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  • भाग 1 मसीही शिक्षाएँ
    यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए संगठित
    • बपतिस्मा लेनेवालों के लिए सवाल

      भाग 1 मसीही शिक्षाएँ

      आपने यहोवा के साक्षियों से बाइबल का अध्ययन किया और अब आप सच्चाई जान पाए हैं। आपने जो बातें सीखी हैं, उस वजह से परमेश्‍वर के साथ आपका एक अच्छा रिश्‍ता है। आपको परमेश्‍वर के राज में इस धरती पर फिरदौस में जीने और आशीषें पाने की आशा भी है। परमेश्‍वर के वचन पर आपका विश्‍वास मज़बूत हुआ है और मसीही मंडली में भाई-बहनों से संगति करने से आपने अभी से कई आशीषें पायी हैं। आप देख पाए हैं कि यहोवा अपने लोगों को आज किस तरह सही राह दिखा रहा है।—जक. 8:23.

      अब आप बपतिस्मा लेने की तैयारी कर रहे हैं, इसलिए मंडली के प्राचीनों के साथ कुछ बुनियादी मसीही शिक्षाओं पर चर्चा करने से आपको फायदा होगा। (इब्रा. 6:1-3) हमारी दुआ है कि आप यहोवा को जानने के लिए जो मेहनत करते हैं, उस पर वह आशीष दे और आपको वह इनाम दे जिसका उसने वादा किया है।​—यूह. 17:3.

      1. आप बपतिस्मा क्यों लेना चाहते हैं?

      2. यहोवा कौन है?

      • “ऊपर आसमान में और नीचे धरती पर सिर्फ यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है। उसके सिवा और कोई परमेश्‍वर नहीं।”​—व्यव. 4:39.

      • “सिर्फ तू जिसका नाम यहोवा है, सारी धरती के ऊपर परम-प्रधान है।”​—भज. 83:18.

      3. यह क्यों ज़रूरी है कि आप परमेश्‍वर का नाम लें?

      • “तुम इस तरह प्रार्थना करना: ‘हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र किया जाए।’”​—मत्ती 6:9.

      • “जो कोई यहोवा का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।”​—रोमि. 10:13.

      4. यहोवा के बारे में समझाने के लिए बाइबल में कौन-से शब्द इस्तेमाल किए गए हैं?

      • “पृथ्वी की सब चीज़ों का बनानेवाला  यहोवा, युग-युग का परमेश्‍वर है।”​—यशा. 40:28.

      • “हे हमारे पिता  तू जो स्वर्ग में है।”​—मत्ती 6:9.

      • “परमेश्‍वर प्यार  है।”​—1 यूह. 4:8.

      5. आप यहोवा परमेश्‍वर को क्या दे सकते हैं?

      • “तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपने पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना।”​—मर. 12:30.

      • “तू सिर्फ अपने परमेश्‍वर यहोवा की उपासना कर और उसी की पवित्र सेवा कर।”​—लूका 4:8.

      6. आप यहोवा के वफादार क्यों रहना चाहते हैं?

      • “हे मेरे बेटे, बुद्धिमान बन और मेरा दिल खुश कर, ताकि मैं उसे जवाब दे सकूँ जो मुझे ताने मारता है।”​—नीति. 27:11.

      7. आप किससे प्रार्थना करते हैं? आप किसके नाम से प्रार्थना करते हैं?

      • “मैं [यीशु] तुमसे सच-सच कहता हूँ, अगर तुम पिता से कुछ भी माँगोगे तो वह मेरे नाम से तुम्हें दे देगा।”​—यूह. 16:23.

      8. आप किन बातों के बारे में प्रार्थना कर सकते हैं?

      • “तुम इस तरह प्रार्थना करना: ‘हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र किया जाए। तेरा राज आए। तेरी मरज़ी जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे धरती पर भी पूरी हो। आज के दिन की रोटी हमें दे। जैसे हमने अपने खिलाफ पाप करनेवालों को माफ किया है, वैसे ही तू भी हमारे पाप माफ कर। जब हम पर परीक्षा आए तो हमें गिरने न दे, मगर हमें शैतान से बचा।’”​—मत्ती 6:9-13.

      • “हमें परमेश्‍वर पर भरोसा है कि हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।”​—1 यूह. 5:14.

      9. यहोवा कब एक व्यक्‍ति की प्रार्थना नहीं सुनता?

      • “तुम मदद के लिए यहोवा को पुकारोगे, लेकिन वह तुम्हें कोई जवाब नहीं देगा, तुम्हारे दुष्ट कामों की वजह से वह तुमसे मुँह फेर लेगा।”​—मीका 3:4.

      • “यहोवा की आँखें नेक लोगों पर लगी रहती हैं और उसके कान उनकी मिन्‍नतें सुनते हैं। मगर यहोवा बुरे काम करनेवालों के खिलाफ हो जाता है।”​—1 पत. 3:12.

      10. यीशु मसीह कौन है?

      • “शमौन पतरस ने जवाब दिया, ‘तू मसीह है, जीवित परमेश्‍वर का बेटा।’”​—मत्ती 16:16.

      11. यीशु धरती पर क्यों आया था?

