अध्ययन लेख 45
गीत 111 हमारी खुशी के कई कारण
अपनों की देखभाल करते वक्त खुशी बनाए रखिए
“जो आँसू बहाते हुए बीज बो रहे हैं, वे खुशी से जयजयकार करते हुए कटाई करेंगे।”—भज. 126:5.
क्या सीखेंगे?
इस लेख में उन लोगों के लिए कुछ बढ़िया सुझाव दिए गए हैं जो बुज़ुर्ग या बीमार लोगों की देखभाल करते हैं। इसमें बताया है कि वे अपनी खुशी कैसे बनाए रख सकते हैं।
1-2. जो अपनों की देखभाल करते हैं, उनके बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है? (नीतिवचन 19:17) (तसवीरें भी देखें।)
कोरिया में रहनेवाले भाई जीन-येल कहते हैं, “मेरी शादी को 32 साल हो गए हैं। मेरी पत्नी को पार्किन्सन बीमारी है और पिछले पाँच साल से मैं उसकी देखभाल कर रहा हूँ। वह बिस्तर पर ही रहती है और बिलकुल भी हिल-डुल नहीं सकती। मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूँ और उसकी देखभाल करना मुझे अच्छा लगता है। मैंने उसके लिए घर पर हॉस्पिटलवाला बेड ले रखा है। मेरा बिस्तर उसके पास ही लगा हुआ है। हर रात हम एक-दूसरे का हाथ पकड़कर सोते हैं।”
2 क्या आप अपने बुज़ुर्ग माता-पिता की देखभाल कर रहे हैं? या फिर अपने बीमार जीवन-साथी, बच्चे या किसी दोस्त की? हम जानते हैं कि आप उनसे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए उनका अच्छा खयाल रखते हैं और ऐसा करने से आपको खुशी भी मिलती है। अपने अज़ीज़ों की देखभाल करके आप यह भी दिखाते हैं कि आप यहोवा से प्यार करते हैं और उसे खुश करना चाहते हैं। (1 तीमु. 5:4, 8; याकू. 1:27) पर अपनों की देखभाल करना इतना आसान नहीं है। आपको ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है जिसके बारे में दूसरों को कुछ नहीं पता। और कभी-कभी आप इतने निराश हो सकते हैं कि आप सोचने लगते हैं कि कोई आपका दर्द नहीं समझता। जब आप लोगों के साथ होते हैं, तो आपके चेहरे पर मुस्कान रहती है, लेकिन अकेले में आप शायद रोते हैं। (भज. 6:6) भले ही दूसरों को पता ना हो कि आप पर क्या बीत रही है, लेकिन यहोवा को सबकुछ पता है। (निर्गमन 3:7 से तुलना करें।) वह आपके हरेक आँसू का हिसाब रखता है और आपके त्याग की बहुत कदर करता है। (भज. 56:8; 126:5) आप अपने अज़ीज़ों के लिए जो भी कर रहे हैं, यहोवा उस पर ध्यान देता है। वह खुद को आपका कर्ज़दार समझता है और वादा करता है कि वह अपना कर्ज़ ज़रूर चुकाएगा।—नीतिवचन 19:17 पढ़िए।
क्या आप अपने किसी अज़ीज़ की देखभाल कर रहे हैं? (पैराग्राफ 2)
3. अब्राहम और सारा के लिए तिरह की देखभाल करना क्यों मुश्किल रहा होगा?
3 बाइबल में ऐसे कई लोगों के बारे में बताया गया है जिन्होंने अपनों की देखभाल की। अब्राहम और सारा के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। जब वे ऊर शहर से निकले, तो उनका पिता तिरह करीब 200 साल का था। फिर भी तिरह उनके साथ गया। उन्होंने हारान जाने के लिए करीब 960 किलोमीटर (600 मील) का सफर तय किया। (उत्प. 11:31, 32) अब्राहम और सारा तिरह से बहुत प्यार करते थे। लेकिन सोचिए कि अपने बुज़ुर्ग पिता की देखभाल करना उनके लिए कैसा रहा होगा। उन दिनों सफर करना आसान नहीं था। लोग अकसर ऊँटों और गधों पर सवारी करते थे, इसलिए तिरह के लिए यह सफर बहुत मुश्किल रहा होगा। अपने पिता की देखभाल करके अब्राहम और सारा कभी-कभी बहुत थक जाते होंगे, पस्त हो जाते होंगे। लेकिन हम यकीन रख सकते हैं कि यह सब करने के लिए यहोवा ने उन्हें ताकत दी होगी। यहोवा ने जिस तरह उन्हें सँभाला, उसी तरह वह आपको भी सँभालेगा और अपने अज़ीज़ों की देखभाल करने की ताकत देगा!—भज. 55:22.
