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  • चिंता—‘हर तरह से दबे हुए’
  • यहोवा के पास लौट आइए
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  • “वह ताकत जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है”
  • “परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है”
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2012
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    अपने बच्चों को सिखाइए
और देखिए
यहोवा के पास लौट आइए
rj भाग 2 पेज 6-7

भाग दो

चिंता—‘हर तरह से दबे हुए’

“शादी के 25 साल बाद, ऐसा लगा जैसे मेरी पूरी दुनिया ही उजड़ गयी है। पहले हमारा तलाक हो गया। फिर बच्चों ने यहोवा की उपासना करनी छोड़ दी और मुझे कई गंभीर बीमारियाँ हो गयीं। मैं इतनी निराश हो गयी कि मुझमें किसी भी मुश्‍किल का सामना करने की हिम्मत नहीं रही। यहाँ तक कि मैंने सभाओं में जाना और मंडली के साथ यहोवा की सेवा करना भी बंद कर दिया।”​—जून।

दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसे चिंता नहीं होती। यहोवा के लोग भी इससे बच नहीं पाए हैं। एक भजन के लिखनेवाले ने कहा, ‘चिंताएँ मुझ पर हावी हो गयी थीं।’ (भजन 94:19) यीशु ने भी कहा था कि आखिरी दिनों में “ज़िंदगी की चिंताओं” की वजह से परमेश्‍वर की सेवा करना और भी मुश्‍किल हो जाएगा। (लूका 21:34) क्या आप भी पैसों की तंगी, पारिवारिक समस्याओं या खराब सेहत की वजह से चिंताओं से घिरे रहते हैं? ऐसे में यहोवा आपकी मदद कैसे कर सकता है?

“वह ताकत जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है”

हम अपने दम पर चिंताओं का सामना नहीं कर सकते। प्रेषित पौलुस ने लिखा, “हम हर तरह से दबाए तो जाते हैं मगर इस हद तक नहीं कि कोई उम्मीद न बचे, उलझन में तो होते हैं मगर इतनी उलझन में नहीं कि कोई रास्ता नज़र न आए। . . . हम गिराए तो जाते हैं मगर नाश नहीं किए जाते।” क्या बात हमें चिंताओं का सामना करने में मदद करती है? सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा से मिलनेवाली ताकत। यह ऐसी ताकत है “जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है।”​—2 कुरिंथियों 4:7-9.

याद कीजिए कि बीते कल में आपको यह ताकत कैसे मिली थी। क्या आपको वह भाषण याद है, जिससे आपको हौसला मिला और आपका यकीन बढ़ा कि यहोवा आपसे प्यार करता है और आपका साथ कभी नहीं छोड़ेगा? क्या आपको वह समय याद है जब दूसरों को भविष्य की सुनहरी आशा के बारे में सिखाते वक्‍त, खुद आपका यहोवा के वादों पर विश्‍वास मज़बूत हुआ था? सभाओं में जाने से और दूसरों को अपने विश्‍वास के बारे में बताने से हमें ज़िंदगी की चिंताओं का सामना करने की हिम्मत मिलती है। साथ ही, हमें मन की शांति मिलती है जिससे हम खुशी-खुशी यहोवा की सेवा कर पाते हैं।

“परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है”

हम सब कई बार ज़िंदगी की भाग-दौड़ में उलझ जाते हैं और थक जाते हैं। जैसे, यहोवा कहता है कि आप उसके राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, लगातार प्रार्थना करें, बाइबल का अध्ययन करें, प्रचार और सभाओं में जाएँ। (मत्ती 6:33; लूका 13:24) लेकिन हो सकता है खराब सेहत, पारिवारिक समस्याओं या विरोध की वजह से आपको यह सब करना मुश्‍किल लगे। या फिर नौकरी की वजह से आपके पास मंडली के कामों और भाई-बहनों के लिए वक्‍त और ताकत ही ना बचे। ऐसे में आप शायद बहुत परेशान हो जाएँ। आपके मन में यह खयाल भी आए कि यहोवा आपसे कुछ ज़्यादा ही उम्मीद कर रहा है।

पर यहोवा हमारे हालात समझता है। वह हमसे उतनी ही उम्मीद करता है, जितना हम कर सकते हैं। और वह यह भी जानता है कि जब हम थककर चूर हो जाते हैं, पूरी तरह टूट जाते हैं, तो हमें खुद को सँभालने में वक्‍त लगता है।​—भजन 103:13, 14.

