वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • kr अध्या. 15 पेज 157-167
  • उपासना करने की आज़ादी के लिए लड़ाई

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • उपासना करने की आज़ादी के लिए लड़ाई
  • परमेश्‍वर का राज हुकूमत कर रहा है!
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • कानूनी मान्यता और दूसरे बुनियादी अधिकार पाने के लिए संघर्ष
  • बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक इलाज करवाने की आज़ादी
  • यहोवा के स्तरों के मुताबिक बच्चों की परवरिश करने का अधिकार
  • यहोवा सच्ची उपासना करनेवालों का साथ कभी नहीं छोड़ेगा
  • कानूनी तौर पर सुसमाचार की रक्षा करना
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
  • राज के प्रचारक अदालत का दरवाज़ा खटखटाते हैं
    परमेश्‍वर का राज हुकूमत कर रहा है!
  • मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत में मिली जीत
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2007
  • यहोवा के साक्षियों का यूनान में समर्थन किया गया
    सजग होइए!–1997
और देखिए
परमेश्‍वर का राज हुकूमत कर रहा है!
kr अध्या. 15 पेज 157-167

अध्याय 15

उपासना करने की आज़ादी के लिए लड़ाई

अध्याय किस बारे में है

कानूनी मान्यता पाने और परमेश्‍वर के नियमों को मानने के अधिकार की रक्षा करने के लिए मसीह ने कैसे अपने चेलों की मदद की

1, 2. (क) इस बात का क्या सबूत है कि आप परमेश्‍वर के राज के नागरिक हैं? (ख) साक्षियों को अपना धर्म मानने की आज़ादी के लिए क्यों मुकदमे लड़ने पड़े?

क्या आप परमेश्‍वर के राज के नागरिक हैं? आप बेशक हैं क्योंकि आप यहोवा के एक साक्षी हैं! आपकी नागरिकता का सबूत क्या है? कोई पासपोर्ट या कोई और सरकारी दस्तावेज़ नहीं है बल्कि आप जिस तरह यहोवा की उपासना करते हैं वही आपका सबूत है। सच्ची उपासना का मतलब सिर्फ बाइबल की शिक्षाओं पर विश्‍वास करना नहीं है बल्कि परमेश्‍वर के राज के नियम मानना भी है। सच्ची उपासना ज़िंदगी के हर पहलू से जुड़ी है। जैसे, हम अपने बच्चों की परवरिश कैसे करते हैं और इलाज के मामले में क्या फैसले लेते हैं।

2 लेकिन यह दुनिया अकसर नहीं समझ पाती कि परमेश्‍वर के राज की नागरिकता हमारे लिए बहुत मायने रखती है और हम क्यों उसके नियमों पर चलना चाहते हैं। कुछ सरकारों ने तो हमारी उपासना पर रोक लगाने या फिर उसे मिटाने की कोशिश की है। कभी-कभी मसीह की प्रजा को उसके नियमों को मानने के अधिकार के लिए मुकदमे लड़ने पड़े हैं। क्या यह कोई हैरानी की बात है? जी नहीं। बाइबल के ज़माने में भी कई बार यहोवा के लोगों को उसकी उपासना करने की आज़ादी के लिए लड़ना पड़ा था।

3. रानी एस्तेर के दिनों में परमेश्‍वर के लोगों को क्यों लड़ना पड़ा?

3 मिसाल के लिए, रानी एस्तेर के दिनों में परमेश्‍वर के लोगों को अपनी जान बचाने के लिए लड़ना पड़ा। क्यों? दुष्ट हामान ने, जो प्रधानमंत्री था, फारस के राजा अहश-वेरोश को सलाह दी कि उसके साम्राज्य के सभी यहूदियों को मार डाला जाए क्योंकि उनके “कायदे-कानून बाकी लोगों से बिलकुल अलग हैं।” (एस्ते. 3:8, 9, 13) क्या यहोवा ने अपने लोगों की मदद की? बिलकुल। जब एस्तेर और मोर्दकै ने परमेश्‍वर के लोगों को बचाने के लिए राजा से फरियाद की तो यहोवा ने उन्हें कामयाबी दिलायी।​—एस्ते. 9:20-22.

4. इस अध्याय में हम क्या देखेंगे?

4 हमारे ज़माने के बारे में क्या कहा जा सकता है? जैसे हमने पिछले अध्याय में देखा, कुछ सरकारों ने यहोवा के साक्षियों का विरोध किया है। इस अध्याय में हम देखेंगे कि उपासना के मामले में सरकारों ने कैसे हमारा विरोध किया है। हम तीन पहलुओं पर गौर करेंगे: (1) कानूनी तौर पर मान्य संगठन की स्थापना करने और अपने तरीके से उपासना करने का अधिकार, (2) बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक अपना इलाज करवाने की आज़ादी और (3) यहोवा के स्तरों के मुताबिक अपने बच्चों की परवरिश करने का अधिकार। हर पहलू में हम देखेंगे कि मसीहा के राज के वफादार नागरिकों ने अपने अधिकार की रक्षा करने के लिए कैसे हिम्मत से लड़ाई की और यहोवा ने कैसे उन्हें आशीष दी।

कानूनी मान्यता और दूसरे बुनियादी अधिकार पाने के लिए संघर्ष

5. कानूनी मान्यता पाने से सच्चे मसीहियों को क्या फायदा होता है?

