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    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 54

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    गवाही दो, पेज 123

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 54

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    1/1/1991, पेज 24

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    1/15/2012, पेज 9-10

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    महान शिक्षक, पेज 95

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फुटनोट

  • *

    प्रेषि 16:19 बाज़ार का वह चौक, जहाँ लोग जमा होते थे।

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    गवाही दो, पेज 129

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    राज-सेवा,

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    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/1999, पेज 27-28

    1/1/1991, पेज 26

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    पवित्र शास्त्र से जवाब जानिए, लेख 110

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    3/2018, पेज 10

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    9/15/1996, पेज 28

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रेषितों 16:1-40

प्रेषितों

16 फिर पौलुस दिरबे और लुस्त्रा शहर भी पहुँचा। और देखो! वहाँ तीमुथियुस नाम का एक चेला था, जो एक विश्‍वासी यहूदिन का बेटा था मगर उसका पिता यूनानी था। 2 लुस्त्रा और इकुनियुम के भाई तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे। 3 इसलिए, पौलुस ने यह इच्छा ज़ाहिर की कि वह तीमुथियुस को अपने साथ सफर पर ले जाना चाहता है। उसने तीमुथियुस को अपने साथ लिया और वह जिन इलाकों में जानेवाला था वहाँ रहनेवाले यहूदियों की वजह से तीमुथियुस का खतना किया, क्योंकि हर कोई जानता था कि उसका पिता यूनानी था। 4 इसके बाद अपने सफर में वे जिन-जिन शहरों से गुज़रे वहाँ वे उन आदेशों को मानने के बारे में बताते गए जिनका फैसला यरूशलेम में मौजूद प्रेषितों और बुज़ुर्गों ने किया था। 5 नतीजा यह हुआ कि मंडलियाँ विश्‍वास में लगातार मज़बूत होती रहीं और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती चली गयी।

6 इसके बाद वे फ्रूगिया और गलातिया के देश से गुज़रे, क्योंकि पवित्र शक्‍ति ने उन्हें एशिया ज़िले में वचन सुनाने से मना किया था। 7 इसके बाद, उन्होंने मूसिया पहुँचकर बितूनिया प्रांत में जाने की कोशिश की, मगर यीशु ने पवित्र शक्‍ति के ज़रिए उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी। 8 इसलिए वे मूसिया से होकर त्रोआस शहर पहुँचे। 9 और रात के वक्‍त पौलुस को एक दर्शन दिखायी दिया। उसने देखा कि मकिदुनिया का एक आदमी खड़ा हुआ उससे यह बिनती कर रहा है: “इस पार मकिदुनिया आकर हमारी मदद कर।” 10 जैसे ही उसने यह दर्शन देखा, हम लोगों ने यह समझकर मकिदुनिया जाने का इरादा किया कि परमेश्‍वर ने हमें वहाँ के लोगों को खुशखबरी सुनाने का बुलावा दिया है।

11 इसलिए हम त्रोआस से जहाज़ पर समुद्र के रास्ते चल पड़े और सीधे समोथ्राके द्वीप पहुँचे, और अगले दिन नियापुलिस शहर। 12 वहाँ से हम फिलिप्पी गए जो मकिदुनिया के उस ज़िले का सबसे जाना-माना शहर और एक रोमी उपनिवेश बस्ती है। हम इस शहर में कुछ दिन रहे। 13 और सब्त के दिन हम यह सोचकर शहर के फाटक के बाहर नदी किनारे गए कि वहाँ प्रार्थना करने की कोई जगह होगी, और जो स्त्रियाँ वहाँ जमा थीं हम बैठकर उन्हें प्रचार करने लगे। 14 वहाँ थुआतीरा शहर की लुदिया नाम की एक स्त्री भी थी, जो बैंजनी कपड़े* बेचती थी और परमेश्‍वर की उपासक थी। जब वह सुन रही थी तब यहोवा ने उसके दिल के द्वार पूरी तरह खोल दिए कि वह पौलुस की कही बातों पर ध्यान दे। 15 नतीजा यह हुआ कि लुदिया और उसके घराने ने बपतिस्मा लिया। फिर उसने हमसे बिनती की: “अगर तुम वाकई मानते हो कि मैं यहोवा की वफादार हूँ, तो मेरे घर आकर ठहरो।” और वह हमें जैसे-तैसे मनाकर अपने घर ले ही गयी।

16 फिर जब हम प्रार्थना की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली जिसमें भविष्य बतानेवाला दुष्ट स्वर्गदूत समाया था। वह दासी भविष्य बताया करती थी जिससे उसके मालिकों की बहुत कमाई होती थी। 17 पौलुस और हम जहाँ कहीं भी जाते, यह लड़की हमारे पीछे-पीछे आकर यह चिल्लाती थी: “ये आदमी परमप्रधान परमेश्‍वर के दास हैं, जो तुम्हें उद्धार के मार्ग का संदेश सुना रहे हैं।” 18 वह बहुत दिनों तक ऐसा करती रही। आखिरकार, पौलुस इससे तंग आ गया और उसने मुड़कर उस दासी में समाए दुष्ट दूत से कहा: “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से हुक्म देता हूँ, उससे बाहर निकल जा।” और उसी घड़ी वह बाहर निकल गया।