4. इस लेख में हम क्या जानेंगे?
4 जब एक इंसान अंदर से खुश रहता है, तो उसके लिए अपने अज़ीज़ों की देखभाल करना आसान होता है। (नीति. 15:13) हालात चाहे जैसे भी हों, वह अपनी खुशी बनाए रखता है। (याकू. 1:2, 3) पर सवाल है, ऐसी खुशी पाने के लिए आपको क्या करना होगा? एक तरीका है, यहोवा से प्रार्थना कीजिए। उससे कहिए कि वह आपको अपनी खुशी बनाए रखने में मदद दे। इस लेख में हम जानेंगे कि जो दूसरों की देखभाल करते हैं, वे अपनी खुशी बनाए रखने के लिए और क्या कर सकते हैं। हम यह भी जानेंगे कि दूसरे भाई-बहन कैसे उनकी मदद कर सकते हैं। लेकिन आइए पहले देखें कि जो दूसरों की देखभाल करते हैं, उनके लिए अपनी खुशी बनाए रखना क्यों बहुत ज़रूरी है और क्या बातें उनकी खुशी छीन सकती हैं।
देखभाल करनेवालों की खुशी क्यों छिन सकती है?
5. देखभाल करनेवालों के लिए अपनी खुशी बनाए रखना क्यों बहुत ज़रूरी है?
5 जो दूसरों की देखभाल करते हैं, अगर वे अपनी खुशी खो दें, तो बड़ी आसानी से हिम्मत हार सकते हैं और थक सकते हैं। (नीति. 24:10) और अगर वे थक गए, तो वे अपने अज़ीज़ों के साथ उतने प्यार से पेश नहीं आएँगे और उनकी उस तरह मदद नहीं कर पाएँगे जैसे वे करना चाहते हैं। ऐसी कौन-सी बातें हैं जिस वजह से देखभाल करनेवाला व्यक्ति अपनी खुशी खो सकता है? आइए देखें।
6. अपनों की देखभाल करनेवाले कुछ लोग शायद क्यों पस्त हो जाएँ?
6 हो सकता है आप पूरी तरह पस्त हो जाएँ। लीआ नाम की एक बहन कहती हैं, “जिस दिन सबकुछ ठीक रहता है, तब भी मैं अंदर से थक जाती हूँ। दिन के खत्म होते-होते ऐसा लगता है कि मेरे शरीर में जान ही नहीं है। कभी-कभी तो मुझमें मैसेज का जवाब देने की भी ताकत नहीं होती।” कुछ भाई-बहन ऐसे हैं जिन्हें आराम करने की भी फुरसत नहीं मिलती और कुछ भाई-बहन रात को अच्छे-से नींद नहीं ले पाते। बहन ईनेस कहती हैं, “मैं रात को ठीक से सो नहीं पाती। मुझे हर दो घंटे में अपनी सास को देखने के लिए उठना पड़ता है। मैं और मेरे पति सालों से छुट्टी पर नहीं गए हैं।” कुछ भाई-बहनों को पूरे समय अपने अज़ीज़ों की देखभाल करनी पड़ती है, इसलिए वे किसी के बुलाने पर उनके यहाँ नहीं जा पाते या फिर उन्हें मंडली में ज़िम्मेदारियाँ लेने से इनकार करना पड़ता है। इन हालात की वजह से शायद वे दुखी हो जाएँ या बेबस महसूस करें।
7. अपनों की देखभाल करनेवाले कुछ लोग क्यों दुखी हो जाते हैं या दोषी महसूस करते हैं?
