पवित्र शक्ति के निर्देशन में चलनेवाले राजा से आशीष पाइए!
“यहोवा की आत्मा [पवित्र शक्ति, NW] . . . उस पर ठहरी रहेगी।”—यशा. 11:2.
1. दुनिया की समस्याओं के बारे में कुछ लोगों ने कैसे अपनी चिंता ज़ाहिर की है?
एक खगोलशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने 2006 में पूछा: “चाहे राजनीति की बात लें, या समाज और वातावरण की, आज दुनिया में हर कहीं गड़बड़ी और उथल-पुथल मची है। क्या ऐसे में इंसान का अगले 100 सालों तक भी जी पाना मुमकिन है?” न्यू स्टेट्समैन नाम की पत्रिका के एक लेख में छपा था: “हम न तो गरीबी दूर कर सके हैं, न ही दुनिया में शांति ला सके हैं। हाँ, इसका उलटा ज़रूर हमने हासिल किया है। और ऐसा नहीं कि हमने कोशिश नहीं की है। हमने साम्यवाद से लेकर पूँजीवाद तक और राष्ट्र संघ से लेकर परमाणु हथियारों तक का इस्तेमाल किया है। हमने ‘युद्धों को खत्म करने के लिए बहुत-से युद्ध लड़े,’ यह सोचकर कि हमें मालूम है कि युद्ध कैसे रोकने हैं।”
2. यहोवा जल्द ही कैसे अपना अधिकार इस धरती पर दिखाएगा?
2 इस तरह की बातों से यहोवा के साक्षी हैरत में नहीं पड़ते क्योंकि बाइबल कहती है कि इंसान को खुद हुकूमत करने के लिए नहीं बनाया गया था। (यिर्म. 10:23) हुकूमत करने का हक सिर्फ यहोवा को है। सिर्फ उसी के पास यह अधिकार है कि वह हमारे लिए स्तर बनाए, जीवन का मकसद तय करे और उसे हासिल करने का हमें मार्ग दिखाए। वह जल्द ही इंसान की नाकाम सरकारों को खत्म करके अपना अधिकार दिखाएगा। इसके साथ-साथ वह उन सभी को नाश करेगा जो उसकी हुकूमत को ठुकराते हैं और इंसान को पाप, असिद्धता और “दुनिया की व्यवस्था के ईश्वर” इब्लीस या शैतान का गुलाम बनाते हैं।—2 कुरिं. 4:4.
3. यशायाह ने मसीहा के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी?
3 फिरदौस बनी नयी दुनिया में, यहोवा मसीहाई राज के ज़रिए पूरी मानवजाति पर प्यार से हुकूमत करेगा। (दानि. 7:13, 14) उसके राजा के बारे में यशायाह ने भविष्यवाणी की: “तब यिशै के ठूंठ में से एक डाली फूट निकलेगी और उसकी जड़ में से एक शाखा निकलकर फलवन्त होगी। और यहोवा की आत्मा [या पवित्र शक्ति NW], बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी।” (यशा. 11:1, 2) किन खास तरीकों से परमेश्वर की पवित्र शक्ति ने, ‘यिशै के ठूंठ में से निकली एक डाली’ यीशु मसीह को मानवजाति पर राज करने के योग्य बनाया है? उसके राज में क्या-क्या आशीषें मिलेंगी? और उन आशीषों को पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
परमेश्वर ने राज करने के काबिल बनाया
4-6. किस खास ज्ञान की वजह से यीशु एक बुद्धिमान, प्यार करनेवाला राजा, महायाजक और न्यायी के तौर पर सेवा करने के काबिल है?
4 यहोवा चाहता है कि उसकी प्रजा सबसे बुद्धिमान, प्यार करनेवाले राजा, महायाजक और न्यायी व्यक्ति के निर्देशन में सिद्ध होती जाए। इसलिए परमेश्वर ने यीशु मसीह को चुना है और इन ज़रूरी ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए उसने अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए यीशु को योग्य बनाया है। कुछ कारणों पर गौर कीजिए कि क्यों यीशु इन ज़िम्मेदारियों को बिलकुल सही तरीके से निभा सकता है।
5 सिर्फ यीशु के पास परमेश्वर के बारे में बारीक-से-बारीक जानकारी है। किसी और के मुकाबले, परमेश्वर के इकलौते बेटे यीशु ने ही अपने पिता के साथ अरबों-खरबों साल गुज़ारे हैं। इस दौरान यीशु यहोवा के बारे में इतनी छोटी-से-छोटी बात जान गया कि उसे “अदृश्य परमेश्वर की छवि” कहा गया। (कुलु. 1:15) खुद यीशु ने कहा: “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।”—यूह. 14:9.
