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  • यहोवा के साक्षी किस तरह के लोग हैं?
    आज कौन यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं?
    • पाठ 1

      यहोवा के साक्षी किस तरह के लोग हैं?

      डेनमार्क में यहोवा का एक साक्षी

      डेनमार्क

      ताईवान में यहोवा के साक्षी

      ताईवान

      वेनेज़ुएला में यहोवा के साक्षी

      वेनेज़ुएला

      भारत में यहोवा के साक्षी

      भारत

      आप ऐसे कितने लोगों को जानते हैं जो यहोवा के साक्षी हैं? शायद हममें से कुछ आपके पड़ोसी, साथ काम करनेवाले, या स्कूल-कॉलेज में साथ पढ़नेवाले हों। या फिर हो सकता है, हमने आपके साथ कभी बाइबल से चर्चा की हो। शायद आप जानना चाहें कि हम असल में कौन हैं और क्यों दूसरों को अपने विश्‍वास के बारे में बताते हैं।

      हम आपके जैसे ही आम इंसान हैं। हम समाज के अलग-अलग तबके से हैं और हमारी परवरिश अलग-अलग माहौल में हुई है। हममें से कुछ लोग पहले दूसरे धर्म को मानते थे और कुछ तो परमेश्‍वर पर विश्‍वास ही नहीं करते थे। लेकिन फिर हममें से हरेक ने बाइबल की शिक्षाओं की गहराई से जाँच की। (प्रेषितों 17:11) जब हमें यकीन हो गया कि हम जो सीख रहे हैं वही सच्चाई है, तब हमने खुद यह फैसला लिया कि हम यहोवा परमेश्‍वर की उपासना करेंगे।

      हमें बाइबल का अध्ययन करने से फायदा होता है। बाकी लोगों की तरह हमें भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और अपनी कमज़ोरियों से लड़ना पड़ता है। लेकिन हमने देखा है कि हर दिन बाइबल सिद्धांतों को लागू करने से हमारी ज़िंदगी में काफी सुधार आया है। (भजन 128:1, 2) यह एक वजह है कि क्यों हम बाइबल से सीखी अच्छी बातें दूसरों को बताते हैं।

      हम परमेश्‍वर के ठहराए स्तरों के मुताबिक जीते हैं। बाइबल में दिए स्तरों को मानने से हम तन और मन से स्वस्थ रहते हैं। ये स्तर हमें दूसरों की इज़्ज़त करना, ईमानदारी और कृपा जैसे गुण दिखाना सिखाते हैं। इन स्तरों की मदद से हम एक अच्छे इंसान बन पाते हैं जिससे समाज को फायदा होता है। साथ ही, ये स्तर परिवारों को टूटने से बचाते हैं और शुद्ध चालचलन का बढ़ावा देते हैं। हम पूरी दुनिया में फैले एक ऐसे भाईचारे का हिस्सा हैं, जिसके धार्मिक विश्‍वास एक हैं और जो देश या जाति के नाम पर नहीं बँटा है, क्योंकि हम मानते हैं कि “परमेश्‍वर भेदभाव नहीं करता।” तो हालाँकि हम मामूली लोग हैं, मगर एक समूह के तौर पर हम औरों से बिलकुल अलग हैं।—प्रेषितों 4:13; 10:34, 35.

      • यहोवा के साक्षियों और दूसरे लोगों में क्या बात एक-जैसी है?

      • बाइबल के अध्ययन से साक्षियों ने किन स्तरों को मानना सीखा है?

  • हमें यहोवा के साक्षी क्यों कहा जाता है?
    आज कौन यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं?
    • पाठ 2

      हमें यहोवा के साक्षी क्यों कहा जाता है?

      नूह

      नूह

      अब्राहम और सारा

      अब्राहम और सारा

      मूसा

      मूसा

      यीशु मसीह

      यीशु मसीह

      कई लोग सोचते हैं कि यहोवा के साक्षी, कोई नया धर्म है। लेकिन देखा जाए तो आज से करीब 2,700 साल पहले ही एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर के उपासकों को उसके “साक्षी” कहा गया था। (यशायाह 43:10-12) मगर यहोवा के साक्षी, यह नाम हमने 1931 में अपनाया, इससे पहले हम ‘बाइबल विद्यार्थी’ के नाम से जाने जाते थे। हमने यहोवा के साक्षी, यह नाम क्यों अपनाया?

