर सुधार की ज़रूरत है।
स्कूल को वक्त पर शुरू और खत्म करने का ध्यान रखें। आपको अपनी बात कहने के लिए जितना समय दिया जाता है, उसमें अपनी बात खत्म करने के ज़रिए एक अच्छी मिसाल कायम कीजिए। अगर कोई विद्यार्थी समय खत्म होने के बाद भी, अपना भाषण जारी रखता है, तो आपको या आपके सहायक को इसका संकेत देना चाहिए। और तब विद्यार्थी को अपना वाक्य खत्म करके, स्टेज से उतर जाना चाहिए। दूसरी तरफ, अगर भाषण देनेवाला भाई ज़्यादा समय ले लेता है तो आपको अपनी बात कम समय में कहनी चाहिए और सभा के बाद, समय की पाबंदी के बारे में उस भाई से बात करनी चाहिए।
जब आप सेवा स्कूल में मौजूद होते हैं, तो आप ही को स्कूल चलाना है। लेकिन अगर आप कभी स्कूल में नहीं आ सकते, तो प्राचीनों के निकाय की तरफ से पहले से ठहराए गए किसी भाई को स्कूल चलाना चाहिए। स्कूल से जुड़े कई काम हैं, जैसे स्कूल का कार्यक्रम तैयार करना, भाग-पर्चियाँ लिखकर उन्हें बाँटना, और स्कूल में अगर कोई विद्यार्थी अपना भाग न दे सके, तो किसी दूसरे से वह भाग करवाने का इंतज़ाम करना। अगर आपको यह सब करने के लिए मदद की ज़रूरत है, तो प्राचीनों के निकाय की तरफ से ठहराया गया कोई सहायक सेवक, इन सारे कामों में आपका हाथ बँटा सकता है।
विद्यार्थियों का नाम दर्ज़ करना। सभी भाई-बहनों को सेवा स्कूल में अपना नाम दर्ज़ करवाने का बढ़ावा दीजिए। इनके अलावा, ऐसे लोग जो कलीसिया के साथ लगातार संगति कर रहे हैं, वे भी अपना नाम दर्ज़ करवा सकते हैं, बशर्ते वे बाइबल की शिक्षाओं से सहमत हों और मसीही सिद्धांतों के मुताबिक ज़िंदगी बिता रहे हों। जब कोई स्कूल में अपना नाम दर्ज़ करवाने की इच्छा ज़ाहिर करता है, तो उसकी सराहना कीजिए। अगर वह एक प्रचारक नहीं है, तो एक स्कूल ओवरसियर की हैसियत से आपको उसके साथ चर्चा करनी चाहिए कि स्कूल में नाम लिखवाने के लिए उसे किन माँगों को पूरा करना होगा। उसके साथ चर्चा करते वक्त, अच्छा होगा अगर आपके साथ वह प्रचारक (या विश्वासी माता या पिता) भी मौजूद हो, जो उसके साथ बाइबल अध्ययन करता है। उस शख्स को वही माँगें पूरी करनी हैं, जो बपतिस्मा रहित प्रचारक बनने के लिए पूरी करनी होती हैं। ये माँगें अपनी सेवा को पूरा करने के लिए संगठित (अँग्रेज़ी) किताब के पेज 97 से 99 पर दी गयी हैं। स्कूल में जितने भी लोगों का नाम दर्ज़ है, उनकी ताज़ा सूची बनाए रखिए।
सलाह पर्चे का इस्तेमाल। हर विद्यार्थी का सलाह पर्चा, उसकी अपनी किताब के पेज 79 से 81 पर दिया गया है। जैसा कि अलग-अलग रंगों से दिखाया गया है, जिस विद्यार्थी को पढ़ाई का भाग दिया जाता है, उसे 1 से 17 में से किसी भी सलाह-मुद्दे पर सलाह दी जा सकती है। प्रदर्शन के रूप में पेश किए जानेवाले विद्यार्थी-भागों के लिए 7, 52 और 53 को छोड़ किसी भी मुद्दे पर सलाह दी जा सकती है। भाषणों के लिए 7, 18 और 30 को छोड़ बाकी सभी मुद्दों पर सलाह दी जा सकती है।
