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bm भाग 23 पेज 26
पौलुस एथेन्स में एक भाषण देता है

भाग 23

खुशखबरी फैली दूर-दूर तक

पौलुस ने खुशखबरी सुनाने के लिए जहाज़ पर और पैदल मीलों तक का सफर तय किया

मसीही बनने के बाद, पौलुस ने ज़ोर-शोर से खुशखबरी की गवाही दी। इस वजह से उसे कई अत्याचार सहने पड़े। जो इंसान एक वक्‍त पर मसीहियों पर ज़ुल्म ढाता था, अब वह खुद ज़ुल्मों का शिकार होने लगा। पौलुस ने परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी दूर-दूर तक फैलाने के लिए कई दौरे भी किए। वही राज, जिसके ज़रिए परमेश्‍वर इंसानों के लिए ठहराया अपना मकसद पूरा करनेवाला है। इस काम में पौलुस कभी नहीं थका।

पौलुस अपने पहले दौरे में लुस्त्रा शहर गया। वहाँ उसने एक आदमी को चंगा किया, जो जन्म से लँगड़ा था। यह देखकर लोग पौलुस और उसके साथी बरनबास को देवता कहने लगे और उनके आगे बलिदान चढ़ाने लगे। पौलुस और बरनबास ने बड़ी मुश्‍किल से उन्हें रोका। मगर हालात बदलते देर नहीं लगी। दुश्‍मनों के कान भरने पर वही लोग पौलुस पर पत्थरवाह करने लगे। फिर उन्होंने उसे मरा समझकर छोड़ दिया। मगर पौलुस ज़िंदा बच गया। कुछ समय बाद, वह दोबारा लुस्त्रा आया और उसने मसीहियों की हौसला-अफज़ाई की।

कुछ यहूदी मसीहियों ने दावा किया कि गैर-यहूदी मसीहियों के लिए मूसा के कानून के कुछ नियमों को मानना बेहद ज़रूरी है। पौलुस यह मसला यरूशलेम में प्रेषितों और बुज़ुर्गों के पास ले आया। उन्होंने शास्त्रों के आधार पर मामले की जाँच की और फिर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के निर्देशन में एक फैसले पर पहुँचे। उन्होंने सभी मंडलियों को अपना यह फैसला लिखकर भिजवाया। उन्होंने चिट्ठी के ज़रिए मसीहियों से कहा कि वे मूर्तिपूजा, लहू, व्यभिचार और गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से दूर रहें। ये आज्ञाएँ ‘ज़रूरी बातों’ में शामिल थीं, जिन्हें मानने के लिए मूसा के कानून पर अमल करने की ज़रूरत नहीं थी।—प्रेषितों 15:28, 29.

अपने दूसरे दौरे पर पौलुस बिरीया शहर गया, जो आज ग्रीस देश में हैं। वहाँ रहनेवाले यहूदियों ने उत्सुकता से परमेश्‍वर का वचन कबूल किया। वे हर दिन बड़े ध्यान से शास्त्र की जाँच करते थे कि जो बातें वे पौलुस से सुन रहे थे, वे ऐसी ही लिखी हैं या नहीं। मगर वहाँ भी पौलुस का विरोध किया गया, इसलिए उसे वह शहर छोड़ना पड़ा। फिर वह एथेन्स शहर आया। वहाँ के बड़े-बड़े ज्ञानियों के बीच उसने एक दमदार भाषण दिया। भाषण देते वक्‍त उसने जिस तरह व्यवहार-कुशलता से काम लिया, परख-शक्‍ति का इस्तेमाल किया और अपनी बातों से सुननेवालों को कायल किया, उससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं।

तीसरे दौरे के बाद पौलुस, यरूशलेम आया। जब वह मंदिर गया तो कुछ यहूदियों ने दंगा मचा दिया और पौलुस की जान लेने की कोशिश की। रोमी सैनिकों ने आकर उसे बचा लिया और फिर उससे पूछताछ की गयी। पौलुस एक रोमी नागरिक था, इसलिए बाद में उसने रोमी राज्यपाल फेलिक्स के सामने अपनी सफाई पेश की। यहूदियों ने पौलुस के खिलाफ जो भी इलज़ाम लगाए, वे उन्हें साबित नहीं कर पाए। कुछ समय बाद, पौलुस का मुकदमा एक और रोमी राज्यपाल, फेस्तुस के सामने लाया गया। फेस्तुस ने उसे यहूदियों के हवाले कर देने की सोची। मगर पौलुस यह नहीं चाहता था, इसलिए उसने कहा: “मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ।” इस पर फेस्तुस ने कहा: “तू ने सम्राट से फरियाद की है, तू सम्राट के पास जाएगा।”—प्रेषितों 25:11, 12.

रोमी सैनिक, पौलुस की मदद करते हैं ताकि वह गुस्से से भरी भीड़ से भाग सके

पौलुस को सम्राट के सामने पेश करने के लिए जहाज़ से इटली ले जाया गया। रास्ते में उसका जहाज़ तूफान की चपेट में आ गया और चकनाचूर हो गया। इसलिए उसे माल्टा द्वीप में पनाह लेनी पड़ी और वह पूरे सर्दी के मौसम में वहीं रहा। आखिरकार जब वह रोम पहुँचा, तो उसने किराए का एक मकान लिया और वहाँ दो साल तक रहा। हालाँकि उस पर कड़ी नज़र रखी गयी, फिर भी जो कोई उसके पास आता, उसे वह परमेश्‍वर के राज के बारे में गवाही ज़रूर देता था।

—यह भाग प्रेषितों 11:22-28:31 पर आधारित है।

  • लुस्त्रा में जब पौलुस ने एक लँगड़े आदमी को चंगा किया, तो क्या हुआ?

  • मूसा के कानून के बारे में उठाए मसले को कैसे सुलझाया गया?

  • पौलुस को रोम क्यों ले जाया गया? वहाँ उसने क्या किया?

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