5 क्या हमें यहोवा की उपासना करने के लिए इंसानी सरकारों से कानूनी मान्यता पाने की ज़रूरत है? नहीं। फिर भी मान्यता पाने से उपासना करना हमारे लिए आसान हो जाता है। बिना रोक-टोक के राज-घरों और सम्मेलन भवनों में इकट्ठा होना, बाइबल के प्रकाशन छापना और दूसरे देशों से मँगवाना और सरेआम खुशखबरी सुनाना हमारे लिए मुमकिन होता है। कई देशों में यहोवा के साक्षियों की कानूनी तौर पर रजिस्ट्री की गयी है और उन्हें अपना धर्म मानने की उतनी ही आज़ादी है जितनी कि मान्यता-प्राप्त दूसरे धर्मों के लोगों को है। लेकिन जब कुछ सरकारों ने हमें कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया या दूसरे बुनियादी अधिकारों पर रोक लगाने की कोशिश की तो हमने क्या किया?

6. सन्‌ 1941 से ऑस्ट्रेलिया के साक्षियों को किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ा?

6 ऑस्ट्रेलिया: 1941 में ऑस्ट्रेलिया के गवर्नर-जनरल ने कहा कि हमारी शिक्षाएँ लोगों को बहकाती हैं कि वे युद्ध में देश का साथ न दें। इसलिए साक्षियों पर पूरी तरह रोक लगा दी गयी। वे न तो सभाएँ रख पा रहे थे, न ही खुलकर प्रचार कर पा रहे थे। बेथेल बंद कर दिया गया और राज-घर ज़ब्त कर लिए गए। हमारे बाइबल प्रकाशन पास रखना भी मना था। ऑस्ट्रेलिया में साक्षियों को कुछ साल अपना काम छिपकर करना पड़ा। फिर 14 जून, 1943 को जब ऑस्ट्रेलिया के हाई कोर्ट ने रोक हटा दी तो साक्षियों ने राहत की साँस ली।

7, 8. बताइए कि रूस में हमारे भाइयों को उपासना की आज़ादी के लिए कई सालों तक कैसे लड़ना पड़ा।

7 रूस: रूस में जब कम्यूनिस्ट राज था तो यहोवा के साक्षियों पर कई सालों तक पूरी तरह रोक थी। आखिरकार 1991 में उनके धर्म की रजिस्ट्री करायी गयी। भूतपूर्व सोवियत संघ के बिखरने के बाद, 1992 में रूसी संघ ने हमें कानूनी मान्यता दे दी। उसके बाद जब साक्षियों की गिनती तेज़ी से बढ़ने लगी तो कुछ विरोधी परेशान हो गए, खासकर रूसी ऑर्थोडॉक्स चर्च के लोग। उन्होंने 1995 से 1998 के बीच यहोवा के साक्षियों के खिलाफ पाँच बार शिकायत की कि वे गैर-कानूनी काम करते हैं। मगर हर बार सरकारी वकील उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं पेश कर पाया। फिर भी विरोधियों ने हार नहीं मानी। उन्होंने 1998 में शिकायत दर्ज़ की कि साक्षियों ने कई कानून तोड़े हैं। मुकदमे में साक्षी जीत गए, मगर विरोधियों ने अदालत का फैसला ठुकरा दिया। फिर जब साक्षियों ने अदालत में अपील की तो मई 2001 में वे हार गए। उसी साल अक्टूबर में फिर से मुकदमा शुरू हुआ और 2004 में फैसला सुनाया गया कि मॉस्को में साक्षियों का कानूनी निगम बंद कर दिया जाए और उसके कामों पर रोक लगा दी जाए।

8 इसके बाद साक्षियों पर ज़ुल्मों का दौर शुरू हो गया। (2 तीमुथियुस 3:12 पढ़िए।) उन्हें सताया गया और मारा-पीटा गया। उनकी किताबें-पत्रिकाएँ ज़ब्त कर ली गयीं। उपासना के लिए वे न तो कोई मकान किराए पर ले सकते थे और न खुद इमारत बना सकते थे। ज़रा सोचिए, हमारे भाई-बहनों ने ये सारी तकलीफें कैसे सही होंगी! उन्होंने 2001 में ‘मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत’ से अपील की और 2004 में अपने हालात के बारे में अदालत को और जानकारी दी। सन्‌ 2010 में यूरोपीय अदालत ने फैसला सुनाया। अदालत साफ देख सकती थी कि साक्षियों से नफरत करने की वजह से ही रूस ने उन पर रोक लगायी थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि निचली अदालतों का फैसला गलत था क्योंकि इस बात का कोई सबूत नहीं था कि किसी भी साक्षी ने अपराध किया था। अदालत ने यह भी कहा कि साक्षियों से कानूनी अधिकार छीनने के लिए ही उन पर रोक लगायी गयी थी। इस फैसले से साक्षियों को अपना धर्म मानने की आज़ादी मिल गयी। हालाँकि कई रूसी अधिकारियों ने इस फैसले को लागू नहीं किया, फिर भी रूस के साक्षियों को इस तरह की जीत से काफी हिम्मत मिली है।

तीतोस मानूसाकीस

तीतोस मानूसाकीस (पैराग्राफ 9 देखें)

9-11. (क) ग्रीस में यहोवा के लोगों ने साथ मिलकर उपासना करने की आज़ादी के लिए कैसे संघर्ष किया? (ख) नतीजा क्या हुआ?

