2 अगर कोई आदमी यहोवा के लिए एक मन्नत मानता है+ या शपथ खाकर+ किसी चीज़ का त्याग करने की मन्नत मानता है और इस तरह खुद पर बंदिश लगाता है, तो उसे अपने वचन से नहीं मुकरना चाहिए।+ उसने जो भी मन्नत मानी है उसे पूरा करना होगा।+
4 जब-जब तू परमेश्वर से मन्नत माने, उसे पूरा करने में देर न करना+ क्योंकि वह मूर्ख से खुश नहीं होता, जो अपनी मन्नत पूरी नहीं करता।+ तू जो भी मन्नत माने उसे पूरा करना।+
6 ऐसा न हो कि तेरा मुँह तुझसे पाप करवाए+ और तू स्वर्गदूत* के सामने कहे कि मुझसे भूल हो गयी।+ भला तू अपनी बात से सच्चे परमेश्वर को क्यों क्रोध दिलाए और क्यों उसे तेरे काम बिगाड़ने पड़ें?+
33 तुमने यह भी सुना है कि गुज़रे ज़माने के लोगों से कहा गया था, ‘तुम ऐसी शपथ न खाना जिसे तुम पूरा न करो,+ मगर तुम यहोवा* के सामने अपनी मन्नतें पूरी करना।’+