विश्व-दर्शन
नई और पुनःउद्गमी बीमारियाँ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच. ओ.) चेतावनी देता है कि बीमारियों का प्रकोप, जिनमें नई बीमारियाँ भी शामिल हैं, लाखों लोगों के जीवन को जोखिम में डालता है। सबसे उल्लेखनीय उदाहरण एडस् का है। यह बीमारी एक ऐसे जीवाणु से होती है जो दस साल पहले क़रीब अज्ञात था। एक और बीमारी है हांटावाइरस् पल्मोनरी सिन्ड्रोम जिसका हाल ही में दक्षिण-पश्चिमी अमरीका में पता लगाया गया। एक पूर्णतया नए क़िस्म के हैज़ा का एशिया में उद्गम हुआ है। दो तरह के घातक रक्त-स्रावी ज्वर दक्षिण अमरीका में विकसित हुए हैं। १९९३ के दौरान जाने-माने संक्रामक बीमारियों के प्रकोप के उदाहरणों में लैटिन अमरीका में हैज़ा, केन्या में पीत-ज्वर, कोस्टा रीका में लँगड़ा ज्वर, और रूस में डिफ़्तेरिया शामिल हैं। डब्ल्यू. एच. ओ. नई और पुनःउद्गमी बीमारियों को पहचानने और उनका सामना करने के लिए केन्द्रों की एक विश्वव्यापी व्यवस्था की माँग कर रहा है।
धूम्रपान को प्रोत्साहित करनेवाली दौड़
परंपरागत रूप से, लोकप्रिय ‘फॉर्मुला वन ग्रॉ प्री’ कार दौड़ यूरोपीय देशों में होती आई हैं। लेकिन, अब आयोजक इन प्रतियोगिताओं को जापान और चीन जैसे एशियाई देशों में आयोजित करना पसन्द करते हैं। क्यों? तम्बाकू विज्ञापनों पर यूरोप के ज़्यादा सख़्त नियमों की वजह से। इन दौड़ों के मुख्य प्रायोजक तम्बाकू कंपनियाँ हैं, अतः दौड़ की कारें तम्बाकू विज्ञापनों को प्रमुख रूप से प्रदर्शित करती हैं। जापान के आसाही इवनिंग न्यूज़ के अनुसार, एक तम्बाकू कंपनी “दो टीमों के लिए वित्त व्यवस्था करने में वार्षिक तौर पर कई अरब येन की पूँजी लगाती है।” यूरोप में दौड़ लगाते वक़्त दौड़ की कारों पर से विज्ञापनों को मिटाना या उन्हें ढांकना पड़ा है। हाल ही में सिगरेट विज्ञापन पर एक निषेध के कारण फ्रांस में आयोजित ग्रॉ प्री क़रीब-क़रीब रद्द कर दी गई थी। एशियाई देशों को, जहाँ व्यस्क पुरुषों में से क़रीब ६० प्रतिशत लोग धूम्रपान करते हैं, दौड़ की कारों पर सिगरेट विज्ञापन करने के लिए अब बेहतर जगह माना जाता है।
ऐवरस्ट पर्वत की पूर्ण सफ़ाई
विश्व का सबसे ऊँचा शिखर होने के अलावा, युनेस्को सॉर्सस (अंग्रेज़ी) पत्रिका के अनुसार ऐवरस्ट पर्वत अब विश्व के “सबसे ऊँचे कूड़ेदान” के तौर पर भी जाना जाता है। पिछले ४० वर्षों के दौरान, पर्वतारोहियों ने ऐवरस्ट में क़रीब २० टन ऑक्सीजन की बोतलें, तम्बू, सोने के लिए थैले, और भोजन के पैकेज़ छोड़े हैं। निचली ढलानों पर, जहाँ फड़फड़ाते शौच-काग़ज़ भू-दृश्य की विशेषता है, ऐवरस्ट मूल शिविर तक का मार्ग अब “शौच-काग़ज़ का मार्ग कहा जाता है।” और ऊँचे पर्वत पर, कचरे की मात्रा विस्मयकारी है। युनेस्को सॉर्सस लिखती है, “इन दृश्यों के चित्र उन लोगों को चकित कर देते हैं जिनकी कल्पनाओं का ऐवरस्ट मानव हस्तक्षेप से परे अप्रदूषित क्षेत्र है।” इस पर्वत को इस गंदगी से मुक्त करने के लिए नेपाल सरकार ने इस साल कई “पूर्ण सफ़ाई” अभियानों की अनुमति दी।