      • “इंसान का बेटा भी सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है और इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।”​—मत्ती 20:28.

      • ‘यीशु ने कहा, “मुझे दूसरे शहरों में भी परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनानी है क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।”’​—लूका 4:43.

      12. आप कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं कि आप यीशु के बलिदान की कदर करते हैं?

      • “वह सबके लिए मरा ताकि जो जीते हैं वे अब से खुद के लिए न जीएँ, बल्कि उसके लिए जीएँ जो उनके लिए मरा और ज़िंदा किया गया।”​—2 कुरिं. 5:15.

      13. यीशु को क्या अधिकार दिया गया है?

      • “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार मुझे दिया गया है।”​—मत्ती 28:18.

      • “परमेश्‍वर ने उसे पहले से भी ऊँचा पद देकर महान किया और कृपा करके उसे वह नाम दिया जो दूसरे हर नाम से महान है।”​—फिलि. 2:9.

      14. क्या आप मानते हैं कि यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय ही “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” है, जिसे यीशु ने नियुक्‍त किया है?

      • “तो असल में वह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे उसके मालिक ने अपने घर के कर्मचारियों के ऊपर ठहराया है कि उन्हें सही वक्‍त पर खाना दे?”​—मत्ती 24:45.

      15. क्या पवित्र शक्‍ति कोई व्यक्‍ति है?

      • “स्वर्गदूत ने उससे कहा, ‘परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति तुझ पर आएगी और परम-प्रधान की शक्‍ति तुझ पर छा जाएगी। इसलिए जो पैदा होगा वह पवित्र और परमेश्‍वर का बेटा कहलाएगा।’”​—लूका 1:35.

      • “जब तुम दुष्ट होकर भी अपने बच्चों को अच्छे तोहफे देना जानते हो तो तुम्हारा पिता, जो स्वर्ग में है, और भी बढ़कर अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्‍ति क्यों न देगा!”​—लूका 11:13.

      16. यहोवा ने अपनी पवित्र शक्‍ति से क्या-क्या किया है?

      • “यहोवा के वचन से आकाश की रचना हुई, उसमें जो कुछ है वह उसके मुँह की साँस से बनाया गया।”​—भज. 33:6.

      • “जब तुम पर पवित्र शक्‍ति आएगी, तो तुम ताकत पाओगे और . . . दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।”​—प्रेषि. 1:8.

      • “तुम सबसे पहले यह जान लो कि शास्त्र की कोई भी भविष्यवाणी किसी के अपने विचारों के मुताबिक नहीं की गयी। क्योंकि कोई भी भविष्यवाणी इंसान की मरज़ी से कभी नहीं हुई, बल्कि इंसान पवित्र शक्‍ति से उभारे जाकर परमेश्‍वर की तरफ से बोलते थे।”​—2 पत. 1:20, 21.

      17. परमेश्‍वर का राज क्या है?

      • “स्वर्ग का परमेश्‍वर एक ऐसा राज कायम करेगा जो कभी नाश नहीं किया जाएगा। वह राज किसी और के हाथ में नहीं किया जाएगा। वह राज इन सारी हुकूमतों को चूर-चूर करके उनका अंत कर डालेगा और सिर्फ वही हमेशा तक कायम रहेगा”​—दानि. 2:44.

      18. परमेश्‍वर के राज में आपको क्या आशीषें मिलेंगी?

      • “वह उनकी आँखों से हर आँसू पोंछ देगा और न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा। पिछली बातें खत्म हो चुकी हैं।”​—प्रका. 21:4.

      19. आप क्यों मानते हैं कि परमेश्‍वर का राज बहुत जल्द धरती पर आशीषें लाएगा?

      • “चेले अकेले में उसके पास आकर पूछने लगे, ‘हमें बता, ये सब बातें कब होंगी और तेरी मौजूदगी की और दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त की क्या निशानी होगी?’ यीशु ने उन्हें यह जवाब दिया, ‘. . . एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर और एक राज्य दूसरे राज्य पर हमला करेगा। एक-के-बाद-एक कई जगह अकाल पड़ेंगे और भूकंप होंगे। और राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए और इसके बाद अंत आ जाएगा।’”​—मत्ती 24:3, 4, 7, 14.

      • “आखिरी दिनों में संकटों से भरा ऐसा वक्‍त आएगा जिसका सामना करना मुश्‍किल होगा। इसलिए कि लोग सिर्फ खुद से प्यार करनेवाले, पैसे से प्यार करनेवाले, डींगें मारनेवाले, मगरूर, निंदा करनेवाले, माता-पिता की न माननेवाले, एहसान न माननेवाले, विश्‍वासघाती, लगाव न रखनेवाले, किसी भी बात पर राज़ी न होनेवाले, बदनाम करनेवाले, संयम न रखनेवाले, खूँखार, भलाई से प्यार न करनेवाले, धोखेबाज़, ढीठ, घमंड से फूले हुए, परमेश्‍वर के बजाय मौज-मस्ती से प्यार करनेवाले होंगे, वे भक्‍ति का दिखावा तो करेंगे मगर उसके मुताबिक जीएँगे नहीं।”​—2 तीमु. 3:1-5.