6 यहोवा के बाद यीशु ही वह शख्स है, जिसके पास मानवजाति और पूरी सृष्टि की सबसे ज़्यादा जानकारी है। कुलुस्सियों 1:16, 17 में हम पढ़ते हैं: “[परमेश्वर के बेटे] के ज़रिए स्वर्ग में और धरती पर बाकी सब चीज़ें सिरजी गयीं, देखी हों या अनदेखी . . . साथ ही, वह बाकी सब चीज़ों से पहले था और उसी के ज़रिए बाकी सब चीज़ें वजूद में लायी गयीं।” ज़रा सोचिए! परमेश्वर का कुशल “कारीगर” होने के नाते उसने सारी सृष्टि में हाथ बँटाया। इसलिए उसे पूरे विश्व की बारीक-से-बारीक जानकारी है। वह सूक्ष्म कणों से लेकर हैरतअँगेज़ इंसानी दिमाग के बारे में सब कुछ जानता है। जी हाँ, यीशु वाकई बुद्धि का साकार रूप है।—नीति. 8:12, 22, 30, 31.
7, 8. पवित्र शक्ति ने कैसे यीशु को उसकी सेवा में मदद दी?
7 यीशु को परमेश्वर की पवित्र शक्ति से अभिषिक्त किया गया था। यीशु ने कहा: “यहोवा की पवित्र शक्ति मुझ पर है, क्योंकि उसने गरीबों को खुशखबरी सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है। उसने कैदियों को रिहाई का और अंधों को आँखों की रौशनी पाने का संदेश सुनाने के लिए मुझे भेजा है कि कुचले हुओं को रिहाई देकर आज़ाद करूँ और यहोवा की मंज़ूरी पाने के वक्त का प्रचार करूँ।” (लूका 4:18, 19) जब यीशु ने बपतिस्मा लिया, उस वक्त पवित्र शक्ति ने उसे धरती पर आने से पहले की वे सारी बातें याद दिलायीं जो उसने सीखी थीं। उसने यह भी याद दिलाया होगा कि परमेश्वर उससे मसीहा के रूप में धरती पर किस काम को पूरा करने की उम्मीद कर रहा है।—यशायाह 42:1; लूका 3:21, 22; यूहन्ना 12:50 पढ़िए।
8 यीशु इस धरती का न सिर्फ सर्वश्रेष्ठ इंसान था बल्कि महान शिक्षक भी था क्योंकि उसे पवित्र शक्ति मिली थी, साथ ही वह तन और मन दोनों से सिद्ध था। इसलिए ताज्जुब नहीं कि उसके सुननेवाले उसके “सिखाने का तरीका देखकर दंग रह” गए! (मत्ती 7:28) यीशु बता सका कि इंसान की समस्याओं की असल जड़ है पाप, असिद्धता और परमेश्वर के बारे में ज्ञान की कमी। इसके अलावा यीशु लोगों का दिल देख सकता था और इसलिए उसने उसके मुताबिक उनके साथ व्यवहार किया।—मत्ती 9:4; यूह. 1:47.
9. यीशु के जीवन पर गौर करने से कैसे इस बात पर आपका भरोसा बढ़ता है कि वह एक अच्छा राजा है?