19 जब उस दासी के मालिकों ने देखा कि उनकी कमाई का ज़रिया खत्म हो चुका है, तो उन्होंने पौलुस और सीलास को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर चौक* में अधिकारियों के सामने ले आए। 20 वे उन्हें नगर-अधिकारियों के पास ले गए और उन पर यह इलज़ाम लगाया: “ये आदमी यहूदी हैं और हमारे शहर में बहुत गड़बड़ी मचा रहे हैं। 21 ये ऐसे रिवाज़ों का प्रचार कर रहे हैं जिन्हें अपनाने या मानने की हमें इजाज़त नहीं है, क्योंकि हम रोमी नागरिक हैं।” 22 और लोगों की भीड़ इकट्ठी होकर उनके खिलाफ चढ़ आयी और नगर-अधिकारियों ने पौलुस और सीलास के कपड़े फाड़ दिए और उन्हें बेंत लगाने का हुक्म दिया। 23 जब वे उन्हें बेंतों से बहुत मार चुके, तो उन्हें कैदखाने में डलवा दिया और जेलर को हुक्म दिया कि उन पर सख्त पहरा रखे। 24 ऐसा कड़ा हुक्म पाने की वजह से जेलर ने उन्हें अंदर की कोठरी में डाल दिया और उनके पाँव काठ में कस दिए।

25 मगर आधी रात के वक्‍त, पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और भजन गाकर परमेश्‍वर का गुणगान कर रहे थे; हाँ, कैदी उनकी सुन रहे थे। 26 तभी अचानक एक बड़ा भूकंप हुआ जिससे कैदखाने की नींव तक हिल गयी। इतना ही नहीं, कैदखाने के सारे दरवाज़े उसी घड़ी खुल गए और सबकी ज़ंजीरें खुलकर गिर पड़ीं। 27 तब जेलर जाग उठा और कैदखाने के दरवाज़े खुले देखकर सोचा कि कैदी भाग गए हैं, इसलिए उसने अपनी तलवार खींची और अपनी जान लेनेवाला था। 28 मगर पौलुस ने ऊँची आवाज़ में पुकारकर कहा: “अपनी जान न ले, क्योंकि हम सब यहीं हैं!” 29 तब जेलर ने दीपक मँगवाए और लपककर अंदर आया और थर-थर काँपता हुआ पौलुस और सीलास के पैरों पर गिर पड़ा। 30 वह उन्हें बाहर ले आया और उनसे कहा: “साहिबो, उद्धार पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?” 31 उन्होंने कहा: “प्रभु यीशु पर विश्‍वास कर, तो तू और तेरा सारा घराना भी उद्धार पाएगा।” 32 पौलुस और सीलास ने उसे और उसके घर के सभी लोगों को यहोवा का वचन सुनाया। 33 और जेलर रात को उसी घड़ी उन्हें अपने साथ ले गया और उनके घाव धोए, तब उसने और उसके घराने के सब लोगों ने बिना देर किए बपतिस्मा लिया। 34 फिर वह उन्हें अपने घर ले आया और उनके सामने मेज़ सजायी और उसने अपने पूरे घराने के साथ इस बात पर बड़ा आनंद मनाया कि अब वह परमेश्‍वर का विश्‍वासी बन गया है।

35 जब दिन निकला, तो नगर-अधिकारियों ने अपने प्यादों के हाथ यह संदेश भेजा: “उन आदमियों को रिहा कर दो।” 36 तब जेलर ने उनकी बात पौलुस को बतायी: “नगर-अधिकारियों ने इस संदेश के साथ आदमी भेजे हैं कि तुम दोनों को रिहा कर दिया जाए। इसलिए अब तुम बाहर निकलकर शांति से अपने रास्ते चले जाओ।” 37 मगर पौलुस ने उनसे कहा: “पहले तो उन्होंने हमें जो रोमी नागरिक हैं, बिना कोई जुर्म साबित किए सरेआम पिटवाया और कैदखाने में डाल दिया और अब चुपचाप यहाँ से निकल जाने के लिए कह रहे हैं? नहीं, ऐसा हरगिज़ नहीं होगा! उन्हें खुद आकर हमें यहाँ से बाहर निकालना होगा।” 38 प्यादों ने जाकर ये बातें नगर-अधिकारियों को बतायीं। जब अधिकारियों ने सुना कि ये आदमी रोमी नागरिक हैं, तो वे बहुत डर गए। 39 इसलिए वे आए और उन्हें मनाने लगे, और उन्हें बाहर लाकर उनसे गुज़ारिश की कि वे शहर छोड़कर चले जाएँ। 40 मगर वे कैदखाने से निकलकर लुदिया के घर गए और जब वे भाइयों से मिले, तो उनकी हिम्मत बँधायी और फिर वहाँ से विदा हो गए।

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