      20. आप कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं कि परमेश्‍वर का राज आपके लिए अहमियत रखता है?

      • “तुम पहले उसके राज और उसके नेक स्तरों की खोज में लगे रहो।”​—मत्ती 6:33.

      • “यीशु ने अपने चेलों से कहा, ‘अगर कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह खुद से इनकार करे और अपना यातना का काठ उठाए और मेरे पीछे चलता रहे।’”​—मत्ती 16:24.

      21. शैतान और दुष्ट स्वर्गदूत कौन हैं?

      • “तुम अपने पिता शैतान से हो। . . . वह शुरू से ही हत्यारा है।”​—यूह. 8:44.

      • “वह बड़ा भयानक अजगर, वही पुराना साँप, जो इबलीस और शैतान कहलाता है और जो सारे जगत को गुमराह करता है, वह नीचे धरती पर फेंक दिया गया और उसके दुष्ट स्वर्गदूत भी उसके साथ फेंक दिए गए।”​—प्रका. 12:9.

      22. शैतान ने यहोवा और उसके उपासकों पर क्या इलज़ाम लगाया है?

      • “औरत ने साँप से कहा, ‘हम बाग के सब पेड़ों के फल खा सकते हैं। मगर जो पेड़ बाग के बीच में है उसके फल के बारे में परमेश्‍वर ने हमसे कहा है, “तुम उसका फल मत खाना, उसे छूना तक नहीं, वरना मर जाओगे।”’ तब साँप ने औरत से कहा, ‘तुम हरगिज़ नहीं मरोगे। परमेश्‍वर जानता है कि जिस दिन तुम उस पेड़ का फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, तुम परमेश्‍वर के जैसे हो जाओगे और खुद जान लोगे कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।’”​—उत्प. 3:2-5.

      • “शैतान ने यहोवा से कहा, ‘खाल के बदले खाल। इंसान अपनी जान बचाने के लिए अपना सबकुछ दे सकता है।’”​—अय्यू. 2:4.

      23. आप कैसे साबित कर सकते हैं कि शैतान के इलज़ाम झूठे हैं?

      • ‘पूरे दिल से परमेश्‍वर की सेवा कर।’​—1 इति. 28:9.

      • “मैंने ठान लिया है, मैं मरते दम तक निर्दोष बना रहूँगा।”​—अय्यू. 27:5.

      24. लोग क्यों मरते हैं?

      • “एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।”​—रोमि. 5:12.

      25. जिनकी मौत हो गयी है, वे किस दशा में हैं?

      • “जो ज़िंदा हैं वे जानते हैं कि वे मरेंगे, लेकिन मरे हुए कुछ नहीं जानते।”​—सभो. 9:5.

      26. जो मौत की नींद सो रहे हैं, क्या उन्हें ज़िंदा किया जाएगा?

      • “अच्छे और बुरे, दोनों तरह के लोगों को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा।”​—प्रेषि. 24:15.

      27. कितने लोग स्वर्ग जाकर यीशु के साथ राज करेंगे?

      • “फिर मैंने देखा तो क्या देखा! मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है और उसके साथ 1,44,000 जन खड़े हैं जिनके माथे पर उसका नाम और उसके पिता का नाम लिखा है।”​—प्रका. 14:1.

  • भाग 2 मसीही ज़िंदगी
    यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए संगठित
    • बपतिस्मा लेनेवालों के लिए सवाल

      भाग 2 मसीही ज़िंदगी

      बाइबल का अध्ययन करने से आपने जाना है कि यहोवा आपसे क्या चाहता है और आप उसके नेक स्तरों को कैसे मान सकते हैं। आपने जो सीखा, उसके हिसाब से आपने अपने व्यवहार में सुधार किया होगा और आप जीवन की और भी कदर करने लगे होंगे। अब आपने ठान लिया है कि आप यहोवा के नेक स्तरों को मानेंगे। इस वजह से आप खुशखबरी के प्रचारक के तौर पर सेवा करने के योग्य हैं। आगे दिए सवालों पर चर्चा करने से आप यहोवा के नेक स्तरों को अपने दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बिठा पाएँगे। आप कुछ ऐसी बातों के बारे में भी पढ़ेंगे, जिन्हें करने से आप परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाएँगे। इस जानकारी से आप समझ पाएँगे कि हर काम साफ ज़मीर से और यहोवा की महिमा के लिए करना कितना ज़रूरी है।​—2 कुरिं. 1:12; 1 तीमु. 1:19; 1 पत. 3:16, 21.

