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सजग होइए! ब्रोशर (1984) (gbr-1)
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परमाणु युग के निर्दोष शिकार

ग्वॉम के संवाददाता द्वारा

सोमवार, जुलाई १, १९४६, को हवाई टापू से लगभग २,००० मील (३,२०० कि.मी) दूर, दक्षिण पश्‍चिम के मार्शल टापूओं के बीच, एक बहुत कम जाने हुए प्रवालद्वीप से निकली चमकती हुई समुद्रताल की शान्ति को एक अन्धा कर देनेवाले धमाके ने बिखेर दिया। एक विघटनाभिक छत्रक बादल १० किलोमीटर ऊँचा आकाश में उठा, और बिकनी टापू क्षण भर ही में शान्ति के समय में पहले परमाणु बम की जांच की जगह के लिए प्रसिद्ध हो गयी।

७७५ वर्ग किलामीटर पर फैला हुआ अण्डाकार समुद्रताल के आस पास बहुत से छोटे उष्णकटिबन्धी टापूएँ मिलकर बिकिनी टापू बना है। हिरोशीमा और नागासाकी शहरों की परमाणु बमों के द्वारा किए गए विनाश के पाँच महिने बाद यू.एस सरकार ने बिकिनी टापू को भविष्य में परमाणु परिक्षण के लिए चुना, और इसके बारे में अमेरिका में आम जनता को घोषणा दे दी गई। तथापि बिकिनी के निवासियों को कुछ सप्ताहों के बाद यह बताया गया कि उन्हें वहाँ से हटना पड़ेगा।

१६७ द्वीप निवासियों को अपनी इच्छा के विरुद्ध वहाँ से जाना पड़ा, परन्तु जब उन्हें यह बताया गया, “कि यह परीक्षण सारी मानव जाति की भलाई और सब युद्धों को समाप्त करने के लिए है,” तो उन्होंने इसे मान लिया। बहुत जल्द हज़ारों की संख्या में सैन्य और वैज्ञानिक कर्मचारी, और साथ ही कई सौ जहाज और हवाई जहाज, इस ताड़ से ढंके प्रवालद्वीप के निकट पहुँचने लगे। उसी समय बिकिनी के निवासी बड़ी उदासिनता से अपने घरों को छोड़ने की और एक लम्बे सफर की तैयारी करने लगे, जो अभी तक बहुतों के लिए तो खत्म ही नहीं हुआ है।

बिकिनी के निवासियों को यह बताया गया था कि परीक्षण की समाप्ति पर वे अपने घरों को लौट सकेंगे, इसलिए उन्होंने रौंगरिक प्रवालद्वीप पर बसना पसन्द किया, जो वहाँ से २०० किलोमीटर की दूरी पर था। परन्तु रौंगरिक बिकिनी नहीं था। इस १७ टापूओं के प्रवालद्वीप पर जहाँ पहले कोई नहीं रहता था, सिर्फ १.३ वर्ग किलोमीटर की सुखी भूमि थी, जब कि इस की तुलना में बिकनी पर ६ वर्ग किलामीटर थी। उसकी १४२ वर्ग किलामीटर समुद्रतल बिकिनी की ७७४ वर्ग किलामीटर समुद्रताल के तुलना में कुछ भी नहीं थी। यहाँ पर सिर्फ एक ही कुआँ था वह भी खारा पानी देता था। यहाँ के नारियल भी हल्की किस्म के थे। और बहुत सी किस्म की मछलियाँ जो बिकिनी पर खाने योग्य थीं, रौंगरिक में वह जहरीली थी। वहाँ पहुँच कर अभी दो महीने भी नहीं हुए थे कि बिकिनी के निवासियों ने वापस घर लौटने का माँग किया। यह असम्भव था।

