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  • ‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’
    सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
    • मंदिर का दौरा करानेवाला स्वर्गदूत यहेजकेल को नदी पार करने के लिए कहता है

      अध्याय 19

      ‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’

      यहेजकेल 47:9

      अध्याय किस बारे में है: मंदिर से बहनेवाली नदी की भविष्यवाणी पुराने ज़माने में कैसे पूरी हुई, आज कैसे पूरी हो रही है और भविष्य में कैसे पूरी होगी

      1, 2. यहेजकेल 47:1-12 के मुताबिक यहेजकेल क्या देखता है और स्वर्गदूत उसे क्या बताता है? (शुरूआती तसवीर देखें।)

      यहेजकेल मंदिर के दर्शन में एक और अनोखी बात देखता है। इस पवित्र भवन से एक नदी बह रही है जिसका पानी बिल्लौर जितना साफ है। कल्पना कीजिए कि यहेजकेल उसकी बहती धारा के साथ-साथ चल रहा है। (यहेजकेल 47:1-12 पढ़िए।) यह धारा मंदिर की दहलीज़ से शुरू होती है, जहाँ यह हलकी-हलकी बहती है। फिर यह मंदिर के पूरबवाले दरवाज़े के पास से होती हुई निकलती है। मंदिर का दौरा करानेवाला स्वर्गदूत अब यहेजकेल को पानी की धारा के साथ-साथ आगे ले जा रहा है। जैसे-जैसे वे मंदिर से दूर जा रहे हैं, स्वर्गदूत दूरी नापता जाता है और बीच-बीच में यहेजकेल से पानी की धारा पार करने के लिए कहता है। यहेजकेल देखता है कि नदी गहरी होती जा रही है। आगे चलकर वह इतनी गहरी हो जाती है कि अब यहेजकेल उसे चलकर पार नहीं कर सकता, उसे तैरना होगा।

      2 स्वर्गदूत यहेजकेल को बताता है कि वह नदी मृत सागर में जा मिलेगी जिससे उसका खारा पानी मीठा हो जाएगा। वैसे तो मृत सागर में कोई जीव ज़िंदा नहीं रह पाता, लेकिन जब नदी का पानी उस सागर में मिलेगा, तो उसमें मछलियों की भरमार हो जाएगी। यहेजकेल देखता है कि नदी किनारे दोनों तरफ हर तरह के पेड़ लगे हैं। हर महीने उनमें नए फल लगते हैं और उनके पत्ते रोग दूर करने के काम आते हैं। यह सब देखकर यहेजकेल का दिल खुशी से भर गया होगा और यह जानकर उसके मन को चैन मिला होगा कि आगे चलकर सबकुछ अच्छा हो जाएगा। तो आइए जानें कि यहेजकेल ने दर्शन में जो नदी देखी, वह उसके लिए और बँधुआई में रहनेवाले दूसरे यहूदियों के लिए क्या मायने रखती थी और आज हमारे लिए क्या मायने रखती है।

      नदी बँधुआई में रहनेवालों के लिए क्या मायने रखती थी?

      3. यहूदी क्यों समझ गए होंगे कि दर्शन में देखी गयी नदी सचमुच की नदी नहीं हो सकती?

      3 यहूदियों ने यह नहीं सोचा होगा कि दर्शन की यह नदी सचमुच की किसी नदी को दर्शाती है। यह हम क्यों कह सकते हैं? वे जानते थे कि 200 साल पहले योएल ने भी बहाली के बारे में कुछ ऐसी ही भविष्यवाणी की थी। (योएल 3:18 पढ़िए।) उसने लिखा था कि पहाड़ों से “मीठी दाख-मदिरा टपकेगी,” पहाड़ियों पर “दूध बहेगा” और “यहोवा के भवन से” एक सोता फूट निकलेगा। बँधुआई में रहनेवाले यहूदी जानते थे कि योएल सचमुच के किसी पहाड़, पहाड़ियों या सोते की बात नहीं कर रहा था, इसलिए यहेजकेल ने जो नदी देखी, वह भी सचमुच की कोई नदी नहीं हो सकती।a तो फिर नदी का यह दर्शन दिखाकर यहोवा क्या बताना चाह रहा था? बाइबल से हम ठीक-ठीक जान सकते हैं कि दर्शन की कुछ बातों का क्या मतलब है। आइए ऐसी तीन बातों पर गौर करें जिनसे हमें काफी हिम्मत मिल सकती है।

      एक बहती नदी

      बक्स 19क: यहोवा की आशीषों की नदियाँ

      4. (क) नदी के दर्शन के बारे में जानकर यहूदियों ने कैसी आशीषें पाने की उम्मीद की होगी? (ख) कुछ आयतों में “पानी” और “नदी” की मिसाल क्यों दी गयी है? (ग) इससे हमें कैसे यकीन होता है कि यहोवा अपने लोगों को आशीषें देगा? (यह बक्स देखें: “यहोवा की आशीषों की नदियाँ।”)

      4 आशीषों की नदी।  बाइबल की कुछ आयतों में यहोवा से मिलनेवाली आशीषों के बारे में बताने के लिए पानी और नदियों की मिसाल दी गयी है। जैसे नदी लगातार बहती रहती है, वैसे ही यहोवा अपने लोगों को लगातार आशीषें देता रहेगा। यहूदी समझ गए होंगे कि यहेजकेल ने जो नदी देखी, उसका मतलब यह है कि अगर वे शुद्ध उपासना करते रहेंगे, तो यहोवा उन्हें आशीषें देता रहेगा। कैसी आशीषें? एक तो याजक उन्हें फिर से परमेश्‍वर के वचन से सिखाएँगे। और जब वे मंदिर में दोबारा बलिदान अर्पित करने लगेंगे, तो उन्हें भरोसा होगा कि यहोवा ने उनके पाप माफ कर दिए हैं। (यहे. 44:15, 23; 45:17) वे यहोवा की नज़र में दोबारा शुद्ध हो जाएँगे, मानो मंदिर से बहते शुद्ध पानी से उन्हें धोया गया हो।

      5. नदी के बारे में जानकर यहूदियों की चिंताएँ क्यों दूर हो गयी होंगी?

      5 जब यहूदी अपने देश लौटते, तो क्या वे उम्मीद कर सकते थे कि सबको भरपूर आशीषें मिलेंगी? अगर उन्हें इस बात की चिंता रही होगी, तो नदी के दर्शन से उनकी चिंताएँ दूर हो गयी होंगी। दर्शन में पानी की जो धारा शुरू में हलकी-हलकी बह रही थी, वह आगे गहरी होती गयी और बस दो किलोमीटर आगे जाकर एक उमड़ती नदी बन गयी। (यहे. 47:3-5) दोबारा बसाए गए देश में लोगों की आबादी चाहे जितनी भी बढ़ जाए, उन्हें कभी यहोवा की आशीषों की कमी नहीं होगी। नदी के दर्शन से उन्हें यकीन हुआ होगा कि उन्हें लगातार और भरपूर आशीषें मिलती रहेंगी।

      6. (क) नदी के दर्शन से लोगों को किस बात का यकीन हुआ होगा? (ख) इस दर्शन से उन्होंने और क्या जाना? (फुटनोट देखें।)

      6 जीवन देनेवाला पानी।  दर्शन में नदी मृत सागर में जा मिलती है जिससे उसका खारा पानी मीठा हो जाता है। इससे मृत सागर में मछलियों की भरमार हो जाती है, जैसे महासागर या भूमध्य सागर में होती है। यहाँ तक कि मृत सागर के किनारे दो नगरों के बीच मछुवाई का एक बड़ा कारोबार शुरू हो जाता है। ये दो नगर एक-दूसरे से बहुत दूर हैं। यह दिखाता है कि कारोबार कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है। स्वर्गदूत यहेजकेल को बताता है, ‘जहाँ कहीं नदी का पानी बहेगा, वहाँ हर तरह का समुद्री जीव ज़िंदा रह पाएगा।’ क्या इसका यह मतलब है कि यहोवा के मंदिर से निकलनेवाला पानी पूरे मृत सागर में मिलकर उसके पानी को मीठा बना देगा? जी नहीं। स्वर्गदूत ने यहेजकेल को बताया कि मृत सागर के कुछ दलदल वाले इलाकों तक नदी का पानी नहीं पहुँचेगा। इसलिए उन इलाकों का पानी “खारा ही रहेगा।”b (यहे. 47:8-11) नदी के दर्शन से लोगों को यकीन हुआ होगा कि शुद्ध उपासना ज़रूर बहाल होगी, जिसकी वजह से उनमें एक तरह से दोबारा जान आ जाएगी। उन्होंने यह भी जाना कि कुछ लोग यहोवा की आशीषों की कदर नहीं करेंगे और न ही लाक्षणिक तौर पर चंगे होंगे।

      7. नदी किनारे लगे पेड़ों से यहूदियों को किस बात का भरोसा हुआ होगा?

