युवा लोग पूछते हैं . . .
मैं परमेश्वर का मित्र कैसे बन सकता हूँ?
“निष्ठा।” “व्यक्तिगत आसक्ति।” अपने निकटतम मित्रों के साथ अपने लगाव का वर्णन करने के लिए लोग अकसर इन पदों का प्रयोग करते हैं। क्या आप जानते हैं कि ये पद इस विस्मयकारी विश्वमंडल के महान रचयिता के साथ लगाव का भी वर्णन कर सकते हैं—कि स्वयं परमेश्वर आपका व्यक्तिगत मित्र हो सकता है? जी हाँ, बाइबल ईश्वरीय भक्ति रखने के बारे में बोलती है, और उस अभिव्यक्ति में न केवल आज्ञाकारिता परन्तु परमेश्वर के साथ एक व्यक्तिगत लगाव भी सम्मिलित है, एक ऐसी घनिष्ठता जो एक मूल्यांकन-भरे हृदय से उत्पन्न होती है।
इस श्रंखला में पिछले लेखों ने दिखाया है कि ऐसा लगाव संभव भी है और लाभकारी भी।a लेकिन आप परमेश्वर के साथ यह व्यक्तिगत मित्रता करें कैसे? यह कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसके साथ आप जन्मे हैं या जो आप धर्म-परायण माता-पिता से स्वतः विरासत में प्राप्त करते हैं। इसके बजाय, यह एक ऐसी चीज़ है जो केवल सच्चे प्रयास से आती है। प्रेरित पौलुस ने युवक तीमुथियुस से कहा कि “भक्ति के लिए अपने आप को अनुशासित कर।” (NHT) जी हाँ, उसे उस क़िस्म का परिश्रम करना था जो एक खिलाड़ी अपने प्रशिक्षण में करता है! (१ तीमुथियुस ४:७, ८, १०) यदि परमेश्वर को आपका मित्र बनना है तो आपको भी उसी प्रकार करने की ज़रूरत है। लेकिन इस सम्बन्ध में आप प्रशिक्षण कैसे शुरू कर सकते हैं?
परमेश्वर का व्यक्तिगत ज्ञान
क्योंकि ईश्वरीय भक्ति हृदय से आती है, इसलिए आपको अपना हृदय परमेश्वर के ज्ञान से भरना चाहिए। दुःख की बात है कि जब ५०० से अधिक युवाओं से पूछा गया “आप अकेले में कितनी बार बाइबल पढ़ते हैं?” तब ८७ प्रतिशत ने या तो कहा “कभी-कभार,” “शायद ही कभी,” या कहा “कभी नहीं।” प्रत्यक्षतः अधिकतर युवा सोचते हैं कि बाइबल पढ़ना नीरस और उबाऊ है। लेकिन ज़रूरी नहीं कि ऐसा हो! विचार कीजिए: कुछ युवा तरह-तरह के खेल आँकड़े क्यों रट लेते हैं या अपने मनपसन्द गानों के बोल कैसे सीख लेते हैं? क्योंकि वे उन बातों में रुचि रखते हैं। उसी प्रकार, बाइबल का अध्ययन करना रुचिकर बन जाता है यदि आप उसमें तल्लीन हो जाएँ। (१ तीमुथियुस ४:१५) प्रेरित पतरस ने आग्रह किया: “वचन के शुद्ध दूध की लालसा विकसित करो।” (१ पतरस २:२, NW) जी हाँ, आपको शास्त्र में ऐसी रुचि बनानी, या विकसित करने की ज़रूरत है। यह प्रयास की माँग कर सकता है, लेकिन इससे जो प्रतिफल मिलते हैं वे इस प्रयास के योग्य हैं।b
एक बात है कि परमेश्वर का वचन और बाइबल-आधारित प्रकाशन पढ़ना और उनका अध्ययन करना “यहोवा की मनोहरता” प्रकट करेगा। (भजन २७:४) ऐमबर नाम की एक युवा मसीही ने पूरी बाइबल पढ़ना अपना लक्ष्य बनाया। इसमें लगभग एक साल लगा। “मेरे जीवन में ऐसी अनेक चीज़ें नहीं जो इतने समय और प्रयास की माँग करती हों परन्तु इतने ढेर प्रतिफल लाती हों,” ऐमबर ने बताया। “जब मैं उसे पढ़ रही थी, मुझे लगा मानो यहोवा मुझे एक पिता की तरह अपनी गोद में बैठाकर सिखा रहा था। मैं ने यहोवा के बारे में बहुत कुछ सीखा—ऐसी बातें जो मुझे उसके और निकट ले आयीं और मुझमें अपने जीवन-भर उसका भय मानने की इच्छा जगायी।”
जब आप बाइबल पढ़ते हैं, आप ऐसे अनेक अवसरों के बारे में सीखते हैं जब परमेश्वर ने निष्ठा से अपने मित्रों को सहारा दिया। (भजन १८:२५; २७:१०) आपको पता चलता है कि उसके स्तर हमेशा सर्वोत्तम हैं और हमारे स्थायी लाभ के लिए हैं। (यशायाह ४८:१७) परमेश्वर के अद्वितीय गुणों के बारे में पढ़ना, जैसे उसके प्रेम और बुद्धि के बारे में, आपको उसकी नक़ल करने की प्रेरणा देता है। (इफिसियों ५:१) लेकिन यदि ऐसी जानकारी से आपका हृदय प्रेरित होना है तो आपको मनन करने की भी ज़रूरत है। जैसे-जैसे आप पढ़ते हैं, अपने आपसे पूछिए: ‘यह मुझे यहोवा के बारे में क्या बताता है? मैं इसे अपने सोच-विचार और कार्यों में कैसे लागू कर सकता हूँ? यह कैसे दिखाता है कि मुझे परमेश्वर से अच्छा मित्र कभी नहीं मिल सकता?’