गौर कीजिए कि यहोवा ने भविष्यवक्‍ता एलियाह का किस तरह खयाल रखा। एक बार एलियाह दुश्‍मनों से बहुत डर गया। उसकी हिम्मत टूट गयी और वह वीराने में भाग गया। तब क्या यहोवा ने उसे डाँटा और हुक्म दिया कि वह वापस जाकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाए? नहीं। बल्कि जब एलियाह निराशा की वजह से गहरी नींद में था, तो यहोवा ने दो बार उसके पास एक स्वर्गदूत भेजा ताकि वह उसे प्यार से जगाए और उसे खाने के लिए कुछ दे। लेकिन 40 दिन बाद भी एलियाह बहुत चिंता में था और डरा हुआ था। यहोवा ने उसकी हिम्मत बँधाने के लिए और क्या किया? सबसे पहले, यहोवा ने अपनी ताकत का सबूत देकर दिखाया कि वह उसकी हिफाज़त कर सकता है। फिर उसने एलियाह से “धीमी आवाज़” में और “नरमी” से बात की, जिससे उसे तसल्ली मिली। आखिर में यहोवा ने उसे बताया कि उसके अलावा और भी कई हज़ार लोग हैं, जो वफादारी से परमेश्‍वर की उपासना कर रहे हैं। इसके कुछ ही समय बाद, एलियाह में फिर से जोश भर आया और वह हिम्मत से भविष्यवाणी करने लगा। (1 राजा 19:1-19) हम इससे क्या सीखते हैं? जब एलियाह चिंताओं के बोझ से दबा हुआ था तो यहोवा ने उस पर करुणा की और उसके साथ सब्र रखा। यहोवा बदला नहीं है। आज भी वह हमारा इसी तरह खयाल रखता है।

जब आप इस बारे में सोचते हैं कि आप यहोवा के लिए क्या कर सकते हैं, तो खुद के हालात पर ध्यान दीजिए। यह सोचकर फिक्र ना करें कि आप पहले जितना करते थे, अब आप उतना नहीं कर पा रहे हैं। एक ऐसे धावक की मिसाल लीजिए, जिसने कुछ महीनों या सालों पहले ट्रेनिंग करना बंद कर दिया था। जब वह फिर से दौड़ना शुरू करता है, तो वह फौरन पहले की तरह तेज़ नहीं दौड़ सकता। इसके बजाय, उसे छोटे-छोटे लक्ष्य रखने होंगे ताकि उसका शरीर मज़बूत हो सके और वह बिना थके-हारे दौड़ता रह सके। मसीही भी धावकों की तरह हैं। वे भी अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए खुद को प्रशिक्षित करते हैं। (1 कुरिंथियों 9:24-27) तो क्यों ना आप एक ऐसा लक्ष्य रखें जिसे हासिल करना आपके लिए मुमकिन हो? मिसाल के लिए, आप मंडली की एक सभा में जाने का लक्ष्य रख सकते हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए यहोवा से मदद माँगिए। जैसे-जैसे यहोवा के साथ आपका फिर से रिश्‍ता मज़बूत होगा, आप ‘परखकर देख पाएँगे कि यहोवा कितना भला है।’ (भजन 34:8) याद रखिए कि यहोवा के प्यार की खातिर आप जो भी करें, फिर चाहे आपकी नज़र में वह कितना भी कम क्यों ना हो, यहोवा की नज़र में वह बहुत अनमोल है।​—लूका 21:1-4.

एक आदमी चिंता में है क्योंकि उसका बॉस उसे ज़्यादा काम करने की माँग कर रहा है

यहोवा हमसे उतनी ही उम्मीद करता है, जितना हम कर सकते हैं

“मेरा इतना हौसला बढ़ा कि मैं बता नहीं सकती”

यहोवा ने जून को अपने पास लौट आने में किस तरह मदद दी? जून कहती है, “मैं यहोवा से प्रार्थना करती रही, उससे मदद की भीख माँगती रही। फिर एक दिन मेरी बहू ने मुझे बताया कि मेरे कसबे में एक सम्मेलन होनेवाला है। मैंने ठान लिया कि मैं एक दिन के लिए सम्मेलन में ज़रूर जाऊँगी। यहोवा के लोगों से दोबारा मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा! उस सम्मेलन से मेरा इतना हौसला बढ़ा कि मैं बता नहीं सकती। मुझे इसी की बहुत ज़रूरत थी। अब मैं दोबारा खुशी से यहोवा की सेवा कर रही हूँ। मुझे फिर से जीने की वजह मिल गयी है। मैं समझ गयी हूँ कि मैं अपने दम पर ज़िंदगी नहीं जी सकती, मुझे भाई-बहनों की मदद की ज़रूरत है। मैं यहोवा की बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझे अपने पास लौट आने का मौका दिया।”

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