रौंगेलैप प्रवालद्वीप के निवासियों ने जब उन की पीड़ा सुनी तो उनकी मदद करने के लिए लकड़ी की डोंगी पर उन्हें मछली और अनेक प्रकार के भोजन पहुँचाए। परन्तु रौंगरिक की परिस्थिति बिगड़ने लगी। एक विनाशकारी आग ने ३० प्रतिशत उपजाऊ नारियल के पेड़ों को नष्ट कर दिया, जिसके कारण खाने की और कमी हो गई। आनेवाले दो सालों में की गई मेडिकल रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि कर दी कि बिकिनी के निवासी “अकाल से पीड़ित लोग” थे और रौंगरिक को छोड़ने में उन्होंने बहुत “देर लगा दी” थी।

अन्त में वहाँ से भी उन्हें दूसरी बार हटा दिया गया और अस्थायी रूप से क्वाजालिन नौसेना अड्डे में रखा गया। कुछ महीनों के बाद, उन्होंने किलि की तरफ बढ़ने की इच्छा प्रगट की। यह एक एकमात्र टापू था जिसका क्षेत्र फल .८६ किलोमीटर था। परन्तु उसके पक्ष में एक बात थी—यह गैर-आबाद जगह थी। यह क्यों महत्त्वपूर्ण था?

मार्शल टापू प्रवालद्वीप निवासियों के पास अपने समाजिक वर्ग के ज़मीन अधिकारों के अलावा और ज्यादा कुछ नहीं होता है। न ही वे दूसरी जातियों के समान ज़मीन खरीदते या बेचते हैं। क्योंकि ज़मीन और सागर ही से उन्हें अपने लिए आहार मिलता है, इस लिए मार्शल के निवासी दूसरे टापूओं के निवासियों के साथ बसना नहीं चाहते। परन्तु किसी भी आबाद प्रवालद्वीप पर बसकर उन्हें गरीब रिश्‍तेदारों के समान होकर वहाँ के निवासियों की सद्‌भावना पर निर्भर रहना पसन्द नहीं था। इसलिए वे किलि को चले गए।

परन्तु वहाँ पर रहने की अवस्था बहुत ही खराब थी। किलि चारों ओर से संतीर्ण चट्टानों से घेरा हुआ है जो बहुत ही ऊँचाई से गहरे पानी में उतरी हुई है। यद्यपि नारियल की उपज काफी होती है और वर्षा यहाँ बहुत अधिक होती है, समुद्र चट्टान और शंख मछली यहाँ नहीं होती, क्योंकि लहरें सीधी चट्टान पर आकर टकराती हैं। यहाँ छोटी लकड़ी की डोंगी फजूल हैं क्योंकि तुफानी पानी में उन्हें उतारने का कोई साधन नहीं है। व्यापारिक पवन के मौसम में, सागर इतना तुफानी होता है कि सामाग्री पहुँचाने वाली नाव टापू तक पहुँच ही नहीं सकती। बिकिनी के एक निवासी जो अब माजूरो में रहता है ऐसा कहता है: “रौंगरिक और किलि पर जीवन बहुत कठीन था। वह जेलखाने में रहने से भी अधिक बुरा था क्योंकि टापू इतने छोटे थे और वहाँ आहार काफी नहीं था।”

इसी बीच . . .

इस बीच, मार्शल द्वीपों में, ४० द्वीपीका का प्रवालद्वीप टापू, जो एनिवेटाक के नाम से कहलाते हैं, पर भी दृष्टि डाली गई जहाँ पर परमाणू अस्त्र विस्फोट की अतिरिक्‍त परीक्षा की जा सकती थी। इस लिए वहाँ के निवासियों को वहाँ से हटा कर उजेलाँग भेजा गया, जो की २०० किलोमीटर दक्षिण पश्‍चिम की ओर है। अकस्मात्‌, यह टापू भी बिकिनी के निवासियों के द्वारा रहने के लिए चुना गया था, जो यहां पर पहले ही से अपने लिए घर बना रहे थे, तो उस समय उन्हें बिना कोई सूचना दिए हुए, अधिकारियों ने वहां एनीवेटोक़ के निवासियों को भेज दिया। इसके कारण बिकिनी के निवासियों को बहुत ही बुरा लगा।