7 हो सकता है आप दुखी हो जाएँ या दोषी महसूस करें। बहन जेसिका कहती हैं, “मुझे अकसर ऐसा लगता है कि मुझे पापा की और भी मदद करनी चाहिए। अगर मैं अपने लिए थोड़ा वक्त निकाल लूँ या थोड़ा-सा आराम कर लूँ, तो मुझे बहुत बुरा लगता है।” कुछ लोगों को इस बात का दुख होता है कि वे अपने अज़ीज़ों की उतनी मदद नहीं कर पा रहे हैं, जितनी उन्हें करनी चाहिए। कुछ लोगों को लगता है कि वे और ज़्यादा देखभाल नहीं कर पाएँगे और इस वजह से वे दोषी महसूस करते हैं। कुछ लोग परेशान होकर अपने अज़ीज़ों पर भड़क उठते हैं और उन्हें कुछ उलटा-सीधा कह देते हैं और बाद में उन्हें इस बात पर अफसोस होता है। (याकू. 3:2) वहीं कुछ लोग यह देखकर दुखी हो जाते हैं कि एक वक्त पर उनके अज़ीज़ कितने ज़िंदादिल और सेहतमंद थे और अब उनका कितना बुरा हाल हो गया है। बहन बारबरा कहती हैं, “मुझसे यह देखा नहीं जाता कि मेरी दोस्त कैसे दिन-ब-दिन कमज़ोर होती जा रही है।”
8. तारीफ के दो शब्द सुनकर देखभाल करनेवालों को कैसा लगता है? एक अनुभव बताइए।
8 हो सकता है आपको लगे कि आपके काम की कदर नहीं की जाती। आपको ऐसा क्यों लग सकता है? आप जो मेहनत करते हैं और जो त्याग करते हैं, उसके लिए शायद कोई आपका धन्यवाद ना करे या आपकी तारीफ ना करे। तारीफ के दो शब्दों से बहुत हिम्मत मिल सकती है। (1 थिस्स. 5:18) बहन मेलिसा कहती हैं, “कभी-कभी मैं बहुत परेशान हो जाती हूँ और रोती हूँ। लेकिन जिनकी मैं देखभाल करती हूँ, जब वे मुझसे कहते हैं ‘तुम हमारे लिए जो करती हो, उसके लिए थैंक्यू,’ तो मेरे अंदर जोश भर आता है। अगले दिन मैं खुशी-खुशी उठती हूँ और उनकी और भी अच्छी तरह देखभाल करती हूँ।” भाई आमादू भी बताते हैं कि जब कोई उनकी तारीफ करता है, तो उन्हें कैसा लगता है। वे और उनकी पत्नी अपनी भाँजी की देखभाल करते हैं। वह उन्हीं के साथ रहती है और उसे मिरगी के दौरे पड़ते हैं। भाई बताते हैं, “हम उसके लिए जो त्याग करते हैं, उसे वह पूरी तरह नहीं समझती। लेकिन जब भी वह हमें थैंक्यू कहती है या अपने हाथों से ‘आई लव यू’ लिखकर देती है, तो मैं बता नहीं सकता हमारा दिल कितना खुश हो जाता है।”
अपनी खुशी बनाए रखने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
9. देखभाल करनेवाले कैसे दिखा सकते हैं कि वे अपनी हदें पहचानते हैं?