बियर की बहुतायत—भोजन पर्याप्त नहीं
वेनेज़ुइला के समाचार-पत्र एल यूनीवर्साल के अनुसार, वेनेज़ुइला में कुपोषण की वजह से छः साल और उससे कम उम्र के ७,२६,००० बच्चों का कद उनकी उम्र के मुताबिक़ जितना होना चाहिए उतना नहीं है। यह उस आयु वर्ग के बच्चों का विस्मित करने वाला २३.८ प्रतिशत है, क़रीब हर ४ बच्चों में से १। जबकि शायद बच्चों को खिलाने के लिए पर्याप्त पौष्टिक भोजन की कमी हो, ऐसा प्रतीत होता है कि उस देश में बियर काफ़ी है। एल यूनीवर्साल रिपोर्ट करता है कि लैटिन अमरीकी देशों में, वेनेज़ुइला बियर उपभोग में पहले स्थान पर है। वर्ष १९९१ में वेनेज़ुइला के लोगों में प्रत्येक व्यक्ति ने औसत ७५ लीटर बियर पी।
आँखों में धुआँ
ऑस्ट्रेलिया के नैशनल विज़न रिसर्च इंस्टीट्यूट का निर्देशक, प्रोफ़ेसर रॉबर्ट ऑगस्टीन दावा करता है कि उसके पास अविवाद्य प्रमाण है कि सिगरेट के धुएँ से निकले रसायन मोतियाबिंद का कारण हैं। एक अध्ययन दिखाता है कि धूम्रपान करनेवालों को मोतियाबिंद होने की संभावना, धूम्रपान न करनेवालों से दो या तीन गुणा ज़्यादा है। सिगरेट के धुएँ से निकले रसायनों को पहले शरीर आत्मसात् करता है, लेकिन उसके पश्चात् वे आँख की ओर जाते हैं जहाँ वे उन “पम्पों” को नाश करते हैं जो आँखों की लेन्स में से अतिरिक्त नमक और पानी को बहा ले जाते हैं। इससे परिणित आँखों की कोशिकाओं के सूज जाने और फट जाने से मोतियाबिंद होता है। “मैं पूर्णतः विश्वस्त हूँ। इस बात में कोई शक नहीं कि सिगरेट के धुएँ की कोई चीज़ लेन्स में पम्पों को कार्य करने से रोकती है,” प्रोफ़ेसर ऑगस्टीन समझाता है।
मस्तिष्क को व्यायाम करवाना
“याददाश्त की कमी अकसर भाग्य के नहीं बल्कि अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण होती है,” जर्मनी का एक स्वास्थ्य-बीमा प्रकाशन, डाक मागात्सीन बताता है। जिस प्रकार पेशियाँ निष्क्रियता से क्षीण पड़ जाती हैं वैसे ही यदि उसको कम व्यायाम दिया जाए तो मस्तिष्क को भी जंग लग जाता है और वह कम जानकारी संग्रह करता है। क्या यह मुख्यतः बुज़ुर्गों की ही समस्या है? बिलकुल नहीं! “क्योंकि सोचना अकसर हमारे लिए आसान, यहाँ तक कि अनावश्यक भी बनाया जाता है,” वह पत्रिका टिप्पणी करती है, अपने मस्तिष्क को सही रीति से व्यस्त न रखने के कारण युवजनों के मस्तिष्क में भी जंग लग जाने का ख़तरा है। क्या बात मदद कर सकती है? वह पत्रिका मस्तिष्क और याददाश्त को उत्तेजित करने के लिए संख्या या वर्णमाला के अक्षरों की पहेलियों को सुलझाने के मानसिक खेलों का प्रयोग करते हुए मस्तिष्क को व्यायाम करवाने की सलाह देती है। साथ ही “वर्ग पहेलियाँ भी सहायक हो सकती हैं।”
अफ्रीका का संहार करता एडस्