जब एक प्रचारक को किसी मुद्दे पर काम करने के लिए कहा जाता है, तो स्कूल ओवरसियर को विद्यार्थी की किताब में सलाह पर्चे पर “भाग देने की तारीख” के कॉलम में उस मुद्दे के लिए दी गयी जगह पर पेंसिल से लिख लेना चाहिए। जब विद्यार्थी अपना भाग पेश कर लेता है, तो उससे अकेले में पूछिए कि क्या उसने सलाह-मुद्दे के अध्याय के आखिर में दिया अभ्यास किया है या नहीं। अगर वह हाँ कहता है, तो सलाह पर्चे पर दिए बक्स में निशान लगाइए। अगर आप विद्यार्थी को उसी मुद्दे पर आगे भी काम करने की सलाह देते हैं, तो सलाह पर्चे पर कुछ लिखने की ज़रूरत नहीं; बस “पूरा करने की तारीख” कॉलम के नीचे दी गयी खाली जगह पर कुछ मत लिखिए। उसे तभी भरना चाहिए जब विद्यार्थी अगले मुद्दे पर काम करने के लिए तैयार है। इसके अलावा, हर विद्यार्थी-भाग के बाद, विद्यार्थी की किताब में पेज 82 पर, इस्तेमाल की गयी सैटिंग की बायीं तरफ उस दिन की तारीख लिखनी चाहिए। सलाह पर्चे और सैटिंग की सूची पर तारीख लिखने की दो खाली जगह दी गयी हैं जिसका मतलब है कि विद्यार्थी हर सलाह-मुद्दे और हर सैटिंग को दो बार इस्तेमाल कर सकता है। सेवा स्कूल के कार्यक्रम के दौरान, विद्यार्थियों के पास अपनी-अपनी किताबें होनी चाहिए।
विद्यार्थियों को सलाह पर्चे में से एक वक्त पर एक ही मुद्दे पर काम करने के लिए कहिए। आम तौर पर, सूची में सलाह के मुद्दे जिस क्रम में दिए हैं, उसी के मुताबिक एक-एक मुद्दे पर काम कीजिए। लेकिन अगर कुछ विद्यार्थियों में खास काबिलीयतें हैं, तो आप उन्हें कुछेक पाठों का खुद-ब-खुद अध्ययन करने और उन पर अमल करने के लिए कह सकते हैं। फिर आप उन्हें उन मुद्दों पर काम करने में मदद दे सकते हैं जिन्हें लागू करके आपको लगता है कि वे भाषण देने और सिखाने की काबिलीयत में और भी निखार ला सकते हैं।
एक विद्यार्थी को चाहे स्कूल में दाखिला लिए कई साल क्यों न बीत गए हों, फिर भी वह हर अध्याय का अध्ययन करने और उस पर अमल करने से काफी लाभ पा सकता है। जिन विद्यार्थियों की खास ज़रूरतें हैं और जो आम विद्यार्थियों की तरह नहीं हैं, उनके लिए सूची में दिए क्रम के हिसाब से एक-एक मुद्दे पर काम करने के बजाय आप कुछेक मुद्दे चुन सकते हैं ताकि वे उन पर काम कर सकें।
सलाह देना। सलाह देते वक्त, बाइबल की मिसालों और उसके सिद्धांतों का अच्छा इस्तेमाल कीजिए। विद्यार्थियों को यह एहसास होना चाहिए कि उसे जो सलाह दी जाती है और जिस भावना से दी जाती है, वह दरअसल परमेश्वर के वचन के महान सिद्धांतों के मुताबिक है।