9 अपनी हदें पहचानिए। (नीति. 11:2) हम बहुत कुछ करना चाहते हैं, लेकिन वह सब करने के लिए हमारे पास समय और ताकत नहीं होती। इसलिए हमें तय करना चाहिए कि हम क्या करेंगे और क्या नहीं। कभी-कभी तो हमें कुछ काम करने से सीधे-सीधे मना करना पड़ सकता है। ‘ना’ कहने में कोई बुराई नहीं है। इससे पता चलता है कि आप अपनी हदें पहचानते हैं। और अगर कोई आपकी मदद करना चाहता है, तो खुशी-खुशी उसकी मदद लीजिए। भाई जय कहते हैं, “हमारे पास जितना वक्त है, हम उतना ही कर सकते हैं। जब हम इस बात को समझते हैं, तो हम हद-से-ज़्यादा करने की कोशिश नहीं करते और इस तरह हम अपनी खुशी बनाए रखते हैं।”
10. देखभाल करनेवालों के लिए समझ से काम लेना क्यों ज़रूरी है? (नीतिवचन 19:11)
10 समझ से काम लीजिए। (नीतिवचन 19:11 पढ़िए।) जब आप समझ से काम लेते हैं, तो आप किसी की बात का बुरा नहीं मानते और शांत रहते हैं। आप यह समझने की कोशिश करते हैं कि सामनेवाला ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है। जब एक व्यक्ति लंबे समय से बीमार होता है, तो वह शायद कुछ ऐसा कर दे जो वह आम तौर पर नहीं करता। (सभो. 7:7) जैसे, हो सकता है एक व्यक्ति आम तौर पर बहुत प्यार से बात करता हो, लेकिन बीमारी की वजह से वह बहस करने लगे या झगड़ने लगे। यह भी हो सकता है कि वह बहुत शिकायत करने लगे या बात-बात पर गुस्सा हो जाए। ऐसे में अच्छा होगा कि आप उसकी बीमारी के बारे में और पता लगाएँ। जितना ज़्यादा आप इस बारे में जानेंगे, उतना ज़्यादा आप उसके हालात समझ पाएँगे। आप समझ पाएँगे कि वह बुरा इंसान नहीं है, बल्कि अपनी बीमारी की वजह से इस तरह व्यवहार कर रहा है।—नीति. 14:29.
11. देखभाल करनेवालों को किन ज़रूरी बातों के लिए हर दिन वक्त निकालना चाहिए? (भजन 132:4, 5)
11 यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने के लिए वक्त निकालिए। हो सकता है, आपको कुछ कामों को एक तरफ रखना पड़े, ताकि आप “ज़्यादा अहमियत” रखनेवाली बातों के लिए समय निकाल सकें। (फिलि. 1:10) यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करना ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों में से एक है। राजा दाविद के बारे में सोचिए। उसके पास करने के लिए कितने सारे काम थे, लेकिन वह यहोवा की उपासना को सबसे ज़्यादा अहमियत देता था। (भजन 132:4, 5 पढ़िए।) उसी तरह आपको भी हर दिन बाइबल पढ़ने और प्रार्थना करने जैसी ज़रूरी बातों को अहमियत देनी चाहिए। बहन एलीशा कहती हैं, “मैं यहोवा से प्रार्थना करती हूँ, भजन की कुछ आयतें पढ़ती हूँ और दिलासा देनेवाले उन शब्दों के बारे में गहराई से सोचती हूँ। इस वजह से मैं खुश रह पाती हूँ। मैं बता नहीं सकती कि प्रार्थना करने से मुझे कितनी मदद मिलती है। मैं दिन में कई बार यहोवा से प्रार्थना करती हूँ कि वह शांत रहने में मेरी मदद करे।”
12. देखभाल करनेवालों को अपनी सेहत के लिए वक्त क्यों निकालना चाहिए?
12 अपनी सेहत का खयाल रखने के लिए वक्त निकालिए। हो सकता है दूसरों की देखभाल करने में आपका इतना समय चला जाता है कि आपको फल-सब्ज़ी वगैरह खरीदने और पौष्टिक खाना बनाने के लिए समय ही नहीं मिलता। लेकिन पौष्टिक खाना लेना और कसरत करना तन-मन के लिए बहुत ज़रूरी है। इसलिए कोशिश कीजिए कि आप अच्छा खाना खाएँ और कसरत करें। (इफि. 5:15, 16) इसके अलावा, अच्छी नींद लीजिए। (सभो. 4:6) जानकारों का कहना है कि जब हम सोते हैं, तो हमारे दिमाग की मरम्मत होती है और इससे दिमाग अच्छी तरह काम कर पाता है। कुछ साल पहले सेहत पर अध्ययन करनेवाली एक संस्था ने एक लेख निकाला था जिसका विषय था, “नींद का तनाव से क्या नाता है?” इसमें बताया गया था कि भरपूर नींद लेने से हमें ज़्यादा तनाव नहीं होता और हम मुश्किलों में भी शांत रह पाते हैं। नींद लेने के अलावा, मनोरंजन के लिए भी वक्त निकालिए। (सभो. 8:15) एक बहन जो दूसरों की देखभाल करती हैं, बताती हैं कि वे कैसे अपनी खुशी बनाए रख पाती हैं: “जब मौसम अच्छा होता है और धूप खिली होती है, तो मैं सैर पर जाने की कोशिश करती हूँ। और महीने में कम-से-कम एक बार मैं अपनी सहेली के साथ कुछ ऐसा करने की कोशिश करती हूँ जो हम दोनों को पसंद है।”
13. हँसी-मज़ाक करना क्यों अच्छा होता है? (नीतिवचन 17:22)
13 थोड़ा हँसी-मज़ाक कीजिए। (नीतिवचन 17:22 पढ़िए; सभो. 3:1, 4) हँसने-मुस्कुराने से सेहत अच्छी रहती है और तनाव कम हो जाता है। जब आप किसी की देखभाल करते हैं, तो हर चीज़ वैसी नहीं होती जैसा आप सोचते हैं। ऐसे में अपने हालात के बारे में थोड़ा हँसी-मज़ाक करने से माहौल हलका हो सकता है और मुश्किलों का सामना करना आसान हो सकता है। आप जिसकी देखभाल करते हैं, अगर आप उसके साथ भी थोड़ा हँसी-मज़ाक करें, तो आपकी दोस्ती और पक्की हो सकती है।
14. अपने जिगरी दोस्त से बात करने से आपको कैसे मदद मिल सकती है?