      साक्षियों से बाइबल की शिक्षाएँ सीखने के बाद आप यहोवा की आज्ञाएँ मानने और उसके संगठन से जुड़ने के लिए बेताब होंगे। आगे दिए सवालों और आयतों से आप जान पाएँगे कि मंडली में, परिवार में और अधिकारियों के अधीन रहने के मामले में आप यहोवा के इंतज़ामों को अच्छी तरह समझ पाए हैं या नहीं। यहोवा ने अपने लोगों को सिखाने और उनका विश्‍वास मज़बूत करने के लिए जो इंतज़ाम किए हैं, उनके लिए आपकी कदर बढ़ेगी। इनमें से एक इंतज़ाम है, मंडली की सभाएँ। इन सभाओं में जाने और इनमें हिस्सा लेने की पूरी-पूरी कोशिश कीजिए। इस भाग में यह भी चर्चा की जाएगी कि लगातार प्रचार करना कितना ज़रूरी है। ऐसा करके हम यहोवा के बारे में जानने में लोगों की मदद करते हैं और उन्हें सिखाते हैं कि वह इंसानों की खातिर क्या कर रहा है। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) इस भाग के आखिर में आप समझ पाएँगे कि यहोवा परमेश्‍वर को अपनी ज़िंदगी समर्पित करना और बपतिस्मा लेना बहुत बड़ा कदम है। यकीन मानिए, यहोवा की महा-कृपा के बदले में आप उसके लिए जो भी करते हैं, उसकी वह बहुत कदर करता है!

      1. शादी के मामले में बाइबल में क्या स्तर दिया गया है? मसीही सिर्फ एक वजह से अपने साथी को तलाक दे सकते हैं, वह वजह क्या है?

      • “क्या तुमने नहीं पढ़ा कि जिसने उनकी सृष्टि की थी, उसने शुरूआत से ही उन्हें नर और नारी बनाया था और कहा था, ‘इस वजह से आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे’? तो वे अब दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं। इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे। . . . जो कोई नाजायज़ यौन-संबंध के अलावा किसी और वजह से अपनी पत्नी को तलाक देता है और किसी दूसरी से शादी करता है, वह व्यभिचार करने का दोषी है।”​—मत्ती 19:4-6, 9.

      2. जिन लोगों की शादी नहीं हुई है, मगर एक-साथ रहते हैं, उनके लिए यह क्यों ज़रूरी है कि वे कानूनी तौर पर शादी करें? अगर आप शादीशुदा हैं, तो क्या आपकी शादी कानूनी तौर पर मान्य है?

      • “उन्हें याद दिलाता रह कि सरकारों और अधिकारियों के अधीन रहें और उनकी आज्ञा मानें।”​—तीतु. 3:1.

      • “शादी सब लोगों में आदर की बात समझी जाए और शादी की सेज दूषित न की जाए क्योंकि परमेश्‍वर नाजायज़ यौन-संबंध रखनेवालों और व्यभिचारियों को सज़ा देगा।”​—इब्रा. 13:4.

      3. परिवार में आपकी क्या ज़िम्मेदारी है?

      • “हे मेरे बेटे, अपने पिता  की शिक्षा पर ध्यान दे और अपनी माँ से मिलनेवाली सीख को मत ठुकरा।”​—नीति. 1:8.

      • “पति  अपनी पत्नी का सिर है, ठीक जैसे मसीह भी अपने शरीर यानी मंडली का सिर है। . . . हे पतियो, अपनी-अपनी पत्नी से प्यार करते रहो, ठीक जैसे मसीह ने भी मंडली से प्यार किया।”​—इफि. 5:23, 25.

      • “हे पिताओ,  अपने बच्चों को चिढ़ मत दिलाओ बल्कि यहोवा की मरज़ी के मुताबिक उन्हें सिखाते और समझाते हुए उनकी परवरिश करो।”​—इफि. 6:4.

      • “हे बच्चो,  हर बात में अपने माता-पिता का कहना माननेवाले बनो क्योंकि प्रभु इससे खुश होता है।”​—कुलु. 3:20.

      • “पत्नियो,  तुम अपने-अपने पति के अधीन रहो।”​—1 पत. 3:1.

      4. हमें जीवन की कदर क्यों करनी चाहिए?

      • “[परमेश्‍वर] खुद सबको जीवन और साँसें और सबकुछ देता है। . . . उसी से हमारी ज़िंदगी है और हम चलते-फिरते हैं और वजूद में हैं।”​—प्रेषि. 17:25, 28.

      5. हमें किसी की जान नहीं लेनी चाहिए, गर्भ में पल रहे बच्चे की भी नहीं। ऐसा क्यों?

      • ‘अगर दो आदमियों के बीच हाथापाई हो जाती है और वे लड़ते-लड़ते किसी गर्भवती औरत को घायल कर देते हैं और माँ या बच्चे की मौत हो जाती है, तो उसकी जान के बदले गुनहगार की जान ली जाए।’​—निर्ग. 21:22, 23.

      • “तेरी आँखों ने मुझे तभी देखा था जब मैं बस एक भ्रूण था, इससे पहले कि उसके सारे अंग बनते, उनके बारे में तेरी किताब में लिखा था कि कब उनकी रचना होगी।”​—भज.139:16.

      • ‘बेगुनाहों का खून करनेवाले हाथों से यहोवा नफरत करता है।’​—नीति. 6:16, 17.

      6. खून के बारे में परमेश्‍वर ने क्या आज्ञा दी है?

      • “खून से [और] गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से . . . हमेशा दूर रहो।”​—प्रेषि. 15:29.

      7. हमें अपने मसीही भाई-बहनों से प्यार क्यों करना चाहिए?

      • “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो। अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”​—यूह. 13:34, 35.

