मुद्रा—उसकी उत्पत्ति और प्रयोग
उसके लिए उन्हें सिर्फ २४ डालर का खर्च हुआ, लेकिन यह सिक्कों या नोटों में अदा नहीं किया गया—जैसे आप हम मुद्रा को जानते हैं। खरीद, न्यू यॉर्क के उस मनहट्टन द्वीप का था, जिसका मूल्य आज लाखों अनगिनत डालर है। १६२६ में डच उपनिवेशियों ने इसे मूल निवासियों से, मोतियाँ, साधारण गहने और कपड़े देकर खरीदा था।
सारे इतिहास में मुद्रा अलग अलग रूपों में आयी है। करीब करीब हर उपयोगी वस्तु को मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया—खाल, अनाज, सीप, तम्बाकू, नमक, गाय-बैल, पत्थर, पर और कोको बीज। हमारा “तनख्वाह” शब्द (अँग्रेजी में सॉलरी), लैटिन शब्द सॉलेरियम से आता है जिसका अर्थ नमक है। इसी तरह “आर्थिक” (अँग्रेजी में पिक्यूनियरी) यह शब्द, लैटिन में गाय-बैल के लिए उपयोग किया गया पीकस शब्द से लिया गया है। अलग अलग समयों में दोनों नमक और गाय-बैल प्राचीन रोम में मुद्रा के रूप में उपयोग किया गया था।
लेकिन व्यवहार और उद्योग को बढ़ने के लिए, मुद्रा को एक सुविधाजनक और व्यापक रीति से स्वीकार्य रूप होना चाहिए और जो हर जगह समान रूप से समादृत हो। उदाहरणार्थ, अफरीका के पश्चिमी तट में कौड़ी के सीप मुद्रा के रूप में स्वीकार्य थे। वहाँ वे दुर्लभ थे और अत्यन्त समादृत। वे वजन में भी हलके और उसकी जालसाजी करना भी असम्भव था—मुद्रा की महत्त्वपूर्ण आवश्यकताएं। लेकिन व्यापार के लिए उन्हें भारत में उपयोग नहीं किया जा सकता था जहाँ समुद्रतट उनसे भरा हुआ था!
धीरे धीरे मूल्यवान् धातु, जैसे सोना और चाँदी, अन्य तरह की मुद्राओं का स्थान लेने लगी। वे स्थायी, व्यापक रूप से स्वीकार्य, अपेक्षाकृत दुर्लभ (जिसके कारण उन्हें एक ऊँची और वज़न की प्रति इकाई के लिए स्थिर कीमत रहता) और अधिक आसानी से पास रखा जा सकता था और कम मात्राओं में विभाजित भी किया जा सकता था। यद्यपि व्यापारियों को उनके पास सूक्ष्मग्राही तराजू रखना था, ताकि यह निश्चित हो कि सभी सौदा सही हो और कोई भी धोखा न खाए। बाद में, चिन्हित सिक्का-ढ़लाई होने लगी जो तराजू की आवश्यकता को हटा दिया।
क्या आपने कभी सोचा है, कि हमारे आज के सिक्कों को गड़ारीदार सकूट कोर और ध्यानपूर्वक रीति से अलंकृत क्यों है? यह इसलिए है क्योंकि पहले के सिक्के पूर्ण रूप से गोल नहीं थे और हस्तान्तरित करने से पहले आसानी से छील या काट दिए जा सकते थे। एक उद्यमशील व्यक्ति, इस तरह, थोड़ी सी बहुमूल्य धातू का अंश प्रत्येक में से निकाल सकता था और एक काफी बड़ी रकम संचित कर सकता है। इस तरह की धोखेबाज़ी को रोकने के लिए ,गड़ारीदार कोर बनाए गए, जिसके कारण ऐसी व्यवहारों को ढूँढ निकालना और अधिक आसान हो गया।
कागज़ी चलार्थ, साख-पत्रों के और नोटों के रूप में नौवी सदी में चीन में और रोमी कालों में प्रचलित थे। यद्यपि, आधुनिक बैंक नोट यूरोप में प्रयोग होने लगे। लन्दन के स्वर्णकार उनके सुरक्षित तिजोरियों को दूसरों की सोना और बहुमूल्य वस्तुओं को रखने के लिए इस्तेमाल किया। निक्षेप की गयी प्रत्येक वस्तु के लिए रसीद दिया गया। स्वर्णकार की खीराई पर जैसे विश्वास बढ़ता गया, वैसे वस्तुओं का विनिमय करने के बदले, रसीदों को ही मूद्रा के रूप में विनिमय किया जाता था। साथ ही, स्वर्णकार के लिए, सोने की कुछ रकम एक नामक व्यक्ति को देने के दस्ताक्षरित आदेश, हमारे आधुनिक चेक के अग्रदूत बनें।
जब तक वह विश्वसनीयता से समर्थित और भरोसे का रहता, कागज़ी चलार्थ उपयोग करने के लिए कहीं अधिक सुविधाजनक और सम्भालने के लिए कम जोखिमी है—खासकर बड़ी रकमों के लिए। चित्रात्मक नोट अनपढ़ों को सहायक होने के लिए बनाए गए थे। आज विश्व भर व्यवसाय सौदा में, कागज़ी-चलार्थ, हिसाब-किताब और इलेक्ट्रॉनिक अंतरण प्रबल है।
अब आप कौन-सा उपयोग करने और हर दिन साथ रखना चाहेंगे: पशू, पत्थर, सीप, अनाज, धातु या कागज़ी-चलार्थ?