14 अपने जिगरी दोस्त से बात कीजिए। आप चाहे खुश रहने की कितनी भी कोशिश करें, कभी-न-कभी आपको चिंता ज़रूर होगी। ऐसे में आप अपने किसी अच्छे दोस्त को अपनी परेशानी बता सकते हैं, एक ऐसे दोस्त को जो आपको गलत ना समझे और राई का पहाड़ ना बनाए। (नीति. 17:17) जब वह आपकी बात ध्यान से सुनेगा और आपको तसल्ली देगा, तो आपकी खुशी लौट आएगी।—नीति. 12:25.
15. अपनी आशा पर ध्यान लगाए रखने से आपको कैसे खुशी मिल सकती है?
15 सोचिए कि आप साथ मिलकर नयी दुनिया में क्या-क्या करेंगे। यहोवा ने कभी नहीं चाहा था कि कोई भी इंसान बीमार या बुज़ुर्ग हो। इसलिए याद रखिए, आपको अपने अज़ीज़ों की देखभाल हमेशा नहीं करनी पड़ेगी। (2 कुरिं. 4:16-18) हम जो ज़िंदगी जी रहे हैं, वह “असली ज़िंदगी” नहीं है, असली ज़िंदगी तो आगे आनेवाली है। (1 तीमु. 6:19) इसलिए आप जिसकी देखभाल करते हैं, उससे बात कीजिए कि आप दोनों नयी दुनिया में साथ मिलकर क्या-क्या करेंगे। ऐसा करने से आपको बहुत खुशी मिलेगी। (यशा. 33:24; 65:21) हेदर नाम की बहन कहती हैं, “मैं जिनकी देखभाल करती हूँ, उनसे अकसर कहती हूँ कि बहुत जल्द हम साथ मिलकर कपड़े सिलेंगे, दौड़ लगाएँगे और साइकिल चलाएँगे। और जब हमारे अज़ीज़ों को ज़िंदा किया जाएगा, तो हम उनके लिए ब्रेड बनाएँगे और तरह-तरह का खाना बनाएँगे। हम साथ मिलकर यहोवा का धन्यवाद भी करते हैं कि उसने हमें भविष्य के लिए क्या ही बढ़िया आशा दी है।”
मंडली के भाई-बहन कैसे मदद कर सकते हैं?