      8. (क) कोई जानलेवा संक्रामक बीमारी दूसरों में न फैले, इसलिए जिसे यह बीमारी है उसे दूसरों को गले लगाकर, चूमकर या दूसरे तरीकों से प्यार क्यों नहीं जताना चाहिए? (ख) ऐसे व्यक्‍ति को अगर कोई अपने घर न बुलाए, तो उसे बुरा क्यों नहीं मानना चाहिए? (ग) अगर एक व्यक्‍ति को कोई संक्रामक बीमारी लगने की संभावना है, तो उसे अपनी शादी की बात आगे बढ़ाने से पहले खून की जाँच क्यों करवानी चाहिए? (घ) जिसे संक्रामक बीमारी है, उसे बपतिस्मा लेने से पहले प्राचीनों के निकाय के संयोजक को इस बारे में क्यों बताना चाहिए?

      • “प्यार के अलावा किसी भी बात में एक-दूसरे के कर्ज़दार मत बनो। . . . ‘अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।’ प्यार अपने पड़ोसी का बुरा नहीं करता।”​—रोमि. 13:8-10.

      • “हर एक सिर्फ अपने भले की फिक्र में न रहे, बल्कि दूसरे के भले की भी फिक्र करे।”​—फिलि. 2:4.

      9. यहोवा क्यों चाहता है कि हम दूसरों को माफ करें?

      • “अगर किसी के पास दूसरे के खिलाफ शिकायत की कोई वजह है, तो भी एक-दूसरे की सहते रहो और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करते रहो। जैसे यहोवा ने तुम्हें दिल खोलकर माफ किया है, तुम भी वैसा ही करो।”​—कुलु. 3:13.

      10. अगर कोई भाई झूठी बातें फैलाकर आपको बदनाम करता है या आपको ठगता है, तो आपको क्या करना चाहिए?

      • “अगर तेरा भाई कोई पाप करता है, तो जा और उससे अकेले में बात कर और उसकी गलती उसे बता। अगर वह तेरी सुने, तो तूने अपने भाई को पा लिया है। लेकिन अगर वह तेरी नहीं सुनता, तो अपने साथ एक या दो लोगों को ले जाकर उससे बात कर ताकि हर मामले की सच्चाई दो या तीन गवाहों के बयान से साबित हो। अगर वह उनकी नहीं सुनता, तो मंडली को बता। और अगर वह मंडली की भी नहीं सुनता, तो वह तेरे लिए गैर-यहूदी या कर-वसूलनेवाले जैसा ठहरे।”​—मत्ती 18:15-17.

      11. आगे दिए पापों के बारे में यहोवा को कैसा लगता है?

      ▪ नाजायज़ यौन-संबंध

      ▪ मूर्ति-पूजा

      ▪ समलैंगिकता

      ▪ चोरी

      ▪ जुआ खेलना

      ▪ पियक्कड़पन

      • “धोखे में न रहो। नाजायज़ यौन-संबंध रखनेवाले, मूर्तिपूजा करनेवाले, व्यभिचारी, आदमियों के साथ संभोग के लिए रखे गए आदमी, आदमियों के साथ संभोग करनेवाले आदमी, चोर, लालची, पियक्कड़, गाली-गलौज करनेवाले और दूसरों का धन ऐंठनेवाले परमेश्‍वर के राज के वारिस नहीं होंगे।”​—1 कुरिं. 6:9, 10.

      12. नाजायज़ यौन-संबंध में ऐसे कई तरह के काम शामिल हैं, जो एक व्यक्‍ति अपने जीवन साथी को छोड़ किसी और के साथ करता है। इस मामले में आपने क्या ठान लिया है?

      • “नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”​—1 कुरिं. 6:18.

      13. हमें नशे के लिए दवाइयाँ या ड्रग्स क्यों नहीं लेने चाहिए?

      • “अपने शरीर को जीवित, पवित्र और परमेश्‍वर को भानेवाले बलिदान के तौर पर अर्पित करो। इस तरह तुम अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करते हुए पवित्र सेवा कर सकोगे। इस दुनिया की व्यवस्था के मुताबिक खुद को ढालना बंद करो, मगर नयी सोच पैदा करो ताकि तुम्हारी कायापलट होती जाए। तब तुम परखकर खुद के लिए मालूम करते रहोगे कि परमेश्‍वर की भली, उसे भानेवाली और उसकी परिपूर्ण इच्छा क्या है।”​—रोमि. 12:1, 2.

      14. जादू-टोने से जुड़े कुछ काम क्या हैं, जिन्हें करने से यहोवा ने साफ मना किया है?

      • “तुममें ऐसा कोई न हो जो . . . ज्योतिषी का काम करता है, जादू करता है, शकुन विचारता है, टोना-टोटका करता है, मंत्र फूँककर किसी को काबू में करता है, भविष्य बताता है, मरे हुओं से संपर्क करने का दावा करता है या उससे पूछताछ करता है।”​—व्यव. 18:10, 11.

      15. अगर एक व्यक्‍ति कोई बड़ा पाप करता है, लेकिन दोबारा यहोवा की मंज़ूरी पाना चाहता है, तो उसे फौरन क्या करना चाहिए?

