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    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” (मत्ती-कुलु), पेज 16

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    12/15/2004, पेज 16-17

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    12/15/2001, पेज 24

    2/1/1991, पेज 16

    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” (1थिस्स-प्रका), पेज 6

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    गवाही दो, पेज 216-217

    प्रहरीदुर्ग,

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    2/1/2007, पेज 32

    5/15/2006, पेज 14

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रेषितों 28:1-31

प्रेषितों

28 जब हम सही-सलामत किनारे पहुँच गए, तो हमें मालूम हुआ कि उस द्वीप का नाम माल्टा था। 2 वहाँ के लोगों ने, जो दूसरी भाषा बोलते थे, इंसानियत के नाते हम पर बहुत कृपा की और ठंड और बारिश की वजह से हमारे लिए आग जलायी और हम सबका प्यार से स्वागत किया। 3 मगर जब पौलुस ने लकड़ियों का एक गट्ठर बटोरकर आग पर रखा, तो आँच की वजह से गट्ठर के अंदर से एक ज़हरीला साँप निकला और पौलुस के हाथ से लिपट गया। 4 जब वहाँ के निवासियों* ने देखा कि एक ज़हरीला साँप उसके हाथ से लटक रहा है, तो वे एक-दूसरे से कहने लगे: “यह आदमी वाकई हत्यारा है, यह समुद्र से तो बच गया मगर इंसाफ ने इसकी जान नहीं बख्शी।” 5 मगर पौलुस ने अपना हाथ झटककर साँप को आग में झोंक दिया और पौलुस को कुछ नुकसान नहीं हुआ। 6 मगर लोगों को यह उम्मीद थी कि पौलुस का शरीर सूज जाएगा या फिर वह अचानक गिरकर मर जाएगा। मगर जब वे बहुत देर तक देखते रहे और उसके साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ, तो उन्होंने अपनी राय बदल दी और कहने लगे कि वह ज़रूर कोई ईश्‍वर है।

7 उस जगह के पास, उस द्वीप के प्रधान पुबलियुस की ज़मीनें थीं। उसने आदर-सत्कार के साथ हमारा स्वागत किया और तीन दिन तक बड़े प्रेम-भाव से हमारी खातिरदारी की। 8 लेकिन ऐसा हुआ कि पुबलियुस का पिता बुखार और पेचिश से बेहाल था और बिस्तर से उठ नहीं पा रहा था। तब पौलुस उसके पास गया, उसके लिए प्रार्थना की, अपने हाथ उस पर रखे और उसे चंगा किया। 9 जब ऐसा हुआ, तो द्वीप के बाकी लोग भी जो बीमार थे वे उसके पास आने लगे और चंगे हुए। 10 फिर उन्होंने हमें कई तोहफे देकर हमारा सम्मान किया और जब हम जहाज़ पर चढ़कर जाने लगे, तो उन्होंने हमारी ज़रूरत के सामान का ढेर लगा दिया।

11 तीन महीने बाद हम सिकंदरिया के एक जहाज़ से रवाना हुए, जो सर्दियों के दौरान उसी द्वीप पर रुका हुआ था और उसकी निशानी थी, “ज़्यूस के बेटे।” 12 फिर हम सुरकूसा के बंदरगाह में लंगर डालकर तीन दिन वहीं रहे। 13 वहाँ से हम गोल घूमकर रेगियुम पहुँचे। और एक दिन बाद दक्षिणी हवा चली और हम दूसरे दिन पुतियुली आए। 14 यहाँ हमें भाई मिले और उन्होंने हमसे बिनती की कि उनके पास सात दिन ठहरें और इस तरह हम रोम के पास आए। 15 वहाँ से जब भाइयों ने हमारे आने की खबर सुनी, तो वे हमसे मिलने के लिए अपियुस के बाज़ार तक आ पहुँचे और तीन सराय तक भी आए। जैसे ही पौलुस की नज़र भाइयों पर पड़ी, तो उसने परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया और हिम्मत पायी। 16 आखिरकार, जब हम रोम में दाखिल हुए, तो पौलुस को अकेला रहने की इजाज़त मिली, और उसके साथ उसकी पहरेदारी के लिए एक सैनिक रहता था।

17 मगर, तीन दिन बाद उसने यहूदियों के खास आदमियों को अपने यहाँ बुलाया। जब वे इकट्ठा हुए, तो वह उनसे कहने लगा: “भाइयो, मैंने अपने लोगों या अपने बापदादों के रीति-रिवाज़ के खिलाफ कुछ नहीं किया। फिर भी, यहूदियों ने मुझे यरूशलेम में कैदी बनाकर रोमियों के हाथों सौंप दिया। 18 उन्होंने जाँच-पड़ताल करने के बाद मुझे छोड़ देना चाहा, क्योंकि उन्होंने मुझे ऐसी किसी भी बात का कसूरवार नहीं पाया जिसके लिए मुझे मौत की सज़ा दी जाए। 19 मगर जब यहूदी मेरी रिहाई के खिलाफ बोलते रहे, तो मजबूरन मुझे सम्राट से फरियाद करनी पड़ी, लेकिन इसलिए नहीं कि मैं अपनी जाति पर कोई दोष लगाना चाहता था। 20 वाकई, इसी वजह से मैंने तुम्हें बुलाने और तुमसे बात करने की बिनती की है, क्योंकि इस्राएल की आशा की वजह से मैं इन ज़ंजीरों में कैद हूँ।” 21 उन्होंने पौलुस से कहा: “हमें तेरे बारे में न तो यहूदिया से चिट्ठियाँ मिली हैं, न ही वहाँ से आए किसी यहूदी भाई ने तेरे बारे में खबर दी या कुछ बुरा कहा। 22 मगर हमें लगता है कि जो भी तेरे विचार हैं वे तुझी से सुनना सही होगा, क्योंकि जहाँ तक हमें इस गुट के बारे में मालूम हुआ है, सब जगह लोग इसके खिलाफ ही बात करते हैं।”

23 उन्होंने उसके साथ एक दिन तय किया और भारी तादाद में उसके ठहरने की जगह पर इकट्ठा हुए। और पौलुस ने उन्हें सारी बात समझायी और परमेश्‍वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही देने के लिए वह मूसा के कानून और भविष्यवक्‍ताओं की किताबों से यीशु के बारे में दलीलें देकर उन्हें कायल करता रहा और सुबह से शाम हो गयी। 24 और कुछ ने उसकी कही बातों पर विश्‍वास किया और दूसरों ने नहीं। 25 क्योंकि वे आपस में एकमत नहीं थे, इसलिए वे वहाँ से जाने लगे। इस पर पौलुस ने यह एक और बात कही:

“पवित्र शक्‍ति ने यशायाह भविष्यवक्‍ता के ज़रिए तुम्हारे बापदादों से बिलकुल सही 26 कहा था: ‘जाकर इन लोगों से कह: “तुम लोग सुनोगे और सुनते हुए भी न समझोगे; और देखोगे, और देखते हुए भी न देख पाओगे। 27 क्योंकि इन लोगों के दिल सख्त हो चुके हैं, और वे अपने कानों से सुनते तो हैं मगर सुनकर कुछ नहीं करते, और उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं; ताकि वे कभी अपनी आँखों से न देख पाएँ और अपने कानों से न सुन पाएँ और न ही अपने दिलों से समझ पाएँ जिससे कि वे अपने कामों से फिरें और मैं उन्हें चंगा करूँ।” ’ 28 इसलिए तुम्हें यह मालूम हो कि परमेश्‍वर जिसके ज़रिए उद्धार करता है, उसका संदेश गैर-यहूदियों के पास भेजा गया है और वे ज़रूर इसे सुनेंगे।” 29* ——

30 तब पौलुस पूरे दो साल तक किराए के मकान में रहा और जो कोई उसके यहाँ आता था उसका बड़े प्यार से स्वागत करता था 31 और उनको परमेश्‍वर के राज का प्रचार करता था और प्रभु यीशु मसीह के बारे में बेझिझक और बिना किसी रुकावट के सिखाया करता था।

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