व्यक्तिगत और कलीसिया अध्ययन के द्वारा आप परमेश्वर के बारे में जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वह आपको एक और तरीक़े से उसके और निकट आने में मदद देगा। एक फ्रांसीसी कहावत है: “सच्चे मित्रों का सोच एकसमान होता है।” लेकिन परमेश्वर का और आपका “सोच एकसमान” कैसे हो सकता है? युवा डॆनीस बताती है: “एक विषय पर आप जितना अधिक अध्ययन और शोध करते हैं, उतना ही अधिक आप उस पर यहोवा के दृष्टिकोण को जान पाते हैं। यह जानना लाभकारी होता है कि किसी बात के बारे में वह कैसा महसूस करता है।”
खरा आचरण अत्यावश्यक
परमेश्वर केवल उन्हीं को अपना मित्र चुनता है जो उसके नैतिक स्तरों का आदर करते हैं। “उसकी आत्मीयता खरे लोगों के साथ है,” नीतिवचन ३:३२ (NW) कहता है। एक युवा जो खरा बनने का प्रयास कर रहा है “यहोवा की व्यवस्था पर . . . चलने की चौकसी” करेगा। (२ राजा १०:३१) ऐसा आज्ञा-परायण आचरण एक व्यक्ति को परमेश्वर के कितने निकट लाएगा? यीशु मसीह ने कहा: “मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ बास करेंगे।” (यूहन्ना १४:२१-२४) कितनी प्रोत्साहक छवि! कल्पना कीजिए, विश्व के दो सबसे महान व्यक्ति एक मनुष्य को हर समय अपना ध्यान दें और उसकी परवाह करें! ऐसा आपके साथ होगा यदि आप यहोवा की व्यवस्था पर चलने की चौकसी करते हैं।
क्या खरे होने का यह अर्थ है कि आपको परिपूर्ण होना है? बिलकुल नहीं! कमज़ोरी के कारण कोई ग़लती करने का यह अर्थ नहीं कि आपने ‘परमेश्वर की आज्ञाओं के पथ’ को त्याग दिया है। (भजन ११९:३५) इस पर विचार कीजिए कि बाइबल राजा दाऊद के बारे में हमें क्या बताती है। परमेश्वर का निष्ठावान मित्र होने के बावजूद, उसने कमज़ोरी के कारण कुछ गंभीर ग़लतियाँ कीं। फिर भी, यहोवा ने कहा कि वह “मन की खराई और सिधाई से” चला था। (१ राजा ९:४) राजा दाऊद ने अपने किसी भी कुकर्म के लिए हमेशा हार्दिक पश्चाताप दिखाया और जो परमेश्वर को प्रसन्न करता है वही करने के लिए कड़ा प्रयास किया।—भजन ५१:१-४.