      • “मैंने तेरे सामने अपना पाप मान लिया, मैंने अपना गुनाह और नहीं छिपाया। मैंने कहा, ‘मैं यहोवा के सामने अपने अपराध मान लूँगा।’”​—भज. 32:5.

      • “क्या तुम्हारे बीच कोई बीमार है? तो वह मंडली के प्राचीनों को बुलाए और वे उसके लिए प्रार्थना करें और यहोवा के नाम से उस बीमार पर तेल मलें। और विश्‍वास से की गयी प्रार्थना उस बीमार को अच्छा कर देगी और यहोवा उसे उठाकर खड़ा कर देगा। और अगर उसने पाप किए हों तो उसे माफ कर दिया जाएगा।”​—याकू. 5:14, 15.

      16. अगर किसी भाई या बहन ने कोई बड़ा पाप किया है और आपको उस बारे में मालूम है, तो आपको क्या करना चाहिए?

      • “जो इंसान कोई अपराध होते देखता है या उस अपराध के बारे में कुछ जानता है, वह उस अपराध का गवाह बन जाता है। अगर वह सरेआम किया जानेवाला ऐलान सुनता है कि उस अपराध के बारे में गवाही दी जाए, मगर फिर भी आगे आकर उस बारे में नहीं बताता तो यह पाप है। उसे अपने पाप का लेखा देना होगा।”​—लैव्य. 5:1.

      17. अगर सभा में घोषणा की जाती है कि फलाँ व्यक्‍ति अब से यहोवा का साक्षी नहीं है, तो हमें उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?

      • “ऐसे किसी भी आदमी के साथ मेल-जोल रखना बंद कर दो, जो भाई कहलाते हुए भी नाजायज़ यौन-संबंध रखता है या लालची है या मूर्तिपूजा करता है या गाली-गलौज करता है या पियक्कड़ है या दूसरों का धन ऐंठता है। ऐसे आदमी के साथ खाना भी मत खाना।”​—1 कुरिं. 5:11.

      • “अगर कोई तुम्हारे पास आता है और यह शिक्षा नहीं देता, तो ऐसे इंसान को अपने घर में कभी मत आने देना, न ही उसे नमस्कार करना।”​—2 यूह. 10.

      18. हमें उन्हीं लोगों से दोस्ती क्यों करनी चाहिए जो यहोवा से प्यार करते हैं?

      • “बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा, लेकिन मूर्खों के साथ मेल-जोल रखनेवाला बरबाद हो जाएगा।”​—नीति. 13:20.

      • “धोखा न खाओ। बुरी संगति अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।”​—1 कुरिं. 15:33.

      19. यहोवा के साक्षी राजनैतिक मामलों में क्यों निष्पक्ष रहते हैं?

      • “वे दुनिया के नहीं हैं, ठीक जैसे मैं [यीशु] दुनिया का नहीं हूँ।”​—यूह. 17:16.

      20. आपको सरकार के नियम क्यों मानने चाहिए?

      • “हर इंसान ऊँचे अधिकारियों के अधीन रहे इसलिए कि ऐसा कोई भी अधिकार नहीं जो परमेश्‍वर की तरफ से न हो। मौजूदा अधिकारियों को परमेश्‍वर ने अपने अधीन अलग-अलग पद पर ठहराया है।”​—रोमि. 13:1.

      21. अगर इंसानों का कोई कानून परमेश्‍वर के कानून के खिलाफ हो, तो आपको क्या करना चाहिए?

      • “इंसानों के बजाय परमेश्‍वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।”​—प्रेषि. 5:29.

      22. नौकरी का फैसला करते वक्‍त आप कौन-सी आयतें ध्यान में रख सकते हैं, जिससे आप दुनिया से अलग रह सकें?

      • “एक देश दूसरे देश पर फिर तलवार नहीं चलाएगा और न लोग फिर कभी युद्ध करना सीखेंगे।”​—मीका 4:3.

      • “मेरे लोगो, उसमें से [महानगरी बैबिलोन से] बाहर निकल आओ। अगर तुम उसके पापों में हिस्सेदार नहीं होना चाहते और नहीं चाहते कि उस पर आनेवाले कहर तुम पर भी आएँ, तो उसमें से निकल आओ।”​—प्रका. 18:4.

      23. आप किस तरह का मनोरंजन करेंगे और किस तरह का मनोरंजन ठुकराएँगे?

      • “यहोवा . . . हिंसा से प्यार करनेवाले से नफरत करता है।”​—भज. 11:5.

      • “बुरी बातों से घिन करो, अच्छी बातों से लिपटे रहो।”​—रोमि. 12:9.

      • “जो बातें सच्ची हैं, जो बातें गंभीर सोच-विचार के लायक हैं, जो बातें नेक हैं, जो बातें साफ-सुथरी हैं, जो बातें चाहने लायक हैं, जो बातें अच्छी मानी जाती हैं, जो बातें सद्‌गुण की हैं और जो तारीफ के लायक हैं, उन्हीं पर ध्यान देते रहो।”​—फिलि. 4:8.

      24. यहोवा के साक्षी दूसरे धर्म के लोगों के साथ मिलकर उपासना क्यों नहीं करते?

