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प्रेषितों 25:1

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    प्रेषि 25:1 यानी, यहूदिया का प्रांत। राज्यपाल का निवास-स्थान कैसरिया में हुआ करता था।

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    गवाही दो, पेज 196

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    गवाही दो, पेज 197-198

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2001, पेज 23-24

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    गवाही दो, पेज 198

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2001, पेज 23-24

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    गवाही दो, पेज 198

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    9/2016, पेज 15-16

    प्रहरीदुर्ग,

    5/15/2008, पेज 32

    12/15/2001, पेज 23-24

    6/15/1997, पेज 30-31

    6/1/1991, पेज 10-11

    2/1/1991, पेज 15

प्रेषितों 25:12

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    गवाही दो, पेज 198

प्रेषितों 25:13

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    प्रेषि 25:13 यानी, हेरोदेस अग्रिप्पा द्वित्तीय।

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    गवाही दो, पेज 198, 201

    प्रहरीदुर्ग,

    2/1/1991, पेज 15

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    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2001, पेज 23

प्रेषितों 25:21

फुटनोट

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    प्रेषि 25:21 यह कैसर नीरो की उपाधि थी, जो ऑक्टेवियन के बाद चौथा सम्राट था और जिसने पहली बार यह उपाधि पायी थी।

प्रेषितों 25:23

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    प्रहरीदुर्ग,

    9/1/1998, पेज 30

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रेषितों 25:1-27

प्रेषितों

25 प्रांत* की सत्ता सँभालने के तीन दिन बाद, फेस्तुस कैसरिया से यरूशलेम गया। 2 तब प्रधान याजकों और यहूदियों के नामी लोगों ने उसके सामने पौलुस के खिलाफ अपने इलज़ाम पेश किए। और वे उससे 3 बिनती करने लगे कि फेस्तुस, उस आदमी यानी पौलुस के खिलाफ उनकी तरफदारी करे और उसे यरूशलेम आने के लिए बुलवा भेजे, क्योंकि यहूदी रास्ते में ही पौलुस को मार डालने के लिए घात लगाए बैठे थे। 4 मगर फेस्तुस ने जवाब दिया कि पौलुस को कैसरिया में ही हिरासत में रखा जाना है और मैं खुद भी बहुत जल्द वहाँ जानेवाला हूँ। 5 उसने कहा: “इसलिए आप लोगों के जो बड़े अधिकारी हैं वे मेरे साथ चलें और इस आदमी ने अगर कुछ बुरा किया है, तो उस पर इलज़ाम लगाएँ।”

6 जब फेस्तुस उनके बीच आठ-दस दिन बिता चुका, तो वह कैसरिया आया और अगले दिन न्याय-आसन पर बैठा। उसने हुक्म दिया कि पौलुस को लाया जाए। 7 जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे वे उसे घेरकर खड़े हो गए और उस पर कई गंभीर इलज़ाम लगाने लगे जिनका वे कोई सबूत नहीं दे सकते थे।

8 मगर पौलुस ने अपने बचाव में कहा: “मैंने किसी के खिलाफ कोई पाप नहीं किया है, न यहूदियों के कानून के खिलाफ, न मंदिर के खिलाफ और न ही सम्राट के खिलाफ।” 9 फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने के इरादे से पौलुस को जवाब दिया: “तो क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है ताकि वहाँ मेरे सामने इन मामलों के बारे में तेरा न्याय किया जाए?” 10 मगर पौलुस ने कहा: “मैं सम्राट के न्याय-आसन के सामने खड़ा हूँ, मेरा न्याय यहीं किया जाना चाहिए। मैंने यहूदियों के साथ कुछ बुरा नहीं किया है, जैसा कि तुझे खुद अच्छी तरह मालूम हो रहा है। 11 अगर मैं वाकई अपराधी हूँ और मैंने मौत की सज़ा पाने लायक कोई अपराध किया है, तो मैं मरने से पीछे नहीं हटता; लेकिन दूसरी तरफ, अगर उन बातों में से एक भी सच नहीं है जिनका ये लोग मुझ पर इलज़ाम लगा रहे हैं, तो कोई भी आदमी उन्हें खुश करने के इरादे से मुझे उनके हवाले नहीं सौंप सकता। मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!” 12 तब फेस्तुस ने अपने सलाहकारों की सभा के साथ मशविरा करने के बाद उसे जवाब दिया: “तू ने सम्राट से फरियाद की है, तू सम्राट के पास जाएगा।”