      7 रोग दूर करनेवाले फलदार पेड़।  दर्शन में नदी किनारे लगे पेड़ों की वजह से आस-पास का नज़ारा बहुत खूबसूरत लग रहा है। यहेजकेल और बाकी यहूदियों के लिए इन पेड़ों के क्या मायने थे? दर्शन में बताया गया कि इन पेड़ों पर हर महीने नए-नए स्वादिष्ट फल लगेंगे। इस बात से यहूदियों को भरोसा हुआ होगा कि यहोवा उन्हें अपने वचन से बढ़िया खुराक देता रहेगा। इन पेड़ों से एक और फायदा होगा। उनके “पत्ते रोग दूर करने के काम आएँगे।” (यहे. 47:12) वह कैसे? याद कीजिए कि यहोवा के साथ यहूदियों का रिश्‍ता कमज़ोर पड़ गया था। वे एक मायने में रोगी हो गए थे। यहोवा जानता था कि जब वे अपने देश लौटेंगे, तो उन्हें चंगा करने की ज़रूरत होगी यानी उन्हें यहोवा के साथ रिश्‍ता मज़बूत करने के लिए मदद की ज़रूरत होगी। यहोवा ने इसी तरह की चंगाई करने का वादा किया। उसने उन्हें कैसे चंगा किया, इस बारे में हमने इस किताब के अध्याय 9 में देखा था, जहाँ हमने बहाली की दूसरी भविष्यवाणियों पर गौर किया था।

      8. कैसे पता चलता है कि नदी की भविष्यवाणी आगे चलकर बड़े पैमाने पर पूरी होती?

      8 अध्याय 9 में हमने यह भी सीखा कि जब यहूदी अपने देश लौटे, तो उन्हें वे सारी आशीषें नहीं मिलीं जिनका ज़िक्र बहाली की भविष्यवाणियों में किया गया था। इसके लिए वे ही कसूरवार थे। अपने देश लौटने के बाद वे दोबारा यहोवा से दूर जाने लगे, बार-बार उसकी आज्ञा तोड़ने लगे और शुद्ध उपासना करने में ढीले पड़ गए। ऐसे में भला यहोवा उन्हें कैसे आशीषें देता! वफादार यहूदियों को यह देखकर बहुत दुख हुआ कि उनके यहूदी भाई दोबारा बुरे काम करने लगे हैं। फिर भी उन वफादार लोगों को भरोसा था कि यहोवा की सभी भविष्यवाणियाँ ज़रूर पूरी होंगी, क्योंकि उसके वादे हमेशा सच होते हैं। (यहोशू 23:14 पढ़िए।) नदी की भविष्यवाणी आगे चलकर बड़े पैमाने पर पूरी होती। मगर कब?

      नदी आज भी बह रही है!

      9. मंदिर की भविष्यवाणी कब बड़े पैमाने पर पूरी होती?

      9 जैसे हमने इस किताब के अध्याय 14 में देखा, मंदिर के दर्शन की भविष्यवाणी “आखिरी दिनों में” बड़े पैमाने पर पूरी हो रही है। आज हमारे दिनों में शुद्ध उपासना इतनी ऊँचाई तक बुलंद की जा रही है जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। (यशा. 2:2) कैसे?

      10, 11. (क) आज हम कैसे आशीषों की नदी का लुत्फ उठा रहे हैं? (ख) आखिरी दिनों में आशीषों की नदी कैसे तेज़ रफ्तार से बह रही है?

      10 आशीषों की नदी।  जैसे मंदिर से पानी की धारा लगातार बह रही थी, उसी तरह आज हम यहोवा से मिलनेवाली आशीषों का लगातार लुत्फ उठा रहे हैं। यहोवा ने ऐसे कई इंतज़ाम किए हैं जिनकी वजह से हम उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम कर पाए हैं और हमें सच्चाई की बढ़िया खुराक मिल रही है। उसके इंतज़ामों में सबसे खास है, मसीह का फिरौती बलिदान। इसके आधार पर हमें पापों की माफी मिलती है और हम यहोवा की नज़र में शुद्ध ठहरते हैं। परमेश्‍वर के वचन की सच्चाइयाँ भी जीवन देनेवाले पानी की तरह हैं जो हमें शुद्ध करती हैं। (इफि. 5:25-27) हमारे दिनों में आशीषों की यह नदी कैसे उमड़ती जा रही है?

      11 सन्‌ 1919 में यहोवा के सेवकों की गिनती सिर्फ कुछ हज़ारों में थी। उन्हें परमेश्‍वर के वचन की अच्छी खुराक दी गयी, इसलिए वे सच्चाई में मज़बूत होते गए। बाद के दशकों में उनकी गिनती तेज़ी से बढ़ने लगी। आज परमेश्‍वर के लोगों की गिनती 80 लाख से भी ज़्यादा है। उनकी गिनती जिस रफ्तार से बढ़ती गयी, क्या आशीषों की नदी भी उसी रफ्तार से बहती गयी? बिलकुल। सच्चाई के शुद्ध पानी की धारा तेज़ी से बह रही है। पिछले सौ सालों के दौरान परमेश्‍वर के लोगों के लिए अरबों की तादाद में बाइबलें, किताबें, पत्रिकाएँ, ब्रोशर और ट्रैक्ट निकाले गए। जैसे दर्शन में नदी उमड़ती गयी, ठीक उसी तरह सच्चाई का ज्ञान बहुतायत में उपलब्ध कराया जा रहा है। बाइबल की समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ छापकर दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचायी जा रही हैं ताकि जो सच्चाई के प्यासे हैं, वे इनसे फायदा पा सकें। इस तरह के प्रकाशन इलेक्ट्रॉनिक रूप में आज jw.org® वेबसाइट पर 900 से ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध हैं। सच्चाई का यह जल नेकदिल वालों पर कैसा असर कर रहा है?

      12. (क) सच्चाई जानने से लोगों को कैसे फायदा हुआ है? (ख) इस दर्शन से हमें क्या चेतावनी मिलती है? (फुटनोट भी देखें।)

      12 जीवन देनेवाला पानी।  यहेजकेल को स्वर्गदूत ने बताया था, ‘जहाँ कहीं नदी का पानी बहेगा, वहाँ हर तरह का जीव ज़िंदा रह पाएगा।’ यह बात आज कैसे पूरी हो रही है? आज सच्चाई का जल लाखों लोगों तक पहुँच रहा है और वे इसे स्वीकार करके फिरदौस जैसे माहौल में जी रहे हैं। ऐसे लोगों पर जीवन के जल का बढ़िया असर हो रहा है। सच्चाई जानने से उन्हें नयी ज़िंदगी मिल गयी है और वे यहोवा पर मज़बूत विश्‍वास पैदा कर पाए हैं। दर्शन से हमने यह भी सीखा कि कुछ लोग बाद में सच्चाई के मुताबिक चलना छोड़ देते हैं। उनका दिल मृत सागर के दलदल और कीचड़ वाले इलाकों जैसा हो जाता है, इसलिए वे सच्चाई की कदर नहीं करते और उसके मुताबिक जीना छोड़ देते हैं।c मगर हमें ध्यान रखना है कि हमारे अंदर ऐसा रवैया न पैदा हो।—व्यवस्थाविवरण 10:16-18 पढ़िए।

      13. नदी किनारे लगे पेड़ों से हमें किस बात की एक तसवीर मिलती है?

      13 रोग दूर करनेवाले फलदार पेड़।  नदी किनारे लगे पेड़ों पर हर महीने नए-नए स्वादिष्ट फल लगते हैं और उनके पत्ते रोग दूर करने के काम आते हैं। (यहे. 47:12) इससे हमें इस बात की एक तसवीर मिलती है कि यहोवा हमें कैसे सच्चाई की भरपूर खुराक देता है और चंगा करता है। आज एक तरफ जहाँ दुनिया में सही मार्गदर्शन का अकाल पड़ा है और लोग मानो बीमार हालत में हैं, वहीं यहोवा हमें सच्चाई की खुराक बहुतायत में दे रहा है। क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि हमारे प्रकाशनों में कोई लेख पढ़ने के बाद या एक अधिवेशन के बाद आप यह सोचकर खुशी से फूले नहीं समाए कि आपको कितनी अच्छी शिक्षा मिल रही है? या कोई वीडियो या ब्रॉडकास्टिंग देखने के बाद आपको ऐसा महसूस हुआ? (यशा. 65:13, 14) इन इंतज़ामों की वजह से हमने परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम किया है। सच्चाई की अच्छी खुराक की वजह से हम इस बीमार दुनिया में भी मानो अच्छी सेहत का लुत्फ उठा रहे हैं। परमेश्‍वर के वचन से हमें बढ़िया सलाह मिलती है, इसलिए हम पाप करने के प्रलोभन को ठुकरा पाते हैं। जैसे अनैतिक काम, लालच और विश्‍वास की कमी। और अगर हम कोई बड़ा पाप कर बैठें और इस मायने में बीमार हो जाएँ, तो हमें चंगा करने के लिए भी यहोवा ने एक इंतज़ाम किया है। (याकूब 5:14 पढ़िए।) वाकई, आज हमें बहुतायत में आशीषें मिल रही हैं, ठीक जैसे नदी किनारे लगे पेड़ों की भविष्यवाणी से पता चलता है।

      14, 15. (क) दलदली जगहों के बारे में जानकर हमें क्या सबक मिलता है? (ख) आज हम कैसी आशीषें पा रहे हैं?