9 ग्रीस: 1983 में तीतोस मानूसाकीस ने क्रेते के शहर हेराक्लियोन में एक कमरा किराए पर लिया ताकि यहोवा के साक्षियों का छोटा-सा समूह वहाँ उपासना के लिए इकट्ठा हो सके। (इब्रा. 10:24, 25) कुछ ही समय बाद ऑर्थोडॉक्स चर्च के एक पादरी ने साक्षियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज़ कर दी कि वे उस कमरे में उपासना करते हैं। उसने क्यों शिकायत की? सिर्फ इसलिए कि साक्षियों की शिक्षाएँ ऑर्थोडॉक्स चर्च की शिक्षाओं से अलग होती हैं! अधिकारियों ने तीतोस मानूसाकीस और वहाँ के तीन और साक्षियों पर मुकदमा कर दिया। उन पर जुरमाना लगाया गया और उन्हें दो महीने की जेल की सज़ा सुनायी गयी। साक्षियों ने परमेश्‍वर के राज के वफादार नागरिक होने के नाते माना कि अदालत के इस फैसले से उपासना करने की उनकी आज़ादी छिन गयी है। इसलिए वे कई क्षेत्रीय अदालतों में अपना मुकदमा ले गए और बाद में यूरोपीय अदालत गए।

10 आखिरकार 1996 में यूरोपीय अदालत ने ऐसा फैसला सुनाया कि सच्ची उपासना के दुश्‍मन दंग रह गए। अदालत ने कहा, “ग्रीस के कानून के मुताबिक यहोवा के साक्षियों का धर्म एक ‘मान्यता-प्राप्त धर्म है’” और निचली अदालतों के फैसले की वजह से “सीधे तौर पर साक्षियों से अपना धर्म मानने की आज़ादी छीन ली गयी है।” अदालत ने यह भी कहा कि ग्रीस की सरकार का यह काम नहीं कि वह “जाँचे कि फलाँ धर्म की शिक्षाएँ या उसे मानने का तरीका कानूनी है या नहीं।” साक्षियों की सज़ा रद्द कर दी गयी और उन्हें उपासना करने की आज़ादी दी गयी।

11 क्या इस जीत के बाद ग्रीस में साक्षियों के हालात ठीक हो गए? अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ। ग्रीस के कसांड्री शहर में साक्षियों का विरोध किया गया। इस बार ऑर्थोडॉक्स चर्च के एक बिशप ने यह विरोध भड़काया था। साक्षियों को तकरीबन 12 साल तक मुकदमा लड़ना पड़ा और आखिरकार 2012 में वे जीत गए। ग्रीस की सबसे बड़ी प्रशासनिक अदालत, ‘राज के परिषद्‌’ ने परमेश्‍वर के लोगों के पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले में बताया गया कि ग्रीस का संविधान ही सबको अपना धर्म मानने की आज़ादी देता है। साथ ही, यहोवा के साक्षियों पर अकसर लगाए इस इलज़ाम को गलत ठहराया गया कि उनका धर्म मान्यता-प्राप्त नहीं है। अदालत ने कहा, “यहोवा के साक्षियों की धार्मिक शिक्षाएँ किसी से छिपी नहीं हैं, इसलिए उनका धर्म मान्यता-प्राप्त है।” कसांड्री की छोटी-सी मंडली के भाई-बहन बहुत खुश हैं कि वे अब अपने राज-घर में उपासना के लिए इकट्ठा हो सकते हैं।

12, 13. (क) फ्रांस में विरोधियों ने कैसे “कानून की आड़ में मुसीबत खड़ी” की? (ख) नतीजा क्या हुआ?

12 फ्रांस: परमेश्‍वर के लोगों के कुछ विरोधी “कानून की आड़ में मुसीबत खड़ी” करते हैं। (भजन 94:20 पढ़िए।) मिसाल के लिए, 1995 के आस-पास फ्रांस के कर अधिकारियों ने यहोवा के साक्षियों के एक कानूनी निगम, असोस्यास्यों ले तेमवाँ ड जेओवा  के हिसाब-किताब की जाँच शुरू की। बजट मंत्री ने खुलासा किया कि इस जाँच का असली मकसद क्या था: ‘इस जाँच की वजह से अदालती रोक लग सकती है या आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है, जिसकी वजह से हमारे देश में यह संघ ठीक से काम नहीं कर पाएगा या अपना काम बंद करने पर मजबूर हो जाएगा।’ कर अधिकारियों को हिसाब-किताब की जाँच से कुछ नहीं मिला, फिर भी उन्होंने साक्षियों के कानूनी निगम से भारी कर चुकाने की माँग की। अगर दुश्‍मनों की यह चाल कामयाब हो जाती तो भाइयों के पास शाखा दफ्तर को बंद करने और सारी इमारतों को बेचने के सिवा कोई चारा नहीं बचता, तभी वे इतना भारी कर चुका पाते। साक्षियों के लिए हालात बहुत मुश्‍किल थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठायी और 2005 में यूरोपीय अदालत में मुकदमा दायर किया।

13 अदालत ने 30 जून, 2011 को अपना फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि सबको अपना धर्म मानने की आज़ादी है, इसलिए सरकार को कुछ नाज़ुक मामलों को छोड़ किसी भी धर्म की जाँच नहीं करनी चाहिए कि उसकी शिक्षाएँ और उसे मानने का तरीका कानून के मुताबिक सही है या नहीं। अदालत ने यह भी कहा, “कर लगाकर इस संघ के सारे मुख्य साधन छीन लिए गए। इसलिए संघ के लोग बेरोक-टोक उपासना से जुड़े काम नहीं कर पा रहे हैं।” अदालत के सभी जजों ने एकमत होकर यहोवा के साक्षियों के पक्ष में फैसला सुनाया! इसके बाद फ्रांस की सरकार ने साक्षियों के कानूनी निगम से वसूला गया कर ब्याज समेत लौटा दिया और अदालत के हुक्म के मुताबिक शाखा दफ्तर की संपत्ति लौटा दी। तब वहाँ के भाई-बहन खुशी से फूले नहीं समाए!