9 यीशु इंसानों की तरह जीया। इंसान के तौर पर जीने और असिद्ध इंसानों की संगति की वजह से यीशु एक अच्छा राजा बनने के काबिल हुआ। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “[यीशु] के लिए ज़रूरी था कि वह हर मायने में अपने ‘भाइयों’ जैसा बने, ताकि वह परमेश्वर की सेवा से जुड़ी बातों में एक दयालु और विश्वासयोग्य महायाजक बन सके और लोगों के पापों के लिए प्रायश्चित्त का बलिदान चढ़ाए जिससे परमेश्वर के साथ उनकी सुलह हो। क्योंकि उसने खुद उस वक्त जब उसकी परीक्षा ली जा रही थी, दुःख उठाया, इसलिए अब वह उनकी मदद करने के काबिल है जिनकी परीक्षा ली जा रही है।” (इब्रा. 2:17, 18) खुद यीशु की “परीक्षा” हुई थी, इस कारण वह उन लोगों की तकलीफें समझ सकता है जो किसी परीक्षा से गुज़र रहे हैं। धरती पर जिस तरह यीशु ने सेवा की, उससे उसकी करुणा साफ झलकी। बीमार, अपंग, टूटे मनवाले, यहाँ तक कि बच्चे भी उसके पास बेझिझक आए। (मर. 5:22-24, 38-42; 10:14-16) उसके पास नम्र दिल के लोग और परमेश्वर के बारे में जानने की ललक रखनेवाले लोग भी आए। दूसरी तरफ जो लोग घमंडी, अभिमानी और ‘परमेश्वर से प्यार नहीं’ करते थे ऐसे लोगों ने यीशु को ठुकरा दिया, उससे नफरत की और उसका विरोध किया।—यूह. 5:40-42; 11:47-53.
10. किस महान तरीके से यीशु ने हमारे लिए अपने प्यार का सबूत दिया?
10 यीशु ने हमारी खातिर अपनी जान दे दी। सबसे बड़ा सबूत जो यीशु को हमारा राजा बनने के योग्य बनाता है, वह यह कि वह हमारी खातिर मरने को तैयार था। (भजन 40:6-10 पढ़िए।) मसीह ने कहा: “इससे बढ़कर प्यार कोई क्या करेगा कि वह अपने दोस्तों की खातिर अपनी जान दे दे।” (यूह. 15:13) जी हाँ, वह इंसानी शासकों की तरह नहीं था जो जनता का फायदा उठाकर ऐश की ज़िंदगी जीते हैं, उसने तो इंसानों की खातिर अपनी ही जान कुरबान कर दी।—मत्ती 20:28.
फिरौती लागू करने का हक मिला
11. हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि फिरौती देनेवाले के तौर पर यीशु अपनी भूमिका बखूबी निभाएगा?
11 महायाजक होने के नाते, यह बिलकुल सही है कि यीशु अपने फिरौती बलिदान का फायदा पहुँचाने में पहल करे। जब यीशु धरती पर था तो उसने एक नमूना पेश किया कि जब वह हज़ार साल तक शासन करेगा तो फिरौती देनेवाले के तौर पर वह क्या-क्या करेगा। अगर हम वफादार रहेंगे तो उसका फायदा पा सकेंगे। उसने बीमारों और अपंगों को ठीक किया, मरे हुओं को ज़िंदा किया, भीड़-की-भीड़ को खिलाया, यहाँ तक कि प्रकृति को भी अपने काबू में किया। (मत्ती 8:26; 14:14-21; लूका 7:14, 15) उसने ऐसा लोगों को अपना अधिकार और ताकत दिखाने के लिए नहीं किया बल्कि अपनी परवाह और प्यार ज़ाहिर करने के लिए किया। जब एक कोढ़ी ने गिड़गिड़ाकर यीशु से ठीक करने की बिनती की, तब यीशु ने कहा, “हाँ, मैं चाहता हूँ।” (मर. 1:40, 41) अपने हज़ार साल के राज में यीशु पूरी दुनिया को ऐसी ही परवाह दिखाएगा।
12. यशायाह 11:9 में लिखी बात कैसे पूरी होगी?
12 करीब 2,000 साल पहले यीशु ने जो आध्यात्मिक शिक्षा देने का काम शुरू किया था, उसे वह और उसके साथ राज करनेवाले जारी रखेंगे। फिर यशायाह 11:9 में लिखे शब्द पूरे होंगे: “पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” परमेश्वर से मिली उस शिक्षा में बेशक इस बारे में निर्देश होंगे कि धरती और उस पर रहनेवाले अनगिनत प्राणियों की देखभाल कैसे करनी है, जैसी दरअसल शुरू में आदम को करनी थी। और फिर 1,000 साल के अंत में उत्पत्ति 1:28 में बताया गया परमेश्वर का असली मकसद पूरा होगा और फिरौती बलिदान को पूरी तरह से लागू किया जा चुका होगा।
न्याय करने का हक मिला
13. यीशु ने धार्मिकता के लिए अपना प्यार कैसे ज़ाहिर किया?