हमेशा याद रखिए कि आप अपने भाई-बहनों के “सहकर्मी” हैं। (2 कुरि. 1:24, NHT) उनकी तरह, आपको भी भाषण देने और सिखाने में सुधार करने के लिए मेहनत करने की ज़रूरत है। इसलिए आप खुद “परमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए” किताब का अध्ययन कीजिए, इसमें दी गयी सलाह को अमल में लाइए और ऐसा ही करने में दूसरों के लिए एक अच्छी मिसाल रखिए।
ऐसा करते वक्त यह लक्ष्य रखिए कि आप अपने विद्यार्थियों को अच्छा पढ़नेवाला, अच्छा भाषण देनेवाला और असरदार तरीके से सिखानेवाला बनने में मदद देंगे। अपना यह लक्ष्य हासिल करने के लिए, हर मुमकिन तरीके से विद्यार्थियों की मदद कीजिए ताकि वे समझ पाएँ कि भाषण के अलग-अलग गुण क्या हैं, इनकी क्या अहमियत है और इन्हें अपने अंदर कैसे बढ़ाया जा सकता है। इस किताब को इस तरीके से तैयार किया गया है कि विद्यार्थियों को इन गुणों के बारे में सिखाना आपके लिए आसान हो। लेकिन आपको इस किताब में दिए शब्दों को पढ़ने के अलावा, और भी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। इस किताब में जो विचार दिए गए हैं, उन पर और उन्हें लागू करने के तरीकों पर चर्चा कीजिए।
अगर एक विद्यार्थी किसी गुण पर अच्छी तरह काम करता है, तो उसे शाबाशी दीजिए। चंद शब्दों में बताइए कि उसका भाषण क्यों अच्छा था या उसने जिस तरीके से वह गुण दिखाया, वह क्यों मायने रखता है। अगर किसी मामले पर उसको और भी सुधार करने की ज़रूरत है, तो उसकी वजह समझाइए। फिर उसे बताइए कि उसे सुधार करने के लिए क्या करना है। यह सब साफ-साफ, मगर प्यार से बताइए।
इस बात को समझिए कि एक समूह के सामने भाषण देना ज़्यादातर लोगों को बहुत मुश्किल लगता है। अगर एक विद्यार्थी को लगता है कि उसने अपना भाग ठीक से पेश नहीं किया है, तो उसके मन में यह सवाल पैदा हो सकता है कि क्या फिर से कोशिश करने का कोई फायदा है भी कि नहीं। यीशु की मिसाल पर चलिए, जिसने “कुचले हुए सरकण्डे” को नहीं तोड़ा, ना ही “धूआं देती हुई बत्ती” को बुझाया। (मत्ती 12:20) यह ध्यान में रखिए कि विद्यार्थी किन भावनाओं से जूझ रहा है। सलाह देते वक्त, ध्यान में रखिए कि क्या विद्यार्थी नया है या एक अनुभवी प्रचारक है। प्यार भरी और सच्ची तारीफ पाकर लोगों को हौसला मिलेगा कि वे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करना जारी रखें।
हर विद्यार्थी के साथ आदर से पेश आइए। रोमियों 12:10 हमें बताता है: “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” परमेश्वर की सेवा स्कूल के एक सलाहकार के लिए, यह क्या ही सही सलाह है! अगर विद्यार्थी आपसे उम्र में बड़ा है, तो 1 तीमुथियुस 5:1, 2 की सलाह पर चलिए। चाहे एक विद्यार्थी की उम्र जो भी हो, जब उसे कुछ बदलाव करने के लिए प्यार से सलाह दी जाती है, तो वह फौरन सलाह को स्वीकार करता है।—नीति. 25:11.
