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    प्रेषि 26:14 शाब्दिक, “अंकुश की नोंक पर लात मारकर।”

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    9/1/1998, पेज 30

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    9/1991, पेज 3

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    गवाही दो, पेज 202

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रेषितों 26:1-32

प्रेषितों

26 फिर अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा: “तुझे अपने पक्ष में सफाई देने की इजाज़त है।” तब पौलुस ने अपना हाथ उठाया और अपने बचाव में यह कहने लगा:

2 “हे राजा अग्रिप्पा, यहूदियों ने मुझ पर जिन बातों का इलज़ाम लगाया है, उन सबके बारे में आज तेरे सामने अपना बचाव करने में मुझे बड़ी खुशी हो रही है, 3 खासकर इसलिए कि तू यहूदियों के सभी रिवाज़ों, साथ ही विवादों का बड़ा ज्ञानी है। इसलिए मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि तू सब्र के साथ मेरी सुन ले।

4 वाकई, मैंने लड़कपन से अपने जाति-भाइयों के बीच और यरूशलेम में रहते वक्‍त जैसी ज़िंदगी बितायी है, उसके बारे में उन सभी यहूदियों को 5 मालूम है जो मुझे पहले से जानते हैं, और अगर वे चाहें तो इस बात की गवाही दे सकते हैं कि मैं अपने धर्म के सबसे कट्टर पंथ को मानते हुए, एक फरीसी की ज़िंदगी जीता था। 6 मगर अब उस आशा की वजह से जिसका वादा परमेश्‍वर ने हमारे बापदादों से किया था, मुझे यहाँ खड़ा कर मुझ पर मुकद्दमा चलाया जा रहा है। 7 जबकि हमारे बारह गोत्र इस वादे के पूरा होने की आशा लगाए हुए हैं, इसलिए वे रात-दिन बड़े जतन से परमेश्‍वर की पवित्र सेवा करते हैं। हे राजा, इसी आशा के बारे में यहूदियों ने मुझ पर इलज़ाम लगाए हैं।

8 परमेश्‍वर मरे हुओं को ज़िंदा करता है, इस बात को तुम लोग विश्‍वास के लायक क्यों नहीं समझते? 9 मैं भी वाकई ऐसा इंसान था, जो सोचा करता था कि यीशु नासरी के नाम का कड़े-से-कड़ा विरोध करना मेरा फर्ज़ है। 10 और यरूशलेम में मैंने ऐसा ही किया। मैंने प्रधान याजकों से अधिकार पाकर बहुत-से पवित्र जनों को कैदखानों में बंद किया और जब उन्हें मौत के घाट उतारा जाना होता, तो मैं उनके खिलाफ अपना समर्थन देता था। 11 और सभी सभा-घरों में उन्हें बार-बार सज़ा दिलाकर मैं उन्हें मजबूर करता था कि वे अपने विश्‍वास की निंदा करें और उसे त्याग दें। मैं उनके खिलाफ गुस्से से इस कदर पागल हो गया था कि दूसरे शहरों में भी जाकर उन पर ज़ुल्म ढाने लगा।

12 जब मैं इसी काम में लगा हुआ था और प्रधान याजकों से पूरा अधिकार और आज्ञा पाकर दमिश्‍क जा रहा था, 13 तो हे राजा, दोपहर के वक्‍त मैंने रास्ते में सूरज के तेज से कहीं बढ़कर तेज़ रौशनी को आकाश से चमकते देखा, जो मेरे और मेरे साथ चलनेवालों के चारों तरफ चमक उठी। 14 और जब हम सब ज़मीन पर गिर पड़े, तो मैंने इब्रानी भाषा में एक आवाज़ को मुझसे यह कहते सुना, ‘शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है? इस तरह विरोध कर* तू अपने लिए मुश्‍किल पैदा कर रहा है।’ 15 मगर मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ और प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है। 16 मगर अब उठ और अपने पाँवों के बल खड़ा हो। क्योंकि मैंने इसीलिए तुझे दर्शन दिया है कि तुझे एक सेवक और उन बातों का गवाह ठहराऊँ जो तू ने देखी हैं और जो मैं तुझे अपने बारे में आगे भी दिखाऊँगा। 17 और मैं इस जाति और दूसरी जातियों के बीच तेरी हिफाज़त करूँगा, जिनके पास मैं तुझे भेज रहा हूँ। 18 जिससे कि तू उनकी आँखें खोले और उन्हें अंधकार से फेरकर उजाले में, और शैतान के अधिकार से फेरकर परमेश्‍वर के अधिकार में ले आए, ताकि वे मुझ पर विश्‍वास करने की वजह से पापों की माफी पा सकें और उनके साथ विरासत पा सकें जो पवित्र ठहराए गए हैं।’

