बैंजनी रंग
यहाँ दिखाया बैंजनी रंग म्यूरेक्स ट्रनक्यूलस (बायीं तरफ) और म्यूरेक्स ब्रैन्डारिस (दायीं तरफ) जैसी सीपियों से निकाला जाता था। ये सीपियाँ 2 से 3 इंच (5 से 8 सें.मी.) लंबी होती हैं। सीपियों के अंदर पाए जानेवाले जीवों की गरदन पर एक छोटी-सी ग्रंथि होती है जिसमें फ्लावर नाम के तरल पदार्थ की सिर्फ एक बूँद होती है। दिखने में यह मलाई जैसा लगता है और गाढ़ा भी होता है, लेकिन धूप और हवा लगने से धीरे-धीरे इसका रंग गहरा बैंजनी या लाल-बैंजनी हो जाता है। ये सीपियाँ, भूमध्य सागर के किनारों पर पायी जाती हैं और जगह के हिसाब से इनके रंग में थोड़ा-बहुत फर्क होता है। बड़ी सीपियों को एक-एक करके तोड़ा जाता था और उनमें से फ्लावर नाम का अनमोल पदार्थ, बड़ी सावधानी से निकाला जाता था, जबकि छोटी सीपियों को एक-साथ ओखली में कूटा जाता था। छोटी-बड़ी सभी सीपियों से बहुत कम पदार्थ मिलता था इसलिए ढेर सारा पदार्थ इकट्ठा करने में काफी मेहनत और समय लगता था। यही वजह है कि इनसे तैयार होनेवाला बैंजनी रंग बहुत महँगा होता था और इस रंग की पोशाक, रईसों और ऊँचे पदवालों की पहचान बन गयी थी।—एस 8:15.
चित्र का श्रेय:
Courtesy of SDC Colour Experience (www.sdc.org.uk)
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