      14 इस दर्शन से हमें एक चेतावनी भी मिलती है। याद कीजिए कि जो-जो जगह दलदली थीं, वहाँ का पानी मीठा नहीं हुआ बल्कि खारा ही रहा। इससे हम सीखते हैं कि हमारे अंदर ऐसा कोई रवैया नहीं पैदा होना चाहिए जिससे यहोवा की आशीषों की धारा हम तक न पहुँचे। अगर ऐसा होगा, तो हम भी दुनिया के लोगों की तरह बीमार हालत में ही रहेंगे। (मत्ती 13:15) इसके बजाय हम आशीषों की इस नदी से लुत्फ उठाते रहना चाहते हैं। आज हम कई तरीकों से ये आशीषें पा रहे हैं। जैसे, परमेश्‍वर के वचन की अनमोल सच्चाइयों की समझ हमें मिल रही है, हमें दूसरों को भी ये सच्चाइयाँ सिखाने का मौका मिला है और हमें सही मार्गदर्शन, सलाह और दिलासा देने के लिए प्राचीन भी हैं जिन्हें विश्‍वासयोग्य दास ने प्रशिक्षण दिया है। जब हम इन सारी आशीषों की कदर करते हैं, तो हम मानो उस नदी का शुद्ध पानी पीकर तृप्त होते हैं। जहाँ-जहाँ आशीषों की यह नदी बहती है, वह रोग दूर करती है और जीवन देती है।

      15 नदी की यह भविष्यवाणी आनेवाले फिरदौस में और भी बड़े पैमाने पर पूरी होगी। आइए जानें कि यह कैसे पूरी होगी।

      फिरदौस में यह भविष्यवाणी कैसे पूरी होगी?

      16, 17. फिरदौस में नदी से हमें कैसे फायदा होगा? कुछ आशीषों के बारे में बताइए।

      16 क्या कभी-कभी आप सोचते हैं कि फिरदौस में आपकी ज़िंदगी कैसी होगी? आप कल्पना करते होंगे कि आप कैसे अपने दोस्तों और परिवारवालों के साथ हँसी-खुशी जी रहे हैं और आपको किसी बात की चिंता नहीं है। यहेजकेल ने जो नदी देखी, उस पर गौर करने से हम मन में फिरदौस की और भी अच्छी तसवीर बना पाएँगे। आइए एक बार फिर नदी की भविष्यवाणी पर गौर करें और देखें कि फिरदौस में हमें वही तीन आशीषें कैसे मिलेंगी जिनसे हम यहोवा का प्यार देख सकते हैं।

      17 आशीषों की नदी।  यह नदी फिरदौस में आज से कहीं ज़्यादा गहरी होती जाएगी। कैसे? उस वक्‍त हम न सिर्फ यहोवा के साथ अच्छे रिश्‍ते का आनंद उठाएँगे बल्कि हमारे शरीर की सारी कमज़ोरियाँ भी दूर हो जाएँगी। यीशु के हज़ार साल के शासन के दौरान वफादार लोगों को फिरौती बलिदान से पूरा-पूरा फायदा मिलेगा। वे सब धीरे-धीरे परिपूर्ण हो जाएँगे। न बीमारी होगी, न ही डॉक्टरों, नर्सों, अस्पतालों या किसी स्वास्थ्य बीमा की ज़रूरत होगी। “बड़ी भीड़” के जो लाखों-करोड़ों लोग “महा-संकट” से ज़िंदा बचेंगे, उन तक जीवन देनेवाले पानी की धारा पहुँचेगी। (प्रका. 7:9, 14) यह सब आगे मिलनेवाली बेशुमार आशीषों की बस एक शुरूआत होगी। उस वक्‍त मानो पानी की धारा हलकी-हलकी बह रही होगी और आगे चलकर आशीषों की नदी उमड़ने लगेगी।

      कुछ लोग फिरदौस में हैं और पीछे नदी बह रही है

      फिरदौस में आशीषों की नदी की बदौलत सब लोग जवान और तंदुरुस्त रहेंगे (पैराग्राफ 17 देखें)

      18. फिरदौस में “जीवन देनेवाले पानी की नदी” कैसे उमड़ने लगेगी?

      18 जीवन देनेवाला पानी।  हज़ार साल के राज के दौरान “जीवन देनेवाले पानी की नदी” उमड़ने लगेगी। (प्रका. 22:1) यहोवा अपने राज में मरे हुए लाखों-करोड़ों लोगों को ज़िंदा करेगा और उन्हें फिरदौस में हमेशा तक जीने का मौका देगा। जी हाँ, जीवन देनेवाले पानी से उन लोगों को भी फायदा होगा जो एक लंबे समय से कब्र में बेजान पड़े हैं। (यशा. 26:19) लेकिन क्या ज़िंदा होनेवाले सभी लोग हमेशा तक जीवित रहेंगे?

      19. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि फिरदौस में नयी सच्चाइयाँ सिखायी जाएँगी? (ख) भविष्य में कुछ लोग कैसे ‘खारे पानी’ की तरह होंगे?

      19 एक व्यक्‍ति हमेशा की ज़िंदगी पाएगा या नहीं, यह उसी पर निर्भर करेगा। बाइबल कहती है कि हज़ार साल के दौरान नयी किताबें खोली जाएँगी। इसका मतलब, नयी दुनिया में सच्चाई का जो जल मिलेगा, उसमें कुछ नयी सच्चाइयाँ और नयी हिदायतें भी होंगी। ज़रा सोचिए, ऐसी आशीषें पाकर हम कितने उमंग से भर जाएँगे। लेकिन अफसोस कि कुछ लोगों को इन आशीषें की कोई कदर नहीं होगी। वे जान-बूझकर यहोवा की आज्ञाओं के खिलाफ काम करेंगे। उस दौरान भी कुछ लोग यहोवा से बगावत करेंगे, लेकिन उन्हें फिरदौस में अशांति फैलाने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। (यशा. 65:20) वे एक तरह से कीचड़ से भरे उन इलाकों की तरह होंगे जिनका पानी मीठा नहीं होता बल्कि ‘खारा ही रहता है।’ जो लोग जीवन देनेवाला अनमोल पानी पीने से इनकार कर देंगे, वे कितनी बड़ी बेवकूफी कर रहे होंगे। हज़ार साल के बाद भी कुछ लोग बगावत करके शैतान की तरफ हो जाएँगे। मगर यहोवा की हुकूमत को ठुकरानेवाले इन सब लोगों का एक ही अंजाम होगा—हमेशा के लिए नाश!—प्रका. 20:7-12.

      20. फिरदौस में यहोवा हमारे लिए क्या इंतज़ाम करेगा?

      20 रोग दूर करनेवाले फलदार पेड़।  यहोवा नहीं चाहता कि हममें से कोई भी हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका गँवा बैठे। जैसे दर्शन में नदी किनारे ऐसे पेड़ लगे थे जिन पर अच्छे फल लगते थे और जिनके पत्ते रोग दूर करने के काम आते थे, उसी तरह यहोवा हज़ार साल के दौरान भी कुछ ऐसा इंतज़ाम करेगा कि हम शारीरिक तौर पर पूरी तरह स्वस्थ हो जाएँ और उसके साथ हमारा एक अच्छा रिश्‍ता भी बना रहे। वह इंतज़ाम यह है कि यीशु मसीह और 1,44,000 जन हज़ार साल तक स्वर्ग से राज करेंगे। वे याजकों के नाते भी सेवा करेंगे और फिरौती बलिदान से फायदा पाने में हमारी मदद करेंगे ताकि हम परिपूर्ण हो जाएँ। (प्रका. 20:6) यहेजकेल की तरह प्रेषित यूहन्‍ना ने भी कुछ ऐसा ही दर्शन देखा था। (प्रकाशितवाक्य 22:1, 2 पढ़िए।) उसने भी ऐसे पेड़ देखे जिनकी पत्तियाँ “लोगों के रोग दूर करने के लिए थीं।” फिरदौस में अनगिनत वफादार लोगों को 1,44,000 याजकों की सेवाओं से फायदा होगा।

      हलकी-हलकी बहती धारा एक उमड़ती नदी बन जाती है

      बक्स 19ख: हलकी-हलकी बहती धारा एक नदी बन जाती है!

