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“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (1 थिस्सलुनीकियों-प्रकाशितवाक्य)
bsi08-2 पेज 24-25

बाइबल की किताब नंबर 63—2 यूहन्‍ना

लेखक: प्रेरित यूहन्‍ना

लिखने की जगह: इफिसुस या उसके आस-पास

लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 98

यूहन्‍ना की दूसरी पत्री छोटी है, इसे शायद पपाइरस के एक ही पन्‍ने पर लिखा गया होगा। मगर इसमें दर्ज़ बातें बहुत ही गहरा अर्थ रखती हैं। यह पत्री “चुनी हुई श्रीमती और उसके लड़केबालों” को लिखी गयी थी। यूनानी भाषा में “श्रीमती” के लिए शब्द “किरिया” इस्तेमाल होता था और यह स्त्रियों का नाम भी हुआ करता था। इसलिए कुछ बाइबल विद्वानों का मानना है कि यह पत्री “किरिया” नाम की महिला को लिखी गयी थी। दूसरी तरफ, कुछ लोगों का कहना है कि यूहन्‍ना ने किसी मसीही कलीसिया के नाम यह पत्री लिखी थी और वह उसका ज़िक्र “चुनी हुई श्रीमती” के तौर पर कर रहा था। शायद यूहन्‍ना ने मसीहियों के सतानेवालों को उलझन में डालने के लिए ऐसा किया होगा। अगर यह बात सच है, तो आखिरी आयत में ‘बहिन के लड़के-बालों’ की शुभकामनाएँ, दरअसल दूसरी कलीसिया के भाई-बहनों की भेजी शुभकामनाएँ थीं। ऐसा मालूम होता है कि यह पत्री किसी एक शख्स या कलीसिया को लिखी गयी थी, न कि पहली पत्री की तरह पूरी बिरादरी को।—आयत 1.

2 इसमें कोई दो राय नहीं कि यूहन्‍ना ही इस पत्री का लेखक था। इसमें लेखक खुद को “प्राचीन” कहकर बुलाता है। यह बात यूहन्‍ना पर एकदम ठीक बैठती है, क्योंकि एक तो उसकी उम्र ढल चुकी थी, ऊपर से वह कलीसिया का ‘खम्भा’ था और प्रेरितों में से वही ज़िंदा रह गया था। (गल. 2:9) यूहन्‍ना को सब पहचानते थे, इसलिए उसने अपने बारे में ज़्यादा परिचय नहीं दिया। यूहन्‍ना के लेखक होने का सबूत, इस बात से भी मिलता है कि पत्री की लेखन-शैली पहली पत्री और यूहन्‍ना की सुसमाचार की किताब से मिलती-जुलती है। ऐसा लगता है कि पहली पत्री की तरह, दूसरी पत्री भी सा.यु. 98 में इफिसुस या उसके आस-पास लिखी गयी थी। दूसरा और तीसरा यूहन्‍ना के बारे में मैक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया कहती है: “इनमें पायी जानेवाली समानता से हम अनुमान लगा सकते हैं कि इन्हें पहली पत्री के कुछ ही वक्‍त बाद इफिसुस से लिखा गया था। ये दोनों पत्रियाँ बताती हैं कि हर मसीही को कैसा व्यवहार करना चाहिए और इसके सिद्धांत पहली पत्री में साफ-साफ समझाए गए थे।”a इस पत्री की सच्चाई के बारे में क्या? दूसरी सदी के आइरीनियस ने इसका हवाला दिया और उसी ज़माने के सिकंदरिया के क्लैमेंट ने भी इस पत्री को सच्चा माना।b इसके अलावा, मूराटोरी खंड में भी यूहन्‍ना की पत्रियाँ पायी जाती हैं।

3 यूहन्‍ना ने पहली पत्री और दूसरी पत्री एक ही वजह से लिखी थी। वह झूठे शिक्षकों के हमलों से मसीही विश्‍वास की रक्षा करना चाहता था। वह सच्चाई की राह पर चलनेवाले और एक-दूसरे से प्यार करनेवाले मसीहियों को इन शिक्षकों से खबरदार करना चाहता था, ताकि वे उनसे कोसों दूर रह सकें।

क्यों फायदेमंद है

5 ऐसा मालूम होता है कि यूहन्‍ना के ज़माने में कुछ मसीहियों को यह बात रास नहीं आयी कि मसीह की शिक्षाएँ इतनी सरल हैं। वे ऐसी शिक्षाएँ चाहते थे जो उनके अहं को बढ़ावा दें, उन्हें दूसरों से ऊपर उठाएँ और जिनसे उन्हें दुनिया के तत्त्वज्ञानियों की तरह बुद्धिमान समझा जाए। इसके लिए वह मसीही कलीसिया को भ्रष्ट करने और उसमें फूट डालने को भी तैयार थे। आज भी कलीसिया में कुछ लोग उनके जैसे हैं। मगर यूहन्‍ना ने कलीसिया की एकता और शांति को बहुत ही अनमोल समझा। ऐसा माहौल तभी पैदा होता है, जब मसीही एक-दूसरे से प्यार करते हैं और पिता और पुत्र के साथ सच्ची शिक्षा में बने रहते हैं। यूहन्‍ना की तरह हमें भी कलीसिया की एकता को अनमोल समझना चाहिए। और जिन लोगों ने बाइबल की शिक्षाओं को त्याग दिया है, उनसे मेल-जोल रखना तो दूर, उन्हें सलाम भी नहीं करना चाहिए। जब हम परमेश्‍वर की आज्ञाओं के मुताबिक लगातार चलते हैं और सच्चे मसीहियों की संगति का आनंद उठाते हैं, तो हम यकीन रख सकते हैं कि “परमेश्‍वर पिता, और पिता के पुत्र यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह, और दया, और शान्ति, सत्य, और प्रेम सहित हमारे साथ रहेंगे।” (आयत 3) जी हाँ, यूहन्‍ना की दूसरी पत्री ज़ोर देती है कि मसीही एकता से ही हमें सच्ची खुशी मिलती है।

[फुटनोट]

a सन्‌ 1981 में दोबारा छापी गयी, चौथा भाग, पेज 955.

b नया बाइबल शब्दकोश (अँग्रेज़ी), दूसरा संस्करण, सन्‌ 1986, जे. डी. डगलस द्वारा संपादित, पेज 605.

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