बाइबल की किताब नंबर 66—प्रकाशितवाक्य
लेखक: प्रेरित यूहन्ना
लिखने की जगह: पतमुस
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 96
क्या प्रकाशितवाक्य में लाक्षणिक भाषा में दर्ज़ बातें हमें डराने के लिए हैं? बिलकुल नहीं! इसमें दी भविष्यवाणियों को सच होते देख शायद दुष्टों में दहशत फैले, लेकिन परमेश्वर के वफादार सेवक नहीं घबराएँगे। उलटा, वे ईश्वर-प्रेरणा से कहे किताब के शुरूआती शब्दों और समाप्ति में स्वर्गदूत के इन शब्दों से हामी भरेंगे: “धन्य है वह जो इस भविष्यद्वाणी के वचन को पढ़ता है, और वे जो सुनते हैं।” “धन्य है वह, जो इस पुस्तक की भविष्यद्वाणी की बातें मानता है।” (प्रका. 1:3; 22:7) हालाँकि प्रकाशितवाक्य को यूहन्ना की बाकी चार ईश्वर-प्रेरित किताबों से पहले लिखा गया था, मगर इसे बाइबल की 66 किताबों के संग्रह में आखिर में रखना बिलकुल सही है। वह क्यों? क्योंकि प्रकाशितवाक्य ही वह किताब है जो पढ़नेवालों को भविष्य में ले जाती है। वह उन्हें एक दर्शन दिखाती है कि परमेश्वर ने इंसानों के लिए क्या मकसद रखा है। इसके अलावा, यह बताती है कि आखिर में राज्य के ज़रिए यहोवा का नाम पवित्र किया जाएगा और उसकी हुकूमत बुलंद की जाएगी और यही बाइबल का शानदार विषय है।
2 प्रकाशितवाक्य की पहली आयत कहती है कि यह ‘यीशु मसीह का प्रकाशितवाक्य है, जो उसे परमेश्वर ने दिया और उस ने अपने स्वर्गदूत को भेजकर उसके द्वारा अपने दास यूहन्ना को बताया।’ इससे पता चलता है कि इस किताब में दी जानकारी यूहन्ना की तरफ से नहीं थी। उसने तो महज़ वे बातें दर्ज़ कीं, जो उसे बतायी गयी थीं। इसलिए इस किताब को यूहन्ना का प्रकाशितवाक्य नहीं कहा जा सकता। (1:1) दरअसल परमेश्वर ने भविष्य के बारे में अपना लाजवाब मकसद यूहन्ना पर ज़ाहिर किया था, इसलिए इस किताब का नाम, प्रकाशितवाक्य एकदम सही है। यूनानी में इसे एपोकलिप्सिस कहा जाता है, जिसका मतलब है, “प्रकट होना” या “परदा हटाना।”
3 प्रकाशितवाक्य के पहले अध्याय में यूहन्ना को इसका लेखक बताया गया है। यह यूहन्ना कौन था? किताब से हमें पता चलता है कि वह यीशु मसीह का दास, एक मसीही और क्लेश में अपने भाइयों का सहभागी था। और उसे देशनिकाला देकर पतमुस टापू पर कैद किया गया था। ज़ाहिर है, उसने जिनके लिए यह किताब लिखी थी, वे उसे अच्छी तरह जानते थे और उन्हें उसके बारे में ज़्यादा परिचय की ज़रूरत नहीं थी। तो फिर, हो-न-हो यह शख्स प्रेरित यूहन्ना ही था। प्राचीन समय के ज़्यादातर इतिहासकार भी यही मानते थे। सा.यु. दूसरी सदी के शुरूआती दौर के इतिहासकार पेपीअस का कहना है कि प्रकाशितवाक्य की किताब एक प्रेरित ने लिखी थी। दूसरी सदी का जस्टिन मार्टर अपनी किताब, “ट्रायफो नाम के यहूदी से बातचीत” (अँग्रेज़ी, LXXXI) में कहता है: “यूहन्ना नाम का एक शख्स शुरू की कलीसिया का एक सदस्य और मसीह का प्रेरित था। उसने उन भविष्यवाणियों का ऐलान किया, जो उस पर प्रकट की गयी थीं।”a आइरीनियस साथ ही, दूसरी और तीसरी सदी के इतिहासकार सिकंदरिया का क्लैमेंट और टर्टलियन भी साफ-साफ बताते हैं कि प्रेरित यूहन्ना ही प्रकाशितवाक्य का लेखक था। तीसरी सदी का मशहूर बाइबल विद्वान ऑरिजन कहता है: “मैं यूहन्ना को वह शख्स मानता हूँ जो [आखिरी रात] यीशु की छाती की ओर झुककर बैठा था। उसने सुसमाचार की एक किताब . . . और प्रकाशितवाक्य की किताब भी लिखी।”b
