17 तुम मन-ही-मन अपने भाई से नफरत न करना।+ अगर तुम्हारे संगी-साथी ने कोई पाप किया है, तो उसे सुधारने के लिए ज़रूर फटकारना+ ताकि तुम उसके पाप में साझेदार न बनो।
13 अगर किसी के पास दूसरे के खिलाफ शिकायत की कोई वजह है,+ तो भी एक-दूसरे की सहते रहो और एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करते रहो।+ जैसे यहोवा* ने तुम्हें दिल खोलकर माफ किया है, तुम भी वैसा ही करो।+