तब हाइड्रोजन बम आए, जिनका सब से पहला परीक्षण १९५२ में एनीवेटोक में हुआ। एक पूरा टापू और उसके साथ दूसरे दो टापुओं के कुछ हिस्से पूरे रूप से भाप में बदल गए। मार्च १, १९५४ को एक विनाशकारी परीक्षण (जिसे ब्राओ यह नाम दिया गया) बिकिनी में घटित हुई। घोषणा किए हुए हाइड्रोजन बम में यह, उन सब में, सब से बड़ा था, और बिकिनी में पहले गिराए गए ऐटम बम से, ७०० गुणा ज्यादा शक्‍तिशाली था। अंधकर रौशनी की चमक जिस के तुरन्त बाद करोड़ो डिग्री की गर्मी का एक आग का गोला आकाश की तरफ गोली की तरह ४८३ किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार से बढ़ी। कुछ ही मिनिटों में एक विशाल छत्रक-सा बादल ३०,५०० मीटर ऊँचा उठ चुका था।

समुद्रताल कई सौ मील प्रतिघण्टे चलने वाली हवा से उथल पुथल हो चुकी थी। बिकिनी की लाखों करोड़ों टन की समुद्र चट्टानें, टापू और समुद्रताल धूल बन कर हवा में खींच ली गई। ऊँचे स्तर पर चलने वाली हवाएँ १३० किलोमीटर तक अपने साथ विघटनाभिक राख ले गई जो २३ जापानी मच्छुओं पर बर्फ की नाई गिरी जब वे अपनी लकी ड्रेगन नामक नाव में थे। १६० किलोमीटर से अधिक की दूरी पर रौंगरिक और रौंगलेप के प्रवालद्वीपों की आबादी पर—जिनके निवासियों ने बिकिनी के निर्वासित निवासियों को, दया दिखाई थी—रेतिली, विघटनाभिक राख ५ सेंटिमीटर की गहराई तक गिरी। लगभग ४४० किलोमीटर दूर तक यूटिरिक प्रवालद्वीप पर राख कोहरे की तरह गिरी। सब मिलाकर, ११ टापू और तीन प्रवालद्वीपों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा था।

इसके तुरन्त बाद, जापानी मच्छुओं और यूटिरिक और रौंगलिप के निवासियों पर विकिरण का तीव्र प्रभाव प्रगट होने लगा: खुजली, चमड़ी का जलन, मतली और उल्टी। थोड़े ही समय में एक जापानी मच्छुए की मृत्यु हो गई, और आने वाले दो सालों में जापानी सरकार को २० लाख डॉलर का हरजाना बाकी के बीमार दल सदस्यों और टूना मछली के उद्योग के लिए प्राप्त हुआ।

जब परीक्षण खत्म हो चुका, तब तक २३ परमाणु धमाका बिकिनी पर और ४३ एनीवेटोक पर हो चुके थे, जिनका शक्‍ति १८ किलो टन्स से लेकर १५ मेगा टन्स तक था! हालाँकि परिक्षणों के बीच अवकाश था, फिर भी जब परिक्षण शुरु हुआ तो औसतन एक परमाणु परिक्षण प्रत्येक दूसरे दिन होता रहा।

इसके बाद क्या?

परीक्षणों खत्म होने के बाद, सभों ने यह सोचा कि बिकिनी के निवासी अब अपने घरों को लौट सकते हैं। १९६९ में परमाणू शक्‍ति कमिशन की प्राथमिक जाँच के बाद, बिकिनी को सुरक्षित जगह ठहराया गया। सब जाँच किए हुए मलबे को तीन मुख्य स्थानों पर एक मील से कम की दूरी पर समुद्रताल में ड़ालना था। बिकिनी के निवासियों को कहा गया: “वास्तव में विकिरण का प्रभाव अब बिल्कुल नहीं है, और हम पौधों और जानवरों के जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से इसका कोई प्रभाव नहीं पा सकते हैं।” सफाई और फिर से बसाने के काम आठ वर्षिय योजना बताई गई।

