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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रेषितों 19:1-41

प्रेषितों

19 जिस दौरान अपुल्लोस कुरिंथ में था, पौलुस तटीय इलाकों से दूर अंदर के इलाकों का दौरा करता हुआ इफिसुस शहर आया और वहाँ उसने कुछ चेले पाए। 2 उसने उनसे पूछा: “जब तुम विश्‍वासी बने तब क्या तुमने पवित्र शक्‍ति पायी?” उन्होंने कहा: “हमने इस बारे में कभी कुछ नहीं सुना कि पवित्र शक्‍ति कैसे पायी जाती है।” 3 तब पौलुस ने कहा: “तो फिर, तुमने किस तरह का बपतिस्मा पाया?” उन्होंने कहा: “यूहन्‍ना का।” 4 पौलुस ने कहा: “यूहन्‍ना ने पश्‍चाताप दिखानेवाला बपतिस्मा दिया था और लोगों को बताया कि उसके बाद जो आनेवाला है उस पर, हाँ यीशु पर विश्‍वास करें।” 5 यह सुनने पर, उन्होंने प्रभु यीशु के नाम से बपतिस्मा लिया। 6 और जब पौलुस ने उन पर अपने हाथ रखे, तो उन पर पवित्र शक्‍ति आयी और वे अलग-अलग भाषाओं में बोलने और भविष्यवाणी करने लगे। 7 ये करीब बारह आदमी थे।

8 फिर पौलुस तीन महीने तक इफिसुस के सभा-घर में जा-जाकर निडरता से बोलता रहा और परमेश्‍वर के राज के बारे में भाषण देकर कायल करता रहा। 9 मगर जब कुछ लोगों ने खुद को कठोर कर लिया और विश्‍वास नहीं किया, और लोगों के सामने प्रभु के मार्ग को बदनाम करने लगे, तो उसने उन्हें छोड़ दिया और चेलों को उनसे अलग कर लिया। वह हर दिन तरन्‍नुस के स्कूल के सभा-भवन में भाषण दिया करता था। 10 ऐसा दो साल तक चलता रहा, और इससे एशिया ज़िले में रहनेवाले हर किसी ने, चाहे वह यहूदी हो या यूनानी, प्रभु का वचन सुना।

11 परमेश्‍वर, पौलुस के हाथों बड़े-बड़े शक्‍तिशाली काम करवाता रहा। 12 यहाँ तक कि उसके शरीर को छूनेवाले कपड़े और रुमाल बीमारों के पास ले जाए जाते थे और उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती थीं और जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे वे उनमें से बाहर निकल जाते थे। 13 मगर यहूदियों में से कुछ लोग ऐसे थे जो जगह-जगह घूमकर दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालने का काम किया करते थे। उन्होंने भी कोशिश की कि जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे उन पर प्रभु यीशु का नाम लेकर यह कहें: “मैं तुम्हें उस यीशु के नाम से हुक्म देता हूँ जिसका प्रचार पौलुस करता है।” 14 स्कीवा नाम के एक यहूदी प्रधान याजक के सात बेटे ऐसा ही कहते हुए एक आदमी में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को निकालने की कोशिश कर रहे थे। 15 मगर उस दुष्ट स्वर्गदूत ने उन्हें जवाब दिया: “मैं यीशु को भी जानता हूँ और पौलुस को भी; मगर तुम कौन हो?” 16 यह कहकर वह आदमी उन पर झपटा और एक-एक कर उन सातों को धर दबोचा और उन पर इस कदर हावी हो गया कि वे नंगे और ज़ख्मी हालत में उस घर से भागे। 17 यह बात इफिसुस में रहनेवाले यहूदियों और यूनानियों, सबको पता चली; और उन सब पर डर छा गया और प्रभु यीशु का नाम महिमा पाता गया। 18 और विश्‍वास करनेवालों में से बहुत-से आते थे और वे सरेआम अपने बुरे काम मान लिया करते थे और इनके बारे में खुलकर बताया करते थे। 19 वाकई, बहुत-से लोग जो जादूगरी की विद्या में लगे हुए थे, अपनी-अपनी पोथियाँ ले आए और सबके सामने उन्हें जला दिया। और जब उन्होंने उनका हिसाब लगाया तो उनकी कीमत पचास हज़ार चाँदी के सिक्के निकली। 20 इस तरह बड़े शक्‍तिशाली तरीके से यहोवा का वचन बढ़ता और प्रबल होता गया।

21 यह सब होने के बाद, पौलुस ने अपने मन में ठाना कि वह मकिदुनिया और अखया का दौरा करने के बाद यरूशलेम के सफर पर निकलेगा। उसने कहा: “वहाँ पहुँचने के बाद मुझे रोम भी जाना होगा।” 22 और उसने अपनी सेवा करनेवालों में से दो भाइयों यानी तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया भेजा, मगर वह खुद कुछ वक्‍त के लिए एशिया ज़िले* में रुका रहा।