      इस नाम से पता चलता है कि हम किस परमेश्‍वर की उपासना करते हैं। प्राचीन हस्तलिपियों के मुताबिक परमेश्‍वर का नाम यहोवा, बाइबल में करीब 7,000 बार आता है। मगर बाइबल के कई अनुवादों में इस नाम के बजाय, प्रभु या परमेश्‍वर जैसी उपाधियाँ इस्तेमाल की गयी हैं। लेकिन सदियों पहले जब सच्चा परमेश्‍वर, मूसा को अपने बारे में बता रहा था तो उसने अपना नाम यहोवा बताया और कहा: “सदा तक मेरा नाम यही रहेगा।” (निर्गमन 3:15) इस तरह यहोवा ने खुद को दूसरे झूठे देवताओं से अलग दिखाया। हमें गर्व है कि हम परमेश्‍वर का पवित्र नाम धारण करते हैं।

      इस नाम से हमारे मकसद के बारे में पता चलता है। प्राचीन समय से ही कई लोग यहोवा पर अपने विश्‍वास की गवाही देते आए हैं, इसकी शुरूआत नेक इंसान हाबिल ने की। फिर नूह, अब्राहम, सारा, मूसा, दाविद और दूसरे कई लोग ‘गवाहों के ऐसे घने बादल’ में शामिल होते गए। (इब्रानियों 11:4–12:1) जिस तरह एक गवाह का फर्ज़ होता है कि वह निर्दोष व्यक्‍ति के पक्ष में गवाही दे, उसी तरह हमारा भी फर्ज़ है कि हम अपने परमेश्‍वर यहोवा के पक्ष में गवाही दें। और हमने ठान लिया है कि हम उसके बारे में लोगों को सच्चाई बताने से पीछे नहीं हटेंगे।

      हम यीशु की मिसाल पर चल रहे हैं। बाइबल यीशु को “विश्‍वासयोग्य और सच्चा साक्षी” कहती है। (प्रकाशितवाक्य 3:14) खुद यीशु ने कहा कि उसने ‘परमेश्‍वर का नाम बताया है’ और परमेश्‍वर के बारे में “सच्चाई की गवाही” दी है। (यूहन्‍ना 17:26; 18:37) वह यहोवा का सबसे बड़ा साक्षी है। इसलिए मसीह के सच्चे चेलों को यहोवा का नाम धारण करना चाहिए और दूसरों को इसके बारे में बताना चाहिए। यहोवा के साक्षी यही करने की कोशिश करते हैं।

      • बाइबल विद्यार्थियों ने यहोवा के साक्षी, यह नाम क्यों अपनाया?

      • यहोवा के सेवक कब से उसके बारे में गवाही देते आए हैं?

      • यहोवा का सबसे बड़ा साक्षी कौन है?

      ज़्यादा जानिए

      जब आप हमारी मंडली के सदस्यों से मिलते हैं, तो उन्हें और अच्छी तरह जानने की कोशिश कीजिए। उनसे पूछिए, “आप यहोवा के साक्षी क्यों बने?”

  • बाइबल की सच्चाई को दोबारा कैसे ढूँढ़ा गया?
    आज कौन यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं?
    • पाठ 3

      बाइबल की सच्चाई को दोबारा कैसे ढूँढ़ा गया?

      1870 के दशक में एक समूह बाइबल का अध्ययन कर रहे हैं

      1870 का दशक, बाइबल विद्यार्थी

      एक आदमी प्रहरीदुर्ग का पहला अंक पढ़ रहा है

      सन्‌ 1879, प्रहरीदुर्ग का पहला अंक

      एक औरत प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! की पत्रिका को दिखाते हुए

      आज के समय में प्रहरीदुर्ग पत्रिका

      बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि यीशु की मौत के बाद, मसीहियों में से झूठे शिक्षक उठ खड़े होंगे जो बाइबल की सच्चाई को तोड़-मरोड़कर सिखाएँगे। (प्रेषितों 20:29, 30) और ऐसा ही हुआ। ये शिक्षक, यीशु की सिखायी बातों में झूठे धर्मों की शिक्षाएँ मिलाने लगे और एक नकली मसीही धर्म शुरू हो गया। (2 तीमुथियुस 4:3, 4) तो फिर, हम कैसे यकीन रख सकते हैं कि आज हमारे पास बाइबल की जो समझ है वह सही है?