आप उन भाई-बहनों के लिए लगातार प्रार्थना कर सकते हैं जो आज कानून के हाथों अन्याय सह रहे हैं

14. कानूनी लड़ाइयों में आप कैसे मदद कर सकते हैं?

14 पुराने ज़माने के एस्तेर और मोर्दकै की तरह, आज यहोवा के लोग कानूनी लड़ाइयाँ इसलिए लड़ते हैं कि उन्हें यहोवा की उपासना उसके बताए तरीके से करने की आज़ादी मिले। (एस्ते. 4:13-16) क्या आप भी इसमें मदद कर सकते हैं? बेशक। आप उन भाई-बहनों के लिए लगातार प्रार्थना कर सकते हैं जो आज कानून के हाथों अन्याय सह रहे हैं। आपकी प्रार्थनाओं से उन्हें ज़ुल्म सहने में मदद मिल सकती है। (याकूब 5:16 पढ़िए।) क्या यहोवा ऐसी प्रार्थनाओं का जवाब देता है? हमें अदालतों में कई बार जो जीत मिली है उससे साबित होता है कि वह ज़रूर जवाब देता है!​—इब्रा. 13:18, 19.

बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक इलाज करवाने की आज़ादी

15. खून के इस्तेमाल के बारे में परमेश्‍वर के लोग किन बातों का ध्यान रखते हैं?

15 जैसे हमने अध्याय 11 में देखा, परमेश्‍वर के राज के नागरिकों को बाइबल से साफ हिदायत मिली है कि वे खून का गलत इस्तेमाल न करें, जो कि आज बहुत आम है। (उत्प. 9:5, 6; लैव्य. 17:11; प्रेषितों 15:28, 29 पढ़िए।) हालाँकि हम खून नहीं चढ़वाते, मगर हम चाहते हैं कि हमारा और हमारे अज़ीज़ों का इलाज सबसे बढ़िया तरीके से हो। हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हम ऐसा कोई इलाज न करवाएँ जो परमेश्‍वर के नियमों के खिलाफ हो। कई देशों की बड़ी-बड़ी अदालतों ने माना है कि लोगों को अपने ज़मीर या अपनी धार्मिक शिक्षाओं की वजह से किसी तरीके से इलाज करवाने या न करवाने का अधिकार है। लेकिन कुछ देशों में परमेश्‍वर के लोगों ने इस मामले में बड़ी-बड़ी समस्याओं का सामना किया है। कुछ मिसालों पर गौर करें।

16, 17. (क) जापान की एक बहन को क्या जानकर सदमा लगा? (ख) उसकी प्रार्थनाओं का जवाब कैसे मिला?

16 जापान: 63 साल की मीसाइ ताकेडा नाम की बहन को, जो एक गृहिणी थी, एक बड़े ऑपरेशन की ज़रूरत पड़ी। परमेश्‍वर के राज की वफादार नागरिक होने की वजह से उसने डॉक्टर को साफ बताया कि उसे खून न चढ़ाया जाए। मगर कुछ महीनों बाद उसे यह जानकर गहरा सदमा पहुँचा कि ऑपरेशन के वक्‍त उसे खून चढ़ा दिया गया था। बहन को लगा कि उसका भरोसा तोड़ दिया गया है। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके साथ बलात्कार किया गया है। इसलिए उसने जून 1993 में डॉक्टरों और अस्पताल के खिलाफ मुकदमा दायर किया। बहन ताकेडा बहुत सीधी-सादी थी, यहाँ तक कि वह धीमा बोलती थी, मगर उसका विश्‍वास बहुत मज़बूत था। उसने भरी अदालत में हिम्मत से गवाही दी और अपनी कमज़ोर हालत के बावजूद वह एक घंटे से ज़्यादा समय तक कठघरे में खड़ी रही। अपनी मौत से एक महीने पहले वह आखिरी बार अदालत गयी थी। हम उस बहन की हिम्मत और विश्‍वास की दाद देते हैं! बहन ताकेडा ने कहा था कि वह लगातार यहोवा से बिनती करती रही कि वह इस लड़ाई में उसकी मदद करे। उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा उसकी प्रार्थनाओं का जवाब देगा। क्या यहोवा ने जवाब दिया?