विद्यार्थी को सलाह देते वक्त, उसे साफ दिखाइए कि स्कूल से तालीम पाने का उसका मकसद क्या है। उसका मकसद बस यह नहीं होना चाहिए कि सिर्फ इतनी मेहनत करे कि उसका भाग सबको अच्छा लगे और उसे अगले सलाह-मुद्दे पर काम करने के लिए कहा जाए। (नीति. 25:27) हमारी इच्छा यह है कि हम बोलने के इस वरदान का इस्तेमाल करके यहोवा की स्तुति करें, और दूसरों की मदद करें कि वे यहोवा को जानें और उससे प्रेम करें। हमें जो तालीम दी जाती है, उससे हम मत्ती 24:14 और 28:19, 20 में बताए गए काम को और भी अच्छी तरह करने के काबिल बनते हैं। बपतिस्मा पाए हुए जो भाई, इसके काबिल होते हैं, उन्हें कुछ समय बाद वक्ता और सिखानेवाले के तौर पर चुनकर, ‘परमेश्वर के झुंड’ की रखवाली करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जा सकती है।—1 पत. 5:2, 3.
विद्यार्थियों को सुझाव दीजिए कि उन्हें अगली बार जिस मुद्दे पर काम करने के लिए कहा जाता है, वे सलाह के उस मुद्दे का अध्याय जल्द-से-जल्द पढ़ लें। उन्हें बताइए कि वे जो सीखते हैं, उसे वे स्कूल के अपने भाग की तैयारी करते वक्त, रोज़मर्रा की बातचीत में, सभाओं में जवाब देते वक्त और प्रचार में अमल करें।
भाग सौंपना। भाग सौंपने का काम आम तौर पर, कम-से-कम तीन हफ्ते पहले किया जाना चाहिए। हो सके तो सभी भाग, कागज़ पर लिखकर दिए जाने चाहिए।
जो भाग कलीसिया को सिखाने के लिए होते हैं, ऐसे भाग प्राचीनों को सौंपने चाहिए, खासकर उन प्राचीनों को जो भाग को बेहतर तरीके से पेश करेंगे। और जो सहायक सेवक, काबिल शिक्षक हैं, उन्हें भी ये भाग दिए जा सकते हैं।
यह तय करने के लिए कि कौन-से विद्यार्थी-भाग भाइयों को और कौन-से बहनों को सौंपने चाहिए, स्कूल के कार्यक्रम में दी गयी हिदायतों का पालन कीजिए। अगर विद्यार्थी-भाग पेश करने के लिए बहनें ज़्यादा हैं और भाई कम, तो भाइयों को ऐसे भाग पेश करने के काफी मौके दीजिए जो सिर्फ पढ़ाई करने के भाग नहीं होते।
भाग सौंपते वक्त, लोगों के हालात के बारे में सोचिए। क्या यह ज़रूरी है कि उसी हफ्ते एक प्राचीन या सहायक सेवक को स्कूल के कार्यक्रम में भाग दिया जाए जिस हफ्ते में उसे सेवा सभा में भाग पेश करना है, या जन भाषण देना है? अगर एक बहन के छोटे बच्चे का स्कूल में भाग है और बहन को अपने बच्चे की मदद करनी पड़ सकती है, तो क्या उसी दिन उस बहन को भी भाग देना ज़रूरी है? खासकर किसी बच्चे या बाइबल विद्यार्थी के लिए जिसका बपतिस्मा नहीं हुआ, विषय कहीं बहुत ज़्यादा मुश्किल तो नहीं है? यह भी अच्छी तरह से देख लीजिए कि जिस मुद्दे पर विद्यार्थी को काम करने के लिए कहा गया है, उसके साथ उसका भाग मेल खाता है या नहीं।
बहनें अपना भाग पेश करने के लिए, आम तौर पर पेज 78 और 82 पर दी गयी हिदायतों के मुताबिक अपनी पसंद की कोई सैटिंग चुनेंगी। हर बहन के साथ सहायक के तौर पर दूसरी बहन को नियुक्त किया जाना चाहिए, लेकिन बहनें चाहें तो एक और सहायक भी ले सकती हैं। अगर एक बहन अपनी सैटिंग के मुताबिक किसी और को अपना सहायक चुनने की इजाज़त माँगती है, तो ऐसी गुज़ारिश को स्वीकार किया जाना चाहिए।
