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सजग होइए!–1994
g94 7/8 पेज 19-20

तारों के पास आपके लिए एक संदेश है!

जैसे पिछले लेखों में दिखाया गया है, तारों द्वारा प्रकट तेज के बावजूद भी, मानव को उन्हें मात्र वही समझना था जो वे हैं—अपने उद्देश्‍य के लिए सृष्टिकर्ता द्वारा आकाश में रखी गयी निर्जीव वस्तुएँ। उनकी उपासना नहीं की जानी थी। यहोवा के नियमों के अधीन उसकी अद्‌भुत सृष्टि का एक अंतरंग भाग होने के नाते, तारों को ‘परमेश्‍वर की महिमा वर्णन करनी’ थी। और साथ ही साथ जैसे-जैसे मानव सृष्टिकर्ता के उद्देश्‍य को पूरा करता उसके लिए प्रकाश का स्रोत बनना था।—भजन १९:१; व्यवस्थाविवरण ४:१९.

बाइबल में हम पढ़ते हैं: “तुझ में कोई ऐसा न हो जो . . . भावी कहनेवाला, वा शुभ अशुभ मुहूर्त्तों का माननेवाला, वा टोन्हा, वा तान्त्रिक, वा बाजीगर, वा ओझों से पूछनेवाला, वा भूत साधनेवाला, वा भूतों का जगानेवाला हो। क्योंकि जितने ऐसे ऐसे काम करते हैं वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं।” (व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२) यशायाह ने कहा: “[तेरे सलाहकार] जो नक्षत्रों को ध्यान से देखते . . . खड़े होकर तुझे उन बातों से बचाए . . . देख, वे भूसे के समान होकर आग से भस्म हो जाएंगे।”—यशायाह ४७:१३, १४.

हम तारों से क्या सीख सकते हैं

लेकिन, यदि हम सुनने के इच्छुक हों, तो ये निर्जीव तारे हमें कुछ बता सकते हैं। एडविन वे टील ने लिखा: “समय की अनंतता में मानव की तुच्छता के बारे में तारे बोलते हैं।” जी हाँ, जब हम यह समझते हैं कि खुली रात में तारों की जिस विशाल बहुसंख्या को हम अपनी खुली आँखों से देख सकते हैं, शताब्दियों पहले हमारे पूर्वजों ने भी उन्हें देखा था, तो क्या यह हमें नम्र नहीं करता? क्या हम उस महान व्यक्‍ति के प्रति श्रद्धा महसूस नहीं करते जिसने उन्हें “आदि में” बनाया और जिसने बाद में मानवजाति की सृष्टि की? इस्राएल के राजा दाऊद ने श्रद्धापूर्वक लिखा: “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्‍त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?” आकाश के कारण हमें नम्र होना चाहिए और स्वयं से यह सवाल पूछने के लिए प्रेरित होना चाहिए कि हम अपने जीवन के साथ क्या कर रहे हैं।—उत्पत्ति १:१; भजन ८:३, ४.

एक अवसर पर दाऊद ने प्रार्थना की: “मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा . . . पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्‍वर तू ही है!” (भजन १४३:१०) दाऊद के जीवन का अभिलेख सूचित करता है कि उसकी प्रार्थना का जवाब दिया गया। जैसा परमेश्‍वर के नियम में दिया गया था उसने परमेश्‍वर की इच्छा करनी सीखी। उसने मानवजाति के लिए सृष्टिकर्ता के उद्देश्‍य के बारे में भी सीखा और उसने इसके बारे में लिखा। “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; . . . परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे। . . . बुराई को छोड़ और भलाई कर; और तू सर्वदा बना रहेगा। . . . धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” उस उद्देश्‍य के ज्ञान के साथ एक ज़िम्मेदारी भी आयी: “बुराई को छोड़ और भलाई कर।”—भजन ३७:१०, ११, २७-२९.

तारों के पास सारी मानवजाति के लिए वही संदेश है। उनकी उपासना किए बिना या उनसे “परामर्श” लिए बिना, हम सृष्टिकर्ता के प्रेम, बुद्धि और शक्‍ति को उनमें प्रतिबिम्बित होते देख सकते हैं। ज्योतिष-विद्या के बजाय खगोल-विज्ञान के अध्ययन से हमारे दिलों में श्रद्धा उत्पन्‍न होनी चाहिए। लेकिन उससे भी अधिक क्या यह हम में परमेश्‍वर के बारे में अधिक सीखने की इच्छा उत्पन्‍न नहीं करता? उसने उसी उद्देश्‍य के लिए अपने वचन, बाइबल को प्रदान किया है। यदि आपने तारों से इस संदेश को समझ लिया है, तो आप यह सीख सकते हैं कि यहोवा ने मानवजाति के लिए भविष्य में क्या रखा है और इससे भी महत्त्वपूर्ण कि आप कैसे उन आशीषों में हिस्सा ले सकते हैं जो उसने मानवजाति के लिए तैयार की हैं। यदि आपके पास परमेश्‍वर और जीवन के उद्देश्‍य के बारे में प्रश्‍न हैं, तो निस्संकोच अपने क्षेत्र में यहोवा के गवाहों से संपर्क कीजिए, या पृष्ठ ५ पर दिए गए निकटतम पते पर लिखिए।

[पेज 20 पर तसवीरें]

तारे हमें नम्रता सिखा सकते हैं

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