13 “परमेश्वर ने” मसीह को ही “जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है।” (प्रेषि. 10:42) यह जानकर कितना सुकून मिलता है कि यीशु में कोई बेईमानी नहीं, साथ ही धर्म और वफादारी का फेंटा उसकी कमर में कसकर बँधा है। (यशा. 11:5) उसने साफ दिखाया था कि उसे लोभ, पाखंड और दूसरी बुराइयों से नफरत है और उसने उन लोगों की निंदा की जो दूसरों के दर्द को नहीं समझते थे। (मत्ती 23:1-8, 25-28; मर. 3:5) इतना ही नहीं, यीशु ने दिखाया कि वह रंग-रूप से धोखा नहीं खाता क्योंकि “वह खुद जानता था कि एक इंसान अंदर से कैसा है।”—यूह. 2:25.
14. यीशु आज कैसे धर्म और न्याय के लिए प्यार दिखा रहा है और हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?
14 आज बड़े पैमाने पर हो रहे इस प्रचार और सिखाने के काम की निगरानी करके यीशु दिखा रहा है कि उसे धार्मिकता और न्याय से प्यार है। न तो इंसान, न ही कोई सरकार, न ही दुष्ट स्वर्गदूत इस काम को पूरा होने से रोक सकते हैं। यह काम तब तक चलता रहेगा, जब तक कि परमेश्वर पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो जाता। तो हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि हर-मगिदोन के खत्म होने पर परमेश्वर के न्याय की जीत होगी। (यशायाह 11:4; मत्ती 16:27 पढ़िए।) खुद से पूछिए: ‘क्या मैं प्रचार में लोगों के साथ यीशु जैसा ही व्यवहार करता हूँ? मेरे हालात चाहे जो हों या मेरी सेहत चाहे जैसी हो क्या मैं यहोवा को अपना भरसक देता हूँ?’
15. क्या बात मन में रखने से हमें परमेश्वर को अपना भरसक देने में मदद मिलेगी?
15 अगर हम यह याद रखें कि प्रचार काम यहोवा का है तो हमें इस काम को दिलो-जान से करने में मदद मिलेगी। हम यह भी याद रख सकते हैं कि यहोवा ने इस काम को करने की आज्ञा दी है, अपने बेटे के ज़रिए वह इसे निर्देशित करता है और उसमें हिस्सा लेनेवालों को पवित्र शक्ति देता है। आपको परमेश्वर के सहकर्मी बनकर उसके और उसके बेटे के साथ सेवा करने का जो सम्मान मिला है, क्या आप उसकी कदर करते हैं? यहोवा के अलावा भला और कौन हो सकता है, जो सत्तर लाख लोगों को, जिनमें से अधिकतर को “कम पढ़े-लिखे, [और] मामूली” समझा जाता है, 236 देशों में राज का प्रचार करने का बढ़ावा दे?—प्रेषि. 4:13.
मसीह के ज़रिए आशीषें पाइए!
16. उत्पत्ति 22:18 से परमेश्वर की कौन-सी आशीष के बारे में पता चलता है?
16 यहोवा ने अब्राहम से कहा: “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।” (उत्प. 22:18) तो यहोवा और यीशु की कदर करनेवाले लोग पूरे भरोसे के साथ मसीह के ज़रिए मिलनेवाली आशीषों की बाट जोह सकते हैं। और उन्हीं आशीषों को मन में रखकर आज वे पूरे जोश के साथ सेवा कर रहे हैं।
17, 18. व्यवस्थाविवरण 28:2 में हम यहोवा के किस वादे के बारे में पढ़ते हैं और उसका हमारे लिए क्या मतलब है?