17 बहन ताकेडा की मौत के 3 साल बाद जापान के सुप्रीम कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि बहन की इच्छा के खिलाफ जाकर उसे खून चढ़ाना गलत था। अदालत ने 29 फरवरी, 2000 को कहा कि ऐसे मामलों में “हर इंसान को फैसला करने का अधिकार है और उसके अधिकार की इज़्ज़त की जानी चाहिए।” बहन ने ठान लिया था कि वह बाइबल के मुताबिक ढाले गए ज़मीर के हिसाब से इलाज चुनने के अधिकार के लिए लड़ती रहेगी। उसके इसी मज़बूत इरादे की वजह से आज जापान के साक्षी इलाज के मामले में अपना चुनाव कर सकते हैं और उन्हें डरने की ज़रूरत नहीं पड़ती कि उन्हें ज़बरदस्ती खून चढ़ाया जाएगा।

पाब्लो अलबरासीनी

पाब्लो अलबरासीनी (पैराग्राफ 18 से 20 देखें)

18-20. (क) अर्जेंटीना के सुप्रीम कोर्ट ने खून न चढ़वाने के अधिकार की कैसे रक्षा की? (ख) खून के मामले में हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम मसीह की हुकूमत के अधीन रहते हैं?

18 अर्जेंटीना: ऐसा भी हो सकता है कि जब मरीज़ बेहोश होता है तो उसके इलाज के मामले में कुछ फैसले लेने पड़ें। ऐसे हालात का सामना करने के लिए परमेश्‍वर के राज के नागरिक पहले से क्या कर सकते हैं? हम अपने पास एक कानूनी दस्तावेज़ रख सकते हैं जिस पर हमारा फैसला साफ-साफ लिखा हो। पाब्लो अलबरासीनी ने ऐसा ही किया था। मई 2012 में डकैतों ने उस पर गोलियाँ चला दीं। उसे बेहोशी की हालत में अस्पताल में भरती किया गया, इसलिए वह डॉक्टरों को नहीं बता पाया कि उसे खून न चढ़ाया जाए। मगर उसके पास एक कानूनी दस्तावेज़ (ब्लड कार्ड) था जिस पर उसने 4 साल पहले अपने इलाज से जुड़े निर्देश दिए थे और हस्ताक्षर किए थे। उसकी हालत बहुत गंभीर थी। भले ही कुछ डॉक्टरों को लगा कि उसकी जान बचाने के लिए खून चढ़ाना ज़रूरी है, फिर भी उन्होंने उसके फैसले की इज़्ज़त की। मगर पाब्लो के पिता ने, जो साक्षी नहीं था, अदालत से आदेश जारी करवाया कि उसे ज़बरदस्ती खून चढ़ाया जाए।

19 पाब्लो की पत्नी के वकील ने फौरन अदालत में अपील की। कुछ ही घंटों में अपील अदालत ने निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया और फैसला सुनाया कि मरीज़ ने कानूनी दस्तावेज़ में अपनी जो इच्छा ज़ाहिर की है उसका सम्मान किया जाए। तब पाब्लो के पिता ने अर्जेंटीना के सुप्रीम कोर्ट में अपील की। मगर सुप्रीम कोर्ट को “इस बात पर शक करने की कोई वजह नहीं मिली कि [पाब्लो का कानूनी दस्तावेज़, जिस पर उसने खून न चढ़ाने का निर्देश दिया था] सोच-समझकर, पूरे होशो-हवास में और अपनी मरज़ी से भरा गया था।” कोर्ट ने कहा, “हर बालिग, जो काबिल है, अपने इलाज के बारे में हिदायतें पहले से लिखकर रख सकता है और वह चाहे तो किसी भी तरह का इलाज स्वीकार कर सकता है या इनकार कर सकता है। . . . उसका इलाज करनेवाले डॉक्टर को उसकी हिदायतें माननी चाहिए।”

एक मसीही भाई यहोवा के साक्षियों के प्रकाशनों में खोजबीन कर रहा है

क्या आपने अपना ब्लड कार्ड भरा है?

20 पाब्लो पूरी तरह ठीक हो गया है। वह और उसकी पत्नी खुश हैं कि उसने अपना ब्लड कार्ड पहले से भरा था। यह एक छोटा-सा मगर बहुत ज़रूरी कदम है और पाब्लो ने ऐसा करके दिखाया कि वह मसीह की हुकूमत के अधीन रहता है। क्या आपने और आपके परिवार ने भी अपना ब्लड कार्ड भरा है?

एप्रिल कैडरी

एप्रिल कैडरी (पैराग्राफ 21 से 24 देखें)

21-24. (क) कनाडा के सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिगों को खून चढ़ाने के मामले में कैसा अनोखा फैसला सुनाया? (ख) इस मुकदमे से साक्षियों के बच्चे क्या सीख सकते हैं?

21 कनाडा: आम तौर पर अदालतें मानती हैं कि माता-पिता को यह तय करने का अधिकार है कि उनके बच्चों के लिए इलाज का कौन-सा तरीका सबसे बेहतर होगा। कुछ अदालतों ने यह तक फैसला सुनाया है कि अगर एक नाबालिग समझदार है तो इलाज के मामले में उसके फैसलों की भी इज़्ज़त की जानी चाहिए। एप्रिल कैडरी इसकी एक मिसाल है। जब वह 14 साल की थी तो उसके शरीर के किसी अंदरूनी अंग में खून बहने लगा। उसे अस्पताल में भरती किया गया। उसने कुछ महीने पहले अपना ब्लड कार्ड (एडवांस मेडिकल डाइरेक्टिव) भरा था जिसमें लिखा था कि उसे खून न चढ़ाया जाए, फिर चाहे उसकी जान को खतरा क्यों न हो। मगर एप्रिल के डॉक्टर ने उसकी इच्छा को दरकिनार कर दिया और अदालत से आदेश जारी करवाया कि उसे खून चढ़ाया जाए। एप्रिल को ज़बरदस्ती तीन बोतल खून चढ़ाया गया। बाद में एप्रिल ने कहा कि उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके साथ बलात्कार किया गया है।