परन्तु एक दीर्घ समय का सपना एक दुःस्वप्न में बदल गया। जो हरा भरा टापू उन्होंने छोड़ा था, उसके बदले में उन्होंने प्रवालद्वीप को छिन्‍न-भिन्‍न हुए हालत में पाया जो बेकार झाडियों, थोड़े से पेड़ और सैंकडों टन परीक्षण मलबा से भरा हुआ था। कुछ व्यक्‍ति तो बहुत बूरी तरह रोने लगे। फिर भी, सहायता से उन्होंने फिर नारियल के पेड़ों और फसलों को बोने का काम शुरु किया, और घर भी बनाने लगे।

परन्तु उनकी समस्याएँ अभी खत्म नहीं हुई थीं। १९७२ और १९७५ में किए गए विकिरण-चिकित्सात्मक परीक्षणों ने एक बहुत ही ऊँचे स्तर के विघटनाभिकता दिखाया जो पहले मालूम नहीं हो सका था। कुछ कुओं का पानी बहुत ही ज्यादा विघटनाभिक हो चुका था कि पीने के बिल्कुल लायक नहीं रह गया था। कुछ आहार को खाना मना था। उन के शरीरों में भी ऊंचे स्तर के विघटनाभिकता को पाया गया था। इस लिए, एक बार फिर, बिकिनी के निवासियों को वहाँ से हटना पड़ा और वापस किलि को जाना पड़ा। ५०,००० नारियल के पेड़ और ४० नए घर जो ३० लाख डॉलर के पुनःस्थापन योजना का एक हिस्सा था, त्याग देना पड़ा। अप्रैल १९८३ में बिकिनी में किए जाने वाले वैज्ञानिक अध्ययन से यह प्रगट होता है कि जब तक एक बहुत ही बड़ी मात्रा में वहाँ पर सफाई नहीं की जाती है, तो कम से कम ११० सालों तक वहाँ कोई नहीं रह सकता है।

दूसरे पीड़ित व्यक्‍तियों का क्या?

१९५८ में एक १८ किलो टन का धमाका अभिक्रिया बढ़ाने में असफल रहा और रूनिट के टापू पर, जो एनीवेटोक के ४० टापूओं में एक था, प्राणघातक प्लूटोनियम २३७ को फैला दिया। बाद में मलबा को इकट्ठा करके, एक बड़े गढ़े के अन्दर दबा कर, उसके ऊपर सिमेन्ट का एक ढक्कन ढांका गया जो ३७० फीट चौड़ा (११३ मीटर) और १९ इंच मोटा (४८ से. मी.) था। वह १,१०,००० क्यूबिक गज़ (८४,००० क्यू. मीटर) के क्षेत्र को सम्मिलित करता है जिसमें संसार का सब से ज्यादा खतरनाक मलबा ढ़का हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार, वह “हमेशा के लिए” एक निषिद्ध जगह होगा। प्रवालद्वीप में सिर्फ तीन टापू पर निवास किया जा सकता है, और उनकी खुराक प्राथमिक रूप से आयात भोजन होगी जब तक कि वहाँ लगाए हुए नारियल के पेड़ और अरोरोट के पौधे तैयार नहीं हो जाते। १९८० में, ५०० एनीविटोक के निवासी लौटे, परन्तु दो साल से कम समय में उनमें से १०० कठिन हालतों के कारण, वापस लौट गए। सफाई और पुनःस्थापन के काम पर २१ करोड ८० लाख डॉलर का खर्च होगा।

इस दौरान प्रवालद्वीपों में, जहाँ विघटनाभिक निक्षेप हुआ था, वहाँ अवटुग्रन्थि की असामान्यता, मोतिया बिन्दू, शारीरिक वृद्धि में रुकावट, मृत जन्म, और गर्भपात, की गति दूसरे टापूओं से कहीं ज्यादा है। २५० से अधिक मार्शल टापूओं के निवासी, जो १९५४ के “ब्रेवो” के धमाके से प्रभावित हुए थे, उन्हें अवटुग्रन्थि का गाँठ हैं। सभी २५० को असाधारण रूप से अवटुग्रन्थि की शिकायत है। असामान्य रूप से सर्दी, फ्लू और दूसरी गले की बीमारियों का प्रभाव उन पर जल्दी पड़ता है। उनमें से अधिकतर जल्दी थक जाते हैं। और लगभग सब के सब अपने स्वास्थ्य की चिन्ता करते रहते हैं।