4 यूहन्ना ने अपनी बाकी किताबों में प्यार पर बहुत ज़ोर दिया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह प्रकाशितवाक्य जैसी दमदार किताब नहीं लिख सकता। याद कीजिए कि एक मौके पर उसने और उसके भाई, याकूब ने क्या किया। वे फलाँ शहर के सामरियों पर इस कदर भड़क उठे कि आकाश से आग बरसाकर उन्हें भस्म करना चाहते थे। और इसी वजह से उन्हें “बूअनरगिस” यानी “गर्जन के पुत्र” नाम दिया गया। (मर. 3:17; लूका 9:54) प्रकाशितवाक्य का विषय यूहन्ना की बाकी किताबों के विषय से अलग है। इस बात को ध्यान में रखने से हमारे लिए यह समझना आसान हो जाता है कि प्रकाशितवाक्य की लेखन-शैली क्यों हटकर है। यूहन्ना दर्शनों में ऐसी अजीबो-गरीब चीज़ें देखता है, जो उसने पहले कभी नहीं देखी थीं। इस किताब का भविष्यवक्ताओं की बाकी किताबों के साथ बढ़िया तालमेल है, जो पुख्ता करता है कि यह वाकई सच्ची किताब है और परमेश्वर के वचन का हिस्सा है।
5 सबसे पुराने सबूत के मुताबिक यूहन्ना ने प्रकाशितवाक्य की किताब यरूशलेम के विनाश के करीब 26 साल बाद लिखी यानी लगभग सा.यु. 96 में। उस वक्त सम्राट डोमिशियन की हुकूमत का आखिरी दौर चल रहा था। इसे पुख्ता करने के लिए, आइरीनियस अपनी किताब “धर्मत्याग के खिलाफ” (अँग्रेज़ी, V, xxx) में प्रकाशितवाक्य के बारे में कहता है: “इसे लिखे ज़्यादा समय नहीं हुआ था। यह हमारे समय में यानी डोमिशियन की हुकूमत के आखिर में लिखी गयी।”c यूसेबियस और जेरोम भी इस बात से सहमत हैं। डोमिशियन, टाइटस का भाई था। यह वही टाइटस था, जिसकी अगुवाई में रोमी फौज ने यरूशलेम की ईंट-से-ईंट बजायी थी। उसकी मौत के बाद यानी प्रकाशितवाक्य के लिखे जाने से पंद्रह साल पहले, डोमिशियन सम्राट बना। सम्राट बनने पर उसने अपनी प्रजा से माँग की कि वे उसे ईश्वर मानकर उसकी पूजा करें। उसने खुद को यह खिताब भी दिया, डोमिनस एट ड्यू, नॉस्टर (मतलब “हमारा प्रभु और ईश्वर”)।d झूठे देवताओं की पूजा करनेवालों को सम्राट की उपासना करने से कोई एतराज़ नहीं था, मगर शुरू के मसीहियों को यह बिलकुल गवारा नहीं था। उन्होंने अपने विश्वास से समझौता करने से साफ इनकार कर दिया। नतीजा, डोमिशियन की हुकूमत (सा.यु. 81-96) के आखिर में मसीहियों पर ज़ुल्मों की भयंकर आँधी चली। माना जाता है कि डोमिशियन ने ही यूहन्ना को देशनिकाला देकर पतमुस भेजा था। सामान्य युग 96 में डोमिशियन का कत्ल हुआ और उसकी जगह सम्राट नरवा ने राजगद्दी सँभाली। वह डोमिशियन की तरह तानाशाह नहीं था और माना जाता है कि उसने यूहन्ना को कैद से रिहा करवाया था। पतमुस में कैद रहते वक्त ही यूहन्ना को दर्शन मिले थे, जिन्हें उसने प्रकाशितवाक्य में दर्ज़ किया।