      21. (क) दर्शन की नदी के बारे में सोचने से आपको कैसा लगता है? (यह बक्स देखें: “हलकी-हलकी बहती धारा एक नदी बन जाती है!”) (ख) अगले अध्याय में हम क्या चर्चा करेंगे?

      21 यहेजकेल ने दर्शन में जो नदी देखी, उस पर गौर करने से हम रोमांचित हो उठते हैं कि आनेवाला फिरदौस कितना दिलकश होगा और यहोवा से हमें कितनी सारी आशीषें मिलनेवाली हैं। ज़रा सोचिए, यहोवा ने हमें इन आशीषों की एक झलक देने के लिए हज़ारों साल पहले कितनी बढ़िया भविष्यवाणियाँ लिखवायीं। और उसने इतने सालों से सब्र रखा है और वह लोगों को प्यार से बुलावा दे रहा है कि वे फिरदौस में मिलनेवाली आशीषें पाएँ। क्या आप भी फिरदौस में जीना चाहते हैं? शायद आप सोचें कि क्या वाकई मुझे फिरदौस में रहने के लिए एक जगह मिलेगी। आपको इस सवाल का जवाब अगले अध्याय में मिलेगा जहाँ हम यहेजकेल किताब के आखिरी कुछ अध्यायों पर चर्चा करेंगे।

      a इसके अलावा, बँधुआई में रहनेवाले कुछ यहूदियों को याद था कि उनके देश में पहाड़ और नदियाँ कहाँ-कहाँ थीं, इसलिए वे जानते होंगे कि यह नदी सचमुच की नदी नहीं हो सकती। ज़रा दो कारणों पर गौर कीजिए। एक, दर्शन में दिखाया गया कि यह नदी एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर बसे मंदिर से निकल रही है, जबकि जिस जगह यह मंदिर बताया गया है वहाँ कोई ऊँचा पहाड़ नहीं है। दूसरा कारण, दर्शन में यह भी दिखाया गया कि नदी बिना किसी रुकावट के, सीधे बहकर मृत सागर में जा मिलती है, जबकि असल में ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि वहाँ जगह-जगह पहाड़ियाँ हैं।

      b बाइबल पर टिप्पणी देनेवाले कुछ लोगों का मानना है कि इन आयतों में किसी अच्छी घटना की बात की गयी है, क्योंकि लंबे समय से मृत सागर से नमक इकट्ठा करने का फलता-फूलता कारोबार चलता आया है। लेकिन ध्यान दीजिए कि भविष्यवाणी में साफ कहा गया है कि वहाँ की कीचड़ वाली जगहों का पानी “खारा ही रहेगा।” वहाँ का पानी बेकार ही रहेगा, क्योंकि यहोवा के मंदिर से जीवन देनेवाला पानी उन जगहों तक नहीं पहुँचेगा। इसलिए ऐसा मालूम पड़ता है कि इन इलाकों का खारापन बुरी बातों को दर्शाता है।—भज. 107:33, 34; यिर्म. 17:6.

      c यीशु ने बड़े जाल के उदाहरण में भी कुछ ऐसी ही बात बतायी थी। जाल में भले ही बहुत-सी मछलियाँ फँसती हैं, मगर सारी मछलियाँ “अच्छी” नहीं होतीं। बेकार मछलियों को फेंक दिया जाता है। यह उदाहरण देकर यीशु बताना चाह रहा था कि यहोवा के संगठन की संगति करनेवाले कुछ लोग वक्‍त के चलते बेकार मछलियाँ साबित होंगे।—मत्ती 13:47-50; 2 तीमु. 2:20, 21.

      शुद्ध उपासना के बारे में आपने क्या सीखा?

      1. नदी की भविष्यवाणी पुराने ज़माने में कैसे पूरी हुई?

      2. आज नदी की भविष्यवाणी किन तरीकों से पूरी हो रही है?

      3. मसीह के हज़ार साल के राज में आशीषों की नदी कैसे उमड़ने लगेगी?

  • ‘देश की ज़मीन विरासत में बाँटो’
    सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
    • यहेजकेल ने दर्शन में जो ज़मीन देखी, उसका एक हिस्सा

      अध्याय 20

      ‘देश की ज़मीन विरासत में बाँटो’

      यहेजकेल 45:1

      अध्याय किस बारे में है: ज़मीन के बँटवारे का क्या मतलब है

      1, 2. (क) यहोवा ने यहेजकेल को क्या बताया? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

      यहेजकेल ने अभी-अभी एक ऐसा दर्शन देखा जिससे उसे मूसा और यहोशू का ज़माना याद आ गया होगा। करीब 900 साल पहले यहोवा ने मूसा को बताया था कि वादा किए गए देश की सरहदें कहाँ से कहाँ तक हैं। और बाद में उसने यहोशू को बताया कि उसे देश की ज़मीन इसराएल के गोत्रों में कैसे बाँटनी चाहिए। (गिन. 34:1-15; यहो. 13:7; 22:4, 9) लेकिन अब ईसा पूर्व 593 में यहोवा यहेजकेल से और बँधुआई में रहनेवाले यहूदियों से कहता है कि एक बार फिर वादा किए गए देश की ज़मीन इसराएल के गोत्रों में बाँटी जाए।—यहे. 45:1; 47:14; 48:29.

      2 यहेजकेल और यहूदियों के लिए इस दर्शन के क्या मायने थे? आज परमेश्‍वर के लोगों को इस दर्शन की बातें जानकर क्यों खुशी होती है? क्या दर्शन के रूप में की गयी यह भविष्यवाणी आगे चलकर बड़े पैमाने पर भी पूरी होगी?

      दर्शन में चार आशीषों का वादा किया गया

      3, 4. (क) यहेजकेल के आखिरी दर्शन के ज़रिए यहोवा ने कौन-से चार वादे किए? (ख) इस अध्याय में हम किस वादे के बारे में बात करेंगे?

      3 यहेजकेल ने इस आखिरी दर्शन के बारे में अपनी किताब के आखिरी नौ अध्यायों में लिखा है। (यहे. 40:1–48:35) इस दर्शन के ज़रिए बँधुआई में रहनेवाले लोगों से चार वादे किए गए। उन्हें बताया गया कि जब वे दोबारा अपने देश में बस जाएँगे, तो उन्हें क्या-क्या आशीषें मिलेंगी। पहला वादा यह है कि यहोवा के मंदिर में पहले की तरह फिर से शुद्ध उपासना की जाएगी। दूसरा वादा, परमेश्‍वर के नेक स्तरों पर चलनेवाले याजक और चरवाहे इस राष्ट्र की अगुवाई करेंगे। तीसरा, देश में सबको ज़मीन का एक टुकड़ा ज़रूर मिलेगा। चौथा, यहोवा एक बार फिर उनके बीच निवास करेगा।

      4 इस किताब के अध्याय 13 और 14 में पहले और दूसरे वादे के बारे में बताया गया था कि शुद्ध उपासना कैसे बहाल होगी और नेक चरवाहे कैसे यहोवा के लोगों की अगुवाई करेंगे। इस अध्याय में हम तीसरे वादे के बारे में बात करेंगे जो ज़मीन के बँटवारे के बारे में है। अगले अध्याय में हम चौथे वादे के बारे में बात करेंगे कि यहोवा अपने लोगों के बीच कैसे निवास करेगा।—यहे. 47:13-21; 48:1-7, 23-29.

      ‘यह देश तुम्हें विरासत में दिया जा रहा है’

      5, 6. (क) यहेजकेल के दर्शन में जिस इलाके को बाँटने की बात की गयी, वह क्या था? (शुरूआती तसवीर देखें।) (ख) दर्शन में क्यों दिखाया गया कि ज़मीन का बँटवारा कैसे होगा?

      5 यहेजकेल 47:14 पढ़िए। दर्शन में यहोवा यहेजकेल को एक इलाका दिखाता है जो बहुत जल्द “अदन के बाग” जैसा खूबसूरत बन जाएगा। (यहे. 36:35) फिर यहोवा कहता है, “तुम देश का यह इलाका इसराएल के 12 गोत्रों को विरासत में बाँटोगे।” (यहे. 47:13) ‘देश के इलाके’ का मतलब इसराएल देश है जहाँ कुछ समय बाद यहूदी लौटकर बसनेवाले थे। फिर जैसे यहेजकेल 47:15-21 में लिखा है, यहोवा साफ-साफ बताता है कि देश की सरहदें उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्‍चिम में कहाँ से कहाँ तक होंगी।

      6 यहेजकेल को दर्शन में क्यों दिखाया जाता है कि ज़मीन का बँटवारा कैसे होगा? वह इसलिए कि यहोवा यहेजकेल और बँधुआई में रहनेवाले यहूदियों को यकीन दिलाना चाहता है कि उनका देश दोबारा बसाया जाएगा। जब लोगों ने जाना कि यहोवा ने साफ-साफ बताया है कि देश की सरहदें कहाँ से कहाँ तक होंगी और ज़मीन कैसे गोत्रों में बाँटी जाएगी, तो सोचिए उनके मन में कैसी उमंगें जाग उठी होंगी! पर सवाल यह है कि क्या उनकी सारी उम्मीदें पूरी हुईं? जब वे अपने देश लौटे, तो क्या सबको विरासत में ज़मीन का एक टुकड़ा मिला? बिलकुल।

      यहेजकेल ने दर्शन में जो ज़मीन देखी, उसका एक हिस्सा

      7. (क) ईसा पूर्व 537 से क्या होने लगा? (ख) हमारे दिनों में भी क्या हुआ है? (ग) हम पहले किस सवाल का जवाब जानेंगे?