22 एप्रिल और उसके माता-पिता इंसाफ के लिए अदालतों में गए। दो साल बाद कनाडा के सुप्रीम कोर्ट में उनके मुकदमे की सुनवाई हुई। हालाँकि एप्रिल संविधान को चुनौती देने का मामला हार गयी, फिर भी अदालत ने मुकदमे में हुए सारे खर्च की भरपाई की और उसके और दूसरे नाबालिग बच्चों के पक्ष में फैसला सुनाया जो इलाज के मामले में खुद फैसला करना चाहते हैं। अदालत ने कहा, “इलाज के मामले में 16 साल से कम उम्र के बच्चों को यह साबित करने का मौका दिया जाना चाहिए कि वे भी सोच-समझकर फैसला करने के काबिल हैं।” (कनाडा में 16 साल से कम उम्र के बच्चों को नाबालिग माना जाता है।)

23 यह मुकदमा गौर करने लायक है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने माना कि समझदार नाबालिगों के भी कुछ अधिकार हैं। इस फैसले से पहले, कनाडा की एक अदालत 16 से कम उम्र के बच्चों का किसी भी तरह से इलाज करने का आदेश दे सकती थी, बशर्ते उस इलाज से उन्हें फायदा हो। मगर इस फैसले के बाद से अदालत के पास यह अधिकार नहीं है कि वह 16 से कम उम्र के बच्चों की मरज़ी के खिलाफ किसी भी तरह से उसका इलाज करने का आदेश दे। उसे पहले बच्चों को यह साबित करने का मौका देना चाहिए कि वे सोच-समझकर फैसला लेने के काबिल हैं।

“मैं बहुत खुश हूँ कि मैं परमेश्‍वर के नाम की महिमा करने और शैतान को झूठा साबित करने में एक छोटा-सा भाग अदा कर पायी हूँ”

24 क्या तीन साल की इस लड़ाई से कोई फायदा हुआ? एप्रिल कहती है, “हाँ!” आज वह सेहतमंद है और पायनियर सेवा करती है। वह कहती है, “मैं बहुत खुश हूँ कि मैं परमेश्‍वर के नाम की महिमा करने और शैतान को झूठा साबित करने में एक छोटा-सा भाग अदा कर पायी हूँ।” एप्रिल का अनुभव दिखाता है कि बच्चे भी हिम्मत से सही फैसला कर सकते हैं और साबित कर सकते हैं कि वे परमेश्‍वर के राज के सच्चे नागरिक हैं।​—मत्ती 21:16.

यहोवा के स्तरों के मुताबिक बच्चों की परवरिश करने का अधिकार

25, 26. जब माता-पिता का तलाक हो जाता है तो क्या हालात उठ सकते हैं?

25 यहोवा ने माता-पिता को यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वे उसके स्तरों के मुताबिक अपने बच्चों की परवरिश करें। (व्यव. 6:6-8; इफि. 6:4) यह काम इतना आसान नहीं है, खासकर तब जब माता-पिता का तलाक हो जाता है। बच्चों की परवरिश के बारे में माँ और पिता की राय एक-दूसरे से बिलकुल अलग हो सकती है। मिसाल के लिए, जो माँ या पिता साक्षी है वह शायद माने कि बच्चे की परवरिश मसीही स्तरों के मुताबिक ही की जानी चाहिए। मगर जो माँ या पिता साक्षी नहीं है वह शायद इस बात से राज़ी न हो। बेशक, एक साक्षी को यह बात समझनी चाहिए कि तलाक से भले ही पति-पत्नी का रिश्‍ता खत्म हो जाता है मगर माता-पिता के साथ बच्चे का रिश्‍ता खत्म नहीं होता।

26 जो माँ या पिता साक्षी नहीं है वह शायद अदालत में मुकदमा दायर करे ताकि बच्चे की परवरिश करने का अधिकार उसे दिया जाए और वह उसे अपने धर्म की शिक्षा दे। कुछ लोग इलज़ाम लगाते हैं कि एक बच्चे को साक्षियों का धर्म सिखाने से उसका नुकसान होता है। वे कहते हैं कि बच्चे को जन्मदिन या कोई भी त्योहार नहीं मनाने दिया जाता और जब उसकी जान खतरे में होती है तब उसे खून नहीं चढ़ाया जाता। खुशी की बात है कि कई अदालतें यह देखकर फैसला सुनाती हैं कि बच्चे की भलाई किसमें है, बजाय इस बात पर ध्यान देने कि एक माँ या पिता के धर्म से बच्चे को खतरा होगा या नहीं। आइए कुछ मुकदमों पर गौर करते हैं।

27, 28. ओहायो के सुप्रीम कोर्ट ने साक्षी माता-पिताओं पर लगाए गए इलज़ाम के बारे में क्या कहा?