6 यूहन्ना को जो दर्शन दिए गए थे, उसने उन्हें जैसे-तैसे दर्ज़ नहीं किया। इसके बजाय, प्रकाशितवाक्य की किताब शुरू से लेकर आखिर तक सिलसिलेवार ढंग से बताती है कि आनेवाले समयों में क्या होगा। यह एक-के-बाद-एक दर्शनों का ब्यौरा देती है और इनके आखिर में परमेश्वर के राज्य से जुड़े उद्देश्यों की पूरी तसवीर साफ उभर आती है। तो फिर, हमें इस किताब को किस नज़र से देखना चाहिए? हमें इसे एक संपूर्ण किताब मानना चाहिए, जिसके सभी भागों का एक-दूसरे से बढ़िया तालमेल है और जो हमें यूहन्ना के समय से लेकर आगे भविष्य की जानकारी देते हैं। किताब के परिचय (प्रका. 1:1-9) के बाद, इसे 16 दर्शनों में बाँटा जा सकता है: (1) 1:10-3:22; (2) 4:1-5:14; (3) 6:1-17; (4) 7:1-17; (5) 8:1-9:21; (6) 10:1-11:19; (7) 12:1-17; (8) 13:1-18; (9) 14:1-20; (10) 15:1-16:21; (11) 17:1-18; (12) 18:1-19:10; (13) 19:11-21; (14) 20:1-10; (15) 20:11-21:8; (16) 21:9-22:5. इन दर्शनों के बाद उमंग और जोश भर देनेवाली समाप्ति दी गयी है। इसमें यहोवा, यीशु, स्वर्गदूत और यूहन्ना बारी-बारी अपनी बात कहते हैं, जिनके ज़रिए हमें प्रकाशितवाक्य मिला है।—22:6-21.
क्यों फायदेमंद है
28 बाइबल की सभी ईश्वर-प्रेरित किताबों के लिए प्रकाशितवाक्य क्या ही शानदार समाप्ति है! इस किताब से कोई भी बात निकाली नहीं गयी और ना ही ऐसा कोई भाग है जिसे समझाया न गया हो। इसे पढ़कर हम शुरू की एक-एक बात को और वे सब कैसे शानदार तरीके से पूरी होंगी, यह अच्छी तरह समझ पाते हैं। बाइबल की पहली किताब में जिस कहानी की शुरूआत हुई, उसकी समाप्ति इस किताब में दी गयी है। इसकी कुछ मिसालों पर गौर कीजिए। उत्पत्ति 1:1 बताता है कि परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। प्रकाशितवाक्य 21:1-4 नए आकाश और नयी पृथ्वी की सृष्टि के बारे में बताता है और यह भी कि किस तरह इंसानों को बेशुमार आशीषें मिलेंगी। यही भविष्यवाणी, यशायाह 65:17, 18; 66:22 और 2 पतरस 3:13 में भी दी गयी है। जिस तरह परमेश्वर ने आदम से कहा था कि अगर वह उसकी आज्ञा नहीं मानेगा, तो अवश्य मर जाएगा, उसी तरह परमेश्वर ने आज्ञाकारी इंसानों से वादा किया कि उनकी ‘कभी मृत्यु न होगी।’ (उत्प. 2:17; प्रका. 21:4, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) जब सर्प ने इंसान को धोखा दिया, तो परमेश्वर ने भविष्यवाणी की कि उसका सिर कुचल दिया जाएगा। प्रकाशितवाक्य बताता है कि कैसे उस पुराने सर्प यानी शैतान को हमेशा के लिए नाश किया जाएगा। (उत्प. 3:1-5, 15; प्रका. 20:10) आज्ञा तोड़नेवाले पहले इंसान को अदन से खदेड़ा गया था, जहाँ जीवन का वृक्ष लगा था। मगर आज्ञा माननेवाले ‘जाति जाति के लोगों को चंगा’ करने के लिए लाक्षणिक मायने में जीवन के वृक्ष लगे होंगे। (उत्प. 3:22-24; प्रका. 22:2) जिस तरह वाटिका को सींचने के लिए अदन से नदी बहती थी, उसी तरह परमेश्वर के सिंहासन से जीवन देनेवाली और उसे कायम रखनेवाली एक लाक्षणिक नदी बहती है। यह बात यहेजकेल के दर्शन से मिलती-जुलती है। इससे हमें यीशु के ये शब्द भी याद आते हैं कि कैसे जल ‘एक सोता बनकर अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।’ (उत्प. 2:10; प्रका. 22:1, 2; यहे. 47:1-12; यूह. 4:13, 14) पहले स्त्री-पुरुष को परमेश्वर की मौजूदगी से दूर भगाया गया था, मगर संसार पर जीत हासिल करनेवाले वफादार जन परमेश्वर का मुँह देखेंगे। (उत्प. 3:24; प्रका. 22:4) इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रकाशितवाक्य के इन रोमांचक दर्शनों की जाँच करना हमारे लिए फायदेमंद है!