      7 यहेजकेल को यह दर्शन मिलने के करीब 56 साल बाद यानी ईसा पूर्व 537 से हज़ारों यहूदी इसराएल देश लौटने लगे और वहाँ बसने लगे। कुछ इसी तरह की घटना हमारे ज़माने में भी हुई है। परमेश्‍वर के लोगों को एक लाक्षणिक देश विरासत में दिया गया है। यहोवा ने उन्हें फिरदौस जैसे माहौल में रहने का मौका दिया है। तो फिर पुराने ज़माने में हुई बहाली से हम आज की बहाली के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं। लेकिन इस बारे में जानने से पहले आइए एक और सवाल का जवाब जानें। हम कैसे कह सकते हैं कि आज यहोवा के लोग एक लाक्षणिक देश या फिरदौस में रहते हैं?

      8. (क) यहोवा ने पैदाइशी इसराएलियों को ठुकराकर किसे अपनी प्रजा चुना? (ख) लाक्षणिक देश का क्या मतलब है? (ग) यह कब से वजूद में आया और इसमें कौन-कौन बसे हैं?

      8 यहोवा ने बहुत पहले एक दर्शन में यहेजकेल पर ज़ाहिर किया था कि जब उसका “सेवक दाविद” यानी यीशु राज करना शुरू करेगा, तो उसके बाद इसराएल की बहाली की भविष्यवाणियाँ बड़े पैमाने पर पूरी होंगी। (यहे. 37:24) यीशु 1914 में राजा बना। इससे पता चलता है कि ये भविष्यवाणियाँ उसके बाद ही बड़े पैमाने पर पूरी होतीं। यहोवा ने 1914 से सदियों पहले ही पैदाइशी इसराएलियों के राष्ट्र को ठुकरा दिया था। उसने उनके बदले अभिषिक्‍त मसीहियों से बने लाक्षणिक इसराएल को अपनी खास प्रजा चुन लिया था। (मत्ती 21:43; 1 पतरस 2:9 पढ़िए।) इतना ही नहीं, यहोवा ने अपने लोगों को सचमुच के इसराएल देश के बजाय एक लाक्षणिक देश में बसाया। (यशा. 66:8) यह लाक्षणिक देश क्या है? हमने इस किताब के अध्याय 17 में देखा था कि इस लाक्षणिक देश का मतलब फिरदौस जैसा माहौल है जहाँ हम यहोवा के सेवक महफूज़ बसे हुए हैं। अभिषिक्‍त मसीही 1919 से इस फिरदौस में यहोवा की उपासना करने लगे। (बक्स 9ख देखें, “1919 ही क्यों?”) बाद में “दूसरी भेड़ें” यानी धरती पर जीने की आशा रखनेवाले भी इस फिरदौस में उनके साथ मिल गए। (यूह. 10:16) आज इस फिरदौस की सरहदें बढ़ती जा रही हैं और हमें कई आशीषें मिल रही हैं। फिर भी असली आशीषें तो हमें हर-मगिदोन के बाद मिलेंगी, जब यह धरती सचमुच एक फिरदौस बन जाएगी।

      ज़मीन का बराबर और ठीक-ठीक बँटवारा

      9. यहोवा ने ज़मीन के बँटवारे के बारे में क्या-क्या बताया?

      9 यहेजकेल 48:1, 28 पढ़िए। यह बताने के बाद कि इसराएल देश की सरहदें कहाँ से कहाँ तक होंगी, यहोवा साफ बताता है कि एक-एक करके हर गोत्र को ज़मीन कहाँ से कहाँ तक दी जाए। उसने बताया कि उत्तर से लेकर दक्षिण तक इसराएल के 12 गोत्रों में ज़मीन बराबर बाँटी जाए। देश के उत्तरी सिरे पर दान गोत्र को ज़मीन दी जाए और उसके बाद एक-एक गोत्र को दी जाए और सबसे नीचे दक्षिणी सिरे पर गाद गोत्र को उसका हिस्सा दिया जाए। इस तरह 12 गोत्रों की ज़मीन दाएँ से बाएँ की तरफ फैली होती यानी पूरब से पश्‍चिम तक, जहाँ महासागर या भूमध्य सागर है।—यहे. 47:20; “ज़मीन का बँटवारा” बक्स में दिया नक्शा देखें।

      10. दर्शन की ये बातें जानकर यहूदियों को क्यों खुशी हुई होगी?

      10 दर्शन की ये बातें जानकर बँधुआई में रहनेवाले यहूदियों को कैसा लगा होगा? उन्हें यह जानकर बहुत खुशी हुई होगी कि देश की ज़मीन बड़े कायदे से और अच्छी व्यवस्था के मुताबिक बाँटी जाएगी, क्योंकि बँटवारे के बारे में यहेजकेल ने काफी सटीक जानकारी दी। यह भी बताया गया था कि 12 गोत्रों को कहाँ से कहाँ तक ज़मीन मिलेगी। इसलिए बँधुआई में रहनेवाले हर यहूदी को इस बात का पक्का यकीन हुआ होगा कि जब वह अपने देश लौटेगा, तो उसे ज़मीन का एक टुकड़ा ज़रूर मिलेगा। देश में हर किसी की अपनी एक जगह होगी, कोई बेघर नहीं होगा।

      एक स्वर्गदूत यहेजकेल को दिखाता है कि ज़मीन कैसे बाँटी जाएगी

      बक्स 20क: ज़मीन का बँटवारा

      11. इस दर्शन से हम क्या सीखते हैं? (यह बक्स देखें: “ज़मीन का बँटवारा।”)

      11 इस दर्शन से आज हम क्या सीखते हैं? याद कीजिए कि जब वादा किया गया देश बहाल हुआ, तो वहाँ न सिर्फ याजकों, लेवियों और प्रधानों को ज़मीन दी गयी बल्कि 12 गोत्रों के सब लोगों को विरासत में ज़मीन दी गयी। (यहे. 45:4, 5, 7, 8) उस देश में हर इसराएली की एक जगह थी। उसी तरह आज फिरदौस जैसे माहौल में न सिर्फ अभिषिक्‍त मसीहियों को और “बड़ी भीड़” के उन लोगों को एक जगह मिली है जो अगुवाई करते हैं बल्कि बड़ी भीड़ के सभी लोगों को एक जगह मिली है।a (प्रका. 7:9) यहोवा के संगठन में चाहे हमारी छोटी-सी भूमिका क्यों न हो, हम सबकी सेवा बहुत अनमोल है और संगठन में हर किसी की एक अहम जगह है। यह बात हमें कितनी खुशी देती है!

      आज फिरदौस जैसे माहौल में अभिषिक्‍त जन और दूसरी भेड़ें तरह-तरह के काम कर रही हैं

      यहोवा के संगठन में हम चाहे जो भी काम करें, यहोवा हमारी मेहनत की कदर करता है (पैराग्राफ 11 देखें)

      दो खास फर्क—हमारे लिए इनके मायने

      12, 13. ज़मीन के बँटवारे के बारे में यहोवा ने क्या हिदायतें दीं?

      12 ज़मीन के बँटवारे के बारे में यहोवा की कुछ हिदायतें सुनकर यहेजकेल हैरान रह गया होगा, क्योंकि बहुत पहले यहोवा ने मूसा को जो हिदायतें दी थीं, उनसे ये कुछ हटकर थीं। आइए ऐसी दो बातों पर ध्यान दें। एक फर्क ज़मीन को लेकर था और दूसरा वहाँ के निवासियों को लेकर।

      13 पहला फर्क, ज़मीन।  मूसा को बताया गया था कि बड़े गोत्रों को ज़्यादा ज़मीन दी जाए और छोटे गोत्रों को कम। (गिन. 26:52-54) लेकिन यहेजकेल के दर्शन में यहोवा ने साफ-साफ कहा कि सभी गोत्रों को “बराबर  हिस्सा” मिलना चाहिए ताकि ‘हर कोई अपने भाई की तरह’ विरासत में एक समान इलाका पाए। (यहे. 47:14, फु.) इसका मतलब था कि हर गोत्र की ज़मीन उत्तरी सिरे से लेकर दक्षिणी सिरे तक एक बराबर होती। इसलिए सभी इसराएलियों को, फिर चाहे वे किसी भी गोत्र के हों, वादा किए गए देश की उपजाऊ ज़मीन से और पानी की बहुतायत से बराबर फायदा होता।

      14. यहोवा ने परदेसियों के बारे में जो हिदायतें दीं, वे कैसे मूसा के कानून से हटकर थीं?