      • “तुम ऐसा नहीं कर सकते कि ‘यहोवा की मेज़’ से खाओ और दुष्ट स्वर्गदूतों की मेज़ से भी खाओ।”​—1 कुरिं. 10:21.

      • “खुद को उनसे अलग करो और अशुद्ध चीज़ को छूना बंद करो, तब मैं तुम्हें अपने पास ले लूँगा।”​—2 कुरिं. 6:17.

      25. कौन-से सिद्धांत ध्यान में रखकर आप तय कर सकते हैं कि आप कोई त्योहार या जश्‍न मनाएँगे या नहीं?

      • “वे उन जातियों से घुल-मिल गए और उनके तौर-तरीके अपना लिए। वे उनकी मूरतों की सेवा करते रहे और ये उनके लिए फंदा बन गयीं।”​—भज. 106:35, 36.

      • “मरे हुए कुछ नहीं जानते।”​—सभो. 9:5.

      • “वे दुनिया के नहीं हैं, ठीक जैसे मैं दुनिया का नहीं हूँ।”​—यूह. 17:16.

      • “दुनियावी लोगों की मरज़ी पूरी करने में तुम अब तक जो वक्‍त बिता चुके हो वह काफी है। तब तुम निर्लज्ज कामों में, बेकाबू होकर वासनाएँ पूरी करने में, हद-से-ज़्यादा शराब पीने में, रंगरलियाँ मनाने में, शराब पीने की होड़ लगाने में और घिनौनी मूर्तिपूजा करने में लगे हुए थे।”​—1 पत. 4:3.

      26. बाइबल की कुछ घटनाओं के आधार पर आप कैसे तय कर सकते हैं कि आपको जन्मदिन मनाना चाहिए या नहीं?

      • “तीसरे दिन फिरौन का जन्मदिन था। उसने एक बड़ी दावत रखी और अपने सभी दरबारियों को बुलाया। उसने प्रधान साकी और प्रधान रसोइए को जेल से निकलवाया और उन्हें दरबारियों के सामने लाया। फिर उसने प्रधान साकी को उसका पद वापस दे दिया . . . मगर प्रधान रसोइए को उसने काठ पर लटका दिया।”​—उत्प. 40:20-22.

      • “हेरोदेस के जन्मदिन पर जब हेरोदियास की बेटी नाची, तो हेरोदेस इतना खुश हुआ कि उसने कसम खाकर वादा किया कि वह उससे जो माँगेगी, वह उसे दे देगा। तब उसने अपनी माँ के सिखाने पर कहा, ‘तू मुझे यहीं एक थाल में यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले का सिर ला दे।’ उसने आदमी भेजा और जेल में यूहन्‍ना का सिर कटवा दिया।”​—मत्ती 14:6-8, 10.

      27. आप प्राचीनों की सलाह क्यों मानना चाहते हैं?

      • “जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो और उनके अधीन रहो, क्योंकि वे यह जानते हुए तुम्हारी निगरानी करते हैं कि उन्हें इसका हिसाब देना होगा ताकि वे यह काम खुशी से करें न कि आहें भरते हुए क्योंकि इससे तुम्हारा ही नुकसान होगा।”​—इब्रा. 13:17.

      28. यह क्यों ज़रूरी है कि आप और आपका परिवार नियमित तौर पर बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने के लिए समय तय करें?

      • “वह यहोवा के कानून से खुशी पाता है, दिन-रात उसका कानून धीमी आवाज़ में पढ़ता है। वह ऐसे पेड़ की तरह होगा जो बहते पानी के पास लगाया गया है, जो समय पर फल देता है, जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। वह आदमी अपने हर काम में कामयाब होगा।”​—भज. 1:2, 3.

      29. आपको सभाओं में जाना और उनमें हिस्सा लेना क्यों अच्छा लगता है?

      • “मैं अपने भाइयों में तेरे नाम का ऐलान करूँगा, मंडली के बीच तेरी तारीफ करूँगा।”​—भज. 22:22.

      • “आओ हम एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें ताकि एक-दूसरे को प्यार और भले काम करने का बढ़ावा दे सकें और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है बल्कि एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ। और जैसे-जैसे तुम उस दिन को नज़दीक आता देखो, यह और भी ज़्यादा किया करो।”​—इब्रा. 10:24, 25.

      30. यीशु ने हमें कौन-सा सबसे ज़रूरी काम सौंपा है?

      • “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ और उन्हें . . . बपतिस्मा दो। और उन्हें वे सारी बातें मानना सिखाओ जिनकी मैंने तुम्हें आज्ञा दी है।”​—मत्ती 28:19, 20.

      31. जब हम राज के कामों के लिए दान करते हैं या भाई-बहनों की मदद करते हैं, तो यह हमें किस इरादे से करना चाहिए ताकि यहोवा खुश हो?

      • “अपनी अनमोल चीज़ें देकर यहोवा का सम्मान करना।”​—नीति. 3:9.

      • “हर कोई जैसा उसने अपने दिल में ठाना है वैसा ही करे, न कुड़कुड़ाते हुए, न ही किसी दबाव में क्योंकि परमेश्‍वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।”​—2 कुरिं. 9:7.