29 ज़रा इस पर भी ध्यान दीजिए कि कैसे प्रकाशितवाक्य दिखाता है कि दुष्ट बाबुल के बारे में की गयी भविष्यवाणियों का एक-दूसरे से गहरा ताल्लुक है। यशायाह ने बहुत पहले बाबुल के गिरने की भविष्यवाणी करते हुए कहा था: “गिर पड़ा, बाबुल गिर पड़ा।” (यशा. 21:9) यिर्मयाह ने भी बाबुल के विरुद्ध भविष्यवाणी की। (यिर्म. 51:6-12) प्रकाशितवाक्य लाक्षिणक भाषा में ‘बड़े बाबुल’ यानी “पृथ्वी की वेश्याओं और घृणित वस्तुओं की माता” का ज़िक्र करता है। यूहन्ना दर्शन में देखता है कि इस बाबुल को भी गिरा दिया गया। वह ऐलान करता है: “गिर गया बड़ा बाबुल गिर गया है।” (प्रका. 17:5; 18:2) क्या आपको दानिय्येल का वह दर्शन याद है, जिसमें परमेश्वर एक राज्य खड़ा करता है, जो दूसरे राज्यों को चूर-चूर कर देता और वह “सदा” स्थिर रहता है? गौर कीजिए, इस दर्शन का स्वर्ग में किए उस ऐलान से क्या ताल्लुक है, जिसके बारे में प्रकाशितवाक्य बताता है: “जगत का राज्य हमारे प्रभु का, और उसके मसीह का हो गया। और वह युगानुयुग राज्य करेगा।” (दानि. 2:44; प्रका. 11:15, 16क) दानिय्येल ने अपने दर्शन में देखा कि ‘मनुष्य के सन्तान सा कोई आकाश के बादलों समेत आ रहा था, और उसको ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, जो अटल रहेगा।’ प्रकाशितवाक्य बताता है कि यीशु मसीह ही “पृथ्वी के राजाओं का हाकिम है,” जो “बादलों के साथ आनेवाला है और हर एक आंख उसे देखेगी।” (दानि. 7:13, 14; प्रका. 1:5, 7) इसके अलावा, दानिय्येल के दर्शनों में देखे गए जंतुओं और प्रकाशितवाक्य में बताए पशुओं के बीच भी कुछ समानताएँ हैं। (दानि. 7:1-8; प्रका. 13:1-3; 17:12) सच, प्रकाशितवाक्य में ऐसी ढेरों बातें हैं, जिनका अध्ययन करने से हमारा विश्वास मज़बूत हो सकता है।
30 प्रकाशितवाक्य में परमेश्वर के राज्य के बारे में बड़ा ही लाजवाब और कई पहलुओंवाला दर्शन दिया गया है। इस राज्य के बारे में पुराने ज़माने के नबियों, यीशु और उसके चेलों ने जो बातें कही थीं, उन पर यह किताब खुलकर चर्चा करती है। प्रकाशितवाक्य से हम अच्छी तरह समझ पाते हैं कि कैसे राज्य के ज़रिए यहोवा का नाम पवित्र किया जाएगा। यह कहती है: “पवित्र, पवित्र, पवित्र प्रभु परमेश्वर, सर्वशक्तिमान।” वह “महिमा, और आदर, और सामर्थ के योग्य है।” वाकई, यहोवा मसीह के ज़रिए ‘अपनी बड़ी सामर्थ काम में लाकर राज्य करता है।’ परमेश्वर के इस बेटे यानी ‘राजाओं के राजा और प्रभुओं के प्रभु’ के बारे में बताया गया है कि वह गज़ब का जोश दिखाकर जाति-जाति को मारेगा और “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के भयानक प्रकोप की जलजलाहट की मदिरा के कुंड में दाख रौंदेगा।” इस किताब में बार-बार ज़ोर दिया गया है कि जैसे-जैसे यहोवा की हुकूमत बुलंद होने का समय करीब आ रहा है, राज्य के उद्देश्यों से जुड़े हर व्यक्ति या चीज़ को पवित्र होना चाहिए। मिसाल के लिए, “दाऊद की कुंजी” रखनेवाले मेम्ने यानी यीशु मसीह को और स्वर्गदूतों को भी पवित्र बताया गया है। जो पहले पुनरुत्थान के भागी हैं, उन्हें भी “धन्य और पवित्र” कहा गया है। इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि “पवित्र नगर यरूशलेम” में ‘किसी भी अपवित्र वस्तु या घृणित काम करनेवाले’ को घुसने नहीं दिया जाएगा। इन बातों से उन लोगों को यहोवा के सामने शुद्ध बने रहने का ज़बरदस्त बढ़ावा मिलता है, जिन्हें “परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक” बनने के लिए मेम्ने के लहू से मोल लिया गया है। “बड़ी भीड़” के लोगों के लिए भी ज़रूरी है कि वे “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत” करें, ताकि वे यहोवा की पवित्र सेवा कर सकें।—प्रका. 3:7; 4:8, 11; 5:9, 10; 7:9, 14, 15; 11:17; 14:10; 19:15, 16; 20:6; 21:2, 10, 27; 22:19.
31 राज्य के सिलसिले में कुछ ऐसी खासियतें हैं, जिनके बारे में सिर्फ इसी किताब में बताया गया है। उन पर ध्यान देने से परमेश्वर के वैभवशाली और पवित्र राज्य का दर्शन हमारे दिलो-दिमाग में रच-बस जाता है। जैसे, सिय्योन पर्वत पर मेम्ने के साथ राज्य के वारिस खड़े हैं और वे एक नया गीत गा रहे हैं, जिसे उन्हें छोड़ और कोई नहीं सीख सकता। हमें उन लोगों की गिनती बतायी गयी है, जिन्हें राज्य में प्रवेश करने के लिए पृथ्वी पर से मोल लिया गया है। और उनकी गिनती है, 1,44,000. हमें यह भी बताया गया है कि इन लोगों पर मुहर लगायी गयी है और ये आध्यात्मिक इस्राएल के 12 गोत्रों से हैं। सिर्फ प्रकाशितवाक्य समझाता है कि मसीह के साथ पहिले पुनरुत्थान में भागी होनेवाले ये “याजक और राजा” उसके संग “हजार वर्ष” तक हुकूमत करेंगे। यही नहीं, सिर्फ इसी किताब की बदौलत हम “पवित्र नगर नये यरूशलेम” को पूरी तरह निहार पाते हैं। हम उस नगर की शोभा, उसके बारह फाटकों और बारह नींव के पत्थरों को देख पाते हैं। और यह भी कि यहोवा और मेम्ना उसका मंदिर हैं और नगर के राजाओं पर यहोवा सदा तक उजियाला चमकाता रहेगा।—7:4-8; 14:1, 3; 20:6; 21:2, 10-14, 22; 22:5.