      14 दूसरा फर्क, वहाँ के निवासी।  मूसा के कानून में परदेसियों की हिफाज़त के लिए कुछ नियम दिए गए थे और उन्हें भी यहोवा की उपासना करनी की इजाज़त थी, मगर उन्हें देश में कोई ज़मीन नहीं दी गयी थी। (लैव्य. 19:33, 34) इस तरह पैदाइशी इसराएलियों और परदेसियों में बहुत बड़ा फर्क था। लेकिन अब दर्शन में यहोवा ने यहेजकेल को कुछ ऐसी हिदायत दी जो मूसा के कानून से बिलकुल हटकर थी। उसने यहेजकेल से कहा, “तुम हर परदेसी को विरासत की ज़मीन  उस गोत्र के इलाके में देना जहाँ वह रहता है।” यहोवा की इस आज्ञा की वजह से ‘पैदाइशी इसराएलियों’ और परदेसियों के बीच अब वह फर्क नहीं रहा। (यहे. 47:22, 23) यहेजकेल ने दर्शन में देखा कि दोबारा बसाए गए देश में सबके साथ एक समान व्यवहार किया जा रहा है और वे सब एकता से यहोवा की उपासना कर रहे हैं।—लैव्य. 25:23.

      15. देश की ज़मीन और वहाँ के निवासियों के बारे में जो हिदायतें दी गयीं, उनसे कौन-सी सच्चाई पुख्ता होती है?

      15 बँधुआई में रहनेवालों को यह जानकर कितनी खुशी हुई होगी कि देश में बड़े कायदे से ज़मीन बाँटी जाएगी। उन्हें यकीन हुआ होगा कि यहोवा की उपासना करनेवाले सब लोगों को देश में बराबर हिस्सा मिलेगा, फिर चाहे वे पैदाइशी इसराएली हों या परदेसी। (एज्रा 8:20; नहे. 3:26; 7:6, 25; यशा. 56:3, 8) इन हिदायतों से यह बात पुख्ता हो गयी कि यहोवा की नज़र में उसके सभी सेवक अनमोल हैं। (हाग्गै 2:7 पढ़िए।) यह एक ऐसी सच्चाई है जो कभी बदलती नहीं। आज हमें भी इस बात से बहुत खुशी मिलती है कि यहोवा हम सबसे प्यार करता है, फिर चाहे हमें स्वर्ग में जीने की आशा हो या धरती पर।

      16, 17. (क) देश की ज़मीन और वहाँ के निवासियों के बारे में हमने जो जाना, उससे हमें क्या सीख मिलती है? (ख) अगले अध्याय में हम क्या चर्चा करेंगे?

      16 देश की ज़मीन और वहाँ के निवासियों के बारे में अब तक हमने जो जाना, उससे हमें क्या सीख मिलती है? हमें ध्यान रखना है कि दुनिया-भर में हम भाई-बहनों के बीच एकता साफ ज़ाहिर हो और हम एक-दूसरे के साथ एक समान व्यवहार करें। यहोवा किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। इसलिए हमें सोचना चाहिए, ‘क्या मैं यहोवा की तरह सबके साथ एक समान व्यवहार करता हूँ? क्या मैं यहोवा के हर सेवक का दिल से आदर करता हूँ, फिर चाहे वह किसी भी भाषा या देश का हो या ज़िंदगी में उसके हालात जो भी हों?’ (रोमि. 12:10) हमें इस बात से कितनी खुशी होती है कि हमारे पिता यहोवा ने हम सबको फिरदौस जैसे माहौल में रहने का बराबर मौका दिया है। इस फिरदौस में हम तन-मन से यहोवा की उपासना करते हैं और उससे आशीषें पाते हैं।—गला. 3:26-29; प्रका. 7:9.

      अलग-अलग भाषा और देश के लोग साथ मिलकर बाइबल पढ़ रहे हैं

      क्या हम यहोवा की तरह सबके साथ एक समान व्यवहार करते हैं और सबका आदर करते हैं? (पैराग्राफ 15, 16 देखें)

      17 यहेजकेल के आखिरी दर्शन के आखिरी भाग में यहोवा वादा करता है कि वह अपने लोगों के बीच निवास करेगा यानी उनके साथ रहेगा। अगले अध्याय में बताया जाएगा कि यहोवा के इस चौथे वादे से हमें क्या सीख मिलती है।

      a लाक्षणिक फिरदौस में यहोवा ने याजकों और प्रधान को कौन-सी खास जगह और ज़िम्मेदारी दी, यह जानने के लिए इस किताब का अध्याय 14 पढ़ें।

      शुद्ध उपासना के बारे में आपने क्या सीखा?

      1. आप क्यों मानते हैं कि आज यहोवा के लोग फिरदौस जैसे माहौल में रहते हैं?

      2. आपको क्यों यकीन है कि आज के फिरदौस में आपकी भी एक जगह है और आपकी सेवा अनमोल है?

      3. ज़मीन के बँटवारे के बारे में जो बताया गया, उससे आपने यहोवा के बारे में क्या सीखा?

  • “शहर का नाम होगा, ‘यहोवा वहाँ है’”
    सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
    • वह शहर जो यहेजकेल ने दर्शन में देखा

      अध्याय 21

      “शहर का नाम होगा, ‘यहोवा वहाँ है’”

      यहेजकेल 48:35

      अध्याय किस बारे में है: शहर और भेंट की ज़मीन के मायने क्या हैं

      1, 2. (क) ज़मीन के एक टुकड़े को किस मकसद से अलग रखने के लिए कहा गया? (जिल्द पर तसवीर देखें।) (ख) दर्शन की इन बातों से बँधुआई में रहनेवालों को क्या यकीन हुआ?

      यहेजकेल को आखिरी दर्शन में बताया जाता है कि देश की ज़मीन का एक टुकड़ा एक खास मकसद से अलग रखा जाए। यह ज़मीन इसराएलियों के किसी गोत्र को विरासत में नहीं दी जाएगी बल्कि यहोवा को भेंट की जाएगी। यहेजकेल को एक अनोखे शहर के बारे में भी बताया जाता है जिसका नाम भी अपने आप में अनूठा है। दर्शन की ये बातें जानकर बँधुआई में रहनेवालों को इस बात का पक्का यकीन होता है कि जब वे अपने प्यारे देश लौट जाएँगे, तो यहोवा उनके साथ रहेगा।

      2 यहेजकेल उस भेंट की ज़मीन के बारे में काफी ब्यौरा देता है। आइए दर्शन की इन बातों को जाँचें, क्योंकि यहोवा के उपासकों के नाते हम इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं।

      यहोवा के मंदिर से बहती नदी

      “पवित्र भेंट और शहर के लिए”

      एक नक्शे पर भेंट की वह ज़मीन दिखायी गयी है जिसे अलग रखने के लिए बताया गया था

      बक्स 21क: ‘तुम भेंट के लिए ज़मीन अलग रखना’

      3. यहोवा ने ज़मीन का जो टुकड़ा अलग रखने के लिए कहा, उसके पाँच हिस्से क्या हैं? (ख) ये हिस्से क्यों अलग ठहराए गए? (यह बक्स देखें: ‘तुम भेंट के लिए ज़मीन अलग रखना।’)

      3 ज़मीन का जो टुकड़ा अलग रखा गया था (बक्स 21क, 1), उसका एक हिस्सा बहुत खास था (2)। उत्तर से दक्षिण तक इसकी चौड़ाई 25,000 हाथ (13 किलोमीटर) थी और पूरब से पश्‍चिम तक लंबाई भी 25,000 हाथ थी। इस चौकोर हिस्से को “भेंट की पूरी  ज़मीन” कहा गया था (2)। इस ज़मीन को तीन भागों में बाँटा गया था। ऊपरी भाग लेवियों के लिए था और बीच का भाग मंदिर और याजकों के लिए। इन दोनों भागों को मिलाकर “पवित्र  भेंट” कहा गया था (4)। “बाकी ज़मीन” यानी नीचे का छोटा भाग “आम इस्तेमाल  के लिए” था (5)। यह ज़मीन शहर के लिए थी।—यहे. 48:15, 20.

      4. यहोवा को दी गयी भेंट के बारे में जानकर हमें क्या सीख मिलती है?

