घृणा—इतनी अधिक क्यों?
जर्मनी में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
“क्यों”—एक छोटा शब्द है, फिर भी यह एक उत्तर की माँग करता है। उदाहरण के लिए, जब यह मार्च १९९६ में डनब्लेन, स्कॉटलॆंड में एक स्कूल के सामने रखे फूलों के गुच्छों और टॆडी बॆयर खिलौनों के बीच एक परची पर लिखा हुआ देखने में आया। कुछ ही दिनों पहले, एक आदमी ने अंदर घुसकर १६ बच्चों और उनकी शिक्षिका को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था। उसने दूसरे कई जनों को घायल किया और फिर ख़ुद पर गोली चला ली। साफ़ है कि उसमें घृणा भरी थी—उसे अपने आपसे, दूसरों से और आम तौर पर समाज से घृणा थी। शोकित माता-पिता और मित्र, साथ ही संसार भर में करोड़ों लोग यही प्रश्न पूछते हैं, ‘क्यों? आख़िर क्यों बेक़सूर बच्चे इस तरह मरते हैं?’
संभव है कि संसार में जो अंधी, अबूझ घृणा भरी पड़ी है उस पर आपका भी ध्यान गया हो। असल में, एक-न-एक कारण से आप शायद स्वयं घृणा का शिकार बने हों। हो सकता है आपने भी पूछा हो ‘क्यों?’—और शायद एक नहीं, कई बार पूछा हो।
हितकर और अहितकर क़िस्म की घृणा
“घृणा करना” और “घृणा” की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है, “तीव्र शत्रुता और बैर।” निःसंदेह, जो बातें हानिकर हैं या जो हमारे व्यक्तिगत संबंधों को नुक़सान पहुँचा सकती हैं उनसे “तीव्र शत्रुता और बैर” रखना लाभकर है। यदि सभी को इस क़िस्म की घृणा होती, तो यह संसार सचमुच रहने के लिए एक बेहतर स्थान होता। लेकिन, दुःख की बात है कि अपरिपूर्ण मनुष्य अकसर ग़लत कारणों से प्रेरित होकर ग़लत बातों से घृणा करते हैं।
एक परिभाषा के अनुसार, विनाशक घृणा पूर्वधारणा, अज्ञानता, या ग़लत जानकारी पर आधारित होती है और प्रायः “भय, क्रोध, या चोट के भाव” से प्रेरित होती है। उचित आधार न होने के कारण, इस घृणा का परिणाम बुरा होता है और बारंबार यह प्रश्न उठता है, ‘क्यों?’
हम सब ऐसे लोगों को जानते हैं जिनकी विचित्रताओं या आदतों से हमें कभी-कभी खीज हो सकती है और जिनके साथ व्यवहार करने में हमें कठिनाई होती है। लेकिन खीज एक बात है; लोगों को शारीरिक हानि पहुँचाने की इच्छा एकदम अलग बात। इसलिए, हमें शायद यह समझना कठिन लगे कि कैसे एक व्यक्ति समस्त जनसमूहों के लिए घृणा की भावनाएँ पाल सकता है, प्रायः उन लोगों के लिए जिन्हें वह जानता तक नहीं। वे शायद उसके राजनैतिक विचारों से सहमत नहीं हैं, दूसरे धर्म के हैं, या किसी और नृजातीय समूह के हैं, लेकिन क्या यह उनसे घृणा करने का कारण है?
लेकिन, ऐसी घृणा है! अफ्रीका में घृणा के कारण १९९४ में रूवाण्डा में हूटू और टूट्सी जातियों ने एक दूसरे का संहार किया। इस पर एक पत्रकार ने पूछा: “इतने छोटे-से देश में इतनी अधिक घृणा कैसे भर गई?” मध्य पूर्व में, घृणा ही अरबी और इस्राएली कट्टरों द्वारा आतंकवादी हमलों की ज़िम्मेदार रही है। यूरोप में घृणा के कारण भूतपूर्व युगोस्लाविया विभाजित हो गया। और एक अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, मात्र अमरीका में “लगभग २५० घृणा समूह” जातिभेद के विचार फैला रहे हैं। इतनी अधिक घृणा क्यों? आख़िर क्यों?
घृणा इतनी गहरी होती है कि यह तब भी नहीं मिटती जब वे झगड़े मिट जाते हैं जो इसने पैदा किये होते हैं। युद्धग्रस्त और आतंकग्रस्त देशों में शांति और युद्ध-विराम बनाए रखना जो इतना कठिन है उसका कारण भला और क्या हो सकता है? वर्ष १९९५ के अंत में पैरिस में हुई शांति संधि में निर्धारित किया गया कि सारायीवो नगर को बॉस्नीया और हर्ट्सगोवीना-क्रोएशिया संघ से पुनःसंयुक्त किया जाए, परंतु उसके बाद जो हुआ उसका कारण भला और क्या हो सकता है? वहाँ रह रहे अधिकतर सर्बी उस नगर और उसके उपनगरों को छोड़कर भागने लगे क्योंकि उन्हें प्रतिहिंसा का भय था। यह रिपोर्ट देते हुए कि लोग लूट मचा रहे थे और उन इमारतों को जला रहे थे जिन्हें वे पीछे छोड़े जा रहे थे, टाइम ने अंत में कहा: “सारायीवो फिर से एक हुआ है; उसके लोग नहीं।”
जो लोग एक दूसरे से घृणा करते हैं उनके बीच शांति यदि है भी, तो वह नक़ली शांति है, नक़ली पैसे की तरह कुछ काम की नहीं। उसके पीछे कोई ठोस आधार न होने के कारण, वह ज़रा-सा भी दबाव आने पर भंग हो सकती है। लेकिन संसार में घृणा इतनी अधिक है और प्रेम इतना कम। क्यों?
[पेज 4 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
विनाशक घृणा पूर्वधारणा, अज्ञानता, या ग़लत जानकारी पर आधारित होती है