32 यह कहना गलत नहीं होगा कि “नये आकाश” और “पवित्र नगर नये यरूशलेम” का दर्शन, उन भविष्यवाणियों का निचोड़ है जो प्राचीन समयों से राज्य के वंश के बारे में की गयी थीं। इब्राहीम इसी वंश की आस लगाए हुए था, जिसके ज़रिए ‘पृथ्वी के सारे कुल आशीष पाते।’ वह “उस स्थिर नेववाले नगर” की भी उम्मीद लगाए हुए था, “जिस का रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्वर है।” प्रकाशितवाक्य के दर्शन में उस नगर की पहचान बतायी गयी है और उसे ‘नया आकाश’ कहा गया है। यह एक नयी सरकार यानी परमेश्वर का राज्य है। यह राज्य, नए यरूशलेम (मसीह की दुल्हन) और उसके दूल्हे से मिलकर बना है। और वे पृथ्वी पर हुकूमत करने के लिए एक धर्मी सरकार चलाएँगे। यहोवा वफादार इंसानों से वादा करता है कि वे “उसके लोग” होंगे और ऐसे हालात का लुत्फ उठाएँगे, जैसे अदन के बाग में थे। यानी उन पर पाप, मौत और गम का दूर-दूर तक साया नहीं होगा। इसी बात पर प्रकाशितवाक्य दो बार ज़ोर देते हुए बताता है कि परमेश्वर “उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा।”—उत्प. 12:3; 22:15-18; इब्रा. 11:10; प्रका. 7:17; 21:1-4.
33 जी हाँ, पूरी बाइबल की यह क्या ही शानदार समाप्ति है! “वे बातें” सचमुच बेमिसाल हैं, “जो शीघ्र होनेवाली हैं।” (प्रका. 1:1, NHT) उस समय ‘नबियों को प्रेरित करनेवाले प्रभु’ यहोवा का नाम पवित्र किया जाएगा। (22:6, बुल्के बाइबिल) सोलह सौ सालों के दौरान लिखी भविष्यवाणियों की एक-एक बात पूरी होगी और सभी वफादार जनों को अपने कामों का इनाम मिलेगा। “पुराना सांप” मार दिया जाएगा, उसकी सेना और सारी बुराइयों का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा। (12:9) फिर परमेश्वर का राज्य “नये आकाश” के तौर पर अपनी हुकूमत चलाएगा और पूरी कायनात में परमेश्वर के नाम की बड़ाई होगी। धरती को बहाल किया जाएगा और उत्पत्ति के पहले अध्याय में बताए यहोवा के मकसद के मुताबिक लोग पृथ्वी को भर देंगे और उसे अपने वश में कर लेंगे। बहाल की गयी इस धरती पर उन्हें हमेशा तक आशीषें मिलती रहेंगी। (उत्प. 1:28) सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र सचमुच साबित करता है कि यह “परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।” यहोवा ने इसका इस्तेमाल करके विश्वास दिखानेवाले कुशल और तत्पर लोगों की अगुवाई की है, ताकि वे यह बेमिसाल दिन देख सकें। इसलिए शास्त्र का अध्ययन करने और अपने विश्वास को मज़बूत करने का यही वक्त है। इसमें दी आज्ञाएँ मानिए और परमेश्वर से आशीषें पाइए। उस रास्ते पर चलते रहिए, जो अनंत जीवन की ओर ले जाता है। ऐसा करने से आप भी पूरे भरोसे के साथ यह कह सकेंगे, जो प्रकाशितवाक्य के आखिर में लिखा है: “आमीन। हे प्रभु यीशु आ।”—2 तीमु. 3:16, NHT; प्रका. 22:20.
34 आज हमें ‘हमारे प्रभु के और उसके मसीह के राज्य’ के बारे में बड़ाई करने से बेइंतिहा खुशी मिल सकती है। क्योंकि इससे “सर्वशक्तिमान [“यहोवा,” NW] परमेश्वर” के बेजोड़ नाम को सदा के लिए पवित्र ठहराया जाता है।—प्रका. 11:15, 17.
[फुटनोट]
a दी एण्टी-नाइसीन फादर्स, भाग 1, पेज 240.
b चर्च का इतिहास (अँग्रेज़ी), यूसेबियस, VI, xxv, 9, 10.
c दी एण्टी-नाइसीन फादर्स, भाग 1, पेज 559-60.
d कैसरों की ज़िंदगी (अँग्रेज़ी), (डोमिशियन, XIII, 2).