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार, संसार के १ करोड़ ५० लाख से अधिक ज्ञात एडस् रोगियों में से क़रीब १ करोड़ अफ्रीका में हैं, जिससे वह संसार का सबसे बुरी तरह प्रभावित महाद्वीप बनता है। प्रोफ़ेसर नेतान क्लूमेक ने एडस् महामारी का सामना करने के लिए अभी तक उठाए गए क़दमों का वर्णन इस प्रकार किया, “निरन्तर उमड़ती हुई नदी के विरुद्ध रेत के छोटे बाँध।” पैरिस दैनिक पत्रिका ला मॉन्ड में प्रकाशित एक इन्टरव्यू में प्रोफ़ेसर क्लूमेक ने कहा कि अफ्रीकी राज्य के मुख्य अधिकारी अभी तक उस विनाश को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं जो यह जीवाणु अफ्रीका में लाएगा। वर्ष १९८७ में जब प्रोफ़ेसर क्लूमेक ने अनुमान लगाया कि महाद्वीप के १० प्रतिशत लोग एडस् से संक्रमित होंगे, तो बहुतों ने सोचा कि यह एक अतिश्योक्ति है। आज अनुमान लगाया गया है कि अफ्रीकी जनसंख्या के २० से ४० प्रतिशत लोग अब इस घातक जीवाणु से संक्रमित होंगे।
बहुत ज़्यादा मछुवाही समुद्रों को खाली कर रही है
“एक अंग्रेज़ी कहावत है कि ‘समुद्र में और भी बहुत मछलियाँ हैं।’ लेकिन यह ग़लत है,” दि इकोनॉमिस्ट बताता है। “समुद्र में मछलियों की बहुतायत है लेकिन इसका अत्यधिक शोषण किया गया है।” वर्ष १९८९ में शिखर तक पहुँचने के बाद संसार की समुद्री मछली की पकड़ घटती जा रही है। कारण सरल है: “अण्डजननीय संग्रह बनाए रखने के लिए बहुत कम मछलियाँ समुद्र में रह गई हैं। मछुए अब पूँजी पर जी रहे हैं, उन मछलियों का उपभोग कर रहे हैं जिसकी ज़रूरत मछली प्रजनन के लिए है।” संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार विश्व के १७ मुख्य समुद्री मछुवाही क्षेत्रों में से १३ गंभीर समस्या का सामना कर रही हैं—जिनमें से ४ व्यावसायिक तौर पर निःशेक्ष वर्गीकृत किए गए हैं। सोनार और उपग्रह संचार जैसी जटिल टैक्नोलॉजी ने मछुओं के लिए संभव किया है कि वे दूरस्थ क्षेत्रों में भी मछलियों को ढूँढ सकें और उन सुनिश्चित क्षेत्रों में लौट सकें जहाँ मछली पकड़ना लाभदायक है। फुटबॉल मैदानों जितने बड़े जालपोत, जिनमें मछलियों को तैयार करने के साज-समान हैं, जिनमें उनसे भी बड़े जाल होते हैं, अत्यधिक मात्रा में मछलियाँ पकड़ते हैं। दि इकोनॉमिस्ट कहता है कि इस बरबादी के लिए सरकारें दोषी हैं क्योंकि विश्व की पकड़ का ९० प्रतिशत कुछ देशों के तटों से ३७० समुद्री किलोमीटर के दायरे में पाया जाता है, समुद्र के उन भागों में जिन पर वे आधिपत्य का दावा करते हैं। सरकारें दूसरे राष्ट्रों के मछली पकड़नेवाले जहाज़ों को तो अनुमति नहीं देतीं लेकिन देशीय जहाज़ों की संख़्या को बढ़ने देतीं हैं, और वे उनको सार्वजनिक पूँजी में से मदद भी देती हैं।
रेलगाड़ियों के शौच-काग़ज़ के चीरक संदेश