13 कुछ दिन बीतने के बाद, राजा अग्रिप्पा* और बिरनीके, फेस्तुस का अभिवादन करने के लिए उससे मिलने कैसरिया आए। 14 उनके वहाँ कई दिन रहने के दौरान, फेस्तुस ने पौलुस का मामला राजा के सामने रखा और कहा:

“एक आदमी है जिसे फेलिक्स कैद में छोड़ गया है, 15 और जब मैं यरूशलेम में था तो प्रधान याजकों और यहूदियों के बाकी बुज़ुर्गों ने इसके बारे में मुझे जानकारी दी, और इसे सज़ा सुनाने के लिए मुझसे बिनती की। 16 मगर मैंने उन्हें यह जवाब दिया कि यह रोमी तरीका नहीं कि किसी मुलज़िम को उसके मुद्दइयों के सामने लाकर अपने बचाव में बोलने का मौका दिए बगैर उनके हवाले किया जाए ताकि वे खुश हों। 17 इसलिए जब वे यहाँ इकट्ठा हुए, तो मैं बिना देर किए अगले ही दिन न्याय-आसन पर बैठा और उस आदमी को लाने का हुक्म दिया। 18 जब मुद्दई खड़े हुए तो उन्होंने उस पर ऐसे किसी भी बुरे काम का इलज़ाम नहीं लगाया जिसकी मैंने उम्मीद की थी। 19 उनका झगड़ा बस अपने ईश्‍वर की उपासना और किसी यीशु को लेकर था, जो मर चुका है मगर जिसके बारे में पौलुस दावा करता रहा कि वह ज़िंदा है। 20 क्योंकि मुझे यह सूझ नहीं रहा था कि इस मामले का क्या करूँ, इसलिए मैंने उससे पूछा कि क्या वह यरूशलेम जाना चाहेगा ताकि वहाँ इन मामलों को लेकर उसका न्याय किया जाए। 21 मगर जब पौलुस ने फरियाद की कि उसका फैसला महामहिम* के हाथों हो और तब तक उसे वहीं पहरे में रखा जाए, तो मैंने हुक्म दिया कि जब तक मैं उसे सम्राट के पास न भेजूँ तब तक उसे वहीं रखा जाए।”

22 इस पर अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा: “मैं खुद इस आदमी की बात सुनना चाहूँगा।” फेस्तुस ने कहा: “तू कल उसे सुन सकेगा।” 23 इसलिए अगले दिन, अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम के साथ दरबार में आए और उनके साथ सेनापति और शहर के जाने-माने लोग भी वहाँ आए। और जब फेस्तुस ने हुक्म दिया, तो पौलुस को वहाँ लाया गया। 24 और फेस्तुस ने कहा: “राजा अग्रिप्पा और यहाँ मौजूद सभी सज्जनो, तुम उस आदमी को देख रहे हो जिसके खिलाफ सारे यहूदियों ने यरूशलेम में और यहाँ भी चिल्ला-चिल्लाकर मुझसे बिनती की है कि यह आदमी ज़िंदा रहने के लायक नहीं है। 25 मगर मैंने जान लिया कि इस आदमी ने ऐसा कुछ नहीं किया है कि इसे मौत की सज़ा दी जाए। इसलिए जब इस आदमी ने खुद महामहिम से फरियाद की, तो मैंने इसे भेजने का फैसला किया। 26 मगर इसके बारे में मेरे पास अपने स्वामी को लिखने लायक कोई पुख्ता बात नहीं है। इसलिए मैं इस आदमी को तुम सबके सामने, खासकर राजा अग्रिप्पा तेरे सामने लाया हूँ, ताकि अदालती जाँच करने के बाद, मुझे इसके बारे में लिखने के लिए कुछ मिल सके। 27 क्योंकि मुझे यह बड़ा अजीब लगता है कि मैं एक कैदी को भेजूँ तो सही, मगर उस पर लगे इलज़ाम न बताऊँ।”

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