27 अमरीका: 1992 में ओहायो के सुप्रीम कोर्ट में एक लड़के को लेकर मुकदमा चला जिसका पिता साक्षी नहीं था मगर माँ साक्षी थी। पिता ने दावा किया कि अगर माँ लड़के को साक्षियों का धर्म सिखाएगी तो उसका नुकसान होगा। निचली अदालत ने उसकी बात मान ली और बच्चे की परवरिश करने का अधिकार उसे दे दिया। बच्चे की माँ, जैनिफर पेटर को कभी-कभी उससे मिलने का अधिकार दिया गया, मगर उसे हिदायत दी गयी कि “वह बच्चे को किसी भी तरह से यहोवा के साक्षियों की शिक्षाएँ न सिखाए।” निचली अदालत के इस आदेश का दायरा इतना बड़ा था कि इसका यह मतलब भी निकाला जा सकता था कि बहन अपने बेटे बॉबी से बाइबल या उसके नैतिक स्तरों के बारे में बात तक नहीं कर सकती! क्या आप सोच सकते हैं कि बहन पेटर पर क्या बीती होगी? वह बहुत हताश हो गयी थी। फिर भी वह कहती है कि उसने सब्र से काम लेना और यहोवा के कार्रवाई करने के समय का इंतज़ार करना सीखा। उन दिनों को याद करके वह कहती है, “यहोवा हमेशा मेरे साथ था।” उसके वकील ने यहोवा के संगठन की मदद से ओहायो के सुप्रीम कोर्ट में उसके मामले की अपील की।

28 सुप्रीम कोर्ट निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं हुआ। कोर्ट ने कहा कि “माता-पिता के पास अपने बच्चों को सिखाने का बुनियादी अधिकार है। उन्हें बच्चों को नैतिक और धार्मिक उसूल सिखाने का भी अधिकार है।” कोर्ट ने कहा कि जब तक अदालत में साबित न हो कि यहोवा के साक्षियों की धार्मिक शिक्षाओं से बच्चे को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुँच सकता है, तब तक अदालत को यह अधिकार नहीं कि वह माँ या पिता के धर्म की वजह से बच्चे से मिलने के मामले में पाबंदियाँ लगाए। सुप्रीम कोर्ट को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि साक्षियों की धार्मिक शिक्षाओं से बच्चों को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान हो सकता है।

एक मसीही बहन घर पर अपने बेटे को सिखा रही है

कई अदालतों ने बच्चों की परवरिश करने का अधिकार साक्षी माता-पिताओं को दिया है

29-31. (क) डेनमार्क की एक बहन अपनी बेटी की परवरिश करने का मुकदमा क्यों हार गयी? (ख) डेनमार्क के सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

29 डेनमार्क: अनीता हैनसेन के सामने भी ऐसी ही मुश्‍किल आयी। उसका अपने पति से तलाक हो गया था। उसके पति ने अदालत में मुकदमा दायर किया कि उनकी 7 साल की बेटी अमांडा की परवरिश करने का अधिकार उसे दिया जाए। सन्‌ 2000 में ज़िला अदालत ने अमांडा की परवरिश करने का अधिकार बहन हैनसेन को दे दिया। फिर भी अमांडा के पिता ने हाई कोर्ट से अपील की। हाई कोर्ट ने ज़िला कोर्ट का फैसला रद्द कर दिया और अमांडा को उसके पिता के हवाले कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि अपनी धार्मिक शिक्षाओं की वजह से माँ और पिता के ज़िंदगी के उसूल एक-दूसरे के बिलकुल खिलाफ हैं, इसलिए पिता ही इस मतभेद को दूर कर सकता है। इसका मतलब यह था कि बहन हैनसेन यहोवा की एक साक्षी होने की वजह से मुकदमा हार गयी!

30 इस मुश्‍किल दौर में बहन हैनसेन कभी-कभी इतनी निराश हो जाती थी कि उसे समझ नहीं आता था कि वह प्रार्थना में क्या कहे। वह कहती है, “रोमियों 8:26, 27 से मुझे बहुत दिलासा मिला। मैंने हमेशा महसूस किया कि यहोवा समझ रहा है कि मैं उससे क्या कहना चाहती हूँ। वह हर पल मुझ पर नज़र रखे हुए था और हमेशा मेरे साथ था।”​—भजन 32:8; यशायाह 41:10 पढ़िए।

31 बहन हैनसेन ने डेनमार्क के सुप्रीम कोर्ट में अपील की। कोर्ट का फैसला था कि “बच्चे की परवरिश करने का अधिकार किसे दिया जाए, इसका फैसला इस बात पर अच्छी तरह गौर करके किया जाएगा कि बच्चे की भलाई किसमें है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चा किसके साथ रहेगा इसका फैसला यह देखकर किया जाना चाहिए कि माँ या पिता मसलों को कैसे सुलझाता है, न कि यह देखकर कि एक साक्षी होने के नाते वह “किन शिक्षाओं को मानता और क्या फैसले करता है।” जब कोर्ट ने फैसला किया कि बहन हैनसन अपनी बेटी की परवरिश करने के काबिल है और बेटी को उसके हाथ में सौंप दिया तो बहन ने राहत की साँस ली।

32. यूरोपीय अदालत ने साक्षी माता-पिताओं के अधिकारों की कैसे रक्षा की?

32 यूरोप के अलग-अलग देश: बच्चे की परवरिश को लेकर हुए कुछ कानूनी मसले कुछ देशों की बड़ी-बड़ी अदालतों में भी सुलझाए नहीं गए। ऐसे में ‘मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत’ ने मामलों की सुनवाई की। इस तरह के दो मुकदमों में यूरोपीय अदालत ने कबूल किया कि देश की अदालतों ने धर्म के नाम पर उन माता-पिताओं के साथ भेदभाव किया है जो साक्षी हैं। अदालत ने कहा कि “सिर्फ एक इंसान के धर्म को देखकर ऐसी कार्रवाई करना सही नहीं है।” इस फैसले से फायदा पानेवाली एक बहन ने बताया कि उसे कितनी राहत मिली है। उसने कहा, “जब मुझ पर इलज़ाम लगाया गया कि मैं अपने बच्चों का नुकसान कर रही हूँ तो मुझे बहुत बुरा लगा। मैं तो मसीही स्तरों के मुताबिक उनकी परवरिश करके बस उनका भला कर रही थी।”

33. साक्षी माता-पिता फिलिप्पियों 4:5 का सिद्धांत कैसे लागू कर सकते हैं?

