6 मैंने उससे कहा, “हे मेरे परमेश्वर, मैं इतना शर्मिंदा और लज्जित हूँ कि तुझसे बात करने की मुझमें हिम्मत नहीं। क्योंकि हमारे गुनाह बहुत बढ़ गए हैं और हमारा दोष बढ़ते-बढ़ते आसमान तक पहुँच गया है।+
31 उस वक्त तुम याद करोगे कि तुमने कैसे दुष्ट काम किए थे और तुम्हारे काम अच्छे नहीं थे और तब अपने पाप के दोष की वजह से और उन घिनौने कामों की वजह से तुम्हें खुद से घिन हो जाएगी।+