      4 यहोवा को दी गयी इस भेंट के बारे में जानकर हमें क्या सीख मिलती है? ध्यान दीजिए, यहोवा ने बताया था कि सबसे पहले  देश की ज़मीन का एक टुकड़ा खास भेंट के लिए अलग रखा जाए और इसके बाद  बाकी ज़मीन गोत्रों में बाँटी जाए। ऐसा कहकर यहोवा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि देश में उपासना की इस खास जगह को सबसे ज़्यादा अहमियत दी जाए। (यहे. 45:1) इससे बँधुआई में रहनेवाले यहूदियों के दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठ गयी होगी कि उन्हें अपनी ज़िंदगी में यहोवा की उपासना को पहली जगह देनी चाहिए। आज हमें भी यहोवा की उपासना को सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए, जैसे बाइबल पढ़ना, मसीही सभाओं में जाना, प्रचार करना वगैरह। यहोवा अपनी मिसाल से हमें यही सिखाना चाहता है कि हमें रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उसकी उपासना को सबसे पहली जगह देनी चाहिए।

      “ज़मीन के बीचों-बीच शहर होगा”

      5, 6. (क) शहर की ज़मीन किसकी थी? (ख) शहर का मतलब क्या नहीं है? क्यों?

      5 यहेजकेल 48:15 पढ़िए। “शहर” और उसके आस-पास की ज़मीन के क्या मायने थे? (यहे. 48:16-18) दर्शन में यहोवा ने यहेजकेल को बताया कि ‘शहर के लिए अलग की गयी ज़मीन इसराएल के पूरे घराने की होगी।’ (यहे. 45:6, 7) इससे पता चलता है कि शहर और उसके आस-पास की ज़मीन उस “पवित्र भेंट” का हिस्सा नहीं थी जो उन्हें ‘यहोवा के लिए अलग रखनी’ थी। (यहे. 48:9) इस बात को ध्यान में रखते हुए आइए देखें कि शहर के इंतज़ाम से हमें क्या-क्या सीख मिलती है।

      6 शहर के इंतज़ाम से हमें क्या सीख मिलती है, यह जानने से पहले आइए देखें कि शहर का मतलब क्या नहीं हो सकता। दर्शन के इस शहर का मतलब दोबारा बनाया गया यरूशलेम शहर नहीं हो सकता जहाँ मंदिर बनाया गया था। ऐसा क्यों? क्योंकि यहेजकेल ने दर्शन में जो शहर देखा उसमें कोई मंदिर नहीं था। दर्शन का वह शहर दोबारा बसाए गए इसराएल के किसी और शहर को भी नहीं दर्शाता। वह इसलिए क्योंकि दर्शन में जिस तरह के शहर की बात की गयी है, वैसा शहर यहूदियों ने अपने देश लौटने के बाद कभी नहीं बनाया। उनके वंशजों ने भी कभी ऐसा शहर नहीं बनाया। दर्शन का शहर स्वर्ग को भी नहीं दर्शाता। वह इसलिए क्योंकि दर्शन में शहर “आम इस्तेमाल” की ज़मीन पर बना हुआ था, न कि उपासना के लिए अलग ठहरायी गयी ज़मीन पर।—यहे. 42:20.

      7. (क) यहेजकेल ने जो शहर देखा, वह कैसा शहर था? (ख) उस शहर का क्या मतलब हो सकता है? (शुरूआती तसवीर देखें।)

      7 तो फिर वह शहर क्या है जो यहेजकेल ने दर्शन में देखा था? याद कीजिए कि उसने जिस दर्शन में एक देश देखा था, उसी दर्शन में उसने शहर भी देखा था। (यहे. 40:2; 45:1, 6) परमेश्‍वर के वचन से सुराग मिलता है कि देश का मतलब एक लाक्षणिक देश या फिरदौस जैसा माहौल है। तो फिर शहर भी कोई लाक्षणिक शहर ही होगा। आम तौर पर शहर के नाम से हमारे मन में कैसी तसवीर आती है? एक ऐसी जगह जहाँ बहुत-से लोग साथ मिलकर रहते हैं और सबकुछ अच्छी व्यवस्था और कायदे-कानून के मुताबिक होता है। इसी को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि यहेजकेल ने जो व्यवस्थित शहर देखा, जो कि चौकोर था, अच्छी व्यवस्था के मुताबिक काम करनेवाले एक प्रशासन को दर्शाता है।

      वह शहर जो यहेजकेल ने दर्शन में देखा

      8. (क) यह प्रशासन कहाँ काम करता है? (ख) हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?

      8 यह प्रशासन कहाँ काम करता है? दर्शन में देखा गया कि शहर देश के अंदर है। इससे पता चलता है कि आज यह प्रशासन यहोवा के लोगों के बीच काम करता है और उन्हें निर्देश देता है। यह भी गौर कीजिए कि शहर आम इस्तेमाल की ज़मीन पर बनाया गया था, न कि पवित्र ज़मीन पर। इससे पता चलता है कि शहर स्वर्ग के किसी प्रशासन को नहीं बल्कि धरती पर मौजूद एक प्रशासन को दर्शाता है। यह प्रशासन आज फिरदौस जैसे माहौल में रहनेवालों की खातिर काम कर रहा है।

      9. (क) धरती का प्रशासन आज किन लोगों से बना है? (ख) हज़ार साल के राज में यीशु क्या करेगा?

      9 धरती पर मौजूद यह प्रशासन किन लोगों से बना है? यहेजकेल के दर्शन में शहर के सरकारी काम-काज की अगुवाई करनेवाले व्यक्‍ति को “प्रधान” कहा गया है। (यहे. 45:7) वह परमेश्‍वर के लोगों का एक निगरान था, मगर वह न तो याजक था न ही लेवी। इस प्रधान के बारे में जानकर आज हमें मंडली के निगरानों का खयाल आता है, खासकर उन भाइयों का जो ‘दूसरी भेड़ों’ में से हैं। (यूह. 10:16) ये भाई स्वर्ग की सरकार के अधीन रहकर नम्रता से सेवा करते हैं और चरवाहों के नाते प्यार से हमारी देखभाल करते हैं। आनेवाले हज़ार साल के राज में यीशु “सारी धरती पर” ‘हाकिमों’ यानी काबिल प्राचीनों को ठहराएगा। (भज. 45:16) उस दौरान वे स्वर्ग के राज के निर्देशों को मानते हुए परमेश्‍वर के लोगों की देखभाल करेंगे।

      “यहोवा वहाँ है”

      10. (क) शहर का नाम क्या है? (ख) इस नाम से लोगों को क्या यकीन हुआ होगा?

      10 यहेजकेल 48:35 पढ़िए। शहर का नाम है, “यहोवा वहाँ है।” इस नाम से लोगों को यकीन हुआ होगा कि उस शहर में यहोवा की मौजूदगी रहेगी। यहोवा ने यहेजकेल को दिखाया था कि यह शहर देश के बीचों-बीच है। वह एक तरह से बँधुआई में रहनेवालों को भरोसा दिला रहा था कि ‘मैं फिर से  तुम लोगों के साथ रहूँगा।’ यह जानकर उन्हें कितनी हिम्मत मिली होगी!

      11. शहर और उसके नाम से हमें क्या सीख मिलती है?

      11 यहेजकेल की भविष्यवाणी की इन बातों से हमें क्या सीख मिलती है? इस शहरनुमा प्रशासन को जो नाम दिया गया है, उससे हमें भरोसा होता है कि आज धरती पर जो यहोवा की सेवा करते हैं, उनके साथ यहोवा है और हमेशा  रहेगा। शहर के इस अनोखे नाम से एक और अहम सच्चाई उजागर होती है। वह यह कि यह शहर या प्रशासन इंसानों को कोई अधिकार नहीं सौंपता बल्कि उनसे यहोवा के नियम लागू करवाता है जो बहुत सख्त नहीं होते और हमारे भले के लिए होते हैं। मिसाल के लिए, दर्शन में यहोवा ने प्रशासन को यह अधिकार नहीं दिया कि वह मनचाहे तरीके से ज़मीन बाँटे बल्कि उसने खुद गोत्रों में ज़मीन बाँटी थी। उसी तरह आज यहोवा ने खुद अपने हर सेवक को एक तरह से ज़मीन का एक टुकड़ा दिया है। उसने अपने सभी सेवकों को, यहाँ तक कि उन्हें भी जो दुनिया के नज़रिए से मामूली समझे जाते हैं, सेवा करने के मौके दिए हैं। प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ सँभालनेवालों से यहोवा उम्मीद करता है कि वे यहोवा के इन फैसलों की इज़्ज़त करें।—यहे. 46:18; 48:29.

      12. (क) शहर की एक खासियत क्या थी? इससे क्या पता चलता है? (ख) शहर की बनावट से मसीही निगरानों को क्या सीख मिलती है?

