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  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद

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यिर्मयाह का सारांश

      • यिर्मयाह की शिकायत (1-4)

      • यहोवा का जवाब (5-17)

यिर्मयाह 12:1

संबंधित आयतें

  • +उत 18:25
  • +अय 12:6; 21:7; भज 73:3; यिर्म 5:28

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 3/2017, पेज 2-3

यिर्मयाह 12:2

फुटनोट

  • *

    या “उनकी गहरी भावनाओं।” शा., “उनके गुरदों।”

संबंधित आयतें

  • +यश 29:13

यिर्मयाह 12:3

संबंधित आयतें

  • +भज 139:1, 2
  • +2रा 20:3; भज 17:3; यिर्म 11:20

यिर्मयाह 12:4

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  • +यिर्म 14:6; 23:10

यिर्मयाह 12:5

संबंधित आयतें

  • +यिर्म 4:13

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    3/15/2011, पेज 32

यिर्मयाह 12:6

संबंधित आयतें

  • +यिर्म 9:4

यिर्मयाह 12:7

संबंधित आयतें

  • +लूक 13:35
  • +निर्ग 19:5; यश 47:6
  • +विल 2:1

यिर्मयाह 12:9

फुटनोट

  • *

    या “धब्बेदार।”

संबंधित आयतें

  • +2रा 24:2; यहे 16:37
  • +यश 56:9; यिर्म 7:33

यिर्मयाह 12:10

संबंधित आयतें

  • +भज 80:8; यश 5:1, 7; यिर्म 6:3
  • +यश 63:18; यिर्म 3:19

यिर्मयाह 12:11

फुटनोट

  • *

    या शायद, “यह मातम मनाती है।”

संबंधित आयतें

  • +यिर्म 9:11; 10:22
  • +यश 42:24, 25

यिर्मयाह 12:12

संबंधित आयतें

  • +लैव 26:33; यिर्म 15:2

यिर्मयाह 12:13

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  • +लैव 26:16; मी 6:15

यिर्मयाह 12:14

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  • +यिर्म 48:2; 49:2
  • +भज 79:4; यिर्म 48:26; यहे 25:3; जक 1:15; 2:8

यिर्मयाह 12:17

संबंधित आयतें

  • +यश 60:12

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दूसरी

यिर्म. 12:1उत 18:25
यिर्म. 12:1अय 12:6; 21:7; भज 73:3; यिर्म 5:28
यिर्म. 12:2यश 29:13
यिर्म. 12:3भज 139:1, 2
यिर्म. 12:32रा 20:3; भज 17:3; यिर्म 11:20
यिर्म. 12:4यिर्म 14:6; 23:10
यिर्म. 12:5यिर्म 4:13
यिर्म. 12:6यिर्म 9:4
यिर्म. 12:7लूक 13:35
यिर्म. 12:7निर्ग 19:5; यश 47:6
यिर्म. 12:7विल 2:1
यिर्म. 12:92रा 24:2; यहे 16:37
यिर्म. 12:9यश 56:9; यिर्म 7:33
यिर्म. 12:10भज 80:8; यश 5:1, 7; यिर्म 6:3
यिर्म. 12:10यश 63:18; यिर्म 3:19
यिर्म. 12:11यिर्म 9:11; 10:22
यिर्म. 12:11यश 42:24, 25
यिर्म. 12:12लैव 26:33; यिर्म 15:2
यिर्म. 12:13लैव 26:16; मी 6:15
यिर्म. 12:14यिर्म 48:2; 49:2
यिर्म. 12:14भज 79:4; यिर्म 48:26; यहे 25:3; जक 1:15; 2:8
यिर्म. 12:17यश 60:12
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
यिर्मयाह 12:1-17

यिर्मयाह

12 हे यहोवा, तू नेक परमेश्‍वर है।+

जब मैं अपनी शिकायत तेरे सामने पेश करता हूँ,

न्याय के मामलों पर तुझसे बात करता हूँ,

तो तू इंसाफ करता है।

दुष्ट अपने काम में क्यों कामयाब होते हैं?+

दगाबाज़ क्यों बेखौफ जीते हैं?

 2 तूने उन्हें लगाया और उन्होंने जड़ पकड़ी।

वे बढ़ गए हैं और फल देते हैं।

तू उनकी ज़बान पर तो है, मगर उनके मन की गहराई में छिपे विचारों* से दूर है।+

 3 मगर हे यहोवा, तू मुझे अच्छी तरह जानता है,+ मुझे देखता है,

तूने मेरा दिल जाँचा और पाया कि यह तेरे साथ एकता में है।+

तू उन्हें ऐसे अलग कर दे जैसे भेड़ों को हलाल के लिए अलग किया जाता है,

उन्हें घात किए जानेवाले दिन के लिए अलग ठहरा दे।

 4 और कब तक यह देश बरबाद होता रहेगा?