दूसरी क्लासें। अगर सेवा स्कूल में 50 से ज़्यादा विद्यार्थी हैं, तो आप विद्यार्थी-भागों के लिए दूसरी क्लास चलाने का इंतज़ाम करने की भी सोच सकते हैं। आप अपनी कलीसिया की ज़रूरत के मुताबिक या तो सभी विद्यार्थी-भागों के लिए, या फिर आखिरी दो विद्यार्थी-भागों के लिए दूसरी क्लास का इंतज़ाम कर सकते हैं।
हर दूसरी क्लास के लिए एक काबिल सलाहकार का होना ज़रूरी है और बेहतर होगा अगर वह एक प्राचीन हो। जहाँ ज़रूरत पड़े, वहाँ एक काबिल सहायक सेवक, इस ज़िम्मेदारी को निभा सकता है। इन सलाहकारों का चुनाव, प्राचीनों के निकाय को करना चाहिए। आपको इन सलाहकारों के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि विद्यार्थियों की तरक्की पर पूरा-पूरा ध्यान दिया जा सके, फिर चाहे वे अपना अगला भाग किसी भी क्लास में पेश करें।
पढ़ाई के लिए खास क्लासें। अगर प्राचीनों का निकाय तय करता है कि कलीसिया के कई लोगों को, कलीसिया में बोली जानेवाली भाषा पढ़ाने की ज़रूरत है, तो आप परमेश्वर की सेवा स्कूल के साथ-साथ, पढ़ाई की क्लास का इंतज़ाम कर सकते हैं। इस क्लास में पढ़ने-लिखने की बुनियादी योग्यता बढ़ाना या फिर पढ़ाई में सुधार करना सिखाया जा सकता है।
ऐसी क्लासें, परमेश्वर की सेवा स्कूल में विद्यार्थी-भागों के दौरान ही चलाने की ज़रूरत नहीं है। विद्यार्थियों को सही तरीके से मदद देने के लिए, ज़्यादा वक्त की ज़रूरत पड़ सकती है, जो कि स्कूल के दौरान मुमकिन नहीं है। कलीसिया के प्राचीन तय कर सकते हैं कि विद्यार्थियों को किस तरह की मदद की ज़रूरत है और यह कब दी जानी चाहिए। ज़रूरत के मुताबिक या तो भाई-बहनों के समूह को एक-साथ या फिर हरेक को अलग-अलग सिखाया जा सकता है।
पढ़ाई की क्लास के लिए एक काबिल शिक्षक का होना ज़रूरी है। यह ज़िम्मेदारी किसी ऐसे भाई को सौंपना बेहतर होगा जो अच्छी तरह पढ़ता हो और भाषा का अच्छा ज्ञान रखता हो। अगर ऐसा कोई भाई न हो, तो प्राचीन किसी ऐसी काबिल बहन की मदद ले सकते हैं जिसका कलीसिया में अच्छा नाम है। ऐसी बहन को क्लास में सिखाते वक्त, अपना सिर ढकना चाहिए।—1 कुरि. 11:3-10; 1 तीमु. 2:11, 12.
अपने आपको पढ़ना-लिखना सिखाइए (अँग्रेज़ी) पुस्तिका बहुत-सी भाषाओं में उपलब्ध है। इसे पढ़ने-लिखने की बुनियादी योग्यता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। क्लास में सिखाने के लिए, विद्यार्थियों के पढ़ने की काबिलीयत के मुताबिक, दूसरे प्रकाशनों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जब विद्यार्थी अच्छी तरक्की कर लेते हैं, तो उन्हें दूसरों की तरह परमेश्वर की सेवा स्कूल में हिस्सा लेने का बढ़ावा देना चाहिए।
परमेश्वर की सेवा स्कूल के ओवरसियर की हैसियत से, आप कलीसिया को फायदा पहुँचाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। स्कूल के कार्यक्रम की अच्छी तैयारी कीजिए और रोमियों 12:6-8 की सलाह के मुताबिक, अपनी ज़िम्मेदारी को परमेश्वर से मिली अनमोल अमानत समझकर अच्छी तरह निभाइए।