जबकि दाऊद परमेश्वर से प्रेम करता था, वह जानता था कि कभी-कभी सही काम करना कितना कठिन हो सकता है। इसीलिए उसने परमेश्वर से बिनती की: “मुझे अपने सत्य पर चला।” जी हाँ, उसने परमेश्वर को अप्रसन्न करने का एक निष्कपट डर, या भय विकसित किया। अतः दाऊद कह सका: “यहोवा के साथ आत्मीयता उनकी है जो उसका भय मानते हैं।” (भजन २५:५, १४, NW) यह कोई हानिकर भय नहीं है परन्तु रचयिता के लिए एक गहरी श्रद्धा है और उसे अप्रसन्न करने का हितकर डर है। यह ईश्वरीय भय वह आधार है जिस पर उचित आचरण आधारित है। सचित्रित करने के लिए, जॉशुआ नाम के एक मसीही युवा के उदाहरण पर विचार कीजिए।
जॉशुआ को एक स्कूल-साथी से एक पत्र मिला कि वह उसे पसन्द करती है और उसके साथ “रिश्ता” बनाना चाहती है। लेकिन, उसकी ओर आकर्षित होने के बावजूद, जॉशुआ को यह एहसास हुआ कि एक अविश्वासी के साथ संगति अनैतिकता की ओर ले जा सकती है और यहोवा के साथ उसकी मित्रता को नष्ट कर सकती है। सो उसने उसे साफ़-साफ़ कह दिया कि उसे दिलचस्पी नहीं है! जब बाद में उसने अपनी माँ को बताया कि उसने स्थिति को किस प्रकार निपटाया था, तब उन्होंने एकाएक कहा: “ओह जॉशुआ, आपने शायद उसकी भावनाओं को चोट पहुँचायी हो!” जॉशुआ ने उत्तर दिया: “लेकिन, मम्मी। यहोवा को चोट पहुँचाने से तो भला है कि उसको चोट पहुँचाऊँ।” उसके ईश्वरीय भय ने, अपने स्वर्गीय मित्र को अप्रसन्न करने के उसके डर ने, उसे खरा आचरण बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।
अच्छे साथी ढूँढिए
लेकिन, लिन नाम की एक युवा बार-बार मुसीबत में पड़ती रही। समस्या? वह ग़लत गुट के साथ संगति कर रही थी। (निर्गमन २३:२; १ कुरिन्थियों १५:३३) हल? नए मित्र ढूँढना! “यदि आपके पास ऐसे मित्र होते हैं जो यहोवा से प्रेम करते हैं,” लिन ने अन्त में कहा, “यह आपको एक संवेदनशील अंतःकरण रखने और मुसीबत से बचने में मदद देता है। जब वे कुकर्म के प्रति घृणा व्यक्त करते हैं, तब आप भी वैसा ही महसूस करते हैं।”
असल में, आपका ग़लत मित्र चुनना परमेश्वर के साथ मित्रता करने में सबसे बड़ी बाधा हो सकता है। अठारह-वर्षीय ऐन ने स्वीकार किया: “आपके साथियों का एक बड़ा प्रभाव होता है। आज नहीं तो कल, आप उन्हीं के जैसे हो जाएँगे। वे आपको अपने सोच-विचार में ढाल लेते हैं। बातचीत ज़्यादातर सॆक्स के बारे में हो सकती है। यह आपको जिज्ञासु बना सकता है। आप सोचते हैं यह कैसा होगा।” ऐन ने इसे दुःखद अनुभव से सीखा। वह कहती है: “मैं जानती हूँ कि यह सच है। मैं अनैतिकता में फँस गयी और १५ की उम्र में गर्भवती हो गयी।”
ऐन ने अंततः बाइबल के शब्दों की सत्यता समझी: “सो जो कोई संसार का मित्र होना चाहता है, वह अपने आप को परमेश्वर का बैरी बनाता है।” (याकूब ४:४) जी हाँ, ऐन संसार की मित्र होना चाहती थी—वह ऐसा करने पर उतारू थी। लेकिन इसने एक-के-बाद-एक मनोव्यथा दी। ख़ुशी की बात है, ऐन अपने होश में आ गयी। उसे अपने किए पर बड़ा दुःख हुआ और उसने अपने माता-पिता और अपनी कलीसिया के प्राचीनों की मदद ली। उसने अपने लिए नए मित्र भी बनाए। (भजन १११:१) काफ़ी प्रयास करने पर, ऐन फिर से परमेश्वर की मित्र बन पायी। अब, कई साल बाद, वह कहती है: “यहोवा के साथ मेरा सम्बन्ध अब काफ़ी निकट का है।”
बाइबल के व्यक्तिगत अध्ययन, मनन, खरे आचरण, और हितकर संगति के द्वारा, आप भी परमेश्वर के साथ एक घनिष्ठ मित्रता बना सकते हैं। लेकिन, उस मित्रता को बनाए रखना एक और बात है। मुश्किलों और व्यक्तिगत कमज़ोरियों के बावजूद ऐसा करना कैसे संभव है? इस श्रंखला में एक भावी लेख इस विषय पर चर्चा करेगा।
[फुटनोट]
a जुलाई २२ और नवम्बर २२, १९९५ के सजग होइए! (अंग्रेज़ी) अंक देखिए।
b अगस्त ८, १९८५ के हमारे अंग्रेज़ी अंक में “युवा लोग पूछते हैं . . . बाइबल क्यों पढ़ें?” देखिए।
[पेज 13 पर तसवीर]
क्या मेरे साथी मुझे परमेश्वर का मित्र होने में मदद देंगे?