हर मैदान के पेड़-पौधे सूखते जाएँगे?+

इस देश के लोगों के बुरे कामों की वजह से

जानवरों और पंछियों का सफाया कर दिया गया है।

क्योंकि यहाँ के लोग कहते हैं, “हमारे साथ जो होगा, उसे परमेश्‍वर नहीं देख सकता।”

 5 अगर तू पैदल चलनेवालों के साथ दौड़ते-दौड़ते थक गया है,

तो घोड़ों के साथ कैसे दौड़ेगा?+

अगर तुझे अमन-चैनवाले देश में बेफिक्र जीने की आदत हो गयी है,

तो तू यरदन किनारे घनी झाड़ियों में क्या करेगा?

 6 क्योंकि तेरे अपने भाइयों ने भी, तेरे पिता के घराने ने भी

तेरे साथ गद्दारी की।+

वे तेरे खिलाफ ज़ोर से चिल्लाए।

तू उनकी बातों पर विश्‍वास न करना,

फिर चाहे वे तुझसे अच्छी बातें क्यों न कहें।

 7 “मैंने अपने घराने को छोड़ दिया है,+ अपनी विरासत त्याग दी है।+

जिसे मैं बहुत प्यार करता था, उसे मैंने उसके दुश्‍मनों के हाथों कर दिया है।+

 8 मेरी विरासत मेरे लिए जंगल का शेर बन गयी,

वह मुझ पर गरजने लगी,

इसलिए मुझे उससे नफरत हो गयी है।

 9 मेरी विरासत मेरे लिए रंगीन* शिकारी पक्षी है,

दूसरे शिकारी पक्षी उसे घेरकर उस पर हमला करते हैं।+

मैदान के सारे जानवरो, आओ, इकट्ठा हो जाओ,

तुम सब खाने के लिए आओ।+

10 बहुत-से चरवाहों ने मेरे अंगूरों के बाग को नाश कर दिया है,+

उन्होंने मेरे हिस्से की ज़मीन रौंद डाली है।+

मेरी मनभावनी ज़मीन को उजाड़कर वीराना बना दिया है।

11 यह बंजर ज़मीन हो गयी है।

यह सूखकर वीरान हो गयी है,*

मेरे सामने उजाड़ पड़ी है।+

पूरा देश उजाड़ दिया गया है,

मगर कोई भी इंसान इस बात पर ध्यान नहीं देता।+

12 नाश करनेवाले, वीराने से जानेवाले सभी रास्तों से गुज़रते हैं,

क्योंकि यहोवा की तलवार एक छोर से दूसरे छोर तक पूरा देश नाश कर रही है।+

किसी को शांति नहीं मिलती।

13 उन्होंने गेहूँ बोया, मगर काँटों की फसल काटी।+

वे मेहनत करते-करते पस्त हो गए, मगर कोई फायदा नहीं हुआ।

वे अपनी उपज पर शर्मिंदा होंगे,

क्योंकि यहोवा के क्रोध की ज्वाला उन पर भड़की है।”

14 यहोवा कहता है, “मैं अपने उन सभी दुष्ट पड़ोसियों को उनके देश से उखाड़ दूँगा,+ जो मेरी इस विरासत को हाथ लगाते हैं, जिसे मैंने अपनी प्रजा इसराएल के अधिकार में किया था।+ और मैं उनके बीच से यहूदा के घराने को उखाड़ दूँगा। 15 मगर उन्हें उखाड़ने के बाद मैं उन पर दया करूँगा और उनमें से हर किसी को उसके देश में और उसकी विरासत की ज़मीन पर वापस ले आऊँगा।”

16 “अगर वे राष्ट्र उन राहों के बारे में सीखेंगे, जिन पर मेरे लोग चलते हैं और मेरे नाम से शपथ खाना सीखेंगे और कहेंगे, ‘यहोवा के जीवन की शपथ!’ ठीक जैसे उन्होंने मेरे लोगों को बाल के नाम से शपथ लेना सिखाया था, तो मैं उन्हें अपने लोगों के बीच फलने-फूलने दूँगा। 17 लेकिन अगर उनमें से कोई राष्ट्र मेरी आज्ञा मानने से इनकार करेगा, तो मैं उसे उखाड़कर नाश कर दूँगा।” यहोवा का यह ऐलान है।+

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