16. हम उन भाई-बहनों की कैसे मदद कर सकते हैं जो दूसरों की देखभाल करते हैं? (तसवीर भी देखें।)
16 मदद का हाथ बढ़ाइए ताकि देखभाल करनेवालों को थोड़ा आराम मिल सके। मंडली के भाई-बहन बुज़ुर्ग या बीमार लोगों का खयाल रखने में मदद कर सकते हैं। इस तरह उनकी देखभाल करनेवालों को थोड़ी राहत मिलेगी और वे अपने दूसरे काम-काज कर पाएँगे। (गला. 6:2) कुछ प्रचारकों ने इसके लिए एक शेड्यूल बनाया है ताकि अलग-अलग भाई-बहन इस काम में हाथ बँटा सकें। बहन नेटालिया जिनके पति को लकवा मार गया है, कहती हैं, “हमारी मंडली का एक भाई हफ्ते में एक-दो बार आकर मेरे पति के साथ वक्त बिताता है। वे साथ मिलकर प्रचार करते हैं, बातें करते हैं और कभी-कभी फिल्में भी देखते हैं। मेरे पति हर हफ्ते उस भाई का इंतज़ार करते हैं। उस भाई के आने से मुझे भी थोड़ा वक्त मिल जाता है और मैं अपने लिए कुछ कर पाती हूँ, जैसे मैं सैर पर निकल जाती हूँ।” कुछ मामलों में आप देखभाल करनेवाले को बता सकते हैं कि अगर वह चाहे, तो आप किसी दिन उसके अज़ीज़ की रात में देखभाल कर सकते हैं। ऐसे करने से देखभाल करनेवाले को अच्छी नींद मिल पाएगी।
आप उन भाई-बहनों की किस तरह मदद कर सकते हैं जो अपने किसी अज़ीज़ की देखभाल करते हैं? (पैराग्राफ 16)a
17. हम क्या कर सकते हैं ताकि देखभाल करनेवाले सभाओं से फायदा पा सकें?
17 मदद का हाथ बढ़ाइए ताकि देखभाल करनेवाले सभाओं से फायदा पा सकें। अपने अज़ीज़ों का ध्यान रखने की वजह से ये भाई-बहन अकसर सभाओं, सर्किट सम्मेलनों और अधिवेशनों का कार्यक्रम पूरी तरह नहीं सुन पाते। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? आप पूरी सभा के दौरान या फिर कुछ समय के लिए उनके अज़ीज़ों के साथ बैठ सकते हैं। लेकिन अगर कोई बीमार या बुज़ुर्ग व्यक्ति घर की चार दीवारी में कैद है, तब क्या? ऐसे में आप उसके घर जा सकते हैं और उसके साथ ऑनलाइन सभा में जुड़ सकते हैं। इस तरह उसकी देखभाल करनेवाला सभा के लिए जा पाएगा।
18. हम देखभाल करनेवालों के लिए और क्या कर सकते है?
18 देखभाल करनेवालों की तारीफ कीजिए और उनके लिए प्रार्थना कीजिए। प्राचीन इस बात का ध्यान रख सकते हैं कि वे लगातार उन लोगों के साथ रखवाली भेंट करें जो बीमार या बुज़ुर्ग लोगों की देखभाल करते हैं। (नीति. 27:23) मंडली के हम भाई-बहन भी देखभाल करनेवालों का हौसला बढ़ा सकते हैं। हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, हम समय-समय पर दिल खोलकर उनकी तारीफ कर सकते हैं। हम उनके लिए प्रार्थना भी कर सकते हैं कि यहोवा उन्हें ताकत देता रहे और वे अपनी खुशी बनाए रख पाएँ।—2 कुरिं. 1:11.
19. हम क्या आशा कर सकते हैं?
19 बहुत जल्द यहोवा सारी तकलीफें दूर कर देगा और फिर हम कभी दुख के मारे रोएँगे नहीं। बीमारी और मौत को मिटा दिया जाएगा। (प्रका. 21:3, 4) “लँगड़े, हिरन की तरह छलाँग भरेंगे।” (यशा. 35:5, 6) उस वक्त कोई भी बूढ़ा नहीं होगा और हमें अपने अज़ीज़ों को तकलीफ में नहीं देखना पड़ेगा। ये सारी बातें “पुरानी बातें” बनकर रह जाएँगी और फिर कभी ‘याद नहीं आएँगी।’ (यशा. 65:17) लेकिन जब तक हमारी आशा पूरी नहीं होती, यहोवा हमारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा। अगर हम उस पर निर्भर रहें, तो हम ‘खुशी से और सब्र रखते हुए धीरज धर’ पाएँगे।—कुलु. 1:11.
गीत 155 हमेशा की खुशी
a तसवीर के बारे में: दो नौजवान बहनें एक बुज़ुर्ग बहन से मिलने आयी हैं, ताकि उनकी देखभाल करनेवाली बहन को अपने लिए थोड़ा वक्त मिल सके और वह सैर पर जा सके।