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2 कुरिंथियों 2:4

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    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/1996, पेज 11

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    6/15/2010, पेज 13

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    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2006, पेज 29

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    12/1/2006, पेज 17

    1/15/2006, पेज 29

    8/15/2002, पेज 26-28

    10/1/1998, पेज 18

2 कुरिंथियों 2:12

फुटनोट

  • *

    2कुरिं 2:12 शाब्दिक, “मेरे लिए एक दरवाज़ा खोला गया।”

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    गवाही दो, पेज 166

    प्रहरीदुर्ग,

    11/15/1998, पेज 30

2 कुरिंथियों 2:13

फुटनोट

  • *

    2कुरिं 2:13 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

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  • खोजबीन गाइड

    गवाही दो, पेज 166

    प्रहरीदुर्ग,

    11/15/1998, पेज 30

2 कुरिंथियों 2:14

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    4/15/2011, पेज 28

    9/1/2005, पेज 31

2 कुरिंथियों 2:15

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    4/15/2011, पेज 28

    7/15/2008, पेज 28

    9/1/2005, पेज 31

2 कुरिंथियों 2:16

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    प्रहरीदुर्ग,

    4/15/2011, पेज 28

    7/15/2008, पेज 28

    9/1/2005, पेज 31

2 कुरिंथियों 2:17

फुटनोट

  • *

    2कुरिं 2:17 शाब्दिक, “फेरीवाले।”

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    प्रहरीदुर्ग,

    7/1/1988, पेज 19

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
2 कुरिंथियों 2:1-17

2 कुरिंथियों

2 मैंने यह फैसला किया है कि जब मैं दोबारा तुम्हारे पास आऊँ, तो तुम्हें उदास न करूँ। 2 इसलिए कि अगर मैं तुम्हें उदास कर दूँ तो मुझे कौन खुश करेगा, सिवा उसके जिसे मैंने उदास किया है? 3 मैंने तुम्हें यह सब लिखा है, ताकि जब मैं आऊँ तो जिनसे मुझे खुशी मिलनी चाहिए उनकी वजह से मैं उदास न हो जाऊँ, क्योंकि मुझे तुम सब पर भरोसा है कि जिन बातों से मुझे खुशी मिलती है उन्हीं बातों से तुम्हें भी खुशी मिलती है। 4 मैंने बड़ी तकलीफ और दिल की तड़प के साथ आँसू बहा-बहाकर तुम्हें लिखा, इसलिए नहीं कि तुम उदास हो जाओ बल्कि इसलिए कि तुम मेरे उस प्यार को जान सको जो मुझे खास तौर पर तुमसे है।

5 अब अगर किसी ने उदास किया है, तो उसने मुझे नहीं बल्कि तुम सबको कुछ हद तक उदास किया है, हालाँकि मैं बहुत कड़े शब्द इस्तेमाल नहीं करना चाहता। 6 उस आदमी को ज़्यादातर लोगों ने जो ताड़ना दी है वह काफी है। 7 इसलिए अब तुम्हें उसे कृपा दिखाते हुए माफ करना चाहिए और उसे दिलासा देना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि वह आदमी हद-से-ज़्यादा उदासी में डूब जाए। 8 इसलिए मैं तुम्हें उकसाता हूँ कि तुम उस आदमी को अपने प्यार का सबूत दो। 9 मैं तुम्हें यह चिट्ठी इसलिए भी लिख रहा हूँ कि मैं इस बात का सबूत पा सकूँ कि तुम सब बातों में आज्ञा मानते हो कि नहीं। 10 तुम जिस किसी पर कृपा दिखाते हुए उसका कोई अपराध माफ करते हो, मैं भी उसे माफ करता हूँ। दरअसल, जहाँ तक मेरी बात है, अगर मैंने कृपा दिखाते हुए कोई अपराध माफ किया है, तो जो कुछ मैंने माफ किया है वह मसीह के सामने तुम्हारी खातिर किया है, 11 ताकि शैतान हम पर हावी न हो जाए, इसलिए कि हम उसकी चालबाज़ियों से अनजान नहीं।

12 जब मैं मसीह के बारे में खुशखबरी सुनाने त्रोआस पहुँचा और प्रभु का काम और ज़्यादा करने के लिए मुझे एक मौका दिया गया,* 13 तो मेरे भाई तीतुस को वहाँ न पाने की वजह से मेरे जी* को चैन न मिला। तब मैंने वहाँ चेलों से अलविदा कहा और मकिदुनिया के लिए रवाना हो गया।

14 मगर परमेश्‍वर का धन्यवाद हो जो हमेशा हमारे आगे-आगे चलता हुआ हमें जीत के जुलूस में मसीह के संग लिए चलता है और हमारे ज़रिए अपने ज्ञान की सुगंध हर जगह फैलाता है! 15 इसलिए कि परमेश्‍वर के सामने हम, उद्धार की राह पर चलनेवालों और विनाश की राह पर चलनेवालों, दोनों के लिए मसीह के बारे में समाचार की सुगंध हैं, 16 यानी कितनों के लिए मौत की वह गंध जिसका अंजाम मौत होता है और कितनों के लिए जीवन की वह सुगंध जिसका अंजाम ज़िंदगी होता है। और कौन ऐसी सेवा के लिए ज़रूरी योग्यता रखता है? 17 हम रखते हैं, इसलिए कि हम परमेश्‍वर के वचन का सौदा करनेवाले* नहीं, जैसा कितने ही करते हैं, मगर हम मन की सीधाई से, हाँ, परमेश्‍वर की तरफ से भेजे हुओं के नाते, परमेश्‍वर को हाज़िर जानकर मसीह के संग बोलते हैं।

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