Vòchtavör ÒNLĀIN LAËPRËRĪ
Vòchtavör
ÒNLĀIN LAËPRËRĪ
Nicobarese
  • PAIPÖL
  • LĪPÖRE
  • MINË MĪTING
  • lfb Lesön 101 p. 234-p. 235 par. 4
  • Söömi Ang Pôl Nö Chuh Rōm

Öt ōt vitiō nö in ngih katöllö meh pāt.

Aṙēlen hī, öt taōnlōtngöre ön ngam vitiō.

  • Söömi Ang Pôl Nö Chuh Rōm
  • Haköplö Hī Töpōiṙāi Aṅmat ngam Paipöl
  • Ātiköl Tö Sāḵta Ṙô Nö In Höö
  • Pinrātngö ngam Tölöök Inhānga
    Tölöök Inhānga Aṅ Im Tēv—LAMÖÖ IN MEH
Haköplö Hī Töpōiṙāi Aṅmat ngam Paipöl
lfb Lesön 101 p. 234-p. 235 par. 4
माल्टा के किनारे से थोड़ी दूर जहाज़ टूट गया है। पौलुस और कुछ लोग तैर रहे हैं और कुछ लोग जहाज़ के टुकड़ों का सहारा ले रहे हैं

Lesön 101

Söömi Ang Pôl Nö Chuh Rōm

पौलुस के प्रचार का तीसरा दौरा यरूशलेम में खत्म हुआ। वहाँ उसे गिरफ्तार किया गया और जेल में डाला गया। एक रात दर्शन में यीशु ने उससे कहा, ‘तू रोम जाएगा और वहाँ प्रचार करेगा।’ पौलुस को यरूशलेम से कैसरिया ले जाया गया, जहाँ वह दो साल जेल में रहा। जब उसका मामला राज्यपाल फेस्तुस के पास ले जाया गया तो उसने फेस्तुस से कहा, ‘मैं चाहता हूँ कि रोम में सम्राट मेरा न्याय करे।’ फेस्तुस ने कहा, “तूने सम्राट से फरियाद की है, तू सम्राट के पास जाएगा।” पौलुस को रोम जानेवाले जहाज़ पर चढ़ाया गया। उसके साथ दो मसीही भाई, लूका और अरिस्तरखुस भी गए।

जब जहाज़ बीच समुंदर में था तो एक बड़ा तूफान उठा और कई दिनों तक रहा। सबने सोचा कि अब वे मर जाएँगे। मगर पौलुस ने कहा, ‘लोगो, एक स्वर्गदूत ने मुझसे सपने में कहा, “पौलुस, मत डर। तू ज़रूर रोम जाएगा और तेरे साथ जहाज़ में जितने लोग हैं वे सब बच जाएँगे।” इसलिए लोगो, हिम्मत रखो। हम नहीं मरेंगे।’

तूफान 14 दिनों तक चलता रहा। आखिर में उन्हें ज़मीन दिखायी दी। वह माल्टा द्वीप था। जहाज़ रेत में धँस गया और उसके टुकड़े-टुकड़े हो गए। मगर जहाज़ के सभी 276 लोग बच गए। कुछ लोग तैरकर तो कुछ जहाज़ के टुकड़ों के सहारे किनारे पहुँच गए। माल्टा के लोगों ने उनकी देखभाल की और उनके लिए आग जलायी ताकि वे खुद को सेंक सकें।

तीन महीने बाद, सैनिक पौलुस को एक और जहाज़ से रोम ले गए। जब वह रोम पहुँचा तो वहाँ के भाई उससे मिलने आए। उन्हें देखते ही पौलुस ने यहोवा को शुक्रिया कहा और हिम्मत पायी। पौलुस एक कैदी था, फिर भी उसे रोम में एक किराए के घर में रहने दिया गया। एक सैनिक पौलुस का पहरा देता था। पौलुस रोम में दो साल रहा। लोग उससे मिलने आते थे और वह उन्हें परमेश्‍वर के राज और यीशु के बारे में सिखाता था। पौलुस ने वहाँ रहते वक्‍त एशिया माइनर और यहूदिया की मंडलियों को चिट्ठियाँ भी लिखीं। यहोवा ने वाकई पौलुस के ज़रिए कई देशों तक खुशखबरी पहुँचायी।

“हर तरह से हम परमेश्‍वर के सेवक होने का सबूत देते हैं, धीरज से कई परीक्षाएँ सहकर, दुख-तकलीफें, तंगी और मुश्‍किलें झेलकर।”—2 कुरिंथियों 6:4

Intöönö: Kūö yòh Pôl nö söömi tö Festös nö chuh Rōm? Asuh ök inlahngen Pôl ik sā ò nö chuh Rōm?

Inlahen 21:30; 23:11; 25:8-12; 27:1–28:31; Rōma 15:25, 26

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