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  • क्या पृथ्वी आग में नष्ट हो जाएगी?
  • सजग होइए!–1997
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सजग होइए!–1997
g97 2/8 पेज 18-19

बाइबल का दृष्टिकोण

क्या पृथ्वी आग में नष्ट हो जाएगी?

एक परमाणु अग्निकांड में झुलसकर, एक फैलते हुए सूर्य से भस्म होकर, या एक क्रुद्ध देवता द्वारा जलकर—तरीक़े अलग हो सकते हैं, लेकिन अनेक लोग विश्‍वास करते हैं कि पृथ्वी-ग्रह, मानवजाति के घर, का आग की लपटों में महाविनाश, अर्थात्‌ एक विध्वंसक अंत होगा।

कुछ लोग ऐसे बाइबल पाठों का हवाला देते हैं, जो पृथ्वी के विरुद्ध मनुष्य के पापों के प्रतिशोध में एक ईश्‍वर निर्देशित विध्वंस का संकेत करते हैं। अन्य लोग ऑस्ट्रेलिया के ऎडलेड विश्‍वविद्यालय के एक प्रॊफ़ेसर पॉल डेवीज़ की राय मानते हैं। वह आग के कुंड में पृथ्वी के निश्‍चित रूप से गोता खाने के विषय में अपने मत के बारे में लिखता है। वह अपनी किताब वे आख़िरी तीन मिनट (अंग्रेज़ी) में यह सिद्धांत प्रस्तुत करता है: “जैसे-जैसे सूर्य और अधिक फैलता है, वह . . . पृथ्वी को अपने अग्निमय दायरे में निगल जाएगा। हमारा ग्रह राख़ हो जाएगा।” पृथ्वी के भविष्य के बारे में सच्चाई क्या है? हमें उन बाइबल पाठों को कैसे समझना चाहिए जो अग्नेय सर्वनाश की भविष्यवाणी करते हुए प्रतीत होते हैं?

क्या परमेश्‍वर परवाह करता है?

यिर्मयाह १०:१०-१२ में, हमें सूचित किया जाता है: “यहोवा वास्तव में परमेश्‍वर है . . . उसी ने पृथ्वी को अपनी सामर्थ से बनाया, उस ने जगत को अपनी बुद्धि से स्थिर किया, और आकाश को अपनी प्रवीणता से तान दिया है।” परमेश्‍वर ने पृथ्वी को बनाया और उसे स्थिर किया। सो बुद्धि, प्रेम, और समझ के साथ, उसने हमेशा स्थिर रहने के लिए पृथ्वी को मानवजाति के लिए एक सुन्दर घर के रूप में ध्यानपूर्वक बनाया।

परमेश्‍वर द्वारा मानवजाति की सृष्टि के बारे में बाइबल कहती है: “नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की। और परमेश्‍वर ने उनको आशीष दी : और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो;” (उत्पत्ति १:२७, २८) जब उसने अपना सृजनात्मक कार्य पूरा किया, तो वह सुस्पष्ट रूप से घोषित कर सका कि “वह बहुत ही अच्छा है।” (उत्पत्ति १:३१) वह चाहता था कि वह उसी तरह रहे। जिस प्रकार कुछ भावी माता-पिता अपने होनेवाले नवजात शिशु के लिए एक बाल कक्ष की रूप-रेखा बनाते और उसे सुसज्जित करते हैं, उसी प्रकार परमेश्‍वर ने एक सुन्दर बग़ीचा तैयार किया और उसे बढ़ाने और उसकी देखभाल करने के लिए मनुष्य आदम को वहाँ रखा।—उत्पत्ति २:१५.

आदम ने परिपूर्णता को और पृथ्वी की देखभाल करने के अपने कर्त्तव्य को त्याग दिया। लेकिन क्या सृष्टिकर्ता ने अपने उद्देश्‍य को त्याग दिया? यशायाह ४५:१८ सूचित करता है, नहीं: “क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है . . . उसी ने पृथ्वी को रचा . . . उसी ने उसको स्थिर भी किया; उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।” (यशायाह ५५:१०, ११ भी देखिए।) हालाँकि मनुष्य ने अपने संरक्षक होने के कर्त्तव्य की उपेक्षा की, परमेश्‍वर पृथ्वी और उस पर मौजूद जीवन के साथ अपने अनुबंध को अमल में लाता रहा। प्राचीन इस्राएल को दिये गए नियम ने हर सातवें साल “भूमि को यहोवा के लिये परमविश्रामकाल” का प्रबंध किया। इसमें वे दयापूर्ण नियम शामिल थे जिन्होंने जानवरों को कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान की। (लैव्यव्यवस्था २५:४; निर्गमन २३:४, ५; व्यवस्थाविवरण २२:१, २, ६, ७, १०; २५:४; लूका १४:५) ये बाइबल से कुछ उदाहरण हैं जो स्पष्ट रीति से सूचित करते हैं कि परमेश्‍वर मानवजाति और जो कुछ उसने मनुष्य के हाथों सौंपा था उस की बहुत परवाह करता है।

“पहिली पृथ्वी”