एक सरकारी अधिकारी ने यह कहा था: “हर व्यक्‍ति जो इस प्रकार प्रभावित हुआ है, अपने आप से पूछता है, ‘क्या मैं कल अच्छा रहूंगा? क्या मेरे बच्चों की अवस्था ठीक रहेगी?’ और जब वह बीमार पड़ जाता हैं तो वह अपने आप से पूछता है, “क्या यह एक साधारण बीमारी है, या उस बम का प्रेत इतने सालों के बाद भी मुझे मारने आ गया है?” एक यूटिरिक के प्रवालद्वीप का निवासी ने विलाप करते हुए कहा, “मेरे बहुत से बच्चे जो पैदा होने के समय पूरे रूप से स्वस्थ थे एक साल की आयु से पहले ही मर गए . . . सब मिला कर मैंने चार बच्चों को खो दिया। मेरा बेटा विन्टन बम के फटने के एक साल बाद पैदा हुआ था, और उसके गले के अवटुग्रन्थि की कैन्सर के दो ऑपरेशन हो चुके हैं।”

आशा विलम्ब हो चुकी है . . . ”

बिकिनी के निवासित लोगों का भविष्य अभी भी निश्‍चित नहीं है। हवाई, जिसमें उन्होंने अब फिर से बसने के लिए चुना है, अमरिकन सरकार उसके ऊपर सोच विचार कर रहीं है। उन में से अधिकतर अब भी किलि के टापू पर हैं। उनके अनुभव से यह प्रदर्शित होता हैं कि परमाणु हथियारों की होड़ कितनी दुःखद है। मनुष्यजाति जितना खर्च दे सकता है उससे कहीं अधिक पैसा और प्रयास उसमें खर्च हो जाते हैं, और शान्ति के समय में भी वह अपना शिकार बना लेता है, जिसमें एक दुसरे से परमाणु हथियारों की श्रेष्टता में बराबरी करनेवाले उन शक्‍तिशाली देशों से बहुत दुर रहनेवाले निर्दोष दर्शक भी सम्मिलित हो जाते हैं।

बाइबल कहती है: “जब आशा पूरी होने में विलम्ब होता है, तो हृदय शिथिल होता है।” (नितिवचन १३:१२, न्यू इंग्लिश बाइबल) मनुष्यों पर भरोसा करने से बिकिनी के निवासियों का यह अनुभव हुआ है। फिर भी, अब कई सालों से, माजूरो के रेडियो स्टेशन से सारे मार्शल टापुओं में एक सन्देश दिया जा रहा है जो राष्ट्र के हथियारों की होड़ की तरफ नहीं, परन्तु परमेश्‍वर के राज्य की तरफ ध्यान दिला रहा है, जो सच्ची सुरक्षा का स्रोत है। यह सच में “मानव जाति की भलाई और पूरे संसार के युद्धों का अन्त” करने के लिए है। बहुत जल्द वह राज्य ‘पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाएगा’ और ‘पृथ्वी के बिगाड़नेवाले नाश किए जाएँगे।”—भजन संहिता ४६:९; प्रकाशितवाक्य ११:१८.

किलि में रहनेवाले बिकनी के निवासी जब माजुरो में अपनी चीज़ें खरीदने या व्यवसाय करने जाते हैं, तो वे इस सन्देश को व्यक्‍तिगत रूप से वहाँ के यहोवा के सक्रिय साक्षियों के द्वारा प्राप्त करते हैं। इस बात का ज्ञान कि वह समय बहुत ही निकट है, जब स्वर्गीय राज्य पृथ्वी पर फिर से प्रमोदवन की परिस्थिति ले आएगा, और बाइबल के पद के उस शेष भाग को अनुभव करने में मदद करेगा जिसका वर्णन ऊपर किया गया है: “जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है।” उस राज्य के अधीन, न तो कोई परमाणु भय रहेगा और न ही कोई उसका शिकार होगा।

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