      सच्चाई की रौशनी फैलाने का यहोवा का समय आया। यहोवा ने पहले ही बता दिया था कि ‘अंत के समय में सच्चा ज्ञान बहुत बढ़ जाएगा।’ (दानियेल 12:4) सन्‌ 1870 में सच्चाई की तलाश करनेवाले एक छोटे समूह को एहसास हुआ कि चर्च की बहुत-सी शिक्षाएँ बाइबल के मुताबिक नहीं हैं। इसलिए वे इस खोज में लग गए कि बाइबल असल में क्या सिखाती है और यहोवा ने उन्हें बाइबल की सही समझ पाने में मदद दी।

      सच्चे मनवालों ने गहराई से बाइबल का अध्ययन किया। उन बाइबल विद्यार्थियों ने, जो अब यहोवा के साक्षी के नाम से जाने जाते हैं, अध्ययन का एक ऐसा तरीका अपनाया जिसे हम आज भी इस्तेमाल करते हैं। वे एक विषय चुनते थे और बाइबल से उस पर चर्चा करते थे। जब बाइबल का कोई भाग उनके लिए समझना मुश्‍किल होता था, तो उसकी सही समझ पाने के लिए वे दूसरी आयतें देखते थे। और जब वे किसी नतीजे पर पहुँचते, जो बाइबल की बाकी आयतों से मेल खाता, तो वे उसे लिख लेते थे। इस तरह वे बाइबल को समझने के लिए बाइबल की ही मदद लेते थे। ऐसा करके वे उन सच्चाइयों को दोबारा ढूँढ़ पाए जो गुमनामी के अँधेरे में खो गयी थीं। जैसे वे परमेश्‍वर के नाम और उसके राज, इंसानों और पृथ्वी के लिए उसके मकसद, मरे हुओं की दशा और उनके दोबारा जी उठने के बारे में सही-सही समझ हासिल कर पाए। अपनी इस खोजबीन से वे कई झूठी शिक्षाओं और झूठे रीति-रिवाज़ों से आज़ाद हो पाए।—यूहन्‍ना 8:31, 32.

      सन्‌ 1879 के आते-आते बाइबल विद्यार्थी समझ गए कि अब समय आ गया है कि पूरी दुनिया में सच्चाई का ऐलान किया जाए। इसलिए उस साल से वे एक पत्रिका छापने लगे जो आज तक छापी जा रही है और वह है, प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है। आज हम 240 देशों में 750 से भी ज़्यादा भाषाओं में लोगों तक बाइबल की सच्चाई पहुँचा रहे हैं। वाकई, सच्चा ज्ञान बहुत बढ़ गया है!

      • यीशु की मौत के बाद बाइबल की सच्चाई का क्या हुआ?

      • हम किस तरह परमेश्‍वर के वचन में दी सच्चाई दोबारा ढूँढ़ पाए?

  • हमने नयी दुनिया अनुवाद क्यों निकाली?
    आज कौन यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे हैं?
    • पाठ 4

      हमने नयी दुनिया अनुवाद क्यों निकाली?

      एक पुरानी छपाई मशीन
      न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌ का पहला संस्करण रिलीज़ किया
      काँगो (किन्शासा) में लोग न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌ को पा कर खुश हुए

      काँगो (किन्शासा)

      न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌ रवांडा में रिलीज़ किया

      रवांडा

      साइमेकस खर्रे के एक टुकड़े में परमेश्‍वर का नाम

      ईसवी सन्‌ तीसरी या चौथी सदी के साइमेकस खर्रे का एक टुकड़ा, जिसमें भजन 69:31 में परमेश्‍वर का नाम दिया गया है