33 जो माँएँ या पिता अपने बच्चों के दिल में बाइबल के स्तर बिठाने के लिए मुकदमे लड़ रहे हैं, वे दूसरे की भावनाओं का भी लिहाज़ करते हैं। (फिलिप्पियों 4:5 पढ़िए।) वे जानते हैं कि जैसे उन्हें अपने बच्चों को परमेश्‍वर की राह सिखाने का अधिकार है, वैसे ही बच्चे की माँ या पिता पर भी, जो साक्षी नहीं है, बच्चे की परवरिश करने की ज़िम्मेदारी है। जो माँ या पिता साक्षी है, उसे अपने बच्चे को सिखाने की ज़िम्मेदारी कितनी गंभीरता से लेनी चाहिए?

34. मसीही माता-पिता नहेमायाह के दिनों के यहूदियों से क्या सीख सकते हैं?

34 नहेमायाह के दिनों की एक घटना पर गौर कीजिए। यहूदियों ने यरूशलेम की शहरपनाह की मरम्मत करने और कुछ हिस्सों को दोबारा बनाने में कड़ी मेहनत की थी। वे जानते थे कि ऐसा करने से पड़ोस के दुश्‍मन राष्ट्रों से उनकी और उनके परिवारों की हिफाज़त होगी। इसीलिए नहेमायाह ने उन्हें बढ़ावा दिया: “अपने भाइयों, बेटे-बेटियों, पत्नियों और अपने घरों के लिए लड़ो।” (नहे. 4:14) उन यहूदियों को अपने परिवारों की हिफाज़त करने के लिए जी-जान से लड़ाई करनी थी। उसी तरह, जो माता-पिता साक्षी हैं वे अपने बच्चों को सच्चाई की राह सिखाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। वे जानते हैं कि स्कूल में और आस-पड़ोस में बच्चों पर बुरी बातों का असर पड़ता है। यहाँ तक कि घर के अंदर भी मीडिया उन पर बुरा असर कर सकता है। माता-पिताओ, मत भूलिए कि आपको भी उन बुराइयों से अपने बच्चों को बचाने के लिए मेहनत करनी है ताकि आप एक सुरक्षित माहौल में उनकी परवरिश कर सकें और वे परमेश्‍वर के दोस्त बन पाएँ।

यहोवा सच्ची उपासना करनेवालों का साथ कभी नहीं छोड़ेगा

35, 36. (क) अपने अधिकारों के लिए लड़ने की वजह से यहोवा के साक्षियों को क्या फायदा हुआ है? (ख) आपने क्या करने की ठानी है?

35 बेशक यहोवा की मदद से ही आज उसका संगठन बेरोक-टोक उपासना करने का अधिकार पाने के लिए कई लड़ाइयाँ जीत पाया है। परमेश्‍वर के लोग अपने कानूनी अधिकारों के लिए लड़ते वक्‍त कई बार अदालतों में और आम जनता को ज़बरदस्त गवाही दे पाए हैं। (रोमि. 1:8) साक्षियों ने जो मुकदमे जीते उनसे ऐसे लोगों को भी फायदा हुआ है जो साक्षी नहीं हैं। उनके नागरिक अधिकारों को पुख्ता किया गया है। फिर भी मुकदमे लड़ने में हमारा मकसद यह नहीं कि हम समाज को सुधारना चाहते हैं या खुद को सही साबित करना चाहते हैं। अदालतों में जाकर अपने कानूनी अधिकारों के लिए लड़ने का खास मकसद यह है कि हम यहोवा के साक्षी सच्ची उपासना को कानूनी मान्यता दिलाना चाहते हैं और उसे बढ़ावा देना चाहते हैं।​—फिलिप्पियों 1:7 पढ़िए।

36 जिन लोगों ने यहोवा की उपासना करने की आज़ादी के लिए मुकदमे लड़े हैं, उनसे हमें विश्‍वास की अनमोल सीख मिलती है। आइए हम ये सीख कभी न भूलें! आइए हम भी वफादार बने रहें और भरोसा रखें कि यहोवा हमारा साथ दे रहा है और उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए हमें लगातार ताकत दे रहा है।​—यशा. 54:17.

परमेश्‍वर का राज आपके लिए कितना असली है?

  • कुछ सरकारों ने मसीहियों के बुनियादी अधिकारों पर कैसे रोक लगा दी? नतीजा क्या हुआ?

  • यहोवा के साक्षियों ने खून चढ़वाने से इनकार करने के अधिकार के लिए कैसे मुकदमे लड़े? परमेश्‍वर ने कैसे उनकी मेहनत पर आशीष दी?

  • जिन साक्षियों का तलाक हो चुका है, उनके बच्चों की परवरिश के मामले में विरोधियों ने क्या करने की कोशिश की है?

  • आप क्यों मानते हैं कि हमने परमेश्‍वर के राज की मदद से ही कई मुकदमे जीते हैं?

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें