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    प्रेषि 9:2 या, “उनके हाथ बाँधकर।”

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    2/1/1991, पेज 15

    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” (1थिस्स-प्रका), पेज 13

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रेषितों 9:1-43

प्रेषितों

9 मगर शाऊल पर अब भी प्रभु के चेलों को धमकाने और मार डालने का जुनून सवार था। इसलिए वह महायाजक के पास गया 2 और उससे दमिश्‍क शहर के सभा-घरों के नाम चिट्ठियाँ माँगीं ताकि प्रभु के मार्ग पर चलनेवाला जो भी मिले, चाहे स्त्री हो या पुरुष, उन्हें गिरफ्तार कर* यरूशलेम ले आए।

3 जब वह दमिश्‍क के पास रास्ते में था, तब अचानक आकाश से ज़बरदस्त रौशनी उसके चारों तरफ चमक उठी। 4 और वह ज़मीन पर गिर पड़ा और उसने एक आवाज़ सुनी जो उससे कह रही थी: “शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है?” 5 शाऊल ने कहा: “हे प्रभु, तू कौन है?” उसने कहा: “मैं यीशु हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है। 6 मगर अब उठ और शहर में जा और जो तुझे करना है वह तुझे बताया जाएगा।” 7 जो आदमी शाऊल के साथ सफर कर रहे थे, वे एकदम सुन्‍न होकर खड़े रहे। उन्हें यह आवाज़ तो सुनायी दे रही थी, मगर कोई दिखायी नहीं पड़ रहा था। 8 तब शाऊल ज़मीन से उठकर खड़ा हुआ। उसकी आँखें तो खुली थीं मगर वह कुछ देख नहीं पा रहा था। इसलिए वे उसका हाथ पकड़कर उसे ले गए और दमिश्‍क पहुँचा दिया। 9 और तीन दिन तक वह कुछ नहीं देख पाया और न उसने कुछ खाया, न पीया।

10 वहाँ दमिश्‍क में हनन्याह नाम का एक चेला था और प्रभु ने एक दर्शन में उससे कहा: “हनन्याह!” उसने कहा: “जी प्रभु, मैं हाज़िर हूँ।” 11 प्रभु ने उससे कहा: “उठ, और उस गली को जा जो सीधी कहलाती है, और वहाँ यहूदा के घर में शाऊल नाम के आदमी का पता लगा जो तरसुस का रहनेवाला है। क्योंकि देख! वह प्रार्थना कर रहा है, 12 और उसने एक दर्शन में हनन्याह नाम के एक आदमी को आते और अपने ऊपर हाथ रखते देखा है जिससे उसकी आँखों की रौशनी लौट आएगी।” 13 मगर हनन्याह ने जवाब दिया: “प्रभु, मैंने इस आदमी के बारे में बहुतों से सुना है कि उसने यरूशलेम में तेरे पवित्र जनों को कैसी-कैसी पीड़ाएँ दी हैं। 14 और अब उसके पास प्रधान याजकों की तरफ से यह अधिकार है कि जितने तेरा नाम लेते हैं, उन सबको बंदी बना ले।” 15 मगर प्रभु ने उससे कहा: “तू रवाना हो जा, क्योंकि यह आदमी मेरा चुना हुआ पात्र है जो गैर-यहूदियों, साथ ही राजाओं और इस्राएलियों के पास मेरा नाम ले जाएगा। 16 मैं उसे साफ-साफ दिखाऊँगा कि उसे मेरे नाम की खातिर कितने दुःख सहने होंगे।”

17 तब हनन्याह चल पड़ा और उस घर में गया जहाँ शाऊल था। उसने अपने हाथ शाऊल पर रखे और कहा: “शाऊल, मेरे भाई, प्रभु यीशु जिसने उस सड़क पर तुझे दर्शन दिया जहाँ से तू आ रहा था, उसी ने मुझे तेरे पास भेजा है ताकि तेरी आँखों की रौशनी लौट आए और तू पवित्र शक्‍ति से भर जाए।” 18 और उसी घड़ी शाऊल की आँखों से छिलके-से गिरे और वह फिर से देखने लगा; और उसने उठकर बपतिस्मा लिया। 19 उसने खाना खाया और ताकत पायी।

शाऊल कुछ दिनों तक दमिश्‍क में चेलों के साथ रहा। 20 वहाँ उसने बिना वक्‍त गँवाए सभा-घरों में यीशु का प्रचार करना शुरू कर दिया कि यही परमेश्‍वर का बेटा है। 21 मगर जितनों ने भी सुना वे सब दंग रह गए और कहने लगे: “क्या यह वही आदमी नहीं जो यरूशलेम में यीशु के चेलों को* तबाह करता था और यहाँ भी इसी इरादे से आया था कि उन्हें गिरफ्तार कर प्रधान याजकों के पास ले जाए?” 22 दूसरी तरफ, शाऊल और भी प्रभावशाली बनता गया। वह दमिश्‍क में रहनेवाले यहूदियों के सामने तर्कसंगत तरीके से यह साबित करता था कि यीशु ही मसीह है और इस तरह वह सबकी ज़बान बंद कर देता था।

23 इस तरह कई दिन गुज़र जाने के बाद, यहूदियों ने उसे मार डालने के लिए आपस में सलाह की। 24 मगर शाऊल को उनकी साज़िश का पता चल गया। यहूदी उसे मार डालने के लिए दिन-रात शहर के फाटकों पर भी घात लगाए रहते थे। 25 इसलिए उसके चेलों ने उसे एक बड़े टोकरे में बिठाकर, रात के वक्‍त शहर की दीवार में बनी एक खिड़की से नीचे उतार दिया।

26 जब वह यरूशलेम पहुँचा तो उसने चेलों से मिलने की कोशिश की, मगर वे सभी उससे डरते थे क्योंकि उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि वह भी एक चेला बन चुका है। 27 इसलिए बरनबास उसकी मदद के लिए आगे आया और उसे प्रेषितों के पास ले गया। बरनबास ने उन्हें पूरा ब्यौरा देकर बताया कि कैसे शाऊल ने सड़क पर प्रभु को देखा था और यह भी कि प्रभु ने उससे बात की थी, और कैसे उसने दमिश्‍क में निडर होकर यीशु के नाम से प्रचार किया था। 28 और शाऊल यरूशलेम में चेलों के साथ-साथ रहा और खुलेआम आता-जाता था और प्रभु के नाम से निडर होकर बात करता था। 29 साथ ही, वह यूनानी बोलनेवाले यहूदियों से बातचीत और बहस किया करता था। मगर इन्होंने उसे खत्म करने की कोशिश की। 30 जब भाइयों ने यह भाँप लिया, तो वे उसे कैसरिया ले आए और वहाँ से उसे तरसुस भेज दिया।

31 इसके बाद, सारे यहूदिया, गलील और सामरिया में मंडली के लिए शांति का दौर शुरू हुआ और वह विश्‍वास में मज़बूत होती गयी। और मंडली यहोवा का भय मानते हुए और पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाले दिलासे से हिम्मत पाती रही और उसमें बढ़ोतरी होती गयी।

32 जब पतरस सब जगहों का दौरा कर रहा था, तो वह लुद्दा शहर में रहनेवाले पवित्र जनों के पास भी आया। 33 वहाँ उसे ऐनियास नाम का एक आदमी मिला, जो लकवे का मारा होने की वजह से आठ साल से खाट पर पड़ा था। 34 पतरस ने उससे कहा: “ऐनियास, यीशु मसीह तुझे चंगा करता है। उठ और अपना बिस्तर ठीक कर।” और वह फौरन उठ खड़ा हुआ। 35 और लुद्दा और शारोन के मैदानी इलाके में रहनेवाले सभी लोगों ने उसे देखा और वे प्रभु की तरफ फिर गए।

36 याफा शहर में तबीता नाम की एक शिष्या थी जिसके नाम का यूनानी में मतलब है दोरकास यानी हिरणी। वह बहुत-से भले काम करती और दान दिया करती थी। 37 मगर उन दिनों वह बीमार पड़ गयी और मर गयी। तब उन्होंने उसे नहलाकर ऊपर के एक कमरे में रखा। 38 क्योंकि लुद्दा, याफा के पास ही था, इसलिए जब चेलों ने सुना कि पतरस लुद्दा शहर में है, तो उन्होंने दो आदमियों को भेजकर उससे बिनती की: “हमारे पास आने में देर न कर।” 39 तब पतरस उठकर उनके साथ गया। और जब वह याफा पहुँचा तो वे उसे ऊपरी कमरे में ले गए; और सारी विधवाएँ रोती हुई उसके पास आयीं और उसे वे कुरते और कपड़े दिखाने लगीं जो दोरकास उनके लिए बनाया करती थी। 40 मगर पतरस ने सबको बाहर कर दिया और घुटने टेककर प्रार्थना की और मुरदे की तरफ मुड़कर कहा: “तबीता, उठ!” उस स्त्री ने अपनी आँखें खोलीं और जैसे ही उसने पतरस को देखा, वह उठ बैठी। 41 पतरस ने अपना हाथ बढ़ाकर उसे उठाया और पवित्र जनों और विधवाओं को बुलाकर उसे जीती-जागती उन्हें सौंप दिया। 42 यह बात पूरे याफा शहर में फैल गयी और बहुत-से लोग प्रभु में विश्‍वासी बन गए। 43 पतरस काफी दिनों तक याफा में ही शमौन नाम के एक आदमी के यहाँ रहा जो चमड़े का काम करता था।

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