17 एक बार परमेश्वर ने अब्राहम के वंश, इसराएल राष्ट्र से कहा: “अपने परमेश्वर यहोवा की सुनने के कारण [कानून के करार में लिखे] ये सब आशीर्वाद तुझ पर पूरे होंगे।” (व्यव. 28:2) वे सारी आशीषें परमेश्वर के आज के सेवकों को भी मिलेंगी। अगर आपमें वे आशीषें पाने की चाहत है तो ‘यहोवा की सुनते’ रहिए और तब वे आशीषें यकीनन आप पर ‘पूरी होंगी।’ तो ‘सुनने’ में क्या शामिल है?
18 सुनने का मतलब है कि परमेश्वर के वचन में जो कहा गया है और जो आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराया जाता है, उसे अपने दिल में उतारना। (मत्ती 24:45) इसका यह भी मतलब है कि हम परमेश्वर और उसके बेटे की आज्ञा मानें। यीशु ने कहा: “जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर कोई स्वर्ग के राज में दाखिल नहीं होगा, मगर जो मेरे स्वर्गीय पिता की मरज़ी पूरी कर रहा है, वही दाखिल होगा।” (मत्ती 7:21) तो परमेश्वर की सुनने में उसके ठहराए इंतज़ाम, जैसे मसीही मंडली और “आदमियों के रूप में [दिए] तोहफे” या नियुक्त प्राचीनों के खुशी-खुशी अधीन रहना शामिल है।—इफि. 4:8.
19. हम आशीषों के हकदार कैसे हो सकते हैं?
19 शासी निकाय के सदस्य भी “आदमियों के रूप में तोहफे” हैं, जो पूरी मसीही मंडली के प्रतिनिधि हैं। (प्रेषि. 15:2, 6) और सच्चाई तो यह है कि हम मसीह के इन अभिषिक्त भाइयों के प्रति जैसा रवैया दिखाएँगे, उसी के आधार पर आनेवाले महा-क्लेश में हमारा न्याय होगा। (मत्ती 25:34-40) तो एक तरीका जिससे हम आशीष पा सकते हैं, वह है परमेश्वर के अभिषिक्त जनों का वफादारी से साथ निभाकर।
20. (क) जो “आदमियों के रूप में तोहफे” हैं, उनकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी क्या है? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम उन भाइयों की कदर करते हैं?
20 शाखा समिति के सदस्य, सफरी निगरान और मंडली के प्राचीन, ये सभी पवित्र शक्ति से नियुक्त हैं, जो “आदमियों के रूप में तोहफे” हैं। (प्रेषि. 20:28) इन भाइयों की मुख्य ज़िम्मेदारी है, परमेश्वर के लोगों को तब तक मज़बूत करना, “जब तक कि . . . सब विश्वास में और परमेश्वर के बेटे के बारे में सही ज्ञान में एकता हासिल न कर लें और एक पूरी तरह से विकसित आदमी की तरह मसीह की पूरी कद-काठी हासिल न कर लें।” (इफि. 4:13) माना कि वे भी हमारी तरह असिद्ध हैं, मगर जब हम प्यार से की जानेवाली उनकी चरवाही के लिए कदर दिखाते और उनकी सुनते हैं, तब हम आशीष पाने के हकदार बन जाते हैं।—इब्रा. 13:7, 17.
21. आज परमेश्वर के बेटे की आज्ञा मानना क्यों बेहद ज़रूरी है?
21 मसीह जल्द ही शैतान की दुष्ट व्यवस्था के खिलाफ कदम उठाएगा। जब ऐसा होगा, तब हमारी ज़िंदगी यीशु के हाथ में होगी, क्योंकि उसे “बड़ी भीड़” को “जीवन के पानी के सोतों” तक ले जाने का अधिकार दिया गया है। (प्रका. 7:9, 16, 17) इसलिए आइए अभी से जितना हो सके उतना, पूरी कदरदानी और खुशी के साथ अपने मसीहाई राजा के अधीन हो जाएँ, जो परमेश्वर की पवित्र शक्ति के निर्देशन में चलता है।
हमने इन वचनों से क्या सीखा?
[पेज 17 पर तसवीर]
यीशु की करुणा तब साफ दिखायी दी जब उसने याईर की बेटी को फिर से जी उठाया
[पेज 18 पर तसवीरें]
यीशु मसीह इतिहास में होनेवाले सबसे बड़े प्रचार अभियान की निगरानी कर रहा है