तो हम उन बाइबल पाठों का समंजन कैसे कर सकते हैं जो परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं? ऐसा एक पाठ है २ पतरस ३:७, जो कहता है: “वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिये रखे हैं, कि जलाए जाएं; और वह भक्‍तिहीन मनुष्यों के न्याय और नाश होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे।” दूसरा है प्रकाशितवाक्य २१:१, जो कहता है: “मैं ने नये आकाश और नयी पृथ्वी को देखा, क्योंकि पहिला आकाश और पहिली पृथ्वी जाती रही थी।”

यदि पतरस के शब्दों का आक्षरिक अर्थ लिया जाना है और पृथ्वी ग्रह सचमुच आग में नष्ट होना है, तो वास्तविक आकाश—तारों और अन्य खगोलीय पिण्डों—को भी आग से नष्ट होना है। लेकिन, यह दृष्टिकोण कुछ शास्त्रवचनों में मिलनेवाले आश्‍वासन के विरोध में है, जैसे मत्ती ६:१०: “तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो,” और भजन ३७:२९: “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” इसके अलावा, पहले ही प्रचण्ड रूप से तपते सूर्य और तारों पर, जो लगातार परमाणु विस्फोट करते रहते हैं, आग का क्या असर होगा?

दूसरी ओर, बाइबल कई बार “पृथ्वी” शब्द का इस्तेमाल एक लाक्षणिक तौर पर करती है। उदाहरण के लिए, उत्पत्ति ११:१ (NHT) कहता है: “सारी पृथ्वी की एक ही भाषा तथा एक ही बोली थी।” यहाँ, “पृथ्वी” शब्द आम मानवजाति, या मानव समाज की ओर संकेत करता है। (१ राजा २:१, २; १ इतिहास १६:३१ भी देखिए।) २ पतरस ३:५, ६ का संदर्भ “पृथ्वी” का वही लाक्षणिक अर्थ सूचित करता है। वह नूह के दिनों की ओर संकेत करता है, जब एक दुष्ट मानव समाज जल-प्रलय में नष्ट हुआ था लेकिन नूह और उसका घराना साथ ही पृथ्वी-ग्रह सुरक्षित रखा गया था। (उत्पत्ति ९:११) इसी प्रकार, २ पतरस ३:७ में, कहा गया है कि नाश होनेवाले लोग ‘भक्‍तिहीन मनुष्य’ हैं। यह दृष्टिकोण बाक़ी बाइबल के सामंजस्य में है। नष्ट होने के लिए चिन्हित दुष्ट समाज ही प्रकाशितवाक्य २१:१ में, जिसे पहले उद्धृत किया गया है, ज़िक्र की गई ‘पहिली पृथ्वी’ है।

जी हाँ, जिस प्रकार एक परवाह करनेवाला पार्थिव पिता अपने घर की सुरक्षा करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा, यहोवा परमेश्‍वर भी अपनी सृष्टि के बारे में गहरी रुचि रखता है। एक बार उसने उपजाऊ यरदन घाटी से अनैतिक और दुष्ट लोगों को निकाल दिया और उस भूमि के नए रखवालों को जो कि उसके साथ वाचा में थे, निश्‍चिंत किया कि यदि वे उसकी विधियों का पालन करते, ‘तो ऐसा न होता कि जिस रीति से जो जाति उन से पहिले उस देश में रहती थी उसको उस ने उगल दिया, उसी रीति जब वे उसको अशुद्ध करें, तो वह उन को भी उगल दे।’—लैव्यव्यवस्था १८:२४-२८.

“नयी पृथ्वी”

आज, इस समाज ने, जो कि लैंगिक रूप से विकृत, हिंसक रूप से क्रूर, और राजनैतिक रूप से भ्रष्ट है, पृथ्वी को प्रदूषित कर दिया है। केवल परमेश्‍वर इसे बचा सकता है। वह ठीक ऐसा ही करेगा। प्रकाशितवाक्य ११:१८ में, वह प्रतिज्ञा करता है कि “पृथ्वी के बिगाड़नेवाले नाश किए जाएं।” पुनःस्थापित और नवीनीकृत पृथ्वी ऐसे लोगों से भरी होगी जो परमेश्‍वर का भय मानते और अपने संगी मनुष्यों को दिल से प्रेम करते हैं। (इब्रानियों २:५; लूका १०:२५-२८ से तुलना कीजिए।) परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य के अधीन जो परिवर्तन होंगे वे इतने अगाध होंगे कि बाइबल एक “नयी पृथ्वी” की बात करती है—एक नया मानव समाज।

जब हम भजन ३७:२९ जैसे शास्त्रवचन पढ़ते हैं और मत्ती ६:१० में मसीह द्वारा कही गई बात को समझते हैं, तो हम निश्‍चित होते हैं कि न तो विचारहीन प्राकृतिक शक्‍तियाँ ना ही मनुष्य अपनी सारी विनाशकारी शक्‍ति के साथ हमारे ग्रह को ख़त्म करेंगे। वे परमेश्‍वर के उद्देश्‍य को निष्फल नहीं करेंगे। (भजन ११९:९०; यशायाह ४०:१५, २६) विश्‍वासी मानवजाति पृथ्वी पर असीम सुन्दरता और अन्तहीन आनन्द की परिस्थितियों में रहेगी। पृथ्वी के भविष्य के बारे में यही सच्चाई है, क्योंकि मानवजाति के प्रेममय सृष्टिकर्ता का यही उद्देश्‍य है और हमेशा रहा है।—उत्पत्ति २:७-९, १५; प्रकाशितवाक्य २१:१-५.

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