जब तक और आधुनिक उपकरण उपयोग में नहीं लाए जाते, क़रीब सभी इटालियन रेलगाड़ियों पर किसी भी संकट-स्थिति की सूचना अधिकारियों को देने के लिए रेलगाड़ी परिचालक का एकमात्र तरीक़ा यही रहेगा: एक नोट लिखना, उसे शौच-काग़ज़ के एक चीरक में रखना, और उसे चलती गाड़ी से अगले रेलवे स्टेशन पर फेंकना, इस आशा में कि वह पाया जाएगा और अधिकारियों को सूचित किया जाएगा। यह व्यवस्था, जो “रेलवे जितनी पुरानी है,” सरकारी रेलवे नियमों द्वारा विहित है। यह “अब भी एक प्रभावकारी, और परखा हुआ तरीक़ा है,” एक इटालियन राज्य रेलवे अधिकारी बताता है, फिर भी वह स्वीकार करता है कि “रेलगाड़ियों में संचार एक बहुत ही गंभीर समस्या है।” किसी यात्री के बीमार हो जाने पर, एक संदेहास्पद सामान, आक्रमक कार्य, या एक चोरी का सामना करने पर “राज्य रेलवे कर्मचारी वस्तुतः शक्तिहीन हैं” क्योंकि उन्हें इनमें दख़ल देने का अधिकार नहीं है, इटालियन समाचार पत्र कोरीरे डेलॉ सेरॉ बताती है। संचार की समस्या को सुलझाने के लिए इटालियन राज्य रेलवे का इरादा है कि निकट भविष्य में क्लोज़्ड-सर्किट पोर्टेबल टेलीफ़ोन को अपनाए।
बेहतर नींद की आदतें
ब्राज़िल की पत्रिका एक्सामी कहती है कि “अनिद्रा शायद अनेक जनों को लाभकारी लग सकती है, लेकिन कई घंटों की नींद से अपने आप को वंचित रखने का परिणाम अंततः हानिकारक ही होगा।” तंत्रिका-विज्ञानी रूबेन्स रेमाउँ समझाता है: “शरीर यह नहीं भूलेगा कि एक व्यक्ति को कितने घंटे की नींद का कर्ज़ चुकाना है। इसके विपरीत, वह हमेशा याद रखेगा और अचानक एक व्यक्ति से क़ीमत चुकाने की माँग करेगा जो याददाश्त कम होना, एकाग्रता की समस्याएँ, और धीमी विचार शक्ति से प्रकट हो सकता है।” अनावश्यक चिंता से बचने के लिए, डॉ. रेमाउँ सलाह देता है: “काम के वक़्त ही काम की समस्याओं को सुलझाओ या उनके बारे में विचार करो।” ताकि आप आराम कर सकें और बेहतर नींद पा सकें, एक्सामी नियमित व्यायाम, धीमा संगीत, मन्द प्रकाश और अच्छे विचारों का सुझाव देती है।
नपुंसकों का संप्रदाय
बम्बई की इंडियन एक्सप्रेस बताती है कि भारत में दस लाख से अधिक नपुंसक हैं। इन में से केवल २ प्रतिशत ने ही इस तरह जन्म लिया है। बाक़ी के बधियाकरण किए गए हैं। एक्सप्रेस के अनुसार, सुन्दर लड़कों को प्रलोभित किया जाता है या अपहरण किया जाता है और उन्हें भारत के अनेक नपुंसक बनानेवाले केंद्रों में से एक में ले जाया जाता है। वहाँ लड़कों को एक संस्कार से गुज़रना पड़ता है जिसमें “राजकीय व्यवहार” भी शामिल है, और जो उनके अंडग्रंथि के निकालने से पराकाष्ठा में पहुँचता है। इसके बाद, एक अनुभवी नपुंसक उस नवनिर्मित नपुंसक को अपना लेता है और एक “माँ बेटी” का रिश्ता स्थापित होता है। इन नपुंसकों को स्त्रियों के नाम दिए जाते हैं और तत्पश्चात् वे स्त्रियों की तरह ही बर्ताव करते हैं और कपड़े पहनते हैं। अधिकतर नपुंसक संप्रदायों में संगठित हैं जिसका एक प्रधान देवता होता है। पूरे भारत में कई ऐसे मन्दिर हैं जहाँ नपुंसकों का आदर किया जाता है और एक वार्षिक त्यौहार के दौरान ईश्वरीय जनों के तौर पर उनका सम्मान किया जाता है।