      32. मसीही किस तरह की मुश्‍किलों का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं?

      • “सुखी हैं वे जो सही काम करने की वजह से ज़ुल्म सहते हैं क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है। सुखी हो तुम जब लोग तुम्हें मेरे चेले होने की वजह से बदनाम करें, तुम पर ज़ुल्म ढाएँ और तुम्हारे बारे में तरह-तरह की झूठी और बुरी बातें कहें। तब तुम मगन होना और खुशियाँ मनाना इसलिए कि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है। उन्होंने तुमसे पहले के भविष्यवक्‍ताओं पर भी इसी तरह ज़ुल्म ढाए थे।”​—मत्ती 5:10-12.

      33. बपतिस्मा लेकर यहोवा का साक्षी कहलाना क्यों एक खास सम्मान है?

      • ‘तेरा संदेश मेरे लिए खुशी का कारण बन गया और मेरा दिल मगन हो गया, क्योंकि हे परमेश्‍वर यहोवा, मैं तेरे नाम से जाना जाता हूँ।’​—यिर्म. 15:16.

  • बपतिस्मा लेनेवालों के साथ आखिर में की जानेवाली चर्चा
    यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए संगठित
    • बपतिस्मा लेनेवालों के लिए सवाल

      बपतिस्मा लेनेवालों के साथ आखिर में की जानेवाली चर्चा

      बपतिस्मा आम तौर पर यहोवा के साक्षियों के सम्मेलनों और अधिवेशनों में दिया जाता है। बपतिस्मे के भाषण के आखिर में वक्‍ता बपतिस्मा लेनेवालों से कहेगा कि वे खड़े हो जाएँ और आगे बताए दो सवालों के जवाब ऊँची आवाज़ में दें:

      1. क्या आपने अपने पापों का पश्‍चाताप किया है, यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित की है और उसने यीशु मसीह के ज़रिए उद्धार का जो इंतज़ाम किया है, उसे कबूल किया है?

      2. क्या आप इस बात को समझते हैं कि बपतिस्मा लेने से आप यहोवा के संगठन का भाग बन जाएँगे और यहोवा के साक्षी कहलाएँगे?

      इन सवालों के जवाब ‘हाँ’ में देने का मतलब है कि बपतिस्मे के लिए तैयार लोग “सब लोगों के सामने ऐलान” करते हैं कि उन्हें फिरौती बलिदान पर विश्‍वास है और उन्होंने बिना किसी शर्त के अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की है। (रोमि. 10:9, 10) इस वजह से बपतिस्मा लेनेवालों को इन दो सवालों पर पहले से मनन करना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए ताकि वे पूरे यकीन से जवाब दे सकें।

      क्या आपने यहोवा से प्रार्थना करके उसे अपना जीवन समर्पित किया है, उससे वादा किया है कि आप सिर्फ उसकी उपासना करेंगे और उसकी मरज़ी पूरी करने को सबसे ज़्यादा अहमियत देंगे?

      क्या अब आपको पूरा यकीन है कि जैसे ही मौका मिले, आपको बपतिस्मा ले लेना चाहिए?

      बपतिस्मा लेते वक्‍त किस तरह के कपड़े पहनना सही होगा? (1 तीमु. 2:9, 10; यूह. 15:19; फिलि. 1:10)

      हमें “मर्यादा के साथ और सही सोच रखते हुए” ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो “परमेश्‍वर की भक्‍ति” करनेवालों को शोभा दें। इस वजह से बपतिस्मा लेनेवालों को ऐसा स्विमिंग-सूट नहीं पहनना चाहिए जिससे शरीर की नुमाइश हो, न ही ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जिन पर कुछ लिखा हो या कोई तसवीर हो। इसके बजाय उन्हें ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो साफ-सुथरे हों और जिनसे मौके की गरिमा बनी रहे।

      बपतिस्मा लेते वक्‍त एक व्यक्‍ति का व्यवहार कैसा होना चाहिए? (लूका 3:21, 22)

      यीशु ने अपने बपतिस्मे के वक्‍त जिस तरह व्यवहार किया, उससे आज मसीही बहुत कुछ सीख सकते हैं। यीशु जानता था कि बपतिस्मा एक गंभीर कदम है। यह उसने अपने रवैए और अपने व्यवहार से ज़ाहिर किया। बपतिस्मे की जगह पर मज़ाक करना, तैरना या ऐसा कोई बरताव करना सही नहीं होगा, जिससे इस मौके की गरिमा कम हो जाए। बपतिस्मा लेने के बाद एक मसीही को ऐसे पेश नहीं आना चाहिए मानो उसने कोई बड़ी जंग जीत ली हो। यह सच है कि बपतिस्मा खुशी का मौका है, मगर यह खुशी ज़ाहिर करते वक्‍त हमें गरिमा बनाए रखनी चाहिए।

      आपने यहोवा को जो समर्पण किया है, उसके मुताबिक जीने के लिए लगातार सभाओं में जाना और भाई-बहनों से मिलना क्यों ज़रूरी है?

      बपतिस्मा लेने के बाद भी आपको नियमित तौर पर निजी अध्ययन और प्रचार क्यों करना चाहिए?

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