19 इसलिए हे राजा अग्रिप्पा, मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की आज्ञा न टाली, 20 मगर पहले दमिश्‍क के लोगों और फिर यरूशलेम के रहनेवालों और पूरे यहूदिया देश में और गैर-यहूदियों को यह संदेश देता रहा कि उन्हें पश्‍चाताप करना चाहिए और पश्‍चाताप के योग्य काम करते हुए परमेश्‍वर की तरफ फिरना चाहिए। 21 इन्हीं बातों की वजह से यहूदियों ने मुझे मंदिर में पकड़ लिया और मुझे मार डालने की कोशिश की। 22 मगर उस मदद की वजह से जो मुझे परमेश्‍वर से मिली है, मैं आज के दिन तक छोटे-बड़े सभी को गवाही देता रहा हूँ। मगर उन बातों के सिवा और कुछ नहीं कहता जो भविष्यवक्‍ताओं और मूसा ने भी कही थीं कि होनेवाली हैं। 23 यानी ये बातें कि मसीह को दुःख उठाना पड़ेगा और मरे हुओं में से जी उठाए जानेवालों में वही पहला होगा और इन लोगों और गैर-यहूदियों को प्रचार करेगा और रौशनी दिखाएगा।”

24 जब पौलुस अपने बचाव में ये बातें बोल ही रहा था, तो फेस्तुस ने ऊँची आवाज़ में कहा: “अरे पौलुस, तेरा दिमाग खराब हो गया है, बहुत ज्ञान ने तुझे पागल कर दिया है!” 25 मगर पौलुस ने कहा: “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ, मगर मैं सच्चाई की और स्वस्थ मन की बातें कहता हूँ। 26 असल में मैं जिस राजा के सामने निडर होकर बात कर रहा हूँ, वह खुद भी इन बातों के बारे में अच्छी तरह जानता है; क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि इनमें से एक भी बात उससे छिपी नहीं है क्योंकि ये घटनाएँ किसी कोने में तो नहीं घटी हैं। 27 हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यवक्‍ताओं की बातों का विश्‍वास करता है? मैं जानता हूँ कि तू विश्‍वास करता है।” 28 मगर अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा: “थोड़ी ही देर में तू मुझे मसीही बनने के लिए कायल कर देगा।” 29 इस पर पौलुस ने कहा: “परमेश्‍वर से मेरी यही कामना है कि चाहे थोड़ी देर में या ज़्यादा में, सिर्फ तू ही नहीं बल्कि जितने लोग आज मेरी सुन रहे हैं, सभी मेरी तरह बन जाएँ, बस इस तरह ज़ंजीरों में न हों।”

30 तब राजा अग्रिप्पा उठा और उसके साथ राज्यपाल और बिरनीके और उनके साथ बैठे आदमी उठ खड़े हुए। 31 मगर जाते-जाते वे एक-दूसरे से कहने लगे: “यह आदमी ऐसा कुछ नहीं कर रहा है कि यह मौत की सज़ा पाए या कैद में डाला जाए।” 32 इतना ही नहीं, अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा: “अगर इस आदमी ने सम्राट से फरियाद न की होती, तो इसे रिहा किया जा सकता था।”

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