23 उसी दौरान, इफिसुस में प्रभु के मार्ग को लेकर बड़ा हुल्लड़ मचा। 24 वहाँ देमेत्रियुस नाम का एक आदमी था, जो चाँदी का काम करनेवाला सुनार था। वह अरतिमिस के मंदिर की चाँदी की प्रतिमाएँ बनवाकर कारीगरों का बहुत मुनाफा करवाता था। 25 उसने इन कारीगरों को और ऐसा ही काम करनेवाले दूसरे लोगों को इकट्ठा किया और उनसे कहा: “लोगो, तुम अच्छी तरह जानते हो कि इस कारोबार से हमारी कितनी कमाई होती है। 26 और तुमने यह भी देखा और सुना है कि कैसे न सिर्फ इफिसुस में, बल्कि एशिया के करीब-करीब पूरे ज़िले में इस पौलुस ने भारी तादाद में लोगों को कायल किया है और उन्हें यह कहकर दूसरे मत की तरफ फेर दिया है कि जो हाथ के बनाए हुए हैं वे ईश्‍वर हैं ही नहीं। 27 और इससे न सिर्फ इस बात का खतरा है कि हमारे इस पेशे की बदनामी होगी बल्कि यह भी कि महान देवी अरतिमिस के मंदिर की शान खत्म हो जाएगी। और जिस देवी को एशिया का सारा ज़िला और सारा जगत पूजता है, उसका ऐश्‍वर्य मिट्टी में मिल जाएगा।” 28 यह सुनने पर लोग आग-बबूला हो उठे और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे: “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!”

29 तब शहर में बड़ा हुल्लड़ मच गया और वे सब इकट्ठे रंगशाला में घुस गए और अपने साथ मकिदुनिया के रहनेवाले गयुस और अरिस्तरखुस को ज़बरदस्ती ले गए। ये दोनों पौलुस के सफरी साथी थे। 30 पौलुस तो चाहता था कि वह खुद अंदर लोगों के सामने जाए, मगर चेलों ने उसे जाने नहीं दिया। 31 यहाँ तक कि त्योहारों और खेलों के कुछ प्रबंधकों ने, जो पौलुस का भला चाहते थे, उसे पैगाम भेजा और यह बिनती की कि वह रंगशाला में जाने का जोखिम न उठाए। 32 और ऐसा हुआ कि भीड़ में कोई कुछ चिल्ला रहा था तो कोई कुछ; क्योंकि सभा में गड़बड़ी मची हुई थी और उनमें से ज़्यादातर को यह पता नहीं था कि आखिर वे क्यों जमा हुए हैं। 33 इसलिए भीड़ में से कुछ लोगों ने मिलकर सिकंदर को आगे कर दिया और यहूदियों ने उसे सामने की तरफ धकेल दिया; और सिकंदर ने अपने हाथ से इशारा किया और लोगों को अपनी तरफ से सफाई देनी चाही। 34 मगर जब उन्होंने उसे पहचान लिया कि वह एक यहूदी है, तो वे सब एक साथ ललकार उठे और दो घंटे तक चिल्लाते रहे: “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!”

35 आखिर में नगर-प्रमुख ने भीड़ को शांत किया और उनसे कहा: “इफिसुस के लोगो, इस दुनिया में ऐसा कौन है जो यह न जानता हो कि इफिसियों का शहर, महान अरतिमिस के मंदिर और आकाश से गिरी मूरत का रखवाला है? 36 इसलिए जबकि इन बातों को कोई काट ही नहीं सकता, तो यह ज़रूरी है कि तुम शांत रहो और जल्दबाज़ी में कोई कदम न उठाओ। 37 क्योंकि तुम ऐसे आदमियों को पकड़ लाए हो, जो न तो मंदिरों के लुटेरे हैं, न ही हमारी देवी को बदनाम करनेवाले हैं। 38 इसलिए अगर देमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों का किसी के साथ कोई झगड़ा है, तो ऐसे मामलों के लिए तय दिनों पर अदालत लगती है और राज्यपाल भी हैं। वे वहाँ जाकर एक-दूसरे के खिलाफ इलज़ाम लगाएँ। 39 लेकिन, अगर इनके खिलाफ तुम्हारे दूसरे कोई इलज़ाम हैं, तो इनका फैसला जनता की सभा में किया जाना चाहिए। 40 क्योंकि आज के इस मामले को लेकर हम पर देशद्रोह का इलज़ाम लगने का खतरा है, इसलिए कि हमारे पास ऐसी एक भी वजह नहीं कि हम हुल्लड़ मचानेवाली ऐसी भीड़ को इकट्ठा होने दें।” 41 जब वह ये बातें कह चुका, तब उसने सभा बरखास्त कर दी।

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