      12 “यहोवा वहाँ है” नाम के इस शहर की एक और खासियत थी। इस शहर के 12 फाटक थे जबकि पुराने ज़माने में शहरों की हिफाज़त के लिए बहुत कम फाटक हुआ करते थे। (यहे. 48:30-34) इस चौकोर शहर के हर तरफ तीन-तीन फाटक थे। इतने सारे फाटकों का होना दिखाता है कि इस शहर की प्रशासनिक ज़िम्मेदारियाँ सँभालनेवाले लोग मिलनसार हैं और परमेश्‍वर के सभी सेवकों की मदद करने के लिए हरदम तैयार रहते हैं। इतना ही नहीं, शहर के चारों तरफ 12  फाटक होने की वजह से “इसराएल के पूरे  घराने” में से हर कोई उसमें जा सकता था। (यहे. 45:6) शहर की इस बनावट से मसीही निगरान एक अहम बात सीखते हैं। यहोवा चाहता है कि वे मिलनसार हों और फिरदौस जैसे माहौल में रहनेवाले हर भाई-बहन की मदद करने के लिए हमेशा तैयार हों।

      कुछ बच्चे एक प्राचीन के पास जा रहे हैं

      मसीही निगरान मिलनसार होते हैं और दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं (पैराग्राफ 12 देखें)

      परमेश्‍वर के लोग उसकी ‘उपासना करने आते हैं’ और शहर की खातिर सेवा करते हैं

      13. यहोवा ने किस तरह की सेवाओं के बारे में बताया?

      13 आइए एक बार फिर यहेजकेल के दिनों में चलें और देखें कि उसने ज़मीन के बँटवारे के बारे में जो दर्शन देखा, उसमें और क्या-क्या जानकारी दी जाती है। यहोवा बताता है कि लोग तरह-तरह की सेवा करेंगे। “पवित्र-स्थान के सेवक” यानी याजक बलिदान अर्पित करेंगे और यहोवा के पास आकर उसकी सेवा करेंगे। और “मंदिर में सेवा करनेवाले” यानी लेवी “वहाँ सेवा के सभी काम” करेंगे। (यहे. 44:14-16; 45:4, 5) इन लोगों के अलावा, कुछ लोग शहर के पास आकर काम करेंगे। वे कौन हैं?

      14. शहर के पास काम करनेवालों की तरह आज कौन सेवा करते हैं?

      14 वे “सब गोत्रों  के लोग” हैं। वे शहर के पास काम करने आएँगे ताकि उनकी सेवाओं से शहर की मदद हो। वे फसलें उगाएँगे ताकि शहर की खातिर सेवा करनेवालों को खाने के लिए उपज मिले। (यहे. 48:18, 19) आज फिरदौस जैसे माहौल में रहनेवाले सब लोगों को  कुछ इसी तरह की सेवा करने का मौका मिला है। हमें मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों को और “बड़ी भीड़” के उन लोगों को सहयोग देने का मौका मिला है जिन्हें यहोवा ने अगुवाई करने की ज़िम्मेदारी दी है। (प्रका. 7:9, 10) उन्हें सहयोग देने का एक अहम तरीका है, विश्‍वासयोग्य दास से मिलनेवाले निर्देशों को खुशी-खुशी मानना।

      15, 16. (क) यहेजकेल को दर्शन में और क्या बताया जाता है? (ख) आज हमें भी कैसी सेवाएँ करने का मौका मिला है?

      15 यहेजकेल को दर्शन में एक और बात बतायी जाती है जिससे हमें परमेश्‍वर की सेवा के बारे में एक अहम सीख मिलती है। यहोवा उसे बताता है कि 12 गोत्रों के लोग, जिनमें लेवी नहीं हैं, दो  जगहों पर सेवा करेंगे। एक जगह है मंदिर का आँगन और दूसरी है शहर की ज़मीन यानी चरागाह। इन दोनों जगहों पर वे क्या-क्या काम करेंगे? मंदिर के आँगन में सब गोत्रों के लोग “यहोवा की उपासना”  करेंगे और उसके लिए बलिदान  अर्पित करेंगे। (यहे. 46:9, 24) और शहर की ज़मीन पर सब गोत्रों के लोग जुताई-बोआई  करेंगे ताकि पैदा होनेवाली उपज से शहर की मदद  हो। इन मेहनती लोगों से हम क्या सीखते हैं?

      16 आज बड़ी भीड़ के लोगों को भी कुछ इसी तरह की सेवाएँ करने का मौका मिला है। एक तो वे यहोवा के “मंदिर  में” तारीफ के बलिदान  चढ़ाकर उसकी उपासना  करते हैं। (प्रका. 7:9-15) जब वे प्रचार करते हैं, मसीही सभाओं में जवाब देते हैं और गीत गाते हैं, तो वे अपने विश्‍वास का ऐलान करके बलिदान चढ़ा रहे होते हैं। इन तरीकों से यहोवा की उपासना करना वे अपनी खास ज़िम्मेदारी मानते हैं। (1 इति. 16:29) इसके अलावा, यहोवा के कई लोग अलग-अलग तरीकों से यहोवा के संगठन की मदद  करते हैं। जैसे राज-घर और शाखा दफ्तर बनाना, उनका रख-रखाव करना या दूसरी निर्माण योजनाओं में हाथ बँटाना। दूसरे लोग इन योजनाओं के लिए दान देते हैं। इस तरह ये भाई-बहन जुताई-बोआई  करते हैं ताकि उनके काम से “परमेश्‍वर की महिमा” हो। (1 कुरिं. 10:31) वे सब पूरे जोश से और खुशी-खुशी मेहनत करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यहोवा “ऐसे बलिदानों से बहुत खुश होता है।” (इब्रा. 13:16) क्या आप भी इस तरह जी-जान से सेवा करते हैं?

      यहेजकेल के दर्शन में इसराएली शहर के फाटकों के अंदर और बाहर तरह-तरह की सेवाएँ कर रहे हैं

      यहेजकेल ने शहर के अंदर और फाटकों के पास होनेवाली सेवाओं का जो ब्यौरा दिया, उससे हमें क्या सीख मिलती है? (पैराग्राफ 14-16 देखें)

      ‘हम नए आकाश और नयी पृथ्वी का इंतज़ार कर रहे हैं’

      17. (क) नयी दुनिया में यह भविष्यवाणी कैसे बड़े पैमाने पर पूरी होगी? (ख) उस समय शहरनुमा प्रशासन से किसे फायदा होगा?

      17 यहेजकेल ने भेंट की ज़मीन का जो दर्शन देखा, क्या उसकी भविष्यवाणी नयी दुनिया में बड़े पैमाने पर पूरी होगी? जी हाँ! यहेजकेल ने देखा कि “पवित्र भेंट” कहलानेवाली ज़मीन, जहाँ “यहोवा का पवित्र-स्थान” यानी मंदिर था, देश के बीचों-बीच है। (यहे. 48:10) इससे हमें भरोसा होता है कि हर-मगिदोन के बाद हम चाहे धरती पर कहीं भी रहें, यहोवा हमारे बीच निवास करेगा। (प्रका. 21:3) हज़ार साल के राज के दौरान शहरनुमा प्रशासन पूरी धरती पर काम करेगा। यह प्रशासन उन लोगों से बना होगा जिन्हें पूरी धरती पर परमेश्‍वर के सेवकों की देखरेख करने की ज़िम्मेदारी दी जाएगी। वे “नयी पृथ्वी” को यानी नए समाज के सब लोगों को प्यार से निर्देश देंगे और उनकी मदद करेंगे।—2 पत. 3:13.

      18. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि शहरनुमा प्रशासन परमेश्‍वर की हुकूमत के निर्देशों के मुताबिक काम करेगा? (ख) शहर का नाम हमें क्या भरोसा दिलाता है?

      18 हम यकीन रख सकते हैं कि यह शहरनुमा प्रशासन परमेश्‍वर की हुकूमत से मिलनेवाले निर्देशों के मुताबिक काम करेगा। परमेश्‍वर के वचन से पता चलता है कि धरती के प्रशासन या शहर की बनावट स्वर्ग की नगरी नयी यरूशलेम से मिलती-जुलती है जो मसीह के 1,44,000 साथी राजाओं से बनी है। जैसे स्वर्ग की नगरी के 12 फाटक हैं, उसी तरह धरती के शहर के भी 12 फाटक हैं। (प्रका. 21:2, 12, 21-27) इससे पता चलता है कि धरती पर मौजूद प्रशासन स्वर्ग से हुकूमत करनेवाले राज के फैसलों के मुताबिक ही काम करेगा। यह प्रशासन उस राज के फैसलों को ध्यान से लागू करेगा। शहर का नाम है, “यहोवा वहाँ है।” इस नाम से हम सबको इस बात का भरोसा होता है कि फिरदौस में हमेशा-हमेशा के लिए शुद्ध उपासना होती रहेगी। कितना सुनहरा भविष्य हमारे सामने है!

      शुद्ध उपासना के बारे में आपने क्या सीखा?

      1. यहोवा को अर्पित भेंट के दर्शन से आपने किन बातों को अहमियत देने के बारे में सीखा?

      2. आप विश्‍वासयोग्य दास को कैसे सहयोग दे सकते हैं?

      3. आप किस काम को सबसे अहम ज़िम्मेदारी मानते हैं?

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