      यहोवा के साक्षियों ने कई दशकों तक बाइबल के अलग-अलग अनुवादों को छापा, बाँटा और उनका इस्तेमाल किया। लेकिन फिर हमें एक नए अनुवाद की ज़रूरत महसूस हुई, जो लोगों को “सच्चाई का सही ज्ञान” लेने में और मदद दे पाए क्योंकि सब लोगों के लिए परमेश्‍वर की यही मरज़ी है। (1 तीमुथियुस 2:3, 4) इसलिए 1950 से हम अलग-अलग भागों में अँग्रेज़ी की नयी दुनिया अनुवाद बाइबल रिलीज़ करने लगे। इसमें हमारे ज़माने की आम बोलचाल की भाषा इस्तेमाल की गयी है। इस बाइबल का अनुवाद 130 से भी ज़्यादा भाषाओं में किया जा चुका है और ध्यान रखा गया है कि अनुवाद बिलकुल सही-सही हो।

      एक ऐसी बाइबल की ज़रूरत थी जो समझने में आसान हो। भाषा समय के साथ बदलती रहती है। बाइबल के कई अनुवाद बहुत पहले किए गए थे, इसलिए उनकी भाषा पुरानी हो चुकी थी और कई शब्द तो समझ ही नहीं आते थे। साथ ही, इस दौरान बाइबल की और भी कई प्राचीन हस्तलिपियाँ मिलीं जो उसके मूल-पाठ से ज़्यादा मिलती-जुलती थीं। इन हस्तलिपियों से उस समय की इब्रानी, अरामी और यूनानी भाषा की बेहतर समझ मिली, जब बाइबल लिखी गयी थी।

      एक ऐसे अनुवाद की ज़रूरत थी, जिसमें परमेश्‍वर की कही बातों के साथ कोई छेड़छाड़ न की गयी हो। परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखे वचन में मनमाने तरीके से फेरबदल करने के बजाय, बाइबल अनुवादकों को चाहिए कि वे पूरी ईमानदारी से मूल-पाठ का सही-सही अनुवाद करें। लेकिन देखा जाए तो ज़्यादातर अनुवादों में परमेश्‍वर का नाम यहोवा इस्तेमाल नहीं किया गया है।

      एक ऐसी बाइबल की ज़रूरत थी जो उसके लिखवानेवाले, यानी यहोवा को महिमा दे। (2 तीमुथियुस 3:16) बाइबल की सबसे पुरानी हस्तलिपियों में यहोवा का नाम करीब 7,000 बार आता है और अँग्रेज़ी की नयी दुनिया अनुवाद में उन सब जगहों में यह नाम वापस डाला गया है। नीचे ऐसी ही एक हस्तलिपि दिखायी गयी है। (भजन 83:18) सालों की मेहनत और खोजबीन के बाद नयी दुनिया अनुवाद बाइबल तैयार की गयी। इसे पढ़कर बहुत खुशी मिलती है, क्योंकि यह परमेश्‍वर की सोच को साफ-साफ ज़ाहिर करती है। चाहे आपके पास अपनी भाषा में नयी दुनिया अनुवाद हो या न हो, हम आपको बढ़ावा देते हैं कि आप हर दिन यहोवा का वचन पढ़ने की अच्छी आदत डालें।—यहोशू 1:8; भजन 1:2, 3.

      • हमें बाइबल के एक नए अनुवाद की ज़रूरत क्यों महसूस हुई?

      • जो कोई परमेश्‍वर की मरज़ी जानना चाहता है, उसे हर दिन क्या करना चाहिए?

      ज़्यादा जानिए

      नयी दुनिया अनुवाद के शुरू में दिया परिचय पढ़िए और इस सवाल का जवाब ढूँढ़िए: “बाइबल का यह अनुवाद करते वक्‍त, अनुवाद समिति को किस ज़िम्मेदारी का एहसास था?” फिर आगे दी आयतों को उस बाइबल में देखिए जो आपके पास है और इसके बाद नयी दुनिया अनुवाद में देखिए कि इनका किस तरह अनुवाद किया गया है: मत्ती 11:12; लूका 23:43; प्रेषितों 2:34; 20:28; रोमियों 13:1; 1 कुरिंथियों 11:24.

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